मास्टर और मार्गारीटा – 22.4
“मेरे अज़ीज़ कहते हैं कि यह जोड़ों की बीमारी है,” वोलान्द ने मार्गारीटा से आँख हटाए बिना कहा, “मगर मुझे पूरा शक है कि मेरे घुटने का दर्द उस सुन्दर मायाविनी की याद है, जिससे मैं सन् 1571 में ब्रोकेन्स्की पहाड़ों पर शैतानी विभाग में प्यार कर बैठा था.”
“ओह, क्या ऐसा संभव है?” मार्गारीटा ने कहा.
“बकवास! तीन सौ सालों बाद यह अपने आप चला जाएगा. मुझे कई दवाइयाँ सुझाई गईं, मगर मैं प्राचीन काल की तरह दादी माँ के नुस्खे ही इस्तेमाल करता हूँ. मेरी दादी कुछ बड़ी करामाती घास-फूस मुझे विरासत में दे गई है. ख़ैर, कहिए, आपको तो कोई तकलीफ नहीं है? शायद कोई दुःख हो, जो आपके दिल को खाए जा रहा हो? कोई निराशा?”
“नहीं, महोदय, ऐसा कुछ भी नहीं है.” बुद्धिमति मार्गारीटा ने जवाब दिया, “और अब, जब मैं आपके पास हूँ, मैं बहुत अच्छा महसूस कर रही हूँ.”
“खून...बड़ी ऊँची चीज़...” न जाने किससे ख़ुश होकर वोलान्द बातें कर रहा था. वह आगे बोला, “मैं देख रहा हूँ कि आपको मेरा गोल काफ़ी दिलचस्प लग रहा है.”
“ओह, हाँ, मैंने ऐसी चीज़ पहले कभी नहीं देखी.”
“अच्छी चीज़ है. मैं, सच पूछिए तो, रेडियो की ख़बरें पसन्द नहीं करता. ये ख़बरें अक्सर लड़कियाँ ही पढ़ती हैं, जो जगहों के नाम साफ़-साफ़ नहीं पढ़तीं. इसके अलावा, उनमें से हर तीसरी लड़की तुतलाती है, जैसे कि जानबूझकर ऐसी लड़कियों को चुना जाता है. मेरा गोल कहीं ज़्यादा अच्छा है, ख़ासकर इसलिए कि मुझे सब घटनाएँ सही-सही जानना ज़रूरी है. मिसाल के तौर पर, धरती का यह हिस्सा, जिसका किनारा समुद्र धो रहा है? देखिए, वह आग में नहा रहा है. वहाँ लड़ाई शुरू हो गई है. मगर थोड़ा नज़दीक से देखें तो और विवरण भी देख सकेंगी.”
मार्गारीटा गोल की ओर झुकी और उसने देखा कि ज़मीन का वह टुकड़ा चौड़ा होता गया, उस पर अनेक रंग दिखने लगे और वह उभारदार, अद्भुत नक्शे में बदल गया. इसके बाद उसने नदी की पतली धार भी देखी और उसी के पास देखी एक बस्ती. वह घर जो छोटे-से दाने की तरह था, बढ़ता गया और माचिस की डिब्बी जितना बड़ा हो गया. अचानक उस घर की छत बिना आवाज़ किए काले धुएँ के बादल के साथ ऊपर उड़ गई और उसकी दीवारें टूट गईं, जिससे इस दुमंज़िली इमारत से कुछ भी बाकी नहीं बचा, सिवाय उस छोटे-से ढेर के जिसमें से काला धुआँ निकल रहा था. कुछ और निकट से देखने पर मार्गारीटा ने एक छोटी-सी महिला की आकृति देखी, जो ज़मीन पर लेटी थी, उसके निकट खून के पोखर में एक नन्हा-सा बच्चा हाथ फैलाए पड़ा था.
“बस इतना ही,” मुस्कुराकर वोलान्द ने कहा, “वह गुनाह नहीं कर सका. अबादोना का काम त्रुटि रहित होता है.”
“मैं उस तरफ़ रहना नहीं चाहूँगी, जिसके विरुद्ध यह अबादोना है,” मार्गारीटा बोली, “वह किसके पक्ष में है?”
“जितना ज़्यादा मैं आपसे बातें करता हूँ,” बड़े प्यार से वोलान्द ने कहा, “उतना ही ज़्यादा मुझे विश्वास होता जाता है कि आप बहुत बुद्धिमान हैं. मैं आपका समाधान करूँगा. वह बिरले ही निष्पक्ष प्रतीत होता है और दोनों पीड़ित पक्षों के साथ उसकी सहानुभूति है. इस कारण दोनों पक्षों के लिए नतीजे एक-से ही रहते हैं. अबादोना!...” वोलान्द ने हौले से कहा, और दीवार से काला चश्मा पहने एक दुबले-पतले आदमी की आकृति निकली. इस चश्मे ने मार्गारीटा पर इतना गहरा असर किया कि उसने हल्की चीख मारकर वोलान्द के पैर में अपना चेहरा छिपा लिया.
“आह, बस कीजिए,” वोलान्द चिल्लाया, “आजकल के लोग कितने डरपोक हैं.” उसने हल्के से मार्गारीटा की पीठ थपथपाई, जिससे उसके शरीर में एक झनझनाहट हुई, “आप तो देख रही हैं कि वह चश्मा पहने है. इसके अलावा, ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ, और न होगा, कि अबादोना समय से पहले किसी के सामने प्रकट हो जाए. और, फिर, मैं तो यहाँ हूँ ही. आप मेरी मेहमान हैं! मैं तो आपको सिर्फ दिखाना चाहता था.”
अबादोना ख़ामोश खड़ा रहा.
“क्या यह सम्भव है कि वह एक सेकण्ड के लिए चश्मा उतार दे?” मार्गारीटा ने वोलान्द से चिपकते हुए पूछा. मगर अब उत्सुकतावश वह काँप रही थी.
“यह सम्भव नहीं है,” वोलान्द ने गम्भीरता से कहा और उसने अबादोना को हाथ से इशारा किया. वह गायब हो गया. “तुम क्या कहना चाहते हो, अज़ाज़ेलो?”
“महोदय,” अज़ाज़ेलो ने जवाब दिया, “मुझे कहने की इजाज़त दीजिए, - यहाँ दो बाहरी व्यक्ति आए हैं: एक सुन्दरी, जो खिलखिलाकर प्रार्थना कर रही है कि उसे उसकी मालकिन के पास रहने दिया जाए; इसके अलावा उसके साथ है, माफी चाहता हूँ, उसका सूअर!”
“ये सुन्दरियाँ भी बड़ी अजीब हरकतें करती हैं,” वोलान्द ने फ़िकरा कसा.
“यह नताशा है, नताशा,” मार्गारीटा चहकी.
“ठीक है, उसे अपनी मालकिन के साथ रहने दो. और सूअर को रसोइयों के पास ले जाओ!”
“काट देंगे?” मार्गारीटा ने घबराकर पूछा. “दया कीजिए, महोदय, वह निकोलाय इवानोविच है, जो हमारी निचली मंज़िल का पड़ोसी है. यहाँ कुछ भूल हो गई, उसने उस पर क्रीम मल दी थी...”
“शांत रहिए,” वोलान्द ने कहा, “कौन काट रहा है उसे? उसे वहीं, रसोइयों के पास बैठे रहने दो, बस और कुछ नहीं! आख़िर आप भी समझ रही होंगी कि मैं उसे नृत्य उत्सव में तो नहीं बुला सकता!”
“ठीक है...” अज़ाज़ेलो बोला और उसने आगे कहा, “आधी रात हो चली है, मालिक.”
“ओह, अच्छी बात है,” वोलान्द मार्गारीटा की ओर मुख़ातिब हुआ, “तो, मैं आपसे विनती करता हूँ! पहले ही आपका धन्यवाद करता हूँ! झिझकिए मत और किसी भी चीज़ से मत डरिए. पानी के सिवा कुछ मत पीजिए, वर्ना आप लड़खड़ाने लगेंगी और आपको मुश्किल होगी. तो, चलें!”
मार्गारीटा कालीन से उठी और तब दरवाज़े में प्रकट हुआ कोरोव्येव.
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