मास्टर और मार्गारीटा – 23.4
फिर मार्गारीटा एक विशाल तालाब वाले कक्ष में आई, जहाँ स्तम्भों की कतार थी. विशालकाय काला नेपच्यून अपने जबडे से गुलाब जल की धारा बिखेर रहा था. तालाब से मदमस्त कर देने वाली शैम्पेन की ख़ुशबू उठ रही थी. यहाँ एक अजीब-सी ख़ुशी दिखाई दे रही थी. औरतें खिलखिलाते हुए अपने जूते फेंक देतीं और पर्स अपने साथी या नीग्रो के हाथों में थमा देतीं, जो तौलिए लिए भागकर आ रहे थे, और किलकारियाँ मारते हुए पंछी की तरह पानी में कूद जातीं. फेनिल लहरें ऊपर आतीं. इस बड़े तालाब का क्रिस्टल तल भी नीचे लगी रोशनी से आलोकित था, और उसमें तैरते हुए चाँदी-से बदन दिखाई दे रहे थे. तालाब से औरतें पूरी तरह मस्त होकर बाहर निकलतीं. उनकी खिलखिलाहट स्तम्भों के बीच से गूँज उठती, जैसा कि सार्वजनिक स्नानगृहों में होता है.
इस पूरी भीड़भाड़ में केवल एक पूरी तरह नशे में धुत चेहरा याद रहा – खाली-खाली आँखों वाला, मगर इन खाली आँखों से भी विनती-सी करता हुआ; और केवल एक शब्द याद रहा – ‘फ्रीडा’! शराब की गन्ध के कारण मार्गारीटा का सिर घूमने लगा. वह वहाँ से जाने की इच्छा करने लगी, मगर तभी बिल्ले की एक हरकत ने उसे रोक लिया. बेगेमोत ने नेपच्यून के जबड़े के पास जाकर कुछ किया, जिससे फुसफुसाकर शोर मचाती, उत्तेजित करती शैम्पेन की धार बन्द हो गई. नेपच्यून अब खिलदंड़े फेनिल द्रव की जगह एक गहरी पीली धार फेंकने लगा.
औरतें चीख मारकर बोल पड़ीं, ‘कोन्याक!’ और वे तालाब से दूर उछल कर स्तम्भों के पीछे चली गईं. कुछ ही क्षणों में टब पूरा भर गया और बिल्ला हवा में तीन कुलाँचे मारकर, लबालब भरे कोन्याक में गिर पड़ा. वह बाहर निकला – बदहवास – टाई की गाँठ खुल चुकी थी, मूँछों का सुनहरा रंग गायब हो गया था, उसकी दूरबीन भी खो गई थी. बेगेमोत की ही भाँति करने की कोशिश की सिर्फ एक ने, उसी दर्जिन ने और उसके साथी एक अनजान संकरित खून के नौजवान ने. ये दोनों कोन्याक की ओर लपके, मगर तभी कोरोव्येव ने मार्गारीटा का हाथ पकड़ा और वे नहाने वालों को छोड़कर चले गए.
मार्गारीटा को महसूस हुआ मानो वह कहीं उड़ी जा रही है, जहाँ विशाल पत्थरों के तालाब में सीपों के पर्वत थे. फिर वह उस काँच के फर्श के ऊपर से उड़ी जिसके नीचे मानो नरक की आग जैसी भट्ठियाँ जल रही थीं, जिनके बीच घूम रहे थे शैतानों जैसे सफ़ेद रसोइये. फिर कहीं और, कहाँ, यह समझने की शक्ति वह अब खो चुकी थी; जहाँ काले अँधेरे गोदामों में मोमबत्तियाँ जल रही थीं, जहाँ लड़कियाँ दहकते कोयलों पर सनसनाता हुआ माँस प्लेटों में डाल-डाल कर दे रही थीं; जहाँ बड़े-बड़े जाम उसकी सेहत के लिए पिए जा रहे थे. फिर उसने देखे सफ़ेद भालू, जो स्टॆज पर हार्मोनियम बजाकर नाच रहे थे. फिर देखा जादूगर सलमान्द्रा को जो आग में नहीं जल सकता था; और उसकी शक्ति दुबारा क्षीण होने लगी.
“बस, आख़िरी दौर,” कोरोव्येव ने सहानुभूतिपूर्वक फुसफुसाकर कहा, “और फिर हमारी छुट्टी.”
कोरोव्येव के साथ वह फिर नृत्य वाले हॉल में आई, जहाँ मेहमान अब नृत्य नहीं कर रहे थे, बल्कि स्तम्भों के बीच-बीच में खड़े थे. हॉल का मध्य भाग खाली छोड़ा गया था. मार्गारीटा को याद नहीं कि उसे इस खाली भाग में प्रकट हुए मंच पर चढ़ने में किसने मदद की. जब वह ऊपर चढ़ी तो दूर कहीं आधी रात के घण्टे बजे, जो उसके हिसाब से कब की ख़त्म हो चुकी थी. आख़िरी घण्टे की गूँज के साथ मेहमानों की भीड़ पर सन्नाटा छा गया. तब मार्गारीटा ने फिर से वोलान्द को देखा. वह अबादोना, अज़ाज़ेलो और अबादोना जैसे दिखने वाले कुछ काले नौजवानों के साथ चला आ रहा था. अब मार्गारीटा ने देखा कि उसके लिए बनाए गए स्टेज के सामने ही एक और स्टेज था वोलान्द के लिए. मगर वह उस पर नहीं चढ़ा. मार्गारीटा को इस बात से भी आश्चर्य हुआ कि वोलान्द नृत्योत्सव के इस अंतिम महान चरण में वैसे ही आया था, जैसे वह अपने शयन-कक्ष में था. उसके कन्धों से वही गन्दा धब्बेदार कुर्ता झूल रहा था, पैरों में वही मुड़े-तुड़े जूते थे. वोलान्द के हाथ में थी खुली हुई तलवार, मगर इस तलवार का उपयोग वह चलते समय सहारा देने वाली छड़ी के रूप में कर रहा था. लँगड़ाते हुए वोलान्द अपने लिए बनाए गए स्टेज के निकट रुका और फ़ौरन अज़ाज़ेलो उसके सामने हाथों में प्लेट लिए आ खड़ा हुआ. इस प्लेट पर मार्गारीटा ने एक आदमी का कटा हुआ सिर देखा, जिसके सामने के दाँत टूटे हुए थे. पूरी ख़ामोशी छाई रही और उसे केवल एक बार एक अजीब-सी घण्टी की आवाज़ ने तोड़ा, जो प्रवेश-द्वार पर लगी होती है.
“मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच,” वोलान्द हौले से सिर की तरफ मुख़ातिब हुआ, और तब मरे हुए आदमी की पलकें ऊपर उठीं. काँपते हुए मार्गारीटा ने देखीं बेजान चेहरे पर जीवित, सोच में डूबी, पीड़ा झेलती आँखें. “सब वैसे ही हो गया, सच है न?” वोलान्द ने सिर की आँखों में झाँकते हुए आगे कहा, “सिर काटा औरत ने, मीटिंग हुई नहीं, और मैं आपके फ्लैट में रह रहा हूँ. यह प्रमाण है और प्रमाण – दुनिया की सबसे ज़िद्दी चीज़ है. मगर अब हमें भविष्य में दिलचस्पी है, न कि उस हादसे में जो घट चुका है. आप हमेशा ज़ोर-शोर से इस सिद्धांत का प्रतिपादन करते रहे हैं, कि सिर कटने के बाद जीवन समाप्त हो जाता है, वह राख बनकर अस्तित्वहीन हो जाता है. मुझे अपने सभी मेहमानों की उपस्थिति में आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है, हालाँकि मेरे मेहमान किसी और ही सिद्धांत के प्रमाण हैं, कि आपका सिद्धांत ठोस और बुद्धिमत्तापूर्ण है. मगर, जैसा कि सर्वविदित है, सभी सिद्धांतों का एक-दूसरे की बदौलत ही अस्तित्व है. इनमें एक यह है, कि हरेक को उसके विश्वास के अनुरूप ही फल मिलता है. हाँ, ऐसा ही होगा! आप अस्तित्वहीन हो जाएँगे, और मुझे उस प्याले से – जिसमें आप परिवर्तित होने वाले हैं – अस्तित्व के लिए जाम पीकर खुशी होगी.” वोलान्द ने तलवार उठाई. तभी सिर की पलकें बुझकर काली हो गईं और सिकुड़ गईं, फिर टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गईं; आँखें गायब हो गईं और जल्दी ही मार्गारीटा ने प्लेट में देखी पीली, पन्ने की आँखों और मोती के दाँतों वाली, सोने के आधार पर रखी खोपड़ी. खोपड़ी का ढक्कन झटके से खुल गया.
“इसी क्षण, मालिक,” कोरोव्येव ने वोलान्द की प्रश्नार्थक नज़र को ताड़ते हुए कहा, “वह आपके सामने आएगा. मैं इस कब्र-सी ख़ामोशी में सुन रहा हूँ उसके चमकते जूतों की चरमराहट और उस जाम की खनखनाहट, जो उसने आख़िरी बार मेज़ पर रखा था, अपने जीवन की अंतिम शैम्पेन पीकर. लीजिए, वह आ गया.”
वोलान्द की तरफ बढ़ते हुए, उस हॉल में एक नया, अकेला मेहमान आया. बाह्य रूप से वह अन्य पुरुष मेहमानों से भिन्न नहीं था, सिर्फ एक बात को छोड़कर: मेहमान घबराहट के मारे लड़खड़ा रहा था, जो दूर से ही दिखाई दे रही थी. उसके गाल जल रहे थे, आँखें घबराहट भरी चँचलता से इधर-उधर भाग रही थीं. मेहमान स्तम्भित था, और यह स्वाभाविक ही था: उसे यहाँ की हर चीज़ आश्चर्यचकित किए दे रही थी, ख़ासतौर से वोलान्द की वेशभूषा.
मगर मेहमान का स्वागत बड़ी ज़िन्दादिली से किया गया.
“ओह, प्रिय सामंत मायकेल,” स्वागतपूर्ण मुस्कुराहट से वोलान्द मेहमान से मुख़ातिब हुआ, जिसकी आँखें अब माथे तक चढ़ चुकी थीं, “आपका परिचय कराते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है,” वोलान्द ने अब मेहमानों की ओर मुड़कर कहा, “आदरणीय सामंत मायकेल, जो मनोरंजन समिति में विदेशियों को राजधानी के दर्शनीय स्थलों से अवगत कराने का काम करते हैं.”
अब मार्गारीटा चौंक गई, क्योंकि उसने इस मायकेल को पहचान लिया था. उसने उसे मॉस्को के थियेटरों और होटलों में कई बार देखा था. ‘शायद...’ मार्गारीटा ने सोचा, ‘यह भी मर चुका है?’ मगर तभी सारी बात स्पष्ट हो गई. “प्रिय सामंत,” वोलान्द ने खुशी से मुस्कुराते हुए अपनी बात जारी रखी, “इतने मुग्ध हो गए कि मॉस्को में मेरे आगमन के बारे में जानकर उन्होंने मुझे फौरन टेलिफोन किया और अपनी सेवाओं के बारे में मुझे बताया, यानी मॉस्को के दर्शनीय स्थलों की सैर कराने के बारे में. ज़ाहिर है कि मुझे उन्हें अपने यहाँ आमंत्रित करके खुशी हुई है.”
इसी समय मार्गारीटा ने अज़ाज़ेलो को खोपड़ी वाली प्लेट कोरोव्येव को देते हुए देखा.
“हाँ, तो सामंत महोदय,” अचानक निकटता दर्शाते हुए वोलान्द ने अपनी आवाज़ नीची कर की और बोला, “आपकी असीम उत्सुकता के बारे में अफ़वाहें फैल रही हैं. सुना है कि उत्सुकता और बातूनीपन लोगों का ध्यान आकर्षित करने लगे हैं. इसके अलावा दुष्ट ज़बानें यह भी कहती सुनी गई हैं कि आप एजेण्ट और जासूस हैं. इसके साथ ही यह अन्दाज़ भी लगाया जा रहा है कि इस सबके कारण महीने भर के अन्दर आपका दर्दनाक अंत हो जाएगा. तो, आपको इस थकाने वाले इंतज़ार से बचाने के लिए हमने सोचा कि आपकी मदद की जाए. आपने मेरे पास आकर मुझसे बातें करके कुछ देखने-सुनने की इच्छा प्रकट की थी, उसी बात का हमने फायदा उठाया है.”
सामंत का चेहरा अबादोना से भी ज़्यादा पीला पड़ गया. फिर एक चौंकाने वाली बात हुई. अबादोना ने सामंत के सामने खड़े होकर एक क्षण के लिए अपना चश्मा उतारा. इसी समय अज़ाज़ेलो के हाथ में कोई चीज़ चमकी, कुछ ताली-सी बजने की आवाज़ आई और सामंत नीचे धरती पर गिरने लगा. उसके सीने से लाल खून का फव्वारा निकलकर उसकी कलफ लगी कमीज़ और जैकेट को सराबोर करने लगा. कोरोव्येव ने इस उछलती हुए धार के नीचे खोपड़ी वाला प्याला रखा और भर जाने के बाद उसे वोलान्द को पेश कर दिया. अब तक सामंत का निर्जीव शरीर फर्श पर गिर पड़ा था.
“आपकी सेहत के लिए, दोस्तों,” धीरे से वोलान्द ने कहा और प्याला उठाकर उसे होठों तक ले गया.
तभी एक अद्भुत परिवर्तन हुआ. धब्बों वाली कमीज़ और मुड़े-तुड़े जूते गायब हो गए. वोलान्द एक काली पोशाक में दिखा, कमर में स्टील की तलवार लटकाए. वह फौरन मार्गारीटा के पास आया और उसके पास प्याला लाते हुए अधिकारपूर्ण स्वर में बोला, “पियो!”
मार्गारीटा का सिर घूम गया, वह लड़खड़ाने लगी, मगर प्याला अब तक उसके होठों तक पहुँच चुका था, और कुछ आवाज़ें, किसकी – वह पहचान नहीं पाई, उसके दोनों कानों में कह रही थीं: “डरिए मत, महारानी...डरिए मत, महारानी, खून कब का ज़मीन में चला गया है. और वहाँ, जहाँ वह गिरा था, अंगूर की बेलें उग आई हैं.”
मार्गारीटा ने आँखें खोले बिना एक घूँट पिया और उसकी नस-नस में एक मीठी-सी लहर दौड़ गई, कानों में घण्टियाँ बजने लगीं. उसे लगा कि कानों को बहरा कर देने वाले मुर्गे चिल्ला रहे हैं. कहीं दूर मार्च का संगीत बज रहा है. मेहमानों के झुण्ड अपना आकार खोने लगे: फ्रॉक पहने मर्द और औरतें कंकालों में परिवर्तित होकर बिखर गए, मार्गारीटा की आँखों के सामने उस कक्ष पर सड़न छाने लगी जिस पर कब्र की-सी गन्ध फैल गई. स्तम्भ बिखर गए, रोशनियाँ बुझ गईं, सब कुछ सिमटने लगा; न बचे झरने, न ही त्युल्पान और अन्य फूल. बचा सिर्फ उतना ही जितना पहले था – जवाहिरे की बीवी का सीधा-सादा ड्राइंगरूम, और उसके अधमुँदे दरवाज़े से बाहर झाँकती प्रकाश की एक पट्टी. इसी अधखुले दरवाज़े में प्रविष्ट हुई मार्गारीटा
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