अध्याय – ५
असाधारण घटनाएं
चुराना मुश्किल नहीं है. वापस अपनी
जगह पर रखना – ये है कमाल की बात.
होल्स्टर में रखे रिवोंल्वर को
अपनी जेब में रखकर मैं अपने दोस्त के घर आया.
मेरे दिल की धड़कन बंद हो गई, जब मैंने
दरवाज़े से उसकी चीखें सुनीं:
“मामा! और कौन?...”
बुढ़िया की, उसकी माँ की दबी-दबी
आवाज सुनाई दी:
“प्लंबर...”
“क्या हुआ?” मैंने
ओवरकोट उतारते हुए पूछा.
दोस्त ने इधर-उधर देखा और
फुसफुसाकर बोला:
“आज किसीने रिवॉल्वर पार कर लिया…. कमीने
कहीं के...”
“आय-याय-याय,” मैंने कहा.
बूढ़ी मम्मा पूरे छोटे से क्वार्टर
में घूम रही थी, कोरिडोर के फर्श पर रेंग रही थी, किन्हीं टोकरियों में देख रही
थी.
“ममाशा! ये बेवकूफी है! फर्श पर
रेंगना बंद करो!”
“आज?” मैंने
प्रसन्नता से पूछा. (वह गलत था, रिवॉल्वर कल
गायब हो गया था, मगर न
जाने क्यों उसे ऐसा लगा कि उसने कल रात को उसे मेज़ की दराज़ में देखा था.)
“और आपके यहाँ कौन आया था?”
“प्लम्बर”, मेरा दोस्त चिल्लाया.
“पर्फ्योशा! वह स्टडी रूम में नहीं
गया,” ममाशा ने डरते हुए कहा, “सीधे नल
की तरफ गया...”
“आह, ममाशा! आह, ममाशा!”
“इसके अलावा कोई और तो नहीं आया? और कल कौन
आया था?”
“और तो कल कोई भी नहीं आया! सिर्फ
आप आये थे, और कोई नहीं.”
और मेरे दोस्त ने अचानक मुझ पर
अपनी आँखें गडा दीं.
“माफ कीजिये,” मैंने
गरिमा पूर्वक कहा.
“आह! कितनी जल्दी बुरा मान जाते
हैं ये बुद्धिजीवी!” दोस्त चहका. “मैं ये तो नहीं सोच रहा हूँ कि आपने उसे पार कर
लिया है.”
और वह फ़ौरन यह देखने के लिए लपका
कि प्लम्बर किस नल की तरफ गया था. ममाशा प्लम्बर को प्रस्तुत कर रही थी और उसके
लहजे की नक़ल भी कर रही थी.
“ये, ऐसे आया,” बुढ़िया बता
रही थी, “उसने कहा ‘नमस्ते’...” टोपी लटका दी – और गया...”
“किधर गया?”
बुढ़िया प्लम्बर की नक़ल उतारते हुए,
किचन में गई, मेरा दोस्त उसके पीछे गया, मैंने झूठ
मूठ ऐसे दिखाया जैसे उनके पीछे हूँ, फ़ौरन
अध्ययन कक्ष में मुड़ गया, रिवॉल्वर
को बाई नहीं, बल्कि दाई दराज में रख दिया और किचन की ओर गया.
“आप उसे कहाँ रखते हैं?” मैंने
अध्ययन कक्ष में सहानुभूति पूर्वक पूछा.
दोस्त ने बाईं दराज़ खोली और खाली
जगह की और इशारा किया.
“समझ नहीं पा रहा हूँ,” मैंने
कंधे सिकोड़ते हुए कहा, “वाकई में रहस्यमय बात है, - हाँ, ये
साफ है कि चुराई गई है.”
मेरा दोस्त पूरी तरह परेशान हो
गया.
“मगर फिर
भी, मैं सोच रहा हूँ कि उसे चुराया नहीं है,” मैने कुछ
देर बाद कहा. “आखिर, अगर कोई
आया ही नहीं था, तो उसे
कौन चुरा सकता है?”
दोस्त अपनी
जगह से उछला और उसने प्रवेश कक्ष में टंगे पुराने ओवरकोट की जेबें ढूंढी.
वहाँ कुछ
नहीं मिला.
“ज़ाहिर है, चुरा ली
है,” मैंने सोच में डूब कर कहा,
“पुलिस में रिपोर्ट लिखवानी पड़ेगी.”
दोस्त ने कराहते हुए कुछ कहा.
“आपने कहीं और तो नहीं घुसा दी?”
“मैं उसे हमेशा एक ही जगह पर रखता हूँ,” मेरा
दोस्त नर्वस होते हुए चहका, और साबित
करने के लिए मेज़ की बीच वाली दराज़ खोली. फिर होठों से कुछ फुसफुसाते हुए, बाईं दराज़
खोली और उसके भीतर हाथ भी डाला, फिर उसके
नीचे वाली, और फिर गाली देते हुए दाईं दराज़
खोली.
“ये हुई न बात!” वह मेरी तरफ देखते
हुए भर्राया, “ये रही, ममाशा!
मिल गई!”
उस दिन वह असाधारण रूप से खुश था
और उसने मुझे लंच के लिए रोक लिया.
मेरी अंतरात्मा पर लटकते रिवॉल्वर
संबंधी प्रश्न को रफा-दफा करके मैंने वह कदम उठाया जिसे जोखिम भरा कहा जा सकता है, - “शिपिंग
कंपनी न्यूज़” की नौकरी छोड़ दी.
मैं एक दूसरी ही दुनिया में चला
गया, रुदल्फी के यहां जाने लगा और
लेखकों से मिलने लगा, जिनमें से
कुछ तो बेहद मशहूर थे.
मगर अब तो यह सब मेरे दिमाग से उतर
चुका है, बिना कोई निशान छोड़े, सिवाय
बोरियत के, यह सब मैं भूल गया हूँ. सिर्फ एक बात नहीं भूल सकता: और वो है रुदल्फी
के प्रकाशक, मकार र्वात्स्की से परिचय को.
बात यह थी कि रुदल्फी के पास सब
कुछ था : अक्लमंदी भी, और होशियारी
भी और व्यापक ज्ञान भी, उसके पास
सिर्फ एक चीज़ नहीं थी – पैसे. मगर अपने काम के प्रति जूनून ने रुदल्फी को इस बात
पर मजबूर किया कि चाहे जो भी हो जाए, एक मोटी पत्रिका
प्रकाशित करनी ही है. मैं समझता हूँ कि इसके बगैर तो वह मर ही गया होता.
इसी कारण से मैं एक दिन मोंस्को के
एक प्रमुख मार्ग पर स्थित एक विचित्र कमरे में पहुँचा. यहाँ, जैसा कि रुदाल्फी ने
मुझे समझाया था, प्रकाशक
र्वात्स्की बैठता था. मुझे इस बात ने चौंका दिया कि कमरे के प्रवेशद्वार पर लगा
हुआ बैनर यह बता रहा था कि यहाँ –
फोटोग्राफिक एक्सेसरीज़ का ब्यूरो है.
इससे भी ज़्यादा विचित्र बात यह थी
कि कमरे में अखबारी कागज़ में लिपटे छींट और सूती कपडे के टुकड़ों को छोड़कर कोइ भी
फोटोग्राफिक एक्सेसरीज़ नहीं थीं.
वह लोगों से उफन रहा था. वे सब
ओवरकोट, टोपियां पहने थे , आपस में
जिंदादिली से बातें कर रहे थे. मैंने उड़ते-उड़ते दो लब्ज़ सुने – “तार” और “डिब्बे”,
मुझे बेहद आश्चर्य हुआ, मगर मेरी
तरफ भी लोग अचरजभरी निगाहों से देख रहे थे. मैंने कहा, कि मैं
र्वात्स्की के पास काम के सिलसिले में आया हूँ. मुझे फ़ौरन और बहुत आदर के साथ
प्लायवुड के पार्टीशन के पीछे ले जाया गया, जहां मेरा आश्चर्य उच्चतम सीमा तक
पहुँच गया.
लिखने की मेज़ पर, जिसके
पीछे र्वात्स्की बैठा था एक के ऊपर एक कई सारे मछलियों के बक्से रखे थे.
मगर खुद र्वात्स्की मुझे उसके
प्रकाशन गृह में रखे मछलियों के बक्सों से ज़्यादा बुरा लगा. र्वात्स्की एक सूखा, दुबला-पतला, छोटे कद
वाला आदमी था, मेरी
आंखों के लिए, जिन्हें
“शिपिंग कंपनी” में ढीले ट्यूनिक्स को देखने की आदत थी, बेहद अजीब
तरह के कपडे पहने हुए था. उसने कोट पहना था, धारीदार
पतलून, गंदी कलफ की हुई कॉलर, और कॉलर पर
हरी टाई, और टाई में रूबी की पिन टंकी थी.
र्वात्स्की ने मुझे आश्चर्यचकित
किया, और मैंने र्वात्स्की को या तो डरा
दिया, या, असल में
परेशान कर दिया, जब मैंने
स्पष्ट किया कि उसके द्वारा प्रकाशित पत्रिका में मेरे उपन्यास के प्रकाशन के
संबंध में उसके साथ एग्रीमेंट पर दस्तखत करने आया हूँ. मगर फिर भी, उसने
शीघ्र ही अपने आप को संभाल लिया, मेरे
द्वारा लाई गई एग्रीमेंट की दो प्रतियां लीं, फाउन्टेन
पेन निकाला, लगभग बिना पढ़े दोनों पर दस्तखत कर
दिए और फाउन्टेन पेन के साथ दोनों प्रतियां मेरी और बढ़ा दीं. मैंने फाउन्टेन पेन
हाथ में लिया ही था, कि अचानक
मेरी नज़र डिब्बे पर पडी जिस पर लिखा हआ था,
“अस्त्राखान की चुनी हुई मछलियाँ” और जाल बना हुआ था, जिसके
निकट मोडी हुई पतलून पहने मछेरा था, और एक
चुभता हुआ ख़याल मेरे मन में कौंध गया.
“क्या पैसे मुझे फ़ौरन मिलेंगे, जैसा कि
एग्रीमेंट में लिखा है?” मैंने
पूछा.
र्वात्स्की पूरी तरह से मधुरता और
शिष्टता की मुस्कान में परिवर्तित हो गया.
थोड़ा-सा खांसकर उसने कहा, “ठीक दो
सप्ताह बाद, अभी थोडी अड़चन है....”
मैंने पेन रख दिया.
“या एक सप्ताह बाद,”
र्वात्स्की ने फ़ौरन कहा, “आप दस्तखत
क्यों नहीं कर रहे हैं?”
“तो हम एग्रीमेंट पर तभी दस्तखत
करेंगे, जब अड़चन सुलझ जायेगी.”
र्वात्स्की सिर हिलाते हुए कड़वाहट
से मुस्कुराया.
“आपको मुझ पर यकीन नहीं है?” उसने
पूछा.
“मेहेरबानी कीजिये.”
“ आखिरी बात, बुधवार
को!” र्वात्स्की ने कहा, “अगर आप
को पैसों की ज़रुरत है तो.”
“अफसोस है, नहीं कर
सकता.”
“एग्रीमेंट पर दस्तखत करना
महत्त्वपूर्ण है,”
र्वात्स्की ने विवेकपूर्ण ढंग से कहा, “और पैसे
मंगलवार को भी दिए जा सकते हैं.”
“अफसोस है कि नहीं कर सकता” और अब
मैंने एग्रीमेंट की प्रतियां हटा लीं और बटन बंद किया. लिया.
“एक मिनट, आह, कैसे हैं
आप!” र्वात्स्की चहका, “और कहते हैं कि लेखक - अव्यावहारिक होते हैं.” और उसके
फीके चहरे पर उदासी छा गई, उसने परेशानी
से इधर उधर देखा, मगर कोई
नौजवान भाग कर आया और उसने र्वात्स्की को सफ़ेद कागज़ में लिपटा हुआ कार्डबोर्ड का
टिकट थमा दिया, “ये रिज़र्व्ड
सीट का टिकट है,” मैंने
सोचा, “वह कहीं जा रहा है...”
प्रकाशक के गालों पर लाली छा गई,
उसकी आंखें चमकने लगीं, मैंने बिलकुल नहीं सोचा था कि ऐसा हो सकता है.
संक्षेप में,
र्वात्स्की ने मुझे वह रकम दे दी जो एग्रीमेंट में दिखाई गई थी, और बची
हुई रकम के लिए मेरे नाम से प्रोमिसरी नोट लिख कर दिया. मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली और
आख़िरी बार अपने हाथों में प्रोमिसरी नोट पकड़ा था, जो मेरे नाम से दिया गया था. (प्रोमिसरी नोट के लिए कागज़ लाने कहीं भागे, मैं किन्हीं डिब्बों पर बैठकर इंतज़ार कर रहा था, जिनसे जूते के चमड़े की तेज़ बदबू आ रही थी) मुझे बहुत खुशी
हो रही थी कि मेरे पास प्रोमिसरी नोट्स हैं.
अगले दो महीनों की याद धुंधली हो
गई है. सिर्फ इतना याद है, कि मैं
रूदल्फी के पास भुनभुना रहा था कि उसने मुझे र्वात्स्की जैसे आदमी के पास भेजा, कि धुंधली
आंखों और रूबी की टाई पिन लगाने वाला इंसान प्रकाशक हो ही नहीं सकता. ये भी याद है
कि कैसे मेरा दिल एक पल के लिए धड़कना भूल गया था, जब
रूदल्फी ने कहा, “ज़रा
प्रोमिसरी नोट तो दिखाइये,” और कैसे वह फिर से सामान्य हो गया, जब उसने
भिंचे हुए दांतों के बीच से कहा, “सब ठीक है.” इसके अलावा, यह भी कभी
नहीं भूलूंगा कि कैसे मैं इन प्रोमिसरी नोट्स में से पहले को भुनाने आया था.
शुरूआत ऐसे हुई कि “ फोटोग्राफिक एक्सेसरीज़
के ब्यूरो” का बैनर गायब हो गया था और उसकी जगह “मेडिकल कुप्पियों के ब्यूरो” वाले
बैनर ने ले ली थी.
मैं अन्दर गया और बोला, “ मुझे
मकार बरीसविच र्वात्स्की से मिलना है.”
बड़ी अच्छी तरह याद है कि मेरी
टांगें कैसे मुड़ गई थीं, जब मुझे
बताया गया कि एम. बी. र्वात्स्की ...विदेश में है.
फिर से संक्षेप में: प्लायवुड के
पार्टीशन के पीछे र्वात्स्की का भाई बैठा था.
(र्वात्स्की मेरे साथ एग्रीमेंट पर
दस्तखत करने के दस मिनट बाद विदेश चला गया था – याद है रिज़र्व्ड टिकट?) देखने में
अपने भाई से एकदम विपरीत, खिलाड़ियों
की तरह हट्टे-कटते, बोझिल आँखों वाले अलोइज़ी र्वात्स्की ने प्रोमिसरी नोट के
मुताबिक़ पैसे दे दिए.
दूसरे प्रोमिसरी नोट के पैसे मैंने, एक महीने
बाद, ज़िंदगी को कोसते हुए किसी सरकारी
दफ्तर में प्राप्त किये, जहाँ प्रोमिसरी
नोट भुनाने के लिए जाते हैं ( शायद, नोटरी के
दफ्तर, या बैंक में, जहां
जालियों वाली छोटी-छोटी खिड़कियाँ थीं).
तीसरे नोट के समय तक मैं कुछ
अक्लमंद हो गया था, अवधि से
दो सप्ताह पहले दूसरे र्वात्स्की के पास गया और बोला, कि थक गया
हूँ.
र्वात्स्की के उदास भाई ने पहली
बार मुझ पर नज़र डाली और बुदबुदाया:
“समझता हूँ. मगर आपको समय पूरा
होने का इंतज़ार क्यों करना है? अभी भी
पैसे लेना संभव है.”
आठ सौ रूबल्स के स्थान पर मैंने
चार सौ प्राप्त किये और बड़ी राहत से र्वात्स्की को दो लम्बे कागज़ थमा दिए.
आह, रुदल्फी,
रुदल्फी! शुक्रिया मकार के लिए और अलोइज़ी के लिए.
खैर, आगे नहीं
भागेंगे, आगे इससे भी बुरा होने वाला है.
वैसे, मैंने
अपने लिए ओवरकोट खरीद लिया.
और आखिरकार वह दिन आ पहुँचा, जब भयानक
बर्फबारी में मैं इसी बिल्डिंग में पहुँचा. शाम का समय था. सौ कैंडल पॉवर वाला
लैम्प बुरी तरह आंखों में चुभ रहा था. लैम्प के नीचे,
प्लायवुड-पार्टीशन के पीछे दोनों र्वात्स्कियों में से कोई नहीं था (क्या यह बताने
की ज़रुरत है कि दूसरा भी चला गया था). इस लैम्प के नीचे ओवरकोट पहने रुदल्फी बैठा
था, और उसके सामने मेज़ पर, और फर्श
पर, और मेज़ के नीचे अभी-अभी छाप कर
आयी हुई पत्रिका के अंक की भूरी-नीली प्रतियाँ पडी थीं. ओह, वह पल! अब तो मुझे हंसी आती है, मगर तब मैं ज़्यादा जवान था.
रुदल्फी की आंखें चमक रही थीं.
कहना पडेगा, कि वह अपने काम से प्यार करता था.
वह असली सम्पादक था.
कुछ ऐसे नौजवान लोग होते हैं, और आप, बेशक, मॉस्को
में उनसे मिल चुके है.
ये नौजवान पत्रिकाओं के सम्पादकीय
दफ्तरों में नए अंक के प्रकाशन के अवसर पर उपस्थित रहते हैं, मगर वे लेखक नहीं
होते. वे सभी थियेटर्स के ग्रान्ड रिहर्सल्स पर मौजूद रहते हैं, हांलाकि
वे अभिनेता नहीं होते, वे
कलाकारों की प्रदर्शनियों में रहते हैं, हांलाकि
खुद कुछ नहीं रचते. ऑपेरा की प्रमुख गायिकाओं का उल्लेख वे उनके कुलनाम से नहीं, बल्कि नाम
और पिता के नाम से करते हैं, नाम और
पिता के नाम से ही उन लोगों का उल्लेख करते हैं, जो
ज़िम्मेदार पदों पर होते हैं, हांलाकि
व्यक्तिगत रूप से उनसे परिचित नहीं होते. बल्शोय थियेटर के प्रीमियर पर वे सातवीं
और आठवीं पंक्तियों में सिकुड़कर बैठे होते हैं, और ड्रेस
सर्कल में बैठे किसी की और देखकर हाथ हिलाते हैं,
“मेत्रोपोल” में वे फव्वारे के पास वाली मेज़ पर बैठते हैं, और
रंगबिरंगे बल्ब उनकी बेल-बॉटम वाली पतलूनों को प्रकाशित करते हैं.
उनमें से एक रुदल्फी के सामने बैठा
था.
“ तो, आपको
हमारा नया अंक कैसा लगा?” रुदल्फी
ने नौजवान से पूछा.
“इल्या इवानिच!” हाथों में पत्रिका
के पन्ने पलटते हुए नौजवान ने भावुकता से कहा, “आकर्षक
पत्रिका है, मगर, इल्या
इवानिच, साफ-साफ कहने की इजाज़त दीजिये, हम, आपके पाठक, समझ नहीं
पा रहे हैं, कि अपनी पसंद के बावजूद, आपने
मक्सूदव की इस चीज़ को कैसे शामिल कर लिया.”
“ये है
नमूना”! ठंडा पड़ते हुए मैंने सोचा. मगर रुदल्फी ने किसी षडयंत्रकारी की भाँति मुझे
आंख मारी और पूछा: “क्या हुआ?”
“फरमाइए,” नौजवान
चहका, “पहली बात...आप मुझे स्पष्ट रूप
से कहने की इजाज़त देंगे, इल्या
इवानाविच?”
“प्लीज़, प्लीज़,”
रुदल्फी ने मुस्कुराते हुए कहा.
“पहली बात, ये जड से
ही गंवारू है...मैं कम से कम बीस ऐसी जगहे दिखा सकता हूँ, जहाँ
वाक्य रचना की बेहद फूहड गलतियाँ हैं.”
“फ़ौरन फिर से पढ़ना होगा,” मैं जैसे
बर्फ बनाते हुए सोचा.
“और, शैली!” नौजवान चीखा, “माय गॉड,
कैसी भयानक शैली है! इसके अलावा, ये कुछ खिचडी
जैसी, नकलछाप, मरियल
शैली है! सस्ती फिलोसोफी, सतही तौर पर फिसलने जैसा है... बुरी, सपाट है
इल्या इवानविच! इसके अलावा, वह नक़ल
करता है...”
“किसकी?” रुदल्फी
ने पूछा.
“अवेर्चिन्का की!” पत्रिका को घुमाते और पलटते हुए, और
चिपके हुए पन्नों को उँगलियों से अलग करते हुए नौजवान चीखा – अत्यंत साधारण
अवेर्चिन्का की! लीजिये, मैं आपको
दिखाता हूँ,” – और नौजवान पत्रिका में ढूँढने
लगा, और मैं, बत्तख की तरह उसके हाथों
का पीछा करता रहा. मगर, अफसोस, वह वो
नहीं ढूंढ पाया जिसे खोज रहा था.
“घर में ढूंढ लूँगा,” मैं सोच
रहा था.
“घर में ढूँढूँगा,” नौजवान ने वादा
किया, “किताब खराब हो गई, या खुदा, इल्या
इवानविच. वह बिलकुल अनपढ़ है! कौन है वो? कहाँ पढ़ा
है?”
“वह कहता है कि उसने पेरिश स्कूल
पूरा किया है,” आंखें
चमकाते हुए रुदल्फी ने जवाब दिया, “मगर, आप खुद ही
उससे पूछ लीजिये. प्लीज़,
मिलिए.”
नौजवान के गालों पर जैसे हरी, सड़ी हुई
फफूंद की पर्त छा गई, और उसकी
आंखें ऐसी दहशत से भर गईं, जिसका वर्णन
नहीं किया जा सकता.
मैंने झुककर नौजवान का अभिवादन
किया, उसने अपने दांत दिखाए, तकलीफ उसके
प्यारे नाक-नक्श को विकृत कर रही थी. उसने कराहते हुए जेब से रूमाल निकाला और अब
मैंने देखा कि उसके गाल पर खून बह रहा है. मैं अवाक रह गया.
“आपको क्या हुआ है?” रुदल्फी
चीखा.
“कील,” नौजवान
ने जवाब दिया.
“अच्छा, मैं चला,” मैंने
नौजवान की और न देखने की कोशिश करते हुए सूखी जुबान से कहा.
“किताबें तो लेते जाइए.”
मैंने लेखकीय प्रतियों का गट्ठा
लिया, रुदल्फी से हाथ मिलाया, झुककर
नौजवान का अभिवादन किया, जिसने
निरंतर अपने गाल पर रूमाल दबाते हुए, फर्श पर
किताब और छडी गिरा दी, और पीछे
सरकता हुआ दरवाज़े की तरफ सरका, कुहनी मेज़ पर मारी और बाहर निकल गया.
भारी बर्फ गिर रही थी, क्रिसमस
ट्री वाली बर्फ.
ये वर्णन करने की ज़रुरत नहीं है, कि कैसे
मैं पूरी रात बैठकर उपन्यास के विभिन्न स्थानों को पढ़ता रहा. इस बात पर ध्यान देना
होगा, कि कहीं कहीं उपन्यास अच्छा लग
रहा था, मगर इसके फ़ौरन बाद वह घिनौना लगने
लगता. सुबह तक तो मुझे उससे भयानक डर लगने लगा.
अगले दिन की घटनाएं मुझे याद हैं.
सुबह मेरे पास मेरा दोस्त आया था, जिसके
यहाँ मैंने चोरी की थी, जिसे
मैंने उपन्यास की एक प्रति भेंट की, और शाम को
मैं एक पार्टी में गया, जिसे लेखकों
के एक समूह ने एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण
घटना – प्रसिद्ध लेखक इज्माइल अलेक्सांद्रविच बन्दर्योव्स्की के विदेश से वापस
लौटने के मौके पर आयोजित किया था.
समारोह की गरिमा इसलिए भी बढ गई थी
कि साथ ही एक और प्रसिद्ध लेखक इगोर अगाप्योनव का भी सम्मान किया जाने वाला था, जो अपनी
चीन की यात्रा से लौटे थे.
और मैंने कपडे पहने और अत्यंत उत्तेजना
से चल पडा पार्टी के लिए. आखिर मेरे लिए ये “वो” नई दुनिया थी, जहाँ मैं
जाना चाहता था. ये दुनिया मेरे सामने खुलने वाली थी, और वो भी
सबसे अच्छी तरफ से – पार्टी में साहित्य के जाने माने प्रतिनिधि आने वाले थे, उसकी पूरी
चमक दमक दिखाई देने वाली थी.
और जैसे ही मैंने क्वार्टर में
प्रवेश किया, मेरा दिल खुशी से उछलने लगा.
सबसे पहले जिस पर मेरी नज़र पडी, वो वही कल
वाला नौजवान था, जिसने कील से अपना कान
ज़ख़्मी कर लिया था. उसका चेहरा साफ बैंडेज की पट्टियों में लिपटा होने के
बावजूद मैं उसे पहचान गया.
मुझे देखकर वह ऐसे खुश हुआ जैसे
किसी अपने से मिल रहा हो, और बड़ी
देर तक हाथ मिलाता रहा, यह बताते
हुए कि वह पूरी रात मेरा उपन्यास पढ़ता रहा और उसे उपन्यास अच्छा लगने लगा था.
“मै भी,” मैंने
उससे कहा, “पूरी रात पढ़ता रहा, मगर अब वह
मुझे पसंद आना बंद हो गया.”
हम गर्म जोशी से बातें कर रहे थे, जिसके
दौरान नौजवान ने मुझे बताया कि फिश-जैली देने वाले है. आमतौर से वह खुश और
उत्तेजित था.
मैंने चारों ओर नज़र दौडाई – नई
दुनिया ने मुझे भीतर आने दिया था, और यह दुनिया मुझे अच्छी लगी. क्वार्टर बहुत बड़ा
था, मेज़ पर करीब पच्चीस प्लेटें सजाई
गई थीं; क्रिस्टल जगमगा रहा था; काली
कैवियार में भी चिनगारियाँ चमक रही थीं; ताजी, हरी
ककड़ियाँ किन्हीं पिकनिकों के, न जाने क्यों, प्रसिद्धि वगैरह के बारे में
बेवकूफीभरे-खुशनुमा खयाल पैदा कर रही थीं.
फ़ौरन मेरा परिचय सबसे प्रसिद्ध
लेखक लिसासेकव से और उपन्यास लेखक तून्स्की से करवाया गया. महिलाएं हाँलाकि कम
थीं, मगर थीं.
लिकास्पास्तव जल से भी ज़्यादा
खामोश, घास से भी कम ऊंचा था, और तभी
मैंने महसूस किया कि वह औरों से कुछ कमतर ही होगा, कि भूरे
बालों वाले नौसिखिए लिसासेकव से भी उसकी तुलना नहीं की जा सकती, बेशक, अगाप्योनव
या इज्माइल अलेक्सान्द्रविच की तो बात ही छोडिये.
लिकास्पास्तव मेरे पास आया, हमने एक
दूसरे का अभिवादन किया.
“तो, फिर,” न जाने
क्यों गहरी सांस लेकर लिकास्पास्तव ने कहा, “ मुबारक
हो. तहे दिल से मुबारकबाद देता हूँ. और सीधे-सीधे तुझ से कहता हूँ – तू चालाक है, भाई. मैं
शर्त लगाने को तैयार हूँ कि तेरा उपन्यास प्रकाशित होना नामुमकिन है, एकदम असंभव
है. तूने रुदल्फी को कैसे पटा लिया, समझ नहीं
पा रहा हूँ. मगर तुझसे कहे देता हूँ, कि तू दूर
तक जाएगा! देखने में तो – खामोश तबियत लगते हो...मगर खामोश इंसान में...”
यहाँ लिकास्पास्तव की बधाइयों को पोर्च
से आती हुई जोरदार ड़ोअर बेल्स ने बीच में ही रोक दिया, और मेज़बान
की भूमिका निभा रहा आलोचक कोन्किन
(आयोजन उसंके क्वार्टर में हो रहा था) चीखा:
“वो है !”
और वाकई में : ये इज्माईल
अलेक्सान्द्रविच ही निकला. प्रवेश कक्ष में खनखनाती आवाज़ सुनाई दी, फिर चूमने
की आवाजें, और डाइनिंग होंल में जैकेट पर
सेल्यूलॉइड की कॉलर लगाए एक छोटे कद के नागरिक ने प्रवेश किया. आदमी परेशान, खामोश,
विनम्र था और उसने हाथ में एक टोपी पकड़ रखी थी, जिसे उसने न जाने क्यों प्रवेश
कक्ष में नहीं छोड़ा था. टोपी पर मखमल का बैण्ड और सिविलियन बैज का धूलभरा निशान
था.
“माफ़ कीजिये, यहाँ कोई
गड़बड़ है,” जोरदार ठहाके के साथ भीतर प्रवेश करते हुए आदमी के साथ प्रवेश कक्ष से
सुनाई दिए “बटन खोल” इस शब्द का तालमेल न बिठाते हुए मैंने सोचा.
गड़बड़ हो ही गई थी. भीतर आने वाले
के पीछे-पीछे नजाकत से कमर में हाथ डाले कोन्किन एक ऊंचे और हट्टे कट्टे ख़ूबसूरत आदमी
को डाइनिंग होल में लाया, जिसकी हलके
रंग की घनी, घुंघराली दाढी थी और घुंघराले बाल
सलीके से कंघी किये हुए थे.
वहाँ उपस्थित उपन्यासकार फिआल्कव ने, जिसके
बारे में रुदल्फी ने मुझसे फुसफुसाकर कहा था कि वह काफी ऊंचाई पर जा रहा है, बढ़िया
कपडे पहने थे, (वैसे सभी
ने अच्छे कपडे पहने थे), मगर फिआल्कव के सूट की तुलना इस्माइल अलेक्सान्द्रविच की
पोशाक से नहीं की जा सकती थी. बढ़िया कपडे का और पैरिस के बेहतरीन टेलर द्वारा सिला
हुआ, कत्थई रंग का सूट इस्माइल
अलेक्सान्द्रविच के छरहरे, मगर कुछ
फूले हुए बदन पर चुस्त बैठा था. कमीज़ कलफ की हुई, पेटेंट
लेदर के जूते, नीलम के
कफ-लिंक्स. साफ-सुथरा, सफ़ेद, ताज़ा
तवाना, प्रसन्न, सीधा-सादा
था इस्माइल अलेक्सान्द्रविच. उसके दांत चमके और वह भोज की मेज़ पर नज़र डालकर चीखा:
“हा! शैतानो!!
और ठहाके और तालियाँ गूँज उठे और चुम्बनों की आवाज़ सुनाई
दीं. किसी के साथ इज्माइल अलेक्सान्द्रविच हाथ मिला रहा था, किसी को अपनी बांहों
में ले रहा था, किसी के सामने मज़ाक से सफ़ेद हथेली से चेहरा ढांक कर मुँह फेर लेता मानो
रोशनी चुंधिया गया हो, और साथ ही
ठहाका लगाता.
मुझे, शायद कोई और समझ कर उसने तीन
बार चूमा, इस्माइल अलेक्सान्द्रविच से
कन्याक की, यूडी कलोन की और सिगार की गंध आ
रही थी.
“बक्लाझानव!” इस्माइल
अलेक्सान्द्रविच पहले प्रवेश करते हुए व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए चिल्लाया, “मिलिए, बक्लाझानव, मेरा
दोस्त.”
बक्लाझानव पीडाभरी मुस्कान से
मुस्कुराया और, इस अनजान,
बड़ी महफ़िल में परेशानी से उसने अपनी कैप एक लड़की के चोकलेट के बुत को पहना दी, जिसके
हाथों में इलेक्ट्रिक लैम्प था.
“मैं इसे अपने साथ घसीट लाया!”
इस्माइल अलेक्सान्द्रविच कहता रहा. “घर में क्यों बैठा रहे. मिलिए – एक गज़ब का
इंसान और बेहद ज़हीन. और, मेरी बात
याद रखिये, साल भर में वहा हम सबको लपेट लेगा! तूने, शैतान, उसे कैप
क्यों पहना दी? बक्लाझानव?”
बक्लाझानव शर्म से लाल हो गया और
वह ‘हैलो’ कहने ही वाला था, मगर उसके
मुँह से कुछ न निकला, क्योंकि
लोगों को बैठाने का दौर उफान पर था, और उनके
बिठाए गए लोगों के बीच फूली-फूली लच्छेदार पेस्ट्री पेश की जा रही थी.
भोज फ़ौरन ही दोस्ताना, प्रसन्न,
खुशनुमा अंदाज़ में शुरू हो गया.
“पाइ बेकार गईं!” मैंने इस्माइल
अलेक्सान्द्रविच की आवाज़ सुनी. हमने-तुमने बक्लाझानव पाइ क्यों खाई?”
क्रिस्टल की आवाज़ कानों को सहला
रही थी, ऐसा लगा, जैसे
झुम्बर में रोशनी बढ गई हो.
तीसरे जाम के बाद सबकी नज़रें
इस्माइल अलेक्सान्द्रविच की और मुड गईं.
अनुरोध सुनाई दिए:
“पैरिस के बारे में! पैरिस के बारे
में!”
“खैर, मिसाल के
तौर पर ऑटोमोबाइल एक्जीबिशन में गए थे,” इस्माइल
अलेक्सान्द्रविच सुना रहा था, “उदघाटन, हर चीज़ प्रोटोकोल के मुताबिक़, मिनिस्टर, जर्नलिस्ट्स,
भाषण...जर्नलिस्ट्स के बीच में यह बदमाश, कन्द्युकोव साशा खडा था... तो,
फ्रांसीसी, बेशक भाषण दे रहा था...बिलकुल माचिस की तीली जैसा. शैम्पेन, ज़ाहिर है.
सिर्फ देखता क्या हूँ – कन्द्युकोव गाल फुला रहा है, और हम पलक भी झपका नहीं पाए
कि उसे उल्टी हो गई!
वहाँ महिलाएं थी, मिनिस्टर
थे! और वह, कुत्ते का पिल्ला!... और उसे क्या
ख़याल आ रहा था, अब तक समझ
नहीं पा रहा हूँ. खतरनाक स्कैंडल. मिनिस्टर, बेशक, यूँ दिखा
रहा है कि वह कुछ नहीं देख रहा है, मगर
देखेगा कैसे नहीं.... टेल कोट, कैप, पतलून सब
मिलाकर एक हज़ार फ्रैंक के. सब बर्बाद हो गया. खैर, उसे बाहर
ले गए, पानी पिलाया और वापस छोड़ आये....”
“और! और!” मेज़ से चिल्लाए.
इसी समय सफ़ेद एप्रन पहनी नौकरानी
स्टर्जन परोस रही थी. जोर से घंटी बजी, आवाजें
सुनाई दीं. मगर मैं पैरिस के बारे में जानने के लिए तड़प रहा था, और घंटी
की आवाज़ के बीच, खटखटाहट
के बीच और विस्मयजनक टिप्पणियों के बीच मैं अपने कान से इस्माइल अलेक्सान्द्रविच
की कहानियों को सुनता रहा.
“बक्लाझानव! तू खा क्यों नहीं रहा
है?”
“आगे! प्लीज़!” नौजवान तालियाँ
बजाते हुए चीखा...”आगे क्या हुआ?”
“आगे ये दोनों धोखेबाज़ शान-ज़िलीज़े
में एक दूसरे से टकरा गए...हिसाब बराबर! और वह देख भी नहीं पाया था कि इस बदमाश
कात्किन ने सीधे उसके थोबड़े पर थूक दिया!...”
“आय-आय-आय!”
“हाँ-रे...बक्लाझानव! तू सोना नहीं, शैतान
कहीं के!...तो, फिर, उत्तेजना
से, वह भयानक न्यूरोटिक है, गड़बड़ा
गया, और सीधे एक महिला से टकरा गया, पूरी तरह
अनजान महिला से, सीधे उसकी हैट से...”
“शान-ज़िलीज़े में?!”
“सोच सकते हो! वहाँ इतना आसान है!
और उसकी सिर्फ हित हैट ही तीन हज़ार फ्रैंक्स की थी! खैर, बेशक, किसी एक
सज्जन ने उसके थोबड़े पे किसी छडी से...कैसा खतरनाक स्कैंडल!”
तभी कोने में ‘फट्’ आवाज़ हुई, और मेरे
सामने एक संकरे जाम में पीली ‘अब्राऊ’
चमक उठी....याद है, कि
इस्माइल अलेक्सान्द्रविच की सेहत के नाम पी रहे थे.
और मैं फिर से पैरिस के बारे में
सुनने लगा.
“वह, बिना किसी
शर्म के उससे कहता है, “कितना? और
वह...बदमाश! (इस्माइल अलेक्सान्द्रविच ने अपनी आंखें सिकोड लीं.) बोला, आठ हज़ार!”
और ये, जवाब में: “मिल जाएगा!” और अपना
हाथ निकालकर फ़ौरन उसे ठेंगा दिखाता है!”
“ग्रांड-ओपेरा में?!”
“सोचो! उसने ग्रांड-ओपेरा की ज़रा
भी कद्र नहीं की. वहाँ दूसरी पंक्ति में दो मिनिस्टर बैठे थे.”
“अच्छा, और वो? उसने क्या
किया?” ठहाका मारते हुए किसी ने पूछा.
“माँ की गाली दी, ज़ाहिर
है!”
“लोगों!”
“खैर, दोनों को
ले गए बाहर, वहाँ ये आसान है...”
पार्टी मस्ती में चल रही थी. मेज़
के ऊपर धुआं तैर रहा था, उसकी
परतें बन रही थीं. मुझे पैर के नीचे कोई नरम और चिकनी चीज़ महसूस हुई और, झुकने के
बाद मैंने देखा कि ये सैलमन मछली का टुकड़ा था, और पता नहीं, वह पैर के
नीचे कैसे आ गया. इस्माइल अलेक्सान्द्रविच के शब्द ठहाकों में डूब गए, और बाकी की
चौंकाने वाली पैरिस की कहानियां मेरे लिए अज्ञात रह गईं.
मैं विदेशी ज़िंदगी की विचित्रताओं
के बारे में ठीक से सोच भी नहीं पाया कि घंटी ने इगोर अगाप्योनव के आगमन की सूचना
दी. अब काफी गड़बड़ होने लगी थी. बगल के कमरे से पियानो सुनाई दे रहा था, कोई
हौले-हौले फॉक्सट्रोट की धुन बजा रहा था, और मैंने
देखा कि मेरा वाला नौजवान कैसे एक महिला को नज़दीक से थामे ताल दे रहा है.
इगोर अगाप्योनव प्रसन्नता से, मस्ती से
अन्दर आया, और उसके पीछे-पीछे आया एक चीनी, छोटा-सा, सूखा-सा, पीला-सा, काली
फ्रेम का चश्मा पहने. चीनी के पीछे पीली पोशाक में एक महिला थी और एक हट्टा कट्टा
दाढीवाला आदमी, जिसका नाम
था वसीली पित्रोविच.
“इसमाश यहाँ है?” इगोर
चहका और इस्माइल अलेक्सान्द्रविच की ओर लपका.
खुशी से हँसते हुए वह थरथरा गया, चहक कर
बोला:
“हा! इगोर!” और अपनी दाढी
अगाप्योनव के कंधे पर जमा दी. चीनी सबकी और देखते हुए प्यार से मुस्कुरा रहा था, मगर एक भी
शब्द नहीं कर रहा था, जैसा कि
आगे भी उसने कुछ नहीं कहा.
“मिलिए, मेरे
दोस्त, किताइत्सेव से!” इस्माइल
अलेक्सान्द्रविच को चूमने के बाद इगोर चिल्लाया.
मगर आगे काफी शोर, गड़बड़ लगी. याद
आता है कि कमरे में कालीन पर नृत्य कर रहे थे, जिससे
काफी असुविधा हो रही थी. प्यालों में कोंफी लिखने की मेज़ पर रखी थी. वसीली पित्रोविच कन्याक पी रहा था. मैंने
आरामकुर्सी में सो रहे बक्लझानव को देखा. सिगरेट का तेज़ धुआं भर गया था. और ऐसा
महसूस होने लगा कि अब वाकई में घर जाने का समय हो गया है.
और बिलकुल अप्रत्याशित रूप से मेरी
अगाप्योनव से बातचीत होने लगी. मैंने गौर किया कि जैसे ही रात के तीन बजने वाले थे, वह कुछ बेचैन-सा
दिखाई देने लगा. और किसी के साथ किसी बारे में बातें करने लगा, और, जहाँ
तक मैं समझता हूँ, उस धुंध
और धुएँ में उसे दृढ इनकार ही मिल रहे थे. मैं, लिखने की
मेज़ के पास आराम कुर्सी में धंसा हुआ कोंफी पी रहा था, यह न समझ
पाते हुए कि मेरे दिल को क्यों चोट पहुँची है, और अचानक
ये पैरिस मुझे क्यों उकताहटभरा लगाने लगा, कि अचानक वहाँ जाने की ख्वाहिश ही ख़त्म हो गई.
तभी मुझ पर एकदम गोल चश्मा पहने एक
चौड़ा चेहरा झुका. यह अगाप्योनव था.
“मक्सूदव?” उसने
पूछा.
“जी हाँ.”
“सूना है, सूना है,”
अगाप्योनव ने कहा. “रुदाल्फी बता रहा था. कहते हैं कि आपने उपन्यास छपवाया है?”
“हाँ.”
“कहते हैं कि बढ़िया उपन्यास है. उह,
मक्सूदाव!” अगाप्योनव अचानक आंख मारते हुए फुसफुसाया, “इस नमूने
की पर गौर फरमाइए...देख रहे हैं?”
“ये – दाढ़ी वाला?”
“वही, वही, मेरा साला
है.”
“लेखक है?” मैंने
वसीली पित्रोविच को गौर से देखते हुए पूछा, जो
प्यारी-जोशीली मुस्कान बिखेरते हुए कोन्याक पी रहा था.
“नहीं! तेत्यूशी का कोऑपरेटर है...मक्सूदव, समय न
गंवाइये, - पछताना पडेगा. ऐसी खतरनाक चीज़
है! आपको अपने काम के लिए उसकी ज़रुरत पड़ेगी. आप उससे एक रात में दर्जनों कहानियां
निकलवा सकते हैं और हरेक को मुनाफे के साथ बेच सकते हैं. ऐसी-ऐसी खतरनाक कहानियां
सुनाता है – इख्तियोसारस, ताम्र युग! आप कल्पना कीजिये कि उसने अपनी तेत्यूशी में
क्या-क्या नहीं देखा होगा. उसे पकडिये, वर्ना
दूसरे लोग टांग अडायेंगे और काम बिगाड़ देंगे.”
वसीली पित्रोविच यह महसूस करके कि
बात उसीके बारे में हो रही है और भी उत्कंठा से मुस्कुराया और पी गया.
“हाँ, सबसे
बढ़िया...आइडिया!” अगाप्योनव भर्राया. “मैं अभी आपका परिचय करवाता हूँ....आप कुंआरे
हैं?” अगाप्योनव ने उत्सुकता से पूछा.
“कुँआरा ...” मैंने आंखें फाड़कर
अगाप्योनव की और देखते हुए कहा.
अगाप्योनव के चहरे पर प्रसन्नता
दिखाई दी.
“बढ़िया! आप परिचय कीजिये और उसे
अपने यहाँ रात बिताने के लिए ले जाइए! आइडिया! आपके पास कोई दीवान तो है? वह दीवान
पर सो जाएगा, उसे कुछ नहीं होगा. और दो दिन बाद वह चला जाएगा.”
विस्मय के कारण मुझे कोई जवाब ही
नहीं सूझा, सिवाय इसके, कि
“मेरे पास एक ही दीवान है....”
“चौड़ा है?” अगाप्योनव
ने परेशानी से पूछा.
मगर तब तक मैं कुछ संभल चुका था.
और बिलकुल सही वक्त पर, क्योंकि
वसीली पित्रोविच परिचय करने के लिए तैयार था और अगाप्योनव मेरा हाथ पकड़ कर खींचने
लगा था.
“माफ कीजिये,” मैंने
कहा, “मुझे अफसोस है कि किसी भी हालत
में उसे नहीं ले जा सकता. मैं किसी और के क्वार्टर में ‘पैसेज’ वाले कमरे
में रहता हूँ, और
पार्टीशन के पीछे मालकिन के बच्चे सोते हैं (मैं यह भी कहना चाहता था कि उन्हें
‘लाल बुखार’ हो रहा है, मगर बाद
में यह तय किया कि ये तो भयानक झूठ हो जाएगा, मगर फिर भी जोड़ ही दिया)...और उन्हें
‘स्कार्लेट फीवर’ है.
“वसीली!” अगाप्योनव चिल्लाया, “क्या
तुझे स्कार्लेट फीवर” हुआ था?”
ज़िंदगी में कितनी बार मुझे अपने
बारे में “बुद्धिजीवी” शब्द सुनने का मौक़ा मिला है. बहस नहीं करूंगा, मैं, हो सकता
है, इस दयनीय नाम के लायक हूँ.
मगर इस बार हिम्मत बटोर ही ली और, वसीली
पित्रोविच चिरौरी करती मुस्कुराहट से जवाब “हु...” दे भी नहीं पाया था कि मैंने
अगाप्योनव से दृढता से कह दिया:
“स्पष्ट रूप से उसे ले जाने से इनकार
करता हूँ. नहीं ले जा सकता.”
:किसी तरह,”
अगाप्योनव हौले से फुसफुसाया.
“नहीं ले जा सकता.”
अगाप्योनव ने सिर लटका लिया, अपने होंठ
चबाने लगा.
“मगर, माफ
कीजिये, वह तो आपके यहाँ आया है? वह रुका
कहाँ है?”
“मेरे घर में ही रुका है, शैतान ले
जाए,” अगाप्योनव ने अफसोस से कहा.
“और, ऊपर
से...”
“और आज ही मेरी सास भी बहन के साथ
आई है, आप समझ रहे हैं, प्यारे
इंसान, और फिर यह चीनी भी है...और शैतान इन्हें भी ले आता है,” अचानक
अगाप्योनव ने जोड़ा, “इन सालों
को. बैठा रहता अपने त्योत्यूश्की में...”
और अगाप्योनव मुझसे दूर चला गया.
न जाने क्यों एक अस्पष्ट परेशानी
मुझ पर हावी हो गई, और मैं कोन्किन
के अलावा किसी से भी बिदा लिए बगैर क्वार्टर से निकल गया.
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