मास्टर और मार्गारीटा – 25.2
आगंतुक ने दूसरे जाम से भी इनकार नहीं किया. चटखारे ले-लेकर कुछ मछलियाँ खाईं, उबली सब्ज़ियाँ चखीं और माँस का एक टुकड़ा भी खाया.
तृप्त होने के बाद उसने शराब की प्रशंसा की, “बेहतरीन चीज़ है, न्यायाधीश, मगर यह ‘फालेर्नो’ तो नहीं?”
“ ‘त्सेकूबा’ – तीस साल पुरानी,” बड़े प्यार से न्यायाधीश बोला.
मेहमान ने सीने पर हाथ रखते हुए कुछ और खाने से इनकार कर दिया और कहा कि वह भरपेट खा चुका है. तब पिलात ने अपना जाम भरा. मेहमान ने भी वैसा ही किया. दोनों ने अपने-अपने जाम से थोड़ी-सी शराब माँस वाले पकवान में डाली.
न्यायाधीश ने जाम उठाते हुए कहा, “हमारे लिए, तुम्हारे लिए, रोम के पिता, सर्वाधिक प्रिय और सर्वोत्तम व्यक्ति, कैसर के लिए!”
इसके बाद उन्होंने जाम खाली किया. अफ्रीकी सेवकों ने फलों और सुराहियों को छोड़कर बाकी सभी सामग्री मेज़ पर से हटा ली. न्यायाधीश ने उसी तरह इशारे से सेवकों को हटा दिया. स्तम्भों वाली बाल्कनी में अपने मेहमान के साथ वह अकेला रह गया.
“तो,” पिलात ने धीरे से कहा, “शहर के वातावरण के बारे में क्या कहते हो?”
उसने अपनी दृष्टि अनचाहे ही उधर की, जहाँ उद्यान के पीछे, नीचे, ऊँची स्तम्भों वाली इमारतें और समतल छतें सूर्य की अंतिम किरणों में जल रही थीं.
“मैं समझता हूँ, न्यायाधीश,” मेहमान ने जवाब दिया, “कि येरूशलम का वातावरण अब संतोषजनक है.”
“तो क्या यह समझा जाए कि अब किसी तरह की गड़बड़ की कोई आशंका नहीं है?”
“समझ सकते हैं,” न्यायाधीश की ओर प्यार से देखते हुए मेहमान ने उत्तर दिया, “केवल एक ही के बल पर – कैसर महान की शक्ति के बल पर.”
“हाँ, ईश्वर उन्हें लम्बी आयु दे,” पिलात ने फौरन आगे कहा, “और दे समग्र शांति.” वह कुछ देर चुप रहकर आगे बोला, “तो क्या आप समझते हैं कि सेनाओं को हटा लिया जाए?”
“मैं समझता हूँ कि विद्युत गति से प्रहार करने वाली टुकड़ी हटाई जा सकती है,” मेहमान ने जवाब देकर आगे कहा, “बिदा लेने से पहले यदि वह शहर में एक बार परेड कर ले तो अच्छा होगा.”
“बहुत अच्छा खयाल है,” न्यायाधीश ने सहमत होते हुए कहा, “परसों मैं उसे छोड़ दूँगा और स्वयँ भी चला जाऊँगा, और – मैं बारहों भगवान और फरिश्तों की कसम खाकर कहता हूँ कि यह आज ही कर सकने के लिए मैं बहुत कुछ दे देता.”
“क्या न्यायाधीश को येरूशलम पसन्द नहीं है?” मेहमान ने सहृदयतापूर्वक पूछ लिया.
“मेहेरबान,” मुस्कुराते हुए न्यायाधीश चहका, “समूची धरती पर इससे अधिक बेकार शहर और कोई नहीं है. मैं मौसम की तो बात ही नहीं कर रहा! हर बार, जब यहाँ आता हूँ, मैं बीमार पड़ जाता हूँ. यह तो आधी व्यथा है. मगर उनके ये उत्सव – जादूगर, सम्मोहक, मांत्रिक, तांत्रिक, मूर्तिपूजक...पागल हैं, पागल! उस एक मसीहा को ही लो, जिसका वह इस वर्ष इन्तज़ार करते रहे! हर क्षण ऐसा लगता रहता है कि किसी अप्रिय खूनखराबे को देखना पड़ेगा. हर समय सेनाएँ घुमाते रहो, आँसुओं का विवरण और शिकायतें पढ़ते रहो, जिनमें से आधी तो तुम्हारे खुद के खिलाफ हैं! मानिए, यह सब बहुत उकताहटभरा है. ओह, अगर मैं सम्राट की सेवा में न होता तो...”
“हाँ, यहाँ के उत्सवों का समय कठिन होता है,” मेहमान ने सहमति जताई.
“मैं पूरे दिल से चाहता हूँ कि वे जल्दी से समाप्त हो जाएँ,” पिलात ने जोश से कहा, “मुझे केसारिया जाने का मौका तो मिलेगा. विश्वास कीजिए, यह भुतहा निर्माण हिरोद का...” न्यायाधीश ने हाथ हिलाते हुए स्तम्भों की ओर इशारा किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वह प्रासाद के बारे में कह रहा है, “मुझे पूरी तरह पागल बना देता है. मैं यहाँ रात नहीं बिता सकता. पूरी दुनिया में इससे अजीब स्थापत्य कला का नमूना कहीं और नहीं मिलेगा. खैर, चलिए, काम के बातें करें. सबसे पहले, यह दुष्ट वारव्वान आपको परेशान नहीं करता?”
मेहमान ने अपनी दृष्टि न्यायाधीश के गाल पर डाली, मगर वह माथे पर बल डाले उकताहट भरी नज़रों से कहीं दूर देख रहा था, शहर के उस हिस्से की ओर, जो उसके पैरों तले था और शाम के धुँधलके में धीरे-धीरे बुझता जा रहा था. मेहमान की नज़र भी बुझ गई, उसकी पलकें झुक गईं.
“कह सकते हैं कि वार अब ख़तरनाक नहीं रहा, मेमने की तरह हो गया है,” मेहमान ने कहना शुरू किया तो उसके गोल चेहरे पर सिलवटें पड़ गईं, “उसके लिए अब विद्रोह करना आसान नहीं है.”
“क्या वह काफी मशहूर है?” पिलात ने हँसते हुए पूछ लिया.
“न्यायाधीश हमेशा की तरह, इस सवाल को काफी बारीकी से समझ रहे हैं!”
“मगर, फिर भी, सावधानी के तौर पर हमें...” न्यायाधीश ने चिंता के स्वर में अपनी पतली, लम्बी, काले पत्थर की अँगूठी वाली उँगली ऊपर उठाते हुए कहा.
“ओह, न्यायाधीश, विश्वास रखिए. जब तक मैं जूडिया में हूँ, वार मुझे विदित हुए बिना एक कदम भी नहीं उठा सकता, मेरे जासूस उसके पीछे लगे हैं.”
“अब मुझे सुकून मिला – वैसे भी जब आप यहाँ रहते हैं, तो मैं हमेशा ही निश्चिंत रहता हूँ.”
“आप बहुत दयालु हैं, न्यायाधीश!”
“और अब, कृपया मुझे मृत्युदण्ड के बारे में बताइए,” न्यायाधीश ने कहा.
“आप कोई खास बात जानना चाहते हैं?”
“कहीं भीड़ द्वारा अप्रसन्नता, गुस्सा प्रदर्शित करने के कोई लक्षण तो नज़र नहीं आए? खास बात यही है.”
“ज़रा भी नहीं,” मेहमान ने उत्तर दिया.
“बहुत अच्छा. आपने स्वयँ यकीन कर लिया था कि मृत्यु हो चुकी है?”
“न्यायाधीश इस बारे में निश्चिंत रहें.”
“और बताइए...सूली पर चढ़ाए जाने से पहले उन्हें पानी पिलाया गया था?”
मेहमान ने आँखें बन्द करते हुए कहा, “हाँ, मगर उसने पीने से इनकार कर दिया.”
“किसने?”
पिलात ने पूछा.
“क्षमा कीजिए, महाबली!” मेहमान चहका, “क्या मैंने उसका नाम नहीं लिया? हा-नोस्त्री!”
“बेवकूफ!” पिलात ने न जाने क्यों मुँह बनाते हुए कहा. उसकी दाहिनी आँख फड़कने लगी, “सूरज की आग में झुलस कर मरना! जो कानूनन तुम्हें दिया जाता है, उससे इनकार क्यों? उसने कैसे इनकार किया?”
“उसने कहा,” मेहमान ने फिर आँखें बन्द करते हुए कहा, “कि वह धन्यवाद देता है और इस बात के लिए दोष नहीं देता कि उसका जीवन छीन लिया जा रहा है.”
“किसे?” पिलात ने खोखले स्वर में पूछा.
“महाबली, यह उसने नहीं बताया.”
“क्या उसने सैनिकों की उपस्थिति में कुछ सीख देने की कोशिश की?”
“नहीं, महाबली, इस बार वह बात नहीं कर रहा था. सिर्फ एक बात जो उसने कही, वह यह कि इन्सान के पापों में से सबसे भयानक पाप वह भीरुता को समझता है.”
“यह क्योंकर कहा?” मेहमान ने अचानक फटी-फटी आवाज़ सुनी.
“यह समझना मुश्किल था. वैसे भी, हमेशा की तरह, वह बड़ा विचित्र व्यवहार कर रहा था.”
“विचित्र क्यों?”
“वह पूरे समय किसी न किसी की आँखों में देखते हुए मुस्कुरा रहा था, अनमनी मुस्कुराहट...”
“और कुछ नहीं?” भर्राई आवाज़ ने पूछा.
“और कुछ नहीं.”
न्यायाधीश ने जाम में शराब डालकर जाम टकराया. उसे पूरा पी जाने के बाद उसने कहा, “अब सुनो काम की बात: हालाँकि, कम से कम इस समय, हम उसके अनुयायियों, शिष्यों को ढूँढ़ नहीं सकते, मगर यह कहना भी मुश्किल है कि वे हैं ही नहीं!”
मेहमान सिर झुकाकर गौर से सुनता रहा.
“किन्हीं आकस्मिक आश्चर्यों से बचने के लिए,” न्यायाधीश ने आगे कहा, “मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ, कि बिना शोर मचाए पृथ्वी के सीने से उन तीनों मृतकों के शरीर गुप्त रूप से हटाकर उन्हें चुपचाप दफना दिया जाए, जिससे उनके बारे में न कोई बात हो, न उनका कोई नामोनिशान बचे.”
“जैसी आज्ञा महाबली,” मेहमान ने कहा और वह उठते हुए बोला, “इस काम से जुड़ी ज़िम्मेदारी और ज़टिलताओं को देखते हुए, मुझे फौरन जाने की इजाज़त दें.”
“नहीं, कुछ देर और बैठिए,” पिलात ने इशारे से अपने मेहमान को रोकते हुए कहा, “मुझे और दो बातें पूछनी हैं. पहली – गुप्तचर प्रमुख के रूप में इस कठिन काम में आपकी सेवाओं और सहयोग की प्रशंसा करते हुए, जो आपने जूडिया के न्यायाधीश को अर्पण कीं, मुझे रोम में आपकी सिफारिश करने में प्रसन्नता होगी.”
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.