मास्टर और मार्गारीटा – 24.4
वोलान्द ने उस पांडुलिपि को हाथ में लिया, पलटकर देखा, एक ओर उसे रख दिया और चुपचाप, बिना मुस्कुराए मास्टर की ओर देखने लगा. मगर वह न जाने क्यों दुःख और घबराहट में डूबकर कुर्सी से उठा, और दूर चाँद की ओर देखते हुए, उँगलियाँ नचाकर कँपकँपाते हुए बड़बड़ाने लगा, “रात को चाँद की रोशनी में भी मुझे चैन नहीं है. मुझे क्यों इतना सताया गया? हे भगवान, भगवान...”
मार्गारीटा मरीज़ के गाउन को पकड़ते हुए उससे लिपट गई. वह खुद भी गम में डूबकर आँसू भरी आवाज़ में बोली, “हे भगवान, तुम पर दवा का असर क्यों नहीं हो रहा है?”
“कोई बात नहीं, कोई बात नहीं, कोई बात नहीं,” कोरोव्येव मास्टर के निकट जाते हुए फुसफुसाया, “कोई बात नहीं, कोई बात नहीं...एक और गिलास, और मैं भी आपके साथ पिऊँगा.”
और गिलास आँखमिचौली खेलते हुए चाँद की रोशनी में चमका और इस गिलास ने अपना काम कर दिया. मास्टर को वापस उसकी जगह पर बिठा दिया. मरीज़ का चेहरा शांत हो गया.
“हुँ, अब सब समझ में आ गया,” वोलान्द ने कहा और अपनी बड़ी उँगली से पांडुलिपि पर टकटक करने लगा.
“एकदम साफ़ है,” बिल्ले ने पुष्टि की, वह अपना खामोश भ्रम बने रहने का वादा भूल चुका था, “अब इस षड्यंत्र की मुख्य कड़ी मैं साफ-साफ देख सकता हूँ. तुम क्या कहते हो, अज़ाज़ेलो?” वह चुपचाप अज़ाज़ेलो की ओर मुखातिब हुआ.
“मैं कहता हूँ,” वह दबी आवाज़ में बोला, “कि तुम्हें डुबो देना अच्छा रहेगा.”
“दया करो, अज़ाज़ेलो,” बिल्ले ने उसे जवाब दिया, “मेरे मालिक को ऐसा करने का सुझाव न देना. विश्वास करो यदि मैं हर रात तुम्हारे पास वैसे ही चाँद के कपड़े पहनकर आता, जैसे कि इस बेचारे मास्टर ने पहन रखे हैं, तुम्हें इशारे करता, तुम्हें अपने पास बुलाता तो, हे अज़ाज़ेलो, तुम्हें कैसा लगता?”
“तो, मार्गारीटा,” वोलान्द ने बातचीत का सूत्र अपने हाथ में लेते हुए पूछा, “बताइए तो सही, कि आप क्या चाहती हैं?”
मार्गारीटा की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं. वह विनती करते हुए वोलान्द से बोली, “मुझे उसके साथ बात करने देंगे?”
वोलान्द ने सिर हिलाकर ‘हाँ’ कहा, तो मार्गारीटा ने मास्टर के कान से लगकर फुसफुसाते हुए कुछ कहा. साफ सुनाई दिया कि मास्टर ने कहा, “नहीं, बहुत देर हो चुकी है. मुझे ज़िन्दगी में अब कुछ नहीं चाहिए. सिवाय इसके कि तुम मेरे सामने रहो. मगर तुम्हें मैं फिर सलाह दूँगा – मुझे छोड़ दो. मेरे साथ तुम्हारा भी नुकसान होगा.”
“नहीं, नहीं छोडूँगी,” मार्गारीटा ने जवाब दिया और वह वोलान्द की तरफ मुड़ी, “मैं प्रार्थना करती हूँ कि हमें दुबारा अर्बात वाले उसी घर में भेज दिया जाए; टेबुल पर लैम्प जलता रहे और सब कुछ वैसा ही हो जाए जैसा पहले था.”
अब मास्टर हँस पड़ा और मार्गारीटा का घुँघराले बालों वाला मुख अपने हाथों में लेकर बोला, “ओह, इस गरीब औरत की बात न सुनिए, महोदय! उस घर में कब से कोई दूसरा आदमी रहता है, और ऐसा कभी होता नहीं है कि सब कुछ वैसा ही हो जाए, जैसा पहले था.” उसने अपना गाल मार्गारीटा के सिर से सटाकर मार्गारीटा को अपनी बाँहों में भर लिया, और बड़बड़ाने लगा, “बेचारी, बेचारी...”
“आप कहते हैं कि नहीं हो सकता?” वोलान्द ने कहा, “यह सही है. मगर हम कोशिश करेंगे...” और उसने कहा, “अज़ाज़ेलो!”
उसी समय छत से अवतीर्ण हुआ घबराया हुआ और लगभग पगला गया एक नागरिक, जिसने सिर्फ कच्छा पहन रखा था, मगर न जाने क्यों उसके हाथ में एक सूटकेस था और सिर पर थी टोपी. डर के मारे वह आदमी काँप रहा था और वह धम् से नीचे बैठ गया.
“मोगारिच?” अज़ाज़ेलो ने उस आसमान से टपके प्राणी से पूछा.
“अलोइज़ी मोगारिच,” उसने काँपते हुए जवाब दिया.
“आप वही हैं, जिसने इस आदमी के उपन्यास के बारे में लिखा लातून्स्की का लेख पढ़कर उसकी यह कहते हुए शिकायत की थी कि उसने गैरकानूनी साहित्य अपने घर में छिपा रखा है?” अज़ाज़ेलो ने पूछा.
नए आए नागरिक का बदन नीला पड़ गया और उसकी आँखों से पश्चात्ताप के आँसू बहने लगे.
“आप इसके कमरों को हथियाना चाहते थे?” अज़ाज़ेलो ने यथासम्भव सहृदयता दिखाते हुए पूछा.
क्रोधित बिल्ले की गुर्राहट कमरे में सुनाई दी और मार्गारीटा ने बिसूरते हुए कहा, “पहचानो! चुडैल को पहचानो!” और वह अलोइज़ी मोगारिच के चेहरे पर अपने नाखून गड़ाने लगी.
एक कोहराम मच गया.
“क्या कर रही हो?” मास्टर पीड़ा एवम् दुःख से चीखा, “मार्गो, स्वयँ को लज्जित न करो!”
“मैं विरोध करता हूँ, यह लज्जाजनक कृत्य नहीं है,” बिल्ला गरजा.
कोरोव्येव ने मार्गारीटा को खींचकर दूर हटाया.
“मैंने गुसलखाना बनवाया,” दाँत किटकिटाते हुए लहूलुहान मोगारिच बोला और डर के मारे कुछ और ही बोलने लगा, “एक बार पुताई...गन्धक का तेज़ाब...”
“चलो, अच्छा ही है कि गुसलखाना बनवाया,” अज़ाज़ेलो ने उसका समर्थन करते हुए कहा, “उसे स्नान करना ही चाहिए!” और चिल्लाया, “दफ़ा हो जाओ!”
तब मोगारिच सिर के बल लटकने लगा और एक झटके से वोलान्द के शयन-कक्ष की खुली खिड़की से बाहर फेंक दिया गया.
मास्टर की आँखें फटी रह गईं, वह बुदबुदाया, “मगर यह उस हरकत से कहीं ज़्यादा साफ-सुथरा कारनामा था, जिसके बारे में इवान ने बताया था!” बिल्कुल भौंचक्का वह इधर-उधर आँखें घुमा रहा था और आखिरकार उसने बिल्ले से कहा, “माफ कीजिए...यह तुम...यह आप...” वह ठिठक गया, यह न तय कर पाया कि बिल्ले को ‘तुम’ शब्द से सम्बोधित करना चाहिए या ‘आप’ से, “आप वही बिल्ला हैं, जो ट्रामगाड़ी में बैठे थे?”
“मैं ही हूँ,” खुश होकर बिल्ले ने पुष्टि की, और आगे बोला, “मुझे यह सुनकर बहुत अच्छा लगा कि आप बिल्ले के साथ इतनी शिष्टता से पेश आते हैं. बिल्लों को न जाने क्यों हमेशा ‘तुम’ कहकर पुकारा जाता है, हालाँकि कभी भी किसी भी बिल्ले ने किसी के भी साथ बेतकल्लुफी से जाम टकराकर नहीं पिया है.”
“मुझे न जाने क्यों ऐसा लगता है कि आप एकदम बिल्ले नहीं हैं,” मास्टर ने दुविधा में पड़ते हुए जवाब दिया; “मुझे अस्पताल वाले किसी भी हालत में पकड़कर ले ही जाएँगे,” उसने डरते हुए वोलान्द से कहा.
“ऐसे कैसे पकड़कर ले जाएँगे!” कोरोव्येव ने उसे धीरज देते हुए कहा, और उसके हाथों में कुछ कागज़ और कुछ किताबें दिखाई देने लगीं, “यह आपकी बीमारी का इतिहास है?”
“हाँ.”
कोरोव्येव ने बीमारी के ‘केस-पेपर्स’ अँगीठी में झोंक दिए.
“कागज़ात नहीं, तो आदमी भी नहीं,” संतुष्ट होकर कोरोव्येव ने कहा, “और यह आपके मकान मालिक वाले कागज़ात हैं?”
“हाँ...आँ...”
“इनमें किसका नाम लिखा है? अलोइज़ी मोगारिच?” कोरोव्येव ने उस पुस्तिका के पन्ने पर फूँक मारी, “फू!...वह नहीं है, गौर कीजिए, -वह था भी नहीं. अगर मकान मालिक को ताज्जुब हो, तो उससे कहिए कि उसे अलोइज़ी का सपना आया था. मोगारिच? कौन है मोगारिच? कोई मोगारिच कभी था ही नहीं.” तब वह किताब धुँआ बनकर कोरोव्येव के हाथों से उड़ गई, “और अब वह किताब है मकान मालिक की मेज़ की दराज़ में.”
“आप सही कह रहे हैं,” मास्टर ने कोरोव्येव की हाथ की सफाई से अचम्भित होते हुए कहा, “कि जब कागज़ात ही नहीं हैं, तो आदमी भी नहीं होगा. इसीलिए तो मैं भी नहीं हूँ, मेरे पास भी कोई परिचय-पत्र इत्यादि नहीं है.”
“मैं माफी चाहता हूँ,” कोरोव्येव चिल्लाया, “यह वाक़ई में सम्मोहन है, यह रहे आपके कागज़ात,” और कोरोव्येव ने परिचय-पत्र मास्टर की ओर बढ़ा दिया. फिर उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई और बड़ी मिठास से मार्गारीटा से फुसफुसाकर कहा, “और यह रही आपकी दौलत, मार्गारीटा निकोलायेव्ना,” और उसने मार्गारीटा को किनारों पर झुलसी हुई पांडुलिपि, सूखा हुआ गुलाब, फोटो, और ख़ास एहतियात के साथ, बैंक की पासबुक दी, “दस हज़ार जो आपने जमा किए थे, मार्गारीटा निकोलायेव्ना! हमें पराई चीज़ नहीं चाहिए.”
“मेरे पंजे झड़ जाएँ, अगर मैं पराई चीज़ को हाथ लगाऊँ,” बिल्ले ने सूटकेस पर नाचते हुए इठलाते हुए कहा. वह सूटकेस पर नाच रहा था, जिससे उस दुर्दैवी उपन्यास की पांडुलिपि की सारी प्रतियाँ अच्छी तरह सूटकेस में समा जाएँ.
“और आपका परिचय-पत्र यह रहा, “कोरोव्येव ने मार्गारीटा को कागज़ात देते हुए कहा, और फिर वोलान्द की ओर मुड़कर आदर से बोला, “सब हो गया, मालिक!”
“नहीं, सब नहीं हुआ,” वोलान्द ने अपने ग्लोब से ध्यान हटाते हुए कहा, “मेरी प्रिय महारानी, आपकी मण्डली को कहाँ भेजने की आज्ञा देंगी? मुझे तो उसकी ज़रूरत नहीं है.”
क्रमशः
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