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रविवार, 29 जनवरी 2012

Master aur Margarita-16.4


मास्टर और मार्गारीटा 16.4
क्रिसोबोय ने वध-स्तम्भों के निकट पड़े हुए चीथड़ों की ओर कनखियों से देखा, जो कुछ देर पहले तक अपराधियों की पोशाक थे और जिन्हें लेने से जल्लादों ने इनकार कर दिया था. क्रिसोबोय ने दो जल्लादों को बुलाकर आज्ञा दी, मेरे पीछे आओ!       
निकट के वध-स्तम्भ से भर्राहट भरा ऊल-जुलूल-सा गाना सुनाई दे रहा था. उस पर लटकाया गया गेस्तास मक्खियों और सूरज के कारण मृत्युदण्ड के तीन ही घण्टे बाद पागल हो गया था. अब वह अंगूरों के बारे में गा रहा था. मगर पगड़ी से ढँके अपने सिर को वह कभी-कभी धीरे से हिला देता था, तब अलसाई हुई मक्खियाँ उसके चेहरे से उड़ जातीं और वापस उड़कर वहीं बैठ जाती थीं.
दूसरे वध-स्तम्भ पर दिसमास अन्य दोनों की अपेक्षा अधिक तड़प रहा था, क्योंकि उसने अपने होश नहीं खोए थे. वह अपना सिर बार-बार हिला रहा था, कभी दाहिने तो कभी बाएँ, जिससे कन्धों पर कानों से चोट कर सके.
इन दोनों से अधिक सुखी था येशू. पहले ही घण्टे में बेहोशी उसे घेरने लगी, वह सिर लटकाकर अपनी सुध खो बैठा. मक्खियों ने उसके चेहरे को पूरी तरह ढँक लिया. अब उसका चेहरा काले सरसराते पदार्थ से ढँका प्रतीत होता था. पेट पर, बगल में, सीने पर मोटी-मोटी जोंकें बैठी थीं जो उसके नंगे, पीले बदन को चूस रही थीं.
टोप पहने व्यक्ति की आज्ञा का पालन करते हुए एक जल्लाद ने भाला उठाया और दूसरा वध-स्तम्भ के पास बाल्टी और स्पंज लाया. पहले वधिक ने भाला उठाकर येशू के दोनों हाथों में चुभोया, जो सलीब के दोनों सिरों पर रस्सियों से बाँधे गए थे. दुबला-पतला शरीर जिसकी पसलियाँ दिखाई पड़ रही थीं कुछ सिहरा. जल्लाद ने भाले की नोक पेट पर घुमाई. तब येशू ने सिर उठाया, मक्खियाँ भिनभिनाकर उड़ गईं. लटके हुए येशू का मक्खियाँ काटने से सूजा हुआ चेहरा दिखाई दिया; तैरती हुई आँखों वाला यह चेहरा पहचाना नहीं जा रहा था.
पलकें खोलकर हा-नोस्त्री ने नीचे देखा. उसकी स्वच्छ आँखें धुँधली पड़ गई थीं. हा-नोस्त्री, जल्लाद ने कहा.
हा-नोस्त्री ने सूजे हुए होठों से कुछ हरकत करते हुए डाकुओं जैसी भर्राई हुई आवाज़ में पूछा, क्या चाहिए? मेरे पास क्यों आए हो?
 पियो! जल्लाद ने कहा और पानी में डूबा हुआ एक स्पंज का टुकड़ा भाले की नोक पर सवार होकर येशू के होठों के निकट पहुँचा. उसकी आँखों में कुछ चमक दिखाई दी, वह अत्यन्त अधीरता से उस पानी को चूसने लगा. पास के वध-स्तम्भ से दिसमास की आवाज़ सुनाई दी:
 यह अन्याय है! मैं भी वैसा ही डाकू हूँ, जैसा यह है.
दिसमास ने सीधा होने की कोशिश की मगर वह हिल न सका. उसके हाथों को तीन स्थानों पर रस्सी के वलयों ने सलीब से जकड़ रखा था. उसने पेट तान लिया, नाखूनों से सलीब को पकड़ लिया और क्रोध से येशू के वध-स्तम्भ की ओर अपना सिर घुमा लिया.
धूल के अन्धड़ और बादल ने उस जगह को ढाँक लिया, गहन अँधेरा छा गया. जब धूल उड़ गई तब अंगरक्षक चिल्लाया, दूसरे स्तम्भ पर, ख़ामोश रहो!
दिसमास चुप हो गया. येशू जल में डूबे स्पंज से दूर होकर प्रयत्नपूर्वक मीठी और विश्वासपूर्ण आवाज़ में बोलने की कोशिश करने लगा, मगर आवाज़ भर्राई हुई ही निकली. उसने जल्लाद से कहा, उसे भी पानी पिलाओ.
अँधेरा बढ़ता जा रहा था. बादलों ने आधे आकाश को ढँक लिया था. येरूशलम की ओर बढ़ते सफ़ेद उबलते बादल काली नम अग्निशलाकाओं से सुसज्जित घनघोर घटा का नेतृत्व कर रहे थे. पहाड़ी के ठीक ऊपर बिजली कड़की. जल्लाद ने भाले की नोक से गीला स्पंज हटा लिया.
 महामहिम की महानता के गुण गाओ! उसने घोषणा की और धीरे से भाला येशू के सीने में चुभो दिया. वह काँपा और फुसफुसाया, महामहिम...
उसके पेट पर रक्त की धारा बह चली. निचला जबड़ा काँपा और उसका सिर झूल गया.
बिजली की दूसरी कड़क के साथ जल्लाद ने दिसमास को पानी पिलाया और वही शब्द कहे,
महामहिम के गुण गाओ! और उसे भी मार डाला.
मतिहीन हुआ गेस्तास, जैसे ही उसने जल्लाद को अपने निकट देखा, घबराकर चिल्लाया, मगर जैसे ही उसके होठों को नमी ने स्पर्श किया उसने कराह कर पानी चूसना शुरू कर दिया. कुछ ही क्षणों बाद उसका शरीर भी लटक गया, जितना रस्सियों के रहते लटक सकता था.
टोप वाला आदमी जल्लाद और अंगरक्षक के पीछे-पीछे चल रहा था और उसके पीछे था मन्दिर के सुरक्षा दल का नायक. पहले स्तम्भ के पास रुककर टोप वाले आदमी ने गौर से येशू के लहूलुहान शरीर को देखकर उसकी एड़ियों को अपने सफ़ेद हाथों से छुआ और अपने साथियों से बोला, मर गया.
यही क्रिया अन्य दो वध-स्तम्भों के पास भी हुई.
इसके बाद ट्रिब्यून ने अंगरक्षक को इशारा किया और वे मन्दिर सुरक्षा-दल के नायक और टोप वाले आदमी के साथ पहाड़ी से नीचे उतरने लगे. अँधेरा छा गया, आसमान में बिजलियाँ कड़कने लगीं. इस गड़गड़ाहट में अंगरक्षक की चीख : घेरा तोड़ दो! डूब गई. प्रसन्न सिपाही अपने टोप पहनते हुए पहाड़ी से नीचे भागे. अँधेरे ने येरूशलम को ढँक लिया.
अचानक तेज़ बारिश होने लगी जिसने अंगरक्षक को आधे रास्ते में दबोच लिया. बारिश इतनी तेज़ थी कि नीचे भागते हुए सिपाहियों को दबोचने के लिए पहाड़ पर से पानी के उफ़नते हुए रेले दौड़ने लगे. सिपाही गीली मिट्टी पर फिसलने लगे, गिरने लगे. वे मुख्य मार्ग पर पहुँचने की कोशिश कर रहे थे, जहाँ उफ़नते पानी में तार-तार भीगा हुआ घुड़सवार दस्ता येरूशलम जा रहा था. कुछ मिनटों के पश्चात् तूफ़ान, पानी और अग्नि के तांडव के बीच पहाड़ी पर केवल एक आदमी बचा था. वह बेकार में ही चुराए हुए चाकू को संभालते, फिसलन भरे स्थानों से बचते, हर सम्भव सहारे को तलाशते, कभी-कभी घुटनों के बल रेंगते वध-स्तम्भों की ओर बढ़ा. कभी वह पूरी तरह अँधेरे में डूब जाता था, तो कभी बिजली की चकाचौंध उसे आलोकित कर जाती थी.
वध-स्तम्भों के निकट पहुँच कर उसने अपने लथपथ कोट को उतार फेंका, केवल एक कमीज़ में वह येशू के पैरों से लिपट गया. उसने सभी रस्सियाँ काट दीं, नीचे वाले क्रॉस पर चढ़ा, येशू के शरीर का आलिंगन करते हुए उसके दोनों हाथ मुक्त कर दिए. गीला, नंगा येशू का बदन लेवी को साथ लिए भूमि पर गिर पड़ा. लेवी उसे अपने कंधों पर उठाना चाह रहा था तभी किसी ख़याल ने उसे रोक दिया. उसने वहीं पानी में डूबी धरती पर उस शरीर को छोड़ दिया और लड़खड़ाते, फिसलते पैरों से अन्य दो वध-स्तम्भों की ओर बढ़ा. उसने उनकी भी रस्सियाँ काट दीं और दो और मृत शरीर ज़मीन पर गिर पड़े.
कुछ और क्षणों के बाद पहाड़ की चोटी पर बचे थे केवल वे ही दो म्रत शरीर और तीन खाली वध-स्तम्भ. पानी के थपेड़े इन शरीरों को उलट-पलट रहे थे.
इस समय पहाड़ी पर न तो लेवी था और न ही येशू का शरीर.
   
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