मास्टर और मार्गारीटा – 22.1
शमा की रोशनी में
ऊँचाई पर उड़ती कार की लगातार हो रही घर्र-घर्र मार्गारीटा को मानो लोरी सुना रही थी और चाँद की रोशनी उसे हल्की-सी गर्माहट दे रही थी. आँखें बन्द करके चेहरे पर आती हवा का आनन्द उठाते हुए कुछ अफ़सोस के साथ उसने उस अज्ञात नदी के किनारे के बारे में सोचा, जिसे वह पीछे छोड़ आई थी; और जिसे शायद अब वह कभी नहीं देख पाएगी. इस शाम के सब जादुई कारनामों और आश्चर्यजनक घटनाओं से गुज़रने के बाद उसने यह अन्दाज़ तो लगा लिया था, कि उसे किसके पास ले जाया जा रहा है, मगर इससे उसे ज़रा भी डर नहीं लगा. इस उम्मीद ने कि वहाँ उसे अपनी खोई हुई खुशी वापस मिल जाएगी, उसे निडर बना दिया था. मगर इस खुशी के बारे में वह कार में बैठकर ज़्यादा देर तक नहीं सोच सकी. शायद कौआ अपना काम अच्छी तरह जानता था, या कार बढ़िया थी, मगर शीघ्र ही मार्गारीटा ने आँखें खोलकर देखा तो नीचे अँधेरे जंगल के बदले था मॉस्को की बत्तियों का लहराता सागर. काले पक्षी–ड्राइवर ने उड़ते-उड़ते अगले सीधे पहिए को निकाला और एक सुनसान कब्रिस्तान में, जो दोरागामीलोव भाग में था, कार को उतार दिया. चुपचाप बैठी मार्गारीटा को एक कब्र के पास उसके ब्रश समेत उतारकर कौए ने कार छोड़ दी, उसे कब्रिस्तान के पीछे वाली खाई में धकेल दिया. कार इस खाई में गिर कर एक धमाके के साथ ख़त्म हो गई. कौआ सम्मानपूर्वक फड़फड़ाया, पहिए पर बैठ गया और उसी के साथ उड़ गया.
तभी एक स्मारक के पीछे से एक काला रेनकोट दिखाई दिया. चाँद की रोशनी में एक दाँत चमका और मार्गारीटा ने अज़ाज़ेलो को पहचान लिया. उसने इशारे से मार्गारीटा को ब्रश पर बैठने के लिए कहा और स्वयँ लम्बे डण्डे पर कूद गया, दोनों ने ज़ू S S म से उड़ान भरी और बिना किसी की नज़रों में पड़े कुछ ही क्षणों बाद सादोवाया रास्ते पर बिल्डिंग नं. 302बी. के नज़दीक उतरे.
जब बगल में ब्रश और डण्डा दबाए ये हमराही मोड़ के पास पहुँचे तो मार्गारीटा ने वहाँ एक थके हुए आदमी को देखा. उसने टोपी और लम्बे-लम्बे जूते पहन रखे थे. शायद वह किसी का इंतज़ार कर रहा था. मार्गारीटा और अज़ाज़ेलो कितने ही हौले क्यों न चल रहे थे, उस आदमी ने उन्हें सुन ही लिया और उत्सुकतावश मुड़ा, यह न समझते हुए कि यह आवाज़ कौन कर रहा है.
दूसरे, पहले से मिलते-जुलते, एक ऐसे ही आदमी से वे मिले छठे दरवाज़े पर. फिर वही पुनरावृत्ति हुई. कदमों की आहट...आदमी परेशान होकर मुड़ा और उसने नाक-भौं सिकोड़ लिए. जब दरवाज़ा खुलकर बन्द हो गया तो वह इन अदृश्य घुसने वालों के पीछे-पीछे देखने लगा, यह बात और है कि वह कुछ देख नहीं पाया.
तीसरा, जो दूसरे आदमी की प्रतिकृति था, और शायद पहले की भी, तीसरी मंज़िल के प्रवेश द्वार पर पहरा दे रहा था. वह बड़ी तीखी सिगरेट पी रहा था. मार्गारीटा को उसके पास से गुज़रते हुए खाँसी आ गई. सिगरेट पीने वाला अपनी बेंच से ऐसे उछला, मानो उसे किसीने सुई चुभो दी हो; उसने परेशानी से इधर-उधर देखना शुरू कर दिया, मुँडॆर की तरफ गया, नीचे देखा. इस समय तक मार्गारीटा अपने साथी के साथ 50 नं. के फ्लैट पर थी. घण्टी नहीं बजाई. अज़ाज़ेलो ने बिना आवाज़ किए अपनी चाबी से दरवाज़ा खोल दिया.
सबसे पहले मार्गारीटा जिस बात से चौंकी, वह था अँधेरा, जो वहाँ था. कुछ भी नहीं दिखाई देता था, मानो वह ज़मीन के नीचे आ गई हो, और मार्गारीटा ने घबराकर अज़ाज़ेलो का कोट पकड़ लिया, ताकि किसी चीज़ से टकरा न जाए. मगर धीरे-धीरे ऊपर से, दूर से, कोई एक रोशनी झिलमिलाई जो धीरे-धीरे नज़दीक आती गई. अज़ाज़ेलो ने चलते-चलते मार्गारीटा की बगल में दबा हुआ ब्रश निकाल दिया, जो बिना कोई आवाज़ किए अँधेरे में गायब हो गया. अब वे किन्हीं चौड़ी-चौड़ी सीढ़ियों पर चढ़ने लगे, मार्गारीटा को लगा कि ये सीढ़ियाँ कभी ख़त्म ही नहीं होंगी. उसे ताज्जुब हुआ कि मॉस्को के एक आम फ्लैट के प्रवेश-कक्ष में ऐसी असाधारण, अदृश्य मगर फिर भी महसूस होने वाली अंतहीन सीढ़ी कहाँ से आ गई. मगर तभी यह ऊपर चढ़ना बन्द हो गया और मार्गारीटा समझ गई कि वह लैण्डिंग पर खड़ी है. वह रोशनी करीब आती गई और उसके उजाले में एक आदमी का चेहरा दिखाई दिया; आदमी लम्बा और काला था, उसने हाथ में यह लैम्प पकड़ रखा था. वे अभागे जीव, जो दुर्भाग्यवश इन दिनों उसके रास्ते में आ गए थे, इस मद्धिम रोशनी में भी उसे पहचान लेते. यह कोरोव्येव था, वही फागोत भी था.
यह बात सच है कि कोरोव्येव का रूप काफ़ी बदल चुका था. फड़फड़ाती लौ टूटे हुए चश्मे पर नहीं, जिसे बहुत पहले कचरे में फेंक देना चाहिए था, अपितु एक काँच वाले आले पर पड़ रही थी; यह भी वाक़ई तड़का हुआ ही था. उसके ढीठ चेहरे पर ऊपर उठी मूँछें मोम लगाकर सँवारी हुई थीं. उसके काले रंग का कारण था वह फ्रॉक-कोट जो वह पहने हुए था. सिर्फ उसका सीना सफ़ॆद था.
जादूगर, कॉयर-मास्टर, सम्मोहक, अनुवादक और भी न जाने क्या-क्या था यह कोरोव्येव, शैतान ही जाने. कोरोव्येव ने झुककर मार्गारीटा का अभिवादन किया और लैम्प को हवा में ज़ोरदार घुमाकर उसे अपने पीछे-पीछे आने के लिए कहा. अज़ाज़ेलो गायब हो गया.
‘बड़ी ही अजीब शाम है,’ मार्गारीटा ने सोचा, ‘मैं किसी भी चीज़ की उम्मीद कर सकती थी, सिर्फ इसे छोड़कर! क्या उनके यहाँ बिजली चली गई है? मगर सबसे ज़्यादा चौंकाने वाला है – इस जगह का आकार-प्रकार! मॉस्को के फ्लैट में इतना सब कैसे समा सकता है? किसी भी हालत में नहीं.’
कोरोव्येव की मोमबत्ती की रोशनी चाहे कितनी ही मद्धिम क्यों न थी, मार्गारीटा समझ गई कि वह एक असीमित हॉल में है, जिसमें विशाल स्तम्भों की कतार है, काली और पहली बार देखने से अंतहीन प्रतीत होती हुई. किसी दीवान के पास आकर कोरोव्येव रुका, उसने अपनी मोमबत्ती किसी स्टूल पर रख दी. उसने इशारे से मार्गारीटा को बैठने के लिए कहा और स्वयँ उसके निकट ही एक तस्वीर की तरह उस स्टूल पर कुहनियाँ टेके जम गया.
“मुझे अपना परिचय कराने की आज्ञा दें,” कोरोव्येव ने बजते हुए कहा, “आपको आश्चर्य हो रहा है न, कि बिजली नहीं है? बचत कर रहे हैं, शायद, आप सोच रही होंगी? नहीं, नहीं, नहीं! अगर ऐसी बात है तो किसी भी जल्लाद को या उनमें से किसी भी एक को जो कुछ देर बाद आपके कदमों में गिरने का सौभाग्य प्राप्त करेंगे, इसी स्टूल पर मेरा सिर कलम करने दो. वह तो हमारे मालिक को बिजली की रोशनी पसन्द नहीं है, इसलिए, हम बिजली बिल्कुल आख़िर में जलाएँगे. तब उसमें ज़रा सी भी कटौती नहीं होगी. हाँ, अगर रोशनी कुछ कम ही रहती तो अच्छा होता.
मार्गारीटा को कोरोव्येव पसन्द आ गया. उसकी चींचीं की आवाज़ ने उसे काफ़ी सुकून दिया.
“नहीं,” मार्गारीटा ने जवाब दिया, “सबसे ज़्यादा आश्चर्य मुझे इस बात से हो रहा है, कि इतना सब कुछ यहाँ कैसे समा सका?” उसने हाथ घुमाकर उस विशाल हॉल की ओर इशारा किया.
कोरोव्येव मिठास लिए हौले से हँसा, जिससे उसकी नाक के पास परछाइयाँ तैर गईं.
“यह तो बड़ा आसान है!” उसने जवाब दिया, “पाँचवें आयाम के बारे में जो जानते हैं उन्हें किसी भी जगह को मनचाहे आकार का बनाने में कोई तकलीफ नहीं होती. आदरणीय महोदया, कितना भी बड़ा क्यों न चाहें! मैं...” कोरोव्येव बड़बड़ाता रहा, “कुछ ऐसे लोगों को जानता हूँ जिन्हें पाँचवें तो क्या किसी भी आयाम के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है, मगर फिर भी उन्होंने बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी जगह को बड़ा बनाने के काफ़ी करिश्मे कर दिखाए. मिसाल के तौर पर, एक नागरिक को, जैसा कि मुझे बताया गया, ज़िम्ल्यानी वाल में तीन कमरों वाला फ्लैट मिला. बिना किसी पाँचवें-वाँचवें आयाम के, जिसके कारण दिमाग चकरा जाता है, उसने फ़ौरन उसे चार कमरों वाला बना दिया. एक कमरे को, पार्टीशन खड़ा करके, दो भागों में बाँट दिया.
“इस बड़े फ्लैट के बदले उसने मॉस्को के दो अलग-अलग भागों में दो अलग-अलग फ्लैट्स ले लिए – एक तीन कमरों वाला और एक दो कमरे वाला. अब कुल मिलाकर हुए पाँच कमरे. तीन कमरों वाले के बदले उसने दो कमरे वाले दो फ्लैट ले लिए, और जैसा कि आप देख रही हैं, अब वह छह कमरों का मालिक बन बैठा, जो मॉस्को के अलग-अलग भागों में बिखरे थे. अब वह अपना अंतिम और शानदार कारनामा करने चला, अख़बार में इश्तेहार देकर कि मॉस्को के अलग-अलग भागों में बिखरे छह कमरों के बदले ज़िम्ल्यानी वाल पर एक पाँच कमरों वाला फ्लैट चाहता है; मगर तभी कुछ कारणों से, जिन पर उसका बस नहीं था, उसकी गतिविधियाँ रुक गईं. शायद, अभी भी उसके पास कोई कमरा है. बस, मैं आपको यक़ीन दिलाता हूँ कि वह मॉस्को में नहीं होगा. देखिए, क्या कमाल का चालबाज़ है, और आप अभी तक पाँचवें आयाम के बारे में सोच रही हैं!”
हालाँकि मार्गारीटा पाँचवें आयाम के बारे में ज़रा भी नहीं सोच रही थी, हाँ, कोरोव्येव ज़रूर इस विष्य में डूबा हुआ था, मगर वह फ्लैट वाले चालबाज़ की कहानी सुनकर खिलखिला पड़ी.
कोरोव्येव आगे बोलता रहा, “चलिए, काम की बातें करें, काम की बातें, मार्गारीटा निकोलायेव्ना! आप बहुत बुद्धिमान महिला हैं, और, बेशक, समझ गई हैं, कि हमारा मालिक कौन है.”
क्रमशः
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