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मंगलवार, 21 जनवरी 2025

Theatrical Novel - 12

 

अध्याय 12

सिव्त्सेव व्राझेक

 

मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि मैंने तरपेत्स्काया के साथ कैसे नाटक को फिर से लिखा. और मैं सोच भी नहीं पाया था, की अब आगे क्या होगा, कि खुद किस्मत ने ही जवाब दे दिया.

क्ल्युक्विन मेरे लिए पत्र लाया.

“परम आदरणीय लिओन्ती सिर्गेयेविच!...

शैतान ले जाए, क्यों वे ऐसा चाहते हैं, की मैं लिओन्ती  सिर्गेयेविच होता

शायद, ये कहना ज़्यादा आसान है, बजाय सिर्गेई लिओन्तेविच के?...खैर, ये महत्वपूर्ण नहीं है!

“आपको अपना नाटक इवान वसील्येविच  वसील्येविच को पढ़कर सुनाना होगा. इसके लिए आपको सोमवार, 13 तारीख को दोपहर 12 बजे सीवत्सेव व्राझेक पहुँचना होगा.

गहराई से समर्पित,

फ़मा स्त्रिझ”

मैं बेहद उत्तेजित था, यह समझते हुए, की यह पत्र असाधारण रूप से महत्वपूर्ण था.

मैंने यह तय किया: कलफ़ की हुई कॉलर, नीली टाई, भूरा सूट. अंतिम चीज़ का निश्चय करना मुश्किल नहीं था, क्योंकि भूरा सूट ही मेरा एकमात्र बढ़िया सूट था.

विनम्रता से पेश आना, मगर गरिमा के साथ और, खुदा बचाए, चापलूसी का कोई संकेत नहीं.

मुझे अच्छी तरह याद है, कि तेरह तारीख अगले ही दिन थी, और सुबह मैं थियेटर में बम्बार्दव से मिला.

उसके निर्देश मुझे अत्यंत विचित्र प्रतीत हुए.

“जैसे ही बड़े, भूरे घर को पास से गुज़रेंगे,” बम्बार्दव ने कहा, “बाएं मुड़ जाईये, अंधी गली में. वहां आपको आसानी से दिखाई देगा. नक्काशीदार, फ़ौलाद के दरवाज़े, स्तंभों वाला घर. सड़क से प्रवेश नहीं है, और आँगन में कोने से मुड़ जाईये. वहां आप भेड़ की खाल के कोट में एक आदमी को देखेंगे, वह आपसे पूछेगा : “आप किसलिए?” – और आप उससे सिर्फ इतना कहें : “अपॉईंटमेंट है.”

“क्या यह पासवर्ड है?” मैंने पूछा. “और अगर आदमी न हुआ तो?”

“वह रहेगा,” बम्बार्दव ने ठंडेपन से कहा और आगे बोला: “कोने के पीछे, भेड़ की खाल का कोट पहने आदमी के सामने, आप जैक पर लगी एक बिना पहियों वाली कार देखेंगे, और उसकी बगल में एक बाल्टी और एक आदमी, जो कार धो रहा होगा.”

“क्या आप आज वहाँ गए थे?” मैंने उत्तेजना से पूछा.  

“मैं वहाँ एक महीना पहले गया था.”

“तब आप कैसे जानते हैं, कि आदमी कार धो रहा होगा?

“क्योंकि, वह उसे रोज़ धोता है, पहिये निकालकर.”

“और इवान वसील्येविच  वसील्येविच उसमें कब जाते हैं?”

“वह उसमें कभी भी नहीं जाते.”

“क्यों? 

“और, वो जायेंगे कहाँ?

“ खैर, जैसे, थियेटर?”

“इवान वसील्येविच  वसील्येविच थियेटर में साल में दो बार आते हैं, ग्रैंड रिहर्सल के लिए, और तब उनके लिए गाड़ीवान द्रीकिन को किराए पर लेते हैं.”

“ये हुई न बात! अगर कार है, तो गाड़ीवान क्यों?

“और अगर शोफ़र स्टीयरिंग व्हील पर हार्ट फेल से मर जाए, और कार किसी खिड़की में घुस जाए, तो क्या करंगे?

“माफ़ कीजिये, और अगर घोड़ा लड़खड़ा जाए तो?

“द्रीकिन का घोड़ा नहीं लड़खड़ाएगा. वह सिर्फ कदम-कदम चलता है. बाल्टी वाले आदमी के सामने – दरवाज़ा है. अन्दर जाईये और लकड़ी की सीढ़ी पर चढ़ जाईये. फिर एक और दरवाज़ा. घुस जाईये. वहां आप अस्त्रोव्स्की की काली अर्धप्रतिमा देखेंगे. और सामने सफ़ेद स्तम्भ और काली-काली भट्टी, जिसके पास एक आदमी फेल्ट के जूते पहने उकडू  बैठकर उसे गरमा रहा होगा.”

मैं हंस पडा.

“क्या आपको यकीन है की वह वहाँ ज़रूर होगा और अवश्य उकडू  बैठा होगा?

“बेशक,” बम्बार्दव ने, ज़रा भी मुस्कुराए बिना रूखेपन से जवाब दिया.

“ये जाँचना दिलचस्प रहेगा.”

“बिल्कुल जाँचिये. वह उत्सुकता से पूछेगा: ‘आप कहाँ?’ और आप जवाब देंगे...”

“अपॉईन्ट्मेन्ट है?

“हूँ. तब वह आपसे कहेगा: ‘अपना ओवरकोट यहाँ उतारिये,’ – और आप हॉल में प्रवेश करेंगे, तभी आपके सामने नर्स आयेगी और पूछेगी: ‘आप किसलिए?’ और आप जवाब देंगे...”

मैंने सिर हिलाया.

“इवान वसील्येविच  वसील्येविच आपसे सबसे पहले यह पूछेंगे कि आपके पिता कौन थे? वह कौन थे?

“उप राज्यपाल.”

बम्बार्दव ने  त्यौरियाँ चढ़ाईं,

“ऐह...नहीं, ये, माफ़ कीजिए, नहीं चलेगा. नहीं, नहीं. आप ऐसा कहिये: बैंक में काम करते थे.”

“मुझे ये अच्छा नहीं लगता. मैं पहले ही पल से झूठ क्यों बोलूँ?

“इसलिए, कि ये उसे डरा सकता है, और...”

मैंने सिर्फ पलकें झपकाईं.
“और आपको तो कोई फर्क नहीं पड़ता
, की वह बैंक में या कहीं और काम करते थे. फिर वह पूछेगा, कि होमिओपैथी के बारे आपका क्या ख़याल है. और आप कहेंगे, कि पिछले साल पेट के दर्द के लिए कुछ बूँदें ली थीं, और उनका बहुत फ़ायदा हुआ.

तभी घंटियाँ गरजने लगीं, बम्बार्दव जल्दी से जाने लगा, उसे रिहर्सल में जाना था, और आगे के निर्देश उसने संक्षेप में दिए.

“मीश्का पानिन को आप नहीं जानते, जन्म मॉस्को में हुआ,” जल्दी-जल्दी बम्बार्दव ने सूचित किया, - “फोमा के बारे में कहिये कि वह आपको अच्छा नहीं लगा. जब नाटक के बारे में बात करेंगे, तो कोई आपत्ति न करें. तीसरे अंक में गोली चलती है, तो, आप उसे न पढ़ें...”

“कैसे न पढूँ जब उसने अपने आप को गोली मार ली है?!”

घंटियाँ बार-बार बजने लगीं.

बम्बार्दव आधे अँधेरे की तरफ़ भागा, दूर से उसकी शांत चीख सुनाई दी:

“गोली के बारे में न पढ़ना! और ज़ुकाम आपको नहीं है!”

बम्बार्दव की पहेलियों से पूरी तरह स्तब्ध, मैं दोपहर में बिल्कुल ठीक समय पर सीव्त्सेव व्राझेक वाली अंधी गली में था.

आँगन में भेड़ की खाल पहना आदमी नहीं था, मगर ठीक उसी जगह, जहां बम्बार्दव ने बताया था, सिर पर स्कार्फ़ बांधे एक औरत खड़ी थी. उसने पूछा: “आपको क्या चाहिए?” – और संदेह से मेरी ओर देखा. ‘अपॉइन्ट्मेन्ट’ शब्द ने उसे पूरी तरह संतुष्ट कर दिया, और मैं नुक्कड़ पर मुड़ गया.ठीक उसी जगह, जो बम्बार्दव ने बताई थी, कॉफी के रंग की कार थी, मगर वह पहियों पर खड़ी थी, और एक आदमी कपड़े से उसे पोंछ रहा था. कार की बगल में एक बाल्टी और कोई बोतल रखी थी.

बम्बार्दव के निर्देशों के अनुसार, मैं बिना चूके चल पड़ा और अस्त्रोव्स्की की अर्धप्रतिमा के पास पहुँच गया. “एह...” बम्बार्दव को याद करके मैंने सोचा : भट्टी में बर्च की टहनियां आसानी से धधक रही थीं, मगर कोई भी उकडू नहीं बैठा था. मगर मैं मुस्कुरा भी नहीं पाया था, कि काला , चमचमाता हुआ, प्राचीन शाहबलूत का दरवाज़ा खुल गया, और उसमें से हाथ में पोकर लिए, पैबंद लगे जूते पहने एक बूढा बाहर निकला. मुझे देखकर वह डर गया और आंखें झपकाने लगा.

“अपॉइन्ट्मेन्ट है,” जादुई शब्द की ताकत का आनंद उठाते हुए मैंने जवाब दिया. बुढ़ऊ का चेहरा खिल उठाया और उसने पोकर से दूसरे दरवाजे की ओर हिला दिया. वहां छत के नीचे एक पुराना लैम्प जल रहा था. मैंने कोट उतारा, नाटक को बगल में दबाया, दरवाज़ा खटखटाया. फ़ौरन दरवाज़े के पीछे ज़ंजीर खुलने की आवाज़ सुनाई दी, फिर दरवाजों में चाभी घूमी और सफ़ेद स्कार्फ़ और सफ़ेद गाऊन पहनी एक महिला ने बाहर झांका.

“आपको क्या चाहिए?

“अपॉइन्ट्मेन्ट है,” – मैंने जवाब दिया. महिला एक तरफ़ हट गई, उसने मुझे भीतर आने दिया और ध्यान से मेरी तरफ़ देखने लगी.

“क्या बाहर आँगन में ठण्ड है?” उसने पूछा.

“नहीं, अच्छा मौसम है, इन्डियन समर,” मैंने जवाब दिया.

“आपको ज़ुकाम तो नहीं है?

मैं कांप गया, बम्बार्दव को याद करके, और कहा:

“नहीं, नहीं है.”

“यहाँ खटखटाइए और अंदर आइए.” महिला ने कठोरता से कहा और छुप गई. काले, धातु की पट्टियां जड़े दरवाज़े को खटखटाने से पहले, मैंने चारों ओर नज़र दौड़ाई.

सफ़ेद भट्टी, कुछ भारी भरकम अल्मारियाँ. पुदीने की ओर किसी अन्य घास की प्रिय गंध आ रही थी. पूरी तरह नि:स्तब्धता थी, और वह अचानक कर्कश ध्वनी से भंग हो गई. बारह बार घंटे बजे, और उसके बाद अलमारी के पीछे कोयल उत्सुकता से कूकने लगी.

मैंने दरवाज़ा खटखटाया, फिर भारी-भरकम छल्ले को हाथ से दबाया, दरवाजा मुझे बड़े प्रकाशित कमरे में ले गया.

मैं परेशान था, मुझे लगभग कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, सिवाय उस सोफ़े के, जिस पर इवान वसील्येविच  वसील्येविच बैठा था. वह बिल्कुल वैसा ही था, जैसे तस्वीर में था, सिर्फ कुछ ज़्यादा तरोताज़ा और जवान. उसकी काली, सिर्फ नाम मात्र की सफ़ेद मूंछें बढ़िया ढंग से मुड़ी हुई थीं. सीने पर, सोने की ज़ंजीर से एक लॉर्नेट लटका हुआ था.

इवान वसील्येविच  वसील्येविच ने अपनी मोहक मुस्कान से मुझे चकित कर दिया.

“बड़ी खुशी हुई,” उसने कुछ तुतलाते हुए कहा, “कृपया बैठिये.”

और मैं कुर्सी में बैठ गया.

“आपका नाम और कुलनाम?” मेरी तरफ़ प्यार से देखते हुए इवान वसील्येविच  वसील्येविच ने पूछा.

“सिर्गेई लिओन्तेविच.”

“बहुत अच्छा! तो, आप कैसे हैं, सिर्गेई पाफ्नुत्येविच?” – और मेरी तरफ़ प्यार से देखते हुए इवान वसील्येविच  वसील्येविच मेज़ पर उंगलियाँ बजाने लगा, जिस पर पेन्सिल का ठूंठ पडा था और पानी का एक गिलास था, न जाने क्यों कागज़ से ढंका हुआ.

“बहुत, बहुत धन्यवाद, अच्छा हूँ.”

“ज़ुकाम तो नहीं है?

“नहीं.” 

इवान वसील्येविच   कुछ घुरघुराया और उसने पूछा:

“और आपके पिता का स्वास्थ्य कैसा है?

“मेरे पिता मर चुके हैं.”

“भयानक,” इवान वसील्येविच   ने जवाब दिया, “और आप किसके पास गए थे? किसने इलाज किया था?

“ठीक से नहीं बता सकता, मगर, लगता है, प्रोफ़ेसर...प्रोफ़ेसर यन्कोव्स्की ने.”

“ये बेकार हुआ,” इवान वसील्येविच   ने कहा, “प्रोफ़ेसर प्लितूश्कव के पास जाना चाहिए था, तब कुछ न होता.”

मैंने अपने चेहरे पर खेद व्यक्त किया कि प्लितूश्कव के पास नहीं गया.

“और इससे भी बेहतर...हुम्...हुम्...होमियोपैथ..” – इवान वसील्येविच  वसील्येविच ने अपनी बात जारी रखी, “ वे खतरनाक हद तक सबकी मदद करते हैं.”- अब उसने गिलास पर सरसरी नज़र डाली. “क्या आप होमिओपैथी में विश्वास करते हैं?

‘बम्बार्दव अद्भुत आदमी है,’ मैंने सोचा और कुछ अस्पष्ट सा कहना शुरू किया:

“एक तरफ़ से, बेशक...मैं व्यक्तिगत रूप से...हालांकि बहुत सारे लोग विश्वास नहीं भी करते हैं...”

“बकवास!” इवान वसील्येविच ने कहा, “पंद्रह बूँदें, और आपकी सारी तकलीफ़ ख़त्म हो जायेगी.” और वह फिर से घुरघुराया और आगे बोला: “और आपके पिता, सिर्गेई पन्फ़ीलीच, कौन थे?

“सिर्गेई लिओन्तेविच,” मैंने प्यार से कहा.

“हज़ार बार माफ़ी मांगता हूँ!” इवान वसील्येविच चहका. “तो, वह कौन थे? 

‘झूठ नहीं बोलूंगा!’ मैंने सोचा और कहा:

“वह उप राज्यपाल थे.”

इस खबर से इवान वसील्येविच के चेहरे से मुस्कराहट भाग गयी.

“अच्छा, अच्छा, अच्छा,” उसने परेशानी से कहा, कुछ देर चुप रहा, मेज़ पर टकटक की और कहा: “तो, चलो, शुरू करें.”

मैंने पाण्डुलिपि खोली, कुछ खांसा, ठिठक गया, एक बार फिर खांसा और पढ़ना शुरू किया.

मैंने शीर्षक पढ़ा, फिर पात्रों की लम्बी सूची पढी और पहला अंक पढ़ना शुरू किया:

“दूर पर रोशनियाँ, आँगन, बर्फ से ढंका हुआ, आउटहाउस का दरवाज़ा. आउटहाउस से हल्की आवाज में ‘फाउस्ट सुनाई दे रहा था, जिसे पियानो पर बजाया जा रहा था...”

क्या आपको कभी किसी के सामने अकेले में नाटक सुनाना पड़ा है? ये बड़ा कठिन काम है, आपको यकीन दिलाता हूँ. मैं बीच बीच में आंखें उठाकर इवान वसील्येविच की ओर देख लेता, रूमाल से माथा पोंछ लेता.

इवान वसील्येविच एकदम निश्चल बैठा था और लगातार लॉर्नेट से मेरी ओर देख रहा था. मुझे इस बात से बेहद उलझन हो रही थी, कि वह एक भी बार नहीं मुस्कुराया, हांलाकि पहले ही दृश्य में हास्यास्पद प्रसंग थे. उन्हें पढ़ते हुए अभिनेता बहुत हंस रहे थे, और एक की आंखों से तो हंसते हंसते आंसू तक निकल आये.

मगर इवान वसील्येविच न केवल नहीं हंसा, बल्कि उसने घुरघुराना भी बंद कर दिया. और हर बार, जैसे मैं उसकी ओर नज़र उठाता, एक ही बात देखता : मुझे घूरता हुआ लॉर्नेट और उसमें पलकें भी न झपकाती आंखें. परिणाम स्वरूप मुझे ऐसा लगने लगा कि ये मज़ाकिया प्रसंग बिल्कुल भी मज़ेदार नहीं हैं. तो मैं पहले प्रसंग के अंत तक पहुंचा और दूसरे प्रसंग की ओर चला. पूरी खामोशी में सिर्फ मेरी ही नीरस आवाज़ सुनाई दे रही थी, ऐसा लग रहा था, जैसे सेक्सटन मृत व्यक्ति के लिए पाठ पढ़ रहा हो.

उदासीनता मुझे दबोचने लगी, और मोटी नोटबुक बंद करने की इच्छा होने लगी. मुझे ऐसा लगा, की इवान वसील्येविच धमकी भरी आवाज़ में कहेगा: “क्या ये कभी ख़त्म होगा?” मेरी आवाज़ भर्रा गयी, और मैं बीच बीच में खांसकर गला साफ़ कर लेता, कभी ऊंची आवाज़ में पढ़ता, कभी नीची आवाज़ में, एक दो बार अप्रत्याशित रूप से मुर्गे भी उड़ गए, मगर उन्होंने भी किसी को भी नहीं हंसाया – न तो इवान वसील्येविच को, न मुझे.

सफ़ेद वस्त्रों में अचानक एक महिला के प्रकट होने से कुछ राहत महसूस हुई. वह बिना शोर मचाये भीतर आई, इवान वसील्येविच ने जल्दी से घड़ी की ओर देखा. महिला ने इवान वसील्येविच को छोटा सा गिलास दिया, इवान वसील्येविच ने दवा पी, उसके ऊपर गिलास से पानी पिया, उसे ढक्कन से बन्द किया और फिर से घड़ी की तरफ़ देखा. महिला प्राचीन रूसी तरीके से इवान वसील्येविच के सामने झुकी और धृष्ठता से चली गई.   

“ठीक है, जारी रखिये,” इवान वसील्येविच ने कहा, और मैं फिर से पढ़ने लगा.

दूर कहीं एक कोयल चिल्लाई. फिर कहीं परदे के पीछे टेलिफ़ोन की घंटी बजी.

“माफ़ कीजिये,” इवान वसील्येविच ने कहा, “ये मुझे बुला रहे हैं संस्था से किसी अत्यंत महत्वपूर्ण काम से. “हाँ,” परदे के पीछे से उसकी आवाज़ सुनाई दी, - :हाँ...हुम्...हम्...ये पूरी गैंग काम कर रही है. मैं हुक्म देता हूँ कि यह सब अत्यंत गुप्त रखें. शाम को मेरे पास एक विश्वासपात्र व्यक्ति आयेगा, और हम योजना बनाएंगे...”

इवान वसील्येविच वापस लौटा, और हम पांचवे, दृश्य के अंत तक पहुंचे. और तब छठे दृश्य के आरम्भ में एक चौंकाने वाली घटना हुई. मेरे कानों ने सुना, कि कहीं एक दरवाज़ा बंद हुआ, कहीं पर ज़ोर से और, जैसा मुझे प्रतीत हुआ, झूठमूठ रोने की आवाज़ सुनाई दी, दरवाज़ा, वो वाला नहीं जिससे मैं गुज़रा था, बल्कि, शायद, भीतर के कमरों में जाने वाला, धड़ाम से खुल गया, और कमरे में तीर की तरह, भय से पागल हुई, मोटी, धारियों वाली बिल्ली उड़ती हुई आई. वह मेरी बगल से होकर जाली के परदे की ओर लपकी, उसे पकड़ लिया और ऊपर की तरफ़ रेंगने लगी. जाली का परदा उसका वज़न बर्दाश्त न कर सका, और उसमें फ़ौरन छेद हो गए. परदे को फाड़ते हुए बिल्ली ऊपर तक चढ़ गयी और वहां से गुस्से से देखने लगी. इवान वसील्येविच ने लॉर्नेट गिरा दिया, और ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना प्र्याखिना भागकर कमरे में आई. बिल्ली ने जैसे ही उसे देखा, और ऊंचे चढ़ने की कोशिश की, मगर आगे छत थी. जानवर गोल कार्निस से छिटक गया और भय से जमकर, परदे पर लटक गया.

प्र्याखिना बंद आंखों से भागती हुई भीतर आई, मुड़े-तुड़े और गीले रूमाल वाली मुट्ठी को माथे पर दबाये, और दूसरे हाथ में लेस वाला सूखा रूमाल पकडे. कमरे के बीच तक पहुंचकर वह एक घुटने पर बैठ गयी, सिर झुकाया और हाथ आगे बढाया, जैसे कोई कैदी विजेता को तलवार सौंप रहा हो.

“मैं अपनी जगह से नहीं हटूंगी,” प्र्याखिना कर्कश आवाज़ में चीखी, “जब तक सुरक्षा नहीं पाऊँगी, मेरे गुरू! पेलिकान – गद्दार है! खुदा सब देखता है, सब कुछ!”

अब परदा फट गया, और बिल्ले के नीचे आधे गज का छेद बन गया.

“शुक्!!” इवान वसील्येविच  वसील्येविच अचानक तैश से चीखा और उसने ताली बजाई.

बिल्ली परदे को फाड़ते हुए नीचे सरकी, और उछलकर कमरे से बाहर कूद गयी, और प्र्याखिना गला फाड़कर रोने लगी और, हाथों से आखें बंद करके, चीखने लगी, आंसुओं से उसका दम घुट रहा था:

“ये मैं क्या सुन रही हूँ?! क्या सुन रही हूँ?! कहीं सचमुच में मेरे गुरू और शुभचिंतक मुझे दूर भगा रहे हैं?! खुदा, ऐ खुदा!! तू देख रहा है?!”

“चारों ओर देखो, ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना!” इवान वसील्येविच बदहवासी से चिल्लाया, और तभी दरवाज़े में एक बुढ़िया प्रकट हुई, जो चीख़ी:

“मीलाच्का! पीछे! अजनबी है!...”

अब ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना ने आंखें खोलीं और भूरी कुर्सी में मेरा भूरा सूट देखा. उसने आंखें फाड़कर मुझे देखा, और आँसू, जैसा मुझे लगा, उसकी आंखें पल भर में सूख गईं. वह उछल कर घुटने से उठी, फुसफुसाई: “खुदा...” – और बाहर भाग गयी. बुढ़िया भी फ़ौरन गायब हो गयी, और दरवाज़ा बंद हो गया.

मैं और इवान वसील्येविच कुछ देर चुप रहे. लम्बे विराम के बाद वह मेज़ पर उंगलियाँ बजाने लगा.

“तो, कैसा लगा?” उसने पूछा और दुःख से कहा: “परदा जहन्नुम में चला गया.”

हम कुछ देर और ख़ामोश रहे.

“आपको, निःसंदेह इस दृश्य ने प्रभावित किया है?” इवान वसील्येविच ने पूछा और गला साफ़ किया. गला मैंने भी साफ़ किया और कुर्सी में कसमसाया, मैं सचमुच नहीं जानता था, कि क्या जवाब देना चाहिए. और मैं अच्छी तरह समझ गया कि ये उसी दृश्य का सिलसिला था, जो ड्रेसिंग रूम में हो रहा था, और प्र्याखिना ने इवान वसील्येविच के चरणों में गिरने का अपना वादा पूरा किया है.

“ये हम रिहर्सल कर रहे थे,” अचानक इवान वसील्येविच ने सूचना दी. “और आपने, शायद सोचा कि कोई स्कैंडल है! कैसी रही? आ?

“ग़ज़ब का!”मैंने आंखें चुराते हुए कहा.

“कभी कभी हमें अचानक में किसी दृश्य को स्मृति में ताज़ा करना अच्छा लगता है...हुम्...हुम्...रेखाचित्र बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. और पेलिकान के बारे में आप यकीन मत कीजिये. पेलिकान – सबसे बहादुर और सबसे उपयोगी आदमी है!...”

इवान वसील्येविच ने दुःख से परदे की तरफ़ देखा और कहा:

“खैर, जारी रखते हैं!”

मगर हम जारी न रख सके, क्योंकि वही बुढ़िया, जो दरवाज़े पर थी, भीतर आई.

“मेरी चाची, नस्तास्या इवानव्ना,” इवान वसील्येविच ने कहा. मैंने झुक कर अभिवादन किया. प्यारी बुढ़िया ने स्नेहपूर्वक मेरी तरफ़ देखा, बैठी और पूछने लगी:

“आपका स्वास्थ्य कैसा है?

“विनम्रता से आपको धन्यवाद देता हूँ,” झुकते हुए मैंने जवाब दिया, “मैं पूरी तरह स्वस्थ्य हूँ.”

कुछ देर चुप रहे, फिर चाची और इवान वसील्येविच ने परदे पर नज़र डाली और कड़वी दृष्टि से एक दूसरे की ओर देखा.

“इवान वसील्येविच के पास कैसे आना हुआ?

“लिओन्ती सिर्गेयेविच,” इवान वसील्येविच मेरे पास नाटक लेकर आये हैं.”

“किसका नाटक?” बुढ़िया ने वेदनापूर्ण आंखों से मुझे देखते हुए पूछा.

“लिओन्ती सिर्गेयेविच ने स्वयं ही नाटक लिखा है!”

“मगर किसलिए?” नस्तास्या इवान वसील्येव्ना ने उत्सुकता से पूछा.

“किसलिए क्या?...हुम्...हुम्...”

“क्या कोई नाटक बचे ही नहीं हैं?” प्यार से – ताना देते हुए पूछा. “कैसे-कैसे अच्छे नाटक हैं. और कितने सारे हैं! प्रदर्शित करना शुरू करो – बीस साल में भी पूरे नहीं खेल पाओगे. आपको नाटक लिखने की तकलीफ़ उठाने की ज़रुरत क्या है?

वह इतने विश्वास के साथ कह रही थी, कि मैं कोई जवाब ही नहीं दे पाया. मगर इवान वसील्येविच   ने मेज़ पर उंगलियाँ बजाईं और कहा:

“लिओन्ती लिओन्तेविच ने आधुनिक नाटक लिखा है!”

अब बुढ़िया घबरा गयी.

“हम अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह नहीं करते,” उसने कहा.

  “विद्रोह किसलिए करना है,” मैंने उसका समर्थन किया.

“और, क्या ‘शिक्षा के फल आपको पसंद नहीं है?” – नस्तास्या इवानव्ना ने उत्सुक-भय से पूछा. “कितना अच्छा नाटक है. और मीलच्का के लिए भी भूमिका है...” उसने आह भरी, उठी. “आपके पिता को सलाम कहिये”

“सिर्गेई सिर्गेयेविच के पिता मर चुके हैं,” इवान वसील्येविच ने सूचित किया.

“खुदा जन्नत नसीब करे,” बुढ़िया ने नम्रता से कहा, “वह, शायद, नहीं जानते की आप नाटक लिखते हैं? और कैसे मृत्यु हुई?

“गलत डॉक्टर को बुलाया था,” इवान वसील्येविच  ने कहा. “लिओन्ती पाफ़्नुत्येविच ने मुझे यह दुखद घटना सुनाई थी.”

“मगर, आपका नाम है क्या, मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूँ,” नस्तास्या इवान वसील्येव्ना ने कहा, “कभी लिओन्ती, तो कभी सिर्गेई! क्या नाम बदलने की भी इजाज़त है? हमारे यहाँ एक ने अपना कुलनाम बदला था. अब आप ढूँढते रहिये, कि वह आखिर है कौन!”

“मैं सिर्गेई लिओन्तेविच,” मैंने भर्राई आवाज़ में कहा.

“हज़ार बार माफ़ी चाहता हूँ,” इवान वसील्येविच चहका, “ये मैंने गड़बड़ कर दी!”

“खैर, मैं दखल नहीं दूँगी,” बुढ़िया ने कहा.

“बिल्ले की पिटाई करना चाहिए,” इवान वसील्येविच ने कहा, “ये बिल्ला नहीं, बल्कि डाकू है. हम पर,  वैसे डाकुओं ने कब्ज़ा कर लिया है,” उसने घनिष्ठता से कहा, “पता नहीं कि क्या करना चाहिए!”

गहराती हुई शाम के साथ विपदा भी आई.

मैंने पढ़ा:

“बख्तीन (पित्रोव से). तो, अलविदा! बहुत जल्दी तुम मेरे लिए आओगे...”

पित्रोव: “तुम कर क्या रहे हो?!”

बख्तीन (अपनी कनपटी में गोली मारता है, गिरता है, दूर से सुनाई देता है हार्मोनि...)

“ये बेकार में ही है!” इवान वसील्येविच चहका. “ये किसलिए? इसे मिटा देना चाहिए, फ़ौरन एक सेकण्ड की भी देर किये. मेहेरबानी कीजिये! गोली क्यों मारना है?

“मगर उसे आत्महत्या से जीवन समाप्त करना है,” खांसकर मैंने जवाब दिया.

“और बहुत अच्छा! ख़त्म करने दो और खंजर भोंकने दो!”

“मगर, देखिये, यह घटना गृह युद्ध के दौरान हो रही है...खंजरों का इस्तेमाल नहीं होता था...”

“नहीं, होता था,” इवान वसील्येविच ने आपत्ति जताई,” मुझे उसने बताया था...क्या नाम है...भूल गया...कि खंजरों का इस्तेमाल होता था...आप इस ‘शॉट को काट दीजिए!...”

मैं चुप रहा, एक दुखद गलती करते हुए, और मैंने आगे पढ़ा:!

 “ (...यम, और अलग-थलग गोली बारी. पुल पर संगीन लिए एक आदमी प्रकट हुआ. चाँद...)

“माय गॉड!” इवान वसील्येविच चीखा. “गोली बारी! फिर से गोली बारी! कैसी विपदा है! पता है, लिओ...मतलब, आप इस दृश्य को हटा दीजिये, वह अनावश्यक है.”

“मैं सोच रहा था,” मैंने यथासंभव नम्रता से कहने की कोशिश की, “कि यह दृश्य प्रमुख है....यहाँ देखिये...”

“पूरी तरह गलतफहमी है!” इवान वसील्येविच ने बात काटते हुए कहा. “ये दृश्य न सिर्फ महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उसकी बिलकुल ज़रूरत नहीं है. ये किसलिए है? आपका वो, क्या नाम है?...अच्छा हाँ, अच्छा, अच्छा, उसने कहीं दूर खंजर भोंक लिया,” इवान वसील्येविच ने कहीं दूर की दिशा में हाथ हिलाया, - “और घर आता है कोई दूसरा और माँ से कहता है, “बेख्तेयेव ने खुद को खंजर भोंक लिया!”

“मगर माँ तो नहीं है,” मैंने हैरानी से ढक्कन वाले गिलास की ओर देखते हुए कहा.

“बेहद ज़रूरी है! आप उसे लिखिए. ये मुश्किल नहीं है. पहले ऐसा लगता है, कि मुश्किल है - माँ नहीं थी, और अचानक वह है, मगर यह गलत धारणा है, ये बहुत आसान है. और बुढ़िया घर पर रो रही है, और जो ये खबर लाया था... उसे नाम दीजिए इवानोव...”

“मगर हीरो तो बख्तिन है! उसके स्वगत भाषण हैं पुल पर...मैंने सोचा...”

“और इवान वसील्येविच कह देगा उसके सारे स्वगत भाषण!...आपके स्वगत भाषण अच्छे हैं, उन्हें वैसा ही रहने देना है. इवान वसील्येविच ही कहेगा – पेत्या ने खुद को खंजर घोंप लिया और मरने से पहले ऐसा-ऐसा, ऐसा-ऐसा और ऐसा-ऐसा कहा...बहुत प्रभावशाली दृश्य होगा.”

“मगर ये कैसे हो सकता है, इवान वसील्येविच, मेरे पास तो पुल पर भीड़ का दृश्य है...वहां लोग आपस में भिड़ गए हैं…

“तो, उन्हें स्टेज के पीछे भिड़ने दो. हमें ये किसी हालत में नहीं देखना चाहिए. भयानक, जब वे स्टेज पर आपस में टकराते हैं! आप खुशनसीब हैं, सिर्गेई लिओन्तेविच, एक ही बार इवान वसील्येविच ने सही उच्चारण किया, “कि आप किसी मीशा पानिन को नहीं जानते!...(मैं ठण्डा पड़ गया.) ये, मैं आपसे कहता हूँ, गज़ब का व्यक्ति है! हम उसे आपातकाल के लिए रखते हैं, यदि अचानक कुछ हो जाता है, तो उसका उपयोग करते हैं...वह हमारे लिए नाटक भी लाया था, दोस्ती कर ली, जैसे, कह सकते हैं ‘स्तेन्का राज़िन. मैं थियेटर में आया, पास जाते हुए, दूर से ही सुना, खिड़कियाँ पूरी खुली थीं, - गरज, सीटियाँ, चीखें, गाली-गलौज, और बंदूकें चला रहे हैं! घोड़ा करीब-करीब भाग ही गया, मैंने सोचा, कि थियेटर में दंगा हो गया है! खतरनाक! पता चला कि ये स्त्रिझ रिहर्सल कर रहा है! मैंने अव्गुस्ता अव्देयेव्ना से कहा: आप कहाँ देख रही थीं? आप, मैंने पूछा, क्या ये चाहती हैं, कि मुझे खुद को गोली मार दी जाए? जैसे ही ये स्त्रिझ थियेटर जलाएगा, मेरा सिर तो नहीं ना थपथपाएंगे, सही है ना? अव्गुस्ता अव्देयेव्ना ने, जो एक बहादुर महिला है, जवाब दिया: “चाहे तो मुझे मार डालिए, इवान वसील्येविच, स्त्रिझ के साथ मैं कुछ नहीं कर सकती!” ये स्त्रिझ – हमारे थियेटर में जैसे प्लेग है. अगर आप उसे देखें तो जहां सींग समाये एक मील दूर भाग जाइए. (मैं ठण्डा हो गया.) खैर, ये सब किसी अरिस्तार्ख प्लतोनिच की मेहेरबानियों का नतीजा है, खैर आप उसे नहीं जानते, खुदा का शुक्र है! और आप – गोलीबारी! इस गोलीबारी के लिए, पता है, क्या हो सकता है? खैर,  जारी रखते हैं.” 

और हमने पढ़ना जारी रखा, और, जब अन्धेरा होने लगा, तो मैंने भर्राए गले से कहा: ‘समाप्त.

और जल्दी ही भय और बदहवासी ने मुझे घेर लिया, और मुझे ऐसा लगा कि मैंने एक घर बनाया, और जैसे ही उसमें प्रवेश किया, तो छत ढह गई

“बहुत अच्छे,” पढ़ना समाप्त होने के बाद इवान वसील्येविच ने कहा, “अब आपको इस सामग्री पर काम करना शुरू कर देना चाहिए.”

मैं चिल्लाना चाहता था:

“क्या?!”

मगर नहीं चिल्लाया.

और इवान वसील्येविच ने, सामग्री में गहरे पैठते हुए, विस्तार से बताना शुरू किया कि इस सामग्री पर कैसे काम करना चाहिए. बहन को, जो नाटक में थी, माँ में परिवर्तित करना था. मगर, चूंकि बहन का मंगेतर था, और पचपन वर्ष की माँ का (इवान वसील्येविच ने फ़ौरन उसका नाम रख दिया – अन्तानीना) बेशक, मंगेतर नहीं हो सकता था, तो मेरे नाटक से एक पूरी भूमिका उड़ गयी, और, ख़ास बात ये कि वह मुझे बहुत अच्छी लगी थी.

शाम का धुंधलका कमरे में प्रवेश कर रहा था. नर्स आई, और इवान वसील्येविच ने फिर से कोई बूँदें लीं. फिर कोई झुर्रियों वाली बुढ़िया टेबल लैम्प लाई, और शाम हो गयी.

मेरे दिमाग़ में गड्ड-मड्ड होने लगी. कनपटी में हथौड़े चल रहे थे. भूख के मारे पेट में गड़बड़ होने लगी, और आँखों के सामने रह-रहकर कमरा टेढ़ा-मेढ़ा होने आगा. मगर, मुख्य बात ये थी, की पुल वाला दृश्य उड़ गया, और उसके  साथ ही मेरा नायक भी उड़ गया.  

नहीं, शायद, सबसे मुख्य बात ये थी, कि प्रत्यक्ष रूप से कोई ग़लतफ़हमी हो रही थी. मेरी आंखों के सामने अचानक इश्तेहार तैर गया, जिस पर नाटक विद्यमान था, जेब में नाटक के लिए प्राप्त हुए नोटों में से अंतिम नोट करकरा रहा था, जिसे मैंने अभी तक खाया नहीं था, फ़मा स्त्रिझ जैसे पीठ के पीछे खड़ा था और आश्वासन दे रहा था कि दो महीने में नाटक प्रदर्शित कर देगा, मगर यहाँ तो पूरी तरह स्पष्ट था, कि कोई नाटक है ही नहीं और यह कि उसे आरम्भ से अंत तक फिर से लिखना होगा. एक बेतरतीब गोल-नृत्य में मेरे सामने नाच रहे थे मीशा पानिन, एव्लाम्पिया, स्त्रिझ, ड्रेसिंग रूम के दृश्य, मगर नाटक नहीं था.      

मगर आगे कुछ एकदम अप्रत्याशित और, जैसा मुझे प्रतीत हुआ, अनाकलनीय हुआ.

यह दिखाकर (और बहुत अच्छी तरह से दिखाकर), कि कैसे बख्तीन, जिसका नामकरण इवान वसील्येविच   ने दृढ़ता से बेख्तेव कर दिया था, अपने आप को खंजर भोंक लेता है, वह अचानक कराहा और उसने ऐसा भाषण दिया:

“आपको ऐसा नाटक लिखना चाहिए...पल भर में ढेरों पैसा कमा सकते हो. गहन मनोवैज्ञानिक नाटक...अभिनेत्री का भाग्य. जैसे किसी राज्य में एक अभिनेत्री रहती है, और दुश्मनों की गैंग उसे तंग कर रही है, पीछा कर रही है और जीने नहीं दे रही है...मगर वह अपने दुश्मनों को सिर्फ दुआएँ ही भेजती है...”

‘और लफड़े करती है,  - अचानक अप्रत्याशित कड़वाहट की लहर में मैंने सोचा.

“क्या खुदा से दुआएँ मांगती है, इवान वसील्येविच ?

इस सवाल ने इवान वसील्येविच को परेशान कर दिया. वह घुरघुराया और बोला:

“खुदा से?...हुम्...हुम्... नहीं, किसी हालत में नहीं. आप ‘खुदा’ न लिखें...खुदा से नहीं, बल्कि...कला से, जिसके प्रति वह गहराई से समर्पित है. और उसे तंग कर रही है बदमाशों की गैंग, और इस गैंग को उकसा रहा है कोइ जादूगर चेर्नामोर. आप लिखिए, कि वह अफ्रीका चला गया है, और अपनी ताकत किसी महिला ‘एक्स को सौंप गया. खतरनाक औरत. डेस्क के पीछे बैठती है और कुछ भी कर सकती है. उसके साथ चाय पीने बैठिये, गौर से देखिये, वरना वह आपकी चाय में इतनी शक्कर डाल देगी...”

‘माय डियर, ये तो वह तरपेत्स्काया के बारे में कह रहा है!’ मैंने सोचा.

“...कि आप पियेंगे, और पैर लंबे कर देंगे. वो और एक खतरनाक बदमाश स्त्रिझ...मतलब कि मैं...अकेला ही डाइरेक्टर हूँ...”

मैं चुपचाप इवान वसील्येविच को घूरता रहा. उसके चेहरे से धीरे धीरे मुस्कराहट गायब होने लगी, और मैंने अचानक देखा कि उसकी आंखें ज़रा भी स्नेहपूर्ण नहीं थीं.

“आप, जैसा मैं देख रहा हूँ, जिद्दी इन्सान हैं,” उसने बेहद निराशा से कहा और अपने होंठ चबाये.

“नहीं, इवान वसील्येविच, मगर मैं सिर्फ कलात्मक दुनिया से दूर हूँ और...”

“मगर आप उसे जानिये! ये बहुत आसान है. हमारे यहाँ थियेटर में ऐसे लोग हैं, कि उनकी सिर्फ तारीफ़ करें...फ़ौरन नाटक का डेढ़ अंक तैयार हो जाएगा! आपके चारों ओर ऐसे घूमते हैं, कि देखते-देखते वह या तो शौचालय से आपके जूते चुरा लेगा, या आपकी पीठ में फ़िनिश चाकू घोंप देगा.”

“ये भयानक है,” मैंने बीमार आवाज़ में कहा और अपनी कनपटी को छुआ.

“मैं देख रहा हूँ कि यह आपको दिलचस्प नहीं प्रतीत हो रहा है...आप जिद्दी आदमी हैं! वैसे, आपका नाटक भी अच्छा है,” मेरी तरफ़ जिज्ञासु नज़र से देखते हुए इवान वसील्येविच ने कहा, “अब सिर्फ उसे लिखना बाकी है, और सब तैयार हो जाएगा...”

मुड़ते हुए पैरों पर, सिर में हथौड़े की आवाज़ लिये, मैं बाहर निकला और कड़वाहट से काले अस्त्रोव्स्की की ओर देखा. चरमराती सीढ़ियों से उतरते हुए मैं कुछ बड़बड़ाया, और मुझे घृणित लग रहा नाटक मेरे  हाथ खींच रहा था. बाहर आँगन में निकलते ही हवा ने मेरी हैट गिरा दी, और मैंने उसे एक डबरे में पकड़ा. ‘इन्डियन समर’ का नामोनिशान नहीं था. बारिश तिरछी फुहारों में गिर रही थी, पैरों के नीचे चपचप आवाज़ हो रही थी, बाग में पेड़ों से गीले पत्ते नीचे गिर रहे थे. मेरी कॉलर के पीछे धाराएं बह रही थीं.

ज़िंदगी को और स्वयं को कुछ बेमतलब गालियाँ देते हुए, बारिश के जाल में धुंधले जल रहे लालटेनों की ओर देखते हुए मैं चल रहा था.

किसी गली के नुक्कड़ पर एक स्टाल में मद्धिम रोशनी फड़फड़ा रही थी. ईंटों के नीचे दबाए हुए अखबार काउंटर पर गीले हो गए थे, और न जाने क्यों, मैंने ‘मेलपमेना का चेहरा नामक पत्रिका खरीदी, जिस पर बेहद तंग पतलून पहने, टोपी में पर खोंसे और नकली चित्रित आंखों वाले आदमी का चित्र था.

मेरा कमरा मुझे आश्चर्यजनक रूप से घृणित प्रतीत हो रहा था. मैंने पानी से फूल गए नाटक को फर्श पर फेंका, मेज़ के पास बैठा और हाथ से कनपटी दबाई, जिससे दर्द कम हो जाए. दूसरे हाथ से मैं काली डबल रोटी के टुकड़े काट रहा था और उन्हें चबा रहा था.

कनपटी से हाथ हटाकर मैंने नम हो गयी ‘मेलपमेना का चेहरा पत्रिका के पन्ने पलटना शुरू किया. कसी हुई पोशाक में एक लड़की दिखाई दे रही थी, शीर्षक झलका “ध्यान दीजिये”, दूसरा – ‘द अनब्रिडल्ड टेनर दी ग्रात्सिया, और अचानक मेरा कुलनाम चमक उठा. मैं इस कदर चकित हो गया, कि मेरा सिरदर्द भी गायब हो गया. मेरा कुलनाम बार-बार झलक रहा था, और फिर ‘लोपे दे वेगा भी झलका. कोई संदेह नहीं था, मेरे सामने नाटक था ‘अपनी स्लेज में नहीं, और इस नाटक का नायक था मैं. मैं भूल गया कि नाटक का सार क्या था. उसका आरंभ धुंधला-सा याद है:

“पर्नास पर बेहद उकताहट थी.

“कुछ भी नया नहीं है,” उबासी लेते हुए जॉन बाटिस्ट मोल्येर ने कहा.

“हाँ, उकताहट तो है,” शेक्सपियर ने जवाब दिया.  

याद है, इसके बाद दरवाज़ा खुला, और मैं भीतर गया – काले बालों वाला नौजवान, बगल में बेहद मोटा नाटक दबाये.

सब मुझ पर हंस रहे थे, इसमें कोई संदेह नहीं था, - सभी दुर्भावनापूर्वक हंस रहे थे. शेक्सपियर भी, लोपे द वेगा भी, और ज़हरीला मोल्येर भी, जो मुझसे पूछ रहा था, कि क्या मैंने ‘तार्त्यूफ़’ जैसी कोई  चीज़ लिखी है, और चेखव, जिसे मैं उसकी किताबों के आधार पर सबसे नाज़ुक व्यक्ति समझता था, मगर सबसे अधिक निर्दयतापूर्वक मेरा मज़ाक उड़ाया एक नाटक के लेखक ने, जिसका नाम था वल्कादाव.

अब याद करना हास्यास्पद लगता है, मगर मेरा गुस्सा काबू से बाहर था. मैं कमरे में घूम रहा था, बिना किसी अपराध के, बेवजह, यूं ही, स्वयं को अपमानित महसूस करते हुए. वल्कादाव को गोली मार देने का भयानक ख़याल, इन परेशान खयालों के बीच आ जाता था, कि आखिर मेरा अपराध क्या है?

“वो इश्तेहार!” – मैं फुसफुसाया. “मगर क्या उसे मैंने बनाया था? अब भुगतो!”- मैं फुसफुसाया, और मुझे ऐसा लगा कि, कैसे खून से लथपथ, वल्कादाव मेरे सामने फ़र्श पर गिर रहा है.

तभी पाईप से तम्बाकू के धुएँ की गंध आई, दरवाज़ा चरमराया, और कमरे में गीले रेनकोट में लिकास्पास्तव प्रकट हुआ.

“पढ़ा?” उसने प्रसन्नता से पूछा. “हाँ, भाई, बधाई देता हूँ, तुम कामयाब हो गए. खैर, क्या कर सकते हैं – अपने आप को मशरूम कहते हो, चढ़ जाओ टोकरी में. मैंने जैसे ही देखा, तुम्हारे पास चला आया, दोस्त से मिलना चाहिए,” और उसने अपना खड़ा रेनकोट कील पर लटका दिया.

“ये वल्कादाव कौन है?” मैंने उदासी से पूछा.

“और तुम्हें उसकी क्या ज़रुरत है?

“आह, तुम जानते हो?...”

“मगर, तुम तो उससे परिचित हो.”

“मैं किसी वल्कादाव को नहीं जानता!”

“कैसे नहीं जानते! मैंने ही तो तुम्हारा परिचय करवाया था...याद है, रास्ते पर...ये हास्यास्पद इश्तेहार...सफोकल्स...”

अब मुझे विचारमग्न बूढ़े की याद आई, जो मेरे बालों की ओर देख रहा था... ‘काले बाल!...’           

“मैंने उस कमीने का क्या बिगाड़ा है?” मैंने बिफरते हुए पूछा.    

लिकास्पास्तव ने सिर हिलाया.

“ऐ, भाई, अच्छी बात नहीं है, अ-च्छी बा-त नहीं है. मैं देख रहा हूँ, कि तुम्हें बहुत घमण्ड हो गया है. ये क्या बात हुई, कि कोई तुम्हारे बारे में एक शब्द भी नहीं कह सकता? बिना आलोचना के गुज़ारा नहीं होगा.”

“ये कैसी आलोचना है?! वह मेरा मज़ाक उड़ा रहा है...वो है कौन?

“वह नाटककार है,” लिकास्पास्तव ने जवाब दिया, “ पांच नाटक लिख चुका है. और अच्छा आदमी है, तुम बेकार में ही गुस्सा कर रहे हो. खैर, बेशक, वह थोड़ा नाराज़ है. सभी को अपमानजनक लगा है...”

“मगर, मैंने तो इश्तेहार नहीं बनाया ना? क्या इसमें मेरा दोष है, कि उनके प्रदर्शनों की सूची में सफोकल्स और लोपे द बेगा...और...”

“फिर भी तुम सफोकल्स तो नहीं हो,” लिकास्पास्तव ने कड़वाहट से मुस्कुराते हुए कहा, “मैं, भाई, पच्चीस साल से लिख रहा हूँ, मगर सफोकल्स जैसा नहीं हो पाया,” उसने गहरी सांस ली.

मैंने महसूस किया कि मेरे पास लिकास्पास्तव को जवाब देने के लिए कुछ नहीं है. कुछ भी नहीं! ऐसा कहना: नहीं हो पाए, क्योंकि तुमने बुरा लिखा, और मैंने अच्छा!’ क्या ऐसा कह सकता हूँ, मैं आपसे पूछता हूँ? क्या यह संभव है?  

मैं खामोश रहा, और लिकास्पास्तव कहता रहा:

“बेशक, इस पोस्टर ने जनता के बीच हलचल मचा दी है. मुझसे कई लोगों ने पूछा. दुखी तो करता है इश्तेहार! खैर, मैं बहस करने नहीं आया हूँ, बल्कि, तुम्हारे दूसरे दुर्भाग्य के बारे में जानकर, सांत्वना देने आया हूँ, दोस्त से बात करने आया हूँ...”

“कौनसा दुर्भाग्य?!”

“मगर, इवान वसील्येविच को नाटक पसंद नहीं आया,” लिकास्पास्तव ने कहा, और उसकी आंखें चमक उठीं, - कहते हैं कि आज तुमने नाटक पढ़ा था?”

“ये कहाँ से पता चला?

“अफवाहों से धरती भरी है,” गहरी सांस लेकर लिकास्पास्तव ने कहा, जिसे आम तौर से मुहावरों और कहावतों में बात करना अच्छा लगता था, - “तुम नस्तास्या इवान्ना कल्दीबायेवा को जानते हो?” – और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना कहता रहा: सम्माननीय महिला, इवान वसील्येविच की चाची. पूरा मॉस्को उनकी इज्जत करता है, अपने समय में उसके लिए प्रार्थना करते थे. सुप्रसिद्ध अभिनेत्री थीं! और हमारी बिल्डिंग में एक ड्रेसमेकर रहती है, स्तूपिना आन्ना. वह अभी नस्तास्या इवानवव्ना के यहाँ गयी थी, अभी वापस आई है. नस्तास्या इवान्ना उसे बता रही थीं. बोली, की आज इवान वसील्येविच   के पास कोई नया आदमी आया था, नाटक पढ़ रहा था, काला-सा, भंवरे जैसा (मैंने फ़ौरन अंदाज़ लगाया, कि वो तुम थे). बोली, कि इवान वसील्येविच को पसंद नहीं आया. न जाने क्यों. और मैंने तुमसे तब कहा था, याद है, जब तुम पढ़ रहे थे? मैंने कहा था, कि तीसरा अंक हल्के-फुल्के ढंग से, सतही रूप से लिखा गया है, तुम मुझे माफ़ करो, मैं तुम्हारा भला चाहता हूँ. मगर तुमने मेरी बात नहीं सुनी! खैर, इवान वसील्येविच, भाई, काम को समझता है, उससे छुप नहीं सकते, फ़ौरन समझ गया. तो, अगर उसे पसंद नहीं है, तो नाटक प्रदर्शित नहीं होगा. होगा ये कि तुम सिर्फ हाथों में इश्तेहार लिए रह जाओगे. लोग हँसेंगे, ये रहा तुम्हारा एव्रीपीड! नस्तास्या इवानव्ना कह रही थीं कि तुमने इवान वसील्येविच के साथ बदतमीजी की? उसे परेशान किया? वह तुम्हें सलाह देने लगा, और तुमने जवाब में, नस्तास्या इवान्ना ने कहा, - खर्राटे! खर्राटे! तुम मुझे माफ़ करो, मगर ये ज़रा ज़्यादा ही है! अपनी औकात से बाहर हो रहे हो! इतना बहुमूल्य भी नहीं है (इवान वसील्येविच के लिए) तुम्हारा नाटक, कि तुम खर्राटे भरो...”

“रेस्टारेंट में चलो,” मैंने हौले से कहा, “मेरा घर में बैठने को जी नहीं चाहता.”

“समझ रहा हूँ! आह, अच्छी तरह समझ रहा हूँ,” लिकास्पास्तव चहका. “खुशी से. सिर्फ वो...” उसने परेशानी से पर्स में हाथ डाला.

“मेरे पास हैं.”           

क़रीब आधे घंटे बाद हम रेस्टारेंट “नेपल्स” में खिड़की के पास धब्बेदार मेजपोश के पीछे बैठे थे. खुशमिजाज़ गोरा लड़का मेज़ पर खाने की चीज़ें सजा रहा था, वह प्यार से बोल रहा था, ‘खीरे को ‘खिरे’ कह रहा था, ‘कैवियार को ‘कैवियार्चिक समझता हूँ’, और उससे इतनी गर्माहट और आराम महसूस हो रहा था, की मैं भूल गया, कि बाहर अभेद्य अन्धकार है, और यह महसूस होना भी ख़त्म हो गया कि लिकास्पास्तव एक सांप है.

 

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