मास्टर और मार्गारीटा – 11
इवान के दो रूप
नदी के उस पार वाला मैपल का जंगल, जो अभी घण्टे भर पहले मई की दुपहरी में चमक रहा था, अचानक अँधेरे में खो गया और पिघल गया.
खिड़की के बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी. आकाश में जब-तब बिजली कौंध जाती थी, आकाश गिरने को हो रहा था और मरीज़ के कमरे को एक डरावने रंग से भर रहा था.
इवान चुपके से रो रहा था. वह पलंग पर बैठा मटमैली उबलती फेनिल नदी को देख रहा था. बिजली की हर कड़क के साथ वह कराह उठता और चेहरे को हाथों में छिपा लेता. इवान के लिखे हुए पन्ने फर्श पर इधर-उधर उड़ रहे थे. उन्हें तूफ़ान आने से पूर्व कमरे में घुस आई हवा ने बिखेर दिया था.
उस ख़तरनाक परामर्शदाता के बारे में एक अर्ज़ी लिखने की उसकी हर कोशिश बेकार हो चुकी थी.उसने डॉक्टर की मोटी सहायिका प्रास्कोव्या फ़्योदोरोव्ना से पेंसिल और कागज़ माँगा और मेज़ पर बैठकर लिखना शुरू किया. आरम्भिक पंक्तियाँ बड़ी निडरता से लिखीं :
“पुलिस को मासोलित के सदस्य इवान निकोलायेविच बेज़्दोम्नी की ओर से निवेदन. कल शाम को मैं स्वर्गीय एम.ए.बेर्लिओज़ के साथ पत्रियार्शी तालाब के किनारे गया...”
तभी वह परेशान हो उठा, ख़ासतौर से ‘स्वर्गीय’ शब्द से. बड़ी आश्चर्यजनक बात लिख दी थी उसने – स्वर्गीय के साथ गया? मृतक तो चलते नहीं हैं न! ठीक ही है, ऐसा लिखने से उसे निश्चय ही पागल समझेंगे.
ऐसा सोचकर इवान निकोलायेविच ने इन पंक्तियों में सुधार करना चाहा. फिर लिखा: “एम.ए.बेर्लिओज़ के साथ, जो बाद में मर गया...” इससे भी उसे संतोष नहीं हुआ. तीसरी बार लिखा, जो पहली दो पंक्तियों से भी बदतर साबित हुआ : “...बेर्लिओज़ के साथ, जो ट्रामगाड़ी के नीचे आ गए थे...” तभी उसे ध्यान आया कि इसी नाम का एक संगीतकार भी है, अत: उसने लिखा...”संगीतकार के साथ नहीं...”
इन दोनों बेर्लिओज़ों की उलझन से बचने के लिए इवान ने फिर से बड़े सशक्त अन्दाज़ में लिखना चाहा, जिससे कि पढ़ने वालों का ध्यान एकदम उसकी ओर आकर्षित हो जाए. उसने लिखा कि बिल्ला ट्रामगाड़ी में बैठा था, फिर सिर कटने वाली घटना की ओर आया. कटे हुए सिर और परामर्शदाता की भविष्यवाणी ने उसका ध्यान पोंती पिलात की ओर मोड़ दिया. इवान ने फ़ैसला किया कि अपने विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए न्यायाधीश वाली कहानी पूरी की पूरी लिख दी जाए, उस क्षण से जब वह रक्तवर्णी किनारवाले सफ़ेद चोगे में हिरोद के महल की स्तम्भों वाली छत पर अवतीर्ण हुआ.
इवान बड़ी मेहनत से लिखता रहा. लिखे हुए को बार-बार मिटाकर नए शब्द लिखता रहा. उसने पोंती पिलात तथा पिछले पंजों के बल खड़े बिल्ले की तस्वीरें बनाने की भी कोशिश की. लेकिन इन तस्वीरों से कोई फ़ायदा नहीं हुआ. जैसे-जैसे वह आगे-आगे लिखता रहा, उसका लेख अधिकाधिक क्लिष्ट, उलझनभरा, समझ में न आने वाला होता गया.
जब आसमान में दूर से धुएँ जैसी किनारीवाला डरावना बादल बढ़ता आ रहा था और उसने मैपल के जंगल को ढँक दिया; जब तेज़ हवाएँ चलने लगीं, तब तक इवान शिथिल पड़ चुका था. वह समझ गया कि यह निवेदन उससे नहीं लिखा जाएगा, अत: उसने इधर-उधर बिखर चुके कागज़ों को समेटने की कोशिश नहीं की और निराशा से नि:शब्द रोने लगा.
सहृदय प्रासोव्या फ़्योदोरोव्ना तूफ़ान के समय इवान को देखने आई. उसे यह देखकर बड़ा दु:ख हुआ कि वह रो रहा है. उसने परदे बन्द कर दिए ताकि बिजली मरीज़ को डरा न सके; ज़मीन पर बिखरे कागज़ उठाए और उन्हें लेकर डॉक्टर के पास भागी.
वह आया, उसने इवान को हाथ में इंजेक्शन दिया और दिलासा देते हुए कहा कि अब सब ठीक हो जाएगा, इवान को और रोना नहीं पड़ेगा, सब बदल जाएगा, इवान सब कुछ भूल जाएगा.
डॉक्टर का कहना ठीक ही था. जल्दी ही मैपल का जंगल पूर्ववत् हो गया. उसका एक-एक वृक्ष स्वच्छ नीले आकाश के नीचे दिखाई देने लगा और नदी का जल भी शांत हो गया. इवान की पीड़ा धीरे-धीरे कम होने लगी; अब कवि शांतचित्त लेटा आसमान में इन्द्रधनुष देख रहा था.
शाम तक ऐसा ही रहा, उसने ध्यान भी नहीं दिया कि कब इन्द्रधनुष बिखर गया, कब आसमान उदास होकर गहरा गया, और कब मैपल का जंगल फिर काला हो गया.
गरम-गरम दूध पीने के बाद इवान फिर लेट गया. वह ताज्जुब करने लगा कि उसके विचार कैसे बदल गए. उसकी स्मृति में वह दुष्ट बिल्ला अब इतना दुष्ट नहीं प्रतीत हो रहा था, कटा हुआ सिर उसे इतना अधिक भयभीत नहीं कर रहा था और उसके बारे में सोचना छोड़ इवान यह सोचने लगा कि यह अस्पताल इतना बुरा नहीं है, कि स्त्राविन्स्की बहुत होशियार है, उससे बातें करना अच्छा लगता है. तूफ़ान के बाद शाम की हवा मीठी और प्यारी प्रतीत हो रही थी.
दर्द का यह घर सो रहा था. ख़ामोश गलियारों में दूधिए सफ़ेद लैम्प बुझ चुके थे, उनकी जगह मद्धिम नीले बल्ब जल रहे थे. दरवाज़ों के बाहर गलियारों के रबड़ जड़े फर्श पर परिचारिकाओं के सतर्क सावधान कदमों की आहट क्रमश: धीमी होती जा रही थी.
इवान का मिजाज़ अब खुशगवार हो चुका था. वह लेटे-लेटे मद्धिम रोशनी फेंकते हुए बल्ब की ओर देख लेता था, तो कभी काले मैपल के वन के पीछे से झाँकते हुए चाँद की ओर. साथ ही वह अपने आप से बातें कर रहा था.
‘बेर्लिओज़ अगर ट्रामगाड़ी के नीचे आकर मर गया तो मैं इतना उत्तेजित क्यों हुआ?’ कवि ने कारण मीमांसा करते हुए सोचा, ‘मेरी बला से वह कीचड़ में गिरे! मैं आख़िर उसका हूँ कौन? क्या यार हूँ या समधी? अगर गौर से देखा जाए तो मैं उसे ठीक से जानता भी नहीं था. सचमुच, मैं उसके बारे में जानता ही कितना हूँ? सिर्फ यह कि वह गंजा ख़तरनाक हद तक मीठा बोलने वाला था.’ फिर न जाने किसे सम्बोधित करते हुए कवि ने आगे सोचा, ‘मैं इस रहस्यमय परामर्शदाता, जादूगर और काली तथा खाली आँख वाले शैतान प्रोफेसर के पीछे इतना पागल क्यों हुआ? यह सब दौड़धूप क्यों की? उसका पीछा क्यों किया? कच्छा पहनकर, हाथ में मोमबत्ती लेकर, और रेस्तराँ में उसके कारण गड़बड़ क्यों की?’
“मगर, मगर, मगर,” अचानक कहीं, न कान में, न दिल में पहले वाले इवान ने नए इवान से संजीदगी से कहा, “बेर्लिओज़ का सिर कटने वाला है, वह पहले से जानता था? मैं परेशान कैसे नहीं होता?”
”क्या बात करते हो दोस्त!” नए इवान ने पुराने इवान का प्रतिवाद करते हुए कहा – “यहाँ कोई गोलमाल है, इतना तो एक बच्चा भी समझ सकता है. वह शत-प्रतिशत रहस्यमय व्यक्ति है. यही तो दिलचस्प बात है! आदमी व्यक्तिगत तौर पर पोंती पिलात को जानता था. इससे बढ़कर आपको और क्या चाहिए? और पत्रियार्शी पर इतना उधम मचाने के बदले क्या उससे यह पूछना ज़्यादा ठीक नहीं होता कि पोंती पिलात और कैदी हा-नोस्त्री का आगे क्या हुआ?”
“और मैं न जाने क्या सोचने लगा! ख़ास बात यह है कि मासिक पत्रिका के सम्पादक को ट्राम ने कुचल दिया. इससे क्या, पत्रिका का निकलना बन्द हो जाएगा? किया भी क्या जा सकता है: आदमी नश्वर है और आकस्मिक रूप से उसका नाश हो जाता है. भगवान उसकी आत्मा को शांति दे! दूसरा सम्पादक आ जाएगा...शायद पहले से भी ज़्यादा मीठा बोलने वाला.”
थोड़ी-सी झपकी लेने के बाद नए इवान ने पुराने से पूछा :
“फिर इस सब में मैं कौन हुआ?”
“बेवकूफ़,” कहीं से भारी-सी आवाज़ सुनाई दी. यह न पुराने इवान की थी न ही नए वाले की. यह उस परामर्शदाता की आवाज़ से काफी मिलती-जुलती थी.
इवान को न जाने क्यों “बेवकूफ” शब्द सुनकर बुरा नहीं लगा, बल्कि आश्चर्य हुआ. वह मुस्कुराया और अर्धनिद्रावस्था में ख़ामोश हो गया. इवान तक दबे पाँव एक सपना पहुँचा, जिसमें उसे हाथी के पैर जैसा लिण्डन का वृक्ष दिखाई दिया. बगल से बिल्ला गुज़र गया. ख़तरनाक नहीं, बल्कि खुशगवार. जैसे ही नींद इवान को थपकियाँ देकर सुलाने ही वाली थी, कि अचानक जाली वाला दरवाज़ा बिना आवाज़ किए खुल गया. फिर बालकनी में एक रहस्यमय आकृति प्रकट हुई, जो चाँद की रोशनी से अपने आपको छिपा रही थी. उसने इवान को उँगली के इशारे से धमकाया.
इवान बिना डरे पलंग से उठा. उसने देखा कि बालकनी में एक आदमी खड़ा है. इस आदमी ने होठों पर उँगली ले जाते हुए कहा – “श् श्!”
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