मास्टर और मार्गारीटा – 21.1
उड़ान
अदृश्य और आज़ाद! अदृश्य और स्वतंत्र! अपनी गली पर उड़ने के बाद मार्गारीटा दूसरी गली पर आई, जो पहले वाली को समकोण बनाते हुए काटती थी. इस बदहवास, गड्ढ़ों वाली, टेढ़ी-मेढ़ी और लम्बी गली को, जहाँ केरोसिन की दुकान का तिरछा दरवाज़ा खुलता था और प्यालों में केरोसिन तथा कुप्पियों में कीड़े-मकोड़े मारने की दवाई बेची जाती थी, उसने एक क्षण में पार कर लिया. तभी उसे लगा कि पूरी तरह आज़ाद और स्वतंत्र होने के बावजूद उसे इस बात का ध्यान रखना होगा कि किन चीज़ों का आनन्द उठाना है. किसी करामात की ही बदौलत वह कुछ ठहर गई और सड़क पर खड़े तिरछे लैम्प के शीशे से टकराकर मरते-मरते बची. उससे दूर हटकर वह मुड़ी और उसने ब्रश को कसकर पकड़ लिया. अब वह कुछ धीमी गति से उड़ रही थी, बिजली के तारों और साइन बोर्ड्स से अपने आप को बचाते हुए, जो फुटपाथ के ऊपर झूल रहे थे.
तीसरी गली सीधे अर्बात को जाती थी. यहाँ तक आते-आते मार्गारीटा ब्रश पर काबू करने में कामयाब हो गई थी, समझ गई थी कि ब्रश उसकी हल्की-सी हरकत को भी समझ रहा है; पाँव या हाथ का हल्का-सा स्पर्श भी; और यह भी कि शहर के ऊपर उड़ते हुए बहुत ही सावधान रहना होगा, उछल कूद मचाना ठीक नहीं होगा. साथ ही यह भी पता चल गया था कि रास्ते पर चलने वाले इस उड़ती हुई बला को नहीं देख पा रहे हैं. किसी ने भी सिर ऊपर नहीं उठाया, कोई भी नहीं चिल्लाया, ‘देखो! देखो!’; किनारे पर कोई भी नहीं हटा, किसी ने सीटी नहीं बजाई, कोई बेहोश नहीं हुआ, दुष्टता से ठहाका मारकर नहीं हँसा.
मार्गारीटा ख़ामोशी से उड़ती रही – काफी धीरे, काफी नीचे...दूसरी मंज़िल तक की ऊँचाई पर. मगर इस धीमी उड़ान के बावजूद, जगमगाते अर्बात पर निकलते-निकलते वह थोड़ा इधर-उधर हो ही गई और उसने कन्धे से किसी चमकती तश्तरी को धक्का दे ही दिया जिस पर तीर का निशान बना हुआ था. इससे मार्गारीटा को गुस्सा आ गया. उसने आज्ञाकारी ब्रश को पकड़ा और किनारे पर आ गई, फिर उस तश्तरी पर हमला करते हुए ब्रश के डण्डे से वार करके उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए. खनखनाते हुए काँच के टुकड़े नीचे गिर पड़े, आने-जाने वाले ठिठक गए. कहीं से सीटी बजने की आवाज़ आई. मार्गारीटा इस अनावश्यक काम को पूरा करके ठहाका मारकर हँस पड़ी. ‘अर्बात पर काफी सावधान रहना होगा,’ मार्गारीटा ने सोचा, ‘यहाँ सब कुछ इतना उलझा हुआ है कि कुछ समझ पाना भी मुश्किल है!’ उसने तारों के बीचे से होकर उड़ने की कोशिश की. मार्गारीटा के नीचे ट्रॉलीबसों, बसों और कारों की छतें तैर रही थीं; और ऊपर से उसे यूँ लग रहा था मानो फुटपाथों पर टोपियों की नदियाँ बह रही हों. इन नदियों से बीच-बीच में कुछ धाराएँ अलग होकर रात के जगमगाते दुकानों के जबड़ों में समाती जा रही थीं. ‘ओह, क्या उलझन है!’ गुस्से से मार्गारीटा ने सोचा, ‘यहाँ मुड़ना असम्भव है.’ अर्बात पार करने के बाद वह ऊपर उठ गई, चौथी मंज़िलों तक, और चकाचौंध करते थियेटर की कोने वाली इमारत की बगल से होकर ऊँचे-ऊँचे मकानों वाली पतली गली में पहुँची. इन घरों की खिड़कियाँ खुली थीं और सभी खिड़कियों से रेडियो सुनाई दे रहा था. उत्सुकतावश मार्गारीटा ने एक खिड़की में झाँका. रसोईघर देखा. स्लैब पर दो स्टोव गरज रहे थे, उनके निकट दो औरतें खड़ी थीं, हाथों में चम्मच लिये, एक-दूसरे को बुरा-भला कहते हुए.
“अपने पीछे, बाथरूम में बत्ती बुझा देना चाहिए, पेलागेया पेत्रोव्ना, मैं कहे देती हूँ,” वह औरत बोली, जिसके सामने के बर्तन में रखे घोल से भाप निकल रही थी, “वर्ना हम तुम्हें यहाँ से भगा देंगे!”
“जैसे आप ख़ुद तो बहुत अच्छी हैं,” दूसरी ने जवाब दिया.
“तुम दोनों ही अच्छी हो,” मार्गारीटा ने खिड़की में से रसोईघर में आते हुए ज़ोर से कहा. दोनों झगड़ा करने वालियों ने आवाज़ की दिशा में देखा और हाथों के गन्दे चम्मचों समेत मानो जम गईं. मार्गारीटा ने उनके बीच से सावधानी से हाथ बढ़ाकर दोनों स्टोव की चाबियाँ घुमाकर उन्हें बुझा दिया. औरतों ने ‘हाय!’ कहा और उनके मुँह खुले रह गए. मगर मार्गारीटा अब रसोईघर में उकता गई और वापस गली में उड़कर आ गई.
इस गली के अंत में वह आकर्षित हुई एक शानदार आठ-मंज़िला इमारत की ओर, जो हाल ही में बनी थी. मार्गारीटा नीचे उतरी और ज़मीन पर पहुँच कर उसने देखा कि इमारत का दर्शनीय भाग काले संगमरमर से बना है, दरवाज़े चौड़े हैं, उनमें जड़े शीशों से दरबान के कोट के बटन और सुनहरे रिबन वाला टोप दिखाई दे रहे हैं और दरवाज़ों पर सुनहरे अक्षरों से लिखा था: ‘ड्रामलिट आवास’.
मार्गारीटा उस लिखाई को देखती रही, यह समझने की कोशिश करते हुए कि ड्रामलिट का क्या मतलब हो सकता है. ब्रश को बगल में दबाए मार्गारीटा अन्दर घुसने लगी, घबराए दरबान को धक्का देते हुए, और लिफ्ट के निकट उसकी नज़र दीवार पर लगे उस काले बोर्ड पर पड़ी, जिसमें सफ़ेद अक्षरों में उस बिल्डिंग में रहने वालों के नाम थे, उनके फ्लैट नम्बरों सहित. सबसे ऊपर लिखा था “नाटककारों एवम् साहित्यकारों का आवास” जिससे मार्गारीटा इन नामों को पढ़ने पर मजबूर हुई. एक आह भरकर वह ऊपर हवा में उठ गई और जल्दी-जल्दी बोर्ड पर लिखे नाम पढ़ने लगी: खूस्तोव, द्वुब्रात्स्की, क्वान्ट, बेस्कूद्निकोव, लातून्स्की...
“लातून्स्की!” मार्गारीटा भुनभुनाई, “लातून्स्की! हाँ, यह वही तो है! इसी ने मास्टर को मारा है.”
दरवाज़े पर खड़ा दरबान आश्चर्य से आँखें नचाते और उछलते हुए उस काले बोर्ड की तरफ देखने लगा, यह जानने की कोशिश करते हुए कि यह बोर्ड पर लिखी रहने वालों की फ़ेहरिस्त एकदम क्यों और कैसे भुनभुनाने लगी.
इस दौरान मार्गारीटा ऊपर सीढ़ियों पर तैर गई, एक उत्तेजना के साथ यह दुहराते हुए: ‘लातून्स्की – चौरासी! लातून्स्की चौरासी!...’
यह रहा बाईं ओर – 82, दाहिनी ओर – 83, और ऊपर बाईं ओर – 84, यही यह रही उसकी नेमप्लेट – “ओ. लातून्स्की”.
मार्गारीटा ब्रश से उछलकर नीचे आ गई. उसकी गर्म एड़ियों को पत्थर का फर्श ठण्डक दे रहा था. मार्गारीटा ने घण्टी बजाई; एक बार, दो बार, मगर किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला. मार्गारीटा पूरी शक्ति से घण्टी का बटन दबाती रही और उस घनघनाहट को सुनने लगी, जो लातून्स्की के घर में हो रही थी. हाँ, आठवीं मंज़िल के फ्लैट नं. 84 का निवासी, मॉसोलित के प्रेसिडेण्ट का आख़िरी दम तक शुक्रगुज़ार रहने वाला था, क्योंकि बेर्लिओज़ ट्रामगाड़ी से कुचल गया था, और इसलिए भी कि शोकसभा का आयोजन आज ही शाम को होने वाला था. लातून्स्की के सितारे बड़े अच्छे थे – इसी कारण उसकी मार्गारीटा से मुलाकात न हुई जो इस शुक्रवार को चुडैल बन चुकी थी.
किसी ने भी दरवाज़ा नहीं खोला. तब मार्गारीटा पूरे वेग से नीचे आने लगी, मंज़िलों को गिनते-गिनते वह नीचे पहुँचकर सड़क पर आ गई. बाहर आकर उसने फिर से मंज़िलें गिनीं, यह निश्चित करने के लिए कि लातून्स्की के फ्लैट की खिड़कियाँ-कौन सी हैं. बेशक, ये वे ही कोने वाली पाँच अँधेरी खिड़कियाँ थीं, आठवीं मंज़िल पर. इस बात को ठीक से देखकर मार्गारीटा फिर से ऊपर उठी और कुछ ही क्षणों बाद खुली खिड़की से अँधेरे कमरे के अन्दर आ गई, जहाँ केवल चाँद की रोशनी से ही कुछ उजाला था. इस चाँदी के पट्टे पर दौड़कर उसने बिजली का बटन ढूँढ़ा. एक ही मिनट बाद पूरे फ्लैट में रोशनी फैल गई. ब्रश कोने में खड़ा हो गया. यह यकीन करने के बाद कि घर पर कोई नहीं है, मार्गारीटा ने सीढ़ियों की ओर जाने वाला दरवाज़ा खोल दिया और देखने लगी कि नेमप्लेट वहाँ है या नहीं. नेमप्लेट अपनी जगह पर ही थी; मार्गारीटा वहाँ गई जहाँ उसे जाना चाहिए था.
क्रमशः
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