अध्याय
30
बिदाई की बेला
मास्टर
और मार्गारीटा अर्बात वाले घर के तहख़ाने वाले फ्लैट में हैं, मास्टर सोच रहा है कि
यह सब जादू ही है और सब कुछ जल्दी ही गायब हो जाएगा...पाण्डुलिपियाँ, मेज़ पर रखा
खाना, मार्गारीटा... और वह अपने आप को फिर से स्त्राविन्स्की के क्लीनिक में ही
पाएगा. मार्गारीटा उसे यक़ीन दिलाती है कि जो कुछ उसने देखा है, सच है और शैतान सब
कुछ ठीक कर देगा.
अब मार्गारीटा ध्यान
से मास्टर को देखती है और कहती है:
“तुम्हें कितनी तकलीफ
झेलनी पड़ी, कितना दुःख उठाना पड़ा, मेरे प्यारे! इसे सिर्फ मैं ही जानती हूँ. देखो,
तुम्हारे बालों में चाँदी झलकने लगी है और होठों के पास झुर्रियाँ पड़ गई हैं. मेरे
प्यारे, मेरे अपने, अब किसी बात की चिंता मत करो. तुम्हें बहुत कुछ सोचना पड़ा और
अब तुम्हारे लिए सोचूँगी मैं! मैं वादा करती हूँ, वचन देती हूँ कि सब ठीक होगा,
जितनी उम्मीद है, उससे अधिक...”
“मुझे किसी भी बात का डर
नहीं है, मार्गो,” मास्टर ने फौरन जवाब दिया और उसने सिर ऊपर उठाया तो मार्गारीटा
को लगा, कि वह बिल्कुल वैसा ही है, जैसा तब था, जब वह रचना कर रहा था उसकी जिसे
कभी देखा नहीं था, मगर जिसके बारे में, शायद, जानता था, कि वह हुआ था, “मैं डरता
भी नहीं, क्योंकि मैं सब कुछ सह चुका हूँ. वे मुझे बहुत डरा चुके, अब किसी और
बात से डरा नहीं सकते. लेकिन मुझे तुम्हारे लिए अफ़सोस है, मार्गो! यही
महत्वपूर्ण है, इसीलिए मैं बार-बार ज़ोर देकर कहता हूँ. सम्भल जाओ! एक बीमार और
गरीब आदमी के लिए तुम अपनी ज़िन्दगी क्यों खराब करती हो? वापस अपने घर चली जाओ!
मुझे तुम पर तरस आता है...इसीलिए ऐसा कह रहा हूँ.”
“आह! तुम...तुम...,” बिखरे
बालों वाला अपना सिर हिलाते हुए मार्गारीटा फुसफुसाई, “तुम विश्वास नहीं करते,
अभागे इंसान! तुम्हारे लिए कल पूरी रात मैं नग्नावस्था में काँपती रही! मैंने अपने
स्वरूप को बदल दिया, कितने ही महीने मैं अँधेरी कोठरी में बैठकर एक ही बात – येरूशलम
के ऊपर छाए तूफान के बारे में सोचती रही, रोते-रोते मेरी आँखें चली गईं, और
अब...जब सुख के दिन आने वाले हैं, तो तुम मुझे भगा रहे हो? मैं चली जाऊँगी, चली
जाऊँगी मैं, मगर याद रखना, तुम निष्ठुर हो! उन्होंने तुम्हारी आत्मा को मार
डाला है!”
मास्टर के हृदय में कटु-कोमल भाव जागे और न जाने क्यों वह
मार्गारीटा के बालों में अपना चेहरा छिपाकर रो पड़ा. वह, रोते हुए फुसफुसाती रही,
उसकी उँगलियाँ मास्टर की कनपटियाँ सहलाती रहीं.
“हाँ, चाँदी की लकीरें,
चाँदी की, मेरी आँख़ों के सामने देखते-देखते इस सिर पर बर्फ छा रही है. आह! दुःख का
मारा मेरा यह सिर. देखो, कैसी हो गई हैं तुम्हारी आँखें! उनमें रेगिस्तान है...और
कन्धे, कन्धों पर कितना बोझ है...तोड़ दिया, तोड़ दिया है, उन्होंने तुम्हें,”
मार्गारीटा असम्बद्ध शब्द बड़बड़ाती रही, रोते-रोते वह काँपने लगी.
तब मास्टर ने अपनी आँखें पोंछी, मार्गारीटा को उठाया, खुद भी खड़ा
हो गया और निश्चयपूर्वक बोला, “बस! बहुत हुआ! तुमने मुझे लज्जित कर दिया. अब मैं
कभी साहस नहीं खोऊँगा और न इस बहस को कभी छेडूँगा; तुम भी शांत हो जाओ. मैं जानता
हूँ, हम दोनों अपनी मानसिक बीमारी के सताए हुए हैं! शायद मैंने अपनी मानसिकता
तुम्हें दे दी है...तो, हम सब कुछ साथ-साथ झेलेंगे...”
मार्गारीटा मास्टर के कान के निकट अपने होंठ लाते हुए फुसफुसाई,
“तुम्हारी जान की कसम, तुम्हारे द्वारा रचे गए भविष्यवेत्ता के बेटॆ की कसम, सब
कुछ ठीक हो जाएगा.”
मास्टर ने हँसते हुए कहा, “बस...बस, चुप करो. जब लोग पूरी तरह
लुट जाते हैं, जैसे कि हम, तो किसी ऊपरी ताकत में ही सहारा ढूँढ़ते हैं! ख़ैर, मैं
भी यह करने के लिए तैयार हूँ.”
वे दोनों ही सही थे. बुद्धिजीवियों को इतना सताया जाता था...उनकी
आत्मा को इस तरह कुचला जाता था ताकि वे सच न बोल सकें. यहाँ किन्हीं नामों का
ज़िक्र नहीं है, वह सिर्फ कहती है ‘उन्होंने’; मगर मतलब साफ़ है...यह एन.के.वे.दे.
के बारे में है.
मास्टर का कहना भी ठीक ही था कि जब हालात बहुत ही बिगड़ जाते हैं तो
उन्हें सही करने के लिए लोग दूसरी दुनिया की ताक़तों से सहायता माँगते हैं.
जैसे ही वे खाना शुरू करते हैं, अज़ाज़ेलो प्रवेश करता है. हमें
मालूम है कि उसे वोलान्द ने भेजा है सब कुछ ठीक-ठाक करने के लिए. चलिए, देखें कि
वह क्या करता है:
“इसी वक़्त खिड़की में एक नकीली आवाज़ सुनाई दी, “आपको सुख शांति
मिले!”
मास्टर काँप गया, मगर अब तक अजूबों की आदी हो चुकी मार्गारीटा
चिल्लाई, “हाँ, यह अज़ाज़ेलो है! आह, कितना अच्छा है, कितना प्यारा है यह अहसास!” वह
मास्टर के कान में फुसफुसाई, “देखो, वे हमें भूले नहीं हैं!” वह दरवाज़ा खोलने के
लिए भागी.
“तुम कम से कम स्वयँ को
ढाँक तो लो,” पीछे से मास्टर चिल्लाया.
“छोड़ो भी!” अब मार्गारीटा
प्रवेश-कक्ष में पहुँच चुकी थी.
अब अज़ाज़ेलो अभिवादन कर रहा
था, मास्टर से नमस्ते कह रहा था, उसे अपनी टेढ़ी आँख मार रहा था और मार्गारीटा खुशी
से चिल्लाई, “आह, मैं कितनी खुश हूँ! ज़िन्दगी में मैं इतनी खुश कभी नहीं हुई! मगर
माफ करना अज़ाज़ेलो, मेरे तन पर कपड़े नहीं हैं!”
अज़ाज़ेलो ने कहा कि वह परेशान न हो, उसने न केवल नंगी, बल्कि खाल
निकाली गई औरतें भी देखी है; और वह खुशी-खुशी टेबल के पास बैठ गया, और अँगीठी के
पास, कोने में, उसने काले किमख़ाब में लिपटा एक पैकेट रख दिया.
मार्गारीटा ने अज़ाज़ेलो के जाम में कोन्याक डाली, जिसे वह फौरन पी
गया. मास्टर उसे लगातार देखे जा रहा था और बीच-बीच में अपने टेबुल के नीचे अपने
बाएँ पैर में चुटकी भी काट लेता था. मगर चुटकियों से कोई लाभ नहीं हुआ. अज़ाज़ेलो
हवा में पिघल नहीं गया. इस लाल बालों वाले नाटॆ आदमी में कोई अजीब बात नहीं थी,
सिर्फ उसकी आँख कुछ सफेद थी; मगर यह ज़रूरी तो नहीं कि उसका जादू से कोई सम्बन्ध
हो. उसकी पोशाक भी साधारण ही थी – कोई चोगा, या कोट! अगर गौर से सोचा जाए तो ऐसा
भी होता है. कोन्याक भी वह सहजता से पी रहा था – अन्य सभी भले आदमियों की तरह,
गटागट, बिना कुछ खाए. इस कोन्याक से ही मास्टर का सिर घूमने लगा और वह सोचने लगा :
‘नहीं, मार्गारीटा सही
कहती है! मेरे सामने शैतान का दूत ही बैठा है. मैंने ही तो अभी परसों रात को इवान
के सामने सिद्ध किया था, कि वह पत्रियार्शी पर शैतान से मिला था और अब न जाने
क्यों इस ख़याल से डरकर सम्मोहनों और भ्रमों के बारे में बकने लगा. कहाँ के
सम्मोहक!’
वह अज़ाज़ेलो की ओर देखता रहा और उसे विश्वास हो गया कि उसकी
आँखों में कोई दृढ़ निश्चय है, कोई विचार है, जिसे वह सही समय आने तक नहीं बताएगा,.
‘वह सिर्फ मिलने के लिए नहीं आया है, उसे किसी विशेष काम से भेजा गया है,’ मास्टर
ने सोचा.
उसकी निरीक्षण शक्ति ने उसे धोखा नहीं दिया.
कोन्याक का तीसरा पैग पीकर, जिसका उस पर कोई असर नहीं हुआ, मेहमान
ने अपनी बात शुरू की, “यह तहखाना बड़ा आरामदेह है, शैतान मुझे ले जाए! सिर्फ एक ही
बात मैं सोच रहा हूँ, कि इसमें रहकर किया क्या जाए?”
“यही तो मैं भी कह रहा
हूँ,” मास्टर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
“तुम मुझे तंग क्यों कर
रहे हो, अज़ाज़ेलो?” मार्गारीटा ने पूछा, “कुछ भी कर लेंगे!”
“आप क्या कह रही हैं?”
अज़ाज़ेलो विस्मय से बोला, “मेरे दिमाग में आपको तंग करने का ख़याल भी नहीं आया. मैं
तो खुद ही कह रहा हूँ – कुछ भी कर लेंगे. हाँ! मैं तो भूल ही गया था, मालिक ने
आपको सलाम भेजा है, और बताने के लिए कहा है कि वे आपको अपने साथ एक छोटी-सी सैर पर
चलने की दावत देते हैं...बेशक...अगर आप चाहें तो. आप क्या कहती हैं?”
मार्गारीटा ने टेबुल के
नीचे मास्टर को पैर से धक्का दिया.
“बड़ी खुशी से,” मास्टर ने
अज़ाज़ेलो को पढ़ते हुए जवाब दिया.
अज़ाज़ेलो बोला, “हमें
उम्मीद है कि मार्गारीटा निकोलायेव्ना भी इनकार नहीं करेंगी?”
“मैं तो कभी भी इनकार नहीं
करूँगी,” मार्गारीटा ने जवाब दिया और उसका पैर फिर मास्टर के पैर पर रेंग गया.
अज़ाज़ेलो चहका, “बहुत खूब! मुझे यह अच्छा लगता है! एक-दो और हम
तैयार हैं! वर्ना तब...अलेक्सान्द्रोव्स्की पार्क में...अब वैसी बात नहीं है.”
“आह, उसकी याद न दिलाइए,
अज़ाज़ेलो! तब मैं बेवकूफ थी. मगर उसके लिए सिर्फ मुझे ही दोष नहीं देना चाहिए –
आख़िर कोई हर रोज़ तो शैतानी ताकत से मिलता नहीं है.”
“क्या बात है!” अज़ाज़ेलो ने
पुष्टि करते हुए कहा, “अगर हर रोज़ मिलता तो अच्छा होता!”
.........
“मैं फिर भूल गया...” अज़ाज़ेलो चिल्लाया और उसने अपने माथे पर हाथ
मारते हुए कहा, “एकदम भूल गया. मालिक ने आपके लिए उपहार भेजा है,” अब वह मास्टर से
मुखातिब था, “वाइन की यह बोतल. कृपया गौर कीजिए, यह वही शराब है जो जूडिया का
न्यायाधीश पीता था. फालेर्नो वाइन.”
स्वाभाविक रूप से इस अप्रतिम उपहार ने मास्टर एवम् मार्गारीटा का
ध्यान काफी आकर्षित किया. अज़ाज़ेलो ने काले किमखाब में लिपटी वह लबालब भरी बोतल
निकाली. शराब को सूँघकर उसे प्यालों में डाला गया, उसके आरपार से खिड़की से बाहर
तूफान से पूर्व लुप्त होते उजाले को देखा गया. यह भी देखा कि सब कुछ रक्तिम नज़र आ
रहा था.
“वोलान्द के स्वास्थ्य के
लिए!” मार्गारीटा गिलास उठाते हुए चहकी.
तीनों ने अपने-अपने गिलास होठों से लगाए और एक-एक बड़ा घूँट लिया.
मास्टर की आँखों के सामने से फौरन तूफान से पूर्व का प्रकाश लुप्त
होने लगा, उसकी साँस रुकने लगी, उसे महसूस हुआ कि अंत करीब है. उसने यह भी देखा कि
मुर्दे के समान पीली पड़ चुकी मार्गारीटा ने असहाय होकर उसकी ओर हाथ फैलाए, मेज़ पर
सिर पटका और फिर फर्श पर फिसलने लगी.
“ज़हरीले...” मास्टर
चिल्लाने में कामयाब हुआ. उसने मेज़ से चाकू उठाकर अज़ाज़ेलो पर वार करना चाहा, मगर
उसका हाथ निढ़ाल होकर मेज़पोश से नीचे गिर पड़ा, आसपास की सभी चीज़ें काली पड़ गईं, और
सब कुछ खो गया. वह पीठ के बल गिर पड़ा. गिरते-गिरते अलमारी से टकराने के कारण उसकी
कनपटी की चमड़ी छिल गई.
जब ज़हर के शिकार शांत हो गए, तो अज़ाज़ेलो ने अपना काम शुरू कर दिया.
सबसे पहले वह खिड़की से बाहर निकला और कुछ ही क्षणों में उस आलीशान घर में गया,
जहाँ मार्गारीटा रहती थी.
हमेशा ठीक-ठाक और सलीके से काम करने वाला अज़ाज़ेलो यह इत्मीनान कर लेना चाहता था कि
सब कुछ ठीक-ठाक हुआ या नहीं. और, सब कुछ एकदम सही हो गया था. अज़ाज़ेलो ने देखा कि
कैसे एक उदास, पति के लौटने की राह देखती हुई औरत अपने शयनगृह से निकली, एकदम पीली
पड़ गई, और सीना पकड़कर असहायता से चिल्लाई, “नताशा! कोई है...मेरे पास आओ!” वह
अध्ययन-कक्ष की ओर जाने से पहले ही ड्राइंगरूम में ज़मीन पर गिर पड़ी.
“सब ठीक-ठाक है,” अज़ाज़ेलो
ने कहा. अगले ही पल वह बेसुध पड़े प्रेमियों के पास था. मार्गारीटा मुँह के बल
कालीन पर गिरी थी. अपने फौलादी हाथों से अज़ाज़ेलो ने उसे मोड़ा, मानो किसी गुड़िया को
घुमा रहा बूँदेहो और उसकी ओर देखने लगा. देखते-देखते ज़हर दी गई महिला का चेहरा
उसकी आँखों के सामने बदलने लगा. उमड़कर आए तूफ़ानी अँधेरे में भी साफ दिख रहा था कि
कुछ समय के लिए चुडैलपन के कारण हुआ आँख का तिरछापन, क्रूरता के भाव और नाक-नक्श
की उन्मादकता गायब हो गए. मृत औरत के चेहरे पर जीवन के चिह्न दिखने लगे और आखिरकार
उसके चेहरे पर सौम्यता के भाव छा गए. उसके खुले हुए दाँत लोलुपता के बदले
स्त्री-सुलभ पीड़ा दर्शाने लगे. तब अज़ाज़ेलो ने उसके सफेद दाँतों को अलग किया और
उसके मुँह में उसी शराब की कुछ बूँदें टपकाईं, जिससे उसे मार डाला था. मार्गारीटा
ने आह भरी, अज़ाज़ेलो की सहायता के बगैर उठने लगी और बैठकर कमज़ोर आवाज़ में पूछने
लगी, “क्यों अज़ाज़ेलो, किसलिए? तुमने मुझे क्या कर दिया?”
उसने पड़े हुए मास्टर को देखा, वह काँपी और फुसफुसाई:
“मुझे इसकी उम्मीद नहीं
थी... हत्यारे!”
“नहीं, बिल्कुल नहीं,”
अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “अभी वह भी उठेगा. आह, आप इतनी निढ़ाल क्यों हो रही हैं?”
मार्गारीटा ने फौरन उसका विश्वास कर लिया, लाल बालों वाले शैतान का
स्वर ही इतना आश्वासक था, नार्गारीटा उछली, जीवित और शक्ति से भरपूर, और उसने पड़े
हुए मास्टर को शराब की बूँदें पिलाने में मदद की. आँखें खोलकर उसने निराशा से
इधर-उधर देखा और घृणा से वही शब्द दुहराया, “ज़हरीले...”
“आह! अच्छे काम का
पुरस्कार अक्सर अपमान ही होता है,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “क्या तुम अन्धे हो? मगर
जल्दी ही ठीक हो जाओगे.”
अब मास्टर उठा, स्वस्थ और स्वच्छ निगाहों से इधर-उधर देखकर पूछने
लगा, “इस नई हरकत का क्या मतलब है?”
“इसका मतलब है,”
अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “कि समय हो गया. बिजली कड़कने लगी है, सुन रहे हो न? अँधेरा
हो रहा है. घोड़े बिजली को रौंदते आ रहे हैं, नन्हा बगीचा काँप रहा है. इस तहखाने
से बिदा लो, जल्दी बिदा लो.”
“ओह, समझ रहा हूँ,” मास्टर
ने आँखें फाड़ते हुए कहा, “तुमने हमें मार डाला है, हम मृत हैं. आह, कितना अकलमन्दी
का काम किया! कितने सही समय पर किया! अब मैं आपको समझ गया.”
अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “कृपया...कृपया...क्या मैं आपको ही सुन रहा
हूँ? आपकी प्रियतमा आपको मास्टर कहती है, आप सोचिए, आप कैसे मर सकते हैं?
क्या अपने आपको ज़िन्दा समझने के लिए तहखाने में बैठना पड़ता है, कमीज़ और अस्पताल के
अंतर्वस्त्र पहनकर? यह अच्छा मज़ाक है!”
“जो कुछ आपने कहा, मैं सब
समझ गया,” मास्टर चिल्लाया, “आगे मत बोलिए! आप हज़ार बार सही हैं!”
मार्गारीटा पुष्टि करते हुए बोली, “महान वोलान्द! महान वोलान्द!
उसने मेरी अपेक्षा कई गुना अच्छी बात सोची. मगर सिर्फ उपन्यास, उपन्यास...” वह
मास्टर से चिल्लाकर बोली, “उपन्यास अपने साथ ले लो, चाहे कहीं भी उड़ो!”
“कोई ज़रूरत नहीं,” मास्टर
ने जवाब दिया, “मुझे वह ज़ुबानी याद है.”
“मगर, तुम एक भी
शब्द...क्या उसका एक भी शब्द नहीं भूलोगे?” मार्गारीटा ने प्रियतम से लिपटकर उसकी
कनपटी पर बहते खून को पोंछते हुए पूछा.
“घबराओ मत! अब मैं कभी भी,
कुछ भी नहीं भूलूँगा.” वह बोला.
“तब आग !....” अज़ाज़ेलो
चिल्लाया, “आग जिससे सब शुरू हुआ और जिससे हम सब कुछ खत्म करेंगे.”
“आग !” मार्गारीटा भयानक
आवाज़ में गरजी. तहखाने की खिड़की फट् से खुल गई, हवा ने परदा एक ओर को हटा दिया.
आकाश में थोड़ी-सी, प्यारी-सी कड़कड़ाहट हुई. अज़ाज़ेलो ने अँगीठी में हाथ डालकर जलती
हुई लकड़ी उठा ली और टेबुल पर पड़ा मेज़पोश जला दिया. फिर दीवान पर पड़े पुराने
अख़बारों को जला दिया. उसके बाद पाण्डुलिपि और खिड़की का परदा. भविष्य की सुखद
घुड़सवारी के नशे में मास्टर ने शेल्फ से एक किताब मेज़ पर फेंकी और उसके पन्ने
फाड़-फाड़कर जलते हुए मेज़पोश पर फेंकने लगा; किताब उस खुशगवार आग में भड़क उठी.
“जलो, जल जाओ, पुरानी
ज़िन्दगी!”
“जल जाओ, दुःखों और
पीड़ाओं!” मार्गारीटा चिल्लाई.
कमरा लाल-लाल लपटों से भर गया और धुएँ के साथ-साथ तीनों दरवाज़े से
बाहर भागे, पत्थर की सीढ़ी पर चढ़कर वे आँगन में आए. सबसे पहली चीज़ जो उन्होंने
देखी, वह थी कॉंट्रेक्टर की बावर्चिन., जो ज़मीन पर बैठी थी. उसके निकट पड़ा था
आलुओं और प्याज़ का ढेर. बावर्चिन की हालत देखने लायक थी. तीन काले घोड़े मकान के
निकट हिनहिना रहे थे, अपने खुरों से मिट्टी उछाल रहे थे, थरथरा रहे थे. सबसे पहले
मार्गारीटा उछलकर बैठी, उसके बाद अज़ाज़ेलो, अंत में मास्टर.
बावर्चिन ने कराहते हुए सलीब का निशान बनाने के लिए हाथ उठाया, मगर
घोड़े पर बैठा हुआ अज़ाज़ेलो दहाड़ा, “हाथ काट दूँगा!” उसने सीटी बजाई और घोड़े लिण्डन
की टहनियों को तोड़ते, आवाज़ करते हुए ऊपर उड़े और काले बादल में समा गए. तभी तहखाने
की खिड़की से धुआँ बाहर निकला. नीचे से बावर्चिन की पतली, कमज़ोर चीख सुनाई दी,” जल
रहे हैं!”....
घोड़े मॉस्को के घरों की छतों पर जा चुके थे.
पूरा वातावरण सनसना रहा है....घटनाएँ इतनी तेज़ी से घटित हो रही हैं
कि पाठक भी अपनी साँस थामे देखता है कि आगे क्या होने वाला है...
मास्टर
इवान से बिदा लेना चाहता है, इसलिए वे स्त्राविन्स्की के अस्पताल में आते हैं:
“मैं शहर से बिदा लेना चाहता हूँ,” मास्टर ने अज़ाज़ेलो से चिल्लाकर
कहा, जो सबसे आगे छलाँगें भरता जा रहा था. बिजली की कड़क मास्टर के वाक्य के अंतिम
हिस्से को निगल गई. अज़ाज़ेलो ने सिर हिलाया और अपने घोड़े को चौकड़ी भरने दी. उड़ने
वालों के स्वागत के लिए एक बादल तैरता हुआ आया, मगर उसने अभी पानी का छिड़काव नहीं
किया.
वे दुतर्फा पेड़ों वाले रास्ते पर उड़ने लगे, देखा कि कैसे लोगों की
नन्ही-नन्ही आकृतियाँ बारिश से बचने के लिए इधर-उधर भाग रही हैं. पानी की बूँदें
गिरना शुरू हो गई थीं. वे धुएँ के बादल के ऊपर होकर उड़ रहे थे – यही थे
ग्रिबोयेदोव के अवशेष. वे शहर के ऊपर उड़े, जिसे अब अँधेरा निगल चुका था. उनके ऊपर
बिजलियाँ चमक रही थीं. फिर मकानों की छतों का स्थान हरियाली ने ले लिया. तब बारिश
ने उन्हें दबोच लिया; वे तीनों उड़ती हुई आकृतियाँ पानी से लबालब गुब्बारे जैसी
लगने लगीं.
मार्गारीटा को पहले भी उड़ने का अनुभव था, मगर मास्टर को – नहीं.
उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वह अपने लक्ष्य के निकट कितनी जल्दी पहुँच गया – यानी
उसके पास, जिससे वह बिदा लेना चाहता था. बारिश की चादर में उसने स्त्राविन्स्की के
अस्पताल की बिल्डिंग को पहचान लिया; नदी और उसके दूसरे किनारे पर स्थित लिण्डेन के
वन को भी उसने पहचान लिया, जिसे वह भली-भाँति जानता था. वे अस्पताल से कुछ दूर
झाड़ी में उतरे.
“मैं तुम्हारा यहाँ इंतज़ार
करूँगा,” अज़ाज़ेलो हाथ मोड़े बिजली की रोशनी में कभी प्रकट होते और कभी लुप्त होते
चिल्लाया, “अलबिदा कहकर आओ, मगर जल्दी.”
मास्टर और मार्गारीटा घोड़ों से उतरे और पानी के बुलबुलों की तरह
उड़ते-उड़ते अस्पताल के बगीचे के ऊपर से आगे बढ़ गए. एक क्षण के बाद मास्टर ने सधे
हुए हाथों से 117 नं. कमरे की बालकनी में खुलने वाली जाली के दरवाज़े को खोला,
मार्गारीटा उसके पीछे-पीछे गई. वे इवानूश्का के कमरे में घुसे. बिना दिखे. बिजली
कड़क रही थी. मास्टर पलंग के पास रुका.
इवानूश्का चुपचाप लेटा हुआ था. उसी तरह जैसे तब लेटा था, जब उसने
पहली बार अपने इस विश्राम गृह में तूफान देखा था. लेकिन वह उस बार जैसे रो नहीं
रहा था. जब उसने देखा कि कैसे एक काला साया बालकनी से उसकी ओर बढ़ा आ रहा है, तो वह
उठ पड़ा और खुशी से हाथ फैलाकर बोला, “ओह, यह आप हैं! मैंने आपका कितना इंतज़ार
किया. आख़िर आ ही गए, मेरे पड़ोसी.”
इस पर मास्टर ने जवाब दिया, “मैं यहाँ हूँ! मगर अफ़सोस कि अब मैं
तुम्हारा पड़ोसी नहीं बना रह सकता. मैं हमेशा के लिए उड़कर जा रहा हूँ और सिर्फ
तुमसे बिदा लेने आया हूँ.”
“मैं जानता था, मुझे
अन्दाज़ था...” इवान ने हौले से कहा और उसने पूछा, “क्या आप उससे मिले?”
“हाँ,” मास्टर ने कहा,
“मैं तुमसे बिदा लेने इसलिए आया हूँ क्योंकि तुम्हीं एक आदमी हो जिससे मैंने पिछले
दिनों बातें की हैं.”
इवानूश्का का चेहरा खिल उठा और वह बोला, “यह ठीक किया कि आप यहाँ
उड़ते हुए आए. मैं अपने वचन का पालन करूँगा, अब कभी कविता नहीं लिखूँगा. अब मुझे एक
दूसरी चीज़ में दिलचस्पी हो गई है,” इवानूश्का मुस्कुराया और वहशियत भरी आँखों से
मास्टर के परे देखने लगा, “मैं कुछ और लिखना चाहता हूँ. जानते हैं, यहाँ लेटे-लेटॆ
मैं काफी कुछ समझ गया हूँ.”
मास्टर इन शब्दों को सुनकर परेशान हो गया और इवानूश्का के पलंग के
किनारे पर बैठकर बोला, “यह ठीक है, अच्छा है. तुम उसके बारे में आगे लिखोगे!”
इवानूश्का की आँखें फटी रह गईं, “क्या तुम खुद नहीं लिखोगे?” उसने
सिर झुकाया और सोच में डूबकर बोला, “ओह, हाँ...मैं यह क्या पूछ रहा हूँ!”
“हाँ,” मास्टर ने कहा और
इवानूश्का को उसकी आवाज़ खोखली और अपरिचित लगी, “मैं अब उसके बारे में नहीं
लिखूँगा. मुझे और काम करना है.”
दूर से एक सीटी तूफान के
शोर को चीरती हुई आई.
“तुम सुन रहे हो?” मास्टर
ने पूछा.
“तूफ़ान का शोर...”
“नहीं, यह मुझे बुला रहे
हैं, मेरा समय हो गया,” मास्टर ने समझाया और वह पलंग से उठ पड़ा.
“थोड़ा रुकिए! एक और
बात...” इवान ने विनती की, “क्या आपको वह मिली? वह आपके प्रति वफादार रही?”
“यह रही वो...” मास्टर ने
जवाब देते हुए दीवार की ओर इशारा किया. सफेद दीवार से अलग होती हुई काली
मार्गारीटा पलंग के निकट आई. उसने लेटॆ हुए नौजवान की ओर देखा और उसकी आँखों में
करुणा झलक आई.
“ओह, बेचारा, गरीब!”
मार्गारीटा अपने आप से फुसफुसाई और पलंग की ओर झुकी.
“कितनी सुन्दर है!” बिना
ईर्ष्या के, मगर दुःख और कुछ कोमलता से इवान ने कहा, “देखते हो, तुम्हारा सब कुछ
कैसे अच्छा हो गया. मगर मेरे साथ तो ऐसा नहीं है,” वह कुछ देर सोचकर आगे बोला, “और
शायद, हो सकता है, कि ऐसा...”
“हो सकता है, हो सकता है,”
मार्गारीटा फुसफुसाई और लेटे हुए नौजवान पर झुककर बोली, “मैं तुम्हारा माथा
चूमूँगी और तब सब कुछ वैसा ही होगा, जैसे होना चाहिए...तुम इस पर विश्वास रखो,
मैंने सब देखा है, सब जानती हूँ.”
लेटे हुए नौजवान ने अपने
हाथों से उसके कन्धों को पकड़ा और उसने उसे चूमा.
“अलबिदा, मेरे
विद्यार्थी,” मास्टर ने धीरे से कहा और वह हवा में पिघलने लगा. वह गायब हो गया,
उसके साथ ही मार्गारीटा भी आँखों से ओझल हो गई. बालकनी की जाली बन्द हो गई.
इवानूश्का परेशान हो गया. वह पलंग पर बैठ गया, उत्तेजना से इधर-उधर
देखने लगा, कराहने लगा, अपने-आप से बातें करने लगा, उठकर खड़ा हो गया. तूफान का ज़ोर
बढ़ता जा रहा था. शायद वही इवान को भयभीत कर रहा था. उसे इस बात से भी घबराहट हो
रही थी कि उसके दरवाज़े के पीछे जहाँ हमेशा खामोशी रहती थी, उसे घबराहट भरे कदमों
की आहट सुनाई दे रही थी; धीमी-धीमी आवाज़ें भी आ रही थीं. उसने काँपते हुए पुकारा,
“प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना!”
प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना कमरे में आ गई और चिंता से, प्रश्नार्थ
नज़रों से इवानूश्का को देखने लगी.
“क्या है? क्या हुआ?” उसने
पूछा, “तूफान से डर लग रहा है? कोई बात नहीं, कोई बात नहीं...अभी आपकी मदद करते
हैं. अभी मैं डॉक्टर को बुलाती हूँ.”
“नहीं, प्रास्कोव्या
फ्योदोरोव्ना, डॉक्टर को बुलाने की कोई ज़रूरत नहीं है,” इवानूश्का ने परेशानी से
प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना के बदले दीवार की ओर देखते हुए कहा, “मुझे कोई खास
तकलीफ नहीं है; आप घबराइए मत, मैं सब समझ रहा हूँ. आप कृपया मुझे बताइए...” इवान
ने तहेदिल से कहा, “वहाँ, बगल में, एक सौ अठाहर नम्बर के कमरे में अभी क्या हुआ?”
“एक सौ अठारह में?”
प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना ने सवाल ही पूछ लिया और वह इधर-उधर आँखें दौड़ाने लगी,
“वहाँ कुछ भी तो नहीं हुआ!”
मगर उसकी आवाज़ साफ झूठी मालूम हो रही थी, इवानूश्का ने इसे फौरन
ताड़ लिया और बोला, “ए...प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना! आप इतनी सच्ची इंसान हैं...आप
समझ रही हैं, मैं कोई हंगामा करूँगा? बदहवास हो जाऊँगा? नहीं, प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना,
ऐसा नहीं होगा. आप सच-सच बताइए. मैं दीवार के इस पार से सब महसूस कर रहा हूँ.”
“अभी आपका पड़ोसी खत्म हो
गया!” प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना फुसफुसाई, अपनी भलमनसाहत और सच्चाई को वह रोक
नहीं पाई, और बिजली की रोशनी में नहाई, डरी-डरी आँखों से इवानूश्का की ओर देखने
लगी.
मगर इवानूश्का के साथ कोई भी भयानक बात नहीं हुई. उसने आसमान की ओर
अर्थपूर्ण ढंग से उँगली उठाई और बोला, “मुझे मालूम था कि यही होगा! मैं
विश्वासपूर्वक आपसे कहता हूँ, प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना, कि अभी-अभी शहर में भी
एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है. मुझे यह भी मालूम है, किसकी...” इवानूश्का ने
रहस्यपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा, “यह एक औरत है!”
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