लोकप्रिय पोस्ट

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

Master aur Margarita-21.4


मास्टर और मार्गारीटा 21.4
 
मार्गारीटा पहले ही की तरह धीरे-धीरे सुनसान और अनजान स्थान पर उड़ती रही, पहाड़ियों के ऊपर, जिन पर बिखरे-बिखरे गोल पत्थर थे, जो विशालकाय मैपलों के बीच की जगह पर पड़े थे. मार्गारीटा उड़ते-उड़ते सोच रही थी कि वह शायद मॉस्को से बहुत दूर आ गई है. अब ब्रश मैपलों के शिखरों पर नहीं बल्कि उनके तनों के बीच से होकर उड़ रहा था जो चाँद की रोशनी के कारण एक ओर से रुपहले प्रतीत हो रहे थे. उड़नपरी की परछाईं ज़मीन पर सामने की ओर पड़ रही थी अब चाँद मार्गारीटा की पीठ को आलोकित कर रहा था.
मार्गारीटा ने महसूस किया कि कहीं निकट ही पानी है और उसे अन्दाज़ हो गया कि उसका गन्तव्य निकट ही है. मैपल दूर होते गए और मार्गारीटा हौले-हौले एक सफ़ेद ढलान की ओर हवा में तैर गई. इस ढलान के पीछे, नीचे, छाया में थी नदी. सीधी चट्टान के नीचे झाड़ियों पर कोहरा लटक रहा था मगर नदी का दूसरा किनारा समतल, नीचे था. वहाँ वृक्षों के इकलौते झुरमुट के नीचे अलाव में आग जल रही थी और कुछ चलती-फिरती आकृतियाँ दिखाई दे रही थीं. मार्गारीटा को यूँ लगा, जैसे वहाँ से कोई सुरीला, खुशनुमा संगीत आ रहा है. इसके आगे, जहाँ तक नज़र जाती थी, चाँदी जैसे मैदान पर किसी बस्ती या रिहायश का नामो-निशान नहीं था.
 मार्गारीटा ढलान से नीचे कूद गई और जल्दी से पानी के पास उतरी. इस हवाई सफर के बाद पानी ने उसका स्वागत किया. ब्रश को दूर फेंककर उसने नदी में सिर के बल छलाँग लगा दी. उसका हल्का-फुल्का बदन तीर की तरह पानी में घुस गया और ऊपर उछला पानी लगभग चाँद तक पहुँच गया. पानी गरम था जैसा कि स्नानगृह में होता है और पानी की सतह पर आकर मार्गारीटा रात के अकेलेपन में नदी में जी भरकर तैरती रही. मार्गारीटा के आसपास कोई नहीं था, मगर कुछ दूरी पर झाड़ियों के पीछे भी किसी के तैरने की आवाज़ आ रही थी.
मार्गारीटा दौड़कर किनारे पर आ गई. उसका बदन तैरने के बाद जल रहा था. वह बिल्कुल भी थकान का अनुभव नहीं कर रही थी और खुशी से गीली घास में नाच रही थी. अचानक उसने नाचना बन्द कर दिया और वह सावधान हो गई. पानी में हाथ-पैर मारने की आवाज़ नज़दीक आ रही थी. फिर विलो की झाड़ियों के पीछे से पूरी तरह नग्न एक मोटा बाहर निकला. उसके सिर पर पीछे को झुकी हुई काली रेशमी टोपी थी. उसकी एड़ियाँ कीचड़ से सनी थीं. ऐसा लगता था मानो तैरने वाले ने काले जूते पहन रखे हों. जिस तरह वह हाँफ रहा था और हिचकियाँ ले रहा था उससे साफ़ ज़ाहिर था कि उसने बहुत पी रखी थी. बाद में यह बात और भी स्पष्ट हो गई, क्योंकि नदी के पानी से कोन्याक की गन्ध आने लगी थी.
मार्गारीटा को देखकर मोटा उसे गौर से निहारने लगा, और फिर तुरंत खुशी से चिल्ला पड़ा, यह क्या है? क्या मैं उसे ही देख रहा हूँ? क्लोदीना, यह तुम्हीं तो हो, गर्वीली विधवा? तुम भी यहाँ? अब वह हाथ मिलाने के लिए आगे सरका.
मार्गारीटा पीछे हट गई और शालीनता से बोली, भाड़ में जाओ! यहाँ कोई क्लोदीना-वोदीना नहीं है! तुम देखो कि किससे बात कर रहे हो, और एक पल सोच कर उसने एक लम्बी, न छापी जा सकने वाली, भद्दी गाली दे दी. इस सबने उस छिछोरे मोटे पर गहरा असर किया.
 ओय! वह हल्के से चहका और काँप उठा, विशाल हृदया दैदीप्यमान महारानी मार्गो! मुझे माफ कीजिए! मैं गलती कर रहा था. मगर सारा दोष कोन्याक का है, भाड़ में जाए! मोटा घुटने के बल बैठ गया और टोपी उतारकर अभिवादन करके बड़बड़ाने लगा. रूसी वाक्यों में फ्रांसीसी मिलाकर अपने दोस्त हेस्सार की पैरिस में हुई खून-ख़राबे वाली शादी के बारे में बताने लगा, उसने कोन्याक के बारे में और अपनी भयंकर गलती के बारे में भी बताया, जिसके कारण वह शर्मिन्दा था.
 तुम पहले पैंट पहन लेते, सूअर के बच्चे, मार्गारीटा ने नरम पड़ते हुए कहा.
मोटे ने हँसकर दाँत दिखा दिए, यह देखकर कि मार्गारीटा गुस्सा नहीं हो रही, और बड़े जोश में बताने लगा कि इस समय उसके पास पैंट नहीं है, क्योंकि भुलक्कड़पन से वह उसे एनिसेई नदी के तट पर छोड़ आया है, जहाँ वह इससे पहले तैर रहा था; मगर अब वह वहाँ उड़कर जाएगा, क्योंकि वह नज़दीक ही है, और पैंट पहन लेगा. फिर आज्ञा का पालन करते हुए वह पीछे-पीछे हटने लगा और तब तक हटता रहा, जब तक पानी में न गिर पड़ा. मगर गिरते-गिरते भी उसके छोटे-छोटे कल्लों से सजे चेहरे पर उल्लास और विश्वसनीयता की मुस्कान थी.
मार्गारीटा ने एक पैनी सीटी बजाई और उड़कर आते हुए ब्रश पर सवार होकर नदी के दूसरे किनारे की ओर उड़ चली. पहाड़ की परछाईं यहाँ नहीं पहुँच रही थी. चाँद की रोशनी में पूरा किनारा चमक रहा था.
जैसे ही मार्गारीटा ने गीली घास पर पैर रखा, विलो के वृक्षों के नीचे का संगीत तेज़ हो गया और अलाव में से फूटकर चिनगारियाँ निकलने लगीं. सरकण्डे की शाखों की फूली-फूली बालियों के नीचे, जो रोशनी में साफ दिखाई दे रही थीं, दो कतारों में मोटे-मोटे चेहरे वाले मेंढक बैठे थे और सीटियाँ बजाते हुए लकड़ी की नली से फूँक-फूँककर परेड का संगीत बजा रहे थे. विलो के वृक्षों की टहनियों पर इन संगीतकारों के नोट्स लटके थे और मेंढकों के सिरों पर अलाव की आग की रोशनी नाच रही थी.
यह संगीत मार्गारीटा के सम्मान में था. उसका भव्य स्वागत किया गया था. पारदर्शी जलपरियों ने अपना गाना बन्द करके पानी के पौधे हिला-हिलाकर मार्गारीटा का स्वागत किया. उस सुनसान हरे किनारे पर उनका अभिवादन गूँज उठा, जो दूर-दूर तक सुनाई दे रहा था. निर्वस्त्र चुड़ैलें सरकण्डे के पेड़ों के पीछे से कूद-कूदकर एक कतार में खड़ी हो गईं और शाही ढंग से झुक-झुककर अभिवादन करने लगीं. कोई एक बकरी जैसी टाँग वाला उड़कर उसके हाथ से लिपट गया. उसने घास पर रेशमी गलीचा बिछा दिया, पूछने लगा कि महारानी ने नदी में भली प्रकार स्नान तो कर लिया न, और उसे थोड़ा सुस्ताने की विनती करने लगा.
मार्गारीटा ने वैसा ही किया. बकरी जैसी टाँग वाले ने शैम्पेन का जाम उसकी ओर बढ़ा दिया, जिसे पीते ही उसका दिल फौरन गर्म हो गया. यह पूछने पर कि नताशा कहाँ है, जवाब मिला कि नताशा पहले ही नहा चुकी और अपने सूअर के साथ मॉस्को गई है, यह बताने के लिए कि मार्गारीटा शीघ्र ही पहुँचने वाली है. वह उसके सिंगार में मदद करेगी.
मार्गारीटा के सरकण्डे के पेड़ों के नीचे इस अल्प विश्राम के दौरान एक घटना घटी. हवा में एक सीटी तैर गई और एक काला बदन हाथ-पैर झटकते हुए पानी में गिर पड़ा. कुछ ही क्षणों बाद मार्गारीटा के सामने वही कल्लों वाला मोटा था, जो किनारे पर इतने भद्दे ढंग से उसके सामने प्रकट हुआ था. ज़ाहिर था कि वह एनिसेई तक जाकर लौट आया था, क्योंकि वह अब फ्रॉक पहनकर पूरी तरह तैयार था, मगर सिर से पैर तक गीला था. कोन्याक ने ही दुबारा उसे दुबारा धोखा दिया था. बाहर निकलते-निकलते वह फिर पानी में गिर पड़ा मगर इस दर्दभरी घटना के दौरान भी उसकी मुस्कान गायब नहीं हुई. उसे मुस्कराती मार्गारीटा के पास आने दिया गया.
अब सब खड़े हो गए. जलपरियों ने अपना नृत्य समेट लिया और वे चाँद की रोशनी में विलीन हो गईं. बकरी की टाँग वाले ने पूछ लिया मार्गारीटा से कि वह किस पर बैठकर नदी पर आई थी; और यह जानकर कि वह ब्रश पर चढ़कर आई थी, वह बोला, ओह, क्यों? यह आरामदेह नहीं है! उसने एक पल में किन्हीं दो टुकड़ों को जोड़कर कोई रहस्यमय टेलिफोन बनाया और यह माँग की, कि फौरन कार भेजी जाए. यह शीघ्र ही हो गया. किनारे पर शानदार खुली कार आ गई. सिर्फ ड्राइवर की जगह पर साधारण ड्राइवर नहीं, बल्कि काला, लम्बी नाक वाला, रेक्ज़िन की हैट और दस्ताने पहने एक कौआ था. किनारा सुनसान हो गया. चाँद की रोशनी में दूर उड़ती हुई चुडैलें पिघल गईं. अलाव बुझ गया. कोयलों को भूरी राख ने ढँक लिया.
कल्लों वाले और बकरी जैसी टाँग वाले ने मार्गारीटा को कार में बिठाया और वह पिछली चौड़ी सीट पर पसर गई. कार चीखी, उछली और चाँद तक ऊपर उठ गई, किनारा गायब हो गया, नदी खो गई. मार्गारीटा मॉस्को की ओर आने लगी.
********

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.