लोकप्रिय पोस्ट

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

Theatrical Novel - 03

 

अध्याय 3

मेरी आत्महत्या


“हाँ, ये खौफ़नाक है,” अपने कमरे में मैंने अपने आप से कहा, “सब कुछ खौफनाक है.”  

“वो सलाद, और वो नर्स, और अधेड़ साहित्यकार, और अविस्मरणीय “समझ ले”, और आम तौर से मेरी पूरी ज़िंदगी.

खिड़कियों के बाहर पतझड की हवा चिंघाड़ रही थी, फटी हुई लोहे की चादर गरज रही थी, शीशों पर बारिश की धाराएँ रेंग रही थी. नर्स और गिटार के साथ वाली शाम के बाद काफी घटनाएँ घटी थीं, मगर इतनी घिनौनी कि उनके बारे में लिखने की इच्छा नहीं है. सबसे पहले मैं उपन्यास को इस दृष्टिकोण से जाँचने में लग गया कि उसे ‘पास करेंगे या नहीं. और यह स्पष्ट हो गया कि ‘पास नहीं करेंगे. अधेड साहित्यकार बिल्कुल सही था. इस बारे में, जैसा मुझे महसूस हुआ, उपन्यास की हर पंक्ति चीखा-चीखकर कह रही थी.

उपन्यास को सुधारने के बाद मैंने बचे खुचे पैसे दो अंशों की नकल करवाने में खर्च कर दिए और उन्हें लेकर एक मोटी पत्रिका के सम्पादक के पास ले गया. दो सप्ताह बाद मुझे वे अंश वापस मिल गए. हस्तलिखित के कोने पर लिखा था : “उपयुक्त नहीं है”.


इस निर्णय को नाखून काटने वाली कैंची से काटकर मैं उन्हीं अंशों को दूसरी मोटी पत्रिका में ले गया और दो सप्ताह बाद वे मेरे पास उसी निर्णय के साथ लौट आए, “उपयुक्त नहीं है”.             

इसके बाद मेरी बिल्ली मर गई. उसने खाना बंद कर दिया, एक कोने में दुबकी रहती और मुझे बेज़ार करते हुए म्याँऊ-म्याँऊ करती रहती. चौथे दिन मैंने उसे कोने में करवट के बल निश्चल पडा पाया.

मैंने चौकीदार से फावड़ा लिया और उसे हमारी बिल्डिंग के पीछे खाली जगह में दफना दिया.

मैं धरती पर पूरी तरह अकेला रह गया, मगर, मानता हूँ , कि दिल की गहराई में कहीं खुश हो गया. अभागा प्राणी कितना बोझ था मेरे लिए. और फिर पतझड़ की बारिश शुरू हुई, मेरा कंधा और बायाँ घुटना दर्द करने लगा.

मगर सबसे बुरी बात यह नहीं थी, बल्कि वो थी, कि उपन्यास बुरा था. अगर  वह बुरा था, तो इसका मतलब यह हुआ कि मेरी ज़िंदगी ख़त्म हो रही है.

पूरी ज़िंदगी “शिपिंग कंपनी” में नौकरी करता रहूँ,  “आप मज़ाक कर रहे हैं.

हर रात मैं घुप अँधेरे में आंखें फाड़े लेटा रहता, और दुहराता रहता – “ये खौफनाक है”. अगर कोई मुझसे पूछता, कि “शिपिंग कंपनी” मे, गुजारे [cR1] हुए समय के बारे में कितना याद है, तो मैं सच्चे दिल से जवाब देता – कुछ भी नहीं. हैंगर के पास गंदे गलोश (रबड के ऊपरी जूते – अनु.) और हैंगर पर किसी की सबसे लम्बे कानों वाली गीली टोपी – बस इतना ही.

“ये खौफनाक है!” कानों में भिनभिनाती रात की खामोशी को सुनते हुए मैंने दुहराया.  

करीब दो सप्ताह बाद अनिद्रा ने अपना असर दिखाना शुरू किया.

मैं ट्राम से समातेच्नाया-सदोवाया स्ट्रीट के लिए निकल पडा, जहां एक बिल्डिंग में, जिसका नंबर मैंने अति गुप्त रखा है, एक आदमी रहता था, जिसे अपने काम के सिलसिले में हथियार रखने का अधिकार प्राप्त था.

किन परिस्थितियों में हमारा परिचय हुआ यह महत्त्वपूर्ण नहीं है/

क्वार्टर में प्रवेश करने पर मैंने अपने दोस्त को दीवान पर लेटे हुए पाया.

 जब तक वह किचन में स्टोव्ह पर चाय गरम कर रहा था, मैंने लिखने की मेज़ की बाईं दराज़ खोली और वहाँ से ब्राउनिंग (पिस्तौल) चुराई, फिर चाय पी और अपने घर निकल गया. 

रात के करीब नौ बज रहे थे. मैं घर पहुँचा. सब कुछ हमेशा की तरह ही था.

किचन से रोस्ट-मटन की गंध आ रही थी, कॉरीडोर में सदाबहार, मेरा जाना-पहचाना कोहरा था, उसमें से छत के नीचे टिमटिमाता हुआ बल्ब जल रहा था, मैं अपने कमरे में आया. रोशनी ऊपर की ओर भभकी और फ़ौरन कमरा अँधेरे में खो गया. बल्ब जल गया था.

“सारी मुसीबतें एक के बाद एक आ रही थीं, और सब कुछ बिलकुल सही था,” मैंने संजीदगी से कहा.

मैंने फर्श पर कोने में कैरोसिन का लैम्प जलाया. एक कागज़ पर लिखा:

“एतद् द्वारा सूचित करता हूँ, कि ब्राउनिंग नं. (नंबर भूल गया), जैसे, कि फलाँ-फलाँ, मैंने पर्फ्योंन इवानविच के घर से चुराई है (उसका कुलनाम, बिल्डिंग नं., स्ट्रीट, सब कुछ वैसे ही लिखा, जैसा होना चाहिए)” 

हस्ताक्षर कर दिए, केरोसिन लैम्प के पास फर्श पर लेट गया. मौत के डर ने मुझे दबोच लिया. मरना ख़ौफ़नाक है. तब मैंने अपने कॉरीडोर की, मटन की और अधेड़ उम्र वाले की और “शिपिंग कंपनी” की कल्पना की, इस खयाल से खुश हो गया की कैसे धड़ाम-धड़ाम करते हुए मेरे कमरे का दरवाजा तोड़ेंगे वगैरह.     

मैंने नली को कनपटी पर रखा, गलत उंगली से ट्रिगर ढूंढता रहा. इसी समय नीचे से काफी जानी-पहचानी आवाजें सुनाई दीं, भर्राई हुई आवाज़ में ओर्केस्ट्रा बज उठा, और ग्रामोफोन में ऊँची आवाज़ गाने लगी:

मगर क्या खुदा मुझे सब कुछ वापस देगा?!

“मेरे प्यारों! “फाऊस्ट”! – मैंने सोचा. “ ओह, ये तो, वाकई में बिलकुल सही वक्त पर आया है. मगर मेफिस्टोफेल के आने का इंतज़ार कर लेता हूँ. आख़िरी बार. बाद में फिर कभी नहीं सुनूंगा”.

ओर्केस्ट्रा फर्श के नीचे कभी गुम हो जाता, कभी प्रकट हो जाता, मगर ऊँची आवाज़ जोर-जोर से गाये जा रही थी.

शाप देता हूँ मैं ज़िंदगी, विश्वास और सभी विज्ञानों को!

“अभी, अभी,” मैं सोच रहा था, “मगर वह कितनी जल्दी गा रहा है...”

ऊँची आवाज़ बदहवासी से चीखी, इसके बाद ओर्केस्ट्रा गरज उठा.

थरथराती ऊँगली ट्रिगर पर पडी थी, और इसी पल गरज ने मुझे बहरा कर दिया, दिल शायद कहीं गम हो गया, मुझे लगा कि केरोसिन के लैंप की लौ छत पर उड़ गई है, मैंने रिवॉल्वर गिरा दिया. 

गरज फिर से सुनाई दी. नीचे से भारी, नीची आवाज़ आई:

“लो, मैं आ गया!”

मैं दरवाज़े की और मुडा.         

 


 [cR1]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.