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रविवार, 29 जुलाई 2012

Discussion on M&M (Hindi) - Chapter 12


अध्याय 12

पोस्टरों में लिखा गया था कि शाम को वेरायटी थियेटर में “काला जादू और उसका पर्दाफ़ाश” नामक शो होने वाला है – कार्यक्रम के दूसरे भाग में.


वेरायटी का हॉल खचाखच भरा था.


कार्यक्रम का आरम्भ जूली और उसके परिवार द्वारा दिखाए गए छोटे-मोटे कारनामों से हुआ.
लोग काफ़ी उत्तेजित हैं और वे बेसब्री से काले जादू वाले शो का इंतज़ार कर रहे हैं.


सिर्फ एक व्यक्ति जो इस पूरी चीज़ से बहुत उद्विग्न प्रतीत हो रहा है, वह है वेरायटी का वित्तीय डाइरेक्टर – रीम्स्की. वह अपने कैबिन में अकेला बैठा है और निराशा से अपने होठ काट लेता है. कभी-कभी उसका चेहरे पर भय की सिहरन दौड़ जाती है. वह इस बात से डर गया है कि स्त्योपा के गायब होने के बाद अब वारेनूखा भी गुम हो गया है. रीम्स्की महसूस कर रहा था कि इन दोनों घटनाओं में कोई न कोई सम्बन्ध ज़रूर है.


उसे इस बात पर अचरज हो रहा था कि वारेनूखा उस जगह से वापस क्यों नहीं लौटा था जहाँ उसे टेलिग्राम्स देकर भेजा गया था? वह उन्हें फोन करके यह मालूम करने का फैसला नहीं कर पा रहा था कि वारेनूखा वहाँ पहुँचा भी था अथवा नहीं. आख़िर रात के दस बजे उसने वहाँ फोन करने का निश्चय कर ही लिया, मगर पता चला कि टेलिफोन ख़ामोश पड़ा है, पता चला कि वेरायटी के सारे टेलिफोन ही काम नहीं कर रहे थे. हालाँकि रीम्स्की इस बात से थोड़ा घबरा ज़रूर गया मगर साथ ही उसे ख़ुशी भी हुई कि वह उन्हें फोन करने से बच गया था.
पहले अंतराल के दौरान रीम्स्की को सूचित किया गया कि विदेशी कलाकार अपनी मण्डली के साथ पहुँच गया है. उसे कलाकार का स्वागत करने के लिए जाना ही पड़ता है क्योंकि वेरायटी में उनका स्वागत करने के लिए कोई बचा ही नहीं था.


वोलान्द अपने दुभाषिए और एक अकराल-विकराल बिल्ले के साथ आया था. दुभाषिए की उपस्थिति भी रीम्स्की को अच्छी नहीं लगी. विदेशी कलाकार के इस सहायक / दुभाषिए की कुछ जादुई करामातें वहाँ इकट्ठा लोगों को बहुत पसन्द आईं; बिल्ले ने भी उन्हें बहुत प्रभावित किया जिसने अपने पिछले पैरों पर चल कर जग में से गिलास में पानी डालकर पिया.
जब तीसरी घण्टी बजी और हॉल की बत्तियाँ बुझ गईं तो कार्यक्रम के सूत्रधार जॉर्ज बेंगाल्स्की ने कलाकारों का परिचय कराया, काले जादू के बारे में बताया और यह टिप्पणी की कि विदेशी कलाकार काले जादू की तकनीक का पर्दाफ़ाश करेंगे...


परदा खुलता है; जादूगर अपने दो सहायकों : चौखाने वाले लम्बू और अपने पिछले पैरों पर चलते हुए भीमकाय बिल्ले के साथ प्रवेश करता है. पब्लिक ने ज़ोरदार तालियाँ बजाईं...


जादूगर अपने लिए एक कुर्सी मँगवाता है, न जाने कहाँ से एक बदरंग कुर्सी प्रकट हो जाती है. उस पर बैठकर वोलान्द कुछ देर तक दर्शकों का निरीक्षण करता है और अपने सहायक से पूछता है, 


“प्रिय फागोत, क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि मॉस्को के लोग काफी बदल गए हैं?”


फागोत (जो कि वास्तव में कोरोव्येव है) सहमति में सिर हिला देता है.
वोलान्द टिप्पणी करता है कि मॉस्को में बहुत परिवर्तन हो गया है: लोग अच्छी वेष-भूषा में हैं, ट्रामगाड़ियाँ, कारें, बसेस...”


बेंगाल्स्की बीच में टपक पड़ता है और कहता है कि विदेशी कलाकार मॉस्को की तकनीकी प्रगति से बहुत विस्मित जान पड़ते हैं, साथ ही मॉस्कोवासियों ने भी उन्हें काफ़ी प्रभावित किया है.
वोलान्द को गुस्सा आ जाता है, वह फागोत से पूछता है कि क्या उसने विस्मय का प्रदर्शन किया था?


फागोत इनकार करता है और फ़ब्ती कसता है कि बेंगाल्स्की झूठा है...


बेंगाल्स्की पर मुसीबत टूट पड़ती है.


अगला कार्यक्रम, ताश के पत्तों के साथ, बड़ा दिलचस्प हो गया जब ताश के पत्ते करेंसी नोटों में बदल जाते हैं, हॉल में नोटों की बारिश होने लगती है और लोगों के बीच उन्हें पकड़ने के लिए होड़ लग जाती है.  बेंगाल्स्की फिर से टिप्पणी करता है कि ये काले जादू का एक नमूना था और ये नोट शीघ्र ही गायब हो जाएँगे.

अब तो वोलान्द को सचमुच ही बहुत गुस्सा आ जाता है...फागोत दर्शकों से कहता है कि ये झूठा मुझे बहुत तंग कर रहा है, इसके साथ क्या सलूक किया जाए? भीड़ में से एक आवाज़ आती है, “इसका सिर काट दो!” फागोत मान जाता है और बेगेमोत (बिल्ले) को आवाज़ देता है. अगले ही पल बिल्ला उछल कर बेंगाल्स्की की गर्दन पर चढ़ जाता है और दो ही बार घुमा कर गर्दन से उसका सिर उखाड़ लेता है!


टूटी हुई नसों से फ़व्वारे की तरह खून उछलता है और बेंगाल्स्की के कोट को भिगोने लगता है...बेसिर का धड़ कुछ देर लड़खड़ाता है और फिर स्टेज पर धम् से बैठकर विनती करने लगता है, “प्लीज़, मेरा सिर वापस दे दो...मुझसे सब कुछ ले लो...मेरा फ्लैट, मेरी तस्वीरें...बस, मेरा सिर मुझे लौटा दो!...”

हॉल में महिलाओं की चीख-पुकार, आदमियों का हो-हल्ला गूँजने लगा... लोगों को उस पर दया आ गई, वे कहने लगे कि उसे उसका सिर वापस कर दिया जाए...

फागोत वोलान्द से पूछता है, “क्या हुक्म है, मेरे आका?”

वोलान्द कहता है, “ ये लोग साधारण लोगों की तरह ही हैं. उन्हें पैसे से प्यार है...मगर कभी-कभी उनके दिल में दया भी जागती है...आवास की समस्या ने उन्हें बिगाड़ दिया है...” और वह हुक्म देता है कि बेंगाल्स्की का सिर अपनी जगह पर वापस रख दिया जाए.

बेंगाल्स्की को ये ताक़ीद दी जाती है कि आइन्दा वह हर जगह अपनी झूठी नाक नहीं घुसेड़े...फिर उसका सिर वापस उसकी गर्दन पर रख दिया जाता है, कोट को साफ़ कर दिया जाता है और उसकी जेब में नोटों की एक गड्डी डालकर उसे हॉल से बाहर भेज दिया जाता है, मगर अचानक उसकी तबियत बिगड़ जाती है और उसे स्त्राविन्स्की के क्लीनिक ले जाया जाता है.

इसके पश्चात महिलाओं के लिए मीना-बाज़ार खुल जाता है. इस बाज़ार में महिलाओं को उनके पुराने कपड़ों और जूतों के बदले अत्याधुनिक फैशन के कपड़े, जूते और पर्सेस दिए जाते हैं. साथ ही परफ्यूम की शीशी भी दी जाती है...

इस भाग के कार्यक्रम की समाप्ति पर मॉस्को की ध्वनि संयोजन समिति का चेयरमैन, जो वहाँ शो में उपस्थित था, यह माँग करता है कि इन कारनामों का परदाफाश किया जाए, साथ ही बेंगाल्स्की की हालत के बारे में भी जनता को बताया जाए...

मगर यह परदाफाश स्वयँ चेयरमैन के लिए ही बहुत भारी पड़ता है....पूरे हॉल में सैकड़ों दर्शकों के सामने यह भेद खुल जाता है कि अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव के प्रवासी थियेटर की एक महिला कलाकार से घनिष्ठ सम्बन्ध हैं और इन्हीं सम्बन्धों की बदौलत उसे नाटकों में महत्वपूर्ण रोल दिए जाते हैं, जबकि अनेक योग्य कलाकार मौके की प्रतीक्षा करते ही रह जाते हैं...

बुल्गाकोव थियेटर जगत की असलियत को उजागर करते हैं; आवास समस्या के कारण लोगों का बर्ताव किस तरह बदल जाता है यह भी बताते हैं...

अचानक बेगेमोत घोषणा करता है कि शो समाप्त हो गया है और एक ही पल में स्टेज खाली हो जाता है, बेगेमोत और कोरोव्येव मानो हवा में घुल जाते हैं; पुलिस सिम्प्लेयारोव के बॉक्स में घुस जाती है जहाँ उसकी एक रिश्तेदार, एक युवा संघर्षरत कलाकार, ज़हरीली हँसी के ठहाके लगाते हुए इस परदाफ़ाश पर अपनी छत्री से सिम्प्लेयारोव पर वार किए जा रही है, और सिम्प्लेयारोव की भीमकाय बीबी गरजते हुए पुलिस को बुला रही है...

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