मास्टर और मार्गारीटा – 24.1
मास्टर की वापसी
वोलान्द के शयन-कक्ष में सब कुछ वैसा ही था जैसा कि नृत्य-समारोह के पूर्व था. वोलान्द एक कुर्ते में पलंग पर बैठा था, सिर्फ अब हैला उसके पैरों पर उबटन नहीं मल रही थी, बल्कि मेज़ पर, जहाँ पहले शतरंज खेली जा रही थी, खाना खा रही थी. कोरोव्येव और अज़ाज़ेलो फ्रॉक-कोट उतारकर मेज़ के पास बैठे थे और उनके पास बिल्ला विराजमान था, जो अभी भी अपनी बो-टाई को निकालना नहीं चाहता था, हालाँकि अब वह गन्दे चिथड़े में बदल चुकी थी. मार्गारीटा लड़खड़ाते हुए मेज़ के निकट गई और उसका सहारा लेकर खड़ी हो गई. तब वोलान्द ने उसे इशारे से बुलाया, जैसा कि तब किया था, और कहा कि वह उसके निकट बैठ जाए.
“तो, आपको बहुत परेशान किया?” वोलान्द ने पूछा.
“ओह, नहीं, महाशय,” मार्गारीटा ने बहुत ही धीमे स्वर में जवाब दिया.
“शानदार पेय,” बिल्ले ने कहा और एक पारदर्शक द्रव प्याले में डालकर मार्गारीटा की ओर बढ़ा दिया.
“क्या यह वोद्का है?” थके स्वर में मार्गारीटा ने पूछा.
बिल्ला अपमानित अनुभव करते हुए कुर्सी पर उछल गया.
“माफ कीजिए, महारानी,” वह भर्राई आवाज़ में बोला, “क्या मैं भद्र महिला को वोद्का देने की जुर्रत कर सकता हूँ? यह खाली स्प्रिट है.”
मार्गारीटा मुस्कुराई और उसने प्याले को दूर हटाना चाहा.
“बेधड़क पी जाइए,” वोलान्द ने कहा.
मार्गारीटा ने फौरन गिलास हाथ में उठा लिया.
“हैला, बैठो,” वोलान्द ने आज्ञा दी और मार्गारीटा को समझाने लगा, “पूर्णमासी की रात – त्यौहार की रात होती है. इस रात मैं अपने निकटतम साथियों और सेवकों के साथ भोजन करता हूँ. तो, अब आप कैसा महसूस कर रही हैं? यह थकाने वाला नृत्योत्सव कैसा रहा?”
“बेमिसाल!” बिल्ला रिरियाया, “सब मुग्ध हैं, प्रसन्न हैं, आभारी हैं! कितना सलीका, कितनी बुद्धिमानी, योग्यता और लुभावनापन!”
वोलान्द ने चुपचाप ग्लास उठाया और मार्गारीटा के जाम से टकराया. मार्गारीटा चुपचाप पी गई, यह सोचते हुए कि वह उसी समय स्प्रिट से मर जाएगी. मगर कोई भी बुरी बात नहीं हुई. उसके पेट में जीवन की गर्माहट दौड़ गई, दिमाग में हल्का-सा झटका लगा और उसकी शक्ति वापस आ गई, मानो वह लम्बी, ताज़गी देने वाली नींद से जागी हो, साथ ही उसे बड़े ज़ोरों की भूख भी लग आई. यह याद करके कि उसने कल सुबह से कुछ नहीं खाया है, भूख और भी बढ़ गई. वह बेतहाशा मछली पर टूट पड़ी.
बेगेमोत ने अनन्नास का टुकड़ा काटा, उस पर नमक मिर्च लगाकर उसे खा गया, इसके बाद उसने स्प्रिट का दूसरा जाम कुछ इस तरह ढाला, कि सबने तालियाँ बजाईं.
दूसरा जाम पीने के बाद मार्गारीटा को लगा कि झुँबरों में लगी मोमबत्तियाँ कुछ और तेज़ प्रकाश दे रही हैं, अँगीठी की लौ भी प्रखर हो गई है. मगर उसे नशा महसूस नहीं हो रहा था. अपने सफेद-सफेद दाँतों से माँस का टुकड़ा काटते हुए, मार्गारीटा उसमें से टपकते रस को भी सुड़कती जा रही थी, साथ ही वह यह भी देख रही थी, कि कैसे बेगेमोत मछली पर चटनी लगा रहा है.
“तुम उसके ऊपर अंगूर भी रखो,” हैला ने बिल्ले की कमर में उँगलियाँ गड़ाते हुए हौले से कहा.
“कृपया मुझे मत सिखाइए,” बेगेमोत ने जवाब दिया, “मेज़ पर बैठा हूँ, तंग न कीजिए, बैठने दीजिए!”
“ओह, कितना अच्छा लगता है इस तरह खाना, अँगीठी के पास बैठकर अपनों के साथ,” कोरोव्येव बुदबुदाया.
“नहीं, फागोत,” बिल्ले ने प्रतिवाद किया, “नृत्योत्सव की अपनी भव्यता और अपनी शान होती है.”
“कोई शान-वान नहीं है, और भव्यता भी नहीं, और वे बेवकूफ भालू, और शेर, अपने शोर से मेरे सिर में बस अर्धशीशी का दर्द ही पैदा कर रहे थे,” वोलान्द ने कहा.
“मैं सुन रहा हूँ, महाशय,” बिल्ला बोला, “यदि आप सोचते हैं कि भव्यता जैसी कोई चीज़ नहीं थी, तो मैं भी फौरन आपकी ही हाँ में हाँ मिलाऊँगा.”
“देखो, तुम!” वोलान्द ने इसके जवाब में कहा.
“मैं तो मज़ाक कर रहा था,” बिल्ले ने समझौता करते हुए कहा, “जहाँ तक शेरों का सवाल है, मैं उन्हें तलने के लिए भेज दूँगा.”
“शेरों को खाते नहीं हैं,” हैला बोली.
“आप ऐसा कहती हैं? तब कृपया सुनिए,” बिल्ले ने कहा और प्रसन्नता से माथे पर बल डालते हुए बताने लगा कि कैसे एक बार वह पूरे उन्नीस दिनों के लिए रेगिस्तान में फँस गया था और इस दौरान उसने सिर्फ उसी शेर का माँस खाया, जिसे उसने खुद मारा था. सब इस जानकारी को बड़ी दिलचस्पी से सुनते रहे, मगर जब बेगेमोत ने अपनी बात ख़त्म की, तो सब एक सुर में चहक उठे, “झूठ! झूठ!”
“और इस झूठ में सबसे मज़ेदार बात यह है,” वोलान्द ने कहा, “कि वह शुरू से आख़िर तक सिर्फ झूठ ही झूठ है.”
“ओह, ऐसा झूठ है?” बिल्ला चहका. सबने सोचा कि अब वह विरोध करेगा, मगर उसने सिर्फ इतना ही कहा, “इतिहास ही निर्णय करेगा.”
“और बताइए,” मार्गो ने वोद्का के बाद उत्साह महसूस करते हुए अज़ाज़ेलो से पूछ लिया, “आपने उस भूतपूर्व सामंत को क्या गोली मारी थी?”
“ज़ाहिर है,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “उसे कैसे नहीं मारता? उसे तो ज़रूर ही गोली मार देनी चाहिए.”
“मैं इतना घबरा गई थी!” मार्गारीटा चहकी, “यह सब इतना अचानक हो गया!”
“इसमें अचानक होने जैसी कोई बात नहीं है,” अज़ाज़ेलो ने प्रतिवाद करते हुए कहा.
कोरोव्येव ने बिसूरते हुए कहा, “कैसे नहीं है घबराने वाली बात! मेरी भी नसें खिंच गई थीं. बुख! धम! सामंत कन्धे के बल!”
:मैं भी बस उन्माद की अवस्था में पहुँच ही गया था,” बिल्ले ने मछली वाला चम्मच चाटते हुए पुश्ती जोड़ी.
“मुझे यह बात समझ में नहीं आई,” मार्गारीटा बोली, और उसकी आँखों में सितारे झिलमिला उठे, “क्या बाहर कहीं भी संगीत की या इस नृत्योत्सव में हो रहे शोर की ज़रा-सी भी आवाज़ सुनाई नहीं पड़ी?”
“बिल्कुल सुनाई नहीं दी, महारानी,” कोरोव्येव ने समझाते हुए कहा, “इसे इसी तरह करना चाहिए कि कुछ भी सुनाई न दे. यह बड़ी सूझ-बूझ से करने वाली बात है.”
“हाँ, ठीक है, ठीक है...वर्ना सीढ़ियों पर बैठा वह आदमी...जब हम अज़ाज़ेलो के साथ चल रहे थे...और वह दूसरा, दरवाज़े के पास वाला...मेरा ख़याल है कि वह आपके फ्लैट पर नज़र रखे हुए है.”
“सही है, बिल्कुल सही है!” कोरोव्येव चीखा, “सही है, प्रिय मार्गारीटा निकोलायेव्ना! आप मेरे सन्देह की पुष्टि कर रही हैं. हाँ, वह फ्लैट पर नज़र रखे हुए था. मैं तो उसे शराबी, या कोई भुलक्कड़ विद्वान या प्यार का मारा समझने वाला था, मगर नहीं-नहीं! कोई चीज़ मेरे दिल में चुभ रही थी. आह, वह फ्लैट पर नज़र रखे था! और वह दूसरा दरवाज़े के पास वाला भी! और सीढ़ी के मोड़ पर जो खड़ा था, वह भी!”
“और यदि आपको गिरफ़्तार करने आ जाएँ तो?” मार्गारीटा ने पूछा.
“ज़रूर आएँगे, लुभावनी महारानी, ज़रूर आएँगे!” कोरोव्येव ने जवाब दिया, “मेरा दिल कह रहा है कि आएँगे; अभी नहीं, मगर सही वक़्त पर ज़रूर टपकेंगे. मगर मैं समझता हूँ कि कोई दिलचस्प बात नहीं होगी.”
“ओह, मैं कितनी घबरा गई थी, जब वह सामंत नीचे गिरा,” मार्गारीटा ने कहा, जो अभी तक उस हत्या से ख़ौफ़ खाए हुए थी. उसने जीवन में पहली बार ही किसी की हत्या होते हुए देखी थी. “आपका निशाना शायद, बहुत अच्छा है?”
“कुछ ऐसा ही समझ लीजिए,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया.
“कितने कदम से?” मार्गारीटा ने अज़ाज़ेलो से अस्पष्ट-सा सवाल पूछ लिया.
“निर्भर करता है कि कैसे,” अज़ाज़ेलो ने तर्कसंगत उत्तर दिया, “समालोचक लातून्स्की के शीशे पर हथौड़ा लेकर टूट पड़ना और बात है, और उसी के दिल पर गोली चलाना –और.”
“दिल में!” मार्गारीटा चहकी. न जाने क्यों उसने अपने दिल पर हाथ रख लिया, “दिल में! उसने दुबारा हौले से दुहराया.
“यह समालोचक लातून्स्की कौन है?” वोलान्द ने मार्गारीटा की ओर आँखें सिकोड़कर देखते हुए पूछा.
अज़ाज़ेलो, कोरोव्येव और बेगेमोत शर्मा कर चुप हो गए. मार्गारीटा ने लाल होते हुए जवाब दिया, “है ऐसा एक समालोचक. आज शाम को मैंने उसके फ्लैट में तोड़-फोड़ कर दी.”
“क्या बात है! मगर क्यों?”
“उसने, महाशय,” मार्गारीटा ने समझाया, “एक मास्टर को मार डाला.”
“मगर आपको ख़ुद कष्ट करने की क्या ज़रूरत थी?” वोलान्द ने पूछा.
“मुझे इजाज़त दीजिए, महोदय,” बिल्ला उछलते हुए खुशी से चिल्लाया.
“तुम बैठो जी,” अज़ाज़ेलो खड़े होते हुए गुर्राया, “मैं खुद ही अभी जाकर आता हूँ...”
“नहीं!” मार्गारीटा बोल पड़ी, “नहीं, मैं विनती करती हूँ, महाशय, इसकी ज़रूरत नहीं है.”
“जैसा आप चाहें, जैसा चाहें,” वोलान्द ने कहा और अज़ाज़ेलो वापस अपनी जगह बैठ गया.
“तो हम कहाँ थे, बहुमूल्य महारानी मार्गो?” कोरोव्येव ने पूछा, “आह, हाँ – दिल. दिल में ही लगेगी.” कोरोव्येव ने अपनी लम्बी उँगली निकालकर अज़ाज़ेलो की ओर इशारा करते हुए कहा, “इच्छानुसार, दिल के किसी भी हिस्से में, ऊपरी या निचले, कहीं भी.”
क्रमशः
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