मास्टर और मार्गारीटा – 23.3
“कैसा रूमाल?” मार्गारीटा ने फुसफुसाकर हाथ ऊपर उठाते और नीचे गिराते हुए कहा.
“नीली किनारी वाला रूमाल. बात यह है कि जब वह रेस्त्राँ में काम करती थी, मालिक ने उसे नीचे गोदाम में बुलाया, और नौ महीने बाद उसने एक बालक को जन्म दिया. उसे जंगल में ले गई और उसके मुँह में रूमाल ठूँस दिया. फिर बालक को ज़मीन में गाड़ दिया. अदालत में उसने बताया कि उसके पास बच्चे को पिलाने के लिए कुछ भी नहीं था.”
“और इस रेस्तराँ का मालिक कहाँ है?” मार्गारीटा ने पूछा.
“महारानी,” अचानक बिल्ले ने नीचे से लहराते हुए कहा, “मुझे आपसे पूछने की इजाज़त दीजिए: यहाँ मालिक का क्या काम? उसने तो जंगल में बच्चे का गला नहीं घोंटा.”
मार्गारीटा ने निरंतर मुस्कुराते और दाहिना हाथ हिलाते हुए, बाएँ हाथ से पैने नाखून बेगेमोत के कानों में घुसा दिए और फुसफुसाते हुए बोली, “तुम, सूअर कहीं के, अगर फिर बातचीत के बीच में टपके, तो...”
बेगेमोत नृत्योत्सव के मौहोल के लिए बेसुरी आवाज़ में फूट पड़ा, “महारानी...कान सूज जाएगा...मैं सूजे कान से इस उत्सव का मज़ा क्यों किरकिरा करूँ? – मैंने तो न्याय की बात की थी...न्याय की दृष्टि से...चुप रहूँगा, चुप रहूँगा...समझ लीजिए, कि मैं बिल्ला नहीं, बल्कि मछली हूँ, मगर मेरा कान तो छोड़ दीजिए.”
मार्गारीटा ने कान छोड़ दिया और उसके सामने याचना भरी उदास आँखें आ गईं.
“मैं सौभाग्यशाली हूँ, मेज़बान महारानी, कि आपने मुझे पूर्णिमा के इस शानदार नृत्योत्सव में आमंत्रित किया!”
“और मैं,” मार्गारीटा ने जवाब में कहा, “आपसे मिलकर खुश हूँ, बहुत खुश. क्या आप शैम्पेन पसन्द करेंगी?”
“आप क्या करने जा रही हैं, महारानी?!” बदहवासी से, मगर बिना आवाज़ किए कोरोव्येव मार्गारीटा के कान में चिल्लाया, “ट्रैफिक रुक जाएगा.”
“मुझे पसन्द है,” उस औरत ने विनती के-से स्वर में कहा, और एकदम यंत्रवत् दुहराने लगी, “फ्रीडा, फ्रीडा! मेरा नाम फ्रीडा है, महारानी!”
“तो आज तुम नशे में धुत हो जाओ, फ्रीडा, और किसी बात की चिंता मत करो,” मार्गारीटा ने कहा.
फ्रीडा ने दोनों हाथ मार्गारीटा की ओर बढ़ा दिए, मगर कोरोव्येव और बेगेमोत ने बड़े हौले से उसके हाथ अपने हाथों में ले लिए, और वह भीड़ में गुम हो गई.
अब नीचे से आदमियों की मानो दीवार बढ़ी आ रही थी, मानो उस चौक पर हमला करने आ रहे हों, जहाँ मार्गारीटा खड़ी थी. स्त्रियों के नंगे बदन फ्रॉक पहने आदमियों के बीच-बीच में ऊपर चढ़ रहे थे. मार्गारीटा की तरफ तैरते आ रहे थे साँवले, गोरे, कॉफी के रंग जैसे और एकदम काले बदन. भूरे, काले, बादामी, सुनहरे, सन जैसे रंग के बालों में चमक रही थी, तैर रही थीं – अनेक बहुमूल्य पत्थरों से निकलती रंगबिरंगी प्रकाश की किरणें. उनके सीनों पर हीरे-जवाहिरात ऐसे दमक रहे थे, मानो किसी ने आदमियों के इस आगे बढ़ते जमघट पर प्रकाश की बूँदें छिड़क दी हों. अब मार्गारीटा हर सेकण्ड अपने घुटने पर किसी न किसी के होठों का स्पर्श महसूस कर रही थी, हर सेकण्ड अपना हाथ चूमे जाने के लिए आगे बढ़ा रही थी. उसके चेहरे ने मानो एक स्वागत भरी मुस्कान का मुखौटा पहन लिया था.
“मैं बहुत खुश हूँ,” एक सुर में कोरोव्येव गा रहा था, “हम खुश हैं...सम्राज्ञी खुश हैं...”
“महारानी प्रसन्न हैं,” नकियाते सुर में अज़ाज़ेलो पीठ के पीछे भुनभुनाता.
“मैं खुश हूँ!” बिल्ला चिल्लाता.
“मार्कीज़ा,” कोरोव्येव बडबड़ाया, “इसने अपने पिता, दो भाइयों और दो बहनों को सम्पत्ति के कारण ज़हर दे दिया... महारानी खुश हैं. मैडम मीनकिना, ओह, कितनी सुन्दर हैं! थोड़ी नर्वस ज़रूर हैं. नौकरानी के चेहरे को घुँघराले बालों वाले चिमटे से क्यों दागना था? ऐसी हालत में तो सिर्फ सिर ही काट दिया जाता है! महारानी खुश हैं! महारानी, कृपया एक सेकण्ड ध्यान दें: सम्राट रूदोल्फ, सम्मोहक और कीमियाकार. एक और अलकीमी – सूली पर चढ़ा दिया गया था. ओह, यह रही वो! ओह, इनका कितना सुन्दर वेश्यालय था स्त्रासबुर्ग में! हम खुश हैं! मॉस्को की दर्जिन! हम सब उसकी अलौकिक कल्पनाशक्ति के लिए उसे बहुत पसन्द करते हैं. वह एक होटल चलाती थी और उसने एक ख़तरनाक हास्यास्पद हरकत की थी: दीवार में दो छेद बना दिए थे...”
“औरतों को मालूम नहीं हुआ?” मार्गारीटा ने पूछा.
“एक-एक को मालूम था, महारानी,” कोरोव्येव बोला, “मैं खुश हूँ! यह बीस वर्षीय नौजवान बचपन से अपनी कल्पनाशक्ति के लिए मशहूर था. यह विचारक और आश्चर्यजनक व्यक्ति था. एक लड़की ने उससे प्यार किया था, मगर इसने उसे वेश्यालय में बेच दिया.”
नीचे से मानो एक नदी बढ़ी आ रही थी, जिसका अंत नज़र नहीं आता था. इसका उद्गम, वह विशालकाय भट्टी, उसे भरती जा रही थी. इस तरह एक घण्टा गुज़र गया और दूसरा चल रहा था. अब मार्गारीटा ने महसूस किया कि उसकी चेन पहले से भारी हो गई है. हाथ के साथ भी कुछ अजीब बात हुई. अब हर बार उसे उठाने के पहले उसके चेहरे पर शिकन आने लगी. कोरोव्येव की दिलचस्प कहानियाँ अब उसका ध्यान नहीं आकर्षित कर रही थीं. मंगोल चेहरे, काले चेहरे, गोरे चेहरे बेमतलब हो गए; वे कभी-कभी गड्डमड्ड हो जाते, और उनके बीच की हवा काँपने और सिकुड़ने लगती. मार्गारीटा के दाहिने हाथ में अचानक ऐसा दर्द होने लगा, मानो कोई सुई चुभो रहा हो; और दाँत भींच कर उसने अपने पास रखे स्तम्भ पर कोहनी टिका दी. कुछ अजीब-सी आवाज़...मानो पंखों के फड़फड़ाने की आवाज़ अब पीछे के हॉल से आ रही थी. साफ समझ में आया कि वहाँ मेहमान नृत्य कर रहे हैं और मार्गारीटा को लगा कि इस विशाल हॉल की मज़बूत संगमरमरी दीवारें, मोज़ाइक के और क्रिस्टल के फर्श भी एक लय में धड़क रहे हैं.
मार्गारीटा को न तो गेयस सीज़र कालिगुला में, न ही मेसालिना में अब कोई दिलचस्पी रह गई थी. अब न तो किसी राजा, न ड्यूक, न सरदार, न आत्मघाती, न ज़हर देने वाला, न सूली पर टाँगने वाला, न जल्लाद, न जेलर, न बेईमान, न जासूस, न देशद्रोही, न पागल, न तलाशी लेने वाला – किसी में भी अब वह रुचि नहीं ले रही थी. उन सबके नाम उसके दिमाग में गड्डमड्ड हो गए, चेहरे एक-दूसरे में मिल गए. उसके दिमाग में बस एक ही दुःखी चेहरा रह गया, वाक़ई आग जैसी लाल दाढ़ी से सजा माल्यूता स्कुरातोव का चेहरा. मार्गारीटा की टाँगें लड़खड़ा रही थीं, प्रतिक्षण वह डर रही थी कि उसके आँसू निकल पड़ेंगे. सबसे ज़्यादा दर्द हो रहा था उसके दाहिने घुटने में, जिसे अतिथि चूम रहे थे. वह सूज गया था, उसकी चमड़ी नीली पड़ गई थी, बावजूद इसके कि कई बार नताशा का हाथ इस घुटने को किसी सुगन्धित द्रव्य से सहला चुका था. तीसरे घण्टे के अंत में मार्गारीटा ने बिल्कुल मुरझाई, असहाय नज़रों से नीचे की ओर देखा और खुशी से काँप गई. मेहमानों की कतार बहुत छोटी हो गई थी.
नृत्य समारोहों के नियम हर जगह समान होते हैं, महारानी,” कोरोव्येव फुसफुसाया, “अब यह लहर गिरना शुरू हो गई है. मैं विश्वास दिलाता हूँ कि ये आख़िरी क्षण भी हम बर्दाश्त कर लेंगे. यह ब्रोकेन के कुछ घुमक्कड़ लोगों का झुण्ड है. वे हमेशा आख़िर में आते हैं. हाँ, ये वही हैं. दो पियक्कड़ बेताल...बस? ओह, नहीं, एक और है; नहीं, दो हैं!”
सीढ़ियों पर दो अंतिम मेहमान बढ़े आ रहे थे. “हाँ, यह तो कोई नया है,” कोरोव्येव ने काँच से आँखें सिकोड़कर देखते हुए कहा, “ओह, हाँ, हाँ, एक बार अज़ाज़ेलो की उससे मुलाकात हो गई थी और कोन्याक पीते-पीते उसने सलाह दी थी, कि एक आदमी का काँटा कैसे निकालना चाहिए, जिसके भेद खोल देने का डर था. उसने अपने परिचित को, जो सदा उस पर निर्भर रहता था, कमरे की दीवारों पर ज़हर छिड़कने की आज्ञा दी...”
“उसका नाम क्या है?” मार्गारीटा ने पूछा.
“ओह, सच तो यह है कि अभी मैं भी नहीं जानता,” कोरोव्येव ने जवाब दिया, “अज़ाज़ेलो से पूछना पड़ेगा.”
“और उसके साथ कौन है?”
“वही, उसका आज्ञाकारी सेवक. मैं खुश हूँ!” कोरोव्येव अंतिम दोनों का स्वागत करते हुए चिल्लाया.
सीढ़ी खाली हो गई. एहतियात के तौर पर और दो मिनट इंतज़ार किया, मगर अँगीठी से कोई और बाहर नहीं निकला.
एक सेकण्ड बाद न जाने कैसे, मार्गारीटा उसी कमरे में पहुँच गई, जहाँ स्नानगृह था और वहाँ हाथों-पैरों में दर्द के कारण वह रोते हुए फर्श पर लुढ़क गई. मगर हैला और नताशा ने उसे धीरज बँधाते हुए फिर से रक्त स्नान करवाया, फिर से उसके बदन को मला और मार्गारीटा फिर से ताज़ातरीन हो गई.
“एक बार और, महारानी मार्गो,” बगल में प्रकट हुआ कोरोव्येव फुसफुसाया, “सारे कक्षों में जाना होगा, जिससे कि आदरणीय मेहमान अपने आपको उपेक्षित न समझें.”
और मार्गारीटा फिर स्नानगृह वाले कमरे से उड़ी. त्युल्पान की दीवार वाले मंच पर, जहाँ संगीत सम्राट का वाल्ट्ज़ बज रहा था, अब वानर-जॉज़ छाया था. भीमकाय, छितरे कल्ले वाला गुरिल्ला, हाथों में तुरही उठाकर कठिनता से नृत्य करते हुए ऑर्केस्ट्रा का संचालन कर रहा था. ओरांग उटाँग एक कतार में बैठे थे और चमकदार तुरहियाँ बजा रहे थे. उनके कन्धों पर हाथों में हार्मोनियम लिए खुशनुमा चिम्पांज़ी बैठे थे. दो, सिंहों जैसी दाढ़ी वाले वनमानुष जैसे बन्दर पियानो बजा रहे थे, मगर इनकी आवाज़ सेक्सोफोन, वायलिन और ड्रम्स के शोर में सुनाई नहीं पड़ रही थी जो लंगूरों, विशालकाय मैण्ड्रिल्स और छोटे मार्मोसेट्स के हाथों में थे. शीशे के फर्श पर अनगिनत जोड़े अपने लोचदार और सफाईदार नृत्य से अचम्भित कर रहे थे. वे एक ही दिशा में मुड़ते, एक दीवार की तरह चलते, मानो अपने रास्ते से सब कुछ हटा देंगे. नृत्य करते जोड़ों के सिरों पर ज़िन्दा मखमली तितलियाँ उड़ रही थीं, छत से फूलों की वर्षा हो रही थी. जब बिजली बन्द हुई तो असंख्य झाड़-फानूस जल उठे, हवा में अनगिनत रोशनियाँ तैर गईं.
क्रमशः
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