मास्टर और मार्गारीटा – 12.2
“आपकी घड़ी है? कृपया लीजिए!” मुस्कुराते हुए चौख़ाने वाले लम्बू ने कहा और घबराए हुए रीम्स्की की ओर गन्दी हथेली से घड़ी बढ़ा दी.
“इसके साथ ट्राम गाड़ी में न बैठना...” हौले से मगर प्रसन्नता से सूत्रधार ने मेकअप मैन से कहा.
मगर बिल्ले ने एक और करतब कर दिखाया, जो घड़ी वाले जादू से कहीं बेहतर था. अचानक वह सोफ़े से उठा और पिछले पैरों पर चलकर ड्रेसिंग टेबुल के पास रखी तिपाई के पास पहुँचा; अगले पंजे से तिपाई पर रखी काँच की बड़ी शीशी का ढक्कन खोलकर ग्लास में पानी डाला, पानी पीकर वापस ढक्कन लगा दिया और मेकअप वाले रुमाल से अपनी मूँछें पोंछीं.
अबकि बार किसी के मुँह से आवाज़ तक नहीं निकली, बस सबके मुँह खुले रह गए, केवल मेकअप मैन चहका, “ओह, कमाल है!”
तीसरी बार घण्टी बज उठी. सब लोग उत्तेजित होकर अन्य चमत्कारों की प्रतीक्षा में मेकअप रूम से निकल गए.
एक मिनट पश्चात् हॉल में लाइटें बन्द हो गईं, परदे के सामने, नीचे की ओर लगे लैम्प से लाल रोशनी आने लगी. परदे के पीछे से स्टेज पर आया मोटा, बच्चों की तरह मुस्कुराता, चिकनी दाढ़ी वाला, मुड़ा-तुड़ा चोगा और गन्दे कपड़े पहने एक आदमी. यह था सम्पूर्ण मॉस्को का परिचित और प्रिय संयोजक जॉर्ज बेंगाल्स्की.
“तो नागरिकों...” बेंगाल्स्की ने बच्चों की-सी मुस्कुराहट के साथ कहना शुरू किया, “अब आपके सामने आएँगे...” और बेंगाल्स्की ने अपनी ही बात काटते हुए दूसरे ही लहज़े में कहना शुरू किया, “मैं देख रहा हूँ कि तीसरे खण्ड में दर्शकों की संख्या बढ़ गई है. हमारे यहाँ आज आधा मॉस्को आया है! अभी कुछ दिन पहले मैं अपने एक मित्र से मिला. मैंने पूछा : ‘आजकल तुम हमारे यहाँ क्यों नहीं आते? कल हमारे यहाँ आधा मॉस्को उपस्थित था.’ उसने जवाब दिया, ‘मैं बचे हुए आधे मॉस्को में रहता हूँ.’ बेंगाल्स्की रुका, इस प्रतीक्षा में कि लोग हँसेंगे, मगर जब कोई भी नहीं हँसा तो उसने कहा, “तो प्रस्तुत है प्रसिद्ध विदेशी कलाकार मिस्टर वोलान्द अपने काले जादू के कारनामों के साथ! मगर, हम-आप तो जानते हैं...” बेंगाल्स्की ने विद्वत्तापूर्ण मुस्कुराहट से कहा, “कि काले जादू का अस्तित्व नहीं होता, वह केवल एक भ्रम है; और मिस्टर वोलान्द को हर दर्जे की हाथ की सफ़ाई आती है; जो इस कार्यक्रम के सबसे दिलचस्प हिस्से में ज़ाहिर होगा – यह कार्यक्रम है, काले जादू की तकनीक का पर्दाफाश, और चूँकि हम सबको इस तकनीक में दिलचस्पी है, तो मैं वोलान्द महाशय को आमंत्रित करता हूँ...”
इतना कहकर बेंगाल्स्की ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों को अभिवादन के अन्दाज़ में हिलाते हुए परदे की ओर इशारा किया, जिससे परदा धीमी आवाज़ करते हुए खुल गया.
जादूगर का अपने लम्बू सहायक और पिछले पैरों पर चलकर स्टेज पर आते बिल्ले के साथ प्रवेश करना जनता को बेहद पसन्द आया.
“कुर्सी!” वोलान्द ने धीरे से आज्ञा दी, और उसी क्षण न जाने कैसे और कहाँ से स्टेज पर कुर्सी आ गई, जिस पर बैठकर जादूगर बोला, “मुझे बताओ, प्रिय फ़ागोत,” वोलान्द चौख़ाने वाले लम्बू से मुखातिब हुआ, जिसका ज़ाहिर है कोरोव्येव के अलावा एक दूसरा भी नाम था, “तुम्हारा क्या ख़याल है, मॉस्को की जनता काफ़ी बदल गई है?”
जादूगर ने जनता की ओर देखा जो हवा से प्रकट हुई कुर्सी देखकर सकते में आ गई थी.
“ठीक कहा, जनाब!” फ़ागोत-कोरोव्येव ने भी हौले से ही जवाब दिया.
“तुम ठीक कहते हो, लोग बहुत ज़्यादा बदल गए हैं; ऊपरी तौर से, मैं सोचता हूँ, उसी तरह जैसे यह शहर बदल गया है. उनकी वेश भूषा के बारे में तो कहना ही क्या, मगर अब दिखाई देती हैं ये...क्या नाम है...ट्रामगाड़ियाँ, मोटरगाड़ियाँ...”
“बसें,” फ़ागोत ने नम्रतापूर्वक आगे जोड़ा.
जनता बड़े ध्यान से यह बातचीत सुन रही थी, इस ख़याल से कि यह जादुई कारनामों की प्रस्तावना है. रंगमंच का पार्श्व भाग कलाकारों और रंगकर्मियों से खचाखच भरा था और उनके बीच रीम्स्की का तनावग्रस्त, निस्तेज चेहरा दिखाई दे रहा था.
बेंगाल्स्की, जो स्टेज के एक सिरे पर था, बेचैन होने लगा; उसने एक भौंह ऊपर उठाई और इस खाली क्षण का लाभ उठाते हुए बोला, “विदेशी कलाकार मॉस्को से प्रभावित जान पड़ते हैं, जो तकनीकी दृष्टि से काफी विकसित हो चुका है, और मॉस्कोवासियों ने भी उन्हें प्रभावित किया है,” यहाँ बेंगाल्स्की दो बार मुस्कुराया : पहली बार - नीचे बैठे दर्शकों के लिए, और दूसरी बार – बाल्कनी वालों के लिए.
वोलान्द, फ़ागोत और बिल्ले ने अपने चेहरे संयोजक की ओर मोड़े.
“क्या मैंने विस्मय का प्रदर्शन किया था?” जादूगर ने फ़ागोत से पूछा.
“बिल्कुल नहीं, महाशय, आपने किसी प्रकार के विस्मय का कोई प्रदर्शन नहीं किया,” उसने जवाब दिया.
“तो फिर यह आदमी क्या कह रहा है?”
“वह तो यूँ ही झूठ बोला है!” खनखनाती आवाज़ में पूरे थियेटर को सम्बोधित करते हुए चौखाने वाला सहायक बोला और बेंगाल्स्की की ओर मुड़कर उसने फिर कहा, “मुबारक हो, आपको, महाशय झूठे!”
बाल्कनी से हँसने की आवाज़ें गूँज उठीं. बेंगाल्स्की ने सिहरकर अपनी आँखें निकालीं.
“मगर मुझे, ज़ाहिर है, उतनी दिलचस्पी नहीं है बसों में, टेलिफोनों में और...”
“मशीनों में!” लम्बू बोला.
“बिल्कुल ठीक, धन्यवाद!” हौले-हौले भारी-भरकम आवाज़ में जादूगर ने कहा, “मुझे इस बात में दिलचस्पी है कि क्या इन लोगों की अंतरात्मा में भी कोई परिवर्तन आया है?”
“हाँ, महाशय, यह बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है.”
पार्श्वभाग में लोग एक-दूसरे की ओर कनखियों से देखने और कन्धे सिकोड़ने लगे. बेंगाल्स्की का चेहरा लाल हो गया था. रीम्स्की का पीला, मगर तभी, हॉल में आरम्भ हो चुकी उत्तेजना को ताड़कर जादूगर बोला, “हम काफी बोल चुके हैं, प्रिय फ़ागोत, और जनता उकताने लगी है. चलो, शुरू में कोई आसान-सा करतब दिखा दो.”
हॉल में कुछ राहतभरी हलचल हुई. फागोत और बिल्ला अलग-अलग दिशाओं की ओर हटे. फ़ागोत ने अपनी उँगलियाँ नचाते हुए कहा, “तीन, चार!” और हवा में से एक ताश की गड्डी प्रकट हुई. उसे फेंटकर इस तरह बिखेरा कि वह एक फीते की शक्ल में बदल गई. बिल्ले ने इस फीते को पकड़कर उसे वापस छोड़ दिया. फ़ागोत ने घोंसले में दुबके पंछी की तरह अपना मुँह खोला और साँप की तरह बल खाते फीते का एक-एक पत्ता निगल लिया.
इसके बाद बिल्ले ने पिछला दाहिना पैर घुमाते हुए झुककर जनता का अभिवादन किया. हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा.
“बेहतरीन, शाबाश!” लोग चिल्ला पड़े.
फ़ागोत ने नीचे बैठे लोगों की ओर उँगली से इशारा किया और उन्हें सम्बोधित करते हुए बोला, “मेहरबान, क़दरदान! इस वक़्त ताश की गड्डी सातवीं पंक्ति में बैठे हुए पार्चेव्स्की की जेब में है – तीन रुबल वाले नोट और कोर्ट के उस समन के बीच जहाँ उन्हें महोदया ज़ेल्कोवाया का कर्ज़ चुकाने के सिलसिले में बुलाया गया है.”
सामने की कतारों में बैठे लोगों के बीच हलचल मच गई, लोग उठ-उठकर देखने लगे और अंत में एक नागरिक ने, जिसका नाम वास्तव में पार्चेव्स्की था, विस्मय तथा घबराहट से अपनी जेब से ताश की गड्डी निकाली और उसे हवा में घुमाने लगा, यह न जानते हुए कि उसका क्या किया जाए.
“इसे अपने ही पास रहने दीजिए, यादगार के तौर पर!” फ़ागोत चिल्लाया, “कल शाम खाने की मेज़ पर आपने ठीक ही कहा था कि जुए के बिना मॉस्को में जीना दुश्वार हो जाता.”
“घिसी-पिटी चाल है!” बालकनी से आवाज़ सुनाई दी, “यह उन्हीं का आदमी है.”
“आप ऐसा सोचते हैं?” बालकनी की ओर आँखें सिकोड़कर देखते हुए फ़ागोत दहाड़ा, “तब तो आप भी हमारे ही आदमी हैं, क्योंकि अब ताश की गड्डी आपकी जेब में है!”
बालकनी में कुछ हलचल हुई और एक आश्चर्यमिश्रित चीख सुनाई दी.
“बिल्कुल ठीक! उसके पास ही है! यह रही, यह! रुको! हाँ, यह तो दस रुबल के नोटों की गड्डी है!”
नीचे बैठे हुए लोगों ने मुड़कर देखा. बालकनी में बैठे किसी आदमी की जेब से बैंक में बनाई गई गड्डी निकली, जिस पर लिखा था “एक हज़ार रुबल”.
बगल में बैठे लोग उस पर झपट पड़े और वह परेशानी की हालत में बैंक द्वारा चिपकाए गए कागज़ को फाड़कर यह देखने की कोशिश कर रहा था कि नोट असली हैं या जादुई.
“हे भगवान! असली हैं! दस-दस रुबल के नोट!” बालकनी से खुशी भरी किलकारियाँ सुनाई दीं.
“मेरे साथ भी ऐसा ही ताश वाला चमत्कार कीजिए,” हॉल के बीचोंबीच बैठा हुआ एक मोटा चिल्लाया.
क्रमश:
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