मास्टर और मार्गारीटा -13.2
इवान परेशान नहीं हुआ क्योंकि उसने वादा किया था, मगर वह अन्दर तक दहल गया.
“यह असम्भव है! शैतान का अस्तित्व ही नहीं है!”
“माफ़ कीजिए! कम से कम आपको तो यह बात नहीं कहनी चाहिए. आप पहले व्यक्ति हैं जिसको उसके कारण दुःख उठाना पड़ा है. आप यहीं पागलखाने में बैठे रहिए और सोचते रहिए कि वह है ही नहीं. बड़ी अजीब बात है!”
इवान प्रतिवाद नहीं कर सका.
“जैसे ही आपने उसका वर्णन करना शुरू किया, मैं अन्दाज़ लगाता रहा कि कल आपको किससे बातें करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. मुझे तो बेर्लिओज़ पर आश्चर्य हो रहा है! मगर आपमें बहुत बचपना है,” मेहमान ने माफ़ी माँगने के अन्दाज़ में कहा, “उसके बारे में मैंने कितना सुना है, थोड़ा बहुत पढ़ा भी है! इस प्रोफेसर की पहली ही बातों से मेरा सन्देह दूर हो गया. उसे ना पहचानना असम्भव है, मेरे दोस्त! मगर आप...आप मुझे फिर माफ़ कीजिए, अगर मैं ग़लत नहीं हूँ, तो बड़े कच्चे आदमी हैं?”
“बेशक,” इवान को पहचानना मुश्किल हो रहा था.
“और...चेहरा भी, जिसका वर्णन आप कर रहे थे...अलग-अलग तरह की आँखें, भँवे! माफ़ करना, शायद आपने ‘फ़ाउस्ट’ ऑपेरा के बारे में भी नहीं सुना?”
इवान बुरी तरह बौखला गया और लाल चेहरे से न जाने क्यों याल्टा के सेनिटोरियम की यात्रा के बारे में बड़बड़ाने लगा...
“यही तो,...यही तो...मुझे ज़रा भी ताज्जुब नहीं है! मगर बेर्लिओज़ ने, मैं फिर कहता हूँ, उसने मुझे चौंका दिया है. उसने न केवल काफ़ी-कुछ पढ़ रखा था, बल्कि वह बहुत चालाक भी था. मगर वोलान्द तो बड़े-बड़े धूर्त लोगों की आँखों में भी धूल झोंक सकता है, तो फिर बेर्लिओज़ की क्या बात है!”
“क्या...?” अब चिल्लाने की बारी इवान की थी.
“धीरे!”
इवान ने सिर पर हाथ मारते हुए फुसफुसाहट से कहा, “ठीक है, ठीक है, उसके विज़िटिंग कार्ड पर ‘व’ अक्षर था. हाय, हाय, हाय; तो यह बात थी!” वह कुछ देर तक चुप रहा. बौखला गया था. जाली के उस पार तैरते हुए चाँद को देखते हुए उसने पूछा, “तो, वह, निश्चय ही पोंती पिलात के पास मौजूद था? क्या उसका तब जन्म हो चुका था? और सब मुझे पागल कहते हैं!” इवान ने दरवाज़े की ओर इशारा करते हुए कहा.
मेहमान के होठों पर एक कटु मुस्कान छा गई.
“हम सच का सामना करें,” मेहमान मुँह फेरकर बादलों के बीच भागते हुए रात के मुसाफिर को देखते हुए बोला, “तुम और मैं पागल हैं, इनकार कैसे करें! देखो न, उसने तुम्हें बुद्धू बनाया और तुम उसके जाल में फँस गए; तुम्हारी मनःस्थिति इसके लिए अनुकूल थी. जो तुम कह रहे हो, वह सब कुछ वास्तव में घटित हुआ था. यह इतनी अजीब बात है कि मनोवैज्ञानिक स्त्राविन्स्की ने भी तुम्हारा विश्वास नहीं किया. उसने तुम्हें देखा था?” (इवान ने सिर हिला दिया.) “तुमसे बातें करने वाला पिलात के पास भी था, काण्ट के साथ नाश्ते की मेज़ पर भी था, और अब वह मॉस्को आ गया है.”
“शैतान जाने यहाँ वह क्या-क्या गुल खिलाने वाला है! किसी तरह उसे पकड़ना चाहिए?” नए इवान में पुराने इवान ने सिर उठाते हुए कुछ अविश्वास से कहा.
“तुम कोशिश तो कर चुके हो, पछताओगे,” मेहमान ने व्यंग्यपूर्वक कहा, “मैं तो कहता हूँ कि किसी को भी ऐसी कोशिश नहीं करनी चाहिए. वह जो भी करेगा, शायद अच्छा ही करेगा. आह, आह! मुझे कितना अफ़सोस हो रहा है कि उसकी मुलाक़ात तुमसे हुई, मुझसे नहीं! मेरा सब कुछ तो जल चुका है, मगर मैं इस मुलाक़ात के लिए प्रास्कोव्या फ़्योदोरोव्ना की चाबियों का गुच्छा भी दे देता और तो मेरे पास देने के लिए कुछ है भी नहीं, मैं निर्धन हूँ!”
“मगर तुम्हें उसकी ज़रूरत क्यों पड़ गई?”
मेहमान उदास हो गया, हिचकिचाया और काफ़ी देर ख़ामोश रहने के बाद बोला, “ देखो, कैसी अजीब बात है, मैं यहाँ उसी की बदौलत आया हूँ, जिसके कारण तुम आए हो. हाँ, उसी पोंती पिलात के कारण,” मेहमान ने भयभीत नज़रों से इधर-उधर देखते हुए कहा, “बात यह है, कि साल भर पहले मैंने पोंती पिलात के बारे में एक उपन्यास लिखा था.”
“तुम लेखक हो?” कवि ने उत्सुकता से पूछा.
मेहमान के चेहरे पर स्याही छा गई, उसने इवान को घूँसा दिखाते हुए कहा, “मैं मास्टर हूँ,” वह गम्भीर हो गया और उसने अपने गाउन की जेब से काली टोपी निकाली जिस पर पीले रेशमी धागे से ‘एम’ अक्षर काढ़ा गया था. उसने टोपी पहन ली और इवान को अपनी पूरी काया घूमकर दिखाने लगा, जैसे सिद्ध करना चाहता हो कि वह – मास्टर है, “उसने ख़ुद अपने हाथों से यह टोपी मेरे लिए बनाई है,” उसने रहस्यमय अन्दाज़ में कहा.
“तुम्हारा उपनाम क्या है?”
‘अब मेरा कोई नाम, उपनाम नहीं,” विचित्र मेहमान ने उदास लहज़े में कहा, “मैंने उसे ठुकरा दिया है. उसी तरह जैसे ज़िन्दगी की और चीज़ों को. उसे भूल जाएँ.”
कम से कम तुम उपन्यास के बारे में तो बताओ,” इवान ने बड़ी शराफ़त से कहा.
“तो सुनो, मेरी कहानी, बिल्कुल आम कहानियों जैसी नहीं है,” मेहमान ने कहना शुरू किया.
...इतिहास में शिक्षा प्राप्त करने के बाद कोई दो वर्ष तक, वह मॉस्को के एक म्युज़ियम में काम करता रहा था. साथ ही अनुवाद कार्य भी करता था.
“किस भाषा से?” इवान ने दिलचस्पी लेते हुए पूछा.
“मैं मातृभाषा के अलावा पाँच भाषाएँ जानता हूँ,” मेहमान ने बताया, “अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, लैटिन और ग्रीक. इटालियन भी थोड़ी-बहुत पढ़ लेता हूँ.”
“उस्ताद हो!” इवान के स्वर में ईर्ष्या थी.
इतिहासकार अकेला रहता था. उसके न तो कोई रिश्तेदार थे और न ही मॉस्को में कोई परिचित. और, एक दिन उसने लॉटरी में एक लाख रूबल जीत लिए. “मेरी ख़ुशी का आप अन्दाज़ा नहीं लगा सकते,” काली टोपी वाले मेहमान ने उसी तरह फुसफुसाकर आगे कहा, “जब मैंने मैले कपड़ों वाली टोकरी से टिकट निकालकर देखा कि उस पर भी वही नम्बर है जो अख़बार में छपा है! टिकट...,” उसने समझाया, “मुझे म्युज़ियम में दिया गया था.”
एक लाख जीतने के बाद इस रहस्यमय मेहमान ने यह किया कि किताबें ख़रीदीं, म्यास्नित्स्काया वाले अपने कमरे को छोड़ दिया...
“ऊ...ऊ, वह तो कबूतरखाना था...” मेहमान शिकायत के स्वर में बोला.
...और अर्बात के पास एक मकान मालिक से मकान किराए पर लिया.
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