मास्टर और मार्गारीटा – 18.4
“मुझे नीचे बैठना अच्छा लगता है,” कलाकार ने बात शुरू करते हुए कहा, “ऐसी निचली जगहों से गिरने का उतना ख़तरा नहीं होता. हाँ, तो हम मछली पर रुके थे? मेरे प्यारे! ताज़ा, ताज़ा, ताज़ा, और ताज़ा...यही हर होटल वाले का लक्ष्य होना चाहिए. हाँ, इधर थोड़ा बढ़ाइए...”
अँगीठी की लाल रोशनी में रेस्तराँ वाले के सामने तलवार चमक उठी, और अज़ाज़ेलो ने सोने की प्लेट में सनसनाता हुआ माँस का टुकड़ा रखा, उस पर नींबू का रस निचोड़ा, और दो दाँत वाले सोने के काँटे के साथ प्लेट रेस्तराँ वाले की ओर बढ़ा दी.
“आभारी हूँ... मैं...”
“नहीं, नहीं, खाइए.”
रेस्तराँ वाले ने मुरव्वत में टुकड़ा मुँह में डाला और फ़ौरन समझ गया कि वह वास्तव में कोई बहुत ताज़ी और असाधारण रूप से स्वादिष्ट वस्तु चख रहा है. मगर उस रसदार, ख़ुशबूदार माँस को चूसते-चूसते रेस्तराँ वाला दुबारा गिरते-गिरते बचा. बगल के कमरे से बड़ा काला पक्षी उड़ता हुआ आया और रेस्तराँ वाले के गँजे सिर को अपने पंख से दबा गया. जब वह घड़ी के नज़दीक रखी लकड़ी की शेल्फ पर बैठ गया तो पता चला कि वह उल्लू है. “हे भगवान!” डरपोक, जैसे कि सभी होटल वाले होते हैं, अन्द्रेइ फोकिच ने सोचा,...’क्या फ्लैट है!’
“शराब का एक पैग? सफ़ेद, लाल? दिन के इस वक़्त आप कौन से देश की शराब पसन्द करेंगे?”
“आभारी हूँ...मैं पीता नहीं हूँ...”
“बकवास! तो फिर पाँसे का खेल हो जाए? या आपको कोई और खेल पसन्द है? दमीनो, ताश?”
“खेलता नहीं हूँ,” रेस्तराँ वाला अब तक थक चुका था.
“बहुत बुरी बात है,” मेज़बान ने बात ख़त्म करते हुए कहा, “ख़ैर, मर्ज़ी आपकी, मगर वे आदमी बड़े धूर्त होते हैं जो शराब, खेल, सुन्दर औरतों की संगत और खाने के समय की बातचीत से बचते हैं. ऐसे लोग या तो गम्भीर रोग से ग्रस्त होते हैं या आसपास के लोगों से घृणा करते हैं. यह भी सच है कि अपवाद हो सकते हैं. कभी-कभी तो मेरे साथ समारम्भ की मेज़ पर बड़े चालू लोग बैठे हैं!...तो कहिए आपका क्या काम है?”
“कल आपने बड़े कारनामे दिखाए...”
“मैंने?” जादूगर आश्चर्य से बोला, “रहम कीजिए. मैं तो यह सब करता नहीं हूँ!”
“गलती हो गई,” रेस्तराँ वाले ने फ़ौरन कहा, “हाँ, वो, काले जादू का खेल...”
“हाँ, ओह, हाँ, हाँ! मेरे प्यारे, मैं तुम्हें सच्ची बात बता देता हूँ: मैं कोई कलाकार-वलाकार नहीं हूँ, मुझे तो सिर्फ मॉस्कोवासियों को इकट्ठा देखना था और इसके लिए सबसे अच्छी जगह थियेटर ही थी. यह देखो, मेरे साथी ने...” उसने बिल्ले की ओर इशारा किया, “सारा तमाशा आयोजित किया था, मैं तो बस बैठे-बैठे मॉस्कोवासियों को देखता रहा. मगर इस तरह परेशान मत होइए, और मुझे बताइए, उस शो से सम्बन्धित ऐसी कौन-सी बात थी जिसके कारण आप यहाँ आए?”
“अगर आप देखते कि कार्यक्रम के दौरान छत से कागज़ उड़कर नीचे आ रहे थे,” रेस्तराँ वाले ने अपनी आवाज़ नीचे करके परेशान होकर इधर-उधर नज़रें घुमाईं, “– और उन्हें सबने उठा लिया, फिर एक नौजवान मेरे पास रेस्तराँ में आया, मुझे एक नोट दिया और मैंने उसे रेज़गारी लौटाई...साढ़े आठ रूबल...फिर दूसरा आया.”
“नौजवान?”
“नहीं, बड़ा आदमी, फिर तीसरा, चौथा...मैं सबको रेज़गारी देता रहा. और आज जब अपना कैश बॉक्स देखने लगा, तो देखा – नोटों के बदले थे कागज़ के टुकड़े! रेस्तराँ को एक सौ नौ रूबल का जुर्माना देना पड़ा.”
“ओय, ओय, ओय!” जादूगर ने सहानुभूति दिखाई, “क्या उन्होंने असली नोट समझ लिए? मुझे विश्वास है कि उन्होंने ऐसा जानबूझकर नहीं किया.”
रेस्तराँ वाले ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए तिरछी नज़रों से इधर-उधर देखा, मगर कुछ कहा नहीं.
“क्या वे बदमाश थे?” जादूगर ने उत्सुकतापूर्वक मेहमान से पूछा, “क्या मॉस्कोवासियों के बीच बदमाश भी हैं?”
इस सवाल के जवाब में रेस्तराँ वाला इतनी लाचारी और कटुतापूर्वक मुस्कुराया कि कोई सन्देह ही नहीं रहा: हाँ, मॉस्को में बदमाश भी हैं.
“बड़ी ओछी बात है!” वोलान्द उत्तेजित होकर बोला, “आप एक गरीब आदमी हैं...क्या आप – सचमुच गरीब हैं?”
रेस्तराँ वाले ने सिर झुका लिया, ज़ाहिर था कि वह गरीब है.
“आपके पास कितना पैसा है?”
सवाल बड़ी सहृदयता से पूछा गया था, मगर वह था तो अटपटा ही. रेस्तराँ वाला हिचकिचाया.
“दो सौ उनचास हज़ार रूबल, पाँच बैंकों के खातों में,” बगल के कमरे से चिरचिरी आवाज़ सुनाई दी, “और घर में फर्श के नीचे दस-दस रूबल की दो सौ स्वर्ण मुद्राएँ हैं.”
रेस्तराँ वाला मानो अपनी तिपाई से चिपक गया.
“यह तो कोई बड़ी रकम नहीं है,” वोलान्द ने सहानुभूति से अपने मेहमान से कहा, “हालाँकि देखा जाए तो आपको उसकी ज़रूरत नहीं है. आप कब मरेंगे?”
अब तो रेस्तराँ वाला परेशान हो गया.
“यह न तो किसी को मालूम है और न ही इससे किसी को कोई मतलब है.”
“हाँ, किसी को मालूम नहीं है,” वही घृणित आवाज़ कमरे से सुनाई दी, “सोचो, न्यूटन की बाइनोमियल थ्योरम! वह ठीक नौ महीने बाद अगली फरवरी में पेट के कैंसर से फर्स्ट मॉस्को युनिवर्सिटी के अस्पताल के चौथे नम्बर के वार्ड में मरेगा.”
रेस्तराँ वाले का चेहरा पीला पड़ गया.
“नौ महीने,” वोलान्द ने सोच में पड़कर कहा, “दो सौ उनचास हज़ार...इसका मतलब हुआ हर महीने करीब सत्ताईस हज़ार? कुछ कम तो है, मगर सीधी-साधी ज़िन्दगी के लिए काफ़ी है. फिर ये सुवर्ण मुद्राएँ भी तो हैं.”
“...सोने के सिक्कों का उपयोग नहीं हो पाएगा,” फिर वही आवाज़ आई, जिससे रेस्तराँ वाले का सीना बर्फ हो गया, “अन्द्रेइ फोकिच की मृत्यु के बाद फौरन ही वह बिल्डिंग तोड़ दी जाएगी और स्वर्ण मुद्राएँ सरकारी बैंक में जमा हो जाएँगी.”
“मैं तो आपको अस्पताल में भर्ती होने की सलाह नहीं दूँगा,” कलाकार ने आगे कहा, “कराहते, चिल्लाते ना-उम्मीद बीमारों के बीच मरने में कोई तुक नहीं है. इन सत्ताईस हज़ार से जश्न क्यों न मनाया जाए और ज़हर लेकर दूसरी दुनिया में प्रस्थान किया जाए, जहाँ संगीत की मधुर लहरियाँ हैं, नशीली सुन्दरियाँ हैं और जाँबाज़ दोस्त हैं?”
रेस्तराँ वाला स्तब्ध बैठा रहा और मानो अचानक बूढ़ा हो गया. उसकी आँखों के चारों ओर काले घेरे पड़ गए, गाल पिचक गए और निचला जबड़ा नीचे लटक गया.
“हम तो ख़यालों में खो गए,” मेज़बान चहका, “काम की बात करें. आप के पास हैं वे कागज़ के टुकड़े? दिखाइए.”
रेस्तराँ वाले ने परेशान होते हुए जेब से कागज़ में बन्धी गड्डी निकाली और उसे खोलते ही मानो पत्थर हो गया. वहाँ वास्तव में दस-दस के नोट थे.
“मेरे प्यारे, तुम सचमुच बीमार हो,” वोलान्द ने कन्धे उचकाते हुए कहा.
होटल वाला भयंकर हँसी हँसते हुए तिपाई से उठ गया.
“और,” वह फिर रिरियाया, “और अगर वे फिर...”
“हूँ,” कलाकार सोचने लगा, “तो हमारे पास फिर से आइए. मेहेरबानी होगी! आप से मिलकर बड़ी ख़ुशी हुई.”
तभी कोरोव्येव उस कमरे से उछलकर बाहर आया, वह रेस्तराँ वाले का हाथ पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगा और अन्द्रेइ फोकिच से बार-बार कहने लगा कि वह सबका उनकी ओर से अभिवादन करे. ठीक से समझ न पाते हुए रेस्तराँ वाला सामने के कक्ष की ओर बढ़ा.
“हैला, ले जाओ!” कोरोव्येव चीखा.
फिर वही बेशर्म लाल बालों वाली वस्त्रहीन लड़की प्रवेश-कक्ष में थी. रेस्तराँ वाला सिकुड़कर दरवाज़े से निकला, वह फुसफुसाया, “अलविदा!’ और शराबियों की तरह चलने लगा. कुछ नीचे जाने के बाद वह रुका, सीढ़ियों पर बैठ गया, कागज़ में बँधे नोट निकालकर देखने लगा, वे सही-सलामत थे.
तभी इस मंज़िल पर स्थित फ्लैट के दरवाज़े से हरे पर्स वाली औरत निकली.
सीढ़ियों पर बैठकर नोटों को देखते हुए इस आदमी को देखकर वह मुस्कुराई और बोली, “हमारी भी क्या बिल्डिंग है! यह सुबह से पीकर बैठा है...सीढ़ियों का शीशा फिर से टूट गया है,” ध्यान से रेस्तराँ वाले की ओर देखते हुए आगे बोली, “ये, तुम्हारे नोट अण्डे तो नहीं देंगे न! थोड़े मुझे दे देते! हाँ?”
“मुझे छोड़ दो, येशू की ख़ातिर,” रेस्तराँ वाला घबराकर पैसे छुपाने लगा. औरत ठहाका मारकर हँस पड़ी, “तुझे बालों वाला शैतान ले जाए! मैं तो मज़ाक कर रही थी...” और वह नीचे चली गई.
होटल वाला धीरे-धीरे उठा. उसने अपना हाथ ऊपर उठाया, ताकि अपनी हैट ठीक कर सके. तभी उसे पता चला कि सिर पर तो हैट है ही नहीं. वापस जाने के ख़याल से वह ख़ौफ़ खा गया, मगर हैट का अफ़सोस था. थोड़ा सोचने के बाद वह वापस गया और उसने घण्टी बजाई.
“अब और क्या चाहिए?” उस दुष्ट हैला ने पूछा.
“मैं अपनी हैट भूल गया...” रेस्तराँ वाला अपने गंजे सिर में उँगलिया गड़ाते हुए फुसफुसाया. हैला मुड़ी. रेस्तराँ वाले ने ख़यालों में उस पर थूका और अपनी आँखें बन्द कर लीं. जब उसने उन्हें खोला तो हैला ने उसे उसकी हैट और काली मूठ वाली तलवार थमा दी.
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.