अध्याय
17
परेशानी भरा दिन
आपको याद होगा कि
वेरायटी में काले जादू के ‘शो’ के बाद सैकड़ों निर्वस्त्र महिलाएँ सादोवाया स्ट्रीट
पर दौड़ती नज़र आई थीं – उनके कपड़े तो उन्होंने फागोत की फर्म को दे दिए थे और स्वयँ
फर्म द्वारा दिए गए आधुनिक फैशन के कपड़े पहन लिए थे;
रीम्स्की की
वारेनूखा से मुठभेड़ हो गई थी जो हरी आँखों वाली नग्न महिला के साथ मिलकर उसे मारने
की कोशिश कर रहा था – वह मुर्गे की बदौलत ही बच पाया था!
चलिए, देखते हैं
कि उन करेंसी नोटों का क्या हुआ जो हॉल में तैरते हुए आए थे और जिन्हें पब्लिक ने
लपक लिया था.
जैसा कि पोस्टर्स
में लिखा गया था, काले जादू का ‘शो’ दो दिनों तक होने वाला था, इसलिए वेरायटी के
बाहर टिकट के लिए लम्बी लम्बी दो कतारें खड़ी थीं.
शुक्रवार का दिन
था.
जैसा कि हम जानते
हैं, वेरायटी के सारे अधिकारी ग़ायब हो गए थे...रीम्स्की, स्त्योपा लिखोदेयेव, वारेनूखा;
और जो इकलौता अफ़सर वहाँ उपस्थित था वह था रोकड़िया वासिली स्तेपानोविच लास्तोच्किन.
वेरायटी के अन्दर परेशानी
बढ़ती ही जा रही थी, लोग लगातार फोन करके पूछ रहे थे कि अधिकारी कहाँ हैं. रीम्स्की
की पत्नी रोते-रोते तीर की तरह घुसी और विनती करने लगी कि उसके पति को ढूँढ़ निकाला
जाए...
कोई अविश्वसनीय-सी
चीज़ हो गई थी...पुलिस ने इस लफ़ड़े वाले ‘शो’ के बारे में पूछताछ आरम्भ कर दी...
जादूगर कौन था?
कहाँ से आया था? उसका नाम क्या था? कोई नहीं जानता था. जब किसीने कहा कि उसका नाम
वोलान्द या फोलान्द था, तो विदेशियों के ब्यूरो में पूछताछ की गई. उन्हें किसी
वोलान्द या फिर फोलान्द के बारे में कोई जानकारी नहीं थी;
पोस्टर्स थे? थे
तो सही, मगर रातों-रात उन पर नए पोस्टर्स चिपका दिए गए थे और अब दफ़्तर में एक भी
पोस्टर उपलब्ध नहीं था;
इस ‘शो’ की इजाज़त
किसने दी थी? जादूगर को अग्रिम राशि किसने दी थी? इस लेन-देन से सम्बन्धित कागज़ात
कहाँ हैं? कुछ भी उपलब्ध नहीं था.
पत्रवाहक लड़के
कार्पोव ने बताया कि जादूगर शायद स्त्योपा के फ्लैट में रुका था, वे वहाँ भी गए:
स्त्योपा तो पहले ही गायब हो चुका था; उसकी नौकरानी ग्रून्या भी ग़ायब हो गई थी; और
तो और हाऊसिंग सोसायटी के प्रमुख गायब हो गए थे; सेक्रेटरी भी ग़ायब हो गया था.
एक खोजी कुत्ते को
रीम्स्की के कमरे में ले जाया गया...वह गुर्राने लगा, खिड़की पर चढ़ गया, वहशियाना ढंग
से चिल्लाते हुए खिड़की से बाहर कूदने की कोशिश करने लगा...फिर वह टैक्सी स्टैण्ड की
ओर भागा और वहाँ जाकर उसकी जाँच का सिरा टूट गया...
वेरायटी के गेट पर
एक बड़ा-सा नोटिस लगा दिया गया कि कुछ दिनों तक कोई ‘शो’ नहीं होगा...भीड़
अप्रसन्नता से बिखर गई; फिर उन्होंने वासिली स्तेपानोविच को कल के ‘शो’ से
प्राप्त 21,711 रुबल्स मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर में जमा करने के लिए कहा.
वासिली
स्तेपानोविच ने उन नोटों को बैग में रखा और हिदायतों को ध्यान में रखते हुए टैक्सी
से जाने का निश्चय किया. जैसे ही वहाँ खड़ी तीन टैक्सियों के चालकों ने हाथ में
फूली हुई बैग लिए टैक्सी स्टैण्ड की ओर लपककर आते हुए मुसाफिर को देखा, तीनों के
तीनों न जाने क्यों उसकी ओर गुस्से से देखते हुए अपनी गाड़ियों के साथ वहाँ से
रफूचक्कर हो गए. एक टैक्सी ड्राइवर ने, जो कहीं से आ रही थी, मुसाफिर से गुस्से से
पूछा कि उसके पास छुट्टे पैसे हैं या नहीं और जब वासिली स्तेपानोविच ने उसे 2-3
रुबल्स के नोट दिखाए तब कहीं जाकर वासिली स्तेपानोविच टैक्सी में बैठ सका.
“क्या चिल्लर नहीं है?” रोकड़िए ने नर्मी से
पूछा.
“पूरी जेब भरी है चिल्लर से!” चालक दहाड़ा और
सामने के नन्हे-से आईने में उसकी खून बरसाती आँखें दिखाई दीं, - “ये तीसरा हादसा
हुआ आज मेरे साथ. औरों के साथ भी ऐसा ही हुआ. किसी एक सूअर के बच्चे ने दस का नोट
दिया और मैंने उसे चिल्लर थमाई – साढ़े चार रूबल्स...उतर गया, बदमाश! पाँच मिनट बाद
देखता क्या हूँ कि दस के नोट के बदले है, नरज़ान की बोतल का लेबल!” ड्राइवर ने कुछ
न छापने योग्य शब्द कहे. दूसरी बार हुआ ज़ुब्बास्का के पास. दस का नोट! तीन रूबल्स
की चिल्लर वापस की. चला गया! मैंने अपनी जेब में हाथ डाला, वहाँ एक बरैया ने मेरी उँगली
में काट लिया! और दस का नोट नहीं है! ओ...ह!” चालक ने फिर कुछ न छापने योग्य
गालियाँ दीं, “कल इस वेरायटी में (असभ्य शब्द) किसी एक गिरगिट के बच्चे ने दस के
नोटों का करिश्मा दिखाया था (असभ्य गाली).”
रोकडिए को मानो
साँप सूँघ गया. उसने ऐसा ज़ाहिर किया मानो ‘वेरायटी’ शब्द पहली बार सुन रहा हो, और
सोचने लगा, ‘तो यह बात है, भुगतो...’
तो यह हश्र हुआ उन
नोटों का जिनकी बरसात वेरायटी में हुई थी.
जब वासिली
स्तेपानोविच मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर में पहुँचा तो देखा कि वहाँ भगदड़ मची हुई थी.
मनोरंजन कमिटी के
प्रमुख की सेक्रेटरी बिसूर रही थी; एक बड़ी लिखने की मेज़ के पीछे एक खाली सूट
कुर्सी में बैठकर सूखी कलम से लगातार लिखे जा रहा था. कॉलर के ऊपर किसी की न तो
गर्दन थी, न ही सिर; आस्तीनों से कलाइयाँ भी नहीं दिखाई दे रही थीं..
सेक्रेटरी ने उसे
बताया:
“ज़रा
सोचिए, मैं बैठी हूँ,” परेशान अन्ना रिचार्दोव्ना रोकड़िए की बाँह पकड़कर सुनाने
लगी, “और कमरे में घुसा बिल्ला, काला, हट्टा-कट्टा मानो बिल्ला नहीं हिप्पोपोटॆमस हो.
मैंने उसे ‘शुक-शुक!’ कहा, वह बाहर भाग गया, फिर कमरे में घुसा बिल्ले जैसे मुँह
वाला एक मोटा आदमी और बोला, “तो, मैडम, आप मेहमानों से ‘शुक-शुक!’ कहती हैं? वह
बेशरम सीधा प्रोखोर पेत्रोविच के कमरे में घुसने लगा. मैं चिल्ला रही थी: ”क्या
पागल हो गए हो?” और वह दुष्ट सीधा कमरे में घुसकर प्रोखोर पेत्रोविच के सामने वाली
कुर्सी पर बैठ गया. और वह...सहृदय आदमी है, मगर जल्दी घबरा जाता है, भड़क उठा! मैं
बहस नहीं करूँगा. भेड़िए की तरह काम करने वाला, कुछ जल्दी परेशान होने वाला, भड़क
उठा: “आप ऐसे कैसे बिना सूचना दिए अन्दर घुस आए?” और वह ढीठ आदमी बेशरमी से मुस्कुराते
हुए कुर्सी पर जम गया और बोला, “मैं आपसे काम के बारे में बात करने आया हूँ.”
प्रोखोर पेत्रोविच ने गुस्से से कहा, “मैं व्यस्त हूँ!” और सोचो, वह बोला, “आप ज़रा
भी व्यस्त नहीं हैं...” हाँ? अब प्रोखोर पेत्रोविच आपे से बाहर हो गया और चीखा,
“ये क्या मुसीबत है? इसे यहाँ से ले जाओ, काश मुझे शैतान उठा लेता!” और वह बोला,
“शैतान उठा ले? यह तो हो सकता है!” और झन् से हुआ, मैं चीख भी न सकी, देखती क्या
हूँ: वह नहीं है...वह...बिल्ले से चेहरे वाला...और यह...सूट यहाँ बैठा
है...हे-हे-हे!!!”
अन्ना
रिचार्दोव्ना के होठ, दाँत सब गड्डमड्ड हो गए और वह भें...S...S...S--- करके रोने लगी.
वासिली
स्तेपानोविच इस दफ़्तर से बाहर भागा और मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर की शाखा में गया जो
वहाँ से कुछ ही दूर स्थित थी.
वहाँ भी, पूरी तरह
बदहवासी छाई थी...
लोग गाये जा रहे
थे...बिना रुके...अपनी इच्छा के विरुद्ध...मगर एक अनुशासनबद्ध, सूत्रबद्ध तरीके
से, मानो कोई उनका निर्देशन कर रहा हो. और रोकड़िए को पता चला कि ऐसा क्यों हो रहा
है:
“माफ़ करना, मैडम,” वासिली स्तेपानोविच अचानक
लड़की से पूछ बैठा, “आपके पास काला बिल्ला तो नहीं आया?”
“कैसा बिल्ला? कहाँ का बिल्ला?” गुस्से में लड़की
चीखी, “गधा बैठा है हमारे ऑफिस में, गधा!” और उसने आगे पुश्ती जोड़ी, “सुनता है तो
सुने! मैं सब कुछ बता दूँगी” – और उसने वास्तव में सब कुछ बता दिया.
बात यह थी कि शहर की इस मनोरंजन शाखा
के प्रमुख को, जिसने सब कुछ गुड़-गोबर कर दिया था (लड़की के शब्दों में), शौक
चर्राया अलग-अलग मनोरंजन कार्यक्रम सम्बन्धी गुट बनाने का.
“प्रशासन की आँखों में धूल झोंकी!” लड़की दहाड़ी.
इस साल के दौरान उसने लेरमेन्तोव का
अध्ययन करने के लिए, शतरंज, तलवार, पिंग-पांग और घुड़सवारी सीखने के लिए गुट बनाए.
गर्मियों के आते-आते नौकाचलन और पर्वतारोहण के लिए भी गुट बनाने की धमकी दे
दी.
“और आज, दोपहर की छुट्टी के समय वह अन्दर आया,
और अपने साथ किसी घामड़ को हाथ पकड़कर लाया,” लड़की बताती रही, “न जाने वह कहाँ से आया था – चौख़ाने की पतलून पहने, टूटा चश्मा
लगाए, और...थोबड़ा ऐसा जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता!”
और इस आगंतुक का, लड़की के अनुसार, सभी
भोजन कर रहे कर्मचारियों से यह कहकर परिचय कराया गया कि वह कोरस आयोजन करने की कला
का विशेषज्ञ है.
संभावित पर्वतारोहियों के चेहरे उदास हो
गए, मगर प्रमुख ने तत्क्षण सभी को दिलासा दिया. इस दौरान वह विशेषज्ञ मज़ाक करता
रहा, फ़िकरे कसता रहा और कसम खाकर विश्वास दिलाता रहा कि समूहगान में समय काफ़ी कम
लगता है और उसके फ़ायदे अनगिनत हैं.
लड़की के अनुसार पहले उछले फानोव और
कोसार्चुक, इस दफ़्तर के सबसे बड़े चमचे, यह कहकर कि वे पहले नाम लिखवा रहे हैं. अब
बाकी लोग समझ गए कि इस ग्रुप को रोकना मुश्किल है, लिहाज़ा सभी ने अपने-अपने नाम
लिखवा दिए. यह तय किया गया कि गाने की प्रैक्टिस दोपहर के भोजन की छुट्टी के समय
की जाएगी, क्योंकि बाकी का सारा समय लेरमेन्तोव और तलवारों को समर्पित था. प्रमुख
ने यह दिखाने के लिए कि उसे भी स्वर ज्ञान है, गाना शुरू किया और आगे सब कुछ मानो
सपने में हुआ. चौखाने वाला समूहगान विशेषज्ञ दहाड़ा:
“सा-रे-ग-म!” गाने से बचने के लिए अलमारियों के
पीछे छिपे लोगों को खींच-खींचकर बाहर निकाला. कोसार्चुक से उसने कहा कि उसकी सुर
की समझ बड़ी गहरी है; दाँत दिखाते हुए सबको बूढ़े संगीतज्ञ का आदर करने के लिए कहा,
फिर उँगलियों पर ट्यूनिंग फोर्क से खट्-खट् करते हुए वायलिन वादक से ‘सुन्दर सागर’ बजाने के लिए कहा.
वायलिन झंकार कर उठा. सभी बाजे बजने
लगे...खूबसूरती से. चौख़ाने वाला सचमुच अपनी कला में माहिर था. पहला पद पूरा हुआ.
तब वह विशेषज्ञ एक मिनट के लिए क्षमा माँगकर जो गया...तो गायब हो गया. सबने सोचा
कि वह सचमुच एक मिनट बाद वापस आएगा. मगर वह दस मिनट बाद भी वापस नहीं लौटा. सब खुश
हो गए, यह सोचकर कि वह भाग गया.
और अचानक सबने दूसरा पद भी गाना शुरू
कर दिया. कोसार्चुक सबका नेतृत्व कर रहा था, जिसको ज़रा भी स्वर ज्ञान नहीं था मगर
जिसकी आवाज़ बड़ी ऊँची थी. सब गाते रहे. विशेषज्ञ का पता नहीं था! सब अपनी-अपनी जगह
चले गए, मगर कोई भी बैठ नहीं सका, क्योंकि सभी अपनी इच्छा के विपरीत गाते ही रहे.
रुकना हो ही नहीं पा रहा था! तीन मिनट चुप रहते, फिर गाने लगते! चुप रहते – गाने लगते! तब समझ गए कि गड़बड़ हो गई
है. दफ़्तर का प्रमुख शर्म के मारे मुँह छिपाकर अपने कमरे में छिप गया.
डॉक्टर
ने सबको दवा दी और कुछ देर बाद सभी गायकों को स्त्राविन्स्की के क्लिनिक ले जाया
गया.
बुल्गाकोव ने
स्पष्ट लिखा है कि मनोरंजन कमिटी के दफ़्तर में क्या क्या होता है.
ज़ाहिर है, यह सब
हंगामा उस काले जादू वाले ‘शो’ के एक अन्य पात्र ने फागोत ने खड़ा किया था.
आधे घण्टे बाद पूरी तरह मतिहीन रोकड़िया
मनोरंजन दफ़्तर की वित्तीय शाखा में पहुँचा, इस उम्मीद से कि वह सरकारी रकम से
छुट्टी पा जाएगा.
पिछले अनुभव से कुछ सीखकर काफी सतर्कता
बरतते हुए उसने सावधानी से उस लम्बे हॉल में झाँका, जहाँ सुनहरे अक्षर जड़े धुँधले
शीशों के पीछे कर्मचारी बैठे थे. यहाँ रोकड़िए को किसी उत्तेजना या गड़बड़ के लक्षण
नहीं दिखाई दिए. एक अनुशासित ऑफिस जैसा ही वातावरण था.
वासिली स्तेपानोविच ने उस खिड़की में
सिर घुसाया जिस पर लिखा था ‘धनराशि जमा करें’, और वहाँ बैठे अपरिचित कर्मचारी का अभिवादन करके उससे पैसे जमा करने
वाला फॉर्म माँगा.
“आपको क्यों चाहिए?” खिड़की वाले कर्मचारी ने पूछा.
रोकड़िया परेशान हो गया.
“मुझे रकम जमा करनी है. मैं वेराइटी से आया हूँ.”
“एक मिनट,” कर्मचारी ने जवाब दिया और फौरन जाली से खिड़की
में बना छेद बन्द कर दिया.
“आश्चर्य है!” रोकड़िए ने सोचा. उसका आश्चर्य-चकित
होना स्वाभाविक ही था. ज़िन्दगी में पहली बार उसका ऐसी परिस्थिति से सामना हुआ था.
सबको मालूम है कि पैसे प्राप्त करना कितना मुश्किल है : हज़ार मुसीबतें आ सकती हैं.
आखिरकार जाली खुल गई. और रोकड़िया फिर
खिड़की से मुखातिब हुआ.
“क्या आपके पास बहुत पैसा है?” कर्मचारी ने पूछा.
“इक्कीस हज़ार सात सौ ग्यारह रूबल.”
“ओहो!” कर्मचारी ने न जाने क्यों व्यंग्यपूर्वक कहा
और रोकड़िए की ओर हरा फॉर्म बढ़ा दिया.
रोकड़िया इस फॉर्म से भली-भाँति परिचित
था. उसने शीघ्र ही उसे भर दिया और बैग में रखे पैकेट की डोरी खोलने लगा. जब उसने
पैकेट खोल दिया तो उसकी आँखों के सामने पूरा कमरा घूमने लगा, उसकी तबियत ख़राब हो
गई. वह दर्द से बड़बड़ाने लगा.
उसकी आँखों के सामने विदेशी नोट
फड़फड़ाने लगे, इनमें थे: कैनेडियन डॉलर्स, ब्रिटिश पौंड, हॉलैण्ड के गुल्देन,
लात्विया के लाट, एस्तोनिया के क्रोन...
“यह
वही है, वेराइटी के शैतानों में से एक” – गूँगे हो गए रोकड़िए के सिर पर भारी-भरकम आवाज़
गरजी. और वासिली स्तेपानोविच को उसी क्षण गिरफ़्तार कर लिया गया.
आप सोच रहे होंगे
कि वासिली स्तेपानोविच का अपराध क्या था? उसे क्यों गिरफ़्तार किया गया? इसलिए कि
वह अधिकारियों को काले जादू के बारे में रिपोर्ट जो पेश करने वाला था...
वेरायटी का अंतिम
अफसर भी गायब हो जाता है!