मास्टर और मार्गारीटा – 24.2
मार्गारीटा फौरन समझ नहीं पाई, मगर समझते ही आश्चर्य से चिल्लाई, “मगर वे तो सब बन्द होते हैं!”
“प्रिय महारानी,” कोरोव्येव ने गरजते हुए कहा, “यही तो कमाल है कि वे बन्द हैं! यही तो खास बात है! खुली चीज़ पर तो कोई भी निशाना लगा सकता है!”
कोरोव्येव ने मेज़ की दराज़ से हुकुम की सत्ती निकाली, उसे मार्गारीटा के सामने ले जाकर उँगली से किसी एक निशान को चुनने के लिए कहा. मार्गारीटा ने दाहिनी ओर ऊपर के कोने वाले चिह्न पर उँगली रख दी. हैला ने ताश का पत्ता तकिए के नीचे छुपाया और चिल्लाकर कहा, “तैयार है!”
अज़ाज़ेलो ने, जो तकिए से मुँह घुमाकर बैठा था, अपनी फ्रॉक वाली पतलून की जेब से काली स्वचालित पिस्तौल निकाली, उसकी नली कन्धे पर रखी और बिना मुड़े गोली दाग दी, जिससे मार्गारीटा के दिल में भयमिश्रित प्रसन्नता की लहर दौड़ गई. गोली लगे तकिए के नीचे से सत्ती निकाली गई. मार्गारीटा द्वारा बताए गए निशान के आरपार गोली चली गई थी.
“जब आपके हाथ में रिवॉल्वर हो, तब मैं आपसे कभी मिलना नहीं चाहूँगी,” अज़ाज़ेलो की ओर कनखियों से देखते हुए मार्गारीटा ने शोखी से कहा. वह उन सभी लोगों को पसन्द करती थी, जो कुछ बहुत अच्छा, अजब-सा कर जाते थे.
“बहुमूल्य महारानी,” कोरोव्येव रिरियाया, “मैं किसी को भी उससे मिलने की सलाह नहीं दूँगा, चाहे उसके हाथ में रिवॉल्वर हो या न हो! भूतपूर्व कॉयर मास्टर और अग्र-गायक का वचन है ये, कि कोई भी उससे मिलकर नमस्ते तक नहीं कहेगा.”
इस गोली चलाने के प्रसंग के दौरान बिल्ला मुँह लटकाए बैठा था. अब उसने घोषणा कर दी, “मैं इस सत्ती वाले रेकॉर्ड को तोडूँगा!” इसके जवाब में अज़ाज़ेलो ने चीखकर कुछ कहा. मगर बिल्ला ज़िद्दी था और उसने एक नहीं, दो पिस्तौलों की माँग की. अज़ाज़ेलो ने पैण्ट की पिछली जेब से दूसरा रिवॉल्वर निकाला और उसे पहले पिस्तौल के साथ, सन्देहपूर्वक मुँह बनाते हुए, शेखीमार बिल्ले की ओर बढ़ा दिया. अब सत्ती पर दो निशान तय किए गए. बिल्ले ने तकिए की ओर से मुँह फेर लिया और बड़ी देर तक तैयारी करता रहा. मार्गारीटा कानों में उँगलियाँ डालकर बैठी उस उल्लू की ओर देखती रही जो फायरप्लेस के मेंटलपीस पर बैठा ऊँघ रहा था. बिल्ले ने दोनों रिवॉल्वरों से गोलियाँ दागीं, जिसके फौरन बाद हैला चीख पड़ी, मरा हुआ उल्लू फायरप्लेस से गिर पड़ा था और चूर-चूर हुई घड़ी रुक गई थी. हैला ने, जिसका एक हाथ लहूलुहान हो गया था चीखते हुए बिल्ले की खाल पकड़ ली और वह जवाब में उसके बाल खींचने लगा. वे दोनों मेज़ से टकराते हुए फर्श पर लुढ़क गए. मेज़ पर से एक प्याला गिरकर चूर-चूर हो गया.
“इस पागल चुडैल को मुझसे दूर हटाओ!” बिल्ला रिरिया रहा था, और हैला से छूटने की कोशिश कर रहा था, जो उस पर चढ़ गई थी. लड़ने वालों को अलग किया गया. कोरोव्येव ने हैला की ज़ख़्मी उँगली पर फूँक मारी और वह तुरंत ठीक हो गई.
“पास में लोग बातें कर रहे होते हैं तो मैं निशाना नहीं लगा सकता!” बिल्ला चिल्लाया और अपनी खाल को ठीक करने लगा, जिसमें से पीठ की तरफ एक बड़ा रोएँ वाला हिस्सा सरक गया था.
“मैं शर्त लगाता हूँ,” वोलान्द ने मार्गारीटा से मुस्कुराते हुए कहा, “कि उसने यह हरकत जानबूझकर की है. उसका निशाना अच्छा ही है.”
हैला ने बिल्ले से समझौता कर लिया, जिसे प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने एक-दूसरे का चुम्बन लिया. तकिए के नीचे से ताश का पत्ता निकाला गया. जाँच की गई. अज़ाज़ेलो द्वारा लगाए गए निशाने के अलावा और कहीं भी निशाना नहीं लगा था.
“यह नहीं हो सकता,” बिल्ले ने ज़ोर देकर कहते हुए पत्ते को झुम्बर की रोशनी में गौर से देखा.
हँसी-मज़ाक के साथ भोजन चलता रहा. झुम्बरों में मोमबत्तियाँ पिघलती जा रही थीं. अँगीठी की सूखी सुगन्ध भरी गर्माहट कमरे में फैल रही थी. पेट भर खाना खाने के बाद मार्गारीटा को एक सुखद अनुभूति हो रही थी. वह देखती रही कि कैसे अज़ाज़ेलो के सिगार से धुएँ के छल्ले निकल रहे हैं, जिन्हें बिल्ला तलवार की नोक से पकड़ने की कोशिश कर रहा है. उसे कहीं जाने की इच्छा नहीं थी, हालाँकि उसे महसूस हो रहा था कि काफ़ी देर हो चुकी है. शायद सुबह के छह बज रहे होंगे.
इस ख़ामोशी का फायदा उठाते हुए मार्गारेटा ने नम्रतापूर्वक वोलान्द से कहा, “अब मुझे आज्ञा दीजिए, मेरा वक़्त हो गया है...देर हो गई.”
“आपको कहाँ की जल्दी है?” वोलान्द ने प्यार से मगर कुछ रुखाई से पूछा. बाकी सब चुप रहे, यह दिखाते हुए कि वे सिगार के धुएँ के छल्लों वाले खेल में मगन हैं.
“हाँ, समय हो गया है,” इस सबसे झेंपकर मार्गारीटा बोली और वह मुड़ी, मानो अपना लबादा या रेनकोट ढूँढ़ रही हो. अचानक अपनी नग्नता से वह सकुचा गई. वह मेज़ से उठी. वोलान्द ने चुपचाप अपना गन्दा, धब्बेदार हाउस कोट उठाया और कोरोव्येव ने उसे मार्गारीटा के कन्धों पर डाल दिया.
“धन्यवाद, महोदय,” हौले से मार्गारीटा ने कहा और प्रश्नार्थक नज़रों से वोलान्द की ओर देखने लगी. वह जवाब में बड़ी शिष्टता और उदासीनता से मुस्कुराया. मार्गारीटा के दिल को गम की काली घटा ने ढाँक लिया. उसे लगा कि उसे धोखा दिया गया है. नृत्योत्सव के दौरान अर्पित की गई सेवाओं का उसे न तो कोई इनाम मिलने वाला था और न ही कोई उसे रोकना चाह रहा था. साथ ही उसे यह भी साफ तौर से पता था कि वह यहाँ से कहीं भी नहीं जा सकती. एक ख़याल उसके दिमाग को छू गया, कि कहीं वापस अपने आलीशान घर में न जाना पड़े. और, वह उदास हो गई. क्या खुद ही निर्लज्ज होकर उस बात के बारे में पूछ ले, जिसका वादा अज़ाज़ेलो ने अलेक्सान्द्रोव्स्की पार्क में किया था? नहीं, किसी कीमत पर नहीं – उसने अपने आप से कहा.
“आपको शुभ कामनाएँ, महोदय,” वह प्रकट में बोली, और स्वयँ अपने आप में सोचने लगी, ‘बस, यहाँ से निकल जाऊँ, फिर तो नदी में जाकर डूब मरूँगी.”
“बैठिए तो,” अचानक आज्ञा देते हुए वोलान्द ने कहा. मार्गारीटा के चेहरे का रंग बदल गया, और वह बैठ गई.
“शायद जाते-जाते मुझसे कुछ कहना चाहती हैं?” वोलान्द ने पूछा.
“नहीं, कुछ नहीं, महाशय,” मार्गारीटा ने स्वाभिमानपूर्वक कहा, “बस यही कि यदि आपको अब भी मेरी ज़रूरत हो तो मैं खुशी-ख्उशी आपकी इच्छा का पालन करूँगी. मैं नृत्योत्सव में ज़रा भी नहीं थकी और मुझे बहुत मज़ा आया. मतलब, यदि वह और भी चलता रहता तो मैं खुशी-खुशी अपना घुटना आगे करती, ताकि हज़ारों जल्लाद और खूनी उसे चूम सकें,” मार्गारीटा ने वोलान्द की ओर मानो झरोखे से देखा, उसकी आँखों में आँसू भर आए.
“सही है! आप एकदम ठीक कह रही हैं!” भयानकता से वोलान्द चिल्लाया, “ऐसा ही होना चाहिए!”
“ऐसा ही होना चाहिए!” उसने साथियों ने इस गूँज को दुहराया. “हम आपको परख रहे थे,” वोलान्द कहता रहा, “कभी भी, कुछ भी मत माँगिए! कभी भी नहीं, कुछ भी नहीं, खासतौर से उनसे जो आपसे शक्तिशाली हैं. वे खुद ही प्रस्ताव रखेंगे और खुद ही सब कुछ दे देंगे! बैठ जाओ, स्वाभिमानी महिला!” वोलान्द ने मार्गारीटा के कन्धों से भारी-भरकम हाउसकोट खींच लिया. वह फिर से उसके निकट पलंग पर बैठी नज़र आई, “तो, मार्गो,” वोलान्द ने अपनी आवाज़ को नर्म बनाते हुए कहा, “आज आपने मेरे लिए मेज़बान का काम किया, उसके लिए आपको क्या चाहिए? नग्नावस्था में नृत्योत्सव का संचालन करने के बदले में क्या चाहती हैं? अपने घुटने की क्या कीमत लगाती हैं? मेरे मेहमानों के कारण जिन्हें अभी-अभी आपने जल्लाद और खूनी कहा, आपको क्या हानि हुई? कहिए! अब बिल्कुल निःसंकोच होकर कहिए, क्योंकि प्रस्ताव मैंने रखा है.”
मार्गारीटा का दिल ज़ोर से धड़का, एक गहरी साँस लेकर वह कुछ सोचने लगी.
“बोलिए, बेधड़क कहिए!” वोलान्द ने उसकी हिम्मत बढ़ाई, “अपनी विचारशक्ति पर, कल्पनाशक्ति पर ज़ोर डालिए, उसे पैना कीजिए! सिर्फ उस बेहूदे, इतिहास में जमा सामंत की हत्या के वक़्त उपस्थित रहने पर ही किसी भी आदमी को पुरस्कार मिलना चाहिए, यदि वह व्यक्ति औरत हो, तो फिर बात ही क्या है. तो?”
मार्गारीटा की ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे रह गई. वह मन में सोचे गए अच्छे, बढ़िया शब्दों से अपनी बात कहने जा रही थी कि अचानक वह पीली पड़ गई. उसका मुँह खुला रह गया. आँखें बाहर निकल आईं. “फ्रीड़ा! फ्रीड़ा! फ्रीड़ा!” – किसी की चिरौरी करती-सी आवाज़ उसके कानों में गूँजने लगी, “मेरा नाम फ्रीड़ा है!” और मार्गरीटा अटकते हुए बोली, “हाँ, क्या मैं एक चीज़ के लिए प्रार्थना कर सकती हूँ?”
“माँगिए, माँगिए, मेरी जान,” वोलान्द ने जवाब दिया, वह मानो कुछ समझते हुए मुस्कुराया, “एक चीज़ की माँग कीजिए!”
ओह, कितनी सफ़ाई और स्पष्टता से वोलान्द ने ज़ोर देकर मार्गारीटा के ही शब्द दुहरा थे, “एक चीज़!” मार्गारीटा ने फिर साँस ली और कहा, “मैं चाहती हूँ कि फ्रीड़ा को वह रूमाल देना बन्द कर दिया जाए, जिससे उसने अपने बच्चे का दम घोंट दिया था.”
बिल्ले ने आकाश की ओर आँखें उठाईं और ज़ोर से साँस ली, मगर कहा कुछ नहीं. शायद उसे नृत्योत्सव के दौरान मरोड़े गए कान की याद आ गई थी.
“इस बात पर गौर करते हुए,” वोलान्द ने मुस्कुराते हुए कहना शुरू किया, “कि उस बेवकूफ से आपको कोई रिश्वत नहीं मिल सकती है - हालाँकि यह आपके सम्राज्ञीपद की गरिमा के विरुद्ध है – मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या किया जाए. बस, एक ही बात की जा सकती है – मेरे शयनगृह की सभी दरारें और झरोखे चीथड़े ठूँस-ठूँस कर बन्द कर दिए जाएँ.”
“आप किस बारे में कह रहे हैं, महाशय?” मार्गारीटा ने इन असम्बद्ध शब्दों को सुनकर विस्मय से पूछा.
“मैं पूरी तरह आपसे सहमत हूँ, मालिक,” बिल्ला बीच में टपक पड़ा, “बिल्कुल चीथड़ों से,” और उत्तेजना से बिल्ले ने मेज़ पर पंजा मारा.
“मैं सहृदयता के बारे में कह रहा हूँ,” वोलान्द ने अपनी लाल-लाल आँख मार्गारीटा पर से हटाए बिना, अपने शब्दों को समझाते हुए कहा, “कभी-कभी एकदम अप्रत्याशित रूप से और डरते-डरते वह किसी भी बारीक-सी दरार में घुस आती है, इसीलिए मैंने चीथड़ों की बात की थी.”
“मैं भी उसी के बारे में कह रहा था,” बिल्ले ने मार्गारीटा से दूर झुककर अपने गुलाबी क्रीम लगे तीक्ष्ण कानों को पंजों से ढाँकते हुए फ़ब्ती कसी.
“भागो यहाँ से,” वोलान्द ने उससे कहा.
“मैंने अभी कॉफी नहीं पी है,” बिल्ले ने जवाब दिया, “फिर मैं कैसे जा सकता हूँ, मालिक, क्या उत्सव की रात को मेहमानों को दो किस्मों में बाँटा जा सकता है? पहले प्रथम श्रेणी के, और दूसरे, जैसा कि उस निराश, सिरफिरे रेस्तराँ वाले ने बताया, दूसरी श्रेणी का ताज़ापन?”
“चुप रहो,” वोलान्द ने उसे आज्ञा दी और मार्गारीटा की ओर मुख़ातिब होकर पूछा, “आप, ऐसा लगता है, बहुत दयालु व्यक्ति हैं? ऊँचे सिद्धांतों वाली व्यक्ति?”
क्रमशः
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