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बुधवार, 28 मार्च 2012

Master aur Margarita - 33.2


मास्टर और मार्गारीटा – 33.2
इन सभी स्पष्टीकरणों से सारी बातें समझ में आ गईं; और नागरिकों को परेशान करने वाली वह बात भी, जो हर कैफियत से ऊपर थी, यानी पचास नम्बर के फ्लैट में बिल्ले को पकड़ने की कोशिश में उस पर की गई गोलीबारी, जिसका उस पर कोई असर न हुआ.
झुम्बर पर, ज़ाहिर है, कोई बिल्ला-विल्ला नहीं था, किसी ने गोलियाँ चलाने के बारे में सोचा ही नहीं; वे सब खाली जगह पर गोलियाँ बरसाते रहे; जब कोरोव्येव की आवाज़ सुनाई दी कि यह सब बिल्ले की बेहूदगी है, वह शायद आराम से गोलियाँ चलाने वालों की पीठ के पीछे मुँह चिढ़ाते हुए उपस्थित था और अपनी इस नाक घुसेड़ने की सफलता का आनन्द लेते हुए उसने तेल डालकर फ्लैट में आग लगा दी.
स्त्योपा लिखोदेयेव किसी याल्टा-वाल्टा में नहीं गया. (ऐसा तो कोरोव्येव के लिए भी सम्भव नहीं है) वहाँ से उसने कोई टेलिग्राम भी नहीं भेजा. कोरोव्येव की हरकतों से घबराकर जो उसे काँटे पर टँका नमकीन कुकुरमुत्ता खाते बिल्ले को दिखा रहा था, जवाहिरे की बीवी के फ्लैट में वह बेहोश हो गया और तब तक बेसुध पड़ा रहा, जब तक कोरोव्येव ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए उसे रोएँ वाली टोपी पहनाकर मॉस्को के हवाई अड्डे पर न भेज दिया. स्त्योपा से मिलने आए खुफ़िया पुलिस के लोगों को उसने यह दिखाया, मानो वह सेवास्तोपोल से आ रहे हवाई जहाज़ से आया है.
यह सच है कि खुफ़िया पुलिस की याल्टा वाली पूछताछ से स्पष्ट होता था कि उसने नंगे पैरों चलते स्त्योपा को पकड़ा था, और स्त्योपा के बारे में मॉस्को तार भेजा था. मगर इस टेलिग्राम की कोई भी प्रति कहीं भी नहीं मिली. इससे यह दुःखद और स्पष्ट निष्कर्ष निकाला गया कि सम्मोहन करने वाले इस समूह के सदस्यों के पास दूर तक सम्मोहित करने की शक्ति है; वह भी इक्का-दुक्का लोगों को नहीं, बल्कि पूरे के पूरे झुण्ड को. इस प्रकार अपराधी बड़ी से बड़ी दृढ़ मानसिकता वाले लोगों को भी पागल बना सके थे.
उन छोटी-छोटी बातों के बारे में क्या कहा जाए – जैसे एक व्यक्ति की जेब से दूसरे व्यक्ति की जेब में ताश की गड्डी का जाना; महिलाओं के वस्त्रों का गायब हो जाना; म्याऊँ-म्याऊँ करता कोट और ऐसा ही बहुत कुछ. ऐसी हरकतें तो कोई भी छोटा-मोटा सम्मोहक कर सकता है, किसी भी रंगमंच पर, जिनमें सूत्रधार के सिर का उखाड़ लिया जाना भी हो सकता है. बातें करने वाली बिल्ली – एक बकवास है. लोगों के सामने ऐसी बिल्ली दिखाने के लिए पेटबोली के मूलभूत सिद्धांतों का ज्ञान ही काफी है, और इसमें कोई शक नहीं कि कोरोव्येव इस कला में काफी आगे निकल चुका था.
बात यहाँ ताश के पत्तों की नहीं है, निकानोर इवानोविच के ब्रीफकेस में पाए गए झूठे पत्रों की भी नहीं है. ये छोटी-मोटी हरकतें हैं. वास्तव में, कोरोव्येव ने ही बेर्लिओज़ को ट्रामगाड़ी के नीचे मारने के उद्देश्य से धकेल दिया था. उसी ने गरीब बेचारे कवि इवान बेज़्दोम्नी को पागल कर दिया था; उसने उसे यातनामय सपनों में प्राचीन येरूशलम और सूरज की रोशनी में जलते सूखे गंजे पहाड़ को देखने पर विवश किया था, जिन पर तीन अभियुक्तों को फाँसी लगाई गई थी. उसीने और उसकी मण्डली ने मॉस्को से गायब होने के लिए मार्गारीटा निकोलायेव्ना और उसकी नौकरानी नताशा को विवश किया. एक बात और : इस मामले की जाँच-पड़ताल गहराई से की गई. यह स्पष्ट करना ज़रूरी था कि इन महिलाओं को हत्या और आगज़नी करने वाले ये लोग भगा कर ले गए थे, या फिर ये अपनी मर्ज़ी से उनके साथ भागी थीं? निकोलाय इवानोविच की अस्पष्ट और उलझी गवाहियों पर, मार्गारीटा निकोलायेव्ना की विचित्र और बेवकूफी भरी चिठ्ठी पर, जो उसने अपने पति के नाम छोड़ी थी – यह लिखते हुए कि वह चुडैल बनकर जा रही है; और नताशा की अपनी सभी चीज़ें यथास्थान छोड़कर गायब हो जाने की घटना पर गौर करने के बाद जाँच अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अन्य अनेक व्यक्तियों की तरह मालकिन एवम् नौकरानी दोनों को सम्मोहित किया गया था, और फिर उनका अपहरण कर लिया गया. यह सम्भावना भी व्यक्त की गई कि अपराधियों ने उनके सौन्दर्य पर मोहित होकर उन्हें अगवा कर लिया.
मगर जिस बात का कोई प्रमाण नहीं पाया जा सका, वह यह थी कि मानसिक रूप से बीमार, अपने आपको मास्टर कहने वाले व्यक्ति को ये मण्डली अस्पताल से उड़ाकर क्यों ले गई. इसकी वजह वे नहीं ढूँढ़ सके और न ही पता लगा सके उस मरीज़ के नाम का. वह ‘नम्बर एक सौ अठारह’ वाले सम्बोधन के साथ ही हमेशा के लिए गुम हो गया.

इस तरह हर चीज़ समझा दी गई और जाँच का काम खत्म हो गया, वैसे ही जैसे और सब कुछ खत्म होता है.
कुछ साल बीत गए. लोग वोलान्द को, कोरोव्येव को और अन्य लोगों को भूलने लगे. वोलान्द और उसकी मण्डली के कारण दुःख पाए लोगों के जीवन में कई परिवर्तन हुए और ये परिवर्तन कितने ही मामूली क्यों न रहे हों, उनके बारे में बता देना अच्छा रहेगा.
उदाहरण के लिए, जॉर्ज बेंगाल्स्की अस्पताल में तीन महीने बिताने के बाद ठीक हो गया और घर भेज दिया गया, मगर उसे वेराइटी की नौकरी छोड़नी पड़ी; और वह भी खास तौर से भीड़ के सीज़न में, जब जनता टिकटों के लिए टूटी पड़ रही थी – काले जादू और उसका पर्दाफाश करने वाली बात की स्मृतियाँ एकदम ताज़ा थीं. बेंगाल्स्की ने वेराइटी छोड़ दिया, क्योंकि वह समझ गया कि हर शाम दो हज़ार दर्शकों के सामने जाना, हर हालत में पहचान लिए जाना और इस चिढ़ाते हुए सवाल का सामना करना कि उसके लिए क्या अच्छा रहेगा : सिर वाला शरीर या बिना सिर वाला? – यह सब बड़ा पीड़ादायी होगा.

हाँ, इसके अलावा सूत्रधार अपनी खुशमिजाज़ी भी खो बैठा, जो उसके पेशे के लिए निहायत ज़रूरी है. उसे एक अप्रिय और बोझिल आदत पड़ गई : हर पूर्णमासी की रात को वह व्याकुल होकर अपनी गर्दन पकड़ लेता, भय से इधर-उधर देखता और फिर रो पड़ता. यह सब धीरे-धीरे कम होता गया, मगर उनके रहते पुराने काम को करना असम्भव ही था; इसलिए सूत्रधार ने वह नौकरी छोड़ दी, वह खामोश जीवन बिताने लगा, अपनी बचत पर जीने लगा, जो उसकी साधारण जीवन शैली की बदौलत पन्द्रह वर्षों के लिए काफी थी.
वह चला गया और फिर कभी भी वारेनूखा से नहीं मिला जो थियेटर प्रबन्धकों के बीच भी, अपनी अविश्वसनीय सहृदयता, शिष्ट व्यवहार, और हाज़िरजवाबी के कारण लोकप्रिय हो गया था. मुफ़्ट टिकट पाने वाले तो उसे ‘दयालु पिता’ कहकर ही बुलाते थे. कोई भी, कभी भी वेराइटी में फोन करे, हमेशा टेलिफोन पर नर्म, मगर उदास आवाज़ सुनाई देती, “सुन रहा हूँ – “ और जब वारेनूखा को टेलिफोन पर बुलाए जाने की प्रार्थना की जाती तो वही आवाज़ जल्दी से आगे कहती, “मैं हाज़िर हूँ, कहिए क्या सेवा करूं.” मगर इवान सावेल्येविच अपनी शिष्टता के कारण भी दुःख उठाता रहा.

स्त्योपा लिखोदेयेव को भी अब वेराइटी में टेलिफोन पर बात नहीं करना पड़ता. अस्पताल से छूटने के फौरन बाद, जहाँ उसने आठ दिन बिताए थे, उसे रोस्तोव भेज दिया गया. वहाँ उसे एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर का डाइरेक्टर बना दिया गया. कहते हैं कि अब उसने पोर्ट वाइन पीना पूरी तरह छोड़ दिया है, और केवल वोद्का पीता है – वह भी बेदाने की, जिससे उसकी तबियत भी काफी अच्छी हो गई है. यह भी कहते हैं कि वह एकदम खामोश तबियत का हो गया है और औरतों से भी दूर रहता है.
स्तेपान बोग्दानोविच को वेराइटी से निकालकर रीम्स्की को इतनी खुशी नहीं हुई, जिसके वह पिछले कई सालों से इतनी अधीरता से सपने देखता रहा था. अस्पताल और किस्लोवोद्स्क के बाद बूढ़े, जक्खड़ बूढ़े, हिलते हुए सिर वाले वित्तीय डाइरेक्टर ने भी वेराइटी से बाहर जाने के लिए दरख्वास्त दे दी. मज़े की बात तो यह है कि इस दरख्वास्त को वेराइटी लेकर आई उसकी बीवी. ग्रिगोरी दानिलोविच को दिन में भी उस इमारत में जाने की हिम्मत नहीं हुई, जहाँ उसने चाँद की रोशनी में खिड़की के चटकते शीशे को देखा था और उस लम्बे हाथ को जो निचली सिटकनी की ओर बढ़ा आ रहा था.
वेराइटी छोड़कर वित्तीय डाइरेक्टर बच्चों के कठपुतलियों वाले थियेटर में आ गया. इस थियेटर में उसे ध्वनि संयोजन की समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता था, ज़ामस्क्वोरेच्ये में इस बारे में सम्माननीय अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव से बहस भी नहीं करनी पड़ती थी. उसे दो ही मिनट में ब्र्यान्स्क भेज दिया गया और मशरूम को डिब्बों में बन्द करने वाले कारखाने का डाइरेक्टर बना दिया गया. अब मॉस्कोवासी नमकीन लाल और सफेद मशरूम खाते हैं, और उनकी तारीफ करते नहीं थकते; वे इस तबादले से बेहद खुश हैं. बात तो पुरानी है और कह सकते हैं कि अर्कादी अपोलोनोविच से ध्वनि संयोजन का काम सँभलता ही नहीं था. उसने चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न की हो, वह जैसा था वैसा ही रहा.   

थियेटर से जिनका नाता टूटा उनमें अर्कादी अपोलोनोविच के अलावा निकानोर इवानोविच बोसोय को भी शामिल करना होगा, हालाँकि निकानोर इवानोविच का मुफ़्त के टिकटों को छोड़कर थियेटर से कोई वास्ता नहीं था. निकानोर इवानोविच अब कभी थियेटर नहीं जाता: न पैसों से, न मुफ़्त में; इतना ही नहीं, थियेटर का ज़िक्र छिड़ते ही उसके चेहरे का रंग बदल जाता है. थियेटर के अलावा उसे कवि पूश्किन से और सुयोग्य कलाकार साव्वा पोतापोविच कूरोलेसोव से भी बड़ी घृणा हो गई. उससे तो इतनी कि पिछले साल काली किनार के बीच यह समाचार देखकर कि साव्वा पोतापोविच अपने जीवन के चरमोत्कर्ष के काल में दिल के दौरे से परलोक सिधार गया – निकानोर इवानोविच का चेहरा इतना लाल पड़ गया कि वह स्वयँ भी सावा पोतापोविच के पीछे जाते-जाते बचा. वह गरजा, “उसके साथ ऐसा ही होना चाहिए!” इसके अलावा, उसी शाम को निकानोर इवानोविच ने, जिसे लोकप्रिय कलाकार की मृत्यु के कारण अनेक कड़वी बातें फिर से स्मरण हो आई थीं, अकेले, पूर्णमासी के चाँद के साथ सादोवाया में बैठ कर खूब शराब पी. हर जाम के साथ उसके सामने घृणित आकृतियों की श्रृंखला लम्बी होती जाती और इस श्रृंखला में थे दुंचिल सेर्गेइ गेरार्दोविच और सुन्दरी इडा हेर्कुलानोव्ना, और वह लाल बालों वाला लड़ाकू हंसों का मालिक, और स्पष्टवक्ता कानाव्किन निकोलाय .

क्रमशः

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