मास्टर और मार्गारीटा -13.6
जब सब कुछ शांत हो गया तो मेहमान फिर से वापस आया और बोला कि 120 नंबर के कमरे में कोई आ गया है. किसी ऐसे आदमी को लाया गया है जो यह विनती कर रहा है कि उसका सिर उसे लौटा दिया जाए. दोनों उत्तेजनावश खामोश हो गए. फिर कुछ देर शांत रहकर अपनी पुरानी बातचीत पर लौट आए. मेहमान ने कुछ कहने के लिए मुँह खोलना चाहा, मगर रात सचमुच बड़ी बेचैन थी. बाहर गलियारे से अब भी आवाज़ें आ रही थीं इसलिए मेहमान ने इवान के कान में इतने धीमे से कहना शुरू किया कि उसे सिर्फ कवि ही सुन सकता था, पहले वाक्य को छोड़कर जो उसने सुना वह कुछ ऐसा था :
“उसके जाने के पन्द्रह मिनट बाद मेरी खिड़की पर दस्तक हुई...”
मरीज़ ने जो कुछ इवान के कान में कहा, उसने उसे काफ़ी व्याकुल कर रखा था. उसके चेहरे पर बार-बार सिहरन दौड़ जाती थी. उसकी आँखों में भय और वहशत के भाव तैर जाते थे. वह बार-बार चाँद की तरफ उँगली उठता था, जो बालकनी से कब का बिदा हो चुका था. जब बाहर से सारी आवाज़ें आनी बन्द हो गईं तो मेहमान इवान से कुछ दूर सरककर बैठ गया और कहने लगा –
“तो, जनवरी के मध्य में, रात को, उसी कोट में, जिसके अब बटन टूट चुके थे, मैं अपने आँगन में ठण्ड से ठिठुर रहा था. मेरे पीछे बर्फ का बड़ा ढेर था जिसने लिली की झाड़ियों को छुपा दिया था. मेरे सामने थीं परदे लगी हुई मेरी खिड़कियाँ जिनसे मद्धिम रोशनी आ रही थी. मैं पहली खिड़की के पास गया और सुनने लगा – मेरे कमरे में पियानो बज रहा था; मैं सिर्फ सुन ही सका, कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. कुछ देर रुककर मैं बाहर गली में निकल आया. बर्फीला तूफ़ान शैतानी नाच कर रहा था. मेरे पैरों में आए एक कुत्ते ने मुझे भयभीत कर दिया. मैं सड़क की दूसरी ओर भागा. ठण्ड और भय, जो मेरा साथी बन चुका था, मुझे पागलपन की सीमा तक ले गए. मेरा कोई ठिकाना नहीं था. मेरे पास मेरी गली के सामने से गुज़रने वाली ट्रामगाड़ी के नीचे जान दे देने के अलावा और कोई चारा नहीं था. दूर से मैंने रोशनी से भरे, बर्फ से ढँके डिब्बों को देखा और बर्फ पर उनकी चरमराहट सुनी. मगर, मेरे दोस्त, समस्या यह थी कि भय ने मेरे रोम-रोम में अपना घर कर लिया था, और मैं ट्रामगाड़ी से भी ऐसे ही डर गया जैसे कुत्ते से डरा था. मेरी बीमारी से बदतर इस अस्पताल में और कोई बीमारी नहीं है, मैं पूरे यक़ीन के साथ कह रहा हूँ!”
“मगर आप उसे ख़बर दे सकते थे,” इवान ने बेचारे मरीज़ के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कहा, “फिर उसके पास आपके पैसे भी तो हैं? शायद उसने उन्हें सँभाल कर रखा हो?”
“इसमें कोई सन्देह नहीं है, बेशक, सँभालकर ही रखा है. मगर आप शायद मुझे समझ नहीं पा रहे हैं? या शायद मैं अपनी बात कहने की क्षमता खो चुका हूँ. मुझे इसके बारे में ज़रा भी दुःख नहीं है, क्योंकि अब मुझे उनकी ज़रूरत नहीं है. उसके सामने...” मेहमान ने दूर अँधेरे में दृष्टि गड़ाते हुए कहा, “इस पागलखाने का ख़त पड़ा होगा. अब आप ही बताइए इस पते से मैं उसे ख़त कैसे भेज सकता हूँ? मानसिक रोगी? आप मज़ाक कर रहे हैं, मेरे दोस्त! उसे दुःख पहुँचाऊँ? मैं ऐसा नहीं कर सकता!”
इवान इस तर्क का कोई जवाब नहीं दे पाया, मगर ख़ामोश इवान को मेहमान की पीड़ा का अनुभव हो रहा था, उसे उसके प्रति सहानुभूति हो रही थी.
मेहमान ने यादों में खोकर अपना काली टोपी वाला सिर हिलाया और बोला, “गरीब बेचारी, मुझे उम्मीद है कि वह मुझे भूल गई होगी!”
“आप ठीक भी हो सकते हैं...” इवान ने सकुचाते हुए कहा.
“मेरी बीमारी लाइलाज है,” मेहमान ने शांतिपूर्वक कहा, “जब स्त्राविन्स्की कहता है कि वह मुझे मेरी ज़िन्दगी वापस दे देगा, तो मुझे विश्वास नहीं होता. वह एक सहृदय व्यक्ति है और सिर्फ मुझे दिलासा देना चाहता है. मगर मैं इस बात से भी इनकार नहीं करता कि अब मैं पहले से काफ़ी अच्छा हूँ. तो मैं कहाँ रुका था? बर्फ, ये उड़ती हुई ट्रामगाड़ियाँ. मैं जानता था कि यह अस्पताल शुरू हो चुका है और मैं पूरा शहर पैदल पार कर यहाँ आने के लिए निकल पड़ा. पागलपन! शायद शहर से बाहर निकलकर बर्फ के कारण जम ही जाता, मगर मैं सौभाग्यवश बच गया. एक ट्रक में कुछ ख़राबी हो गई थी, मैं ड्राइवर के पास पहुँचा; यह जगह शहर से चार किलोमीटर दूर थी, उसे मुझ पर दया आ गई. ट्रक यहीं आ रहा था. और वह मुझे यहाँ ले आया. मेरे बाएँ पैर की उँगलियाँ जम चुकी थीं, मगर उन्हें ठीक कर दिया गया. अब मैं चार महीनों से यहाँ हूँ. मुझे यहाँ उतना बुरा नहीं लगता. इन्सान को बड़ी-बड़ी योजनाएँ नहीं बनानी चाहिए, वाकई! जैसे मैं पूरी दुनिया देखना चाहता था. मगर शायद यह मेरे नसीब में नहीं है. मैं इस दुनिया का एक नन्हा-सा हिस्सा ही देख सकता हूँ. यह हिस्सा बेहतरीन तो नहीं है, मगर बुरा भी नहीं है. अब जल्दी ही गर्मी का मौसम आने वाला है. प्रास्कोव्या फ़्योदोरोव्ना कहती है कि बालकनी पर बेल छा जाएगी. चाबियों के गुच्छे ने मेरा काम आसान कर दिया है. रातों को चाँद होगा.ओह, वह छिप गया! थोड़ी राहत महसूस हो रही है. रात आधी गुज़र गई. अब मैं चलता हूँ.”
“पिलात और येशू का आगे क्या हुआ?” इवान ने चिरौरी करते हुए पूछा, “मैं जानना चाहता हूँ. बताइए न!”
“ओह, नहीं, नहीं,” मेहमान ने काँपते हुए कहा, “अपने उपन्यास की याद से ही मैं सिहर उठता हूँ! पत्रियार्शी पर आपसे जो मिला था, वही ठीक-ठीक बता सकता है. बातचीत के लिए धन्यवाद. फिर मिलेंगे!”
और इससे पहले कि इवान कुछ समझ पाता, हल्की-सी आवाज़ के साथ जाली का दरवाज़ा बन्द हो गया, मेहमान ग़ायब हो गया.
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