मास्टर और मार्गारीटा- 04.1
चार
पीछा
स्त्रियों की उन्मादयुक्त चीखें धीरे-धीरे शांत हुईं, कानों में छेद करती हुई पुलिस वालों की सीटियाँ सुनाई दीं. दो एम्बुलेंस गाड़ियाँ ले गईं : एक बेसिर का धड़ और कटा हुआ सिर शवागार में; दूसरी काँच के टुकड़ों से घायल सुन्दरी ट्रामचालिका को. सफ़ेद कपड़ों वाले चौकीदारों ने काँच के बिखरे टुकड़े समेट दिए और खून के धब्बों को रेत से ढाँप दिया और इवान निकोलायेविच घुमौने दरवाज़े की ओर भागते-भागते बेंच पर गिर पड़ा और वैसे ही उस पर पड़ा रहा.
उसने कई बार उठने की कोशिश की, मगर पैर थे कि सुनने का नाम ही नहीं ले रहे थे – बेज़्दोम्नी को पक्षाघात जैसी कोई चीज़ हो गई थी.
पहली ही कर्णकटु चीख सुनकर कवि लपककर घुमौने दरवाज़े की भागा था और उसने सिर को रास्ते पर लुढ़कते हुए देखा. यह देखकर वह इतना बदहवास हो गया कि बेंच पर गिर पड़ा और अपने ही हाथ को इतनी बुरी तरह काट लिया कि खून निकल आया. पागल जर्मन के बारे में वह इस समय बिल्कुल भूल चुका था. सिर्फ एक ही बात समझने की चेष्टा कर रहा था कि अभी-अभी वह बेर्लिओज़ से बातें कर रहा था, और एक मिनट के बाद – सिर...
उत्तेजित लोग आश्चर्य प्रकट करते हुए कवि के सामने से गलियारे से दौड़े चले जा रहे थे, मगर इवान निकोलायेविच उनके शब्दों को ग्रहण नहीं कर पा रहा था.
अप्रत्याशित रूप से दो औरतों की उसके सामने भिड़ंत हो गई और उनमें से एक, तीखी नाक वाली और सीधे बालों वाली, कवि के बिल्कुल कान में दूसरी औरत पर चिल्लाई, “अन्नूश्का, हमारी अन्नूश्का! सादोवाया सड़क से! यह उसी का काम है! उसने किराने की दुकान से सूरजमुखी का तेल खरीदा, एक लिटर, मगर शीशी घुमौने दरवाज़े से टकराकर टूट गई, पूरी स्कर्ट तेल में भीग गई...ओफ़, कितना चिल्ला रही थी, चिल्लाए जा रही थी. और वह गरीब, शायद उस तेल पर फिसलकर गिर पड़ा और रेल की पटरियों पर जा गिरा...”
औरत की इस उत्तेजित चिल्लाहट में से इवान निकोलायेविच का अस्त-व्यस्त दिमाग सिर्फ एक शब्द पकड़ पाया : “अन्नूश्का...”
“अन्नूश्का...अन्नूश्का?” वह अपने आप से बड़बड़ाया, और उन्मादित होकर इधर-उधर देखने लगा, कुछ याद आ रहा है, क्या है? क्या है?...
‘अन्नूश्का’ शब्द के साथ ‘सूरजमुखी का तेल’ शब्द भी जुड़ गए, और फिर न जाने क्यों पोंती पिलात. पिलात को उसने दिमाग से झटक दिया और ‘अन्नूश्का’ से प्रारम्भ हुई कड़ी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा. यह कड़ी अतिशीघ्र पूर्ण हो गई और उसका दूसरा सिरा पागल प्रोफेसर से जा मिला.
ओह, गलती हो गई! उसने ठीक ही कहा था, कि मीटिंग होगी ही नहीं, क्योंकि अन्नूश्का ने तेल गिरा दिया है. और देखिए, अब मीटिंग हो ही नहीं सकती! यह तो कुछ भी नहीं : उसने साफ-साफ कहा था कि एक औरत बेर्लिओज़ का गला काटेगी! हाँ, हाँ! ट्राम औरत ही तो चला रही थी! यह सब क्या है? आँ?
इस बात में कोई सन्देह नहीं रह गया कि वह रहस्यमय परामर्शदाता बेर्लिओज़ की हृदयविदारक मृत्यु का पूरा विवरण अच्छी तरह जानता था. कवि के दिमाग में दो विचार कौंध गए. पहला : वह बेवकूफ़ कदापि नहीं! यह सब बकवास है!” और दूसरा : कहीं यह सब उसी का पूर्वनियोजित षड्यंत्र तो नहीं था!”
मगर किस तरह!
“कोई बात नहीं! यह हम जान लेंगे!”
महत्प्रयास के बाद इवान निकोलायेविच बेंच से उठा और वापस वृक्षों वाले गलियारे की ओर चल पड़ा, जहाँ कुछ देर पहले तक वह प्रोफेसर से बात कर रहा था. देखा कि सौभाग्यवश वह वहाँ से हटा नहीं था.
ब्रोन्नाया रास्ते पर लैम्प जल उठे थे, पत्रियार्शी के जल में सुनहरा चाँद चमक रहा था और चाँद के सदा छलने वाले प्रकाश में इवान निकोलायेविच ने देखा कि वह खड़ा है मगर अब उसकी बगल में छड़ी नहीं, बल्कि तलवार थी.
कॉयर मास्तर, चौख़ाने वाला लम्बू, प्रोफेसर की बगल में उस जगह पर बैठा था जहाँ कुछ देर पहले इवान निकोलायेविच बैठा था. अब उसकी नाक पर अनावश्यक चश्मा था जिसकी एक आँख में काँच की नहीं था और दूसरा तड़का हुआ था. इसके कारण चौख़ाने वाले महाशय अब और ज़्तादा घिनौने प्रतीत हो रहे थे. उससे भी ज़्यादा, जब उन्होंने बेर्लिओज़ को रेल की पटरियों का रास्ता दिखाया था.
ठण्डॆ पड़ते हुए दिल से इवान प्रोफेसर के पास पहुँचा और उसके चेहरे को ध्यान से देखने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस चेहरे पर पागलपन का कोई लक्षण न पहले था और न अब है.
“बताइए सही-सही, आप कौन हैं” इवान ने डूबती हुई आवाज़ में पूछा.
विदेशी मुड़ा और उसने कवि की ओर ऐसी दृष्टि डाली मानो वह उसे पहली बार देख रहा हो. फिर बुरा-सा मुँह बनाकर बोला, “समझा नई...रूसी बोलना...”
“ये समझ नहीं रहे हैं.” उसके पास ही बैठे कॉयर मास्टर ने बीच में टपकते हुए कहा, हालाँकि उससे किसी ने भी प्रोफेसर के शब्दों को समझाने के लिए नहीं कहा था.
“बनिए मत!” इवान ने गरजते हुए कहा और उसे अपने तालू में ठण्डक महसूस होने लगी, “अभी-अभी तो आप इतनी अच्छी तरह से रूसी में बातें कर रहे थे. आप न तो जर्मन हैं और न ही प्रोफेसर! आप एक कातिल और जासूस हैं! दस्तावेज़!” तैश में आकर इवान चिल्ला पड़ा.
रहस्यमय प्रोफेसर ने अपने टेढ़े मुँह को और भी टेढ़ा करके कन्धे उचकाए.
“महाशय!” गन्दा लम्बू फिर बीच में टपक पड़ा, “आप क्यों पर्यटक को तंग कर रहे हैं? इसके लिए आपको कड़ी सज़ा मिलेगी!” और उस सन्देहास्पद प्रोफेसर ने भोला-सा चेहरा बनाया और मुड़कर इवान से दूर जाने लगा.
इवान को लगा जैसे वह अपना संयम खो रहा है, लम्बी साँस लेकर वह लम्बू से बोला, “ऐ महाशय, इस अपराधी को पकड़ने में मेरी सहायता कीजिए! आपको यह करना ही होगा.”
लम्बू तेज़ी से उठा और कूदकर दहाड़ा, “कौन अपराधी? कहाँ है? विदेशी अपराधी?” लम्बू की आँखें मानो खुशी से मटकने लगीं, “यह? अगर यह अपराधी है, तो सबसे पहले हमें ज़ोर से चिल्लाना होगा : ‘सिपाही!’ वर्ना वह भाग जाएगा. चलो, एक साथ चिल्लाएँ. एकदम!” और लम्बू ने अपने जबड़े खोले.
परेशान इवान ने उस मसखरे लम्बू का कहना मानकर ज़ोर से आवाज़ लगाई ‘सिपाही!’ मगर लम्बू ने सिर्फ मुँह खोले रखा, कोई आवाज़ नहीं निकाली.
इवान की अकेली, भर्राई हुई चीख का कोई ख़ास अच्छा परिणाम नहीं निकला. दो ख़ूबसूरत-सी लड़कियों का ध्यान अलबत्ता उसने आकर्षित किया, और इवान ने उनके मुख से सुना, “शराबी!”
“तो तुम उसके साथ मिले हुए हो?” इवान तैश में आकर चिल्लाया, “क्या तुम मेरा मज़ाक उड-आ रहे हो? छोड़ो मुझे!”
इवान दाहिनी ओर झुका और लम्बू भी दाहिनी ओर, इवान बाएँ तो उस दुष्ट ने भी वैसा ही किया.
“तुम ज़बर्दस्ती मेरे पैरों में क्यों अड़मड़ा रहे हो?” जानवरों की तरह चिल्लाया इवान, “ठहरो, मैं तुम्हें ही पुलिस के हाथों में दे देता हूँ.”
इवान ने उस दुरात्मा को कालर से पकड़ने की कोशिश की मगर वह झोंक में आगे चला गया. उसकी पकड़ में कुछ भी नहीं आया. लम्बू मानो पृथ्वी के भीतर गड़प हो गया.
इवान कराह उठा, उसने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई और कुछ दूरी पर घृणित विदेशी को पाया. वह पत्रियार्शी नुक्कड़ की ओर निकलते हुए दरवाज़े के पास पहुँच गया था. वह अकेला नहीं था, रहस्यमय और ख़तरनाक लम्बू भी उसके पास पहुँच गया था. इतना ही काफ़ी नहीं था : इस मण्डली में एक तीसरा भी था – न जाने कहाँ से टपक पड़ा एक बिल्ला. सूअर की तरह विशाल, कौवे या काजल की तरह काला, अति साहसी घुड़सवार की मूँछों जैसी मूँछों वाला. ये तीनों कुटिल पत्रियार्शी की तरफ जा रहे थे. बिल्ला अपने पिछले पैरों पर चल रहा था.
इवान इन पापियों के पीछे लपका लेकिन वह समझ गया कि उन्हें पकड़ पाना असम्भव है.
क्रमश:
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