मास्टर और मार्गारीटा – 23.1
शैतान का शानदार नृत्योत्सव
आधी रात होने को थी, अतः शीघ्रता करना ज़रूरी था. मार्गारीटा ने कुछ धुँधला-धुँधला महसूस किया. उसे मोमबत्तियों और हीरे-जवाहिरातों का टब याद रहे. जब मार्गारीटा टब में उतरी तो हैला और उसकी मदद करती नताशा ने किसी गर्म, गाढ़े और लाल द्रव से उसे नहलाया. मार्गारीटा ने नमकीन स्वाद होठों पर महसूस किया और वह समझ गई कि उसे खून से नहलाया जा रहा है. इस रक्तिम स्नान के बाद जो द्रव उस पर डाला गया था, वह था – गाढ़ा, पारदर्शी, गुलाबी. इस गुलाब के तेल से मार्गारीटा की सिर घूमने लगा. फिर उसे एक क्रिस्टल के कोच पर लिटाकर उसका बदन किन्हीं बड़ी-बड़ी, हरी-हरी पत्तियों से तब तक घिसा गया, जब तक वह चमक न उठा. अब बिल्ला भी घुस आया और मदद करने लगा. वह मार्गारीटा के पैरों के निकट बैठ गया और उसके पंजे इस तरह मलने लगा जैसे सड़क पर बैठकर जूते साफ कर रहा हो. मार्गारीटा को याद नहीं कि उसके पैरों को गुलाब की पंखुड़ियों के जूते किसने पहनाएँ और इन जूतों में खुद-ब-खुद सुनहरी लेस कहाँ से लग गई. किसी शक्ति ने मार्गारीटा को खींचा और आईने के सामने खड़ा कर दिया. उसके बालों में हीरे जड़ित शाही मुकुट चमक उठा. न जाने कहाँ से कोरोव्येव भी आ गया और उसने मार्गारीटा के सीने पर एक अण्डाकार फ्रेम में जड़ी, भारी चेन से लटकी, काले घुँघराले बालों वाले कुत्ते की आकृति पहना दी. इस आभूषण ने महारानी पर काफी बोझ डाला. चेन उसकी गर्दन में गड़ने लगी और कुत्ते की आकृति ने उसे आगे झुकने पर मजबूर कर दिया. मगर इस चेन के कारण जो असुविधा उसे हो रही थी, उसका पुरस्कार भी मार्गारीटा को शीघ्र ही मिल गया. यह पुरस्कार था – वह सम्मान जो अब उसे कोरोव्येव और बेगेमोत दे रहे थे.
“कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं!” कोरोव्येव स्नानगृह के दरवाज़े के पास बड़बड़ाया, “कुछ नहीं किया जा सकता, यह ज़रूरी है, बहुत ज़रूरी है. महारानी, आपको अंतिम सलाह देने की इजाज़त दें. हमारे मेहमानों में अनेक प्रकार के लोग होंगे, और, एक-दूसरे से बिल्कुल अलग, मगर किसी के भी बारे में महारानी मार्गो, कोई पूर्वाग्रह न रखें! यदि आपको कोई पसन्द न आए...मैं समझ सकता हूँ, तो भी, ज़ाहिर है, आप इसे अपने चेहरे पर प्रकट नहीं होने देंगी...नहीं, नहीं, इस बारे में सोचना भी मना है! वह फौरन, उसी क्षण, ताड़ जाएगा. उसे प्यार करना होगा, प्यार करना होगा, महारानी. नृत्योत्सव की मेज़बान को इसका सौ गुना पुरस्कार मिलेगा! और हाँ – किसी को भी छोड़िए मत. कम से कम एक मुस्कान, अगर बात करने का समय न हो तो, कम से कम सिर का एक हल्का-सा इशारा. जो भी सम्भव है, मगर किसी की भी उपेक्षा न करें. वर्ना वह संतप्त हो जाएँगे...”
अब मार्गारीटा स्नानगृह से निकलकर पूरे अँधेरे में कोरोव्येव और बेगेमोत के साथ आई.
“मैं, मैं,” बिल्ला फुसफुसाया, “मैं इशारा करूँगा!”
“करो!” अँधेरे में कोरोव्येव ने जवाब दिया.
“नृत्योत्सव!” बिल्ले की तीखी चीख सुनाई दी, और मार्गारीटा ने फौरन चीखकर कुछ क्षणों के लिए अपनी आँखें बन्द कर लीं. नृत्योत्सव उस पर मानो प्रकाश-पुंज लेकर बरसा, और साथ में लाया शोर और खुशबू. कोरोव्येव का हाथ पकड़कर चलती हुई मार्गारीटा ने अपने आपको एक उष्णकटिबन्धीय जंगल में पाया. लाल गर्दन वाले, हरी पूँछ वाले तोते वृक्षलताओं से चिपके थे, उन पर कूद रहे थे और चीख-चीखकर कह रहे थे: “मैं ख़ुश हूँ!” मगर जंगल जल्दी ही समाप्त हो गया. उसकी नम दमघोंटू हवा का स्थान ले लिया शीतल नृत्योत्सव के हॉल ने, जिसमें पीले, चमकीले स्तम्भों की कतार थी. यह हॉल भी, जंगल की ही भाँति खाली था, बस सिर्फ स्तम्भों के पास बुत बने, निर्वस्त्र नीग्रो, सिर पर चाँदी की पट्टियाँ बाँधे खड़े थे. जैसे ही वहाँ मार्गारीटा ने अपनी मण्डली के साथ प्रवेश किया जिसमें न जाने कहाँ से अज़ाज़ेलो भी आकर मिल गया था, उनके चेहरे उत्तेजना से मटमैले भूरे हो गए. अब कोरोव्येव ने मार्गारीटा का हाथ छोड़ दिया और बुदबुदाया: “सीधे त्युल्पान की ओर.”
सफ़ेद त्युल्पानों की एक नीची दीवार मार्गारीटा के सामने प्रकट हो गई, उसके पीछे थीं छोटे-छोटे शेड्स में अनेक बत्तियाँ और इनके पीछे से फ्रॉक पहने मेहमानों के सफ़ेद सीने और काले कन्धे. तब मार्गारीटा समझ गई कि नृत्योत्सव में आवाज़ें कहाँ से आ रही थीं. उस पर बरसात हुई तुरही के स्वर की, और उससे हटकर अलग से प्रकट हुआ वायलिन का स्वर उसके बदन पर ऐसे लहराने लगा जैसे धमनियों में दौड़ता हुआ खून. क़रीब डेढ़ सौ लोगों का ऑर्केस्ट्रा ‘पोलोनेझ’ धुन बजा रहा था.
ऑर्केस्ट्रा के सम्मुख खड़ा निर्देशक मार्गारीटा को देखते ही पीला पड़ गया, मुस्कुराया और उसने हाथ के झटके से पूरे ऑर्केस्ट्रा को उठा दिया. एक क्षण को भी संगीत को रोके बगैर ऑर्केस्ट्रा ने खड़े-खड़े मार्गारीटा का स्वर लहरियों से अभिवादन किया. निर्देशक मुड़ा और उसने नीचे झुककर, हाथ फैलाकर अभिवादन किया, और मार्गारीटा ने भी मुस्कुराकर उसकी ओर देखते हुए हाथ हिलाया.
“नहीं, यह काफी नहीं है, काफी नहीं है,” कोरोव्येव फुसफुसाया, “वह पूरी रात सोएगा नहीं. उससे चिल्लाकर कहिए: स्वागत है, वाल्ट्ज़ सम्राट!”
मार्गारीटा ने चिल्लाकर दुहरा दिया और उसे आश्चर्य हुआ कि उसकी आवाज़, जिसमें घंटियों की गूँज थी, पूरे ऑर्केस्ट्रा पर छा गई. निर्देशक प्रसन्नता से थरथरा गया और उसने दाहिना हाथ सीने पर रख लिया, जबकि बाएँ हाथ से वह ऑर्केस्ट्रा का संचालन करता रहा.
“यह भी कम है, काफी नहीं है,” कोरोव्येव फिर फुसफुसाया, “दाईं ओर देखिए, पहली कतार के वायलिन वादकों की तरफ, और इस तरह सिर हिलाइए, कि उनमें से हर वादक यही समझे कि आपने उसे पहचान लिया है. यहाँ केवल विश्वप्रसिद्ध हस्तियाँ ही हैं. पहले इसे, जो पहले बोर्ड पर है – वह व्येतान है. हाँ,...बहुत अच्छे!...अब आगे!”
“यह संचालक कौन है?” उड़ते हुए मार्गारीटा ने पूछ लिया.
“जॉन श्त्राऊस,” बिल्ला चिल्लाया, “और मुझे कटिबन्धीय जंगल में पेड़ पर उल्टा टाँग दीजिए, अगर किसी और नृत्योत्सव में पहले कभी ऐसा ऑर्केस्ट्रा बजा हो! मैंने ही उसे आमंत्रित किया था! और ग़ौर कीजिए, एक भी बीमार नहीं पड़ा, और किसी ने भी इनकार नहीं किया.”
अगले हॉल में स्तम्भों की कतार नहीं था. उसके बदले में थीं, एक तरफ लाल, गुलाबी, दूधिया-सफ़ेद रंगों के गुलाबों की दीवारें और दूसरी ओर थी दुहरी पत्तियों वाले कामेलिया की जापानी दीवार. इन दीवारों के मध्य की जगह पर थे छनछनाहट करते हल्के फ़व्वारे; और शैम्पेन के बुलबुले तीन तालाबों में उड़ रहे थे; जिनमें एक थी – पारदर्शी बैंगनी, दूसरी – माणिक (लाल) और तीसरी – बिलौरी. इनके पास आ-जा रहे थे सिर पर लाल पट्टी कसे नीग्रो जो चाँदी के मग्स से इन तालाबों से शैम्पेन निकाल-निकालकर चपटे प्यालों में भर रहे थे. गुलाब की दीवार में एक खाली जगह थी, जहाँ से लाल, पंछी की पूँछ जैसा फ्रॉक पहने एक आदमी दिखाई दे रहा था. उसके सामने अविरत शोर था – जॉज़ संगीत का. जैसे ही इस संचालक ने मार्गारीटा को देखा, वह उसके सम्मुख इतना झुका, कि उसके हाथ फर्श को छूने लगे. फिर वह सीधा खड़ा हो गया और तेज़ आवाज़ में चीखा, “अल्लीलुइया!”
उसने अपने घुटने पर हाथ मारा – एक! फिर दूसरे पर - दो! सबसे अंतिम संगीतज्ञ की प्लेट ली और उससे स्तम्भ पर चोट की.
वहाँ से हवा में तैरते हुए मार्गारीटा ने देखा कि यह जोशीला जॉज़ निर्देशक, पोलोनेझ की ध्वनि से संघर्ष करते हुए, जो मार्गारीटा की पीठ की ओर से आ रही थी, संगीतज्ञों के सिरों पर अपनी झाँझ मार रहा है और वे हास्यास्पद भय से नीचे बैठते जा रहे हैं.
अंत में वे उस चौक तक आए, जहाँ मार्गारीटा के अन्दाज़ के मुताबिक वह अँधेरे में लैम्प उठाए कोरोव्येव से मिली थी. अब इस चौक में रोशनी के कारण आँखें चकाचौंध हो रही थीं, जो अँगूर के आकार के झुम्बरों से छन-छनकर आ रही थी. मार्गारीटा को वहीं ठहराया गया और उसके दाहिने हाथ के नीचे एक नीचा जम्बुमणि का स्तम्भ प्रकट हो गया.
“यदि बहुत परेशानी हो जाए, तो इस पर हाथ रख सकती हैं,” कोरोव्येव फुसफुसाया.
किसी एक काले आदमी ने मार्गारीटा के पैरों के निकट एक तकिया सरकाया, जिस पर सोने के तारों से घुँघराले बालों वाले कुत्ते की तस्वीर कढ़ी थी. इस पर उसने किन्हीं हाथों की सहायता से घुटना मोड़कर अपना दाहिना पैर रख दिया. मार्गारीटा ने इधर-उधर देखने की कोशिश की. उसके निकट कोरोव्येव और अज़ाज़ेलो उत्सव की मुद्रा में खड़े थे, जिन्हें देखकर मार्गारीटा को अबादोना की धुँधली-सी याद आई. पीठ में ठण्डक दौड़ गई तो मार्गारीटा ने मुड़कर देखा, उसके पीछे संगमरमर की दीवार से शराब का झरना बहकर बर्फ के तालाब में गिर रहा है. बाएँ पैर के निकट उसे कुछ गर्माहट महसूस हुई, यह बेगेमोत था.
क्रमशः
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