अध्याय - 13.3
उपन्यास के एक बड़े अंश के एक पत्रिका में
प्रकाशित होने के बाद विभिन्न अख़बारों में लेखक विरोधी लेखों की मानो बरसात होने
लगी – वे सभी लेखक को कोस रहे थे जिसने येशू के औचित्य को सिद्ध करने की जुर्रत की
थी.
दिन प्रतिदिन ऐसे लेखों की संख्या बढ़ती
जाती थी और वे अधिकाधिक तीव्र निषेधात्मक, अधिकाधिक ज़हरीले, अधिकाधिक तीखे होते
जाते थे...(अगर आपको बोरिस पास्तरनाक के उपन्यास
‘डॉ. झिवागो’ से सम्बन्धित घटनाओं की याद है, तो आप शीघ्र ही इस प्रसंग को
समझ जाएँगे).
पहले तो मास्टर इन लेखों पर हँस देता,
उन्हें अनदेखा कर देता; मगर फिर उसे इन पर आश्चर्य होने लगा. वह समझ रहा था कि इन
लेखों के लेखक वह नहीं कह रहे हैं जो वे कहना चाहते हैं. वे अधिकाधिक आक्रामक होते
जा रहे थे, उनकी शैली अधिकाधिक धमकाने वाली होती जा रही थी; हर कोई मास्टर की कड़ी
निन्दा कर रहा था.
तीसरी अवस्था थी भय की. मास्टर को हर चीज़
से डर लगने लगा. उसे अँधेरे से डर लगने लगा. उसे ऐसा लगता मानो अँधेरे में कोई
ऑक्टोपस उसकी ओर बढ़ा आ रहा है जो अपने तंतुओं से उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा है. संक्षेप
में यह मानसिक रोगी की अवस्था थी.
मास्टर की प्रियतमा भी बहुत बदल गई थी; वह
बड़ी दुखी थी – अपने आप को कोसती रहती कि न वह उपन्यास के एक अंश को छपवाने की ज़िद
करती और न ही मास्टर पर यह कहर टूट पड़ता.
मानसिक हताशा की ऐसी स्थिति में मास्टर ने
एक दिन अपने उपन्यास को अँगीठी में झोंक दिया...मगर अचानक उसकी प्रियतमा रात को आ
गई और उसने कुछ पन्नों को जलने से बचा लिया. उसने कहा कि वह अगली सुबह को अपने पति
को सूचित करके उसके पास हमेशा के लिए आ जाएगी. तब तक के लिए वह मास्टर से विनती
करती है कि वह कोई दुःस्साहस भरा कदम न उठाए.
यह हुआ अक्टूबर के मध्य में.
उसके जाने के बाद दरवाज़े पर टकटक हुई.
इसके पश्चात् मास्टर ने
इवान को जो भी बताया वह पाठकों तक नहीं पहुँचा. वह इवान के कान में फुसफुसाकर कह
रहा था...भय से काँप रहा था; उसकी आँखों में दहशत थी...
और जनवरी के मध्य में वह
फिर अपने घर के आँगन में था, उसी कोट में जिसके बटन अब टूट चुके थे, ठण्ड से
काँपते हुए.
मगर उसके घर में कोई और
रहने आ गया था. वह एक कुत्ते से डर गया जो उसके पैरों के बीच आ गया था; उसने ट्राम
के नीचे अपनी जान दे देने का इरादा किया और ट्राम की पटरियों की ओर चल पड़ा. मगर वह
निकट आती हुई ट्राम से भी डर गया और वहाँ से भाग निकला.
एक ट्रक ड्राइवर को, जो
इसी तरफ आ रहा था, उस पर दया आ गई और वह उसे स्त्राविन्स्की क्लिनिक ले आया.
यहाँ उस पर उपचार किया गया,
उसकी जमी हुई उँगलियों को ठीक कर दिया गया.
इस क्लिनिक में वह पिछले
चार महीनों से है, और अब उसे यहाँ उतना बुरा नहीं लगता.
जब इवान ने पूछा कि उसने
अपनी प्रियतमा को अपने बारे में खबर क्यों नहीं दी, तो मास्टर जवाब देता है कि वह
उसे यह बताकर दुखी नहीं करना चाहता कि वह स्त्राविन्स्की के क्लिनिक में है और उस
पर मानसिक उपचार किए जा रहे हैं.
अपने उपन्यास की याद से
ही वह सिहर उठता है...
जब इवान उससे यह बताने की
विनती करता है कि पोंती पिलात और येशुआ-हा-नोस्त्री का आगे क्या हुआ तो मास्टर
जवाब देता है कि जो उसे पत्रियार्शी पार्क में मिला था वही इस सवाल का भली-भाँति
जवाब दे सकता है.
जब वे बातें कर रहे थे तो
अस्पताल के कॉरीडोर में दो बार गहमा-गहमी हुई. मास्टर जाकर देख आया और उसने बताया
कि कमरा नं. 119 में एक लाल मोटे को लाया गया है जो रोशनदान में छुपाए गए किन्हीं
नोटों के बारे में बात कर रहा है; और कमरा नं. 120 में एक व्यक्ति को लाया गया है
जो अपना सिर लौटाने के बारे में प्रार्थना कर रहा है.
आधी रात गुज़र चुकी थी जब
इवान को छोड़कर मास्टर वापस गया.
गुरुवार समाप्त हो गया
है...मगर हमें अभी तक यह मालूम नहीं है कि उस रात मॉस्को में और क्या क्या हुआ.
जाते-जाते मास्टर ने यह
कहा कि इन्सान को बड़ी बड़ी योजनाएँ नहीं बनानी चाहिए, “मैं पूरी दुनिया देखना चाहता
था, मगर मैं यहाँ आ गया. दुनिया का यह हिस्सा बुरा तो नहीं है, मगर वह सबसे
बेहतरीन भी नहीं है.”
असल में बुल्गाकोव स्वयँ
सोवियत संघ से बाहर जाना चाहते थे, मगर उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी गई और उन्हें
पूरी उम्र सोवियत संघ में ही रहना पड़ा.
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