अध्याय 23
शैतान का नृत्योत्सव
इससे
पहले कि नृत्योत्सव
की तैयारियाँ आरम्भ होतीं, अज़ाज़ेलो वोलान्द को सूचित करता है कि फ्लैट में दो
अजनबी आए हैं: एक सुन्दरी है जो यह विनती कर रही है कि उसे उसकी मालकिन के पास
रहने दिया जाए और उसके साथ है एक मोटा सूअर. यह नताशा थी जो निकोलाय इवानोविच पर
सवार होकर आई थी. नताशा को मार्गारीटा के पास रहने की इजाज़त दे दी जाती है और
निकोलाय इवानोविच को रसोईघर में भेज दिया जाता है, क्योंकि उसे तो
नृत्योत्सव में प्रवेश नहीं मिल सकता.
वोलान्द मार्गारीटा को सलाह देता है कि वह
ज़रा भी झिझके नहीं और किसी भी चीज़ से डरे नहीं; पानी के सिवा और कुछ न पिए; नृत्योत्सव
की मेज़बान बनने के लिए वह पहले ही मार्गारीटा को धन्यवाद देता है.
और जब वोलान्द कहता है कि ‘समय हो गया’,
तो कोरोव्येव प्रकट होता है और मार्गारीटा उसके साथ चल पड़ती है.
यह अध्याय पाठकों को जैसे परी-लोक में ले
चलता है. बुल्गाकोव द्वारा किया गया नृत्योत्सव का वर्णन अप्रतिम है. बुल्गाकोव के
इस जादुई वर्णन को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, बेहतर होगा कि बुल्गाकोव
के ही शब्दों का सहारा लिया जाए!
मोटे तौर से इस अध्याय को चार हिस्सों में
बाँटा जा सकता है:
नृत्योत्सव के लिए
मार्गारीटा की तैयारी;
विभिन्न हॉलों का
वर्णन;
मेहमानों का वर्णन;
शैतान की दुनिया से
वास्तविकता का मिलन.
आइए, पहले देखें कि मार्गारीटा को
नृत्योत्सव के लिए किस प्रकार तैयार किया गया: मार्गारीटा को कुछ भी याद नहीं
रहता. उसे तो नताशा, हैला और बेगेमोत इस समारोह के लिए तैयार कर रहे थे.
“मार्गारीटा ने कुछ धुँधला-धुँधला महसूस किया.
उसे मोमबत्तियों और हीरे-जवाहिरातों का टब याद रहे. जब मार्गारीटा टब में उतरी तो
हैला और उसकी मदद करती नताशा ने किसी गर्म, गाढ़े और लाल द्रव से उसे नहलाया.
मार्गारीटा ने नमकीन स्वाद होठों पर महसूस किया और वह समझ गई कि उसे खून से नहलाया
जा रहा है. इस रक्तिम स्नान के बाद जो द्रव उस पर डाला गया था, वह था – गाढ़ा, पारदर्शी, गुलाबी. इस गुलाब के
तेल से मार्गारीटा की सिर घूमने लगा. फिर उसे एक क्रिस्टल के कोच पर लिटाकर उसका
बदन किन्हीं बड़ी-बड़ी, हरी-हरी पत्तियों से तब तक घिसा गया, जब तक वह चमक न उठा. अब
बिल्ला भी घुस आया और मदद करने लगा. वह मार्गारीटा के पैरों के निकट बैठ गया और
उसके पंजे इस तरह मलने लगा जैसे सड़क पर बैठकर जूते साफ कर रहा हो. मार्गारीटा को
याद नहीं कि उसके पैरों को गुलाब की पंखुड़ियों के जूते किसने पहनाएँ और इन जूतों
में खुद-ब-खुद सुनहरी लेस कहाँ से लग गई. किसी शक्ति ने मार्गारीटा को खींचा और
आईने के सामने खड़ा कर दिया. उसके बालों में हीरे जड़ित शाही मुकुट चमक उठा. न जाने
कहाँ से कोरोव्येव भी आ गया और उसने मार्गारीटा के सीने पर एक अण्डाकार फ्रेम में
जड़ी, भारी चेन से लटकी, काले घुँघराले बालों वाले कुत्ते की आकृति पहना दी. इस
आभूषण ने महारानी पर काफी बोझ डाला. चेन उसकी गर्दन में गड़ने लगी और कुत्ते की
आकृति ने उसे आगे झुकने पर मजबूर कर दिया. मगर इस चेन के कारण जो असुविधा उसे हो
रही थी, उसका पुरस्कार भी मार्गारीटा को शीघ्र ही मिल गया. यह पुरस्कार था – वह सम्मान जो अब उसे कोरोव्येव और
बेगेमोत दे रहे थे.”
इसके
बाद मार्गारीटा को नृत्योत्सव के लिए कुछ टिप्स दिए जाते हैं:
“महारानी, आपको अंतिम सलाह देने की
इजाज़त दें.
हमारे
मेहमानों में अनेक प्रकार के लोग होंगे, और, एक-दूसरे से बिल्कुल अलग, मगर किसी के
भी बारे में महारानी मार्गो, कोई पूर्वाग्रह न रखें! यदि आपको कोई पसन्द न
आए...मैं समझ सकता हूँ, तो भी, ज़ाहिर है, आप इसे अपने चेहरे पर प्रकट नहीं होने
देंगी...नहीं, नहीं, इस बारे में सोचना भी मना है! वह फौरन, उसी क्षण, ताड़ जाएगा.
उसे प्यार करना होगा, प्यार करना होगा, महारानी. नृत्योत्सव की मेज़बान को इसका सौ
गुना पुरस्कार मिलेगा! और हाँ – किसी को भी छोड़िए मत. कम से कम एक मुस्कान, अगर बात करने का समय न
हो तो, कम से कम सिर का एक हल्का-सा इशारा. जो भी सम्भव है, मगर किसी की भी
उपेक्षा न करें. वर्ना वह संतप्त हो जाएँगे...”
फिर मार्गारीटा नृत्योत्सव वाले हॉल की ओर चल
पड़ी. ज़रा देखिए, कैसा अद्भुत वर्णन है!
“... मार्गारीटा स्नानगृह से निकलकर पूरे
अँधेरे में कोरोव्येव और बेगेमोत के साथ आई.
“मैं, मैं,”
बिल्ला फुसफुसाया, “मैं
इशारा करूँगा!”
“करो!” अँधेरे में कोरोव्येव ने जवाब दिया.
“नृत्योत्सव!” बिल्ले की तीखी चीख सुनाई दी, और
मार्गारीटा ने फौरन चीखकर कुछ क्षणों के लिए अपनी आँखें बन्द कर लीं. नृत्योत्सव
उस पर मानो प्रकाश-पुंज लेकर बरसा, और साथ में लाया शोर और खुशबू. कोरोव्येव का
हाथ पकड़कर चलती हुई मार्गारीटा ने अपने आपको एक उष्णकटिबन्धीय जंगल में पाया. लाल
गर्दन वाले, हरी पूँछ वाले तोते वृक्षलताओं से चिपके थे, उन पर कूद रहे थे और
चीख-चीखकर कह रहे थे: “मैं
ख़ुश हूँ!” मगर जंगल जल्दी ही समाप्त हो गया.
उसकी नम दमघोंटू हवा का स्थान ले लिया शीतल नृत्योत्सव के हॉल ने, जिसमें पीले,
चमकीले स्तम्भों की कतार थी. यह हॉल भी, जंगल की ही भाँति खाली था, बस सिर्फ
स्तम्भों के पास बुत बने, निर्वस्त्र नीग्रो, सिर पर चाँदी की पट्टियाँ बाँधे खड़े
थे. जैसे ही वहाँ मार्गारीटा ने अपनी मण्डली के साथ प्रवेश किया जिसमें न जाने
कहाँ से अज़ाज़ेलो भी आकर मिल गया था, उनके चेहरे उत्तेजना से मटमैले भूरे हो गए. अब
कोरोव्येव ने मार्गारीटा का हाथ छोड़ दिया और बुदबुदाया: “सीधे त्युल्पान की ओर.”
सफ़ेद त्युल्पानों की एक नीची दीवार मार्गारीटा
के सामने प्रकट हो गई, उसके पीछे थीं छोटे-छोटे शेड्स में अनेक बत्तियाँ और इनके
पीछे से फ्रॉक पहने मेहमानों के सफ़ेद सीने और काले कन्धे. तब मार्गारीटा समझ गई कि
नृत्योत्सव में आवाज़ें कहाँ से आ रही थीं. उस पर बरसात हुई तुरही के स्वर की, और
उससे हटकर अलग से प्रकट हुआ वायलिन का स्वर उसके बदन पर ऐसे लहराने लगा जैसे
धमनियों में दौड़ता हुआ खून. क़रीब डेढ़ सौ लोगों का ऑर्केस्ट्रा ‘पोलोनेझ’ धुन बजा रहा था.”
अगले हॉल में स्तम्भों की कतार नहीं था. उसके
बदले में थीं, एक तरफ लाल, गुलाबी, दूधिया-सफ़ेद रंगों के गुलाबों की दीवारें और
दूसरी ओर थी दुहरी पत्तियों वाले कामेलिया की जापानी दीवार. इन दीवारों के मध्य की
जगह पर थे छनछनाहट करते हल्के फ़व्वारे; और शैम्पेन के बुलबुले तीन तालाबों में उड़
रहे थे; जिनमें एक थी –
पारदर्शी बैंगनी, दूसरी – माणिक (लाल) और तीसरी – बिलौरी. इनके पास आ-जा रहे थे सिर पर लाल पट्टी कसे नीग्रो जो चाँदी
के मग्स से इन तालाबों से शैम्पेन निकाल-निकालकर चपटे प्यालों में भर रहे थे.
गुलाब की दीवार में एक खाली जगह थी, जहाँ से लाल, पंछी की पूँछ जैसा फ्रॉक पहने एक
आदमी दिखाई दे रहा था. उसके सामने अविरत शोर था – जॉज़ संगीत का. जैसे ही इस संचालक ने मार्गारीटा को देखा, वह उसके
सम्मुख इतना झुका, कि उसके हाथ फर्श को छूने लगे. फिर वह सीधा खड़ा हो गया और तेज़
आवाज़ में चीखा, “अल्लीलुइया!”
“... अंत में वे उस चौक तक आए, जहाँ मार्गारीटा
के अन्दाज़ के मुताबिक वह अँधेरे में लैम्प उठाए कोरोव्येव से मिली थी. अब इस चौक
में रोशनी के कारण आँखें चकाचौंध हो रही थीं, जो अँगूर के आकार के झुम्बरों से
छन-छनकर आ रही थी. मार्गारीटा को वहीं ठहराया गया और उसके दाहिने हाथ के नीचे एक
नीचा जम्बुमणि का स्तम्भ प्रकट हो गया.
“यदि बहुत परेशानी हो जाए, तो इस पर हाथ
रख सकती हैं,” कोरोव्येव फुसफुसाया.
किसी एक काले आदमी ने मार्गारीटा के पैरों के
निकट एक तकिया सरकाया, जिस पर सोने के तारों से घुँघराले बालों वाले कुत्ते की
तस्वीर कढ़ी थी. इस पर उसने किन्हीं हाथों की सहायता से घुटना मोड़कर अपना दाहिना
पैर रख दिया.”
फिर मेहमानों का आगमन होता है. देखिए वे कैसे
और कहाँ से आते हैं:
“... तभी
नीचे विशाल भट्ठी से किसी चीज़ की आवाज़ आई. उसमें से एक वध-स्तम्भ उछलकर निकला, जिस
पर आधा सड़ा एक कंकाल बेतहाशा झूल रहा था. वह कंकाल रस्सी से छूटकर नीचे गिर गया,
ज़मीन से टकराया और उसमें से फ्रॉक-कोट पहने, काले बालों वाला सुन्दर युवक चमकीले
जूते पहने उछलकर बाहर आया. भट्ठी में से आधा सड़ा ताबूत बाहर आया. उसका ढक्कन खुल
गया और उसमें से एक और मानव अवशेष निकला. सुन्दर नौजवान बड़ी मर्दानगी से उसकी ओर
उछला और उसकी ओर अपनी बाँह मोड़कर बढ़ा दी. दूसरा अवशेष एक निर्वस्त्र चुलबुली महिला
में बदल गया. उसने काले जूते पहन रखे थे. उसके सिर पर काले पर खोंसे हुए थे. तब
दोनों, पुरुष और स्त्री, ऊपर सीढ़ी की ओर लपके.”
मार्गारीटा अज़ाज़ेलो और कोरोव्येव के साथ खड़ी
मुस्कुरा रही थी और कह रही थी कि वह उनके आगमन से प्रसन्न है.
ये मेहमान कौन थे? ये सब अपने ज़माने की
विख्यात/कुख्यात हस्तियाँ थीं. इनमें प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे, खूनी थे, कीमियाई थे,
वेश्यालयों के मालिक थे...
मेहमानों में बुल्गाकोव ने अपने समय के कुछ
लोगों को भी शामिल कर लिया: पार्टी के दो सदस्य जिन्होंने एक दूसरे को रास्ते से
हटा दिया था; उनके नाटक ‘ज़ोया का फ्लैट’ से भी एक पात्र इनमें था.
मेहमानों में से एक चेहरा मार्गारीटा के दिमाग
में रह गया.
यह फ्रीडा थी.
“...वह नृत्योत्सवों की दीवानी है, मगर
हमेशा अपने रूमाल के बारे में शिकायत करने की बात सोचती रहती है.”
मार्गारीटा ने नज़र से उस औरत को ढूँढ़ लिया,
जिसकी ओर कोरोव्येव ने इशारा किया था. यह एक बीस वर्षीय अद्वितीय सुन्दरी थी. उसकी
आँखें काफी बेचैन और परेशान लग रही थीं
“कैसा रूमाल?” मार्गारीटा ने पूछा.
“उसके लिए एक नौकरानी रखी गई है,” कोरोव्येव ने स्पष्ट किया, “और वह पिछले तीस साल से उसकी नन्ही-सी
मेज़ पर रात को छोटा-सा रूमाल रख देती है. जैसे ही सुबह वह उठती है, रूमाल वहाँ
देखती है. उसने उसे चूल्हे में डाला, नदी में फेंक दिया, मगर उससे कुछ भी फायदा
नहीं हुआ.”
“कैसा रूमाल?” मार्गारीटा ने फुसफुसाकर हाथ ऊपर
उठाते और नीचे गिराते हुए कहा.
“नीली किनारी वाला रूमाल. बात यह है कि
जब वह रेस्त्राँ में काम करती थी, मालिक ने उसे नीचे गोदाम में बुलाया, और नौ
महीने बाद उसने एक बालक को जन्म दिया. उसे जंगल में ले गई और उसके मुँह में रूमाल
ठूँस दिया. फिर बालक को ज़मीन में गाड़ दिया. अदालत में उसने बताया कि उसके पास
बच्चे को पिलाने के लिए कुछ भी नहीं था.”
नीली किनारी वाला रूमाल रूसी किसान को
प्रदर्शित करता है और फ्रीडा वाली घटना उस शोषण की ओर इंगित करती है जिसकी शिकार
क्रांतिपूर्व रूस में महिलाएँ हुआ करती थीं.
नृत्योत्सव के अंत में वोलान्द का आगमन होता है.
उसका प्रवेश भी काफ़ी नाट्यपूर्ण है. यहीं वास्तविकता का शैतान की दुनिया से मिलन
होता है, सामंत माइकेल के भाग्य का निर्णय होता है और बेर्लिओज़ पूरी तरह से लुप्त
हो जाता है. चलिए, देखते हैं:
“...कोरोव्येव के साथ वह फिर नृत्य वाले हॉल
में आई, जहाँ मेहमान अब नृत्य नहीं कर रहे थे, बल्कि स्तम्भों के बीच-बीच में खड़े
थे. हॉल का मध्य भाग खाली छोड़ा गया था.
मार्गारीटा को याद नहीं कि उसे इस खाली भाग में
प्रकट हुए मंच पर चढ़ने में किसने मदद की. जब वह ऊपर चढ़ी तो दूर कहीं आधी रात के
घण्टे बजे, जो उसके हिसाब से कब की ख़त्म हो चुकी थी. आख़िरी घण्टे की गूँज के साथ
मेहमानों की भीड़ पर सन्नाटा छा गया.
तब मार्गारीटा ने फिर से वोलान्द को देखा. वह
अबादोना, अज़ाज़ेलो और अबादोना जैसे दिखने वाले कुछ काले नौजवानों के साथ चला आ रहा
था.
अब मार्गारीटा ने देखा कि उसके लिए बनाए गए
स्टेज के सामने ही एक और स्टेज था वोलान्द के लिए. मगर वह उस पर नहीं चढ़ा.
मार्गारीटा को इस बात से भी आश्चर्य हुआ कि वोलान्द नृत्योत्सव के इस अंतिम महान
चरण में वैसे ही आया था, जैसे वह अपने शयन-कक्ष में था. उसके कन्धों से वही गन्दा
धब्बेदार कुर्ता झूल रहा था, पैरों में वही मुड़े-तुड़े जूते थे. वोलान्द के हाथ में
थी खुली हुई तलवार, मगर इस तलवार का उपयोग वह चलते समय सहारा देने वाली छड़ी के रूप
में कर रहा था. लँगड़ाते हुए वोलान्द अपने लिए बनाए गए स्टेज के निकट रुका और फ़ौरन
अज़ाज़ेलो उसके सामने हाथों में प्लेट लिए आ खड़ा हुआ. इस प्लेट पर मार्गारीटा ने एक
आदमी का कटा हुआ सिर देखा, जिसके सामने के दाँत टूटे हुए थे. पूरी ख़ामोशी छाई रही
और उसे केवल एक बार एक अजीब-सी घण्टी की आवाज़ ने तोड़ा, जो प्रवेश-द्वार पर लगी
होती है.
“मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच,” वोलान्द हौले से सिर की तरफ मुख़ातिब
हुआ, और तब मरे हुए आदमी की पलकें ऊपर उठीं. काँपते हुए मार्गारीटा ने देखीं बेजान
चेहरे पर जीवित, सोच में डूबी, पीड़ा झेलती आँखें.
“सब वैसे ही हो गया, सच है न?” वोलान्द ने सिर की आँखों में झाँकते हुए आगे कहा, “सिर काटा औरत ने, मीटिंग हुई नहीं, और
मैं आपके फ्लैट में रह रहा हूँ. यह प्रमाण है और प्रमाण – दुनिया की सबसे ज़िद्दी चीज़ है. मगर अब
हमें भविष्य में दिलचस्पी है, न कि उस हादसे में जो घट चुका है. आप हमेशा ज़ोर-शोर
से इस सिद्धांत का प्रतिपादन करते रहे हैं, कि सिर कटने के बाद जीवन समाप्त हो
जाता है, वह राख बनकर अस्तित्वहीन हो जाता है. मुझे अपने सभी मेहमानों की उपस्थिति
में आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है, हालाँकि मेरे मेहमान किसी और ही सिद्धांत
के प्रमाण हैं, कि आपका सिद्धांत ठोस और बुद्धिमत्तापूर्ण है. मगर, जैसा कि
सर्वविदित है, सभी सिद्धांतों का एक-दूसरे की बदौलत ही अस्तित्व है. इनमें एक यह
है, कि हरेक को उसके विश्वास के अनुरूप ही फल मिलता है. हाँ, ऐसा ही होगा! आप
अस्तित्वहीन हो जाएँगे, और मुझे उस प्याले से – जिसमें आप परिवर्तित होने वाले हैं – अस्तित्व के लिए जाम पीकर खुशी होगी.”
वोलान्द ने तलवार उठाई. तभी सिर की पलकें बुझकर
काली हो गईं और सिकुड़ गईं, फिर टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गईं; आँखें गायब हो गईं और
जल्दी ही मार्गारीटा ने प्लेट में देखी पीली, पन्ने की आँखों और मोती के दाँतों
वाली, सोने के आधार पर रखी खोपड़ी. खोपड़ी का ढक्कन झटके से खुल गया.
“इसी क्षण, मालिक,” कोरोव्येव ने वोलान्द की प्रश्नार्थक
नज़र को ताड़ते हुए कहा, “वह
आपके सामने आएगा. मैं इस कब्र-सी ख़ामोशी में सुन रहा हूँ उसके चमकते जूतों की
चरमराहट और उस जाम की खनखनाहट, जो उसने आख़िरी बार मेज़ पर रखा था, अपने जीवन की
अंतिम शैम्पेन पीकर. लीजिए, वह आ गया.”
वोलान्द की तरफ बढ़ते हुए, उस हॉल में एक नया,
अकेला मेहमान आया. बाह्य रूप से वह अन्य पुरुष मेहमानों से भिन्न नहीं था, सिर्फ
एक बात को छोड़कर: मेहमान घबराहट के मारे लड़खड़ा रहा था, जो दूर से ही दिखाई दे रही
थी. उसके गाल जल रहे थे, आँखें घबराहट भरी चँचलता से इधर-उधर भाग रही थीं. मेहमान
स्तम्भित था, और यह स्वाभाविक ही था: उसे यहाँ की हर चीज़ आश्चर्यचकित किए दे रही
थी, ख़ासतौर से वोलान्द की वेशभूषा.
मगर मेहमान का स्वागत बड़ी ज़िन्दादिली से किया
गया.
“ओह, प्रिय सामंत मायकेल,” स्वागतपूर्ण मुस्कुराहट से वोलान्द
मेहमान से मुख़ातिब हुआ, जिसकी आँखें अब माथे तक चढ़ चुकी थीं, “आपका परिचय कराते हुए मुझे प्रसन्नता
हो रही है,” वोलान्द ने अब मेहमानों की ओर मुड़कर
कहा, “आदरणीय सामंत मायकेल, जो मनोरंजन समिति
में विदेशियों को राजधानी के दर्शनीय स्थलों से अवगत कराने का काम करते हैं.”
अब मार्गारीटा चौंक गई, क्योंकि उसने इस मायकेल
को पहचान लिया था. उसने उसे मॉस्को के थियेटरों और होटलों में कई बार देखा था. ‘शायद...’ मार्गारीटा ने सोचा, ‘यह भी मर चुका है?’ मगर तभी सारी बात स्पष्ट हो गई. “प्रिय सामंत,” वोलान्द ने खुशी से मुस्कुराते हुए अपनी बात जारी रखी, “इतने मुग्ध हो गए कि मॉस्को में मेरे
आगमन के बारे में जानकर उन्होंने मुझे फौरन टेलिफोन किया और अपनी सेवाओं के बारे
में मुझे बताया, यानी मॉस्को के दर्शनीय स्थलों की सैर कराने के बारे में. ज़ाहिर
है कि मुझे उन्हें अपने यहाँ आमंत्रित करके खुशी हुई है.”
इसी समय मार्गारीटा ने अज़ाज़ेलो को खोपड़ी वाली
प्लेट कोरोव्येव को देते हुए देखा.
“हाँ, तो सामंत महोदय,” अचानक निकटता दर्शाते हुए वोलान्द ने
अपनी आवाज़ नीची कर की और बोला, “आपकी असीम उत्सुकता के बारे में अफ़वाहें फैल रही हैं. सुना है कि
उत्सुकता और बातूनीपन लोगों का ध्यान आकर्षित करने लगे हैं. इसके अलावा दुष्ट ज़बानें
यह भी कहती सुनी गई हैं कि आप एजेण्ट और जासूस हैं. इसके साथ ही यह अन्दाज़ भी
लगाया जा रहा है कि इस सबके कारण महीने भर के अन्दर आपका दर्दनाक अंत हो जाएगा.
तो, आपको इस थकाने वाले इंतज़ार से बचाने के लिए हमने सोचा कि आपकी मदद की जाए.
आपने मेरे पास आकर मुझसे बातें करके कुछ देखने-सुनने की इच्छा प्रकट की थी, उसी
बात का हमने फायदा उठाया है.”
सामंत का चेहरा अबादोना से भी ज़्यादा पीला पड़
गया. फिर एक चौंकाने वाली बात हुई. अबादोना ने सामंत के सामने खड़े होकर एक क्षण के
लिए अपना चश्मा उतारा. इसी समय अज़ाज़ेलो के हाथ में कोई चीज़ चमकी, कुछ ताली-सी बजने
की आवाज़ आई और सामंत नीचे धरती पर गिरने लगा. उसके सीने से लाल खून का फव्वारा
निकलकर उसकी कलफ लगी कमीज़ और जैकेट को सराबोर करने लगा. कोरोव्येव ने इस उछलती हुए
धार के नीचे खोपड़ी वाला प्याला रखा और भर जाने के बाद उसे वोलान्द को पेश कर दिया.
अब तक सामंत का निर्जीव शरीर फर्श पर गिर पड़ा था.
“आपकी सेहत के लिए, दोस्तों,” धीरे से वोलान्द ने कहा और प्याला उठाकर उसे होठों तक ले गया.
तभी एक अद्भुत परिवर्तन हुआ. धब्बों वाली कमीज़
और मुड़े-तुड़े जूते गायब हो गए. वोलान्द एक काली पोशाक में दिखा, कमर में स्टील की
तलवार लटकाए. वह फौरन मार्गारीटा के पास आया और उसके पास प्याला लाते हुए
अधिकारपूर्ण स्वर में बोला, “पियो!”
मार्गारीटा का सिर घूम गया, वह लड़खड़ाने लगी,
मगर प्याला अब तक उसके होठों तक पहुँच चुका था, और कुछ आवाज़ें, किसकी – वह पहचान नहीं पाई, उसके दोनों कानों
में कह रही थीं: “डरिए मत, महारानी...डरिए मत, महारानी,
खून कब का ज़मीन में चला गया है. और वहाँ, जहाँ वह गिरा था, अंगूर की बेलें उग आई
हैं.”
मार्गारीटा ने आँखें खोले बिना एक घूँट पिया और
उसकी नस-नस में एक मीठी-सी लहर दौड़ गई, कानों में घण्टियाँ बजने लगीं. उसे लगा कि
कानों को बहरा कर देने वाले मुर्गे चिल्ला रहे हैं. कहीं दूर मार्च का संगीत बज
रहा है. मेहमानों के झुण्ड अपना आकार खोने लगे: फ्रॉक पहने मर्द और औरतें कंकालों
में परिवर्तित होकर बिखर गए, मार्गारीटा की आँखों के सामने उस कक्ष पर सड़न छाने
लगी जिस पर कब्र की-सी गन्ध फैल गई. स्तम्भ बिखर गए, रोशनियाँ बुझ गईं, सब कुछ
सिमटने लगा; न बचे झरने, न ही त्युल्पान और अन्य फूल. बचा सिर्फ उतना ही जितना
पहले था – जवाहिरे की बीवी का सीधा-सादा
ड्राइंगरूम, और उसके अधमुँदे दरवाज़े से बाहर झाँकती प्रकाश की एक पट्टी.
इसी अधखुले
दरवाज़े में प्रविष्ट हुई मार्गारीटा, वापस आ गई वास्तविकता में.
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