13.
मैं सच्चाई जान गया हूं
लेखक: मिखाइल बुल्गाकव
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
कॉमरेड्स, कायरता और आत्मविश्वास की कमी से बुरी और कोई चीज़ नहीं है. वे
ही तो मुझे उस बिंदु तक लाये,
कि मैं सोच में पड़ गया – क्या वाकई में, बहन-मंगेतर को माँ
में परिवर्तित करना चाहिए?
‘सचमुच में, ऐसा नहीं हो सकता,’ – मैं अपने
आप से तर्क कर रहा था, - ‘कि उसने बेकार ही में यह बात कही
हो? आखिर, वह इन मामलों को समझता है!’
और हाथ में पेन
लेकर मैं कागज़ पर कुछ लिखने लगा. ईमानदारी से स्वीकार करता हूँ: कोई बकवास ही
निकली. सबसे मुख्य बात ये थी,
कि मुझे बिन बुलाई माँ, अन्तनीना से इतनी नफ़रत हो गई थी, कि
जैसे ही वह कागज़ पर अवतरित हुई, मैंने दांत पीस लिए. तो, ज़ाहिर है, कुछ भी नहीं हो सका. अपने
नायकों से प्यार करना चाहिए; अगर ऐसा नहीं होगा, तो मैं किसी को भी हाथ में कलम लेने की सलाह नहीं दूंगा – आपको भारी
मुसीबतों का सामना करना पडेगा, ये समझ लीजिये.
“अच्छी तरह जान
लो!” मैं भर्राया और कागज़ के टुकड़े टुकड़े करके, अपने आप से वादा किया, कि थियेटर में नहीं जाऊंगा. इसका पालन करना अत्यंत
कठिन था. मैं अभी भी जानना चाहता था, इसका अंत कैसे होगा.
‘नहीं, उन्हें मुझे बुलाने दो,’ –
मैंने सोचा.
खैर, एक दिन बीता, दूसरा बीता, तीन दिन, एक सप्ताह – नहीं बुला रहे हैं. ‘लगता है, कि बदमाश लिकास्पास्तव सही था,’ मैंने सोचा, - ‘उनके
यहाँ नाटक नहीं होगा. ये ले तेरा इश्तेहार और “फेनिज़ा का जाल”! आह, मैं कितना बदकिस्मत हूँ!’
मगर दुनिया में
अच्छे आदमी भी हैं, मैं लिकास्पास्तव की नक़ल करते हुए कहूंगा. एक बार मेरे दरवाज़े
पर दस्तक हुई, और बम्बार्दव अन्दर आया. उसे देखकर मैं इतना खुश हुआ, कि मेरी आंखों में खुजली होने लगी.
“इस सबकी तो
उम्मीद थी ही,’ खिड़की की सिल पर
बैठे हुए स्टीम हीटर पर पैर से टकटक करते हुए बम्बार्दव कह रहा था, - “वैसा ही
हुआ. मैंने तो आपको आगाह किया था ना ?”
“मगर, सोचिये, ज़रा सोचिये, प्योत्र पित्रोविच!” मैं चहका – “गोलीबारी के बारे में कैसे नहीं पढ़ता? उसे कैसे ना पढ़ता?!”
“तो, पढ़ लिया! मेहेरबानी,” बम्बार्दव
ने कठोरता से कहा.
“मैं अपने नायक
से जुदा नहीं होऊँगा,” मैंने कड़वाहट से कहा.
“आप जुदा नहीं
भी होते...”
“माफ़ कीजिये!”
और मैंने, घुटते
हुए, बम्बार्दव को सब कुछ बताया : माँ
के बारे में, और पेत्या के बारे में,
जिसके पास नायक के बहुमूल्य स्वगत भाषण थे, और खंजर के बारे
में, जिसने ख़ास तौर से मुझे आपे से बाहर कर दिया था.
“आपको इस तरह के
प्रोजेक्ट कैसे लगते हैं?”
मैंने बिफरते हुए पूछा.
“बकवास,” न जाने क्यों चारों तरफ़ देखकर बम्बार्दव ने कहा.
“चलो, ठीक है!...”
“इसलिए, बहस नहीं करना चाहिए थी,”
बम्बार्दव ने हौले से कहा, - “बल्कि इस तरह जवाब देना चाहिए
था: आपके निर्देशों के लिए बहुत आभारी हूँ, इवान वसिल्येविच, मैं अवश्य उन्हें पूरा करने की कोशिश करूंगा. आपत्ति नहीं करना चाहिए, आप
समझते हैं, या नहीं? सीव्त्सेव व्राझेक
में आपत्ति नहीं करते.”
“मतलब, ऐसा कैसे?! क्या कोई भी और कभी
भी आपत्ति नहीं करता?”
“कोई नहीं और
कभी नहीं,” हर शब्द पर टकटक
करते हुए बम्बार्दव ने जवाब दिया, “आपत्ति नहीं की, आपत्ति नहीं करता और आपत्ति नहीं करेगा.”
“वह चाहे जो भी
कहे?”
“वह चाहे जो
कहे.”
“और अगर वह ये
कहे, की मेरे नायक को पेंज़ा चले जाना
चाहिए तो? या फिर, इस माँ, अंतनीना को
फांसी लगा लेना चाहिए? या वह सबसे निचले सुर में गाती है?
या, कि ये भट्टी काले रंग की है? इसका मुझे क्या जवाब देना
चाहिए?”
“कि ये भट्टी
काले रंग की है.”
“तो, स्टेज पर वह कैसी दिखाई देगी?”
“सफ़ेद, काले धब्बे के साथ.”
“कोई शैतानी-सी,
अनसुनी-सी!...”
“कोई बात नहीं, हो जाएगा,” बम्बार्दव ने जवाब
दिया.
“माफ़ कीजिये!
क्या अरिस्तार्ख प्लतोनविच उससे कुछ नहीं कह सकते?”
“अरिस्तार्ख
प्लतोनविच उससे कुछ नहीं कह सकते,
क्योंकि अरिस्तार्ख प्लतोनविच सन् एक हज़ार आठ सौ पचासी से इवान वसिल्येविच से बात
नहीं करते हैं.”
“ये कैसे हो
सकता है?”
“उनके बीच सन्
एक हज़ार आठ सौ पचासी में झगड़ा हो गया था और तब से वे एक दूसरे से मिलते नहीं हैं, एक दूसरे से टेलिफ़ोन पर भी बात नहीं करते.”
“मेरा सिर घूम
रहा है! तो, थियेटर का काम चलता
कैसे है?”
“चल रहा है, जैसा देख रहे हो, बढ़िया चल रहा
है. उन्होंने अपने-अपने क्षेत्र बाँट लिए हैं. जैसे, अगर, इवान वसिल्येविच को आपके नाटक में दिलचस्पी है, तो
अरिस्तार्ख प्लतोनविच उसके पास भी नहीं जायेंगे, और इसके
विपरीत भी. मतलब, ऐसा कोई आधार ही नहीं है, जिस पर उनकी टक्कर हो. ये बहुत होशियारीपूर्ण प्रणाली है.”
“खुदा! और, किस्मत से, अरिस्तार्ख
प्लातोनाविच इण्डिया में हैं. अगर वे यहाँ होते, तो मैं उनके
पास जाता...”
“हुम्,”
बम्बार्दव ने कहा और खिड़की से देखने लगा.
“आखिर, आप ऐसे आदमी से नहीं निपट सकते,
जो किसी की नहीं सुनता हो!”
“नहीं, वह सुनता है. वह तीन व्यक्तियों की बात सुनता है :
गव्रीला स्तिपानविच, चाची नस्तास्या इवानव्ना, और अव्गुस्ता अव्देयेव्ना की. पूरी दुनिया में ये ही तीन व्यक्ति हैं, जो इवान वसिल्येविच पर प्रभाव डाल सकते हैं. अगर इन लोगों के अलावा कोई
और इवान वसिल्येविच को प्रभावित करने का विचार करेगा, तो
नतीजा ये होगा, की इवान वसिल्येविच बिल्कुल विपरीत काम
करेगा.”
“मगर क्यों?!”
“वह किसी पर भी
विश्वास नहीं करता.”
“मगर ये तो
भयानक है!”
“हर बड़े आदमी की
अपनी-अपनी सनक होती है,” बम्बार्दव ने शान्ति
से कहा.
“अच्छा. मैं समझ
गया और मैं समझता हूँ, कि परिस्थिति निराशाजनक है. मेरा नाटक स्टेज पर प्रदर्शित
हो, इसके लिए उसे इस तरह विकृत करना
चाहिए, कि उसमें से सारा अर्थ निकल जाए, उसे दिखाना ज़रूरी
नहीं है. मैं नहीं चाहता, कि पब्लिक यह देखकर कि कैसे बीसवीं
सदी का कोई आदमी, जिसके हाथ में रिवॉल्वर है, अपने आप को
खंजर भोंक देता है, मुझ पर उँगलियाँ उठाए!”
“वह उंगलियाँ न
उठाती, क्योंकि कोई खंजर ही नहीं होता.
आपका नायक अपने आपको किसी सामान्य आदमी की तरह गोली मार लेता.”
मैं चुप हो
गया.
“अगर आप शांत
रहते,” बम्बार्दव कहता रहा, “उसकी नसीहतें सुनते, खंजरों पर भी सहमत होते, और अन्तनीना से भी, तो न ये हुआ होता, न कुछ और. हर चीज़ के अपने-अपने रास्ते और तरीक़ा होता है.”
“आखिर कैसे हैं
ये तरीके?”
“मीशा पानिन
उनके बारे में जानता है,” मुर्दनी आवाज़ में
बम्बार्दव ने जवाब दिया.
“तो, अब, मतलब, सब कुछ ख़त्म हो गया?”
निराशा से मैंने पूछा.
“मुश्किल है, कुछ मुश्किल है,” बम्बार्दव ने दयनीयता से जवाब दिया.
एक सप्ताह और
बीता, थियेटर से कोई भी समाचार नहीं
था. मेरा ज़ख्म धीरे धीरे भर रहा था, और एक ही चीज़, जो मेरे लिए बर्दाश्त से बाहर थी, वह थी
“शिपिंग-बुलेटिन” में जाना और लेख लिखने की ज़रुरत.
मगर अचानक...ओह, ये नासपीटा शब्द! हमेशा के लिए जाते हुए, मैं इस शब्द के प्रति अदम्य, कायर भय को अपने साथ ले जाऊंगा. मैं इससे
उसी तरह डरता हूँ, जैसे शब्द “आश्चर्य” से, जैसे “आपके लिए फोन है”, “आपके लिए टेलीग्राम है” या “आपको कार्यालय में
बुला रहे हैं” शब्दों से. मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ, कि
इन शब्दों के बाद क्या होता है.
तो, अचानक और पूरी तरह अनपेक्षित रूप से मेरे दरवाज़े पर
दिम्यान कुज़्मिच प्रकट हुआ, अदब से झुका और मुझे अगले दिन चार बजे थियेटर में आने
का निमंत्रण दिया.
अगले दिन बारिश
नहीं थी. अगला दिन शरद ऋतु का कड़ाके की ढण्ड का दिन था. डामर पर एडियाँ खटखटाते
हुए, परेशान होते हुए, मैं थियेटर जा रहा
था.
पहली बात, जिस पर मेरी नज़र गयी, वह था
गाड़ीवान का घोड़ा, राईनोसारस की तरह खाया-पिया, और बक्से पर बैठा सूखा बूढ़ा. और, पता नहीं क्यों, मैं फ़ौरन पहचान गया कि यह दीर्किन है. इससे मैं और ज़्यादा परेशान हो गया.
थियेटर के भीतर मुझे किसी उत्तेजना ने परेशान कर दिया, जो हर
चीज़ में नज़र आ रही थी. फ़ीली के कार्यालय में कोई नहीं था, उसके सभी मुलाकाती, मतलब, उनमें सबसे
ज़्यादा ज़िद्दी, ठण्ड से ठिठुरते हुए, आँगन में
परेशान हो रहे थे, और कभी-कभार
खिड़की में देख लेते थे. कुछेक तो खिड़की पर टकटक भी कर रहे थे, मगर कोई परिणाम नहीं था. मैंने दरवाज़ा खटखटाया, वह थोड़ा सा खुला, दरार से
बक्वालिन की आंख झांकी, मैंने फीली की आवाज़ सुनी:
“फ़ौरन अन्दर आने दो!”
और मुझे भीतर जाने दिया गया. आँगन में परेशान हो रहे लोगों ने मेरे
पीछे-पीछे घुसने की कोशिश की, मगर दरवाज़ा
बंद हो गया. सीढ़ियों से गिरते हुए मुझको बक्वालिन ने उठाया और मैं कार्यालय में
पहुंचा. फील्या अपनी जगह पर नहीं बैठा था, बल्कि पहले कमरे में था. फील्या ने नई टाई पहनी थी, जैसा कि मुझे अभी भी याद है, छोटे छोटे
धब्बों वाली; फील्या ने असाधारण रूप से चिकनी दाढ़ी बनाई थी.
उसने विशेष गंभीरता से, मगर कुछ उदासी से मेरा स्वागत किया. थियेटर में कुछ
हो रहा था, और मैंने कुछ ऐसा महसूस किया, जैसे बैल महसूस करता है, जिसे काटने
के लिए ले जाया जा रहा हो,
महत्त्वपूर्ण बात ये थी, कि इसमें मैं, कल्पना कीजिये, मुख्य
भूमिका निभा रहा हूँ.
यह फील्या के छोटे से वाक्य से महसूस हुआ, जो उसने बक्वालिन को हुक्म देते हुए कहा था;
“ओवरकोट ले लो!”
मुझे सन्देशवाहकों और प्रवेशकों ने भी चकित
कर दिया, उनमें से एक भी अपनी
जगह पर नहीं बैठा था, वे बेचैनी से भाग दौड़ कर रहे थे, जो
अनभिज्ञ आदमी की समझ से बाहर था. तो, दिम्यान कुज्मिच तेज़ी से दौड़ लगाते हुए मुझसे आगे निकल
गया, और चुपचाप ड्रेस सर्कल में चला गया. जैसे ही वह आंखों
से ओझल हुआ, कि भागते हुए कुस्कोव ड्रेस सर्कल से बाहर आया,
तेज़ दौड़ते हुए, और वह भी गायब हो गया. सांझ के अँधेरे में
निचले फॉयर से क्लुक्विन बाहर निकला, और न जाने क्यों उसने
एक खिड़की का परदा खींच दिया, और बाकी की खुली छोड़कर बिना कोई नामोनिशान छोड़े ग़ायब
हो गया. बक्वालिन सैनिकों वाले बेआवाज़ कपडे पर तेज़ी से गुज़र गया, और चाय वाले बुफ़े में गायब हो गया, और बुफ़े से
पाकिन भागकर बाहर आया और दर्शक-हॉल में छुप गया.
“कृपया मेरे साथ ऊपर आईए,” फील्या ने नम्रता से मेरे साथ चलते हुए कहा.
हम ऊपर जा रहे थे, कोई और
चुपचाप उड़कर टीयर में चढ़ गया. मुझे ऐसा लगने लगा, मानो मेरे चारों और मृतकों की परछाईयाँ दौड़ रही हैं.
जब हम चुपचाप
ड्रेसिंग रूम के दरवाज़े तक पहुँचे,
तो मैंने दिम्यान कुज्मिच को देखा, जो दरवाज़े पर खडा था.
जैकेट पहनी आकृति जैसे दरवाज़े की ओर लपकी, मगर दिम्यान
कुज्मिच हौले से चीख़ा और दरवाज़े पर क्रॉस की तरह लटक गया, और आकृति लड़खड़ाई, और वह
साँझ के धुंधलके में सीढ़ी पर लुप्त हो गई.
“जाने दो,” फील्या फुसफुसाया और गायब हो गया. दिम्यान कुज्मिच
दरवाज़े पर झुका, उसने मुझे अन्दर जाने दिया और...एक और
दरवाज़ा, मैं ड्रेसिंग रूम में पहुँच गया, जहां अन्धेरा नहीं
था. तरपेत्स्काया की डेस्क पर लैम्प जल रहा था, तरपेत्स्काया
लिख नहीं रही थी, बल्कि अखबार में देखती हुई बैठी थी. उसने
मेरी तरफ़ देखकर सिर हिलाया. और डाइरेक्टर के कार्यालय में जाने वाले दरवाज़े पर
मिनाझ्राकी खड़ी थी, हरा स्वेटर पहने,
गर्दन में हीरे का क्रॉस लटकाए और चमड़े की चमकदार बेल्ट पर चमचमाती चाभियों का
गुच्छा लटकाए.
उसने कहा, “इधर”, और मैंने खुद को तेज़ रोशनी वाले कमरे में
पाया.
पहली बात, जिस पर मेरा ध्यान गया, - वह था
सुनहरी सजावट वाला करेलियन बर्च का कीमती फर्नीचर, वैसी ही भारी भरकम लिखने की मेज़
और कोने में काला अस्त्रोव्स्की. छत के नीचे झुम्बर जल रहा था, दीवारों पर केंकेट लैम्प जल रहे थे. अब मुझे ऐसा लगा की पोर्ट्रेट गैलरी
की फ्रेमों से निकालकर पोर्ट्रेट्स बाहर आये और मेरी तरफ़ लपके. मैंने इवान
वसिल्येविच को पहचान लिया, जो सोफे पर बैठा था छोटी गोल मेज़
के सामने, जिस पर फूलदान में जैम रखा था. क्निझेविच को पहचाना, पोर्ट्रेट्स से कई अन्य लोगों को पहचाना, जिसमें
असाधारण व्यक्तित्व वाली एक महिला थी – कत्थई, जैकेट में जिस
पर सितारों जैसे बटन थे, जिसके ऊपर सेबल का फ़र डाला गया था. महिला
के सफ़ेद हो रहे बालों पर छोटी-सी टोपी आराम से बैठी थी, काली
भौहों के नीचे चमकती आंखें, और चमकती उंगलियाँ जिन पर हीरों
की भारी अंगूठियाँ थीं.
कमरे में ऐसे
लोग भी थे, जो पोर्ट्रेट गैलरी
में नहीं थे. सोफ़े के पीछे वही डॉक्टर खड़ा था, जिसने मीलच्का
प्र्याखिना को समय पर दिल के दौरे से बचाया था, और वह उसी
तरह हाथों में गिलास लिए खड़ा था, और दरवाज़े के पास उसी ग़मगीन
भाव के साथ बुफे-अटेंडर खड़ा था.
एक तरफ़ सफ़ेद झक
मेजपोश से ढंकी बड़ी गोल मेज़ थी. रोशनी क्रिस्टल और पोर्सिलीन पर खेल रही थी, नर्ज़ान की बोतलों से उदासी से परावर्तित हो रही थी, कोई लाल चीज़, शायद, सैलमन कैवियार चमक रही थी. मेरे
प्रवेश करते ही कुर्सियों पर पसर कर बैठे लोगों में हलचल हुई, और उन्होंने झुककर मेरा अभिवादन किया.
“आSS! लिओ!” इवान वसिल्येविच कहने ही वाला था.
“सिर्गेई लिओन्तेविच,”
क्निझेविच ने फ़ौरन कहा.
“हाँ...सिर्गेई
लिओन्तेविच, स्वागत है! बैठिये,
अदब से कहता हूँ!” और इवान वसिल्येविच ने गर्म जोशी से मुझसे हाथ मिलाया. “क्या
कुछ खाना चाहेंगे? शायद, लंच या नाश्ता? बिना किसी तकल्लुफ के! हम इंतज़ार करेंगे. एर्मलाय इवानविच तो हमारे यहाँ
जादूगर है, बस, उससे कहना बाकी है और...एर्मलाय इवानविच,
क्या हमारे पास लंच के लिए कुछ मिल जाएगा?”
जादूगर एर्मलाय
इवानविच ने जवाब में ऐसी प्रतिक्रया दी: उसने माथे के नीचे आंखें घुमाई, फिर उन्हें वापस अपनी जगह ले गया, और मुझ पर विनती भरी नज़र डाली.
“या फिर, शायद, कोई पेय?” इवान वसिल्येविच ने मेरी मेहमान नवाज़ी जारी राखी. “नर्ज़ान? सिट्रो? करौंदे का रस?” गंभीरता से इवान वसिल्येविच ने कहा, “क्या हमारे पास करौंदे का पर्याप्त स्टॉक है?
विनती करता हूँ, कि इस पर सख्ती से नज़र रखी जाए.”
एर्मलाय इवानविच
जवाब में सकुचाहट से मुस्कुराया और उसने सिर लटका लिया.
“एर्मलाय
इवानविच,
वैसे...हुम्...हुम्... जादूगर है. अत्यंत निराशा भरे समय में उसने पूरे थियेटर में
हरेक को स्टर्जन मछली खिलाकर भूख से बचाया. नहीं तो एक-एक आदमी मर जाता. अभिनेता
उससे प्यार करते हैं!”
एर्मलाय इवानविच
ने इस वर्णित उपलब्धि पर गर्व नहीं किया,
और, इसके विपरीत, कोई उदास छाया उसके
चेहरे पर छा गई.
स्पष्ट, दृढ़, खनखनाती आवाज़ में मैंने सूचित किया कि मैं
नाश्ता कर चुका हूँ, खाना भी खा चुका हूँ, और मैंने स्पष्टत: नार्ज़न और करौंदे के रस से इनकार कर दिया.
“तो फिर, केक? एर्मलाय अपने केक के लिए पूरी दुनिया में मशहूर
है!...”
मगर मैंने और भी
खनखनाती और दृढ़ आवाज़ में (बाद में बम्बार्दव ने,
उपस्थित लोगों के शब्दों से, मेरी नक़ल की, यह कहते हुए: “और
कहते हैं कि, आपके पास आवाज़ भी थी!” “और कैसी?” – भर्राई हुई, क्रोध भरी,
पतली...”) केक से भी इनकार कर दिया.
“वैसे, केक के बारे में,” अचानक मखमली,
नीची आवाज़ में असाधारण रूप से सलीके से कपडे पहने, और बाल
बनाए गोरा आदमी, जो इवान वसिल्येविच की बगल में बैठा था, बोल उठा, “मुझे याद है, एक बार हम प्रुचिवीन के
यहाँ बैठे थे. और सबको आश्चर्यचकित करते हुए वहां पहुंचते हैं राजकुमार
मक्समिलियान पित्रोविच...हमने खूब ठहाके लगाए...वैसे प्रुचिवीन को तो आप जानते हैं, इवान वसिल्येविच? ये मजेदार किस्सा मैं आपको बाद
में सुनाऊंगा.”
“मैं प्रुचिवीन
को जानता हूँ,” इवान वसिल्येविच ने जवाब दिया,
“महा बदमाश है. उसने अपनी ही सगी बहन को नंगा कर दिया था.खैर...”
अब दरवाज़े ने एक
और व्यक्ति को भीतर छोड़ा, जिसकी तस्वीर गैलरी में नहीं थी, - मतलब, मीशा पानिन को. “हाँ, उसने गोली
चलाई...” मैंने मीशा के चेहरे की ओर देखते हुए सोचा.
“आ--! परम आदरणीय मिखाइल अलेक्सेविच!” – इवान वसिल्येविच ने आगंतुक की तरफ़ हाथ
बढ़ाते हुए कहा. “आपका स्वागत है! कृपया बैठिये. आपसे परिचय करवाने की आज्ञा दें,” इवान वसिल्येविच मुझसे मुखातिब हुआ, “ये हमारे बहुमूल्य मिखाइल
अलेक्सेविच हैं, जो हमारे
यहाँ अत्यंत महत्वपूर्ण काम करते हैं. और ये हैं...”
“सिर्गेई लिओन्तेविच!” क्निझेविच ने प्रसन्नता से कहा.
“ठीक, वही!”
इस बारे में कुछ भी कहे बिना कि हम एक दूसरे से परिचित हैं, और इस परिचय से इनकार किये बिना, मैंने और
मीशा ने सिर्फ एक दूसरे से हाथ मिलाया.
“तो, शुरू करते हैं!” इवान वसिल्येविच ने घोषणा
की, और सबकी आंखें मुझ पर टिक गईं, जिससे मैं
सिहर उठा. “कौन बोलना चाहेगा? इपालित
पाव्लविच!”
अब असाधारण रूप से आकर्षक और सुरुचिपूर्ण ढंग से कपडे पहने, कौए के पंख जैसे घुंघराले बालों वाले व्यक्ति ने नाकपकड़ चश्मा चढ़ाया और
अपनी नज़र मुझ पर टिका दी.
फिर उसने अपने गिलास में नर्ज़ान डाली, एक गिलास पी गया, रेशमी रूमाल से मुंह पोंछा, कुछ झिझका –
क्या और पिए, दूसरा गिलास भी पी गया और तब बोलना शुरू किया.
उसकी आवाज़ अद्भुत, मुलायम, सधी हुई, विश्वासपूर्ण
थी और सीधे दिल तक पहुंचती थी.
“आपका उपन्यास,
ले...सिर्गेई लिओन्तेविच? सही है ना? आपका
उपन्यास बहुत, बहुत अच्छा
है...उसमें...अं...कैसे कहूं,” – यहाँ
वक्ता ने बड़ी मेज़ की ओर कनखियों से देखा, जहां नर्ज़ान
की बोतलें रखी थीं, और एर्मलाय
इवानविच फ़ौरन उसके पास गया और उसे एक ताज़ा बोतल थमा दी, “मनोवैज्ञानिक गहराई से परिपूर्ण है, व्यक्तियों का चित्रण असाधारण विश्वसनीयता से किया गया है...अं ...जहां तक
प्रकृति का वर्णन है, तो उसमें, मैं कहूंगा, की आपने तुर्गेनेव की ऊंचाई को छू लिया है!” – अब नर्ज़ान गिलास में उबल
रही थी, और वक्ता ने तीसरा गिलास पी लिया और झटके से आंख से नाकपकड़ चश्मा फेंक
दिया.
“ये,” उसने आगे कहा, “दक्षिणी प्रकृति का वर्णन...अं...उक्राइन की तारों भरी रातें....फिर
कोलाहल करती द्नेप्र...अं...जैसा कि गोगल ने वर्णन किया है...अं...आश्चर्यजनक
द्नेप्र, जैसा आपको याद है...और अकासिया की खुशबू...ये
सब आपने बड़ी कुशलता से किया है...
मैंने मीशा पानिन की तरफ़ देखा – वह कुर्सी में सिकुड़ कर बैठा था, और उसकी आंखें डरावनी थीं.
“विशेषकर...अं...उपवन का यह वर्णन प्रभावशाली है...चिनार के चांदी जैसे
पत्ते...आपको याद है?”
“मेरी आंखों के सामने अभी तक रात में द्नेपर की ये तस्वीरें तैर रही हैं, जब हम यात्रा पर गए थे!” सेबल का कोट पहनी नीची आवाज़ वाली महिला ने
कहा.
“यात्रा के बारे में,” इवान वसिल्येविच की बगल में नीची आवाज़ गूंजी और हंस
पड़ी: “गवर्नर-जनरल दुकासव के साथ उस समय बहुत दिलचस्प घटना हुई. क्या आपको उसकी
याद है, इवान वसिल्येविच?”
“याद है. भयानक पेटू!” इवान वसिल्येविच ने जवाब दिया. “मगर आप आगे कहिये.”
“आपके उपन्यास के बारे में तारीफों के अलावा...अं...अं... कुछ और कहना ठीक
नहीं है, मगर...आप मुझे माफ़ कीजिये...स्टेज के अपने
नियम होते हैं!”
इवान वसिल्येविच बड़ी दिलचस्पी से इपालित पाव्लविच का भाषण सुनते हुए जैम खा
रहा था.
“आप अपने नाटक में अपने दक्षिण की समूची खुशबू नहीं प्रकट कर सके, ये उमस भरी रातें. भूमिकाएँ मनोवैज्ञानिक रूप से अधूरी प्रतीत हुईं, जो
विशेष रूप से बख्तिन के पात्र में प्रकट होता है...” यहाँ वक्ता न जाने क्यों बहुत
आहत हो गया, उसने अपने होंठ भी फुला लिए: “प...प...और
मैं...अं...नहीं जानता,” वक्ता ने
अपने नाक-पकड़ चश्मे की किनार से नोटबुक को थपथपाया, और मैंने उसमें अपना नाटक पहचान लिया, - “उसे प्रदर्शित करना असंभव है...माफ़ कीजिये,” उसने पूरी तरह अपमानित स्वर में अपनी बात ख़त्म की, “माफ़ कीजिये!”
यहाँ हमारी नज़रें मिलीं. और मेरी नज़र में, मेरा ख़याल है, वक्ता ने कड़वाहट और आश्चर्य देखा.
बात यह थी, कि मेरे
नाटक में न तो बबूल थे, न ही चांदी
जैसे चमचमाते चिनार थे, न ही शोर
मचाती द्नेप्र, नहीं... एक
लब्ज़ में, ऐसा कुछ भी नहीं था.
‘उसने नहीं पढ़ा! उसने मेरा उपन्यास नहीं पढ़ा,” – मेरा सिर झनझना रहा था, - ‘और फिर भी वह ख़ुद को उसके बारे में बोलने की अनुमति देता है? वह उक्राइन की रातों के बारे में कोई कहानी बुन रहा है...उन्होंने मुझे
यहाँ क्यों बुलाया?!’
“और कोई कुछ कहना चाहता है?” सबको देखते
हुए इवान वसिल्येविच ने प्रसन्नता से पूछा.
तनाव भरी खामोशी छा गई. कोई भी बोलना नहीं चाहता था. सिर्फ कोने से आवाज़
आई:
“एहो-हो...”
मैंने सिर घुमाया और कोने में काले जैकेट में एक मोटे बुज़ुर्ग आदमी को
देखा. मुझे धुंधली-सी याद आई कि पोर्टेट में उसके चेहरे को देखा था...उसकी आंखों
में सौम्य भाव था, चेहरे से
उकताहट प्रकट हो रही, लम्बे समय से चली आ रही उकताहट. जब मैंने उसकी तरफ़ देखा, तो उसने आंखें हटा लीं.
“आप कुछ कहना चाहते हैं, फ़्योदर व्लादीमिरविच?”
इवान वसिल्येविच उससे मुखातिब हुआ.
“नहीं,” उसने जवाब
दिया. खामोशी ने विचित्र रूप धारण कर लिया था.
“और, शायद, आप कुछ कहना चाहेंगे?...” इवान
वसिल्येविच मुझसे मुखातिब हुआ.
मैंने ऐसी आवाज़ में, जो ज़रा भी मधुर, प्रसन्न और स्पष्ट नहीं थी, मैं
खुद भी यह समझ रहा था, कहा:
“जहां तक मैं
समझा हूँ, मेरा नाटक उपयुक्त
नहीं था, और मैं विनती करता हूँ, कि वह मुझे वापस लौटा दिया
जाए.”
इन शब्दों ने न
जाने क्यों परेशानी उत्पन्न कर दी. कुर्सियां सरकने लगीं, कुर्सी के पीछे से कोई मेरी ओर झुका और बोला:
“नहीं, ऐसा क्यों कह रहे हैं? माफ़ी चाहता हूँ!”
इवान वसिल्येविच
ने जैम की तरफ़ देखा, और फिर अचरज से
आस-पास के लोगों पर नज़र डाली.
“हुम्...हुम्...”और
उसने मेज़ पर अपनी उंगलियां बजाईं, हम दोस्ताना तरीक़े से कह रहे हैं, कि आपके नाटक को प्रदर्शित करना – मतलब, आपको भयानक नुक्सान पहुंचाना है! खतरनाक नुक्सान! खासकर यदि फ़मा स्त्रीझ
उसे संभाल लेता है. आप खुद ही ज़िंदगी से ख़ुश नहीं होंगे, और हमें गालियाँ
देंगे...”
कुछ देर रुकने
के बाद मैंने कहा:
“उस हालत में
मैं विनती करता हूँ, कि उसे मुझे वापस कर
दिया जाए.”
और तब मैंने
स्पष्ट रूप से इवान वसिल्येविच की आंखों में कड़वाहट देखी.
“हमारा
कॉन्ट्रेक्ट है,” अचानक कहीं से आवाज़ आई,
और मुझे डॉक्टर की पीठ के पीछे से गव्रील स्तिपानविच का चेहरा दिखाई दिया,
“मगर, आपका थियेटर तो उसे प्रदशित नहीं करना चाहता, फिर आपको उसकी ज़रुरत क्या है?”
अब मेरे निकट
बेहद सजीव आंखों वाला चेहरा, नाक पकड़ चश्मा पहने,
मेरे निकट सरका, ऊंची पतली आवाज़ में बोला:
“कहीं आप उसे
श्लीपे के थियेटर में तो नहीं ले जायेंगे?
तो, वहाँ वे क्या दिखायेंगे? खैर,
स्टेज पर कुछ जिंदादिल ऑफिसर्स घूमते रहेंगे. इसकी किसे ज़रुरत है?”
“वर्तमान नियमों
और स्पष्टीकरणों के आधार पर,
उसे श्लीपे के थियेटर में नहीं दे सकते, हमारा तो
कॉन्ट्रेक्ट है!” गव्रील स्तिपानविच ने कहा और डॉक्टर के पीछे से बाहर निकला.
“यहाँ क्या हो रहा
है? आखिर वे चाहते क्या हैं?” मैंने
सोचा और मुझे ज़िंदगी में पहली बार भयानक घुटन महसूस हुई.
“माफ़ कीजिये,” सुस्त आवाज़ में मैंने कहा, -
“मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, आप उसे प्रदर्शित करना नहीं चाहते, और साथ ही कह रहे हैं, कि दूसरे थियेटर में मैं उसे
नहीं दे सकता. फिर कैसे होगा?”
इन शब्दों ने
आश्चर्यजनक प्रभाव डाला. सेबल की खाल के कोट वाली महिला ने अपमानित नज़रों से दीवान
पर बैठे नीची आवाज़ वाले व्यक्ति की ओर देखा. मगर सबसे डरावना चेहरा था इवान
वसिल्येविच का. उसके चेहरे से मुस्कराहट गायब हो गयी, और उसकी गुस्सैल, उग्र आख्नें मुझे घूर रही थीं.
“हम आपको खतरनाक
नुक्सान से बचाना चाहते हैं!” इवान वसिल्येविच ने कहा. – “ एक निश्चित खतरे से, जो नुक्कड़ पर आपका इंतज़ार कर रहा है.”
फिर से सन्नाटा
छा गया और वह इतना बोझिल हो गया,
कि उसे और ज़्यादा बर्दाश्त करना नामुमकिन था.
उँगली से कुर्सी
का कपड़ा थोड़ा सा हटाकर मैं खडा हो गया और मैंने झुककर अभिवादन किया. मुझे सभी ने
झुककर जवाब दिया, सिवाय इवान
वसिल्येविच के, जो मेरी ओर अचरज से देख रहा था. मैं किनारे
से दरवाज़े तक गया, लड़खड़ाया, बाहर गया, झुककर तरपेत्स्काया का अभिवादन किया, जो एक आंख से
‘इजवेस्तिया’ को देख रही थी, और दूसरी से मुझे, अव्गुस्ता मिनाझ्राकी का, जिसने मेरे अभिवादन को
गंभीरता से स्वीकार किया, और बाहर निकल गया.
थियेटर सांझ के
अँधेरे में डूब रहा था. चाय के बुफ़े में सफ़ेद धब्बे प्रकट हुए – ‘शो’ के लिए मेज़ें सजाई जा रही थीं.
सभागृह का
दरवाज़ा खुला था, मैं कुछ पल रुका और
देखा. स्टेज पूरा खुला हुआ था, दूर वाली ईंटों की दीवार तक.
ऊपर से एक हरा मंडप उतर रहा था, सिरपेचे की बेल से ढंका हुआ,
एक ओर से मज़दूर खुले विशाल दरवाजों से, चींटियों की तरह, मोटे-मोटे सफ़ेद स्तंभ मंच
पर ले जा रहे थे.
एक ही मिनट बाद
मैं थियेटर में नहीं था.
चूंकि बम्बार्दव
के पास टेलीफ़ोन नहीं था, मैंने उसी शाम उसे इस
मजमून का टेलिग्राम भेजा:
“आ जाओ, मेमोरियल सर्विस है. आपके बिना पागल हो जाऊंगा, कुछ
समझ में नहीं आ रहा है.”
वे इस टेलीग्राम
को ले नहीं रहे थे और उन्होंने उसे तभी लिया जब मैंने “शिपिंग बुलेटिन” में शिकायत
करने की धमकी दी.
अगली शाम को मैं
बम्बार्दव के साथ सजी हुई मेज़ पर बैठा था. मास्टर की बीबी, जिसका मैं पहले ज़िक्र कर चुका हूँ, पैनकेक्स लाई.
बम्बार्दव को
‘मेमोरियल सर्विस’ आयोजित करने का ख़याल
पसंद आया, उसे कमरा भी पसंद आया, जिसे
मैंने सही तरीके से सजा दिया था.
“अब मैं शांत हो
गया हूँ,” मेरे मेहमान की पहली
भूख शांत होने के बाद मैंने कहा, “मैं सिर्फ एक बात चाहता हूँ – यह जानना कि
ये सब क्या था. उत्सुकता मुझे खाये जा रही
है. ऐसी अद्भुत चीज़ें मैंने पहले कभी नहीं देखीं. जवाब में बम्बार्दव ने पैनकेक्स
की तारीफ़ की, कमरे पर चारों और नज़र दौड़ाई और कहा:
“ आपको शादी कर
लेना चाहिए, सिर्गेई लिओन्तेविच, किसी सुन्दर, नाज़ुक महिला से या लड़की से.”
“ये बातचीत गोगल
पहले ही लिख चुका है,” मैंने जवाब दिया, “उसे दुहरायेंगे नहीं. मुझे बताईये, कि यह सब क्या
था?’
बम्बार्दव ने
कंधे उचका दिए.
“कोई विशेष बात नहीं
थी, इवान वसिल्येविच की थियेटर के वरिष्ठ सदस्यों के साथ मीटिंग थी.”
“अच्छा. वो सेबल्स वाली महिला कौन है?”
“मार्गारीता पित्रोव्ना तव्रीचेस्काया, हमारे थियटर की आर्टिस्ट, वरिष्ठों
के या संस्थापकों के समूह की सदस्य. वह
इसलिए प्रसिद्ध है, कि स्वर्गीय
अस्त्रोव्स्की ने सन् अठारह सौ अस्सी में मार्गारीता पित्रोव्ना का अभिनय
देखकर - जो पहली बार रंगमंच पर आई थी, - कहा था : “बहुत अच्छा”.
आगे, मुझे अपने दोस्त से यह पता चला. कि कमरे में केवल
संस्थापक ही थे, जिन्हें मेरे नाटक के सिलसिले में सभा के
लिए अविलम्ब बुलाया गया था, और यह कि दीर्किन को रात को ही सूचित कर दिया गया था, और उसने बड़ी देर तक घोड़े को साफ़ किया और गाड़ी को कार्बोलिक एसिड़ से धोया.
महान राजकुमार
मैक्स्मिलियन, और खाऊ गवर्नर-जनरल का किस्सा सुनाने वाले के बारे में पूछने पर
मुझे पता चला, कि वह सभी संस्थापकों
में सबसे छोटा था.
कहना पड़ेगा, के बम्बार्दव के जवाब प्रकट रूप में संयमित और
सावधानी पूर्ण थे. इस बात पर गौर करने के बाद, मैंने अपने
प्रश्नों को इस तरह से पूछने की कोशिश की, ताकि मेरे मेहमान
से न केवल औपचारिक और सूखे जवाब प्राप्त करूं, जैसे जन्म इस वर्ष हुआ, नाम और कुलनाम फलां-फलां, बल्कि कुछ और भी
विशेषताएं प्राप्त कर सकूं. मुझे उस समय डाइरेक्टर के कमरे में इकट्ठा हुए लोगों
में गहरी दिलचस्पी थी. उनकी विशेषताओं से, मेरा ख़याल था, कि
इस रहस्यपूर्ण मीटिंग में उनके बर्ताव के बारे में कोई स्पष्टीकरण मिल जाएगा.
“तो, क्या ये गर्नस्ताएव (गवर्नर-जनरल
के बारे में किस्सा सुनाने वाला) अच्छा अभिनेता है?” मैंने
बम्बार्दव के गिलास में वाईन डालते हुए पूछा.
“ऊहू-ऊ”, बम्बार्दव ने जवाब दिया.
“नहीं, “ऊहू-ऊ” ये कम है. जैसे मिसाल के तौर पर मार्गारीता
पित्रोव्ना के बारे में पता है, कि अस्त्रोव्स्की ने कहा था, “बहुत अच्छी”. ये कैसा “ऊहू-ऊ”. शायद, गर्नस्ताएव
ने भी कोई काबिले तारीफ़ काम किया हो?
बम्बार्दव ने
कनखियों से मेरी ओर सतर्क दृष्टि से देखा, कुछ बुदबुदाया...
“इस बारे में
तुम्हें क्या बताऊँ? हुम्, हुम्...” और
अपना गिलास सुखाकर कहा, “हाँ तो अभी हाल ही में गर्नस्ताएव
ने सबको इस तथ्य से चौंका दिया, कि उसके साथ एक चमत्कार
हुआ...” और वह अपनी पैन केक पर मख्खन डालने लगा और इतनी देर तक डालता रहा, कि मैं चहका:
“खुदा के लिए
बात को न खींचो!”
“बढ़िया वाईन है नेपरौली,” बम्बार्दव ने फिर भी पुश्ती जोड़ ही दी, मेरी सहनशक्ति का इम्तेहान लेते हुए, और आगे बोला:
“ये बात हुई थी चार साल पहले, बसंत के आरम्भ में, और जैसा कि
अब मुझे याद आता है, उन दिनों गेरासिम निकलायेविच कुछ विशेष
रूप से प्रसन्न और उत्साहित था. आदमी यूं ही खुश नहीं था! अपने दिमाग़ में कोई
प्लान्स बना रहा था, कहीं जाना चाहता था, जवान भी हो रहा था. और आपसे कहना पडेगा, कि वह
थियेटर से दीवानगी की हद तक प्यार करता है. मुझे याद है, उस
समय वह कहा करता था: “ऐह, मैं कुछ पिछड़ गया, पहले मैं पश्चिम के थियेटर की ज़िंदगी की खोज खबर रखता था, हर साल विदेश
जाता था, खैर, स्वाभाविक है, हर बात की खबर रखता था, कि जर्मनी के, फ्रांस के
थियेटर में क्या हो रहा है! फ्रांस क्या चीज़ है, सोचिये, अमेरिका के थियेटर की उपलब्धियों के बारे में देख लेता था.”
“तो तुम,” उससे कहते, “एक आवेदन पत्र दे
दो और चले जाओ”. एक कोमल मुस्कान बिखेरता.
“किसी हालत में नहीं,”
वह कहता, “ आजकल आवेदन पत्र देने के लिए सही समय नहीं है!
क्या मैं इस बात की इजाज़त दूंगा, कि मेरी वजह से सरकार
बहुमूल्य मुद्रा बेकार ही में खर्च करे? बेहतर है, कि कोई
इंजीनियर चला जाए या कोई व्यवसाय प्रबंधक !”
“तंदुरुस्त, असली इंसान ! तो..(बम्बार्दव वाईन से लैम्प के प्रकाश
की तरफ देख रहा था, उसने एक बार और वाईन की तारीफ़ की) तो, एक महीना बीता, असली बसंत आ पहुंचा. तभी परेशानी
आरम्भ हो गयी. एक बार गेरासिम निकलायेविच अव्गूस्ता अव्देयेव्ना के कार्यालय में
आया. चुपचाप रहा. उसने गेरासिम निकलायेविच की तरफ़ देखा, उसका
चेहरा फ़क पड़ गया था, नैपकिन की तरह सफ़ेद हो रहा था, आखों में मातम छाया था.
“आपको क्या हुआ
है, गेरासिम निकलायेविच?”
“कुछ नहीं,” उसने जवाब दिया, आप ध्यान मत
दीजिये.”
खिड़की के पास
गया, कांच पर उँगलियों से टकटक करता
रहा, सीटी पर कोई बेहद मातमी और भयानक रूप से परिचित धुन
बजाता रहा. शायद, शोपेन का अंतिम संस्कार . उससे रहा नहीं
गया, उसका दिल
मानवता के लिए दुखी होने लगा, वह उठी: “ये क्या है? क्या बात है?”
वह उसकी तरफ़
मुड़ा, कुटिलता से मुस्कुराया और बोला:
“कसम खाओ कि तुम किसी को नहीं बताओगी!” उसने, स्वाभाविक रूप
से फ़ौरन कसम खाई. “मैं अभी डॉक्टर के पास गया था, और उसने
निदान किया कि मुझे फेफड़े का कैंसर है”. वह मुड़ा और बाहर चला गया.
“ओह, ये बात है....” मैंने हौले से कहा, और मुझे बहुत बुरा लगा.
“क्या कह सकते
हैं!” बम्बार्दव ने पुष्टि की. “तो,
अव्गूस्ता अव्देयेव्ना ने फ़ौरन कसम देकर ये बात गव्रीला स्तिपानविच को बताई, उसने अपनी पत्नी को, पत्नी ने एव्लाम्पिया पित्रोव्ना को; संक्षेप में, दो घंटे बाद दर्जी के विभाग के
प्रशिक्षार्थी भी जान गए कि गेरासिम निकलायेविच की कलात्मक गतिविधियाँ समाप्त हो
चुकी हैं, और चाहें तो अभी भी पुष्पचक्रों का ऑर्डर दिया जा
सकता है. चाय वाले बुफ़े में, तीन घंटे बाद कलाकार इस बात पर चर्चा कर रहे थे, कि
गेरासिम निकलायेविच की भूमिकाएँ किसे दी जायेंगी.
इस बीच
अव्गूस्ता अव्देयेव्ना ने फ़ोन उठाया और इवान वसिल्येविच के पास गई. ठीक तीन दिन
बाद अव्गूस्ता अव्देयेव्ना ने गेरासिम निकलायेविच को फ़ोन करके कहा: “मैं अभी आपके
पास आ रही हूँ”. और, सचमुच में, आ गई.
गेरासिम निकलायेविच चीनी गाऊन पहने सोफ़े पर लेटा था, बिलकुल
मौत की तरह पीला पड़ गया था, मगर गर्वीला और शांत था.
अव्गूस्ता
अव्देयेव्ना - कामकाजी महिला है और उसने सीधे मेज़ पर लाल किताब और चेकबुक – दन् से
पटक दी!
गेरासिम
निकलायेविच थरथरा गया और बोला:
“आप लोग निर्दयी
हैं. मैं ऐसा तो नहीं चाहता था. अनजान देश में मरने में क्या तुक है?”
अव्गूस्ता
अव्देयेव्ना एक दृढ़ महिला और एक असली सचिव है! उसने मरते हुए आदमी के शब्दों पर कोई
ध्यान नहीं दिया और चिल्लाई:
“फादेय!”
और फ़ादेय, गेरासिम निकलायेविच का विश्वासपात्र और समर्पित सेवक
था.
फादेय फ़ौरन
हाज़िर हो गया.
“ट्रेन दो घंटे
बाद जाती है. गेरासिम निकलायेविच के लिए कंबल! अंतर्वस्त्र. सूटकेस. टॉयलेट का
आवश्यक सामान. चालीस मिनट बाद कार आयेगी.”
अभिशप्त आदमी ने
सिर्फ आह भरी, हाथ हिला दिया.
“कहीं, या तो स्विट्ज़रलैंड की सीमा पर,
मतलब, आल्प्स में...” बम्बार्दव ने माथा पोंछा, “एक लब्ज़ में, ये ज़रूरी नहीं है. समुद्र से तीन
हज़ार मीटर्स की ऊंचाई पर विश्वप्रसिद्ध प्रोफ़ेसर क्ली का अल्पाईन हॉस्पिटल है.
वहां सिर्फ अत्यंत आशाहीन परिस्थितियों में ही जाते हैं. मरीज़ या तो मर जाता है, या चला जाता है. इससे ज़्यादा बुरा नहीं होगा, बल्कि, ऐसा भी होता है, कि चमत्कार भी हुए हैं. खुले
बरामदे में, बर्फ से ढंकी चोटियों की पार्श्वभूमि में, क्ली ऐसे आशाहीन लोगों को रखता है, उन्हें कुछ
सर्कोमैटिन के इंजेक्शन देता है, ऑक्सीजन सूंघने पर मजबूर
करता है, और ऐसा होता, कि क्ली साल भर
के लिए मौत को टालने में कामयाब हो जाता.
पचास मिनट बाद
गेरासिम निकलायेविच को, उसकी ख्वाहिश के मुताबिक़ थियेटर के सामने से ले जाया गया,
और दिम्यान कुज़्मिच ने बाद में बताया कि,
उसने देखा, कि कैसे गेरासिम निकलायेविच ने हाथ उठाकर थियेटर
को आशीर्वाद दिया, और फ़िर कार बेलारुस्को-बाल्टिक स्टेशन की
ओर निकल गई.
अब गर्मियां आ
गईं, और ये अफ़वाह फैल गई, कि गेरासिम निकलायेविच की मृत्यु हो गयी है. तो, लोगों
ने गपशप की, सहानुभूति प्रकट की...मगर गर्मियाँ...कलाकार
अपनी-अपनी यात्रा पर निकल रहे थे, उनका दौरा शुरू हो रहा था...तो, किसी को बहुत ज़्यादा दुःख नहीं हुआ...इंतज़ार कर रहे थे, कि गेरासिम निकलायेविच का मृत शरीर बस ला ही रहे होंगे...इस बीच कलाकार चले
गए, सीज़न समाप्त हो गया, और मुझे आपको बताना होगा, कि हमारा प्लीसव...”
“ये वही है ना, मूंछों वाला प्यारा-सा?” मैंने पूछा, “जो गैलरी में
है?”
“वो ही,” बम्बार्दव ने पुष्टि की और आगे कहा:
“तो, उसे थियेटर की मशीनरी
का अध्ययन करने के लिए पैरिस की बिज़नेस ट्रिप की इजाज़त मिल गयी. ज़ाहिर है, फ़ौरन ज़रूरी कागज़ात भी प्राप्त कर लिए, और निकल गया.
प्लीसव, मुझे आपको बताना होगा, कि एक
बेहद मेहनती कलाकार है, और उसे अपने ‘टर्निंग सर्कल’ से बेहद
प्यार है. सबको उससे बेहद ईर्ष्या हो रही थी. हरेक को पैरिस जाने की ख्वाहिश रहती
है... “किस्मतवाला है!” सभी ने कहा. किस्मतवाला हो, या अभागा, खैर उसने कागजात लिए और पैरिस चला गया, ठीक उसी समय, जब गेरासिम निकलायेविच की मौत की खबर आई थी. प्लीसव – ख़ास किस्म का आदमी
है और उसने चालाकी से काम किया, पैरिस पहुँचने पर उसने एफिल टॉवर भी नहीं देखा.
उत्साही कार्यकर्ता है. पूरे समय स्टेजों के नीचे ‘होल्ड्स’ में बिताया, जो भी ज़रूरी थी, उस चीज़ का अध्ययन किया, लालटेनें खरीदीं, सब कुछ ईमानदारी से किया. आखिर, उसे भी जाना था. तब उसने पैरिस घूमने का फैसला किया, कम से कम मातृभूमि लौटने से पहले एक नज़र ही डाल लेता. पैदल चला, बसों में गया, ज़्यादातर मिमिया कर अपनी बात समझाता
रहा, और, आखिरकार उसे जानवर की तरह भूख
लग आई, कहीं गया, शैतान जाने कहाँ.
सोचा, “रेस्टॉरेंट में जाता हूँ, कुछ खा लूंगा”. रोशनी दिखाई
देती है. उसे महसूस हुआ कि वह कहीं शहर के मध्य में है,
ज़ाहिर है, सब कुछ सस्ता था. भीतर गया,
वाकई में औसत दर्जे का रेस्टॉरेंट था. देखा – और जैसे खड़ा था, वैसे ही जम गया.
देखता क्या है: छोटी सी मेज़ के पीछे,
टक्सीडो पहने, बटनहोल में एक फूल खोंसे, मृतक गेरासिम निकलायेविच बैठा है, और उसके साथ दो
फ्रांसीसी लड़कियां थीं, जो ठहाके लगाते हुए दुहरी हो रही
थीं. और उनके सामने मेज़ पर बर्फ के फूलदान में शैम्पेन की बोतल रखी है और कुछ फल
हैं.
प्लीसव सीधे चौखट से लटक गया. “ये नहीं हो सकता! सोचा, “मुझे, शायद भ्रम हुआ हो. गेरासिम निकलायेविच यहाँ
आकर ठहाके नहीं लगा सकता. वह सिर्फ एक ही जगह पर हो सकता है,
नवदेविच्ये कब्रिस्तान में!”
खड़ा है, आंखें फाड़े,
मृतक से भयानक साम्य रखने वाले इस व्यक्ति को घूर रहा है, और
वह उठता है, उसके चेहरे पर पहले तो घबराहट दिखाई दी, प्लीसव को ऐसा भी प्रतीत हुआ, मानो वह उसे
देखकर अप्रसन्न है, मगर बाद में स्पष्ट
हुआ कि गेरासिम निकलायेविच को सिर्फ आश्चर्य हुआ था. और ये वो ही था, गेरासिम
निकलायेविच ने फ़ौरन फुसफुसाकर अपनी फ्रांसीसी लड़कियों से कुछ कहा, और वे फ़ौरन गायब
हो गईं.
प्लीसव को तभी होश आया, जब गेरासिम निकलायेविच ने उसे चूमा. और तब सब
कुछ स्पष्ट हो गया. गेरासिम निकलायेविच की बात सुनते हुए प्लीसव सिर्फ चीख रहा था:
“अच्छा, आगे!” और वाकई में, आश्चर्यजनक बातें ही हुई थीं.
गेरासिम निकलायेविच को इन्हीं आल्प्स में ऐसी हालत में लाया गया, की क्ली ने सिर हिलाया और सिर्फ इतना कहा: “हुम्...”
खैर गेरासिम निकलायेविच को इस बरामदे में रखा गया. उसे दवा का इंजेक्शन लगाया गया.
ऑक्सीजन का तकिया रखा गया. आरंभ में तो मरीज़ की हालत और ज़्यादा खराब हो गयी, और इस
हद तक बिगड़ गई, कि, जैसा बाद में गेरासिम निकलायेविच को
बताया गया, कि क्ली के मन में आने वाले दिन के लिए अत्यंत
अप्रिय ख़याल उत्पन्न हो गए. क्योंकि दिल की धड़कन कम होती जा रही थी. मगर आने वाला
दिन अच्छी तरह गुज़र गया. उसी इंजेक्शन को दुहराया गया. परसों तो हालत और भी बेहतर
हो गयी. और आगे – विश्वास ही नहीं कर सकते. गेरासिम निकलायेविच सोफे पर बैठा , और
फिर उसने कहा: “मैं थोड़ा घूम-फिर लेता हूँ”. न सिर्फ सहायकों की. बल्कि क्ली की
आंखें भी गोल-गोल हो गईं. संक्षेप में, एक और दिन बाद
गेरासिम निकलायेविच बरामदे में घूम रहा था, चेहरा गुलाबी हो गया था, भूख बढ़ गयी...तापमान 36.80 , नब्ज़ सामान्य, दर्द का नामोनिशान भी नहीं था.
गेरासिम निकलायेविच बता रहा था,
कि उसे देखने के लिए आसपास के गाँवों से लोग आने लगे. शहरों से डॉक्टर्स आते, क्ली ने रिपोर्ट प्रस्तुत की, चिल्ला-चिल्लाकर कहा
कि ऐसी घटनाएँ एक हज़ार साल में एक बार होती हैं. गेरासिम निकलायेविच का पोर्ट्रेट मेडिकल
जर्नल में प्रकाशित करना चाहते थे, मगर उसने साफ़ इनकार कर
दिया – “मुझे हो-हल्ला पसंद नहीं है!”
इस बीच क्ली ने गेरासिम निकलायेविच से कहा, कि अब आल्प्स में उसके लिए करने को कुछ भी नहीं है, और वह गेरासिम निकलायेविच को पैरिस भेज रहा है,
जिससे वह झेले गए झटकों से कुछ निजात पा सके. तो इस तरह
गेरासिम निकलायेविच पैरिस पहुँच गया. और फ्रांसीसी लड़कियां – गेरासिम निकलायेविच
ने स्पष्ट किया, “ ये दो स्थानीय युवा डॉक्टर्स हैं, जो उसके बारे में लेख लिखने वाली हैं.” तो, ये बात
है.
“हाँ, ये तो चौंकाने वाली बात है!” मैंने टिप्पणी की. “फिर
भी, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, कि वह ठीक कैसे हो गया!”
“यही तो चमत्कार
है,” बम्बार्दव ने जवाब दिया,
“शायद, पहले ही इंजेक्शन के प्रभाव से गेरासिम निकलायेविच का
सर्कोमा घुलने लगा और आखिरकार पूरी तरह घुल गया!”
मैंने हाथ
नचाये.
“”बताइये!” मैं
चीखा, “आखिर ऐसा तो कभी नहीं होता!”
“एक हज़ार साल
में एक बार होता है,” बम्बार्दव ने जवाब
दिया और आगे बोला : “मगर, ठहरो, ये
पूरी बात नहीं है. शरद ऋतु में गेरासिम निकलायेविच नया सूट पहन कर आया, ठीक होकर, चेहरे का रंग सांवला हो गया था – उसके पैरिस के डॉक्टरों ने उसे पैरिस के
बाद समुद्र तट पर भी भेजा. चाय के बुफे में समुद्र के बारे में, पैरिस के बारे में, आल्प्स के डॉक्टर्स के बारे
में, और अन्य किस्से सुनते हुए, लोग बिल्कुल गुच्छों की तरह गेरासिम पर झूल जाते
थे. तो सीज़न हमेशा की तरह चल रहा था, गेरासिम निकलायेविच
अभिनय कर रहा था, और यह मार्च तक खिंच गया...और मार्च में
अचानक गेरासिम निकलायेविच ‘लेडी मैकबेथ’ की रिहर्सल पर छड़ी का
सहारा लिए आया. “क्या हुआ?” – “कुछ नहीं, न जाने क्यों कमर में कुछ चुभ रहा है”. तो, चुभता
रहा, चुभता रहा. कुछ देर चुभता है – फिर रुक जाता है. मगर
पूरी तरह दर्द ख़त्म नहीं होता. आगे – और ज़्यादा...नीले रंग के प्रकाश से कोई फ़ायदा नहीं होता...अनिद्रा, पीठ के बल सो नहीं सकता. देखते-देखते दुबला होने लगा. पेंटापोन. कोई
फ़ायदा नहीं! तो, बेशक, डॉक्टर के पास
गया. और कल्पना कीजिए...”
बम्बार्दव
होशियारी से कुछ देर रुका और उसने ऐसी आंखें बनाईं,
कि मेरी पीठ में ठंडक दौड़ गयी.
“और कल्पना
कीजिये...डॉक्टर ने उसे देखा,
मसला, आंख मारी...गेरासिम निकलायेविच ने उससे कहा: “डॉक्टर, खींचिए नहीं, मैं कोई औरत नहीं हूँ, दुनिया देख चुका हूँ...बताइये – क्या ये वही है?
वही!!” – बम्बार्दव भर्राए गले से चीखा और
एक घूँट में गिलास पी गया. सर्कोमा फिर से आ गया था! दाईं किडनी में फ़ैल गया था, और गेरासिम निकलायेविच को खाने लगा था! ज़ाहिर है – सनसनीखेज़ बात थी.
रिहर्सल जाए भाड़ में, गेरासिम निकलायेविच को – घर भेज दिया
गया. तो, इस बार सब कुछ ज़्यादा आसान था. अब उम्मीद थी. फिर
से तीन दिन में पासपोर्ट, टिकट, आल्प्स
पर, क्ली के पास. वह गेरासिम निकलायेविच से किसी सगे-संबंधी
की तरह मिला. क्या बात है! गेरासिम निकलायेविच के सार्कोमा ने प्रोफ़ेसर को पूरे
विश्व में प्रसिद्ध कर दिया! फिर से बरामदे में, फिर
इंजेक्शन – और वही इतिहास! चौबीस घंटे बाद दर्द कम हो गया,
दो दिन बाद गेरासिम निकलायेविच बरामदे में घूमने लगा, और तीन
दिन बाद उसने क्ली से पूछा – क्या वह टेनिस खेल सकता है! अस्पताल में क्या चलता है, समझ से बाहर है. बीमारों के झुण्ड के झुण्ड क्ली के पास आते हैं! जैसा कि
गेरासिम निकलायेविच ने बताया, दूसरे भवन का निर्माण होने
लगा. क्ली ने, संयमित विदेशी होने के बावजूद, गेरासिम निकलायेविच का तीन बार चुम्बन लिया और उसे,
ज़ाहिर है, आराम करने के लिए भेजा, मगर
इस बार पहले नीत्से, फिर पैरिस, और फिर
सिसिली.
और फिर से शरद
ऋतु में गेरासिम निकलायेविच वापस आया – हम अभी-अभी दन्बास की यात्रा से लौटे थे –
ताज़ा, हंसमुख,
तंदुरुस्त, सिर्फ सूट दूसरा था, पिछली
शरद ऋतु में चॉकलेट के रंग का था, और अब छोटे-छोटे चौखानों
वाला भूरा. तीन दिनों तक वह सिसिली के बारे में, और इस बारे में बताता रहा कि मोन्टे
कार्लो में बुर्झुआ लोग रुलेट कैसे खेलते हैं. कहता है, कि घृणित
दृश्य है. फिर से सीज़न आया, और फिर से बसंत के आते-आते वही
किस्सा, मगर सिर्फ दूसरी जगह पर. पुनरावृत्ति हुई थी, मगर सिर्फ बाएँ घुटने के नीचे. फिर से क्ली, फिर से
मदैराय, फिर अंत में – पैरिस। मगर इस बार सर्कोमा के प्रकोप को लेकर कोई चिंता लगभग
नहीं थी. सबको समझ में आ गया था, कि क्ली ने बचाने का तरीका
ढूंढ निकाला था. पता चला कि प्रतिवर्ष इंजेक्शन के प्रभाव से सर्कोमा की तीव्रता
कम होती जाती है, और क्ली को उम्मीद है, और उसे इस बात में
विश्वास है, कि और तीन चार मौसमों के बाद, गेरासिम निकलायेविच का शरीर खुद ही सर्कोमा के कहीं भी प्रकट होने के
प्रयास का सामना कर सकेगा. और सचमुच में, पिछले से पिछले साल
वह सिर्फ ‘मैक्सिलरी कैविटी’ में हल्के-से दर्द के रूप में
प्रकट हुआ और क्ली के पास जाते ही फ़ौरन गायब हो गया. मगर अब गेरासिम निकलायेविच को
सबसे कड़े और निरंतर पर्यवेक्षण में रखा गया, और चाहे दर्द हो
या न हो, मगर अप्रैल में उसे भेज ही देते हैं.
“चमत्कार!”
मैंने, न जाने क्यों आह लेकर कहा. इस बीच हमारी दावत, जैसा कहते हैं, किसी पहाड़ की तरह फैलती गई. वाईन के कारण सिर बोझिल
हो गए, बातचीत और ज़्यादा जोश से, और, ख़ास बात, खुल्लमखुल्ला होने लगी. ‘तुम बहुत दिलचस्प, चौकस और दुष्ट आदमी हो,’ – मैंने बम्बार्दव के बारे में सोचा, ‘और मुझे
बेहद पसंद हो, मगर तुम चालाक और छुपे रुस्तम हो, और तुम्हें ऐसा बनाया है तुम्हारी थियेटर की ज़िंदगी ने...’
“ऐसे न बनो!’
मैंने अचानक अपने मेहमान से कहा. “मुझे बताइये,
आपके सामने स्वीकार करता हूँ – मुझे बहुत तकलीफ होती है...क्या मेरा नाटक इतना
बुरा है?”
“आपका नाटक,” बम्बार्दव ने कहा, “अच्छा है.
और बस.”
“तो फिर क्यों, फिर कार्यालय में मेरे साथ ये विचित्र और डरावनी घटना
हुई? क्या उन्हें नाटक पसंद नहीं आया?”
“नहीं,” बम्बार्दव ने दृढ़ आवाज़ में कहा, “बल्कि इसके विपरीत
ही हुआ. ये सब इसलिए हुआ क्योंकि वह उन्हें पसंद आया. और बेहद पसंद आया.”
“मगर इप्पालित
पाव्लविच...”
“सबसे ज़्यादा वह
इप्पालित पाव्लाविच को पसंद आया,”
बम्बार्दव ने हौले से, मगर दृढ़ता से,
साफ़-साफ़ कहा, और मुझे ऐसा लगा, कि, उसकी आंखों में सहानुभूति है.
“पागल हो
जाऊंगा...” मैं फुसफुसाया.
“नहीं, पागल होने की ज़रुरत नहीं है...आप सिर्फ नहीं जानते
हैं, कि थियेटर क्या होता है. दुनिया में क्लिष्ट मशीनें
होती है, मगर थियेटर सबसे ज़्यादा क्लिष्ट है...”
“बोलिए! बोलिए!”
मैं चीखा और मैंने सिर पकड़ लिया.
“नाटक इतना
अच्छा लगा, कि उसने भय भी
उत्पन्न कर दिया,” बम्बार्दव कहने लगा,
“इसी कारण घबराहट भी हुई. जैसे ही वे नाटक से परिचित हुए, और
वरिष्ठों को इस बारे में पता चला, उन्होंने फ़ौरन आपस में
भूमिकाएँ भी बाँट लीं. बख्तिन की भूमिका के लिए इप्पोलित पाव्लविच का चयन किया
गया. पित्रोव की भूमिका वलेन्तीन कन्रादविच को देने का निश्चय किया.”
“कौनसे ...वाले...वो, जो...”
“हाँ, हाँ...वही.”
“मगर, माफ़ कीजिये,” मैं सिर्फ
चिल्लाया ही नहीं, बल्कि दहाड़ा.” मगर...”
“हाँ, हाँ, ठीक कहते हो...” ज़ाहिर है, मुझे आधे ही
शब्द से समझने वाले बम्बार्दव ने कहा, “इप्पोलित पाव्लविच
इकसठ साल का है, वलेन्तीन कन्रादविच – बासठ साल
का...तुम्हारे सबसे बड़े नायक बख्तिन की उम्र कितनी है?”
“अट्ठाईस!”
“यही तो, यही तो. तो, जैसे ही वरिष्ठों
को नाटक की प्रतिलिपियाँ भेजी गईं, तो मैं आपको बता नहीं
सकता, कि क्या-क्या हुआ. हमारे थियेटर के पचास साल के अस्तित्व में ऐसा कभी नहीं
हुआ. वे सभी नाराज़ हो गए.”
“किस पर?’ भूमिकाएँ वितरित करने वाले पर?”
“नहीं. लेखक पर.”
मेरे सामने उसे
घूरने के अलावा कोई और चारा नहीं था,
जो मैंने किया, और बम्बार्दव कहता रहा:
“लेखक पर. वाकई
में – वरिष्ठ कलाकारों के समूह ने यह तर्क दिया : “हम ढूंढ रहे हैं, भूमिकाओं के लिए तरस रहे हैं, हम, संस्थापक सदस्य, आधुनिक नाटक में अपना सारा कौशल
दिखाकर खुश होते और...फरमाइए, नमस्ते! भूरा सूट आता है और
ऐसा नाटक लाता है, जिसमें लड़कों की भूमिकाएँ हैं! मतलब हम
उसे नहीं खेल सकते?! ये क्या बात हुई, क्या वह सिर्फ मज़ाक के
तौर पर उसे लाया था?! सबसे छोटे संस्थापक – गेरासिम
निकलायेविच की उम्र है सत्तावन साल.”
“मैं बिल्कुल
दावा नहीं करता कि संस्थापक ही मेरा नाटक खेलें!” मैं गरजा. – “नौजवानों को खेलने
दो!”
“ऐह, तूने कितनी आसानी से कह दिया!” बम्बार्दव चहका और
उसने शैतान जैसा चेहरा बनाया. “अच्छा, चलो, आर्गुनिन, गालिन, इलागिन, ब्लागास्वित्लोव, स्त्रेन्कोव्स्की, स्टेज पर आयें, झुक कर अभिवादन करें – शाबाश! ब्रेवो! हुर्रे! देखिये, भले लोगों, हम कितना लाजवाब अभिनय करते हैं! और
संस्थापक, मतलब, बैठे रहेंगे और
परेशानी से मुस्कुराते रहेंगे – मतलब, अब हमारी कोई ज़रुरत
नहीं है? मतलब, हमें किसी आश्रम में
भेज देना चाहिए? ही, ही, ही! बहुत आसान है! बहुत चतुराई से! बड़ी आसानी से!”
“सब समझ में आ
गया!” मैं भी शैतान जैसी आवाज़ में चिल्लाने की कोशिश करते हुए, चिल्लाया. “ सब समझ में आ गया!”
“इसमें समझ में
न आने जैसी क्या बात है?” बम्बार्दव ने मेरी
बात काटी. “आखिर इवान वसिल्येविच ने आपसे कहा तो था, कि
दुल्हन को माँ में परिवर्तित कर दो, तब मार्गारीटा पाव्लव्ना
या नस्तास्या इवानव्ना यह भूमिका कर लेती...”
“नस्तास्या इवानव्ना?!”
“आप थियेटर के
व्यक्ति नहीं हैं,” अपमानजनक मुस्कराहट
से बम्बार्दव ने जवाब दिया, मगर अपमान किसलिए, ये उसने नहीं समझाया.
“सिर्फ एक बात
बताइये,” मैंने तैश में आकर
कहा, “आन्ना की भूमिका वे किसे देना चाहते थे?”
“स्वाभाविक है, ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना प्र्याखिना को.”
अब न जाने क्यों
मुझ पर वहशत सवार हो गयी.
“क्या-आ? ये
क्या बात हुई?! ल्युद्मिला
सिल्वेस्त्रव्ना को?” मैं मेज़ के पीछे से उछला. “और आप हंस
रहे हैं!”
“तो क्या हुआ?” प्रसन्न उत्सुकता से बम्बार्दव ने पूछा.
“उसकी उम्र
कितनी है?”
“ये, माफ़ कीजिये, कोई नहीं जानता.”
“आन्ना की उम्र
उन्नीस साल है! उन्नीस साल! आप समझ रहे हैं?
मगर ये भी सबसे महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण यह है, कि वह
भूमिका नहीं कर सकती!”
“आन्ना की?”
“न सिर्फ आन्ना
की, बल्कि वह कुछ भी नहीं कर सकती!”
“माफ़ कीजिये!”
“नहीं, माफ़ कीजिये! अभिनेत्री, जो
उत्पीड़ित और अपमानित व्यक्ति का रुदन व्यक्त करना चाहती थी,
और उसने उसे इस तरह प्रस्तुत किया कि बिल्ली तैश में आ गई और उसने पर्दा फाड़ दिया, कोई भी भूमिका नहीं कर सकती.
“बिल्ली – बदमाश
है,” – मेरे आवेश का लुत्फ़ उठाते हुए बम्बार्दव ने जवाब दिया, “उसका दिल बड़ा हो गया है, मायोकार्डाइटिस और
न्यूरोस्तेनिया. आखिर वह पूरे-पूरे दिन पलंग पर पड़ी रहती है,
लोगों को नहीं देखती है, तो, स्वाभाविक
है कि डर गई.”
“बिल्ली न्यूरोटिक
है, इस बात से मैं सहमत हूँ!” मैं
चीख़ा. “मगर उसकी भावना बिलकुल सही है, और वह दृश्य को
सही-सही समझती है. उसने झूठ सुना था! आप समझ रहे हैं, घिनौना
झूठ. वह चौंक गई! वैसे, इस सब नौटंकी का क्या मतलब है?”
“अस्तर बाहर आ
गया,” बम्बार्दव ने समझाया.
“इस शब्द का
क्या मतलब है?”
“अस्तर का मतलब, हमारी भाषा में हर उस तरह की गड़बड़ से है, जो स्टेज पर हो जाती है. अभिनेता, अचानक टेक्स्ट
में गलती कर देता है, या परदा समय पर बंद नहीं करते हैं, या...”
“समझ गया, समझ गया...”
“प्रस्तुत
परिस्थिति में दो व्यक्तियों को रखा गया – अव्गूस्ता अव्देयेव्ना और नस्तास्या
इवानव्ना. पहली ने, आपको इवान वसिल्येविच
के पास छोड़ते हुए, नस्तास्या इवानव्ना को आगाह नहीं किया कि
आप वहां होंगे. और दूसरी ने, ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना को
बाहर छोड़ते हुए, इस बात की जांच नहीं की कि क्या इवान
वसिल्येविच के पास कोई है. हांलाकि, बेशक, अव्गूस्ता
अव्देयेव्ना का दोष कम है – नस्तास्या इवानव्ना मशरूम्स के लिए दुकान पर गई
थी...”
“समझ गया, समझ गया,” मैंने भीतर से फूट
रही मेफिस्टोफ़ीलियन हंसी को दबाते हुए कहा, “सब कुछ अच्छी
तरह समझ में आ गया! मतलब, आपकी ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना
अभिनय नहीं कर सकती.”
“माफ़
कीजिये! मॉस्कोवासी ज़ोर देकर कहते हैं, कि अपने ज़माने में वह
बढ़िया अभिनय करती थी...”
“झूठ बोलते हैं आपके मॉस्कोवासी!” मैं चीखा. “वह रुदन और दुःख प्रदर्शित करती है, मगर उसकी आंखों से कड़वाहट फूटती है! वह नृत्य करती है और चीखती है
‘इन्डियन समर!’, और उसकी आंखें परेशान रहती हैं! वह मुस्कुराती है, और श्रोताओं की पीठ पर चींटियाँ रेंगने लगती हैं,
मानो उसकी कमीज़ के भीतर किसी ने नार्ज़न डाल दी हो! वह अभिनेत्री नहीं है!”
“फिर
भी! वह तीस वर्षों से इवान वसिल्येविच के ‘अवतरण के सिद्धांत’ का अध्ययन कर रही है...”
“मैं
यह सिद्धांत नहीं जानता! मेरी राय में सिद्धांत ने उसकी कोई मदद नहीं की है!”
“आप, शायद, कहेंगे, कि इवान
वसिल्येविच भी अभिनेता नहीं है?”
“आ, नहीं! नहीं! जैसे उसने दिखाया की बख्तिन ने कैसे खुद को
खंजर घोंप लिया, मैंने आह भरी: उसकी आंखें मुर्दा हो गईं! वह
दीवान पर गिर पडा, और मैंने उस आदमी को देखा जिसने खुद को
खंजर मारा था. इतने संक्षिप्त दृश्य से क्या निष्कर्ष निकाल सकते हो, मगर निष्कर्ष निकल सकता है, जैसे कि किसी महान गायक
को उसके द्वारा गाई गई एक पंक्ति से पहचाना जा सकता है, वह
स्टेज पर महान घटना है! मैं बिल्कुल नहीं समझ सकता कि वह नाटक की सामग्री के बारे
में क्या कहता है.”
“सब
अच्छा ही कहता है!”
“खंजर!!”
“इस
बात को समझिये, कि जैसे ही आप बैठे और नोटबुक खोली, उसने आप की बात
सुनना बंद कर दिया. हाँ, हाँ. वह इस बात के बारे में कल्पना कर रहा था, कि भूमिकाएँ कैसे वितरित करे, संस्थापकों का क्या
करे, जिससे संस्थापकों को समायोजित कर सके, क्या करे जिससे वे आपका नाटक खुद को नुक्सान पहुंचाए बिना प्रस्तुत कर
सकें...और आप न जाने कहाँ से किसी गोली-बारी के बारे में पढ़ रहे हैं. मैं हमारे
थियेटर में दस साल से काम कर रहा हूँ, और मुझे बताया गया था, कि हमारे थियेटर में सिर्फ एक बार, सन् उन्नीस सौ
एक में गोली-बारी हुई थी, और वह भी बेहद असफल रही थी. इस
नाटक में...भूल गया...प्रसिद्ध लेखक...खैर, ये ज़रूरी नहीं
है...संक्षेप में, दो परेशान अभिनेताओं का विरासत के कारण आपस में झगड़ा हो गया, लड़ते रहे, लड़ते रहे, जब तक कि एक
ने दूसरे को रिवॉल्वर से नहीं मार दिया, और वह भी...खैर, जब तक
साधारण रिहर्सल्स चल रही थीं, सहायक ताली बजाकर गोली-बारी का प्रदर्शन करता रहा, मगर ग्रैंड
रिहर्सल में, पार्श्व में, सचमुच में रिवॉल्वर चला दिया. तो, नस्तास्या
इवानव्ना की तबियत खराब हो गयी – उसने ज़िंदगी में कभी भी गोली चलने की आवाज़ नहीं
सुनी थी, और ल्युदमिला सिल्वेस्त्रव्ना को दौरा पड़ गया. तब से
गोली-बारी बंद कर दी गई है. नाटक में परिवर्तन किया गया, नायक गोली
नहीं चलाता था, बल्कि पानी का डिब्बा हिलाता और चिल्लाता, “मार डालूँगा
तुझे, बदमाश को!”
और पैर पटकता, जिससे, इवान वसिल्येविच की राय में, नाटक सफल हो
गया. लेखक थियेटर पर बेहद गुस्सा हो गया और उसने तीन साल तक डाइरेक्टरों से बात
नहीं की, मगर इवान वसिल्येविच अपनी राय पर कायम रहे.
जैसे-जैसे नशे में धुत रात बीतती गयी, मेरा आवेग
ठंडा पड़ता गया, और मैं बम्बार्दव का ज़ोर-शोर से विरोध नहीं कर रहा था, बल्कि
ज़्यादा सवाल पूछ रहा था. नमकीन कैवियर और सेल्मन के बाद मुंह में आग जल रही थी, हम
चाय से अपनी प्यास बुझा रहे थे. कमरा, दूध की तरह धुएँ से भर गया, खुले वातायन
से बर्फीली हवा का झोंका तेज़ी से भीतर आ रहा था, मगर वह
ताज़गी नहीं दे रहा था, बल्कि ठंडक पैदा कर रहा था.
“आप मुझे बताइये, बताइये,” मैंने
कमजोर, खोखली आवाज़
में कहा, “फिर ऐसी हालत में, अगर उनके पास से नाटक नहीं निकलता
है, वे क्यों नहीं
चाहते कि मैं उसे किसी दूसरे थियेटर को दूं? उन्हें उसकी
ज़रुरत किसलिए है? किसलिए?”
“बढ़िया बात है! क्या किसलिए? हमारे
थियेटर के लिए ये बहुत दिलचस्प होगा, कि बगल में ही नया नाटक प्रदर्शित हो रहा है, जो, ज़ाहिर है
सफल होगा! आखिर क्यों! आपने तो कॉन्ट्रेक्ट में लिख दिया है कि नाटक किसी अन्य
थियेटर को नहीं देंगे?”
अब मेरे आंखों के सामने अनगिनत चमचमाती-हरी इबारतें
उछलने लगीं ‘लेखक को अधिकार नहीं है’ और कोई शब्द ‘होगा’...और अनुच्छेदों
के धूर्त आंकडे, याद आया चमड़े से ढंका कार्यालय, ऐसा लगा कि
इत्र की खुशबू आ रही है.
“ उसका धिक्कार हो!” मैं भर्राया.
“किसका?!”
“धिक्कार हो! गव्रील स्तिपानविच!”
“चील!” अपनी सूजी हुई आंखें चमकाते हुए बम्बार्दव चहका.”
“और कितना शांत है और हमेशा आत्मा के बारे में बात करता
है!...”
“भ्रम, बकवास, निरर्थक प्रलाप, निरीक्षण
शक्ति का अभाव!” बम्बार्दव चीख रहा था, उसकी आंखें दहक रही थीं, सिगरेट दहक रही थी, उसके नथुनों
से धुआँ निकल रहा था. “बेशक, चील. वह ऊंची चट्टान पर बैठता है, आसपास चालीस
किलोमीटर की दूरी पर देखता है. और जैसे ही कोई बिंदु दिखाई देता है, वह फड़फड़ाता
है, ऊपर उठता है
और अचानक पत्थर की तरह नीचे गिरता है! एक शिकायत भरी चीख,
घरघराहट...और वह आसमान की तरफ़ लपकता है, और शिकार उसे मिल
जाता है!”
“आप कवि
हैं, शैतान आपको ले जाए!” मैं भर्राया.
“और
आप,” हल्के से मुस्कुराते हुए, बम्बार्दव फुसफुसाया, “दुष्ट आदमी हैं! ऐह, सिर्गेई लिओन्तेविच, आपको बता रहा हूँ, कि आपको बहुत मुश्किल होगी...”
उसके
शब्द मुझे चुभ गए. मैं समझता था, कि मैं बिल्कुल भी
बुरा आदमी नहीं हूँ, मगर तभी भेड़िये की मुस्कान के बारे में लिकोस्पास्तव के
शब्द भी याद आ गए...
“मतलब,” उबासी लेते हुए मैंने कहा, “ मतलब, मेरा नाटक
नहीं चलेगा? मतलब, सब कुछ ख़त्म हो गया?”
बम्बार्दव
ने एकटक मेरी तरफ़ देखा और उसके स्वभाव के प्रतिकूल, आवाज़ में सौहार्द्र
लाते हुए कहा:
“सब
कुछ बर्दाश्त करने के लिए तैयार रहो. आपको धोखे में नहीं रखूंगा. आपका नाटक नहीं
चलेगा. हाँ, अगर कोई चमत्कार न हो तो...”
खिड़की
के पीछे शरद ऋतु की गंदी, धूमिल भोर झाँक रही थी. मगर इस ओर ध्यान न देते हुए कि
प्लेट में बचे खुचे टुकड़े थे, प्लेटों में सिगरेट
के ठूंठों के ढेर थे, मैंने, इस सारी बेतरतीबी के बीच, एक बार फिर, न जाने किस अंतिम तरंग से प्रेरित होकर
सुनहरे घोड़े के बारे में एकालाप बोलना शुरू कर दिया.
मैं
अपने श्रोता के सामने यह चित्रित करना चाहता था कि घोड़े की सुनहरी दुम पर कैसे
सितारे चमचमाते हैं, कैसे स्टेज ठण्डी और अपनी खुशबू
छोड़ता है, हॉल में हंसी कैसे गूँजती है. मगर खास बात ये नहीं
थी. जोश में प्लेट को दबाते हुए, मैं पूरे जोश से बम्बार्दव
को इस बात का यकीन दिलाने की कोशिश कर रहा था, कि जैसे ही
मैंने घोड़े को देखा, मैं फ़ौरन दृश्य को और उसके सूक्ष्मतम
रहस्यों को समझ गया था. इसका मतलब ये कि, बहुत-बहुत पहले, हो सकता है, बचपन में, या हो
सकता है कि जन्म लेने से पहले, मैं सपने देखता था, अस्पष्ट रूप से उसके लिए तड़पता था. और मैं आ गया!
“मैं
नया हूँ,” मैं चिल्लाया , “मैं नया हूँ! मैं अपरिहार्य हूँ, मैं आ गया हूँ!”
फिर
मेरे गर्म दिमाग़ में कुछ पहिये घूमने लगे, और ल्युद्मिला
सिल्वेस्त्रव्ना उछल कर बाहर आई, गरजने लगी, लेस का रूमाल हिलाने लगी.
“वह
अभिनय नहीं कर सकती,” मैं गुस्से से भर्राया.
“मगर, माफ़ कीजिये!...ऐसा नहीं हो सकता.”
“कृपया
मेरी बात का विरोध न करें,” मैंने गंभीरता से
कहा, “आपको आदत हो गई है, मगर मैं तो
नया हूँ, मेरी राय तीखी और ताज़ा है! मैं उसके आरपार देख सकता
हूँ.”
“फिर
भी!”
“और
कोई भी सि...सिद्धांत किसी भी तरह की मदद नहीं कर सकता! और, वहां वो छोटा, चपटी नाक वाला, क्लर्क अभिनय कर रहा
है, उसके हाथ सफ़ेद हैं, आवाज़ भर्राई
हुई है, मगर उसे किसी सिद्धांत की ज़रुरत नहीं है, और ये, काले दस्तानों में खूनी की भूमिका निभाने
वाला...उसे सिद्धांत की ज़रुरत नहीं है!”
“अर्गुनीन...”
धुएँ के परदे के पीछे से मुझ तक घुटी-घुटी सी आवाज़ पहुँची.
“कोई
सिद्धांत होता ही नहीं है!” पूरी तरह अहंकार से व्याप्त, मैं चीखा और दांत भी किटकिटाने लगा और तभी अकस्मात् मैंने देखा, कि मेरे भूरे जैकेट पर प्याज का टुकड़ा चिपका एक बड़ा तेल का धब्बा है.
मैंने परेशानी से चारों ओर देखा. रात का कहीं नामोनिशान भी नहीं था. बम्बार्दव ने
लैम्प बुझा दिया, और नीले आसमान में सभी वस्तुएं अपनी समूची
कुरूपता में दिखाई देने लगीं.
रात
खा ली गई थी, रात चली गई थी.
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