मास्टर और मार्गारीटा – 19.2
इसी उत्तेजित अवस्था में मार्गारीटा ने वस्त्र पहने और अपने आप को विश्वास दिलाती रही कि सब कुछ ठीकठाक हो जाएगा. और ऐसे मौके का फ़ायदा उठाना चाहिए. पति पूरे तीन दिनों के लिए दौरे पर गया है. ये तीन दिन उसके अपने हैं, कोई भी उसे कुछ भी सोचने से नहीं रोक सकता, उसके बारे में सोचने से, जो उसे अच्छा लगता है. ऊपरी मंज़िल के ये पाँचों कमरे, यह पूरा घर जिससे मॉस्को के लाखों लोग ईर्ष्या करते हैं, उसके पूरे अधिकार में है.
मगर इस शानदार, आरामदेह फ्लैट में पूरे तीन दिनों के लिए आज़ादी पाकर मार्गारीटा ने सबसे अच्छी जगह नहीं चुनी. चाय पीकर वह बिना खिड़कियों वाले अँधेरे कमरे में गई, जहाँ सूटकेसें और अन्य अनेक पुरानी चीज़ें दो बड़ी-बड़ी अलमारियों में रखी थीं. एक छोटी तिपाई पर बैठकर उसने पहली अलमारी का निचला खाना खोला. रेशमी कतरन के बीच से उसने वह चीज़ निकाली, जो उसे सबसे प्रिय थी. मार्गारीटा के हाथों में पुराना अल्बम था, कत्थई चमड़े की जिल्द वाला, जिसमें मास्टर की तस्वीर थी, बैंक की पासबुक थी जिसमें उसके नाम पर दस हज़ार जमा थे; सिगरेट की चमकीली चाँदी वाले कागज़ में रखे सूखे हुए गुलाब की पंखुड़ियाँ थीं, और टाइपराइटर में टाइप किया हुआ वह उपन्यास, जिसका निचला हिस्सा जल चुका था.
इस ख़ज़ाने को लेकर मार्गारीटा निकोलायेव्ना अपने शयन-कक्ष में लौट आई, उसने तीन शीशों वाली टेबुल पर मास्टर का फोटो रखा और क़रीब एक घण्टा बैठी रही; अपने घुटनों पर अधजले उपन्यास को रखकर उसे पलटती रही, बार-बार पढ़ती रही, वह, जिसमें जल चुकने के बाद न आदि था न अंत: “...अँधेरा, भूमध्य सागर की ओर से आता हुआ, न्यायाधीश की घृणा के पात्र शहर को घेरता जा रहा था. सभी लटकते पुल, जो मन्दिर को अंतोनियो की ख़ौफ़नाक मीनार से जोड़ते थे, गायब हो गए; आकाश से एक अनन्त ने आकर घुड़सवारी के मैदान में रखी सभी परों वाली ईश्वरों की मूर्तियों को ढँक लिया. हसमन का महल अपने झरोखों समेत; बाज़ार, कारवाँ, सराय, गलियाँ, पोखर...येरूशलम – महान शहर – गायब हो गया मानो धरती पर उसका अस्तित्व ही न रहा हो...”
मार्गारीटा आगे पढ़ना चाहती थी, मगर आगे कुछ था ही नहीं, सिर्फ कालिख की आड़ी-टेढ़ी किनार के सिवाय.
आँसू पोंछते हुए मार्गारीटा निकोलायेव्ना ने उपन्यास को रख दिया. ड्रेसिंग टेबुल पर कोहनियाँ रख दीं, मास्टर के फोटो से नज़रें हटाए बिना बड़ी देर तक दर्पण में प्रतिबिम्बित होती रही. फिर उसके आँसू सूख गए. मार्गारीटा ने अपनी दौलत को सहेजकर रख दिया. कुछ ही मिनटों बाद वह रेशमी कतरन के बीच, अँधेरे कमरे की अलमारी में थी और अँधेरे कमरे के दरवाज़े का ताला आवाज़ के साथ बन्द हो गया.
मार्गारीटा निकोलायेव्ना ने आकर कोट पहना, ताकि वह घूमने जा सके. उसकी सुन्दर नौकरानी नताशा ने पूछ लिया कि खाना क्या बनेगा और यह जवाब पाकर कि कुछ भी बना लो, वह अपना दिल बहलाने के लिए मालकिन से बातें करने लगी. वह न जाने क्या-क्या सुनाती रही, साथ ही यह भी कि कल थियेटर में एक जादूगर ने ऐसे कारनामे दिखाए कि सब दंग रह गए; उसने सबको दो-दो विदेशी इत्र की शीशियाँ दीं और तंग पैजामे भी मुफ़्त में दिए; और फिर जैसे ही ‘शो’ ख़त्म हुआ और दर्शक बाहर निकले, सब – फट् – सभी नंगे दिखाई दिए! मार्गारीटा निकोलायेव्ना प्रवेश-कक्ष के शीशे के सामने कुर्सी पर लुढ़क गई और पेट पकड़कर हँसती रही.
“नताशा! तुम्हें शरम नहीं आती,” मार्गारीटा निकोलायेव्ना बोली, “तुम तो पढ़ी-लिखी, समझदार लड़की हो; लोग कतारों में खड़े न जाने क्या-क्या कहते हैं और तुम भी वही दुहराती हो!”
नताशा का चेहरा लाल हो गया, उसने तैश में आकर कहा कि कोई झूठ नहीं बोल रहा और आज उसने स्वयँ भी अर्बात के डिपार्टमेन्टल स्टोर में एक महिला को देखा जो स्टोर में जूते पहनकर आई थी, और जैसे ही काउण्टर पर पैसे देने लगी, जूते उसके पैरों से गायब हो गए और वह सिर्फ स्टॉकिंग्स में ही रह गई. उसकी आँखें फटी रह गईं! एड़ी पर एक छेद था! और ये जूते उसी ‘शो’ से उसने लिए थे.
“वैसे ही गई?”
“वैसे ही गई!” नताशा चिल्लाई और अधिक लाल होते हुए, इस अहसास से, कि मालकिन उस पर विश्वास नहीं कर रही, “हाँ, कल, मार्गारीटा निकोलायेव्ना, पुलिस वाले रात को सौ आदमियों को पकड़कर ले गए. इस ‘शो’ से निकली महिलाएँ केवल कच्छे पहने त्वेर्स्काया सड़क पर दौड़ रही थीं!”
“हाँ, यह तो दार्या ने बताया है,” मार्गारीटा निकोलायेव्ना ने कहा, “मैं काफी समय से देख रही हूँ कि वह एक नम्बर की झूठी है.”
यह हँसी-मज़ाक वाली बात नताशा के लिए एक आश्चर्य लेकर ख़त्म हुई. मार्गारीटा निकोलायेव्ना अपने शयन-कक्ष में गई और वहाँ से एक जोड़ी स्टॉकिंग्ज़ और एक यूडीकोलोन की शीशी लेकर निकली. नताशा से यह कहकर कि वह भी चमत्कार दिखाना चाहती है, उसने उसे दोनों चीज़ें भेंट करते हुए कहा कि वह उससे सिर्फ यह विनती करती है कि केवल स्टॉकिंग्ज़ पहनकर त्वेर्स्काया पर मत दौड़ना और दार्या का विश्वास न करना. एक-दूसरे को चूमकर नौकरानी और मालकिन ने बिदा ली.
ट्रॉलीबस की आरामदेह नर्म कुर्सी पर टिककर बैठी मार्गारीटा निकोलायेव्ना अर्बात जा रही थी. वह कभी अपने ख़यालों में डूब जाती या कभी अपने सामने बैठे दो नागरिकों की फुसफुसाहट भरी बातचीत सुनने लगती.
और वे, कनखियों से इधर-उधर देखते हुए इस भय से कि कोई उनकी बातें तो नहीं सुन रहा, किसी अजीबोगरीब घटना के बारे में चर्चा कर रहे थे.तन्दुरुस्त, मोटा, बड़ी-बडी सूअर जैसी आँखों वाला, जो खिड़की के निकट बैठा था धीमी आवाज़ में बात कर रहा था. वह अपने दुबले-पतले हमराही को बता रहा था कि ताबूत को काले ढक्कन से ढाँकना पड़ा...
“असम्भव,” सकते में आते हुए पतला फुसफुसाया, “ऐसा तो कभी सुना नहीं...फिर झेल्दीबिन ने क्या किया?”
ट्रॉलीबस की एक-सी घरघराहट में खिड़की के पास से कुछ शब्द सुनाई दिए.
“छापा...खोज...स्कैण्डल, बस, रहस्यमय!”
इन असम्बद्ध टुकड़ों को तरतीब से रखकर मार्गारीटा निकोलायेव्ना यह समझी कि किसी मृत व्यक्ति का, किसका – उन्होंने नाम नहीं लिया, आज सुबह ताबूत में से सिर चुरा लिया गया. इसी कारण वह झेल्दीबिन इतना परेशान है. ये लोग भी, जो ट्रॉलीबस में फुसफुसाकर बातें कर रहे थे, बेसिर वाले मृतक से किसी न किसी रूप से सम्बन्धित हैं.
“क्या फूल ख़रीद सकेंगे?” पतले आदमी ने चिंता से पूछा, “तुम कहते हो कि अन्तिम संस्कार दो बजे है?”
आख़िर मार्गारीटा निकोलायेव्ना उनकी बातों से उकता गई. यह रहस्यमय फुसफुसाहट, ताबूत से सिर चुराने के बारे में, उसे बेचैन करने लगी, और वह खुश हो गई यह देखकर कि अब उसे ट्रॉलीबस से उतरना है.
कुछ मिनटों के बाद मार्गारीटा निकोलायेव्ना क्रेमलिन की दीवार के निकट एक बेंच पर बैठी थी, इस तरह कि उसे मानेझ हॉल दिखाई दे रहा था.
मार्गारीटा ने चमकते सूरज की ओर आँखें सिकोड़ कर देखा, अपने आज के सपने को याद किया. उसे यह बात भी याद आई कि ठीक एक साल पहले आज ही के दिन, इसी समय, इसी बेंच पर वह उसके साथ बैठी थी और उसका काला पर्स इसी तरह बेंच पर उसकी बगल में पड़ा था. आज वह उसके निकट नहीं था, मगर मार्गारीटा निकोलायेव्ना अपने ख़यालों में बस उसी से बातें कर रही थी : “अगर तुम्हें निर्वासित कर दिया गया है, तो अपने बारे में ख़बर क्यों नहीं भेजते? लोग अपना पता-ठिकाना बताते ही हैं. क्या तुम अब मुझसे प्यार नहीं करते? नहीं, न जाने क्यों, इस बात पर मैं विश्वास नहीं करती; मतलब, तुम्हें निर्वासित किया गया और तुम मर गए...तब, प्लीज़, मुझे छोड़ दो, मुझे जीने की आज़ादी दो, खुली हवा में साँस लेने दो.” मार्गारीटा निकोलायेव्ना ने स्वयँ ही उसकी ओर से जवाब दिया, “तुम आज़ाद हो...क्या मैं तुम्हें पकड़कर बैठा हूँ?” फिर उसी ने प्रतिवाद भी किया, “नहीं, ये क्या जवाब हुआ! नहीं, तुम मेरे ख़यालों से भी दूर चले जाओ, तब मैं आज़ाद हो जाऊँगी.”
लोग मार्गारीटा निकोलायेव्ना के नज़दीक से गुज़र रहे थे. एक आदमी उसकी वेशभूषा, सुन्दरता और अकेलेपन से आकर्षित हुआ. वह खाँसकर उसी बेंच के किनारे पर बैठ गया जिस पर मार्गारीटा निकोलायेव्ना बैठी थी. साहस बटोरकर उसने कहा, “आज मौसम ख़ास तौर से अच्छा है...” मगर मार्गारीटा ने इतने विषाद से उसकी ओर देखा कि वह उठकर चला गया.
“यह था, नमूना,” मार्गारीटा ने अपने ख़यालों में ही उससे कहा, जिसने उसे घेर रखा था, “मैंने इस आदमी को क्यों भगा दिया? इस मजनूँ में कोई बेवकूफ़ी भरी बात नहीं थी, मगर ‘ख़ासतौर से’ यह शब्द कितना बेहूदा था? मैं उल्लू की तरह दीवार के नीचे अकेली क्यों बैठी हूँ? मैं ज़िन्दगी से कट क्यों गई हूँ?”
क्रमशः
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