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सोमवार, 6 अगस्त 2012

Discussion on M&M (Hindi) - Chapter 13.1


अध्याय 13.1

कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि इवान बेज़्दोम्नी उपन्यास का नायक है? तब तो आपको निराश होना पड़ेगा!

तेरहवाँ अध्याय नायक के बारे में है – हीरो का प्रवेश – यह है इस अध्याय का शीर्षक. और, वह कहाँ से आता है? इवान को स्त्राविन्स्की के क्लीनिक के कमरा नं. 117 में रखा गया है...गुरुवार की शाम को, जब इवान की मनोदशा में परिवर्तन हो रहा है, जब अँधेरा छाने लगा है; जब इवान ऊँघ रहा है; जब उसे सपने में अपने क़रीब से गुज़रता हुआ मोटा बिल्ला दिखाई देता है तब एक रहस्यमय आकृति बालकनी से प्रविष्ट होती है और उँगली से धमकाते हुए इवान को ख़ामोश रहने के लिए कहती है.

इवान घबराता नहीं है. वह एक सफ़ाचट दाढी-मूँछ वाले व्यक्ति को देखता है जिसके बाल काले थे, नाक तीखी, बदहवास आँखों से वह कमरे में झाँक रहा है. उसकी आयु करीब 38 वर्ष की थी; बालों की लट माथे पर लटक रही थी.

आपने अनुमान लगा लिया होगा कि यह गोगोल की तस्वीर है. उम्र वही बताई गई है जितनी बुल्गाकोव की उस समय थी (जन्म 1991). आपको यह भी याद आ गया होगा कि गोगोल का भी मानसिक उपचार किया गया था. ..’मृत आत्माओं’ के बाद उन्हें शासकीय अधिकारियों द्वारा इतना सताया गया था कि वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे. निकोलाय गोगोल बुल्गाकोव के प्रिय लेखक थे, अतः हम कह सकते हैं कि बुल्गाकोव ने इस चित्रण के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है, यह दिखाकर कि सुयोग्य लेखकों को कितना कष्ट उठाना पड़ता था.

इस अध्याय के कथानक को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं: समकालीन साहित्य पर टिप्पणियाँ; नायक का जीवन और सोवियत समाज में सुयोग्य लेखकों को दी जा रही यातनाएँ.

हम हर पहलू पर विचार करेंगे.

तो, जब अजनबी कमरा नं. 117 में प्रवेश करता है तो वह इवान को बताता है कि उसने कैसे प्रास्कोव्या फ्योदोरोव्ना का चाभियों का गुच्छा पार कर लिया और इस वजह से वह कैसे अपने पड़ोसी से मिल सकता है. मगर बाल्कनी की चाभियाँ हाथ में होने पर भी वह इस जगह से भागने के बारे में सोचता भी नहीं है क्योंकि उसका कोई ठौर-ठिकाना ही नहीं है. इसके बाद उनकी बातचीत शुरू हो जाती है. अजनबी इवान से पूछता है कि वह आक्रामक तो नहीं है, और जब इवान उसे बताता है कि कल उसने रेस्तराँ में एक आदमी का थोबड़ा तोड़ दिया तो मेहमान उसे चेतावनी देता है कि ऐसा नहीं चलेगा, इवान को यह आदत छोड़नी पड़ेगी...मगर उसे इवान के ‘थोबड़ा’ शब्द के प्रयोग पर आपत्ति थी. वह ज़ोर देकर कहता है कि आदमी के पास ‘चेहरा’ होता है, न कि ‘थोबड़ा’! यहाँ बुल्गाकोव फॉर्मेलिस्टस (रूपवादियों) के, विशेषतः फ्यूचरिस्ट्स (भविष्यवादियों) के शब्द प्रयोग पर ताना कस रहे हैं. उनका ख़ास निशाना है मायाकोव्स्की, जिसकी कविताओं में ‘थोबड़ा’ शब्द का प्रयोग कई बार हुआ है.

और, जब इवान उसे बताता है कि वह एक कवि है, तो मेहमान दुखी हो जाता है. ज़ाहिर है कि उसे लेखक, कवि, आलोचक... अच्छे नहीं लगते...फिर इवान का उपनाम ‘बेज़्दोम्नी’ भी , जो तत्कालीन फैशन के अनुरूप था, उसे नाराज़ कर देता है.

जब इवान उससे पूछता है कि क्या उसे इवान की कविताएँ अच्छी लगती हैं, तो मेहमान इनकार कर देता है. इवान के इस प्रश्न पर कि “आपने मेरी कौनसी कविताएँ पढ़ी हैं?” वह कहता है, “एक भी नहीं. मगर मुझे बताओ, कि क्या वे औरों की कविताओं जैसी ही नहीं हैं?” यहाँ हम देखते हैं कि बुल्गाकोव का इशारा प्रचार- साहित्य की ओर है, जो किसी साँचे से ढला हुआ प्रतीत होता था...

तब इवान वादा करता है कि वह लिखना बिल्कुल छोड़ देगा.

जब मेहमान को पता चलता है कि इवान यहाँ पोंती पिलात के कारण आया है, तो वह इवान के साथ पत्रियार्शी पर हुई घटना को जानने के लिए उत्सुक हो उठता है. वह इवान को बताता है कि असल में पत्रियार्शी पर उसकी मुलाकात शैतान से हुई थी.

वह इवान को बतलाता है कि वह भी पोंती पिलात ही के कारण स्त्राविन्स्की के क्लीनिक में आया है और तब वह अपनी कहानी इवान को सुनाता है...

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