मास्टर और मार्गारीटा – 19.3
वह बहुत दुःखी हो गई और अपने होश खोने लगी. मगर तभी वह सुबह वाली आशा की लहर और उत्तेजना उसके शरीर को झकझोरने लगी. “हाँ, कुछ न कुछ ज़रूर होगा!” लहर ने उसे दुबारा धक्का दिया और वह समझी कि इस लहर में एक आवाज़ भी है. शहर के शोर के बीच नज़दीक आती ड्रम और पाइपों की आवाज़ें सुनाई दीं.
सबसे आगे चल रहा था, उद्यान की सीमा पर जड़ी जाली के साथ-साथ, घुड़सवार सिपाही, उसके पीछे तीन पैदल सिपाही थे. फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ ट्रक जिस पर बैण्ड बजाने वाले सवार थे. फिर हौले-हौले आगे बढ़ रही थी अन्तिम-संस्कार के आयोजनों के नई खरीदी गई खुली गाड़ी, उस पर ताबूत, पुष्प चक्रों के साथ, और किनारों पर खड़े हुए चार व्यक्ति – तीन पुरुष और एक महिला जो मृतक की अन्तिम यात्रा में उसका साथ दे रहे थे. अजीब-सी उलझन में फँसे हुए. ख़ास तौर से उखड़ी-उखड़ी दिखाई दे रही थी वह महिला, जो पीछे की ओर बाएँ किनारे पर खड़ी थी. इस महिला के फूले-फूले गाल जैसे किसी अजीब भेद को छिपा रहे थे, लाल फूली आँखों में दुहरा सवाल था. ऐसा लग रहा था कि अब वह मृतक की ओर आँख मारते हुए देखकर बोल पड़ेगी: “कभी ऐसा भी देखा है? रहस्यमय!” पैदल चलने वालों के चेहरों पर भी वही सवाल था, जिनकी संख्या करीब तीन सौ थी और वे अन्तिम यात्रा वाली गाड़ी के पीछे-पीछे धीरे-धीरे चल रहे थे.
मार्गारीटा ने आँखों से इस जुलूस को बिदा किया और दूर जाती तुर्की बैण्ड की आवाज़ सुनती रही जो लगातार ‘बूम्स, बूम्स” किए जा रहा था, और सोचती रही: “कैसी अजीब शवयात्रा है...और कितनी पीड़ा है इस “बूम्स” में! मैं शैतान को भी अपना दिल दे दूँ, बस यह जानने के लिए कि वह ज़िन्दा है या नहीं! आखिर यह शव यात्रा है किसकी जिसमें इतने बड़े-बड़े लोग शामिल हुए हैं?
“मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच बेर्लिओज़ की,” उसके नज़दीक ही नाक से बोलते हुए आदमी की अवाज़ सुनाई दी, “मॉसोलित के प्रेसिडेण्ट की.”
हैरान मार्गारीटा निकोलायेव्ना मुड़ी और उसने अपनी बेंच पर बैठे नागरिक को देखा, जो इस दौरान चुपके से आकर वहाँ बैठ गया था, जब मार्गारीटा शवयात्रा देख रही थी, शायद आखिरी सवाल अपने भुलक्कड़पन में उसने ज़ोर से पूछ लिया था.
जुलूस अब कुछ रुक-सा गया था, शायद लाल ट्रैफिक लाइट के कारण.
“हाँ,” उस अनजान नागरिक ने बात आगे बढ़ाई, “उनकी मानसिक हालत बड़ी अजीब है. मृतक को तो ले जा रहे हैं, मगर सोच रहे हैं कि उसका सिर आख़िर गया कहाँ?”
“कैसा सिर?” मार्गारीटा ने इस आकस्मिक रूप से आ टपके व्यक्ति की ओर देखते हुए पूछ लिया...यह व्यक्ति छोटे कद का, लाल बालों वाला और बाहर निकले दाँत वाला, इस्तरी की हुई कमीज़ पर धारियों वाला बढ़िया सूट पहने, चमचमाते चमड़े के जूतों में था. सिर पर कड़ी हैट थी. टाई चमकीली थी. ख़ास बात यह थी कि जेब में से, जहाँ अक्सर रूमाल या पेन लगा रहता है, मुर्गी की कुतरी हुई हड्डी झाँक रही थी.
“देखिए,” लाल बालों वाले ने समझाते हुए कहा, “आज सुबह ग्रिबोयेदोव हॉल में, ताबूत में से मृतक का सिर चुरा लिया गया.”
“यह कैसे हो सकता है?” मार्गारीटा ने न चाहते हुए भी पूछ लिया, तभी उसे ट्रॉलीबस में हो रही, फुसफुसाहट भरी बातचीत भी याद आ गई.
“शैतान जाने कैसे!” लाल बालों वाले ने फैलते हुए कहा, “मैं समझता हूँ कि बेगेमोत से इस बारे में पूछना ठीक रहेगा. कितनी सफ़ाई से चुरा लिया! कैसा स्कैण्डल! ख़ास बात यह है कि किसे और क्यों ज़रूरत पड़ गई इस सिर की?”
अपने आप में कितनी ही मशगूल न थी मार्गारीटा निकोलायेव्ना, इस अनजान नागरिक की बकवास ने उसे चौंका ज़रूर दिया.
“माफ़ कीजिए,” अचानक वह बोली, “कौन से बेर्लिओज़ की? जिसके बारे में आज अख़बारों में...”
“वही, वही...”
“तो ये सब साहित्यकार हैं, जो शवयात्रा के पीछे-पीछे चल रहे हैं?” मार्गारीटा ने पूछा और वह सकते में आ गई.
“ज़ाहिर है, वही हैं...”
“आप उन्हें पहचानते हैं?”
:सबको,” लाल बालों वाले ने जवाब दिया.
“बताइए,” मार्गारीटा ने भेदभरी आवाज़ में पूछा, “उनके बीच आलोचक लातून्स्की भी है?”
“कैसे नहीं होगा?” लाल बालों वाले ने जवाब दिया, “वह देखो चौथी लाइन में किनारे पर.”
“वह भूरे बालों वाला?” आँखें सिकोड़ते हुए मार्गारीटा ने पूछा.
“राख जैसे रंग वाले...देखिए, उसने आँखें आसमान की ओर उठाईं.”
“पादरी जैसा?”
“हाँ – हाँ!”
आगे मार्गारीटा ने कुछ नहीं पूछा, बस लातून्स्की की ओर देखती रही.
“आप शायद,” मुस्कुराते हुए लाल बालों वाले ने कहा, “इस लातून्स्की से नफरत करती हैं?”
“मैं और भी किसी से नफ़रत करती हूँ,” दाँत भींचते हुए मार्गारीटा बोली, “मगर यह सब बताने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है.”
इस दौरान शवयात्रा आगे चल चुकी थी, पैदल चलने वालों के पीछे अनेक खाली मोटर कारें थीं.
“हाँ, इसमें दिलचस्पी वाली बात तो कोई नहीं है, मार्गारीटा निकोलायेव्ना!”
मार्गारीटा चौंक पड़ी, “आप मुझे जानते हैं?”
जवाब के बदले लाल बालों वाले ने हैट उतारकर अभिवादन किया.
‘बिल्कुल डाकू जैसी सूरत है,’ मार्गारीटा ने उस अचानक मिल गए साथी की ओर देखकर सोचा.
“मगर मैं आपको नहीं जानती,” मार्गारीटा ने रुखाई से कहा.
“आप मुझे कैसे जान सकती हैं! मगर मुझे आपके पास काम से भेजा गया है,” मार्गारीटा का चेहरा फक् हो गया, वह झटका खा गई.
“आप यह पहले भी कह सकते थे,” वह बोली, “मगर आप न जाने क्या बकवास करते रहे कटे हुए सिर के बारे में! आप मुझे गिरफ़्तार करना चाहते हैं?”
“ऐसी कोई बात नहीं है,” लाल बालों वाला चहका, “ये क्या अन्दाज़ है: अगर आप से बात कर ली, तो आपको गिरफ़्तार ही करना है! आप से सिर्फ काम है.”
“कुछ समझ में नहीं आ रहा, क्या काम है?”
लाल बालों वाले ने इधर-उधर देखते हुए भेदभरी आवाज़ में कहा, “मुझे इसलिए भेजा गया है कि मैं आज शाम को आपको निमंत्रित करूँ.”
“क्या बक रहे हैं, कैसा निमंत्रण?”
“एक प्रसिद्ध विदेशी के यहाँ,” लाल बालों वाले ने अर्थपूर्ण स्वर में आँखें सिकोड़ते हुए कहा.
मार्गारीटा को बहुत गुस्सा आ गया.
“एक नई तरह के लोग आ गए हैं: राहगीरों के रूप में दलाल,” उसने उठते हुए कहा.
“इस विशेषण के लिए धन्यवाद!” लाल बालों ने बुरा मानते हुए कहा और मार्गारीटा को पीठ पीछे गाली देते हुए बोला, “बेवकूफ़!”
“कमीना!” उसने मुड़ते हुए जवाब दिया, मगर तभी अपने पीछे लाल बालों वाले की आवाज़ सुनी:
“...अँधेरा, भूमध्य सागर की ओर से आता हुआ, न्यायाधीश की घृणा के पात्र शहर को घेरता जा रहा था. सभी लटकते पुल, जो मन्दिर को अंतोनियो की ख़ौफ़नाक मीनार से जोड़ते थे, गायब हो गए... येरूशलम – महान शहर – ऐसे गायब हो गया मानो धरती पर उसका अस्तित्व ही न रहा हो...ऐसे ही तुम भी लुप्त हो जाओगी अपनी जली हुई पुस्तक और सूखे हुए गुलाब के साथ! यहाँ बेंच पर अकेले बैठे रहिए और उसकी प्रार्थना कीजिए कि वह आपको आज़ाद कर दे, खुली हवा में साँस लेने दे, आपके ख़यालों से चला जाए!”
सफ़ेद चेहरे से मार्गारीटा बेंच की ओर लौटी. लाल बालों वाले ने आँखें सिकोड़ते हुए उसकी ओर देखा.
“मैं कुछ समझ नहीं पा रही,” मार्गारीटा निकोलायेव्ना ने हौले से कहा, “ठीक है, उपन्यास के बारे में तो आप जान सकते हैं...झाँककर, चुपके से पढ़कर...नताशा बिक गई है? हाँ? मगर मेरे ख़यालों को आप कैसे जान गए?” उसने पीड़ा से माथे पर बल डालते हुए आगे कहा, “मुझे बताइए, आप हैं कौन? कौन से दफ़्तर में काम करते हैं?”
“क्या बोरियत है,” लाल बालों वाला बुदबुदाया और ज़ोर से बोला, “माफ़ कीजिए, मैं आप से पहले ही कह चुका हूँ कि मैं किसी दफ़्तर में काम नहीं करता! बैठ जाइए!”
मार्गारीटा ने चुपचाप आज्ञा का पालन किया, मगर बैठते-बैठते उसने फिर पूछ लिया, “आप कौन हैं?”
क्रमशः
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