मास्टर और मार्गारीटा – 22.2
मार्गारीटा का दिल धक् हो गया. उसने अपना सिर हिला दिया.
“वही, वही तो...” कोरोव्येव बोला, “हम सभी छिपाने के और रहस्यों के दुश्मन हैं. हर साल हमारे मालिक एक बॉल (नृत्योत्सव) का आयोजन करते हैं. इसे बसंत पूर्णिमा का या शतनृप नृत्योत्सव कहते हैं. ऐसी भीड़!” अब कोरोव्येव ने गाल पर हाथ रख लिया, मानो उसका दाँत दर्द कर रहा हो, “ख़ैर, मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको खुद भी विश्वास हो जाएगा. तो, बात यह है कि मालिक कुँआरे हैं जैसा कि आप ख़ुद ही समझ रही हैं, मगर महिला मेज़बान तो होना ही चाहिए,” कोरोव्येव ने हाथ हिलाते हुए कहा, “आप ख़ुद ही जानती हैं कि मालकिन के बिना...”
मार्गारीटा एक-एक शब्द ध्यान से सुन रही थी: उसके दिल को बड़ी ठण्डक मिल रही थी; सुख की कल्पना से उसका सिर घूम रहा था.
“यह प्रथा पड़ गई है,” कोरोव्येव आगे बोला, “कि नृत्योत्सव की मेज़बान का नाम मार्गारीटा ही होना चाहिए, यह तो हुई पहली बात; और दूसरी यह कि वह स्थानीय निवासी होना चाहिए; और जैसा कि आप देख रही हैं, हम हमेशा सफर करते रहते हैं और इस समय मॉस्को में हैं. हमें मॉस्को में एक सौ इक्कीस मार्गारीटा मिलीं, मगर विश्वास कीजिए,” कोरोव्येव ने अपनी जाँघ पर हाथ मारते हुए कहा, “एक भी इस लायक नहीं निकली. अब, आख़िर में, सौभाग्य से...”
कोरोव्येव अर्थपूर्ण ढंग से हँसा, “बिल्कुल संक्षेप में...आप इस ज़िम्मेदारी से इनकार तो नहीं करेंगी?”
“नहीं करूँगी,” मार्गारीटा ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया.
“बेशक!” कोरोव्येव ने कहा, और लैम्प उठाकर बोला, “कृपया मेरे पीछे-पीछे आइए.”
वे स्तम्भों की कतार के बीच से होते हुए एक अन्य हॉल में पहुँचे, जहाँ न जाने क्यों नींबू की खुशबू आ रही थी, जहाँ कुछ फुसफुसाहट-सी हो रही थी और मार्गारीटा के सिर को कुछ छू गया. वह काँप गई.
“घबराइए मत,” बड़ी मिठास से कोरोव्येव ने मार्गारीटा का हाथ पकड़कर सांत्वना दी, “बेगेमोत की नृत्योत्सव की हल्की-फुल्की शरारत है, और कुछ नहीं. मैं आपको सलाह देने की हिम्मत कर रहा हूँ, मार्गारीटा निकोलायेव्ना, कि कभी भी, किसी से भी न डरिए. यह बेवकूफी है. नृत्योत्सव बड़ा शानदार होगा. मैं आपसे छिपाऊँगा नहीं. हम ऐसे लोगों को देखेंगे, जो अपने ज़माने में बड़े शक्तिशाली शासक रह चुके हैं. मगर जब मैं सोचता हूँ कि उस महान शक्ति के सामने, जिसकी सेवा में मैं रहता हूँ, उनकी सामर्थ्य कितनी बौनी है तो हँसी आती है, दुःख भी होता है...और हाँ, आपकी रगों में भी तो शाही खून है!”
“शाही खून क्यों?” मार्गारीटा भय से कोरोव्येव से चिपककर पूछने लगी.
“ओह, महारानी,” कोरोव्येव ने हल्के-फुल्के अन्दाज़ में कहा, “खून से सम्बन्धित सवाल, दुनिया के सबसे जटिल प्रश्न हैं! अगर किन्हीं परदादियों से इस बारे में पूछा जाए, ख़ासकर उनसे जो अपनी नम्रता के लिए प्रसिद्ध थीं, तो काफ़ी आश्चर्यजनक भेद खुल जाएँ, आदरणीय मार्गारीटा निकोलायेव्ना! इस बारे में कहते हुए यदि मैं भली-भाँति फेंटी गई ताश की गड्डी की याद दिलाऊँ तो मैं ज़रा भी गलती नहीं करूँगा. कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिनके लिए शहरों और राज्यों की सीमाएँ बेमानी हैं. मैं इस बात की ओर इशारा करूँगा: एक फ्रांसीसी महारानी से, जो सोलहवीं शताब्दी में हो चुकी है, यदि कोई यह कहे कि उसकी ख़ूबसूरत पड़-पड़-पड़-पड़-पड़पोती को, मैं अनेक वर्षों बाद हाथ पकड़कर मॉस्को के नृत्योत्सव में लाऊँगा तो सोचिए, उसे कितना आश्चर्य होगा. तो हम आ गए!”
यहाँ कोरोव्येव ने अपने हाथ का लैम्प बुझा दिया और वह उसके हाथों से गायब हो गया. मार्गारीटा ने किसी अँधेरे दरवाज़े के नीचे से आती हुए रोशनी का पट्टा देखा. इस दरवाज़े पर कोरोव्येव ने हल्के से दस्तक दी. मार्गारीटा इतनी उत्तेजित हो गई कि उसके दाँत कँपकँपाने लगे और रीढ़ की हड्डी में ठण्डी लहर दौड़ गई. दरवाज़ा खुला. कमरा छोटा ही था, मार्गारीटा ने एक चौड़ा शाहबलूत का पलंग देखा, जिस पर गन्दी और मुड़ी-तुड़ी चादरें और तकिए थे. पलंग के सामने शाहबलूत की ही बनी नक्काशी की गई टाँगों वाली मेज़ थी, जिस पर पंछियों के पंजों की शक्ल के कोटर वाला शमादान रखा था. इन सात सुनहरे पंजों में मोटी-मोटी मोमबत्तियाँ जल रही थीं. इसके अलावा मेज़ पर शतरंज का एक बोर्ड मोहरों के साथ रखा था, जो बड़ी नफ़ासत से बनाए गए थे. छोटे-से गलीचे पर नन्हीं-सी बेंच पड़ी थी. एक ओर मेज़ थी, जिस पर एक सोने का बर्तन और शमादान रखे थे. इस शमादान की शाखें साँपों के आकार की थीं. कमरे में गन्धक और तारकोल की गन्ध थी, मोमबत्तियों के कारण पड़ती छायाएँ एक-दूसरे को सलीब की तरह छेद रही थीं.
उपस्थितों में से मार्गारीटा ने फौरन अज़ाज़ेलो को पहचान लिया, जिसने फ्रॉक-कोट पहन लिया था और पलंग के सिरहाने खड़ा था. सजा-धजा अज़ाज़ेलो उस डाकू जैसा बिल्कुल नहीं लग रहा था, जिसे पहली बार मार्गारीटा ने अलेक्सान्द्रोव्स्की पार्क में देखा था. उसने बड़ी अदा से मार्गारीटा का अभिवादन किया.
वेराइटी के सम्माननीय रेस्तराँवाले को उलझन में डालने वाली निर्वस्त्र चुडैल, वही हैला, जिसे सौभाग्यवश थियेटर के उस अनोखे प्रोग्राम की रात को मुर्गे की बाँग ने भयभीत कर दिया था, पलंग के पास फर्श पर बिछे कालीन पर बैठी थी और बर्तन में कुछ हिला रही थी, जिससे भूरे रंग की भाप निकल रही थी.
इनके अलावा उस कमरे में शतरंज की मेज़ के सामने तिपाई पर एक विशालकाय बिल्ला बैठा था, जिसने अपने बाएँ पँजे में शतरंज के राजा को पकड़ रखा था.
हैला ने उठकर मार्गारीटा का अभिवादन किया. ऐसा ही बिल्ले ने भी तिपाई से कूदकर किया, पिछले दाहिने पंजे को घुमाते हुए उसने राजा को नीचे गिरा दिया और उसके पीछे-पीछे पलंग के नीचे चला गया.
यह सब मोमबत्तियों की धुँधली रोशनी में डर से सहमी मार्गारीटा देखती रही. उसकी नज़र बिस्तर की ओर गई, जिस पर बैठा था वह, जिसे कुछ ही देर पहले पत्रियार्शी पर बेचारे इवान ने विश्वास दिलाया था, कि शैतान का अस्तित्व नहीं है. यह अस्तित्वहीन अस्तित्व ही पलंग पर बैठा था.
मार्गारीटा के चेहरे पर दो आँखें गड़ गईं. दाहिनी आँख की सुनहरी चमक किसी की भी दिल की गहराई में जैसे उतर जाती थी, और बाईं खाली और काली, जैसे सुई का छेद हो, जैसे अँधेरे, छाया वाले अंतहीन कुएँ का मुँह. वोलान्द का चेहरा एक ओर को मुड़ा था, मुँह का दायाँ किनारा नीचे को खिंच गया था; ऊँचे, गंजे होते गए माथे की चमड़ी को मानो धूप ने हमेशा के लिए जला दिया था.
वोलान्द पलंग पर पसरकर बैठा था. उसने गन्दा, धब्बेदार और कन्धे पर पैबन्द लगा केवल एक लम्बा नाइट गाउन पहन रखा था. उसने एक नंगा पैर अपने नीचे सिकोड़ रखा था, और दूसरा बेंच पर फैला रखा था. इसी काले पैर का घुटना भाप निकलते हुए उबटन से हैला साफ कर रही थी.
मार्गारीटा ने वोलान्द की खुली हुई बालरहित, चिकनी छाती पर काले पत्थर का, सोने की जंज़ीर में लटकता गुबरैला देखा, जिसकी पीठ पर कुछ लिखा हुआ था. पलंग पर वोलान्द की बगल में एक भारी स्टैण्ड पर एक विचित्र गोल रखा था, जो बिल्कुल सजीव जान पड़ता था, और जिस पर एक ओर से सूरज की रोशनी पड़ रही थी.
कुछ क्षण ख़ामोशी छाई रही. ‘वह मुझे पढ़ रहा है,’ मार्गारीटा ने सोचा और उसने अपनी इच्छा-शक्ति से काँपती हुए टाँगों पर काबू पा लिया.
आख़िर में वोलान्द ने मुँह खोला. वह मुस्कुराया, जिससे उसकी चमकीली आँख मानो जलने लगी: “स्वागत है, महारानी, और मैं अपनी इस घर की पोशाक के लिए माफ़ी चाहता हूँ.”
वोलान्द इतने निचले सुर में बोल रहा था कि कुछ शब्दों में भर्राहट का अनुभव होता था.
वोलान्द ने पलंग से लम्बी तलवार उठाई, सिर झुकाकर उसकी नोक पलंग के नीचे घुसाई और बोला, “बाहर आओ! खेल ख़त्म, मेहमान आए हैं.”
“किसी हालत में नहीं,” उत्तेजित होकर कोरोव्येव मार्गारीटा निकोलायेव्ना के कान में प्रोम्प्टिंग करते हुए बोला.
“किसी भी हालत में नहीं...” मार्गारीटा ने बोलना शुरू किया.
“महोदय...” कोरोव्येव कान में बोला.
“किसी भी हालत में नहीं, महोदय,” मार्गारीटा ने अपने आप पर काबू पाते हुए मुस्कुराकर, धीमी परंतु स्पष्ट आवाज़ में कहा और आगे बोली, “मैं विनती करती हूँ कि कृपया खेल मत बन्द कीजिए. मैं समझती हूँ कि अगर शतरंज से सम्बन्धित पत्रिकाएँ इस खेल को छापें तो अच्छे पैसे देंगी.”
अज़ाज़ेलो हौले से, सहमति दिखाते हुए मिमियाया, और वोलान्द मार्गारीटा की ओर देखकर मानो अपने आप से बोला, “हाँ, कोरोव्येव ठीक कहता है! ताश की गड्डी कितनी अच्छी तरह फेंटी जा रही है! खून!”
उसने हाथ बढ़ाया और मार्गारीटा को अपने पास बुलाया. वह आगे बढ़ी. उसके नंगे पाँवों को फर्श का एहसास नहीं हो रहा था. वोलान्द ने अपना भारी, पत्थर जैसा, मगर गर्म हाथ मार्गारीटा के कन्धे पर रखा और उसे अपने पास खींचकर पलंग पर अपने निकट बिठा लिया.
क्रमशः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.