मास्टर और मार्गारीटा – 08.2
अब महिला ने इवान को पुरुष के हवाले कर दिया, और उसने बिल्कुल भिन्न रुख अपनाया. उसने इवान से कुछ भी नहीं पूछा, उसने इवान के बदन का तापमान देखा, उसकी नब्ज़ देखी, इवान की आँखों में झाँका, उन पर किसी लैम्प से रोशनी फेंकी. अब पुरुष की सहायता के लिए दूसरी महिला आगे बढ़ी; इवान की कमर में कुछ चुभोया गया, मगर दर्द का अहसास नहीं हुआ, उसके सीने पर एक छोटे-से हथौड़े से कुछ निशान बनाए गए. हथौड़े से घुटनों पर चोट की गई, जिससे इवान की टाँगें उछलने लगीं, उँगली में कुछ चुभोकर उसमें से खून निकाला गया, कुहनियों में भी कुछ चुभोया गया, हाथों में रबर के कंगन पहनाए गये.
इवान मन ही मन कड़वाहट से मुस्कुराया और सोचने लगा कि इस सब का अंत कैसे विचित्र और बेवकूफ़ी भरे ढंग से हो रहा है. ज़रा सोचिए! कहाँ तो वह सबको अजनबी सलाहकार के सम्भावित ख़तरे से आगाह करने चला था, उसे पकड़ने चला था और कहाँ ख़ुद इस रहस्यमय कमरे में आ टपका और अपने चाचा फ़्योदर के बारे में सब बेवकूफ़ियाँ बताने लगा, जो वलोग्दा में शराब के नशे में धुत रहता था. ओफ, यह बेवकूफी बर्दाश्त नहीं होती!
आख़िरकार इवान को छोड़ दिया गया. उसे वापस अपने कमरे में ले जाया गया, जहाँ उसे मक्खन लगी ब्रेड, दो आधे उबले अण्डे और कॉफ़ी दी गई.
इवान ने पेश की गई सामग्री खा-पी ली. उसने निश्चय किया कि वह इस अस्पताल के प्रमुख संचालक का इंतज़ार करेगा. इसी प्रमुख का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की और उससे न्याय पाने की उम्मीद अभी भी इवान को थी.
यह प्रमुख उसके नाश्ता समाप्त होने के कुछ ही देर बाद प्रकट हुआ. अप्रत्याशित रूप से इवान के कमरे का दरवाज़ा खुला और सफ़ेद चोगे पहने कई लोग दाखिल हुए. उनके आगे-आगे लगभग पैंतालीस वर्ष का सफ़ाचट दाढ़ी-मूँछों वाला व्यक्ति कलाकारों जैसे अन्दाज़ में चल रहा था. उसकी आँखें पैनी थी. उसका अभिवादन किया गया इसलिए उसका आगमन एक समारम्भ जैसे प्रतीत हुआ. ‘जैसे कि पोंती पिलात!’ इवान के दिमाग में ख़याल आया.
अवश्य ही वह प्रमुख था. वह कुर्सी पर बैठ गया जबकि अन्य सभी खड़े रहे.
“डॉक्टर स्त्राविन्स्की,” आगंतुक ने इवान को अपना परिचय दिया और सहृदयता से उसकी ओर देखा.
“लीजिए अलेक्सान्द्र निकोलायेविच,” एक साफ सुथरी दाढ़ी वाले ने कहा और प्रमुख को ऊपर-नीचे, आगे-पीछे लिखा हुआ कागज़ थमा दिया. वह इवान के बारे में जानकारी थी.
‘सब कुछ गुड़-गोबर हो गया!’ इवान ने सोचा. प्रमुख अभ्यस्त नज़रों से उस कागज़ को पढ़कर “ओह...ओह...” फुसफुसा रहा था. साथ ही आसपास खड़े लोगों से किसी समझ में न आने वाली भाषा में कुछेक वाक्य भी कह रहा था.
“यह भी लैटिन में, जैसे कि पिलात, बोलता है...” निराशा से इवान ने सोचा. मगर तभी एक शब्द को सुनकर वह चौंक गया. यह शब्द था “पागलपन” – ओह, यही तो उस नीच विदेशी ने पत्रियार्शी के किनारे कहा था, वही शब्द अब प्रोफेसर स्त्राविन्स्की ने दुहराया.
‘यह भी मालूम था!’ इवान ने बेचैनी से सोचा. प्रमुख का मानो यह नियम था कि जो उससे कहा जा रहा था, उससे वह सहमत होता और उस पर हर्ष प्रकट करते हुए कहता, “बहुत अच्छा, बहुत अच्छा...”
“बहुत अच्छा!” स्त्राविन्स्की ने कागज़ लौटाते हुए किसी से कहा और फिर वह इवान की ओर मुख़ातिब हुआ, “आप कवि हैं?”
“हाँ, कवि हूँ,” इवान ने बड़ी मायूसी से उत्तर दिया और उसे कविता के प्रति एक अवर्णनीय घृणा-सी महसूस हुई. अपनी ही कविता, जो उसे कण्ठस्थ थी, अप्रिय प्रतीत हुई.
उसने माथे को सिकोड़ते हुए स्त्राविन्स्की से पूछ लिया, “आप प्रोफेसर हैं?”
इस पर स्त्राविन्स्की ने गहरे अन्दाज़ से मगर अपनेपन से सिर हिला दिया.
“और आप – यहाँ प्रमुख हैं?” इवान ने बात जारी रखी.
स्त्राविन्स्की ने इस पर सिर हिलाया.
“मुझे आपसे बात करनी है,” इवान निकोलायेविच ने अर्थ पूर्ण स्वर में कहा.
“मैं भी इसीलिए आया हूँ,” स्त्राविन्स्की ने उत्तर दिता.
अब प्रतीक्षित घड़ी आ गई है, इवान ने महसूस करते हुए कहा, “बात यह है कि मुझे पागल करार दे दिया गया है. कोई मेरी बात सुनना ही नहीं चाहता!...”
“ओह, नहीं! हम पूरे ध्यान से आपकी बात सुनेंगे.” स्त्राविन्स्की ने बड़ी संजीदगी से मानो उसे तसल्ली देते हुए कहा, “और किसी भी सूरत में आपको पागल करार नहीं देने देंगे.”
“तो फिर ध्यान से सुनिए, कल शाम को पत्रियार्शी तालाब के किनारे पर मैं एक रहस्यमय व्यक्ति से मिला, विदेशी था शायद, जिसे पहले ही बेर्लिओज़ की मौत के बारे में पता था और जिसने स्वयँ पोंती पिलात को देखा है.”
सभी बिना पलक झपकाए कवि की बात सुनते रहे.
“पिलात को?पिलात, जो ईसा मसीह के समय हुआ करता था!” इवान की ओर आँखें सिकोड़कर देखते हुए स्त्राविन्स्की ने पूछा.
“वही.”
“आहा!” स्त्राविन्स्की ने कहा, “और यह बेर्लिओज़ ट्रामगाड़ी के नीचे कुचला गया न?”
“मेरी ही आँखों के सामने कल पत्रियार्शी के किनारे ट्राम ने उसका गला काट दिया, जिसके बारे में इस रहस्यमय व्यक्ति ने...”
“पोंती पिलात का परिचित?” स्त्राविन्स्की ने बड़ी समझदारी के साथ पूछा.
“वही,” इवान ने ज़ोर देकर स्त्राविन्स्की को तौलते हुए कहा, “उसी ने पहले से कह रखा था, कि अन्नूश्का ने सूरजमुखी का तेल गिरा दिया है...और वह उसी जगह फिसल कर गिर पड़ा! यह आपको कैसा लग रहा है?” इवान ने बड़े भेदभरे अन्दाज़ में कहा. उसे उम्मीद थी कि उसके शब्दों का सब पर गहरा असर होगा.
मगर कोई असर नहीं हुआ और स्त्राविन्स्की ने अगला सवाल पूछा, “मगर यह अन्नूश्का है कौन?”
इस सवाल ने इवान को कुछ परेशान कर दिया. उसके चेहरे पर एक शिकन-सी आई. उसने बुझते हुए कहा, “अन्नूश्का का यहाँ कोई काम नहीं. शैतान जाने वह कौन है. सादोवाया में रहने वाली कोई बेवकूफ होगी. ज़रूरी यह है कि उसे पहले से ही इस तेल के बारे में पता था. आप समझ रहे हैं ना?”
“बहुत अच्छी तरह समझ रहा हूँ,” स्त्राविन्स्की ने संजीदगी से कहा, और कवि के घुटनों को छूते हुए बोला, “परेशान मत होइए और आगे बोलिए.
“हाँ, बोलूँगा,” इवान ने स्त्राविन्स्की के ही लहजे में कहा. अपने कटु अनुभव से वह समझ चुका था कि संजीदगी ही उसके लिए बेहतर है, “हाँ, वह...वह भयंकर व्यक्ति...वह झूठ बोलता है कि वह सलाहकार है, और उसे किसी असाधारण शक्ति का ज्ञान है...उदाहरण के लिए, उसका पीछा करते रहो मगर उसे पकड़ पाना असम्भव है. उसके साथ एक जोड़ी और भी है, एक अच्छी जोड़ी, अपनी ही तरह की : एक लम्बू, टूटे ऐनक वाला; और उसके अलावा, एक बड़ा अकराल-विकराल बिल्ला जो ट्रामगाड़ी में अपने आप सफर करता है. इसके अलावा...” इवान बड़े जोश में बिना किसी रोक-टोक के कहता रहा, “वह स्वयँ पोंती पिलात के बरामदे में उपस्थित था, इसमें कोई शक नहीं है,. यह क्या बात हुई? उसे फ़ौरन गिरफ़्तार करना ज़रूरी है, नहीं तो वह बड़ी तबाही मचा देगा.”
“इसीलिए आप कह रहे हैं कि उसे गिरफ़्तार किया जाए? क्या मैं आपको ठीक से समझ रहा हूँ?” स्त्राविन्स्की ने पूछा.
‘यह आदमी अकलमन्द है,’ इवान ने सोचा, ‘मानना पड़ेगा कि कभी-कभार बुद्धिजीवियों में भी बुद्धिमान लोग मिल जाते हैं. इससे इनकार नहीं किया जा सकता!’ और उसने जवाब दिया, “एकदम सही! और मैं क्यों न इस बात पर ज़ोर दूँ? आप ख़ुद ही समझ सकते हैं! मगर इस बीच मुझे ही यहाँ ज़बर्दस्ती रोक लिया गया है, आँखों में लैम्प की रोशनी चुभोई जा रही है, स्नानगृह में नहलाया जाता है, चाचा फ़्योदोर के बारे में पूछा जाता है!...और वह तो इस दुनिया में काफ़ी पहले से नहीं हैं! मैं यह माँग करता हूँ कि मुझे फ़ौरन छोड़ दिया जाए.”
“वाह! क्या बात है, अतिसुन्दर!” स्त्राविन्स्की बोला, “सब कुछ स्पष्ट हो गया है. वास्तव में एक तन्दुरुस्त आदमी को अस्पताल में रोके रखने का कोई मतलब ही नहीं है? ठीक है...मैं आपको फौरन यहाँ से जाने दूँगा, यदि आप ये कह दें कि आप निरोगी, स्वाभाविक, स्वस्थ्य हैं. साबित करने की ज़रूरत नहीं, सिर्फ कह भर दीजिए. तो, आप स्वस्थ्य हैं?”
पूरी तरह ख़ामोशी छा गई और वह मोटी औरत, जो सुबह इवान की देखभाल कर रही थी, प्रशंसा से प्रोफेसर को देखने लगी, और इवान ने एक बार और सोचा, ‘वास्तव में बुद्धिमान है!’
क्रमश:
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