अध्याय – ४
मैं तलवार के
साथ
दरवाज़े पर खटखट हो रही थी. जोर से और बार-बार. मैंने रिवोल्वर को पतलून की
जेब में घुसा दिया और मरियल आवाज़ में चिल्लाया:
“अन्दर आ जाइए!”
दरवाज़ा खुल गया, और मैं डर के मारे फर्श पर जम गया. ये वो ही था, बिना किसी शको-शुबहे के. धुंधलके में मेरे ऊपर दबंग नाक और छितरी भौंहों
वाला एक चेहरा था. परछाईयाँ खेल रही थीं और मुझे ऐसा लगा कि चौकोर ठोढी के नीचे
काली दाढ़ी का नुकीला सिरा बाहर
निकल रहा था. टोपी बड़ी अदा से कान के ऊपर मुडी हुई थी. मगर पेन, वाकई में
नहीं था.
संक्षेप में कहूं तो, मेरे
सामने खडा था मेफिस्तोफेलस. अब मैंने देखा कि वह ओवरकोट और चमचमाते गहरे गलोशों
में था, और बगल में ब्रीफकेस दबाये है. “ये स्वाभाविक है,” मैंने
सोचा, “बीसवीं सदी में वह किसी और अवतार
में मॉस्को में घूम ही नहीं सकता.”
“रुदल्फी,” दुष्ट आत्मा ने ऊँची
आवाज़ में कहा, न कि भारी
आवाज़ में
वैसे, वह मुझे
अपना परिचय नहीं भी दे सकता था. मैं उसे पहचान गया था. मेरे कमरे में तत्कालीन
साहित्य जगत के सबसे मशहूर व्यक्तियों में से एक, इकलौती निजी पत्रिका, ‘रोदिना’
का सम्पादक-प्रकाशक – इल्या इवानविच रुदल्फी खडा था.
मैं फर्श से उठा.
“क्या बल्ब जला सकते हैं?” रुदल्फी
ने पूछा.
“अफसोस है, कि ऐसा
नहीं कर सकता,” मैंने
जवाब दिया, “क्योंकि बल्ब फ्यूज़ हो गया है, और दूसरा
मेरे पास नहीं है.”
सम्पादक का रूप धारण की हुई
दुष्टात्मा ने अपना एक आसान सा कारनामा किया – फ़ौरन ब्रीफकेस से बल्ब निकाला.
“क्या आप हमेशा अपने साथ बल्ब रखते
हैं?” मुझे आश्चर्य हुआ.
“नहीं,” आत्मा ने
गंभीरता से स्पष्ट किया, “सिर्फ
इत्तेफाक है, मैं अभी-अभी दूकान में गया था.”
जब कमरे में उजाला हो गया और रुदल्फी
ने ओवरकोट उतारा, तो मैंने चालाकी से रिवॉल्वर चुराने की स्वीकृति वाला ‘नोट’ मेंज़ से
हटा दिया, और आत्मा ने ऐसे दिखाया कि उसने
इस पर ध्यान नहीं दिया है.
बैठ गए. थोड़ी देर खामोश रहे.
“क्या आपने उपन्यास लिखा है?” आखिरकार
रुदल्फी ने कठोरता से पूछा.
“आप कैसे जानते हैं?”
“लिकास्पास्तव ने बताया.”
“देखिये,” मैंने
बोलना शुरू किया (लिकास्पास्तव वही अधेड उम्र वाला है), “वाकई में,
मैंने...मगर...संक्षेप में ये बुरा उपन्यास है.”
“तो,” आत्मा ने
कहा और गौर से मेरी और देखा. अब पता चला कि उसकी कोई दाढ़ी-वाढी नहीं थी. परछाइयां
मज़ाक कर रही थीं.
“दिखाइये,”
अधिकारपूर्ण स्वर में रुदल्फी ने कहा.
“किसी हाल में नहीं,” मैंने
जवाब दिया.
“दि-खा-इ-ये,” रुदल्फी
ने हिज्जों में कहा.
“उसे सेन्सर पास नहीं करेगा...”
“दिखाइये”
“वह, पता है, हाथ से
लिखा हुआ है, और मेरी लिखाई बहुत बुरी है, शब्द “ओ”
सिर्फ एक डंडी की तरह निकलता है, और...”
और मुझे खुद को ही पता नहीं चला कि
कैसे मेरे हाथों ने वह दराज़ खोली, जिसमें
बदनसीब उपन्यास पडा था.
“मैं हर तरह की लिखाई को छपे हुए
अक्षरों की तरह पढ़ लेता हूँ,” रुदल्फी ने स्पष्ट किया, “यह
व्यावसयिक है...” और नोट-बुक्स उसके हाथों में नज़र आईं.
एक घंटा बीता. मैं केरोसिन स्टोव्ह
के पास बैठा पानी गरम कर रहा था, और
रुदल्फी उपन्यास पढ़ रहा था. मेरे दिमाग में कई विचार घूम रहे थे. सबसे पहले मैं
रुदल्फी के बारे में सोच रहा था. ये बताना पडेगा कि रुदल्फी जाना-माना सम्पादक था
और उसकी पत्रिका में छपना प्रसन्नता और सम्मान की बात समझी जाती थी. मुझे इस बात
से खुशी होनी चाहिए थी कि सम्पादक मेरे यहाँ आया था, चाहे
मेफिस्तोफेलस के रूप में ही सही. मगर दूसरी तरफ, उपन्यास
उसे पसंद नहीं आ सकता था, और यह
अप्रिय बात होती...इसके अलावा, मैं महसूस
कर सकता था कि आत्महत्या, जो सबसे
दिलचस्प क्षण में बाधित हो गई थी, अब न हो
पायेगी, और इसके फलस्वरूप, मैं कल से फिर
गरीबी के गर्त में डूब जाऊंगा. इसके अलावा चाय पेश करनी थी, मगर मेरे
पास मक्खन नहीं था. मतलब, दिमाग में
बेहद गड़बड़ हो रही थी, जिसमें बेकार
ही में चुराई गई रिवॉल्वर भी शामिल हो गई थी.
इस बीच रुदल्फी एक के बाद एक पन्ने
जैसे निगलता जा रहा था, और मैं बेकार
ही यह जानने की कोशिश कर रहा था कि उपन्यास का उस पर क्या असर हो रहा है. रुदल्फी
का चेहरा भावहीन था.
जब वह चश्मे के कांच पोंछने के लिए
कुछ रुका, तो मैंने पहले ही कही हुई
बेवकूफियों में एक और जोड़ दी:
“और,
लिकास्पास्तव ने मेरे उपन्यास के बारे में क्या कहा?”
“उसने कहा, कि यह
उपन्यास बहुत बुरा है,” रुदल्फी ने
ठंडेपन से जवाब देकर पन्ना पलटा. (“ देखा, कैसा सूअर
है लिकास्पास्तव! अपने दोस्त की मदद करने के बदले वगैरह,
वगैरह.”)
रात के एक बजे हमने चाय पी, और दो
बजे रुदल्फी ने आख़िरी पन्ना पढ़ लिया.
मैं दीवान पर कसमसा रहा था.
“तो,” रुदाल्फी ने कहा.
कुछ देर खामोशी रही.
“टॉल्स्टॉय की नक़ल करते हैं,” रुदाल्फी
ने कहा.
मैं गुस्सा हो गया.
“कौन से वाले टॉल्स्टॉय की?” मैंने
पूछा. “वे बहुत सारे हैं,... क्या
अलेक्सेइ कन्स्तान्तीनविच, मशहूर लेखक की, प्योत्र
अन्द्रेयेविच की, जिसने
विदेश में राजकुमार अलेक्सेइ को पकड़ लिया था,
मुद्राशास्त्री इवान इवानविच की या ल्येव निकालाइच की?”
“आप कहाँ पढ़े हैं?”
यहाँ मुझे एक छोटा सा रहस्य खोलना
पडेगा. बात ये है, कि मैंने
विश्वविद्यालय में दो विषय किये थे और इस बात को छुपाया था.
“मैंने पैरिश
स्कूल (चर्च का स्कूल) पूरा किया है,” मैंने
खांस कर कहा.
“क्या बात है!” रुदल्फी ने कहा, और
हल्की मुस्कुराहट उसके होठों को छू गई. फिर उसने पूछा:
“आप हफ्ते में कितनी वार ‘शेव’ करते हैं?”
“सात बार”.
“बदतमीजी के लिए माफी चाहता हूँ,” रुदल्फी
ने अपनी बात जारी रखी, “और आपका
हेयर स्टाइल ऐसा रहे, इसके लिए
आप क्या करते हैं?”
“सिर पर ब्रिओलिन लगाता हूँ. मगर
मुझे पूछने की इजाज़त दीजिये कि यह सब किसलिए...”
“खुदा के लिए,” रुदल्फी
ने जवाब दिया, “मैंने
सिर्फ यूँ ही,” और आगे
बोला, “दिलचस्प बात है. इंसान ने पैरिश
स्कूल पूरा किया है, हर दिन शेव
करता है और केरोसिन लैम्प के पास फर्श पर सोता है. आप – मुश्किल इंसान हैं!” इसके
बाद उसने फौरन आवाज़ बदली और संजीदगी से कहने लगा: “आपका उपन्यास “ग्लावलिट्” ‘पास’ नहीं
करेगा, और इसे कोई भी प्रकाशित नहीं
करेगा. इसे न तो “ज़ोरी” में, और न ही “रास्स्वेत” में स्वीकार करेंगे.”
“मुझे मालूम है,” मैंने
दृढ़ता से कहा.
“मगर फिर भी मैं आपका उपन्यास ले
रहा हूँ,” रुदल्फी ने सख्ती से कहा (मेरे
दिल की धड़कन रुक गई), - “और आपको (अब उसने खतरनाक रूप से छोटी रकम बताई, भूल गया
कि वह क्या थी) प्रति पृष्ठ की दर से भुगतान करूंगा. कल इसे टाइपराइटर पर टाइप कर
दिया जाएगा.
“उसमें चार सौ पृष्ठ हैं!” मैं
भर्राई आवाज़ में चहका.
“मैं उसे कई हिस्सों में विभाजित
करूंगा,” खनखनाती आवाज़ में रुदल्फी बोल
रहा था, “और ब्यूरो में बारह टाइपिस्ट शाम
तक टाइप कर देंगे.”
अब मैंने विरोध करना छोड़ दिया और
रुदल्फी की आज्ञा मानने का फैसला कर लिया.
“पत्र व्यवहार आपके खर्चे पर,” रुदल्फी
कहता रहा, और मैंने सिर्फ सिर हिला दिया, किसी
मूर्ती की तरह, “ इसके
बाद तीन शब्द मिटाने पड़ेंगे – पृष्ठ क्रमांक एक, इकहत्तर
और तीन सौ दो पर.”
मैंने अपनी नोटबुक्स में झांका और
देखा, कि पहला शब्द था “क़यामत”, दूसरा – “स्वर्गदूत” और तीसरा – “शैतान”. मैंने चुपचाप उन्हें मिटा
दिया; सही में, मैं कहना
चाह रहा था कि हटाये गए शब्द बेहद मासूम हैं, मगर मैंने
रुदल्फी की और देखा और खामोश रहा.
“इसके बाद,” रुदल्फी
ने आगे कहा, “आप मेरे साथ ग्लावलिट् आयेंगे.
और मैं आपसे नम्रतापूर्वक विनती करता हूँ, कि आप
वहाँ एक भी शब्द नहीं बोलेंगे.”
फिर भी, मैं बुरा
मान ही गया.
“अगर आप को डर है कि मैं कुछ कह
बैठूंगा,” मैं आत्म सम्मान से बुदबुदाने
लगा, “तो मैं घर पे ही बैठ सकता
हूँ....”
रुदल्फी ने मेरे इस आक्रोश के
प्रयास पर कोई ध्यान नहीं दिया और आगे कहा:
“नहीं, आप घर में
नहीं बैठ सकते, बल्कि मेरे
साथ जायेंगे.”
“मैं वहाँ करूंगा क्या?”
“आप कुर्सी पर बैठे रहेंगे,” रुदल्फी
ने हुक्म दिया, “और उस
सबका जवाब, जो आपसे कहा जाएगा, विनम्र मुस्कान
से देंगे...”
“मगर...”
“और वार्तालाप करूंगा मैं!”
रुदल्फी ने अपनी बात ख़त्म की.
इसके बाद उसने कोरा कागज़ माँगा, उसके ऊपर
पेन्सिल से कुछ लिखा, जिसमें, जहाँ तक
मुझे याद है, कुछ पॉइंट्स (बिंदु) थे, खुद उस पर
हस्ताक्षर किये, मुझे भी
हस्ताक्षर करने पर मजबूर किया, इसके बाद जेब से दो करकराते नोट निकाले, मेरी
नोटबुक्स को अपनी ब्रीफकेस में रखा, और वह
कमरे से गायब हो गया.
मैं पूरी रात सो नहीं पाया, कमरे में
घूमता रहा, रोशनी में नोटों को देखता रहा, ठंडी चाय
पी और किताबों की दुकानों की शेल्फ्स की कल्पना करता रहा.
दूकान में बहुत सारे लोग आते रहे, मैगजीन का
अंक माँगते रहे. घर-घर में लोग लैम्पों के पास बैठकर किताब पढ़ते रहे, कुछ लोग तो
जोर से पढ़ रहे थे.