देसी दारू का तालाब
लेखक: मिखाइल बुल्गाकोव
अनु.: ए.चारुमति रामदास
ईस्टर संडे की रात को दस बजे हमारा नासपीटा कॉरीडोर ख़ामोश हो गया. इस
सुकूनभरी ख़ामोशी में मेरे मन में एक विकट ख़याल कौंध गया कि मेरी ख़्वाहिश पूरी हो
गई है और बुढ़िया पाव्लोव्ना, जो सिगरेट बेचा करती थी, मर गई है. ऐसा मैंने इसलिए
सोचा कि पाव्लोव्ना के कमरे से उसके बेटे शूर्का की, जिसे वह बुरी तरह मारा करती
थी, चीखें नहीं सुनाई दे रही थीं.
मैं ख़ुशी से मुस्कुराया और बदहाल
कुर्सी में बैठकर मार्क ट्वेन के पन्ने पलटने लगा. ओह, ख़ुशी की घड़ी, सुहानी घड़ी!...
और रात के सवा दस बजे कॉरीडोर में तीन
बार मुर्गा चिल्लाया.
मुर्गे में तो कोई खास बात नहीं है.
पाव्लोव्ना के कमरे में पिछले छह महीनों से मुर्गा रह रहा था. आम तौर से देखा जाए
तो मॉस्को कोई बर्लिन तो नहीं है, यह हुई पहली बात; और दूसरी बात ये कि फ्लैट नं.
50 के कॉरीडोर में छह महीनों से रह रहे आदमी को किसी भी बात से चौंकाया नहीं जा
सकता. मुर्गे के अकस्मात् प्रकट होने की बात ने मुझे नहीं डराया, बल्कि मुझे डराया
इस बात ने कि मुर्गा चिल्लाया रात के दस बजे. मुर्गा कोई नाइटिंगेल तो है नहीं, और
युद्ध पूर्व के काल में वह सूर्योदय के समय ही बाँग दिया करता था.
“कहीं इन नीच लोगों ने मुर्गे को ठर्रा तो नहीं
पिला दिया?” मैंने मार्क ट्वेन से ध्यान हटाते हुए अपनी दुःखी बीवी से पूछा.
मगर वह जवाब न दे पाई. पहली बाँग के
बाद मुर्गे की दर्दभरी चीखों का सिलसिला शुरू हो गया. इसके बाद किसी आदमी की आवाज़ चीखी.
मगर कैसे! यह एक भारी, गहरा रुदन था, पीड़ा भरी कराह, बदहवास, मृत्यु से पहले की
करुण कराह.
सारे दरवाज़े धड़ाम्-धड़ाम् करने लगे,
कदमों की आवाज़ें गूँज उठीं. मैंने ट्वेन को फेंक दिया और कॉरीडोर की ओर भागा.
कॉरीडोर में बिजली के बल्ब के नीचे, इस
मशहूर कॉरीडोर के विस्मित निवासियों के बन्द घेरे के बीच में खड़ा था एक नागरिक, जो
मेरे लिए अपरिचित था. उसके पैर पुराने रूसी अक्षर V की शक्ल में फैले थे; वह झूल रहा था,
और मुँह बन्द किए बगैर जानवरों जैसी बदहवास चीख निकाले जा रहा था, जो मुझे भयभीत
किए जा रही थी. कॉरीडोर में मैंने सुना कि कैसे उसका अखण्ड आलाप संगीतमय वाक्य में
बदल गया.
“तो,” भर्राई हुई आवाज़ में अपरिचित नागरिक आँखों
से मोटे-मोटे आँसू टपकाते हुए रोने लगा. “येशू का पुनर्जन्म हुआ है! बहुत अच्छा
सुलूक करते हो! किसी पर भी ऐसी मार न पड़े!! आ-आ-आ-आ!!”
इतना कहते-कहते उसने मुर्गे की पूँछ के
परों का गुच्छा उखाड़ लिया, जो उसके हाथों में छटपटा रहा था.
एक ही नज़र काफी थी यह यकीन करने के लिए
कि मुर्गा बिल्कुल नशे में नहीं था. मगर मुर्गे के चेहरे पर अमानवीय पीड़ा लिखी थी.
उसकी आँखें अपनी परिधि के बाहर निकल रही थीं, वह पंख फड़फड़ा रहा था और अपरिचित की
मज़बूत पकड़ से छूटने की कोशिश कर रहा था.
पाव्लोव्ना, शूर्का, ड्राइवर, अन्नूश्का,
अन्नूश्का का मीशा, दूस्या का पति और दोनों दूस्याएँ गोल घेरा बनाए चुपचाप और
निश्चल खड़े थे, मानो फर्श में गड़ गए हों. इस बार मैं उन्हें दोष नहीं दूँगा. वे भी
बोलना भूल गए थे. ज़िन्दा मुर्गे के पर उखाड़ने का दृश्य, मेरी ही तरह, वे भी पहली
ही बार देख रहे थे.
फ्लैट नं. 50 की सोसाइटी का प्रमुख
वासीली इवानोविच टेढ़ा मुँह करके अनमनेपन से मुस्कुराते हुए कभी मुर्गे का आज़ाद पर या
कभी उसकी टाँग पकड़ते हुए उसे अपरिचित नागरिक के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश कर रहा था.
“इवान गाव्रिलोविच! ख़ुदा से डरो!” वह चिल्लाया;
मेरी नज़र में वह तर्कसंगत था. “कोई भी तुम्हारे मुर्गे को नहीं लेगा, उस पर ख़ुदा
की तिहरी मार पड़े ! पवित्र ईस्टर सण्डे की पूर्व-संध्या पर पंछी को न सताओ! इवान
गाव्रिलोविच, होश में आओ!”
पहले मुझे ही होश आया और मैंने झटके से
एक पलटी लेकर नागरिक के हाथों से मुर्गे को खींच लिया. मुर्गा तीर की तरह ऊपर उड़ा
और ज़ोर से बल्ब से टकराया, फिर नीचे आया और मोड़ पर गायब हो गया, वहाँ, जहाँ
पाव्लोव्ना का कबाड़खाना है; और नागरिक एकदम शांत हो गया.
घटना असाधारण थी, आप चाहें तो ऐसा समझ
सकते हैं, और इसीलिए मेरे लिए वह अच्छे ही ढंग से समाप्त हुई. फ्लैट-सोसाइटी के
प्रमुख ने मुझसे नहीं कहा कि अगर मुझे यह फ्लैट पसन्द नहीं है तो मैं अपने लिए कोई
महल ढूँढ़ लूँ. पाव्लोव्ना ने यह नहीं कहा कि मैं पाँच बजे तक बिजली जलाता हूँ, ‘ न
जाने कौन-से काम करते हुए ’, और यह भी कि मैं बेकार ही में वहाँ घुस आया हूँ जहाँ
वह रहती है; शूर्का को पीटने का अधिकार उसे है, क्योंकि यह उसका शूर्का है, और मैं
चाहे तो ‘ अपने शूर्का ‘ पैदा कर लूँ और उन्हें दलिए के साथ खा जाऊँ.
“पाव्लोव्ना, अगर तुमने फिर शूर्का को सिर पर
मारा तो मैं तुम्हें कानून के हवाले कर दूँगा, और तुम बच्चे पर अत्याचार करने के
जुर्म में एक साल के लिए अन्दर हो जाओगी,” इस धमकी का उस पर कोई असर नहीं होता था.
पाव्लोव्ना ने धमकी दी थी कि वह सरकार में दरख़्वास्त दे देगी कि मुझे यहाँ से
निकाल दिया जाए. “अगर किसी को पसन्द नहीं है, तो वह वहीं जाए जहाँ पढ़े-लिखे लोग
रहते हैं!”
संक्षेप
में, इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ. कब्रिस्तान की-सी ख़ामोशी में मॉस्को के सबसे प्रसिद्ध
फ्लैट के निवासी बिखर गए. अपरिचित आदमी को फ्लैट-सोसाइटी प्रमुख और कातेरीना
इवानोव्ना हाथ पकड़ कर सीढ़ियों की ओर ले गए. अपरिचित लाल होकर, थरथराते हुए, झूमते
हुए, चुपचाप जा रहा था – अपनी खूनी, बुझती हुई आँखें बाहर निकालते हुए, मानो वह धतूरा
खाकर आया हो.
पस्त
हो चुके मुर्गे को पाव्लोव्ना और शूर्का ने मिलकर कबाड़खाने से पकड़ लिया और उसे ले
गए.
कातेरीना
इवानोव्ना ने लौटकर बताया : “मेरा, कुत्ते की औलाद (मतलब: फ्लैट-प्रमुख – कातेरीना
इवानोव्ना का पति) भले आदमी की तरह बाज़ार गया. मगर सीदोरोव्ना के यहाँ से पव्वा खरीद
लाया. गाव्रीलिच को बुला लिया – बोला, चलो, देखते हैं – कैसी है. औरों को तो कुछ
नहीं होता, मगर उन्हें चढ़ गई. ख़ुदा, मेरे गुनाह माफ़ कर; चर्च में अभी फ़ादर ने
घण्टा भी नहीं बजाया था. समझ नहीं पा रही हूँ कि गाव्रीलिच को क्या हो गया. पीने
के बाद मेरा वाला उससे कहने लगा, “गाव्रीलिच, तू मुर्गे को लेकर बाथरूम में क्यों
जा रहा है, ला, मैं उसे पकड़ लेता हूँ; और वो...वो तो तैश में आ गया, ‘ आ S S S ’, कहने लगा, ‘ तू मेरे मुर्गे
को हड़प करना चाहता है?’ और लगा बिसूरने. उसे क्या सपना आया, ख़ुदा ही जानता है!...”
रात
के दो बजे फ्लैट-प्रमुख ने खा-पीकर सारे शीशे तोड़ डाले, बीवी को खूब धुनका और अपने
इस कारनामे का यह कहकर समर्थन किया कि बीवी ने उसकी ज़िन्दगी हराम कर दी है.
इस
समय मैं अपनी पत्नी के साथ मॉर्निंग-प्रेयर में था और इसलिए यह लफ़ड़ा मेरे सहभाग के
बगैर हो गया. फ्लैट की जनता काँप उठी और उसने मैनेजिंग कमिटी के प्रेसिडेण्ट को
बुला लिया. प्रेसिडेण्ट फौरन आ गया. चमकीली आँखों वाले और झण्डे जैसे लाल
प्रेसिडेण्ट ने नीली पड़ गई कातेरीना इवानोव्ना को देखा और बोला, “मुझे तुझ पर तरस
आता है, वासिल इवानीच. घर का मुखिया है और बीवी को काबू में नहीं रख सकता.”
हमारे
प्रेसिडेण्ट के जीवन में यह पहली बार था कि वह अपने अल्फ़ाज़ पर ख़ुश नहीं हुआ था.
उसे, ड्राइवर और दूस्का के पति को, स्वयँ वासिल इवानिच को निहत्था करना पड़ा; ऐसा
करते हुए उसका हाथ भी कट गया (वासिल इवानिच ने प्रेसिडेण्ट के शब्दों को सुनने के
बाद रसोईघर से चाकू उठा लिया, और कातेरीना इवानोव्ना पर वार करने चला, यह कहते हुए
कि ‘ठीक है, मैं अभी उसे दिखाता हूँ.’)
प्रेसिडेण्ट
ने कातेरीना इवानोव्ना को पाव्लोव्ना के कबाड़खाने में बन्द कर दिया; इवानिच को यह
यक़ीन दिलाया कि कातेरीना इवानोव्ना भाग गई
है, और तब वासिल इवानिच इन शब्दों के साथ सो गया कि, ‘ठीक है. मैं उसे कल काट डालूँगा.
वो मेरे हाथों से नहीं बच सकती.’
प्रेसिडेण्ट
यह कहते हुए चला गया : “ठर्रा बनता है सीदोरोव्ना के यहाँ. जानवर है ठर्रा!”
रात
को तीन बजे इवान सीदोरिच प्रकट हुआ. खुल्लम खुल्ला कहता हूँ: अगर मैं मर्द होता, न
कि कोई चीथड़ा, तो मैं, बेशक, इवान सीदोरिच को अपने कमरे से बाहर फेंक देता. मगर
मैं उससे डरता हूँ. मैनेजमेंट कमिटी में प्रेसिडेण्ट के बाद वही सबसे ज़बर्दस्त
व्यक्ति है. हो सकता है, उसे बाहर निकालना सम्भव न हो (और यह भी हो सकता है कि
सम्भव हो, शैतान ही जाने!), मगर मेरे अस्तित्व में ज़हर तो वह बड़ी आसानी से घोल ही
सकता है. ये मेरे लिए सबसे भयानक बात है. अगर उसने मेरे वजूद को ज़हरीला बना दिया,
तो मैं व्यंग्यात्मक लेख नहीं लिख पाऊँगा, और अगर मैं व्यंग्यात्मक लेख नहीं लिख
पाया तो मेरी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी.
“नम...नागरिक जर्न...लिस्ट,” इवान सीदोरिच ने
झूलते हुए कहा, मानो हवा में घास डोल रही हो. “मैं आपके पास आया हूँ.”
“बड़ी खुशी हुई.”
“मैं एस्पेरान्तो के बारे में...”
“?”
“इश्तेहार लिख देते...लेख...एक सोसाइटी खोलना
चाहता हूँ...ऐसा ही लिखना है. इवान सीदोरिच, एस्पेरान्तिस्ट, चाहता है, वो...”
और
अचानक सीदोरिच एस्पेरान्तो में बोलने लगा (यह बता दूँ: आश्चर्यजनक रूप से घिनौनी
भाषा है.)
मालूम
नहीं कि एस्पेरान्तिस्ट ने मेरी आँखों में क्या पढ़ा, मगर वह फौरन सिकुड़ गया; लैटिन
– रूसी का मिश्रण प्रतीत हो रहे विचित्र संक्षिप्त शब्द बिखरने लगे और इवान
सीदोरिच आम आदमी की भाषा में बात करने लगा.
“खैर...माफ़...मैं...कल...”
“मेहेरबानी से,” इवान सीदोरिच को दरवाज़े तक
छोड़ते हुए बड़े प्यार से मैंने कहा (न जाने क्यों वह दीवार से बाहर जाना चाह रहा
था).
“
क्या इसे बाहर नहीं फेंका जा सकता?” उसके जाने के बाद पत्नी ने पूछा.
“नहीं, बच्ची, नहीं.”
सुबह
नौ बजे त्यौहार शुरू हुआ, फ्रांसीसी नाविकों के नृत्य ‘मातलोत’ से, जिसे
हार्मोनियम पर बजा रहा था वासीली इवानोविच (नाच रही थी कातेरीना इवानोव्ना), और
अन्नूश्का के शराबी मीशा के टूटे-फूटे भाषण से जो मेरे सम्मान में था. मीशा अपनी
ओर से और मेरे लिए अपरिचित नागरिकों की ओर से मेरे प्रति आदर प्रकट कर रहा था.
दस
बजे आया छोटा केयर-टेकर (उसने हल्की-सी पी रखी थी); दस बज कर बीस मिनट पर आया बड़ा केयर-टेकर (यह पीकर धुत्
हो रहा था); दस बज कर पच्चीस मिनट पर बॉयलर वाला आया (भयानक हालत में, चुप रहा और
चुपचाप ही चला गया. मेरे द्वारा दिए गए 50,0000 वहीं, कॉरीडोर में ही खो दिए).
दोपहर
को सीदोरोव्ना ने बदमाशी से वासीली इवानोविच के पव्वे में तीन उँगल कम शराब डाली;
तब वह खाली पव्वा लेकर वहाँ गया जहाँ जाना चाहिए था, और बोला:
“हाथभट्टी की दारू बेचते हैं. मैं चाहता हूँ कि
उन्हें गिरफ़्तार किया जाए.”
“तुम्हें कोई गलतफ़हमी तो नहीं हो रही है?” वहाँ
से मरियल आवाज़ में पूछा गया, “हमारी जानकारी के मुताबिक आपके मोहल्ले में हाथभट्टी
की दारू है ही नहीं.”
“नहीं है?” वासीली इवानोविच कड़वाहट से हँसा.
“बड़ा काबिले तारीफ़ है आपका जवाब.”
“हाँ, बिल्कुल नहीं है. और अगर तुम्हारे यहाँ
हाथभट्टी की है, तो तुम होश में कैसे हो? जाओ – सो जाओ, कल कम्प्लेन्ट दे देना
हाथभट्टी की बेचने वालों के बारे में.”
“च्...च् ...समझ गए हम,” वासीली इवानोविच
मासूमियत से मुस्कुराया. “शायद उन पर कोई कानून लागू नहीं होता? देने दो कम दारू
उन्हें. और जहाँ तक मेरे होश में रहने का सवाल है, तो इस पव्वे को सूंघिए.”
पव्वे
से साफ-साफ स्पिरिट के तलछट की बू आ रही थी.
“ले चलो!” तब वासीली इवानोविच को हुक्म दिया
गया. और वह उन्हें ले आया.
जब
वासीली इवानोविच जागा तो उसने कातेरीना इवानोव्ना से कहा, “सीदोरोव्ना के पास भाग
और पव्वा ले आ.”
“होश में आओ, बदहवास इन्सान,” कातेरीना
इवानोव्ना ने जवाब दिया, “सीदोरोव्ना को बन्द कर दिया.”
“कैसे? उन्होंने कैसे सूंघ लिया?” वासीली
इवानोविच को बड़ा आश्चर्य हुआ.
मैं
बहुत खुश हुआ. मगर, बस थोड़ी ही देर के लिए. आधे घण्टे बाद कातेरीना इवानोव्ना
लबालब भरा हुआ पव्वा लाई. पता चला कि सीदोरोव्ना के घर से दो घर छोड़कर, माकेइच के
घर में नई हाथभट्टी खोली गई है. शाम को सात बजे मैंने नताशा को उसके नानबाई शौहर
के हाथों से छुड़ाया (‘ख़बरदार, मारने की हिम्मत न करना!!’ ‘मेरी बीवी है.’ वगैरह).
आठ
बजे जब फ्रांसीसी नृत्य मातलोत की धुन गूँजी और अन्नूश्का थिरकने लगी, तो मेरी
पत्नी सोफे से उठ गई और बोली, “बस, अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती. जो जी में आए
करो, मगर हमें यहाँ से निकल जाना होगा.”
“नासमझ औरत!” मैंने उद्वेग से कहा, “मैं क्या कर
सकता हूँ? मैं कमरा नहीं ले सकता. उसकी कीमत होती है बीस लाख रूबल्स, और मुझे मिलते
हैं सिर्फ चार. जब तक मैं एक उपन्यास नहीं लिख लेता, हम किसी बात की उम्मीद नहीं
कर सकते. सब्र करो.”
“मैं अपने बारे में नहीं कह रही,” बीवी ने जवाब
दिया, “मगर तुम उपन्यास कभी भी पूरा नहीं कर पाओगे. कभी नहीं. ज़िन्दगी आशाहीन है.
मैं मार्फीन ले लूँगी.”
इन शब्दों
को सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं लोहे का हो गया हूँ.
मैंने
जवाब दिया, और मेरी आवाज़ में लोहे की खनक थी, “मार्फीन तुम नहीं लोगी क्योंकि मैं
तुम्हें इसकी इजाज़त नहीं दूँगा. और उपन्यास मैं पूरा करूँगा, और, यक़ीन दिलाता हूँ
कि यह ऐसा उपन्यास होगा, जिससे आसमान को भी पसीना आने लगेगा.”
इसके
बाद मैंने बीवी को कपड़े पहनने में मदद की, दरवाज़े को ताला लगाया, बड़ी वाली दूस्या
से (जो पोर्टवाईन के अलावा कुछ और नहीं पीती) कहा कि वह इस बात का ध्यान रखे कि
कोई मेरा ताला न तोड़ दे, और बीवी को त्यौहार के तीन दिनों के लिए निकीत्स्काया ले
गया, बहन के पास.
उपसंहार
मेरे
पास एक प्रोजेक्ट है. दो महीनों में मैं मॉस्को को ‘ड्राइ’ बना दूँगा, यदि पूरी
तरह नहीं तो कम से कम 90%.
शर्तें: प्रोजेक्ट का ‘हेड’ रहूँगा
– मैं. अपने सहायक मैं खुद चुनूँगा, विद्यार्थियों के बीच से. उनकी तनख़्वाह काफी
मोटी रखनी होगी (400 स्वर्ण रूबल्स. काम ही इतना ज़बर्दस्त है कि इस तनख़्वाह का
समर्थन हो जाएगा). सौ आदमी. मुझे – तीन कमरों वाला फ्लैट किचन के साथ, और एक मुश्त
1000 गोल्ड रूबल्स. यदि मेरी हत्या कर दी जाती है, तो बीवी को पेंशन दी जाए.
अधिकार : असीमित. मेरे हुक्म से फौरन गिरफ़्तारी की जाएगी. कानूनी कार्रवाई
24 घण्टे के भीतर, फाईन लेकर सज़ा बदली न जाए.
मैं
सभी सीदोरोवों और माकेइचों को नेस्तनाबूद कर दूँगा; साथ ही सभी ‘ कार्नर्स ’,
‘फ्लॉवर्स ऑफ जॉर्जिया’, ‘ फोर्ट्स ऑफ तमारा’ इत्यादि का भी सफ़ाया कर दूँगा.
मॉस्को
सहारा जैसा बन जाएगा, और ‘ बिज़नेस रात के बारह बजे तक ‘ जैसे जगमगाते इश्तेहारों
वाले नख़लिस्तानों में सिर्फ हल्की वाईन बेची जाएगी – लाल और सफ़ेद.
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