तीन
सातवाँ प्रमाण
“हाँ, सुबह के करीब दस बजे थे, आदरणीय इवान निकोलायेविच,” प्रोफेसर ने कहा.
कवि ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा, मानो अभी-अभी नींद से जागा हो. उसने देखा पत्रियार्शी पर अँधेरा छा चुका था.
तालाब का पानी काला नज़र आ रहा था, जिसमें एक छोटी-सी नाव तैर रही थी. चप्पुओं की आवाज़ के साथ-साथ नाव में बैठी किसी महिला की हँसी भी सुनाई दे रही थी. वृक्षों के गलियारे में बेंचों पर चौक के तीनों तरफ यहाँ-वहाँ लोग नज़र आ रहे थे, उस दिशा को छोड़कर जहाँ हमारे मित्र बैठे वार्तालाप कर रहे थे.
मॉस्को के ऊपर का आकाश मानो जगमगा उठा. ऊँचाई पर पूरा चाँद साफ़ दिखाई दे रहा था. चाँद अब सुनहरा नहीं बल्कि सफ़ेद था. अब साँस लेना आसान हो गया था. लिंडन वृक्षों के नीचे की आवाज़ें भी साँझ की तरह मद्धिम हो गई थीं.
“मैंने महसूस भी नहीं किया कि उसने एक पूरी कहानी गढ़ ली है?” बेज़्दोम्नी ने अचरज से सोचा – “शाम भी हो गई! यह भी हो सकता है कि वह कुछ कह ही न रहा हो और मेरी आँख लग गई हो, और यह सब मैंने सपने में देखा हो?”
मगर मानना पड़ेगा कि प्रोफेसर ने ही यह सब सुनाया था, नहीं तो यह मानना पड़ेगा कि बेर्लिओज़ को भी ठीक वैसा ही सपना आया था, क्योंकि वह बड़े ध्यान से विदेशी की ओर देखकर कह रहा था, “आपकी कहानी बहुत रोचक थी प्रोफेसर, हालाँकि वह बाइबिल की कहानियों से ज़रा भी मेल नहीं खाती.”
“माफ कीजिए,” प्रोफेसर शिष्ठतापूर्वक हँसकर बोला, “आप तो जानते ही होंगे कि बाइबिल में जो कुछ लिखा है, वैसा वास्तव में कभी हुआ नहीं. और यदि हम बाइबिल को ऐतिहासिक प्रमाण मानें...” वह फिर हँसा. बेर्लिओज़ सिटपिटा गया, क्योंकि ठीक यही बात उसने बेज़्दोम्नी से कही थी, जब वह ब्रोन्नाया सड़क से पत्रियार्शी तालाब की तरफ आ रहे थे.
बेर्लिओज़ ने कहा, “बात यह है कि...मुझे डर है कि कोई भी इस बात का प्रमाण नहीं दे सकता कि जो कुछ आपने कहा, वह भी वास्तव में घटित हुआ हो.”
“ओह, नहीं! कोई भी इस बात को सत्य सिद्ध कर सकेगा!” प्रोफेसर ने बड़े अन्दाज़ से दृढ़ स्वर में कहा और अचानक दोनों मित्रों को रहस्यमय अन्दाज़ में अपने निकट खिसकने को कहा.
वे दोनों उसकी ओर झुके. वह, बिना किसी दिखावे के, जो कि बार-बार उसकी आवाज़ में आ रहा था और जा रहा था, सीधे-सपाट स्वर में बोला, “बात यह है कि...” प्रोफेसर ने किंचित भय से इधर-उधर देखा और कानाफूसी के स्वर में बोला, “कि मैं स्वयँ उस समय वहाँ उपस्थित था. पोंती पिलात के साथ बरामदे में, उद्यान में भी, जब वह कैफ़ से बात कर रहा था, पत्थर के चबूतरे पर भी, मगर छिपकर, गुप्त वेष में. इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि इस बात को अपने तक ही सीमित रखें, एकदम गुप्त, एक भी शब्द बाहर न फूटे. श्-श्-श्!”
खामोशी छा गई, और बेर्लिओज़ भय के मारे पीला पड-अ गया.
“आप...आप कितने समय से मॉस्को में हैं?” काँपती हुई आवाज़ में उसने पूछा.
“मैं तो अभी-अभी, इसी क्षण मॉस्को पहुँचा हूँ,” प्रोफेसर ने उख़ड़ी-सी आवाज़ में कहा और तभी मित्रों ने उसकी आँखों में देखा और उन्हें विश्वास हो गया कि उसकी बाईं, हरी आँख एकदम भावरहित थी, जबकि दाईं खाली, काली और निर्जीव.
‘सब समझ में आ गया!’ बेर्लिओज़ ने परेशानी से सोचा – ‘यह एक पागल जर्मन आया है या पत्रियार्शी आकर पागल हो गया है. यही है इसका इतिहास!’
हाँ, सचमुच सब कुछ समझ में आ गया था : स्वर्गवासी दार्शनिक काण्ट के साथ किया गया विचित्र नाश्ता, और सूरजमुखी के तेल और अन्नूस्खा से सम्बन्धित बेवकूफी भरी बातें, और भविष्यवाणी कि उसका सिर काट दिया जाएगा, और इसी तरह की अन्य बकवास. प्रोफेसर निश्चय ही मूर्ख था.
बेर्लिओज़ ने तभी मन में निर्णय ले लिया कि उसे आगे क्या करना है. बेंच की पीठ पर टिकते हुए उसने प्रोफेसर के पीछे से बेज़्दोम्नी को आँख मारी, कि वह उसका विरोध न करे, मगर घबराया हुआ कवि इन इशारों को समझ नहीं पारा.
“हाँ, हाँ, हाँ...” बेर्लिओज़ ने उत्तेजित होकर कहा, “यह सब सम्भव है. बिल्कुल सम्भव है, पोंती पिलात, वह बरामदा, और वह सब...और क्या आप अकेले आए हैं या पत्नी के साथ हैं?”
“अकेला, अकेला, मैं हमेशा अकेला रहता हूँ...” कुछ कड़वाहट से प्रोफेसर ने उत्तर दिया.
“और प्रोफेसर, आपका सामान कहाँ है?’ बेर्लिओज़ ने चापलूसी से पूछा, “होटल ‘मेत्रोपोल’ में? आप रुके कहाँ हैं?”
“मैं? कहीं भी नहीं...” उस अर्धविक्षिप्त जर्मन ने विषादपूर्वक और अजीब ढंग से अपनी हरी आँख से पत्रियार्शी तालाब की ओर देखते हुए उत्तर दिया.
“क्या? और...आप रहेंगे कहाँ?”
“तुम्हारे घर में...” अचानक वह पागल बोल पड़ा और उसने आँख मारी.
“मैं...मुझे बड़ी प्रसन्नता है,” बेर्लिओज़ बुदबुदाया, “मगर बात यह है कि मेरे यहाँ आपको असुविधा होगी...और ‘मेत्रोपोल’ में कमरे बड़े शानदार हैं, वह पहले दर्जे का होटल है...”
“और क्या शैतान भी नहीं है?” मानसिक रोगी ने एकदम चहकते हुए इवान निकोलायेविच से पूछा.
“शैतान भी नहीं...”
“उसका विरोध मत करो...” सिर्फ होठों को हिलाते हुए बेर्लिओज़ ने प्रोफेसर की पीठ के पीछे से मुँह बनाते हुए कानाफूसी की तरह कहा.
“कोई शैतान-वैतान नहीं है!” इस सब नाटक से चिढ़कर इवान निकोलायेविच ने वह कह डाला जो उसे नहीं कहना था, “क्या मुसीबत है! आप यह सब पागलपन बन्द कीजिए!”
इस पर पागल कुछ इस तरह ठहाका मारकर हँसा कि उनके सिर के ऊपर लिण्डन के वृक्ष से चिड़िया फड़फड़ाकर उड़ गई.
“अब, यह बड़ी मज़ेदार बात है!” हँसते-हँसते प्रोफेसर के पेट में बल पड़ गए.
“यह क्या बात है, कुछ भी पूछा, जवाब में ‘ना’ ही कहते हो!” उसने एकदम हँसना बन्द कर दिया, शायद दिल में दर्द हो रहा था, और हँसी के बाद एकदम दूसरी मनस्थिति में चला गया. वह कँपकँपाया और बड़ी गम्भीरता से चिल्लाया, “तो आपकी राय में, ऐसा कुछ है ही नहीं?”
‘शांति, शांति, शांति, प्रोफेसर,” बेर्लिओज़ ने उसे मनाया. उसे दिल के मरीज़ को उत्तेजित देखकर डर लगने लगा था, “आप यहाँ मेरे मित्र बेज़्दोम्नी के साथ एक मिनट बैठिए, और मैं नुक्कड़ पर जाकर एक टेलिफोन करके आता हूँ, फिर हम आपको जहाँ चाहें वहाँ छोड़ आएँगे. आप तो इस शहर में नए हैं न...”
क्रमशः
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