मास्टर और मार्गारीटा – 21.3
मार्गारीटा ने एक और छलाँग लगाई और तब यह छतों वाला झुरमुट मानो धरती में समा गया और उसके स्थान पर दिखाई दिया एक तालाब जिसमें दिखाई दे रही थीं काँपती रोशनियाँ. यह तालाब अचानक खड़ा होने लगा फिर मार्गारीटा के सिर के ऊपर आ गया. अब उसके पैरों के नीचे चाँद चमकने लगा. मार्गारीटा समझ गई कि वह उल्टी हो गई है, और उसने अपने आपको वापस सामान्य स्थिति में कर लिया. मुड़कर उसने देखा कि तालाब गायब हो गया है और वहाँ, उसके पीछे केवल क्षितिज की लाल रोशनी रह गई है. वह भी एक क्षण में गायब हो गई. मार्गारीटा ने देखा कि वह अब अपनी बाईं ओर साथ-साथ ऊपर उड़ते चाँद के साथ अकेली रह गई है. मार्गारीटा के बाल पहले ही खड़े हो गए थे, और चाँद की सनसनाती रोशनी उसे नहला रही थी. यह देखकर कि नीचे रोशनी की दो पंक्तियाँ, दो रेखाओं में परिवर्तित हो रही हैं, मार्गारीटा समझ गई कि वह आश्चर्यजनक रफ़्तार से उड़ रही है, उसे इससे भी आश्चर्य हुआ कि वह थक भी नहीं रही है.
कुछ क्षणों बाद नीचे, धरती के अँधेरे में बिजली की रोशनियों वाला नया तालाब दिखाई दिया, जो उड़नपरी के पैरों के नीचे से खिसक गया, मगर फौरन ही गोल-गोल घूमकर धरती में समा गया. कुछ और देर बाद फिर वही नज़ारा.
“शहर! शहर!” मार्गारीटा चीखी.
इसके बाद उसे दो या तीन बार नीचे मद्धिम रोशनी में चमकती, खुली म्यानों में रखी पतली-पतली तलवारें दिखाई दीं, वह समझ गई कि ये नदियाँ हैं.
सिर को ऊपर और बाईं ओर घुमाते हुए उड़नपरी यह देखकर खुश हो रही थी, कि चाँद उसके ऊपर-ऊपर चल रहा है, पागल की तरह, वापस मॉस्को की ओर; और साथ ही एकदम अपनी जगह रुक भी रहा है, जिससे उसमें कोई रहस्यमय काली आकृति दिखाई दे रही है – शायद अजगर या कोई कुबड़ा घोड़ा, जो अपनी पतली गर्दन से पीछे मॉस्को की ओर देख रहा है.
अब मार्गारीटा ने सोचा कि वह बेकार ही इतनी तेज़ ब्रश को हाँक रही है. इससे उसे कई चीज़ें ध्यान से देखने और उड़ान का आनन्द उठाने का मौका नहीं मिल रहा. मानो कोई उससे कह रहा था, कि वहाँ, जहाँ वह उड़कर जा रही है, उसका कोई इंतज़ार कर रहा है और उसे इस बेतहाशा ऊँचाई और गति से उकताने की कोई ज़रूरत नहीं है.
मार्गारीटा ने ब्रश का बालों वाला भाग नीचे की ओर झुकाया जिससे उसकी पूँछ ऊपर उठ गई. अपना वेग काफी कम करते हुए वह धरती तक आ पहुँची. यह फिसलन, जैसी हवाई मशीनों में होती है, उसे बहुत भाई. धरती, मानो उठकर, उससे मिलने आ रही थी और अब तक के उसके आकारहीन काले आँचल में इस चाँदनी रात में अनेक रहस्यमय सुन्दर चीज़ें दिखाई देने लगीं. पृथ्वी उसकी ओर बढ़ रही थी और मार्गारीटा का सिर हरे-हरे जँगलों की महक से झूमने लगा. मार्गारीटा ओस भरे हरे मैदानों के ऊपर छाए कोहरे से गुज़र रही थी; फिर वह तालाब के ऊपर से गुज़री. मार्गारीटा के नीचे मेंढक एक सुर में गा रहे थे और दूर, कहीं दूर, न जाने क्यों दिल को बहुत बेकरार करती एक रेलगाड़ी शोर मचा रही थी. मार्गारीटा ने जल्दी ही उसे देख लिया. वह हवा में चिनगारियाँ छोड़ते हुए, इल्ली की तरह धीरे-धीरे रेंग रही थी. उसे पार करने के बाद मार्गारीटा एक और जलाशय के ऊपर से गुज़री, जिसमें चाँद तैर रहा था; वह कुछ और नीचे उतरी, मैपल के शिखर से बस कुछ की ऊपर.
वाष्पित होने वाली हवा का शोर मार्गारीटा को अपने निकट आता महसूस हुआ. धीरे-धीरे इस शोर में किसी रॉकेट के तेज़ी से उड़ने जैसी आवाज़ के साथ-साथ एक औरत के खिलखिलाने की आवाज़ मिल गई जो आसपास कई मीलों तक सुनाई दे रही थी. मार्गारीटा ने मुँह घुमाया तो देखा कि उसके निकट कोई काली जटिल वस्तु आ रही है. मार्गारीटा के निकट आते-आते वह वस्तु स्पष्ट दिखाई देने लगी. दिखाई दे रहा था कि कोई किसी चीज़ पर सवार होकर उड़ रहा है. वह बिल्कुल साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था: अपनी गति कम करके मार्गारीटा को नताशा ने पकड़ ही लिया.
वह पूरी तरह नग्न, हवा में उड़ते बिखरे बालों की परवाह न करते, एक मोटे सूअर के ऊपर बैठकर उड़ रही थी, जिसने अपने अगले पंजों में ब्रीफकेस पकड़ रखी थी और पिछले पंजों से हवा को काटता जा रहा था. चाँद की रोशनी में बीच-बीच में चमकता उसका चश्मा, जो नाक के नीचे खिसक गया था, सूअर के साथ-साथ डोरी से बँधा उड़ता जा रहा था और टोपी बार-बार सूअर की आँखों पर आ जाती थी. अच्छी तरह देखने के बाद मार्गारीटा समझ गई कि वह तो निकोलाय इवानोविच है, और तब उसके ठहाके जंगल में गूँज गए, जो नताशा की खिलखिलाहट में मिल गए.
“नताशा!” मार्गारीटा पैनी आवाज़ में चीखी, “तुमने क्रीम लगाई थी?”
“मेरी जान!” अपनी भारी आवाज़ से सोए हुए लिण्डन के जँगल को झकझोरते हुए नताशा बोली, “मेरी फ्रांसीसी रानी, मैंने तो इसके गंजे सिर पर भी मल दी, इसके!”
“राजकुमारी!” भौंडी आवाज़ में अपने सवार को उछलकर ले जाते हुए सूअर आँसुओं भरी आवाज़ में दहाड़ा.
“मेरी जान! मार्गारीटा निकोलायेव्ना!” नताशा मार्गारीटा के निकट आते हुए चिल्लाई, “मैं मानती हूँ, मैंने क्रीम ली थी. आख़िर हम भी जीना और उड़ना चाहते हैं! मुझे माफ कीजिए, मेरी सरकार, मगर मैं वापस नहीं आऊँगी, किसी हालत में नहीं आऊँगी! ओह, यह अच्छा है, मार्गारीटा निकोलायेव्ना! मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा,” नताशा ने उस बदहवास सूअर के कन्धे में उँगली चुभोते हुए कहा, “शादी का प्रस्ताव! तुमने मुझे किस नाम से पुकारा था, हाँ?” वह सूअर के कान के पास झुकती हुई बोली.
“देवी,” वह भुनभुनाया, “मैं इतनी तेज़ी से नहीं उड़ सकता! मैं अपने महत्त्वपूर्ण कागज़ात खो बैठूँगा. नतालिया प्रोकोफेव्ना, मैं विरोध करता हूँ.”
“तुम अपने कागज़ात समेत भाड़ में जाओ!” पैनी हँसी हँसते हुए नताशा चिल्लाई.
“ये क्या बात हुई नतालिया प्रोकोफेव्ना! कोई हमारी बात सुन लेगा!” सूअर उसे मनाते हुए दहाड़ी.
मार्गारीटा की बगल में छलाँगें मारती नताशा खिलखिलाती हुई उसे बताने लगी कि मार्गारीटा निकोलायेव्ना के फाटक से उड़ने के बाद उस घर में क्या-क्या हुआ.
नताशा ने स्वीकार किया, कि भेंट में मिली किसी भी चीज़ को छूने के बदले उसने अपने शरीर से कपड़े उतार फेंके और क्रीम की ओर लपकी, उसने फौरन अपने बदन पर उसे मल लिया. अब उसके साथ भी वही सब हुआ, जो उसकी मालकिन के साथ हुआ था. जब नताशा ख़ुशी के मारे हँसती हुई आईने में अपने जादुई सौन्दर्य को निहार रही थी, तभी दरवाज़ा खुला और नताशा के सामने निकोलाय इवानोविच प्रकट हुआ. वह काफी उत्तेजित लग रहा था, हाथों में अपने ब्रीफकेस तथा टोपी के साथ उसने मार्गारीटा निकोलायेव्ना की कमीज़ भी पकड़ रखी थी. नताशा को देखते ही निकोलाय इवानोविच की बोलती बन्द हो गई. अपने आपको कुछ संयत करके, केकड़े की तरह लाल हो गए निकोलाय इवानोविच ने कहा कि उसने नीचे गिरी छोटी-सी कमीज़ को उठाकर स्वयँ वापस देना अपना कर्त्तव्य समझा...
“क्या बोला, दुष्ट!” खिलखिलाते हुए नताशा बताती रही, “क्या-क्या बोला, क्या-क्या कसमें खाईं! कैसे मेरे हाथों में पैसे थमाए! बोला, कि क्लाव्दिया पेत्रोव्ना को कुछ भी मालूम नहीं होगा. क्यों, क्या मैं झूठ बोल रही हूँ?” नताशा सूअर पर चिल्लाई और उसने परेशानी में सिर हिला दिया.
शयन-कक्ष में ऊधम मचाती नताशा ने निकोलाय इवानोविच पर भी क्रीम मल दी, और अब उसे आश्चर्य का झटका लगा. निचली मंज़िल पर रहने वाले सम्माननीय नागरिक का चेहरा पाँच कोपेक के सिक्के जैसा हो गया और उसके हाथ-पैर पंजों जैसे हो गए. अपने आपको आईने में देखकर निकोलाय इवानोविच बड़ी हताशा से और जंगलीपन से बिसूरने लगा, मगर अब काफी देर हो चुकी थी. कुछ ही क्षणों बाद वह अपने सवार को लेकर मॉस्को से दूर न जाने किस जहन्नुम की ओर उड़ चला; वह दुःख से सिसकियाँ ले रहा था.
“मैं अपने सामान्य रूप को लौटाने की माँग करता हूँ!” अचानक कुछ खीझकर, कुछ मनाते हुए स्वर में सूअर भर्राया, “मैं किसी गैरकानूनी मीटिंग में उड़कर नहीं जाऊँगा! मार्गारीटा निकोलायेव्ना, आपको अपनी नौकरानी को उतारना होगा.”
“आह, तो अब मैं तुम्हारे लिए नौकरानी हो गई? नौकरानी?” नताशा सूअर का कान मरोड़ते हुए चिल्लाई, “और तब मैं देवी थी? तुमने मुझे क्या कहा?”
“शुक्रतारा! वीनस!” सूअर मनाते हुए बोला. अब वह पत्थरों के बीच कलकल करती नदी के ऊपर से उड़ रहे थे और अपने पंजों से उसने अखरोट के पेड़ की टहनियों को छू लिया.
“वीनस! वीनस!” नताशा ने एक हाथ कमर पर रखते हुए और दूसरा चाँद की तरफ उठाकर विजयोन्माद से कहा, “मार्गारीटा! महारानी! मेरे लिए प्रार्थना कीजिए, कि मुझे चुडैल ही रहने दिया जाए. आपके लिए सब कुछ हो सकता है, आपको ताकत मिली है!”
और मार्गारीटा ने जवाब दिया, “अच्छा, मैं वादा करती हूँ!”
“धन्यवाद!” नताशा ने चिल्लाकर कहा और वह दुबारा कुछ पीड़ा से और तेज़ी से चिल्लाई, “हेय्! हेय! जल्दी! जल्दी! और तेज़!” उसने अपनी एड़ियों से बदहवास छलाँगों के कारण पतली हो गई, सूअर की कमर पकड़ ली; वह ऐसे दहाड़ा कि हवा फिर से झनझना उठी. एक ही क्षण में नताशा आगे निकलकर एक काले धब्बे में बदल गई और फिर गायब हो गई. उसकी उड़ान का शोर भी धीरे-धीरे हल्का पड़ गया.
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