लोकप्रिय पोस्ट

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

Master aur Margarita-18.2




मास्टर और मार्गारीटा 18.2
वह अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि कोरोव्येव ने जेब से गंदा रूमाल निकाला, उसमें नाक समेत अपना चेहरा छिपा लिया और रोना शुरू कर दिया.
 ...मृतक बेर्लिओज़ का...
 क्या कहते हैं, क्या कहते हैं, कोरोव्येव रूमाल हटाकर टोकते हुए बोला, जैसे ही मैंने आपकी ओर देखा, मैं समझ गया कि आप वही हैं! उसका चेहरा आँसुओं से भीग गया और वह पतली-सी आवाज़ में चिल्लाता रहा, कितना बड़ा दुःख है न? यह सब क्या हो रहा है? हाँ?
 ट्रामगाड़ी ने कुचल दिया? पोप्लाव्स्की ने फुसफुसाकर पूछा.
 पूरी तरह चकनाचूर कर दिया, कोरोव्येव चिल्लाया और उसके चश्मे के नीचे से आँसुओं की धार बह निकली, आर-पार हो गई. मैं तो वहीं था, विश्वास कीजिए खट्! सिर उधर! सीधा पैर टक् दो भागों में! दायाँ टक् से दो भागों में! ऐसा करती हैं ये ट्रामगाड़ियाँ! अधिक न सह सका कोरोव्येव! उसने आईने से लगी दीवार में नाक मारते हुए बेतहाशा हिचकियाँ ले-लेकर रोना शुरू कर दिया.
बेर्लिओज़ का मामा इस अपरिचित व्यक्ति के ऐसे आचरण से क्षुब्ध हो गया. कहते हैं कि इस ज़माने में सहृदय व्यक्ति नहीं मिलते! ऐसा सोचते-सोचते उसकी भी आँखों से आँसुओं की धार बह निकली. मगर तभी उसके मन पर सन्देह का बादल छा गया, एक दुष्ट विचार उसके मन को डसने लगा कि कहीं यह संवेदनशील व्यक्ति बेर्लिओज़ के घर में घुसकर उसे हथियाने वाला तो नहीं है, क्योंकि ऐसे भी हादसे हो चुके हैं.
 माफ कीजिए, क्या आप मेरे स्वर्गीय मीशा के दोस्त थे? उसने आस्तीन से अपनी सूखी दाहिनी आँख पोंछते हुए पूछ लिया, बाईं आँख से वह दुःख के मारे कोरोव्येव के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था. मगर वह ऐसी बुरी तरह दहाड़ मार-मार कर रो रहा था कि कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था सिवाय टक् दो टुकड़ों के. काफी रोने पीटने के बाद कोरोव्येव आख़िर दीवार से दूर हटा और बोला, नहीं, मैं और नहीं बर्दाश्त कर सकता! जाकर वालेरिन की तीन सौ बूँदें ले लेता हूँ! और पोप्लाव्स्की की ओर अपना रोता हुआ चेहरा फेरकर बोला, ऐसी होती हैं, ये ट्रामगाड़ियाँ!
 माफ़ कीजिए, मुझे आपने टेलिग्राम भेजा था? मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच सोचने लगा कि वह गज़ब का रोतला आदमी कौन हो सकता था.
 उसने! कोरोव्येव ने उँगली से बिल्ले की ओर इशारा करते हुए कहा.
पोप्लाव्स्की की आँखें फटी रह गईं. उसे लगा कि उसने कुछ गलत सुन लिया है.
 नहीं, अब मुझमें हिम्मत नहीं है, नाक सुड़कते हुए कोरोव्येव बोलता रहा, मुझे याद आ रहा है: पैरों पर पहिया, एक-एक पहिए का वज़न दस-दस मन...टक्! जाऊँ, जाकर सोने की कोशिश करता हूँ, नींद आएगी तो भूल जाऊँगा, और वह प्रवेश-कक्ष से चला गया.
बिल्ले ने हरकत की, वह कुर्सी से कूदा, पिछले पैरों पर खड़ा हो गया, सामने वाले पंजे कूल्हे पर रखे और अपना मुँह खोलकर बोला, हाँ, मैने टेलिग्राम भेजा था, फिर?
 मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच का सिर घूमने लगा, हाथ-पैर सुन्न पड़ गए, उसके हाथ से सूटकेस गिर पड़ा और वह बिल्ले के सामने वाली कुर्सी पर धम् से बैठ गया.
 मैं शायद रूसी में ही पूछ रहा हूँ, गम्भीरता से बिल्ले ने कहा, आगे क्या?
मगर पोप्लाव्स्की ने कोई जवाब नहीं दिया.
 पासपोर्ट! बिल्ले ने फूला हुआ पंजा आगे बढ़ा दिया.
पोप्लाव्स्की की आँखों के सामने बस बिल्ले की दो दहकती हुई आँखों के अलावा और कुछ नहीं था. उसने छुरी की भाँति अपना पासपोर्ट जेब से निकालकर बढ़ा दिया. बिल्ले ने ड्रेसिंग टेबुल पर रखी हुई काली फ्रेम वाली ऐनक उठा ली, उसे पहन लिया, जिससे वह और अजीब नज़र आने लगा और उसने हाथ नचाते हुए पोप्लाव्स्की के उछलते हुए हाथ से पासपोर्ट छीन लिया.
 अजीब बात है: मैं बेहोश होऊँ या नहीं? पोप्लाव्स्की ने सोचा. दूर से कोरोव्येव की हलचल सुनाई दे रही थी. पूरा कमरा वालेरिन की गंध से भर गया था, साथ ही इत्र की और न जाने कौन-सी अजीब-सी गन्ध भी समा गई थी.
 यह पासपोर्ट किसने दिया है? बिल्ले ने पढ़ते हुए पूछा. जवाब नहीं आया.
 चार सौ बारह नम्बर के दफ़्तर ने... बिल्ले ने पासपोर्ट पर, जिसे उसने उल्टा पकड़ रखा था, हाथ फेरते हुए अपने आप से कहा, हाँ बेशक! मुझे यह दफ़्तर मालूम है! वहाँ जिसे चाहे उसे पासपोर्ट दे देते हैं! और मैं, आप जैसे को, निश्चय ही पासपोर्ट नहीं देता! किसी हालत में नहीं देता! आपके चेहरे की ओर देखते ही एकदम मना कर देता! बिल्ला इतना क्रोधित हो गया कि उसने पासपोर्ट ज़मीन पर फेंक दिया. आपकी अंतिम संस्कार के समय उपस्थिति की कोई ज़रूरत नहीं है, बिल्ला अफसरों जैसे अन्दाज़ में बोलता रहा, जाइए, अपने शहर लौट जाइए! और वह दरवाज़े की ओर देखकर पुकारने लगा, अज़ाज़ेलो!
उसकी पुकार पर प्रवेश-कक्ष में आया एक छोटे कद वाला, लँगड़ाता हुआ, काला तंग कोट पहने, कमर में बँधे चमड़े के बेल्ट में खंजर खोंसे, लाल बालों वाला, पीला दाँत बाहर को निकला हुआ, दाहिनी आँख में फूल पड़ा हुआ आदमी.
पोप्लाव्स्की का दम घुटने लगा, वह कुर्सी से उठा और सीना पकड़कर लड़खड़ा गया.
 अज़ाज़ेलो, ले जाओ, बिल्ले ने हुक्म दिया और कमरे से बाहर निकल गया.
 पोप्लाव्स्की, आने वाले ने नकियाते हुए हौले से कहा, उम्मीद है आप सब समझ गए हैं?
पोप्लाव्स्की ने सिर हिलाया.
 फ़ौरन कीएव वापस लौट जाओ, अज़ाज़ेलो ने अपनी बात जारी रखी, वहाँ पानी से भी ख़ामोश, घास से भी छोटे बनकर बैठो और मॉस्को के किसी फ्लैट का सपना भी मत देखो, समझ गए?
यह नाटा, जिसने पोप्लाव्स्की को अपने बाहर निकले दाँत, खंजर और टेढ़ी आँख से भयानक रूप से दहला दिया था, अर्थशास्त्री के केवल कन्धे तक पहुँचता था मगर वह बड़ी फुर्ती से और सधे हुए ढंग से हरकत कर रहा था.
सबसे पहले उसने पासपोर्ट उठाकर मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच को थमा दिया, जिसने अपने मरियल हाथ से उसे वापस ले लिया. फिर अज़ाज़ेलो नामक इस व्यक्ति ने एक हाथ से उसका सूटकेस उठाया और दूसरे हाथ से दरवाज़ा खोलकर बेर्लिओज़ के मामा को हाथ पकड़कर सीढ़ियों तक ले गया. पोप्लाव्स्की दीवार से सट गया. बिना किसी चाबी के अज़ाज़ेलो ने सूटकेस खोल दिया और उसमें से एक टाँग वाली तली हुई भारी-भरकम मुर्गी निकाली जो तेल से भीगे कागज़ में लिपटी थी. उसने मुर्गी ज़मीन पर रख दी. फिर दो जोड़ी अंतर्वस्त्र निकाले, दाढ़ी करने का उस्तरा निकाला, कोई किताब और एक चमड़े का केस भी निकाला और इस सबको पैर से सीढ़ियों पर धकेल दिया, सिवाय मुर्गी के. फिर खाली सूटकेस भी वहीं फेंक दिया. उसके नीचे गिरने की आवाज़ से पता चलता था कि उसका ढक्कन भी टूटकर अलग हो गया है.
फिर लाल बालों वाले उस शैतान ने मुर्गी की टाँग पकड़कर उठा लिया और उसी से पोप्लाव्स्की की गर्दन पर इतनी ज़ोर से प्रहार किया कि मुर्गी का शरीर अलग हो गया और टाँग अज़ाज़ेलो के हाथ में रह गई. ओब्लोन्स्की के घर में सब उलट-पुलट हो गया, महान लेखक लेव टॉल्स्टॉय ने ऐसी स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा था. ठीक ऐसा ही वह अब भी कहता. हाँ, पोप्लाव्स्की की आँखों के सामने सब गड्डमड्ड हो गया. उसकी आँखों के सामने बिजली की एक लकीरसी कौंधी, जिसके पीछे-पीछे मानो काला नाग गुज़रा, जिसने मई की उस दोपहर में निमिष मात्र के लिए अंधेरा कर दिया और पोप्लाव्स्की नीचे सीढ़ियों पर तैरता चला गया, हाथों में पासपोर्ट पकड़े. सीढ़ियों के मोड़ तक आने पर उसके पैर से खिड़की का शीशा खन् से टूट गया और वह सीढ़ी पर बैठा नज़र आया. उसके साथ ही उड़ रही थी बेपैर की मुर्गी जो और भी आगे बढ़ गई और सीढ़ियों की गहराई में गिर गई. ऊपर ठहरे अज़ाज़ेलो ने मुर्गी की टाँग को साफ़ करके उसकी हड्डी को अपनी जेब में डाल लिया, फिर वह वापस फ्लैट में चला गया और दरवाज़ा धम् से बन्द हो गया. इसी समय नीचे से सतर्क कदमों की आहट सुनाई दी.
 और एक मंज़िल नीचे दौड़ने के बाद पोप्लाव्स्की वहाँ पड़ी लकड़ी की बेंच पर बैठ गया और तब जाकर उसने साँस ली.
एक मझोले कद का अधेड़ आदमी, बड़ा अजीब-सा, मातमी चेहरा लिए, पुराना टसर का सूट पहने, हरी रिबन वाली सख़्त हैट पहने सीढ़ियों पर ऊपर चढ़ रहा था. पोप्लाव्स्की को देखकर वह उसके पास रुक गया.
 महाशय, कृपया बताइए कि फ्लैट नं. 50 कहाँ है, उस आदमी ने दुःखी भाव से पूछा.
 ऊपर, पोप्लाव्स्की ने फट् से कहा.
 बहुत बहुत धन्यवाद, महाशय, उसी तरह निराश आवाज़ में कहकर वह आदमी ऊपर चढ़ गया, और पोप्लाव्स्की उठकर नीचे की ओर दौड़ने लगा.
अब सवाल उठता है कि मैक्स्मिलियन अन्द्रेयेविच पुलिस थाने जा रहा था रिपोर्ट करने कि दिन-दहाड़े उस पर कातिलाना हमला हुआ है? नहीं, किसी भी हालत में नहीं, यह हम विश्वास के साथ कह सकते हैं. पुलिस थाने जाकर यह कहना कि चश्मा पहने बिल्ले ने उसका पासपोर्ट पढ़ा, और फिर तंग कोट वाले आदमी ने चाकू से...नहीं, दोस्तों, मैक्स्मिलियन अन्द्रेयेविच सचमुच एक समझदार आदमी थी.
अब तक वह नीचे पहुँच गया था. उसके ठीक सामने था गोदाम में जाने का दरवाज़ा. इस दरवाज़े का शीशा टूटा हुआ था. पोप्लाव्स्की ने पासपोर्ट जेब में छिपा लिया और ऊपर से फेंकी गई अपनी चीज़ों को पाने की उम्मीद में इधर-उधर देखने लगा. मगर उनका कहीं नामोनिशान नहीं था. पोप्लाव्स्की को अपने आप पर आश्चर्य भी हुआ कि उसे खोई हुई चीज़ों का अफ़सोस क्यों नहीं हो रहा है. उसे अब दूसरे ही दिलचस्प और दिलकश ख़याल ने घेर लिया: इस दूसरे व्यक्ति पर उस फ्लैट में क्या गुज़रती है? ठीक ही तो है: चूँकि उसने पूछा था कि वह कहाँ है, इसका मतलब वह वहाँ पहली बार जा रहा है. शायद वह उस चांडाल-चौकड़ी के चँगुल में फँसने जा रहा हो जो फ्लैट नं.50 में घुस आई थी. पोप्लाव्स्की को लग रहा था कि वह आदमी जल्दी ही वहाँ से बाहर आएगा. किसी भाँजे के किसी अंतिम संस्कार में जाने की बात अब मैक्स्मिलियन अन्द्रेयेविच सोच भी नहीं रहा था और कीएव जाने वाली गाड़ी के छूटने में अभी काफी समय था. अर्थशास्त्री इधर-उधर देखकर गोदाम में घुस गया. तभी दूर ऊपर से दरवाज़ा बन्द होने की आवाज़ आई. अब वह अन्दर घुसा! पोप्लाव्स्की ने डूबते दिल से सोचा. गोदाम में काफी ठंडक थी, चूहों और जूतों की दुर्गन्ध आ रही थी. मैक्स्मिलियन अन्द्रेयेविच लकड़ी के एक ठूँठ पर बैठ गया और इंतज़ार करने लगा. यह जगह ठीक थी, इस जगह से छठे अनुभाग का दरवाज़ा दिखाई दे रहा था.
                                                 क्रमशः

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.