मास्टर और मार्गारीटा – 18.3
मगर अपेक्षा से अधिक इंतज़ार करना पड़ा कीएव निवासी को सीढ़ियाँ न जाने क्यों खाली थीं. बड़ी आसानी से सब कुछ सुनाई दे रहा था. आख़िरकार पाँचवीं मंज़िल का दरवाज़ा धड़ाम् से बन्द हुआ. पोप्लाव्स्की के दिल की धड़कन रुक गई. ‘हाँ, उसके पैरों की आहट है. नीचे आ रहा है.’ चौथी मंज़िल पर इस फ्लैट के ठीक नीचे वाले घर का दरवाज़ा खुला. आहट रुक गई. स्त्री की आवाज़...दुःखी व्यक्ति की आवाज़...हाँ यह उसी की आवाज़ है...शायद कुछ इस तरह कह रहा था, “छोड़ो, ईसा मसीह की ख़ातिर...” पोप्लाव्स्की का कान टूटे शीशे से सट गया. इस कान ने सुनी एक स्त्री की हँसी, जल्दी-जल्दी नीचे आने वाले कदमों की निडर आहट; और उसी स्त्री की पीठ की झलक दिखाई दी.हाथ में रेक्ज़िन का हरा पर्स पकड़े वह स्त्री मुख्य दरवाज़े से निकलकर आँगन में गई और उस व्यक्ति के कदमों की आहट फिर से आने लगी. “अचरज की बात है, वह वापस फ्लैट में जा रहा है. कहीं वह इस चौकड़ी में से एक तो नहीं? हाँ, वापस जा रहा है. फिर ऊपर का दरवाज़ा खुला. चलो, और इंतज़ार कर लेते हैं...”
इस बार कुछ कम इंतज़ार करना पड़ा. दरवाज़े की आवाज़. कदमों की आहट. कदमों की आहट रुक गई. एक बदहवास चीख. बिल्ली की म्याऊँ-म्याऊँ. आहट तेज़, टूटी-फूटी, नीचे, नीचे, नीचे!
पोप्लाव्स्की का इंतज़ार पूरा हुआ. बार-बार सलीब का निशान बनाता और कुछ-कुछ बड़बड़ाता वह मुसीबत का मारा उड़ता हुआ आया, बिना टोपी के, चेहरे पर वहशीपन, गंजे सिर पर खरोंचें और गीली पतलून के साथ. वह घबराकर बाहर वाले दरवाज़े का हैंडिल घुमाने लगा, डर के मारे यह भी भूल गया कि वह बाहर की ओर खुलता है या अन्दर की ओर. आख़िरकार दरवाज़ा खुल ही गया और वह बाहर आँगन की धूप में रफू-चक्कर हो गया.
तो फ्लैट की जाँच पूरी हो चुकी थी, अपने मृत भांजे के बारे में, उसके फ्लैट के बारे में ज़रा भी न सोचते हुए मैक्समिलियन अन्द्रेयेविच उस ख़तरे के बारे में सोच-सोचकर काँपने लगा जिससे वह दो-दो हाथ कर चुका था. वह सिर्फ इतना ही बड़बडा रहा था: “सब समझ गया! सब समझ गया!” और वह बाहर आँगन में भाग गया. कुछ ही मिनटों के बाद एक ट्रॉली बस अर्थशास्त्री संयोजक को कीएव जाने वाले रेल्वे स्टेशन की ओर ले गई.
जब तक अर्थशास्त्री नीचे गोदाम में बैठा था, उस छोटे कद के आदमी के साथ अत्यंत ही अप्रिय घटना घटी. वह छोटे कद का आदमी वेराइटी में रेस्तराँ चलाता था और उसका नाम था अन्द्रेइ फ़ोकिच सोकोव. जब तक वेराइटी में पूछताछ होती रही, अन्द्रेइ फ़ोकिच उस सबसे दूर रहा, बस एक बात गौर करने जैसी थी, वह यह कि वह हमेशा से और अधिक दुःखी लगने लगा और साथ ही उसने पत्रवाहक कार्पोव से यह भी पूछा कि वह जादूगर रुका कहाँ है.
इस तरह, अर्थशास्त्री से पूछकर रेस्तराँ वाला पाँचवीं मंज़िल पर पहुँचा और उसने फ्लैट नं. 50 की घंटी बजाई.
तत्क्षण दरवाज़ा खुला, मगर रेस्तराँ वाला कुछ काँपते हुए, कुछ लड़खड़ाते हुए उसी समय अन्दर नहीं घुसा. बात ठीक ही थी. दरवाज़ा खोलने वाली एक लड़की थी – जिसने लेस वाले एप्रन के सिवा कुछ नहीं पहना था, सिर पर सफ़ेद टोप था. हाँ, पैरों में सुनहरे जूते थे. लड़की का डीलडौल, नाकनक्श अच्छे थे, सिवाय एक बात के कि उसकी गर्दन पर एक लाल-सा चोट का निशान था.
“घण्टी बजाई है तो आइए!” लड़की ने होटल वाले पर अपनी हरी निर्लज्ज आँखें जमाते हुए कहा.
अन्द्रेइ फ़ोकिच के मुँह से सिसकी निकल गई, वह आँखें झपकाते हुए, टोपी निकालकर प्रवेश-कक्ष में प्रविष्ट हुआ. इसी समय वहाँ रखा हुआ टेलिफोन बज उठा. वह निर्लज्ज नौकरानी एक पैर कुर्सी पर रखे टेलिफोन का रिसीवर उठाकर बोली, “हैलो!”
रेस्तराँ वाला समझ नहीं पा रहा था कि वह अपनी नज़रें किधर घुमाए, एक पैर से दूसरे पैर पर अपना शरीर घुमाते हुए वह सोच रहा था: ‘क्या नौकरानी है इस विदेशी की! छिः कितनी घिनौनी!’ और इस घिनौनी चीज़ से बचने के लिए वह इधर-उधर देखने लगा.
यह बड़ा-सा, अंधेरा-सा प्रवेश-कक्ष अजीब-अजीब चीज़ों से और वस्त्रों से अटा पड़ा था. कुर्सी की पीठ पर एक ग़मी के मौके पर पहनने वाला कोट था, जिसकी किनारी लाल थी, ड्रेसिंग टेबल की छोटी-सी स्टूल पर सुनहरी मूठ वाली एक लम्बी तलवार रखी थी. तीन चाँदी की मूठों वाली तलवारें कोने में ऐसी ही खड़ी थीं, मानो छतरी या छड़ी हों और रेंडियर के सींगों पर गरुड़ के पंखों वाले शिरस्त्राण टँगे थे.
“हाँ”, नौकरानी टेलिफोन पर बात कर रही थी, “क्या? सरदार मायकेल? सुन रही हूँ. हाँ! कलाकार महोदय आज घर पर ही हैं. हाँ, आपसे मिलकर खुश होंगे. हाँ, मेहमान...चोगा या काला कोट. क्या? रात के बारह बजे.” बात ख़त्म करके उसने रिसीवर अपनी जगह पर रखा और रेस्तराँ वाले की ओर मुख़ातिब हुई, “आप किसलिए आए हैं?”
“मुझे नागरिक कलाकार से मिलना है.”
“क्या? ख़ुद उनसे?”
“हाँ, उन्हीं से,” रेस्तराँ वाले ने रोनी आवाज़ में कहा.
“पूछती हूँ,” लड़की ने असमंजस में पड़कर कहा और मृत बेर्लिओज़ के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा-सा खोलकर बोली, “सरदार, एक नाटा आदमी आया है जो कहता है कि उसे महोदय से मिलना है.”
“आने दो,” कमरे के अन्दर से कोरोव्येव की फटी हुई आवाज़ आई.
“जाइए, ड्राइंग रूम में चले जाइए,” लड़की ने इतनी सहजता से कहा मानो उसने कपड़े पहन रखे हों, और ड्राइंग रूम का दरवाज़ा खोलकर वह प्रवेश-कक्ष से बाहर निकल गई.
वहाँ जाते हुए, जहाँ जाने के लिए उसे कहा गया था, होटल वाला अपने काम के बारे में ही भूल गया, इतना आश्चर्य उसे उस कमरे को देखकर हुआ. बड़ी-बड़ी खिड़कियों के रंगीन शीशों से (जवाहिरे की बीवी की कल्पना की बदौलत, जो कहीं खो गई थी) कमरे में एक अजीब-सा प्रकाश आ रहा था, जो आमतौर से चर्च के प्रकाश की भाँति था. पुरानी भव्य अँगीठी में बसंत के गर्म दिन के बावजूद आग जल रही थी. मगर फिर भी कमरे में ज़रा भी गर्मी नहीं थी, उल्टे आगंतुक को कब्र की-सी नमी और ठण्डक ने घेर लिया. अँगीठी की ओर ताकता हुआ शेर की खाल पर काला बिल्ला बैठा था. एक मेज़ भी थी, जिस पर नज़र पड़ते ही ईश्वर से डरने वाला रेस्तराँ वाला सिहर उठा. टेबल पर चर्च वाले किमखाब थे. किमखाब पर बड़े पेट वाली, फफूँद लगी और धूल भरी अनेक बोतलें पड़ी थीं. बोतलों के बीच में एक तश्तरी रखी थी जिसे देखते ही फौरन समझ में आ रहा था कि वह खालिस सोने की है. अँगीठी के पास नाटा, लाल बालों वाला कमर में खंजर खोंसे लम्बी स्टील की तलवार पर माँस के टुकड़े भून रहा था, और आग में उसका रस बूँद-बूँद कर गिर रहा था और चिमनी से धुआँ बाहर निकल रहा था. कमरे में न केवल भूने जा रहे माँस की, बल्कि कोई अन्य ख़ुशबू भी फैली थी, इत्र और लोभान की मिली-जुली, जिससे रेस्तराँ वाले के (जिसने अख़बारों में बेर्लिओज़ की दर्दनाक मौत और उसके रहने के ठिकाने के बारे में पढ़ रखा था) दिल में एक ख़याल कौंध गया कि कहीं बेर्लिओज़ के लिए चर्च में की जाने वाली अंतिम सर्विस तो यहाँ नहीं की गई है, मगर इस ख़याल को बेतुका समझकर उसने दिल से निकाल दिया.
परेशान, भौंचक्के रेस्तराँ वाले ने अचानक एक भारी-भरकम आवाज़ सुनी, “कहिए, मैं आपकी क्या ख़िदमत कर सकता हूँ?”
अब रेस्तराँ वाले ने अँधेरे में बैठे उसे पहचाना, जिसकी उसे ज़रूरत थी.
काले जादू का विशेषज्ञ एक बहुत बड़े,नीचे पलंग पर बैठा था, जिस पर कई सारे तकिए पड़े थे. रेस्तराँ वाले ने देखा कि उस कलाकार ने केवल काला कच्छा और काले नुकीले जूते ही पहन रखे थे.
“मैं,” रोनी आवाज़ में रेस्तराँ वाला बोला, “वेराइटी थियेटर के रेस्तराँ का प्रमुख हूँ...”
कलाकार ने बहुमूल्य पत्थर जड़ी अँगूठियों वाला अपना हाथ आगे बढ़ाया जैसे कि रेस्तराँ वाले का मुँह बन्द करना चाहता हो, और उत्तेजित होते हुए बोला, “नहीं, नहीं, नहीं! आगे एक शब्द भी नहीं! किसी भी हालत में और कभी भी नहीं! आपके रेस्तराँ की एक भी चीज़ मैं अपने मुँह में नहीं डाल सकता! कल, आदरणीय महोदय, मैं आपके काउंटर के पास से गुज़रा था और अभी तक मैं न तो वहाँ की मछली भूला हूँ और न ही भेड़ के दूध का पनीर! मेरे लाडले! पनीर हरे रंग का नहीं होता, आपको किसी ने बुद्धू बनाया है. उसे तो सफ़ेद होना चाहिए. और, हाँ, चाय? बस, नाली का पानी! मैंने अपनी आँखों से देखा कि एक फूहड़ लड़की ने बाल्टी भर पानी आपके समोवार में डाला जबकि समोवार में से चाय देते जा रहे थे. नहीं, मेरे प्यारे, ऐसा नामुमकिन है!”
“मैं माफ़ी चाहता हूँ...” इस अचानक हुए हमले से भौंचक्का होकर अन्द्रेइ फोकिच बोला, “मैं इस काम के लिए नहीं आया, और मछली का यहाँ कोई काम नहीं है...”
“काम कैसे नहीं है, अगर वह सड़ी हुई हो तो?”
“मछली दूसरी श्रेणी के ताज़ेपन की भेजी गई थी,” रेस्तराँ वाले ने जानकारी दी.
“मेरे लाड़ले, यह बकवास है!”
“कैसी बकवास?”
“दूसरी श्रेणी का ताज़ापन – यही बकवास है! ताज़ापन बस एक ही होता है – प्रथम श्रेणी का, वही अंतिम श्रेणी का भी होगा. और यदि मछली दूसरी श्रेणी की है तो इसका मतलब यह हुआ कि वह बासी है!”
“मैं माफ़ी चाहता हूँ,” रेस्तराँ वाले ने फिर कहना चाहा. वह समझ नहीं पा रहा था कि इस आक्रमण को कैसे रोके.
“आपको माफ़ी नहीं मिल सकती,” उसने ज़ोर देकर कहा.
“मैं इस काम के लिए नहीं आया था!” एकदम परेशान होते हुए रेस्तराँ वाले ने कहा.
“इस काम के लिए नहीं?” विदेशी जादूगर को बड़ा आश्चर्य हुआ, “फिर ऐसी क्या बात हो सकती है, जो आपको मुझ तक खींच लाई? अगर मैं भूल नहीं रहा हूँ तो आपके पेशे से सम्बन्धित मैं केवल एक महिला को जानता था, वह भी काफी अर्सा पहले, जब आप इस दुनिया में आए भी न थे. ख़ैर, मुझे खुशी हुई. अज़ाज़ेलो! रेस्तराँ प्रमुख को बैठने के लिए स्टूल खिसकाओ.”
माँस भुनने वाले ने मुड़कर अपने नुकीले दाँतों से रेस्तराँ वाले को भयभीत करते हुए, हौले से बलूत की एक छोटी-सी काली तिपाई उसकी ओर सरका दी. कमरे में बैठने के लिए और कुछ था ही नहीं.
रेस्तराँ वाले ने कहा, “बहुत-बहुत धन्यवाद,” और वह तिपाई पर बैठ गया.
उसका पिछला पैर चर्रर् र्... करके उसी क्षण टूट गया और रेस्तराँवाला कराहते हुए भीषण दर्दनाक ढंग से फर्श पर धम्म् से टकराया. गिरते-गिरते उसके पैर ने दूसरी तिपाई को भी धक्का दिया, जो उसके सामने रखी थी और उसकी पैंट पर लाल शराब का पूरा प्याला गिर पड़ा जो उस तिपाई पर रखा था.
कलाकार बोल पड़ा, “ओह! आपको चोट तो नहीं आई?”
अज़ाज़ेलो ने रेस्तराँ वाले को उठने में मदद की और उसे बैठने के लिए एक और तिपाई दी. दर्द में डूबी आवाज़ ने रेस्तराँ वाले ने मेज़बान की पेशकश, पैंट निकालकर अँगीठी के सामने उसे सुखाने की, ठुकरा दी और काफी अटपटेपन से गीले कपड़ों में दूसरी तिपाई पर सम्भलकर बैठ गया.
क्रमशः
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