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रविवार, 17 नवंबर 2024

Theatrical Novel - 07

 

 

 

अध्याय – 7 


ऐसी अजीब परिस्थितियों में सबसे ज़्यादा अक्लमंदी का काम होता यह सब भूल जाना और रुदल्फी के बारे में सोचना बंद किया जाए, और उसके साथ पत्रिका के अंक के गायब होने के बारे भी न सोचा जाए. मैंने ऐसा ही किया.

मगर इससे मुझे आगे जीने की क्रूर ज़रुरत से राहत नहीं मिली. मैंने अपनी पिछली ज़िंदगी पर नज़र डाली.

‘तो,’ मार्च के बर्फानी तूफानों में, केरोसिन लैम्प के पास बैठकर, मैंने अपने आप से कहा,  - ‘मैं इन जगहों पर जा चुका हूँ.

पहली दुनिया : यूनिवर्सिटी की प्रयोगशाला, जिसमें मुझे फ्यूम हुड’ तथा “ट्रायपोड्स पर रखी कुप्पियों की याद है. ये दुनिया मैंने गृहयुद्ध के दौरान छोड़ दी थी. इस बात पर बहस नहीं करेंगे कि मैंने परिणामों का विचार किये बिना ये काम किया. अविश्वसनीय साहसिक कारनामों के बाद (हाँलाकि, वैसे, अविश्वसनीय क्यों? – आखिर गृहयुद्ध के दौरान किसने अविश्वसनीय कारनामों का सामना नहीं किया था?), संक्षेप में, इसके बाद मैं “शिपिंग कंपनी” में पहुँच गया. किस वजह से? छुपाऊँगा नहीं. मैं मन में लेखक बनने का सपना संजोये था. तो, इससे क्या? मैंने ‘शिपिंग कंपनी’ की दुनिया भी छोड़ दी. और, वाकई में, जिस दुनिया में जाने का मैं प्रयत्न कर रहा था, वह दुनिया मेरे सामने खुल गई, और वहाँ ऐसी घटना हुई कि वह मुझे फ़ौरन असहनीय लगने लगी. जैसे पैरिस की कल्पना करते  ही मेरे भीतर सिहरन दौड़ जाती है और मैं दरवाज़े के भीतर नहीं घुस सकता. और ये शैतान वसीली पित्रोविच! तित्यूषी में बैठा रहता! और इस्माईल अलेक्सान्द्रविच चाहे कितना ही प्रतिभावान क्यों न हो, पैरिस में सब कुछ बहुत घिनौना है. तो, इसका मतलब, मैं किसी शून्य में रह गया हूँ? बिल्कुल ठीक.

तो फिर क्या, जब तूने ये काम हाथ में ले ही लिया है तो, बैठ और दूसरे उपन्यास की रचना कर ले, और पार्टियों में नहीं भी जा सकता है. बात पार्टियों की नहीं है, बल्कि असल बात तो ये है, कि मैं वाकई में नहीं जानता था कि ये दूसरा उपन्यास किस बारे में होना चाहिए? मानवता को क्या दिखाना है? यही तो सारी समस्या है.

वैसे, उपन्यास के बारे में. सच का सामना करें. उसे किसीने नहीं पढ़ा था. पढ़ भी नहीं सकता था, क्योंकि ज़ाहिर है, किताब को वितरित करने से पूर्व ही रुदल्फी गायब हो गया था. और मेरे दोस्त ने भी, जिसे मैंने एक प्रति भेंट में दी थी, उसने भी नहीं पढ़ा था. यकीन दिलाता हूँ.

हाँ, वैसे: मुझे यकीन है, कि इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद कई लोग मुझे बुद्धिजीवी और न्यूरोटिक (विक्षिप्त) कहेंगे. पहले के बारे में तो बहस नहीं करूंगा, मगर दूसरे के बारे में पूरी संजीदगी से आगाह करता हूँ, कि ये झूठ है. मुझमें तो न्यूरेस्थेनिया (विक्षिप्तता) का लेशमात्र भी नहीं है. और वैसे, इस शब्द को इधर-उधर फेंकने से पहले, सही तरह से यह जानना होगा, कि न्यूरेस्थेनिया आखिर है क्या, और इस्माईल अलेक्सान्द्रविच की कहानियाँ सुनना होगा. मगर ये एक अलग बात है. सबसे पहले तो ज़िंदा रहना ज़रूरी था, और इसके लिए पैसे कमाना था.

तो, मार्च की बकवास बंद करके, मैं काम पर गया. यहाँ तो ज़िंदगी जैसे मुझे गर्दन से पकड़कर पथभ्रष्ठ बेटे की तरह वापस ‘शिपिंग कंपनी में ले आई. मैंने सेक्रेटरी से कहा, कि मैंने उपन्यास लिखा है. इसका उस पर कोई असर नहीं हुआ. संक्षेप में, मैं इस बात पर राजी हो गया, कि हर महीने चार लेख लिखूंगा. इसके लिए मुझे नियमानुसार मेहनताना प्राप्त होगा. इस तरह, कुछ आर्थिक आधार का जुगाड़ तो हो गया. प्लान ये था कि जितनी जल्दी हो सके, इन लेखों का बोझ कन्धों से उतार दूँ और रातों को फिर से लिखूं.

पहला भाग तो मैंने पूरा कर लिया, मगर दूसरे भाग के साथ शैतान जाने क्या हुआ. सबसे पहले मैं किताबों की दुकानों में गया और आधुनिक लेखकों की रचनाएं खरीदीं. मैं जानना चाहता था, कि वे किस बारे में लिखते हैं, इस कला का जादुई रहस्य क्या है.

क़िताबें खरीदते समय मैंने पैसे की फ़िक्र नहीं की, बाज़ार में उपलब्ध सबसे बढ़िया चीज़ें खरीदता रहा. सबसे पहले मैंने इस्माईल अलेक्सान्द्रविच की रचनाएं, अगाप्योनव की किताब, लिसासेकव के दो उपन्यास, फ़्लविआन फिआल्कोव के दो कथा संग्रह और भी बहुत कुछ खरीदा.

सबसे पहले, बेशक, मैं इस्माईल अलेक्सान्द्रविच की ओर लपका. जैसे ही मैंने आवरण पर नज़र डाली, एक अप्रिय भावना मुझे कुरेदने लगी. किताब का शीर्षक था “ पैरिस के अंश”. आरंभ से अंत तक वे सभी मुझे जाने-पहचाने लगे. मैंने नासपीटे कन्द्यूकोव को पहचाना, जिसने ऑटोमोबाईल प्रदर्शनी में उल्टी कर दी थी, और उन दोनों को भी, जो शान-ज़िलीज़ पर हाथा-पाई कर बैठे थे (एक था, शायद, पमाद्किन, दूसरा – शिर्स्त्यानिकव), और उस बदमाश को भी जिसने ‘ग्रांड ओपेरा में अभद्र रूप से मुट्ठी दिखाई थी. इस्माईल अलेक्सान्द्रविच असाधारण प्रतिभा से लिखता था, उसकी तारीफ़ करनी ही चाहिए, और उसने पैरिस के बारे में मेरे मन में एक भय की भावना पैदा कर दी.

अगाप्योनव ने, लगता है, अपना कथा-संग्रह – ‘त्योतुशेन्स्काया गमाज़ा’ - पार्टी के फ़ौरन बाद प्रकाशित कर दिया. यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था, कि वसीली पित्रोविच कहीं भी रात बिताने का इंतज़ाम नहीं कर पाया था, वह अगाप्योनव के यहाँ रात गुजारता था, जिसे खुद को ‘बेघर देवर’ की कहानियों का इस्तेमाल करना पडा. सब कुछ समझ में आ रहा था, सिवाय पूरी तरह आगामी शब्द ‘गमाज़ा के.

मैंने दो बार लिसासेकव के उपन्यास ‘हंस को पढ़ना शुरू किया, दो बार पैंतालीसवें पृष्ठ तक पढ़ा गया और फिर से शुरू से पढ़ने लगा, क्योंकि भूल गया कि आरंभ में क्या था. इससे मैं सचमुच घबरा गया। मेरे दिमाग़ में कुछ गड़बड़ हो रही थी – या तो मैं गंभीर बातें समझना भूल गया था या अभी तक उन्हें समझ नहीं पाया था. और मैंने लिसासेकव को हटा कर फ़्लाविआन को पढ़ना शुरू किया और लिकास्पास्तव को भी, और इस अंतिम लेखक ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया. खासकर, उस कहानी को पढ़ते हुए, जिसमें किसी विशिष्ट पत्रकार का वर्णन किया गया था ( कहानी का शीर्षक था ‘ऑर्डर पर किराएदार), मैंने फटे हुए सोफे को पहचान लिया, जिसके भीतर से स्प्रिंग बाहर उछल आई थी, मेज़ पर सोख्ता...मतलब, कहानी में वर्णन किया था...मेरा!

पतलून भी वही, कन्धों के बीच खींचा हुआ सिर और भेडिये जैसी आंखें...मतलब, एक लब्ज़ में, मैं ही था! मगर, हर उस चीज़ की, जो मुझे ज़िंदगी में प्रिय थी, कसम खाकर कहता हूँ, कि मेरा वर्णन ईमानदारी से नहीं किया गया था. मैं बिल्कुल भी चालाक नहीं हूँ, लालची नहीं हूँ, शरारती नहीं हूँ, झूठा नहीं हूँ, पदलोलुप नहीं हूँ, और ऐसी बकवास, जैसी इस कहानी में है, मैंने कभी भी नहीं की!

लिकास्पास्तव की कहानी को पढ़कर मुझे अवर्णनीय दुःख हुआ. और मैंने खुद को निष्पक्ष भाव से और कठोरता से देखने का निर्णय कर लिया, और इस निर्णय के लिए मैं लिकास्पास्तव का अत्यंत आभारी हूँ.

मगर मेरे दुःख और अपनी अपरिपूर्णता के बारे में मेरे विचारों का मूल्य, खासकर, कुछ भी नहीं था, उस भयानक आत्मज्ञान के मुकाबले में, कि मैं सर्वश्रेष्ठ लेखकों की पुस्तकों से कुछ भी हासिल नहीं कर पाया था, कोई रास्ता, जैसा कहते हैं, नहीं खोज पाया, अपने सामने कोई रोशनी नहीं देख पाया, और मैं हर चीज़ से बेज़ार हो गया. और एक घृणित विचार किसी कीड़े की तरह मेरे दिल को कुरेदने लगा, कि मैं कभी भी लेखक नहीं बन पाऊंगा. और तभी एक और भयानक विचार से टकराया, कि ...तो फिर लिकास्पास्तव जैसे लेखक कैसे बनते हैं? हिम्मत करके कुछ और भी कहूंगा: और अचानक वैसे, जैसा अगाप्योनव है? गमाज़ा? गमाज़ा क्या है? और काफ़िर किसलिए? ये सब बकवास है, आपको यकीन दिलाता हूँ!    

निबंधों से परे मैंने बहुत सारा समय अलग-अलग तरह की किताबें पढ़ते हुए, सोफे पर बिताया, जिन्हें जैसे-जैसे मैं खरीदता गया, लंगडी किताबों की शेल्फ में और मेज़ पर और बस कोने में रखता गया. मेरी अपनी रचना के साथ मैंने ऐसा किया कि बची हुई नौ प्रतियों और पांडुलिपि को मेज़ की दराजों में रख दिया, उन्हें चाभी से बंद कर दिया और फैसला कर लिया कि ज़िंदगी में उनकी ओर कभी नहीं लौटूंगा.

एक बार बर्फानी बवंडर ने मुझे जगा दिया. मार्च तूफ़ानी था और चिंघाड़ रहा था, हांलाकि समाप्त होने को था, और फिर से, जैसे तब, मैं आंसुओं तर जाग गया! कैसी कमजोरी, आह, कैसी कमजोरी है! और फिर से वे ही लोग, और फिर से दूरस्थ शहर, और पियानो का किनारा, और गोलीबारी, और फिर से कोई बर्फ़ में गिरा हुआ.

ये लोग सपनों में पैदा होते, सपनों से बाहर आते और मेरी कोठरी में बस जाते. ज़ाहिर था कि उनसे इस तरह अलग होना संभव नहीं था. मगर उनके साथ किया क्या जाए?

शुरू में तो मैं सिर्फ बातें करता रहा, मगर फिर भी उपन्यास तो मुझे दराज़ से बाहर निकालना ही पडा, अब मुझे शाम को ऐसा प्रतीत होने लगा, कि सफ़ेद पृष्ठ से कोई रंगीन चीज़ उभर रही है. गौर से देखने पर, आंखें सिकोड़ कर देखने पर, मुझे यकीन हो गया की यह एक चित्र है. और ऊपर से ये चित्र समतल नहीं है, बल्कि तीन आयामों वाला है. जैसे कोई डिब्बा हो, और उसमें पंक्तियों के बीच से दिखाई दे रहा है: रोशनी जल रही है और उसमें वे ही आकृतियाँ घूम रही हैं जिनका उपन्यास में वर्णन किया गया है. आह, ये कितना दिलचस्प खेल था, और मैं कई बार पछताया कि बिल्ली अब इस दुनिया में नहीं है और यह दिखाने के लिए कोई नहीं था कि छोटे से कमरे में पृष्ठ पर लोग कैसे घूम रहे हैं. मुझे यकीन है कि जानवर अपना पंजा निकाल कर पृष्ठ को खरोंचने लगता. मैं कल्पना कर सकता हूँ, कि बिल्ली की आंख में कैसी जिज्ञासा चमक रही होगी, कैसे उसका पंजा अक्षरों को खरोंच रहा होगा!

समय के साथ किताब वाला कमरा आवाज़ करने लगा. मैंने स्पष्ट रूप से पियानो की आवाज़ सुनी. सही है, कि अगर मैं किसी से इस बारे में कहता, तो यकीन कीजिये, मुझे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी जाती. कहते, कि फर्श के नीचे पियानो बजा रहे हैं, और ये भी कहते, संभव है, कि निश्चित रूप से बजा रहे हैं. मगर मैं इन शब्दों पर ध्यान नहीं देता. नहीं, नहीं! मेरी मेज़ पर पियानो बजा रहे हैं, यहाँ कुंजियों की शांत झंकार हो रही है. मगर ये तो कम ही है. जब घर शांत हो जाएगा और नीचे कुछ भी नहीं बजा रहे होंगे, मैं सुनूंगा, कि कैसे बवंडर के बीच से व्याकुल और डरावना हार्मोनियम चिघाड रहा है, और क्रोधित और दयनीय आवाजें हार्मोनियम के साथ मिलकर कराह रही हैं, कराह रही हैं. ओह, नहीं, ये फर्श के नीचे नहीं है. कमरा बुझ क्यों रहा है, पन्नों पर द्नेप्र के ऊपर वाली शीत ऋतु की शाम क्यों छा रही है, घोड़ों के थोबड़े, और उनके ऊपर टोपियाँ पहने लोगों के चेहरे. और मैं देखता हूँ तेज़ तलवारें, और सुनता हूँ, आत्मा को चीरती हुई सीटी. ये, हांफते हुए एक छोटा-सा आदमी भाग रहा है. तम्बाकू के धुएँ के बीच मैं उसका पीछा करता हूँ, मैं अपनी आंखों पर ज़ोर डालता हूँ और देखता हूँ: आदमी के पीछे एक चमक हुई, गोली चली, वह हांफते हुए पीठ के बल गिर जाता है, जैसे किसी तेज़ चाकू से उसके दिल पर सामने से वार किया गया हो. वह निश्चल पडा है, और सिर से काला पोखर फ़ैल जाता है. और ऊंचाई पर चाँद है, और दूर पर बस्ती की उदास, लाल रोशनियों की श्रृंखला.

पूरी ज़िंदगी ये खेल खेला जा सकता था, पन्ने की तरफ देखते हुए...मगर इन आकृतियों को कैसे पक्का करके रखेंगे? इस तरह, कि वे कहीं और न भाग जाएं?

और एक रात को मैंने इस जादुई डिब्बे का वर्णन करने का निश्चय कर लिया. कैसे करूँ उसका वर्णन?

बिल्कुल आसान है. जो देखते हो, वही लिखो, और जो नहीं देखते, उसका वर्णन करने की ज़रुरत नहीं है. यहाँ: चित्र रोशन होता है, चित्र चमकता है. क्या वह मुझे अच्छा लगता है? बेहद. तो, मैं लिखता हूँ: पहला चित्र. मैं देखा रहा हूँ शाम का मंज़र, लैम्प जल रहा है. पियानो पर नोट्स खुले पड़े हैं. ‘फ़ाऊस्ट बजा रहे हैं. अचानक ‘फ़ाउस्ट खामोश हो जाता है, मगर गिटार बजने लगता है. कौन बजा रहा है? वो हाथ में गिटार लिए दरवाज़े से बाहर निकलता है. सुन रहा हूँ – वह गुनगुना रहा है. लिखता हूँ – गुनगुना रहा है.

हाँ, लगता है की यह एक आकर्षक खेल है! पार्टियों में जाने की ज़रुरत नहीं है, न ही थियेटर में जाने की कोई ज़रुरत है.

तीन रातें मैंने पहली तस्वीर से खेलते हुए बिताईं, और इस रात के अंत में मैं समझ गया की मैं नाटक लिख रहा हूँ.

अप्रैल के महीने में, जब आँगन से बर्फ गायब हो चुकी थी, पहला अंक तैयार हो गया था. मेरे नायक हलचल कर रहे थे, घूम रहे थे, और बातें कर रहे थे.

अप्रैल के अंत में ईल्चिन  का पत्र आया.

और अब, जब पाठक को उपन्यास का इतिहास ज्ञात है, मैं अपना कथन वहां से जारी रख सकता हूँ, जब मैं ईल्चिन  से मिला था.