मास्टर और मार्गारीटा – 20.1
अज़ाज़ेलो की क्रीम
शाम के साफ आसमान में लटकता हुआ पूरा चाँद मैपल वृक्ष की शाखों के बीच से दिखाई दे रहा था. लिण्डन और अकासिया धरती पर आड़ी-तिरछी रेखाएँ और धब्बे बना रहे थे. तीन पट वाली खुली खिड़की, जिसके परदे खिंचे हुए थे, बिजली की बदहवास रोशनी में नहाई हुई थी. मार्गारीटा निकोलायेव्ना के शयन कक्ष में सभी बल्ब जल रहे थे और कमरे की अस्त-व्यस्तता को उजागर कर रहे थे. पलंग पर कंबल के ऊपर मोज़े, स्टॉकिंग्ज़ और अंतर्वस्त्र बिखरे थे. उतारे गए अंतर्वस्त्र फर्श पर परेशानी से कुचले गए सिगरेट के पैकेट के पास फिंके पड़े थे. जूते पलंग के पास वाली छोटी-सी तिपाई पर आधे पिए कॉफ़ी के प्याले और ऐशट्रे की बगल में रखे थे, जिसमें आधा पिया सिगरेट का टुकड़ा पड़ा था. कुर्सी की पीठ पर शाम में पहनने की काली पोशाक लटक रही थी. कमरे में विभिन्न प्रकार के इत्रों की ख़ुशबू महक रही थी, साथ ही इनमें मिली थी जलती हुई इस्त्री की गंध.
मार्गारीटा निकोलायेव्ना शीशे के सामने सिर्फ एक नहाने का गाऊन पहने बैठी थी, जिसे नंगे बदन पर यूँ ही डाल लिया गया था, पैरों में स्वेड के काले जूते थे. घड़ी जड़ा सोने का ब्रेसलेट मार्गारीटा निकोलायेव्ना के सामने अज़ाज़ेलो से मिली डिब्बी के पास पड़ा था और मार्गारीटा घड़ी के डायल पर से नज़र नहीं हटा रही थी. बीचे-बीच में उसे लगता था कि घड़ी टूट गई है और काँटे आगे ही नहीं बढ़ रहे. मगर वे घूम रहे थे, हाँ, बहुत धीरे-धीरे, और आख़िर बड़ा काँटा नौ बजकर उनतीसवें मिनट पर आ ही गया. मार्गारीटा का दिल बुरी तरह धड़क उठा, जिससे वह एकदम डिब्बी न उठा सकी. अपने आप पर काबू पाते हुए उसने डिब्बी को खोला और देखा कि उसमें पीली, चिकनी क्रीम थी. उसे लगा कि उसमें से दलदली कीचड़ की गन्ध आ रही है. ऊँगली की नोक से मार्गारीटा ने थोड़ी-सी क्रीम निकालकर हथेली पर रखी, अब उसमें से दलदली घास और जंगल की तेज़ महक आने लगी. वह हथेली से माथे और गालों पर क्रीम मलने लगी. क्रीम बड़ी जल्दी बदन पर मला जा रहा था. मार्गारीटा को ऐसा लगा कि वह तभी भाप बनकर उड़ रहा है. कुछ देर मलने के बाद मार्गारीटा ने शीशे में देखा और उसके हाथ से डिब्बी छूटकर घड़ी पर जा गिरी. घड़ी के शीशे पर दरारें पड़ गईं. मार्गारीटा ने आँखें बन्द कर लीं. फिर उसने अपने आपको दुबारा आईने में देखा और ठहाका मारकर हँस पड़ी.
किनारों पर धागे की तरह पतली होती गई उसकी भवें क्रीम के कारण मोटी-मोटी हो गई थीं और हरी-हरी आँखों पर विराजमान थीं. पतली-सी झुर्री जो नाक की बगल में तब, अक्टूबर में, बन गई थी, जब मास्टर गुम हो गया था, अब बिल्कुल दिखाई नहीं दे रही थी. कनपटी के निकट के पीले साये भी गायब हो गए थे. साथ ही आँखों के किनारों पर पड़ी जाली भी अब नहीं थी. गालों की त्वचा गुलाबी हो गई थी. माथा साफ़ और सफ़ेद हो गया था, बाल खुल चुके थे.
तीस वर्षीया मार्गारीटा को आईने से देख रही थी काले, घुँघराले बालों वाली, दाँत दिखाकर बेतहाशा हँसती हुए एक बीस साल की छोकरी.
हँसना ख़त्म करके मार्गारीटा ने एक झटके से गाऊन फेंक दिया और अपने पूरे बदन पर जल्दी-जल्दी क्रीम मलने लगी. बदन गुलाबी होकर चमकने लगा. फिर मानो किसी ने सिर में चुभी हुई सुई बाहर निकाल फेंकी हो. उसकी कनपटी का दर्द गायब हो गया जो कल शाम से अलेक्सान्द्रोव्स्की पार्क में शुरू हुआ था. हाथों-पैरों के स्नायु मज़बूत हो गए, फिर मार्गारीटा का बदन हल्का हो गया.
वह उछली और पलंग से कुछ ऊपर हवा में तैरने लगी. फिर जैसे उसे कोई नीचे की ओर खींचने लगा और वह नीचे आ गई.
“क्या क्रीम है! क्या क्रीम है!” मार्गारीटा कुर्सी में बैठते हुए बोली.
इस लेप से उसमें केवल बाहरी परिवर्तन ही नहीं हुआ था. अब उसके समूचे अस्तित्व में, शरीर के हर कण में प्रसन्नता हिलोरें ले रही थी, जिसका वह हर क्षण अनुभव कर रही थी, मानो बुलबुलों के रूप में यह खुशी उसके बदन से फूटी पड़ रही थी. मार्गारीटा ने अपने आपको स्वतंत्र अनुभव किया, सब बन्धनों से मुक्त. इसके अलावा वह समझ गई, कि वह हो गया है, जिसका आभास उसे सुबह हुआ था, और अब वह ख़ूबसूरत घर और अपनी पुरानी ज़िन्दगी को हमेशा के लिए छोड़ देगी. मगर इस पुरानी ज़िन्दगी से एक ख़याल उसका पीछा कर रहा था, वह यह कि एक आख़िरी कर्त्तव्य पूरा करना है इस नए, अजीब, ऊपर, हवा में खींचते हुए ‘कुछ’ के घटित होने से पहले. और वह, वैसी ही निर्वस्त्र अवस्था में, शयनगृह से हवा में तैरते-उतरते हुए अपने पति के कमरे में पहुँची और टेबुल लैम्प जलाकर लिखने की मेज़ की ओर लपकी. सामने पड़े राइटिंग पैड से एक पन्ना फ़ाड़कर उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में पेंसिल से लिखा:
”मुझे माफ़ करना और जितनी जल्दी हो सके, भूल जाना. मैं तुम्हें हमेशा के लिए छोड़कर जा रही हूँ. मुझे ढूँढ़ने की कोशिश मत करना, कोई फ़ायदा नहीं होगा. मैं हमेशा सताने वाले दुःखों और मुसीबतों के कारण चुडैल बन गई हूँ. अब मैं चलती हूँ. अलबिदा! मार्गारीटा.”
अब एकदम हल्के मन से मार्गारीटा हवा में तैरती हुई शयन-गृह में आई और उसके पीछे-पीछे दौड़ती हुई आई नताशा, अनेक चीज़ों से लदी-फँदी. और ये सारी चीज़ें – हैंगरों में टँगी अनेक पोशाकें, लेस वाले रूमाल, नीले रेशमी जूते, और बेल्ट, सभी ज़मीन पर बिखर गईं. और नताशा ख़ाली हाथों से तालियाँ बजाने लगी.
“क्यों, अच्छा है न?” भारी आवाज़ में मार्गारीटा निकोलायेव्ना चिल्लाई.
“यह क्या है?” नताशा एड़ियों के बल चलती हुई फुसफुसाई, “आप यह कैसे कर रही हैं, मार्गारीटा निकोलायेव्ना?”
“यह क्रीम का कमाल है! क्रीम का, क्रीम का!” मार्गारीटा ने शीशे की ओर मुड़ते हुए सुनहरी डिब्बी की ओर इशारा किया.
नताशा फर्श पर गिरी सिलवटों वाली पोशाक को भूलकर ड्रेसिंग टेबुल के निकट पड़ी उस डिब्बी की ओर ललचाई नज़रों से देखने लगी, जिसमें अभी भी थोड़ी-सी क्रीम बची थी. उसके होठ कुछ बुदबुदाने लगे. वह फिर मार्गारीटा की ओर मुड़ी और उसकी प्रशंसा करने लगी, “ओह, आपका तन! त्वचा, हाँ? मार्गारीटा निकोलायेव्ना आपकी त्वचा चमक रही है!” तभी उसे गिरी हुई पोशाक की याद आई. वह सँभल कर उसे झटकते हुए उठाने लगी.
क्रमशः
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