मास्टर और मार्गारीटा – 21.2
हाँ, कहते हैं कि आज भी आलोचक लातून्स्की उस भयानक शाम को याद करके काँप उठता है, और आज भी बेर्लिओज़ का नाम बड़े आदर से लेता है. हमें बिल्कुल पता नहीं कि इस शाम को क्या-क्या भयानक और काले कारनामे हो जाते – जब रसोईघर से वापस आई तो मार्गारीटा के हाथ में एक भारी हथौड़ा था.
निर्वस्त्र और अदृश्य उड़नपरी अपने आपको संयत किए हुए थी; उसके हाथ बेसब्री से कसमसा रहे थे. ध्यान से निशाना बाँधकर मार्गारीटा ने पियानो की पट्टियों को तोड़ डाला और पूरे फ्लैट में पहली यातना भरी आवाज़ गूँज उठी. बेजान, निर्दोष, लकड़ी के बक्से में जकड़ा पियानो कराहता रहा. उसकी पट्टियाँ बिखरने लगीं, चारों ओर उड़ने लगीं. बाजा गूँजा, कराहा, भर्राया, बजा. हथौड़े की चोट से गोली चलने जैसी आवाज़ के साथ ढक्कन भी उड़ गया. गहरी-गहरी साँसें लेते हुए मार्गारीटा ने सभी तार खींच लिए और हथौड़े से उन्हें कुचल डाला. आख़िरकार थककर वह कुर्सी पर लुढ़क गई, ताकि थोड़ा दम ले सके.
बाथरूम में पानी पूरे ज़ोर से बह रहा था और रसोईघर में भी. ‘शायद पानी फर्श पर आ गया है,’ मार्गारीटा ने सोचा और आगे बोली – “बैठने में कोई तुक नहीं है.”
रसोईघर से क़ॉरीडोर में पानी की धारा आने लगी थी. नंगे पैरों से पानी में छप-छप करते हुए मार्गारीटा रसोईघर से बाल्टियाँ भर-भर के आलोचक के अध्ययन-कक्ष में लाई और उन्हें लिखने की मेज़ की दराज़ों में उँडेलने लगी. फिर हथौड़े से इस कमरे की अलमारी के दरवाज़े तोड़ने के बाद वह शयन-कक्ष की ओर लपकी. आईना जड़ी अलमारी तोड़ने के बाद उसने उसमें से आलोचक का सूट खींचकर उसे बाथरूम के पानी में डुबो दिया. शयन-कक्ष के नर्म, ख़ूबसूरत, गुदगुदे डबल-बेड पर पूरी स्याही की दवात उलट दी, जिसे वह अध्ययन-कक्ष से उठा लाई थी. इस विनाश से उसे बड़ा आनन्द मिल रहा था, मगर फिर भी उसे लग रहा था, कि यह तो कुछ भी नहीं है. इसलिए वह जो दिखा वह तोड़ती रही. पियानो वाले कमरे के सारे फ्लॉवर पॉट्स तोड़ डाले. इसके बाद वह फ़ौरन रसोईघर से चाकू लेकर शयन-कक्ष में घुसी और सभी चादरें फाड़ डालीं, शीशों में जड़े फोटो फोड़ दिए. उसे थकान का अनुभव नहीं हो रहा था, सिर्फ उसके बदन पर पसीने की धाराएँ बह रही थीं.
इस समय लातून्स्की के ठीक नीचे वाले फ्लैट नं. 82 में नाटककार क्वाण्ट की नौकरानी रसोईघर में चाय पी रही थी; यह न समझ पाते हुए कि ऊपर से घड़घड़ाहट की, दौड़धूप की, ठकठक की आवाज़ें क्यों आ रही हैं. उसने जब छत की तरफ सिर उठाया तो देखा कि उसकी आँखों के सामने छत का रंग सफ़ेद से बदलकर मटमैला नीला हो गया है. यह धब्बा धीरे-धीरे बढ़ने लगा और उसमें बूँदें दिखाई देने लगीं. इस बात पर अचरज करती नौकरानी दो मिनट बैठी रही , तब तक ऊपर छत से सचमुच की बारिश फर्श पर गिरने लगी. अब वह उछल कर उठी और उसने उस धार के नीचे तसला रख दिया जिससे कुछ भी फायदा नहीं हुआ, क्योंकि अब बारिश गैस के चूल्हे और बर्तनों की मेज़ पर भी पड़ने लगी थी. तब क्वाण्ट की नौकरानी चीखकर फ्लैट से बाहर आई और सीढ़ियों पर दौड़ने लगी...और लातून्स्की के फ्लैट में घण्टियाँ बजने लगीं.
“बस, घण्टियाँ बज रही हैं, अब चला जाए,” मार्गारीटा ने कहा. वह ब्रश पर बैठी और सुनती रही बाहर से आने वाली आवाज़ को, जो चीख रही थी, “खोलो, खोलो! दूस्या, खोलो! तुम्हारे यहाँ क्या पानी बह रहा है? हमारे घर में बाढ़ आ गई है!”
मार्गारीटा एक मीटर ऊपर उठी और उसने फानूस पर चोट की. दो बल्ब फूट गए, चारों ओर काँच बिखर गया. अब बाहर से आने वाली चीखें बन्द हो गई थीं. सीढ़ियों पर धमधम की आवाज़ सुनाई दी. मार्गारीटा खिड़की के बाहर तैर गई. खिड़की से बाहर आकर उसने हथौड़े से खिड़की के काँच पर हल्के से चोट की. वह चूर-चूर हो गया. संगमरमरी दीवार पर काँच के परखचे नीचे फिसल पड़े. मार्गारीटा अगली खिड़की के पास आई. नीचे फुटपाथ पर लोग भाग रहे थे. नीचे खड़ी दो कारों में से एक का हॉर्न बजा और वह चल पड़ी. लातून्स्की की खिड़कियों का काम तमाम करने के बाद मार्गारीटा पड़ोस के फ्लैट की ओर तैर गई. अब हथौड़े की आवाज़ बार-बार आने लगी, गली आवाज़ों और खनखनाहट से गूँज उठी. पहले प्रवेश-द्वार से दरबान दौड़कर बाहर आया, उसने ऊपर देखा, थोड़ा हिचका: ज़ाहिर है, समझ नहीं पाया कि उसे क्या करना चाहिए. उसने मुँह में सीटी डाली और बेतहाशा बजाने लगा. इस सीटी की आवाज़ से तैश में आकर मार्गारीटा ने आठवीं मंज़िल की आख़िरी खिड़की तोड़ डाली. अब वह सातवीं मंज़िल पर आई और वहाँ भी शीशे तोड़ने लगी.
काँच के दरवाज़ों के पीछे बड़ी देर तक कोई काम न करने से उकताया हुआ दरबान पूरी ताकत से सीटी बजाता रहा, मानो वह मार्गारीटा की हरकतों के पीछे-पीछे ही था. उस घटना रहित समय में जब वह एक खिड़की से दूसरी खिड़की तक पहुँचती, वह साँस ले लेता और मार्गारीटा की हर चोट के साथ गाल फुलाकर सीटी फूँकता रहा और रात की हवा को मानो आसमान तक भेजता रहा.
उसकी कोशिशें क्रोधित मार्गारीटा की मदद से बड़ी रंग लाईं. उस बिल्डिंग में कोहराम मच गया.वे काँच जो सही-सलामत थे, निमिषमात्र में चूर-चूर हो रहे थे. उनमें लोगों के सिर दिखते जो तुरंत गायब हो जाते. खुली खिड़कियाँ बन्द हो जातीं. सामने की बिल्डिंगों में, खिड़कियों में रोशनी की पार्श्वभूमि पर काले साए दिखाई देते, जो यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि बेवजह ही ‘ड्रामलिट’ की नई इमारत की खिड़कियों के शीशे क्यों टूट रहे हैं.
गली में लोग ‘ड्रामलिट’ की ओर भाग रहे थे, और उसके अन्दर सीढ़ियों पर बेवजह दौड़ते लोगों की भीड़ थी. क्वाण्ट की नौकरानी सीढ़ियों पर दौड़ते लोगों को चीख-चीखकर बता रही थी कि उनके फ्लैट में ऊपर से पानी की धार लग गई थी, उसका साथ शीघ्र ही खुस्तोव की नौकरानी ने दिया, जो क्वाण्ट के ठीक नीचे, 80 नं. के फ्लैट में रहता था. खुस्तोव के फ्लैट में छत से पानी आया, रसोईघर में और शौचालय में. आख़िरकार क्वाण्ट के रसोईघर में छत का एक बड़ा हिस्सा गिर पड़ा. जिससे सारे गन्दे चीनी के बर्तन चूर-चूर हो गए, और उसके बाद तो मूसलाधार पानी बरसने लगा, लटकते हुए प्लास्टर से पानी यूँ गिर रहा था, मानो बाल्टियाँ भर-भर कर उँडेला जा रहा हो. तब पहले प्रवेश-द्वार के पास चीख पुकार शुरू हो गई. चौथी मंज़िल पर मार्गारीटा ने अंतिम से पहले वाली खिड़की में झाँका और देखा कि वहाँ एक आदमी डर के मारे गैस-मास्क पहन रहा है. उसकी खिड़की में हथौड़ा मारकर मार्गारीटा ने उसे डरा दिया, और वह कमरे से बाहर हो गया.
यह भयानक हमला अप्रत्याशित रूप से एकदम बन्द हो गया. तीसरी मंज़िल तक उतरकर मार्गारीटा ने आखिरी खिड़की में झाँककर देखा, जो हल्के काले परदे से ढँकी थी. कमरे में मरियल-सा लैम्प जल रहा था. छोटी-सी खाट पर जाली वाली किनारों के बीच एक चार साल का बच्चा बैठा था और डर के मारे सुन रहा था. कमरे में कोई भी बड़ा आदमी नहीं था. ज़ाहिर था कि सभी फ्लैट से बाहर भाग गए थे.
“शीशे टूट रहे हैं,” बच्चा बोला और उसने पुकारा, “माँ!”
किसी ने भी जवाब नहीं दिया, तब वह बोला, “माँ, मुझे डर लग रहा है.”
मार्गारीटा ने परदा हटाया और खिड़की से उड़कर अन्दर आई.
“मुझे डर लग रहा है!” बच्चा काँपते हुए फिर बोला.
“मत डरो, डरो मत, नन्हे,” मार्गारीटा ने अपनी हवा के कारण भर्राई गुनहगार आवाज़ को कोमल बनाते हुए कहा, “ये तो बदमाश बच्चे शीशे तोड़ रहे थे.”
“गुलेल से?” बच्चे का काँपना बन्द हो गया था.
“हाँ, गुलेल से, गुलेल से,” मार्गारीटा ने ज़ोर देकर कहा, “अब तुम सो जाओ!”
“यह सींन्तिक होगा,” बच्चा बोला, “उसके पास गुलेल है.”
“हाँ, वही है, वही तो है!”
बच्चे ने अचरज से किसी एक कोने की ओर देखा और पूछा, “और तुम कहाँ हो आण्टी?”
“मैं नहीं हूँ,” मार्गारीटा ने जवाब दिया, “मैं तुम्हारे सपने में आया करूँगी.”
“मैंने यही सोचा था,” बच्चा बोला.
“तुम लेट जाओ,” मार्गारीटा ने हुकुम दिया, “गाल के नीचे हाथ रख लो, तुम मुझे सपने में देख सकोगे.”
“आओ, आओ, सपने में आओ,” बच्चा मान गया और फौरन लेट गया. अपना हाथ उसने गाल के नीचे रख लिया.
“मैं तुम्हें कहानी सुनाऊँगी,” मार्गारीटा बोली और उसने अपना गर्म हाथ बच्चे के छोटे-छोटे बालों वाले सिर पर रख दिया, “धरती पर एक आण्टी रहती थी. उसके कोई बच्चा नहीं था, और जीवन में कोई खुशी भी नहीं थी. पहले तो वह बहुत रोई, मगर फिर दुष्ट हो गई...” मार्गारीटा चुप हो गई. उसने हाथ हटा लिया. बच्चा सो चुका था.
मार्गारीटा ने चुपचाप हथौड़ा खिड़की की सिल पर रख दिया और खिड़की से बाहर उड़ गई. बिल्डिंग के पास भगदड़ मची थी. काँच के परखचों से अटे पड़े फुटपाथ पर लोग चिल्लाते हुए भाग रहे थे. उनके बीच में कुछ पुलिस के सिपाही भी दिखाई दे रहे थे. अचानक घण्टी बजने लगी, और अर्बात की ओर से लाल रंग की, सीढ़ी वाली दमकल गली में आ धमकी...
आगे की बात में मार्गारीटा को कोई दिलचस्पी नहीं थी. उसने तारों के जाल से बचने के लिए ब्रश को कसकर पकड़ लिया और एक ही क्षण में उस दुर्दैवी बिल्डिंग से ऊपर उड़ चली. उसके नीचे की गली टेढ़ी हो गई और नीचे छूट गई. उसके स्थान पर मार्गारीटा के पैरों तले आईं कुछ छतें, उन्हें अलग करते, एक दूसरे को काटते हुए चमकते रास्ते. यह सब देखते-देखते एक ओर रह गया, और अग्निशलाकाएँ एक दूसरे से मिलती और दूर होती रहीं
क्रमशः
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