बुल्गाकोव का संक्षिप्त परिचय
मिखाइल बुल्गाकोव का जन्म युक्रेन की राजधानी कीएव में सन १८९१ में हुआ. उनके पिता कीएव की स्पिरिचुअल अकादमी में प्रोफ़ेसर थे. परिवार बड़ा और पढ़ालिखा था. परिवार में तीन लड़के और चार लड़कियां थीं .
मिखाइल बुल्गाकोव ने मेडिकल कालेज की पढाई पूरी की, और रूसी क्रांति के उपरांत वे दूर-दराज़ के गाँवों में प्रेक्टिस करने लगे. इन अनुभवों के आधार पर उन्होंने कुछ कहानियां भी लिखी हैं.
जल्दी ही उन्हें इस बात का एहसास हो गया की डॉक्टरी में उन्हें ख़ास दिलचस्पी नहीं है, अत: सन १९२१ में वे खाली हाथ मास्को आ गए, पत्नी के साथ, और डॉक्टरी को पूरी तरह तिलांजलि देकर लेखन कार्य में जुट गए.
अनेक नाटकों तथा उपन्यासों के इस लेखक ने अखबारों में मजाकिया खाके लिखकर अपनी साहित्य यात्रा आरंभ की. साथ ही अनेक कहानियां भी लिखीं जिनमें कुछ डॉक्टरी जीवन के संस्मरण तथा कुछ व्यंग्यात्मक रचनाएं थीं. सन १९२४-१९२६ के बीच उन्होंने तीन लघु उपन्यास लिखे -- दिआबिलियादा (शैतानियत) , रोकोविए यैत्सा (दुर्भाग्यशाली अंडे ) और कुत्ते का दिल(सबाच्ये सेर्द्त्से).
तत्कालीन सोवियत जीवन पर निर्ममता से प्रहार करने वाली इन रचनाओं के कारण उन पर शासन द्वारा ज्यादतियां की जाने लगी.
बुल्गाकोव ने कुछ नाटक भी लिखे जिनमे प्रमुख हैं : बेग (पलायन), ज़ोय्किना क्वार्तीरा (जोया का फ्लैट), दनी तूर्बिनीख (तूर्बिंन परिवार के अंतिम दिन ) तथा बग्रोवी अस्त्रोव(लाल द्वीप).
कुछ अन्य रचनाएँ हैं: उपन्यास बेलाया ग्वार्दिया (श्वेत गाएड), जो स्वयँ बुल्गाकोव को बेहद पसन्द था; झीज़्न गस्पदीना मोल्येरा (मोल्येर महाशय का जीवन) और तिआत्राल्नी रमान( किस्सा थियेटर का)..
अपना महानतम उपन्यास मास्टर और मार्गारीटा उन्होंने सन १९२८ में आरंभ किया. अपनी आखों की ज्योति खोकर भी इस उपन्यास को पूर्ण करके सन १९४० में वे हमेशा के लिए इस संसार से बिदा हो गए.
मित्रों, हमारा प्रयास रहेगा की बुल्गाकोव का उपन्यास हिन्दी में आपके सम्मुख प्रस्तुत करें, कठिनाइयां तो अवश्य आएंगी, जैसा की बुल्गाकोव पर काम करने वालों के साथ होता है, पर आशा करते हैं की बुल्गाकोव का सहयोग इस कार्य में हमें प्राप्त होगा.
आमीन!
मिखाइल बुल्गाकोव का जन्म युक्रेन की राजधानी कीएव में सन १८९१ में हुआ. उनके पिता कीएव की स्पिरिचुअल अकादमी में प्रोफ़ेसर थे. परिवार बड़ा और पढ़ालिखा था. परिवार में तीन लड़के और चार लड़कियां थीं .
मिखाइल बुल्गाकोव ने मेडिकल कालेज की पढाई पूरी की, और रूसी क्रांति के उपरांत वे दूर-दराज़ के गाँवों में प्रेक्टिस करने लगे. इन अनुभवों के आधार पर उन्होंने कुछ कहानियां भी लिखी हैं.
जल्दी ही उन्हें इस बात का एहसास हो गया की डॉक्टरी में उन्हें ख़ास दिलचस्पी नहीं है, अत: सन १९२१ में वे खाली हाथ मास्को आ गए, पत्नी के साथ, और डॉक्टरी को पूरी तरह तिलांजलि देकर लेखन कार्य में जुट गए.
अनेक नाटकों तथा उपन्यासों के इस लेखक ने अखबारों में मजाकिया खाके लिखकर अपनी साहित्य यात्रा आरंभ की. साथ ही अनेक कहानियां भी लिखीं जिनमें कुछ डॉक्टरी जीवन के संस्मरण तथा कुछ व्यंग्यात्मक रचनाएं थीं. सन १९२४-१९२६ के बीच उन्होंने तीन लघु उपन्यास लिखे -- दिआबिलियादा (शैतानियत) , रोकोविए यैत्सा (दुर्भाग्यशाली अंडे ) और कुत्ते का दिल(सबाच्ये सेर्द्त्से).
तत्कालीन सोवियत जीवन पर निर्ममता से प्रहार करने वाली इन रचनाओं के कारण उन पर शासन द्वारा ज्यादतियां की जाने लगी.
बुल्गाकोव ने कुछ नाटक भी लिखे जिनमे प्रमुख हैं : बेग (पलायन), ज़ोय्किना क्वार्तीरा (जोया का फ्लैट), दनी तूर्बिनीख (तूर्बिंन परिवार के अंतिम दिन ) तथा बग्रोवी अस्त्रोव(लाल द्वीप).
कुछ अन्य रचनाएँ हैं: उपन्यास बेलाया ग्वार्दिया (श्वेत गाएड), जो स्वयँ बुल्गाकोव को बेहद पसन्द था; झीज़्न गस्पदीना मोल्येरा (मोल्येर महाशय का जीवन) और तिआत्राल्नी रमान( किस्सा थियेटर का)..
अपना महानतम उपन्यास मास्टर और मार्गारीटा उन्होंने सन १९२८ में आरंभ किया. अपनी आखों की ज्योति खोकर भी इस उपन्यास को पूर्ण करके सन १९४० में वे हमेशा के लिए इस संसार से बिदा हो गए.
मित्रों, हमारा प्रयास रहेगा की बुल्गाकोव का उपन्यास हिन्दी में आपके सम्मुख प्रस्तुत करें, कठिनाइयां तो अवश्य आएंगी, जैसा की बुल्गाकोव पर काम करने वालों के साथ होता है, पर आशा करते हैं की बुल्गाकोव का सहयोग इस कार्य में हमें प्राप्त होगा.
आमीन!
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