अध्याय – 14
मुर्गे की बदौलत
काले जादू के ‘शो’ के बाद हम वेरायटी की
तरफ गए ही नहीं हैं, चलिए, देखें कि वहाँ क्या हो रहा है.
वित्तीय डाइरेक्टर रीम्स्की काले जादू के जादूगर
से और उसके ‘शो’ से बहुत अप्रसन्न है. सिप्म्लेयारोव का भण्डाफोड़ होने के बाद वह
अपने तनाव पर काबू न कर सका और ‘शो’ के बाद की औपचारिकताएँ पूरी किए बगैर अपने
कक्ष में लौट आया. मेज़ पर पड़े जादुई नोटों की ओर देखते हुए वह विचारमग्न हो गया.
अचानक उसे पुलिस की कर्कश सीटी की आवाज़
सुनाई दी जो किसी प्रसन्नता का प्रतीक नहीं होती.
वह सादोवाया की ओर खुलने वाली खिड़की की
तरफ गया और सड़क पर झाँकने लगा...लोग थियेटर से निकल रहे थे...एक जगह कुछ मनचले
सीटियाँ बजा रहे थे, ठहाके लगा रहे थे, ताने कस रहे थे और एक महिला को छेड़ रहे थे.
महिला बिचारी, जिसने फागोत की दुकान से बढ़िया फैशनेबुल ड्रेस पाई थी, अपने आप को
बचाने की भरसक कोशिश कर रही थी, उसकी ड्रेस गायब हो चुकी थी और वह केवल अंतर्वस्त्रों
में थी. कुछ दूर पर एक और ऐसा ही नज़ारा दिखाई दिया. कुछ मनचले महिला को अपनी
इच्छित जगह पर ले जाने के लिए तत्पर थे.
घृणा से थूकते हुए रीम्स्की खिड़की से दूर हट
गया और वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया. ज़िम्मेदारी का कड़वा घूँट पीने का क्षण आ गया
था. उसे उन्हें सूचित करना था :
स्त्योपा के गायब होने के बारे में, इसके तुरंत बाद वारेनूखा के लापता हो जाने के
बारे में; करेंसी नोटों की बरसात के बारे में; बेंगाल्स्की के साथ हुए दर्दनाक हादसे
के बारे में; और सिम्प्लेयारोव वाले लफ़ड़े के बारे में.
मगर जैसे ही उसने टेलिफोन की तरफ हाथ बढ़ाया,
वह खुद ही बजने लगा और एक कामुक आवाज़ ने रीम्स्की को धमकी देते हुए कहा कि वह कहीं
भी फोन न करे.
अब कहीं फोन करने का सवाल ही नहीं उठता था,
वह बैठा रहा – मगर तभी की-होल में चाभी अपने आप घूमने लगी, दरवाज़ा खुला और वारेनूखा
भीतर आया.
ख़ैर, इसके बाद क्या हुआ यह तो आपने पढ़ ही लिया
होगा: वारेनूखा ने, जो वाक़ई में वारेनूखा था ही नहीं, बल्कि वारेनूखा के भेस में
कोई शैतानी रूह थी, कैसे रीम्स्की को मार डालने की कोशिश की; कैसे एक नग्न औरत
वित्तीय डाइरेक्टर के कमरे में पिछली खिड़की से घुसने की कोशिश कर रही थी और कैसे उसे
और वारेनूखा को, मुर्गे की बाँग सुनते ही हवा में तैरते हुए वहाँ से भाग जाना
पड़ा...और कैसे रीम्स्की जो अचानक 80 साल के बूढे जैसा हो चुका था, अपने सफेद बालों
वाले, हिलते हुए सिर को सम्भाले रेल्वे स्टेशन की ओर भागा और मॉस्को से गायब हो
गया...
जैसे
ही वित्तीय डाइरेक्टर इस नतीजे पर पहुँचा कि व्यवस्थापक झूठ बोल रहा है, उसके शरीर
में सिर से पैर तक भय की लहर दौड़ गई. उसे दुबारा महसूस हुआ कि दुर्गन्धयुक्त सीलन
कमरे में फैलती जा रही है. उसने व्यवस्थापक के चेहरे से एक पल को भी नज़र नहीं
हटाई, जो अपनी ही कुर्सी में टेढ़ा-मेढ़ा हुआ जा रहा था, और लगातार कोशिश कर रहा था
कि नीली रोशनी वाले लैम्प की छाया से बाहर न आए. एक अख़बार की सहायता से वह अपने
आपको इस रोशनी से बचा रहा था, मानो वह उसे बहुत तंग कर रही हो. वित्तीय डाइरेक्टर
सिर्फ यह सोच रहा था कि इस सबका मतलब क्या हो सकता है? सुनसान इमारत में इतनी देर
से आकर वह सरासर झूठ क्यों बोल रहा है? एक अनजान दहशत ने वित्तीय डाइरेक्टर को
धीरे-धीरे जकड़ लिया. रीम्स्की ने ऐसे दिखाया जैस वारेनूखा की हरकतों पर उसका
बिल्कुल ध्यान नहीं है, मगर वह उसकी कहानी का एक भी शब्द सुने बिना सिर्फ उसके
चेहरे पर नज़र गड़ाए रहा. कुछ ऐसी अजीब-सी बात थी, जो पूश्किनो वाली झूठी कहानी से
भी अधिक अविश्वसनीय थी और यह बात थी व्यवस्थापक के चेहरे और तौर-तरीकों में
परिवर्तन.
चाहे कितना ही वह अपनी टोपी का बत्तख
जैसा किनारा अपने चेहरे पर खींचता रहे, जिससे चेहरे पर छाया पड़ती रहे, या लैम्प की
रोशनी से अपने आप को बचाने की कोशिश करता रहे – मगर वित्तीय डाइरेक्टर को उसके चेहरे
के दाहिने हिस्से में नाक के पास बड़ा-सा नीला दाग दिख ही गया. इसके अलावा हमेशा
लाल दिखाई देने वाला व्यवस्थापक एकदम सफ़ेद पड़ गया था और न जाने क्यों इस उमस भरी
रात में उसकी गर्दन पर एक पुराना धारियों वाला स्कार्फ लिपटा था. साथ ही
सिसकारियाँ भरने और चटखारे लेने जैसी घृणित आदतें भी वह अपनी अनुपस्थिति के दौरान
सीख गया था; उसकी आवाज़ भी बदल गई थी, पहले से भारी और भर्राई हुई, आँखों में चोरी
और भय का अजीब मिश्रण मौजूद था – निश्चय ही इवान सावेल्येविच वारेनूखा बदल गया
था.
कुछ और भी बात थी, जो वित्तीय
डाइरेक्टर को परेशान कर रही थी. वह क्या बात थी यह अपना सुलगता दिमाग लड़ाने और
लगातार वारेनूखा की ओर देखने के बाद भी वह नहीं समझ सका. वह सिर्फ यही समझ सका कि
यह कुछ ऐसी अनदेखी, अप्राकृतिक बात थी, जो व्यवस्थापक को जानी-पहचानी जादुई कुर्सी
से जोड़ती थी.
“तो उस पर आख़िरकार काबू पा लिया, और उसे गाड़ी
में डाल दिया,”
वारेनूखा की भिनभिनाहट जारी थी. वह अख़बार की ओट से देख रहा था और अपनी हथेली से
नीला निशान छिपा रहा था.
रीम्स्की ने अपना हाथ बढ़ाया और
यंत्रवत् उँगलियों को टेबुल पर नचाते हुए विद्युत घण्टी का बटन दबा दिया. उसका दिल
धक् से रह गया. उस खाली इमारत में घण्टी की तेज़ आवाज़ सुनाई देनी चाहिए थी, मगर ऐसा
नहीं हुआ. घण्टी का बटन निर्जीव-सा टेबुल में धँसता चला गया. बटन निर्जीव था और
घण्टी बिगाड़ दी गई थी.
वित्तीय डाइरेक्टर की चालाकी वारेनूखा
से छिप न सकी. उसने आँखों से आग बरसाते हुए लरज़कर पूछा, “घण्टी क्यों बजा रहे हो?”
“यूँ ही बज गई,” दबी आवाज़ में वित्तीय डाइरेक्टर ने
जवाब दिया और वहाँ से अपना हाथ हटाते हुए मरियल आवाज़ में पूछ लिया, “तुम्हारे चेहरे पर यह क्या है?”
“कार फिसल गई, दरवाज़े के हैंडिल से टकरा गया,” वारेनूखा ने आँखें चुराते हुए कहा.
“झूठ! झूठ बोल रहा है!” अपने ख़यालों में वित्तीय डाइरेक्टर
बोला और उसकी आँखें फटी रह गईं, और वह कुर्सी की पीठ से चिपक गया.
कुर्सी के पीछे, फर्श पर एक-दूसरे से
उलझी दो परछाइयाँ पड़ी थीं – एक काली और मोटी, दूसरी पतली और भूरी. कुर्सी की पीठ, और उसकी
नुकीली टाँगों की परछाई साफ-साफ दिखाई दे रही थी, मगर पीठ के ऊपर वारेनूखा के सिर
की परछाई नहीं थी. ठीक उसी तरह जैसे कुर्सी की टाँगों के नीचे व्यवस्थापक के पैर
नहीं थे.
“उसकी परछाईं नहीं पड़ती!” रीम्स्की अपने ख़यालों में मग्न
बदहवासी से चिल्ला पड़ा. उसका बदन काँपने लगा.
वारेनूखा ने कनखियों से देखा, रीम्स्की
की बदहवासी और कुर्सी के पीछे पड़ी उसकी नज़र देखकर वह समझ गया कि उसकी पोल खुल चुकी
है.
वारेनूखा कुर्सी से उठा, वित्तीय
डाइरेक्टर ने भी यही किया, और हाथों में ब्रीफकेस कसकर पकड़े हुए मेज़ से एक कदम दूर
हटा.
“पाजी ने पहचान लिया! हमेशा से ज़हीन रहा है,” गुस्से से दाँत भींचते हुए वित्तीय
डाइरेक्टर के ठीक मुँह के पास वारेनूखा बड़बड़ाया और अचानक कुर्सी से कूदकर अंग्रेज़ी
ताले की चाबी घुमा दी. वित्तीय डाइरेक्टर ने बेबसी से देखा, वह बगीचे की ओर खुलती
हुई खिड़की के निकट सरका. चाँद की रोशनी में नहाई इस खिड़की से सटा एक नग्न लड़की का
चेहरा और हाथ उसे दिखाई दिया. लड़की खिड़की की निचली सिटकनी खोलने की कोशिश कर रही थी.
ऊपरी सिटकनी खुल चुकी थी.
रीम्स्की को महसूस हुआ कि टेबुल लैम्प
की रोशनी मद्धिम होती जा रही है और टेबुल झुक रहा है. रीम्स्की को माने बर्फीली
लहर ने दबोच लिया. उसने ख़ुद को सम्भाले रखा ताकि वह गिर न पड़े. बची हुई ताकत से वह चिल्लाने के
बजाय फुसफुसाहट के स्वर में बोला, “बचाओ...”
वारेनूखा दरवाज़े की निगरानी करते हुए
उसके सामने कूद रहा था, हवा में देर तक झूल रहा था. टेढ़ी-मेढ़ी उँगलियों से वह
रीम्स्की की तरफ इशारे कर रहा था, फुफकार रहा था, खिड़की में खड़ी लड़की को आँख मार
रहा था.
लड़की ने झट से अपना लाल बालों वाला सिर
रोशनदान में घुसा दिया और जितना सम्भव हो सका, अपने हाथ को लम्बा बनाकर खिड़की की
निचली चौखट को खुरचने लगी. उसका हाथ रबड़ की तरह लम्बा होता गया और उस पर मुर्दनी
हरापन छा गया. आख़िर हरी मुर्दनी उँगलियों ने सिटकनी का ऊपरी सिरा पकड़कर घुमा दिया,
खिड़की खुलने लगी. रीम्स्की बड़ी कमज़ोरी से चीखा, दीवार से टिककर उसने ब्रीफकेस को
अपने सामने ढाल की भाँति पकड़ लिया. वह समझ गया कि सामने मौत खड़ी है.
खिड़की पूरी तरह खुल गई, मगर कमरे में रात की
ताज़ी हवा और लिण्डन के वृक्षों की ख़ुशबू के स्थान पर तहख़ाने की बदबू घुस गई.
मुर्दा औरत खिड़की की सिल पर चढ़ गई. रीम्स्की ने उसके सड़ते हुए वक्ष को साफ देखा.
इसी समय मुर्गे की अकस्मात् खुशगवार
बाँग बगीचे से तैरती हुए आई. यह चाँदमारी वाली गैलरी के पीछे वाली उस निचली इमारत
से आई थी, जहाँ कार्यक्रमों के लिए पाले गए पंछी रखे थे. कलगी वाला मुर्गा चिल्लाया
यह सन्देश देते हुए कि मॉस्को में पूरब से उजाला आने वाला है.
लड़की के चेहरे पर गुस्सा छा गया, वह
गुर्राई और वारेनूखा चीखते हुए, दरवाज़े के पास हवा से फर्श पर आ गया.
मुर्गे ने फिर बाँग दी; लड़की ने अपने
होंठ काटे और उसके लाल बाल खड़े हो गए. मुर्गे की तीसरी बाँग के साथ ही वह मुड़ी और
उड़कर गायब हो गई. उसके पीछे-पीछे वारेनूखा भी कूदकर और हवा में समतल होकर, उड़ते
हुए क्यूपिड के समान, हवा में तैरते हुए धीरे-धीरे टेबुल के ऊपर से खिड़की से बाहर
निकल गया.
एक नज़र रीम्स्की के चरित्र पर डालें:
रीम्स्की बहुत अकलमन्द था. उसकी निरीक्षण
शक्ति ग़ज़ब की थी; वह बेहद संवेदनशील था...बुल्गाकोव तो यहाँ तक कहते हैं कि उसकी
संवेदनशीलता की विश्व के सर्वोतम सेस्मोग्राफ से तुलना की जा सकती है...उसे दरवाज़े
के नीचे से कमरे में प्रवेश करती सड़ानयुक्त गंध का अनुभव हो रहा था; वह खिड़की से
भीतर प्रवेश करने की कोशिश करती हुई नग्न महिला के सड़े हुए वक्ष को देख सकता था;
उसे यह भी महसूस हो रहा था कि वह औरत भी सड़ानयुक्त गंध में लिपटी हुई है; उसने इस
बात को भाँप लिया था कि कुर्सी में बैठे हुए वारेनूखा की परछाईं फर्श पर नहीं पड़
रही है और वह इस निष्कर्ष पर पहुँच चुका था कि यह वारेनूखा नहीं बल्कि कोई
प्रेतात्मा है जो आधी रात के समय केवल स्त्योपा के दुःसाहस के किस्से सुनाने ही
नहीं आया है, उसके दिमाग में ज़रूर कोई ख़तरनाक ख़याल है!
मैं फिर से दुहराऊँगी कि बुल्गाकोव एक बार
फिर हमें मानो किसी 3D फिल्म में ले गए
हैं, जहाँ हम सिर्फ पढ़ते ही नहीं हैं; केवल कल्पना ही नहीं करते हैं, बल्कि रीम्स्की
के कमरे में हो रहे हर कार्यकलाप में भाग लेते हैं:
हम रीम्स्की के साथ-साथ एक जासूस की तरह
विश्लेषण करते हैं कि वारेनूखा इतनी देर से, चोरों की तरह रीम्स्की के कमरे में
क्यों घुसा जबकि वह यह सोच रहा था कि रीम्स्की घर जा चुका है? वह स्त्योपा
लिखोदेयेव के बारे में झूठ पर झूठ क्यों बोले जा रहा था; वह टेबल लैम्प की छाँव से
बाहर क्यों नहीं आ रहा था; वह रीम्स्की से अपना चेहरा क्यों छुपा रहा था; उसे
चटखारे लेने और सिसकारियाँ भरने की गन्दी आदत कैसे पड़ गई थी; उसके गाल पर चोट का
निशान कैसे आ गया था?
हम रीम्स्की के भीतर के मानसिक तनाव को,
उसके भीतर हो रही उथल-पुथल को महसूस करते
हैं; हम महसूस करते हैं कि अपनी जान पर मंडलाते खतरे का अनुभव करते हुए उसके
मस्तिष्क की नसें बस फटने ही वाली हैं; और हम राहत की साँस लेते हैं जब मुर्गा
बाँग देता है और प्रेतात्माएं हवा में बिखर जाती हैं, घुल जाती हैं.
बुल्गाकोव ने इस उपन्यास ने कई बार कहा है
कि पूरब से उजाला मॉस्को में आ रहा था...क्या ऐसा आभास नहीं होता कि पूरबी प्रज्ञा
के बारे में उनकी कोई विशिष्ठ राय थी?
संक्षेप में यह एक अद्भुत अध्याय है, साँस
रोके पढ़ता रहता है पाठक; अध्याय पूरा किए बिना उपन्यास छोड़ ही नहीं सकता!
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