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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

Master aur Margarita-03.2



मास्टर और मार्गारीटा 3.2
देखा जाए तो बेर्लिओज़ का सोचा हुआ प्लान बिल्कुल सही था : निकट के टेलिफोन बूथ में जाकर विदेशियों से सम्बन्धित दफ़्तर में इस बात की सूचना देना था कि यह, विदेश से आया हुआ सलाहकार पत्रियार्शी तालाब वाले पार्क में बैठा है और उसकी दिमागी हालत बिल्कुल ठीक नहीं है. इसलिए कुछ ज़रूरी उपाय किए जाएँ, नहीं तो यहाँ कोई नाखुशगावार हादसा हो सकता है.
 फोन करना है? कीजिए, मनोरुग्ण ने उदासी से कहा और अचानक भावावेश से मिन्नत की, मगर जाते-जाते आपसे निवेदन करूँगा कि शैतान के अस्तित्व में विश्वास कीजिए! मैं आपसे कोई बड़ी चीज़ नहीं माँग रहा हूँ. याद रखिए कि शैतान की उपस्थिति के बारे में सातवाँ प्रमाण मौजूद है, यह बड़ा आशाजनक प्रमाण है! अभी-अभी आपको भी इस बारे में पता चल जाएगा.
 अच्छा, अच्छा... झूठ-मूठ प्यार से बेर्लिओज़ ने कहा और चिढ़े हुए कवि की ओर देखकर उसने आँख मारी, जिसे इस पागल जर्मन की चौकीदारी करने का ख़्याल बिल्कुल नहीं आया था. फिर वह ब्रोन्नाया रास्ते और एरमालायेव गली के चौराहे की तरफ वाले निकास द्वार की ओर बढ़ा. उसकी जाते ही प्रोफेसर मानो स्वस्थ हो गया और उसके चेहरे पर चमक आ गई.
 मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच! उसने जाते हुए बेर्लिओज़ से चिल्लाकर कहा.
वह कँपकँपाया, फिर उसने पीछे मुड़कर देखा और स्वयँ को ढाढस बँधाया कि उसका नाम भी प्रोफेसर ने कहीं अख़बारों में पढ़ा होगा. और प्रोफेसर दोनों हाथ बाँधे चिल्लाता जा रहा था, क्या मैं आपके चाचा को कीएव में तार भेज दूँ?
बेर्लिओज़ का दिल एक बार फिर धक्क से रह गया. यह बेवकूफ कीएव वाले चाचा के बारे में कैसे जानता है? इस बारे में तो कभी किसी भी अख़बार में नहीं लिखा गया. ए हे...हे? कहीं बेज़्दोम्नी ने ठीक ही तो नहीं कहा था? मगर उसके पास के दस्तावेज़? ओफ़, किस क़दर रहस्यमय आदमी है. फोन करना ही होगा! उसकी अच्छी ख़बर लेंगे!
और आगे कुछ भी सुने बगैर बेर्लिओज़ आगे की ओर दौड़ा.
ब्रोन्नाया वाले निर्गम द्वार के पास बेंच से उठकर सम्पादक के पास वही व्यक्ति आया जो तब सूरज की धूप में गरम हवा से बनता नज़र आया था. फर्क इतना था कि अब वह हवा से बना हुआ प्रतीत नहीं होता था, बल्कि साधारण व्यक्तियों की भाँति ठोस नज़र आ रहा था. घिरते हुए अँधेरे में बेर्लिओज़ ने साफ-साफ देखा कि उसकी मूँछें मुर्गी के पंखों जैसी थीं, आँख़ें छोटी-छोटी, व्यंग्य से भरपूर, आधी नशीली, और चौख़ाने वाली पतलून इतनी ऊँची थी कि अन्दर से गन्दे मोज़े नज़र आ रहे थे.
मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच वहीं ठिठक गया, मगर उसने यह सोचकर अपने आपको समझाया कि यह केवल एक विचित्र संयोग है और इस समय उसके बारे में सोचना मूर्खता है.
 घुमौना दरवाज़ा ढूँढ रहे हैं साहब? कड़कते स्वर में लम्बू ने पूछा, इधर आइए! सीधे, और जहाँ चाहे निकल जाइए. बताने के लिए आपसे एक चौथाई लिटर के लिए...हिसाब बराबर...भूतपूर्व कॉयर मास्टर के नाम! शरीर को झुकाते हुए इस प्राणी ने अभिवादन के तौर पर अपनी जॉकियों जैसी टोपी हाथ में ले ली.
बेर्लिओज़ कॉयर मास्टर की इस ढोंगी याचना को सुनने के लिए नहीं रुका, वह घुमौने दरवाज़े की ओर भागा और हाथ से उसे पकड़ लिया. उसे घुमाकर वह रेल की पटरी पार करने ही वाला था कि उसके चेहरे पर लाल और सफ़ेद रंग का प्रकाश पड़ा : काँच के ट्रैफिक-बोर्ड पर अक्षर चमकने लगे, सावधान, ट्राम आ रही है! और यह ट्राम उसी क्षण आ पहुँची, एरमलायेव गली से नई बिछाई गई रेल की पटरी से मुड़कर, ब्रोन्नाया रास्ते पर मुड़कर मुख्य रास्ते पर आते ही उसका अन्दरूनी भाग बिजली की रोशनी में नहा गया, ब्रेक के चीत्कार के साथ वह रुक गई.
हालाँकि बेर्लिओज़ सुरक्षित स्थान पर खड़ा था, फिर भी सावधानी के लिए उसने मुड़कर वापस जाना चाहा.उसने अपना हाथ घुमौने दरवाज़े पर रखा और एक कदम पीछे हटा. उसी क्षण उसका हाथ फिसलकर छूट गया, पैर फिसला, जैसे कड़ी बर्फ पर फिसल रहा हो. पैर फिसलकर उस छोटे से पथरीले रास्ते पर गया जो रेल की पटरी तक जाता था, दूसरा पैर अपनी जगह से उछल गया और बेर्लिओज़ रेल की पटरी पर गिर गया.
किसी सहारे को पकड़ने की कोशिश करते हुए, बेर्लिओज़ चित गिर पड़ा. उसका सिर धीरे से पथरीले रास्ते से टकराया और उसकी नज़र आकाश की ओर चली गई, मगर दाहिने या बाएँ, वह समझ नहीं पाया, उसे सुनहरा चाँद नज़र आया. वह जल्दी से एक करवट मुड़ा, फट् से पैरों को पेट के पास मोड़ा और मुड़ते ही अपने ऊपर विलक्षण शक्ति से आते हुए, भय से सफ़ेद पड़ गए, एक स्त्री के चेहरे और उसकी लाल टोपी को देखा. यह ट्राम चालिका का चेहरा था. बेर्लिओज़ चीख नहीं सका, मगर उसके चारों ओर जमा हो गई महिलाओं की भयभीत चीखों से वह सारी सड़क गूँज उठी. ट्राम चालिका ने शीघ्रता से बिजली का ब्रेक लगाया, फलस्वरूप ट्रामगाड़ी नाक के बल ज़मीन में मानो घुस गई. अगले ही क्षण खनखनाहट की आवाज़ के साथ उसकी खिड़कियों के शीशे बाहर की ओर गिरने लगे. बेर्लिओज़ के दिमाग में एक विकट विचार कौंध गया क्या सचमुच? टुकड़ों में बँट चुका चाँद और एक बार, आखिरी बार झाँका और फिर अँधेरा छा गया.
ट्रामगाड़ी ने बेर्लिओज़ को पूरी तरह ढाँक लिया था. और पत्रियार्शी के गलियारे की जालियों के नीचे से पथरीले रास्ते पर कोई गोल-गोल काली-सी चीज़ लुढ़कती हुई चली गई, वह ब्रोन्नाया रास्ते के फुटपाथ पर उछलते हुए लुढ़कने लगी.
यह बेर्लिओज़ का कटा हुआ सिर था.
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