मास्टर और मार्गारीटा – 04.2
तीनों कुटिल एक पल में नुक्कड़ पर पहुँचकर अगले ही पल स्पिरिदोनव में नज़र आए. चाहे जितनी तेज़ी से इवान अपनी रफ़्तार बढ़ा रहा था, मगर उनके बीच की दूरी कम नहीं हो रही थी. कवि समझ नहीं पाया कि कब वह स्पिरिदोनव रास्ते से निकीत्स्की दरवाज़े तक पहुँच गया. यहाँ आकर हालत और भी ख़राब हो गई. यहाँ बड़ी भीड़ थी. उनके धोखे में इवान किसी और व्यक्ति पर झपट पड़ा जिसके कारण उसे काफ़ी डाँट पड़ी. दुष्टों ने अब डाकुओं जैसी चाल चली – वे यहाँ-वहाँ तितर-बितर हो गए.
लम्बू बड़ी सहजता से चलते-चलते अर्बात चौक की ओर जाती बस में चढ़ गया. इस तरह वह वहाँ से खिसक लिया. उनमें से एक को खो देने पर इवान ने बिल्ले पर अपना ध्यान केन्द्रित किया. देखा, वह विचित्र बिल्ला ‘ए’ ट्रअम-गाड़ी के फुटबोर्ड पर चढ़ गया और निर्लज्ज की भाँति धक्का मारकर एक चिल्लाती हुई औरत को अपने स्थान से हटाकर उसने डण्डॆ को पकड़ लिया, और महिला कण्डक्टर को उमस के कारण खुली खिड़की में से दस कोपेक का सिक्का देने लगा.
बिल्ले के ऐसे व्यवहार को देखकर इवान इतने सकते में आ गया कि पास ही एक किराने की दुकान से मानो वह चिपक गया और महिला कण्डक्टर का बर्ताव देख उसकी हालत पहले से भी ज़्यादा खस्ता हो गई.
उसने बिल्ले की ओर सिर्फ देखा जो ट्राम में चढ़ा चला आ रहा था और क्रोध में काँपती हुई बोली, “बिल्लियाँ नहीं! बिल्लियों के साथ नहीं! नीचे उतरो, वर्ना पुलिस को बुलाऊँगी!”
आश्चर्य की बात यह थी कि न महिला कण्डक्तर को, न ही मुसाफिरों को वास्तविकता समझ में आ रही थी : बिल्ला ट्राम गाड़ी में घुस गया यह तो आधी ही विपदा वाली बात थी, विचित्र बात तो यह थी कि बिल्ला टिकिट के पैसे दे रहा था! यह बिल्ला न केवल पैसे वाला बल्कि अनुशासनप्रिय भी प्रतीत हो रहा था. महिला कण्डक्टर की पहली ही चीख सुनकर उसने आगे बढ़ना बन्द कर दिया और फुटबोर्ड से उतरकर ट्राम के स्टॉप पर बैठ गया. वह अपनी मूँछों को इस दस कोपेक वाले सिक्के से साफ करता रहा, लेकिन जैसे ही कण्डक्टर के घंटी बजाते ही ट्राम चली, बिल्ले ने तत्क्षण वही किया, जो ट्राम से नीचे उतारा गया आदमी करता है, जिसे उसी ट्राम में जाना अत्यावश्यक होता है. बिल्ले ने ट्राम के तीनों डिब्बों को गुज़र जाने दिया. फिर आख़िरी डिब्बे की पिछली कमान पर कूदकर अपने पंजों से बाहर निकली हुई एक नली को पकड़ लिया और चल पड़ा ट्राम के साथ, इस तरह उसने पैसे भी बचा लिए.
इस गन्दे बिल्ले के पीछे पड़कर इवान ने मुख्य कुटिल, प्रोफेसर, को लगभग खो ही दिया था. मगर, सौभाग्यवश, वह कहीं खिसक नहीं पाया था. इवान ने उसकी धूसर टोपी को निकित्स्काया, या गेर्त्सेन रास्ते की भीड़ में देख लिया. पलक झपकते ही इवान भी वहीं था. लेकिन सफलता फिर भी नहीं मिली. कवि ने अपनी चाल तेज़ कर दी. फिर वह आने-जाने वालों को धक्का मारते हुए दौड़ने भी लगा लेकिन एक सेंटीमीटर भी प्रोफेसर के निकट नहीं पहुँच सका.
इवान चाहे कितना ही परेशान क्यों न था, लेकिन वह जिस अलौकिक गति से प्रोफेसर का पीछा कर रहा था, उससे अचम्भित था. बीस सेकेण्ड भी नहीं बीते होंगे कि इवान निकोलायेविच निकित्स्की दरवाज़े से बिजली की रोशनी में जगमगाते अर्बात चौक पर पहुँच गया था. कुछ और क्षणों के पश्चात् एक अँधेरे टूटे-फूटे फुटपाथों वाला चौक आया, जहाँ इवान निकोलायेविच लड़खड़ाकर अपना घुटना तोड़ बैठा. फिर एक जगमगाता भव्य रास्ता, क्रोपोत्किना पथ, फिर नुक्कड़, तत्पश्चात् अस्ताझेंका, जिसके बाद फिर एक गली, उनींदी-सी, गन्दी और कम रोशनी वाली, यहाँ आकर इवान निकोलायेविच ने आखिर में उसे खो दिया, जिसकी उसे इतनी अधिक आवश्यकता थी. प्रोफेसर गुम हो गया.
इवान निकोलायेविच घबरा गया, मगर सिर्फ थोड़ी देर के लिए, क्योंकि उसे अचानक आभास हुआ कि प्रोफेसर 13 नम्बर मकान के 47 नम्बर वाले फ्लैट में ज़रूर मौजूद है.
प्रवेश-द्वार में तेज़ी से घुसकर इवान निकोलायेविच दूसरी मंज़िल को उड़ चला. उसने जल्दी से वह फ्लैट ढूँढ़कर शीघ्रता से घण्टी बजाई. कुछ देर इंतज़ार के बाद एक पाँच साल की बच्ची ने दरवाज़ा खोला और बिना कुछ पूछे जाने कहाँ चली गई.
खाली-खाली से बड़े प्रवेश-कक्ष में एक बहुत ही कम रोशनी वाला छोटा-सा बल्ब गन्दगी से काली पड़ चुकी छत से लटक रहा था, दीवार से एक बिना टायर की साइकिल टँगी हुई थी, एक बहुत बड़ा सन्दूक था, जिसमें लोहे की पट्टियाँ जहाँ-तहाँ ठोकी गई थीं. एक रैक में हैंगर पर सर्दियों में पहनने वाली लम्बे कानों वाली टोपी टँगी थी, जिसके लम्बे-लम्बे कान नीचे लटक रहे थे. एक दरवाज़े के पीछे से रेडियो पर किसी आदमी की तेज़ आवाज़ सुनाई दे रही थी, मानो गुस्से में आकर काव्यात्मक भाषा में चिल्ला रहा हो.
इवान निकोलायेविच इस अनजान वातावरण में ज़रा भी नहीं घबराया. वह सीधे कॉरीडोर की ओर दौड़ा, यह सोचकर कि वह ज़रूर गुसलखाने में छुपा है. कॉरीडोर में अँधेरा था. दीवारों से टकराते हुए इवान ने एक दरवाज़े के नीचे से आती हुई प्रकाश की क्षीण किरण देखी. उसने टटोलकर दरवाज़े का हैंडल खोजा और पूरी ताक़त से उसे घुमाया. दरवाज़ा फट से खुल गया. इवान गुसलखाने में ही था. उसने सोचा कि उसे सफलता मिली है.
लेकिन सफलता उतनी नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी. इवान ने गीली गरम हवा का अनुभव किया और अँगीठी में जलते हुए कोयलों की रोशनी में उसने दीवार से टँगी हुई बड़ी-बड़ी नाँदें देखीं. बाथ टब भी दिखाई दिया, जिसमें मीनाकारी के टूटने से जहाँ-तहाँ भयानक काले धब्बे नज़र आ रहे थे. इस टब में साबुन के फेन में लिपटी, हाथों में एक बदन धोने का वल्कल का टुकड़ा लिए, एक नग्न स्त्री खड़ी थी.
उसने अपनी साबुन लगी आँखों को थोड़ा-सा खोलकर हाथों से टटोलकर अन्दर घुस आए इवान को देखा और उस शैतानी आग में इवान को पहचान न पाई. उसने धीमे मगर प्रसन्न स्वर में कहा, “किर्यूश्का! बेवकूफ़ी बन्द करो! क्या तुम पागल हो गए हो?...फ़्योदर इवानिच अभी लौटने ही वाले हैं. जल्दी से यहाँ से दफ़ा हो जाओ!” और उसने हाथ के वल्कल के टुकड़े से इवान को मारा.
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