अध्याय - 16
सफल शादी
जून के महीने में
मई की अपेक्षा गर्मी और बढ़ गयी.
मुझे ये याद रहा, और बाकी सब आश्चर्यजनक रूप
से दिमाग़ में गड्ड-मड्ड हो गया. हांलाकि कुछ अंश सुरक्षित हैं. जैसे, याद है दीर्किन की गाडी, थियेटर के प्रवेश द्वार के
पास, खुद दीर्किन रूई के नीले कफ्तान में बॉक्स पर और दीर्किन के आसपास से
गुज़रते हुए ड्राइवरों के हैरान चहरे.
उसके बाद याद आता
है बड़ा हॉल, जिसमें बेतरतीबी से कुर्सियां रखी थीं, और इन कुर्सियों पर बैठे हुए कलाकार. कपड़े से ढँकी मेज़ पर इवान वसील्येविच, स्त्रिझ, फोमा और मैं बैठे थे.
इवान वसील्येविच
से मेरा परिचय लगभग इसी दौरान हुआ था और मैं कह सकता हूँ, कि ये पूरा समय मुझे अत्यंत
तनावपूर्ण कालखण्ड के रूप में याद है. ये इसलिए हुआ, कि मैं इवान वसील्येविच पर अच्छा प्रभाव डालने के लिए पूरा प्रयास कर रहा
था, और परेशानियां बहुत थीं.
हर दूसरे दिन मैं
अपना भूरा सूट दूस्या को इस्त्री करने के लिए देता और इसके लिए उसे नियमित रूप से
दस-दस रूबल्स का भुगतान करता.
मैंने एक आर्क
ढूंढा, जिसमें एक जर्जर कमरा था, मानो गत्ते से बना हो, और उस मोटे आदमी से, जिसकी उँगलियों में दो हीरे की अंगूठियाँ थीं, बारह कलफ़ किये हुए कॉलर खरीदे और प्रतिदिन, थियेटर जाते समय मैं नई कॉलर पहनता. इसके अलावा, मैंने, आर्क में नहीं, बल्कि शासकीय डिपार्टमेंटल स्टोर में छह कमीजें खरीदीं: चार सफ़ेद और एक
बैंगनी धारियों वाली, एक नीले चौखाने वाली, अलग-अलग रंगों की आठ टाई खरीदीं. बिना टोपी वाले आदमी से, जो मौसम की परवाह किये बिना, शहर के सेंटर में एक कोने
में टंगी हुई लेसों वाले स्टैण्ड की बगल में बैठता है, मैंने जूतों की पीली पॉलिश के दो डिब्बे खरीदे, और दूस्या से ब्रश लेकर
सुबह अपने पीले जूते साफ करता, और फिर जूतों को अपने गाऊन के किनारे से पोंछता.
इन अविश्वसनीय और
खतरनाक खर्चों का परिणाम यह हुआ, कि मैंने दो रातों में ‘पिस्सू’ शीर्षक से एक छोटी सी कहानी
की रचना कर डाली, और इस कहानी को बेचने की कोशिश में, उसे जेब में रखकर रिहर्सल से खाली समय
में साप्ताहिक पत्रिकाओं, अखबारों के सम्पादकीय कार्यालयों में गया. मैंने ‘शिपिंग
कंपनी’ से शुरूआत की, जहां कहानी तो पसंद आई, मगर उन्होंने उसे प्रकाशित करने से इनकार कर दिया, पूरी तरह इस उचित आधार
पर कि उसका ‘रिवर शिपिंग’ से कोई लेना-देना नहीं है. यह बताना बहुत लंबा और उकताने वाला है, कि मैं कैसे सम्पादकीय
कार्यालयों में जाता और कैसे वे मुझे इनकार करते. सिर्फ इतना याद है, कि न जाने क्यों हर जगह मुझसे
अप्रसन्नता से मिलते. ख़ासतौर से याद आता है नाकपकड़ चश्मे वाला एक मोटा व्यक्ति,
जिसने न केवल मेरी रचना को पूरी तरह से ठुकरा दिया, बल्कि मुझे कोई भाषण भी सुनाया.
“आपकी कहानी में
व्यंग्य महसूस होता है,” मोटे आदमी ने कहा, और मैंने देखा की वह तिरस्कारपूर्वक मेरी तरफ़ देख रहा है.
मुझे सफ़ाई देना
होगा. मोटे आदमी को ग़लतफ़हमी हुई थी, कहानी में कोई व्यंग्य नहीं था, मगर (अब ये किया जा सकता है) ये स्वीकार करना होगा, कि कहानी उकताहट भरी, हास्यास्पद थी, और लेखक का भेद खोल देती थी:
लेखक कोई भी कहानी नहीं लिख सकता था, उसके पास इसके लिए योग्यता नहीं थी.
मगर फिर भी
चमत्कार हो गया. जेब में कहानी रखकर तीन हफ़्ते भटकने के बाद और वर्वार्का, वज़्द्विझेनिये, चिस्तीये
प्रूदी, स्त्रास्त्नी बुल्वार और, याद आता है, प्ल्युशिखा में भी, मैंने अप्रत्याशित रूप से मिस्नित्स्काया पर ज़्लताउस्तिन्स्की गली में अपनी
रचना बेच दी, अगर मैं गलती नहीं कर रहा हूँ, तो पांचवीं मंजिल पर किसी आदमी को जिसके गाल
पर बड़ा सा तिल था.
पैसे प्राप्त करने
और भयानक दूरी को पार करने के बाद मैं थियेटर में लौटा, जिसके बगैर मैं रह ही नहीं सकता था, जैसे मोर्फीन की लत वाला आदमी मोर्फीन के बगैर नहीं रह सकता.
भारी मन से मुझे
स्वीकार करना पडेगा कि मेरी सारी कोशिशें बेकार गईं, और, यहाँ तक कि, उनका विपरीत परिणाम हुआ. दिन-प्रतिदिन इवान वसील्येविच मुझे कम पसंद करने लगा था.
बेहद मासूम होगा
यह सोचना, कि मेरा सारा दारोमदार पीले जूतों पर था, जिनमें बसंत का सूरज प्रतिबिंबित होता था. नहीं! यहाँ एक चालाक, उलझा हुआ संयोजन था, जिसमें, उदाहरण के लिए, ऐसी तकनीकों का समावेश था, जैसे शांत, गहरी और
ह्रदयस्पर्शी आवाज़ में बोलना. आवाज़ के साथ सीधी, खुली, ईमानदार नज़र, होठों पर हल्की-सी मुस्कान के साथ (कुछ ताड़ती हुई नहीं, बल्कि सीधी-सरल). मैं अच्छी
तरह कंघी करता, दाढ़ी ऐसी चिकनी कि जब हाथ का पिछला भाग गाल पर घुमाता तो ज़रा भी खुरदुरापन
महसूस न होता, मैं अपने निर्णय संक्षिप्त, बुद्धिमत्तापूर्ण, विषय के ज्ञान से चौंकाने वाले रूप में प्रस्तुत करता,
मगर कोइ नतीजा न निकला. आरम्भ में तो इवान वसील्येविच मुझसे मिलते हुए मुस्कुराता था, मगर धीरे-धीरे उसकी
मुस्कराहट कम होती गयी और, आखिरकार, उसने पूरी तरह मुस्कुराना बंद कर दिया.
तब मैं रातों को
रिहर्सल करने लगा, मैं एक छोटा शीशा लेता, उसके सामने बैठता, उसमें प्रतिबिंबित होता और कहना शुरू करता:
“इवान वसील्येविच !
देखिये, बात ये है: मेरी राय में खंजर का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता....”
और सब कुछ बहुत
अच्छी तरह चलने लगा. होठों पर सभी और नम्र मुस्कान खेलती, आईने से आंखें सीधे और
बुद्धिमत्ता से देखतीं, माथा चिकना हो गया, काले सिर सफ़ेद धागे की तरह मांग दिखाई देती. इस सबका परिणाम तो होना ही था, मगर सब कुछ बदतर होता जा रहा
था. मैं थक गया था, दुबला होता जा रहा था और मैंने अपनी ड्रेस में कुछ ढील दी. अब मैं एक ही
कॉलर दो बार पहनता.
एक बार रात को
मैंने जांच करने का निश्चय किया और, आईने में देखे बिना, अपना वाक्य बोला, और इसके बाद चोरी से आंखें बारीक करके जांचने के लिए आईने में देखा और मैं
भयभीत हो गया.
आईने से मेरी ओर
देख रहा था झुर्रियाँ पड़ा माथा, खुले हुए दांत और आंखें, जिनमें न केवल परेशानी बल्कि रहस्यमय विचार भी
परिलक्षित हो रहा था. मैंने सिर पकड़ लिया, समझ गया कि आईने ने मुझे नीचा दिखाया है और मुझे धोखा दिया है, और मैंने
उसे फर्श पर फेंक दिया. और उसमें से एक तिकोना टुकड़ा उछल कर बाहर गिरा. कहते हैं,
कि आईने का टूटना बुरा शगुन है. मगर उस पागल के बारे में क्या कहा जाए, जो ख़ुद ही अपना आईना तोड़
देता हो?
“बेवकूफ, बेवकूफ,” मैं चिल्लाया, और चूंकि मैं बुदबुदा रहा था, तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो रात की खामोशी में कोई कौआ कांव-कांव कर रहा
है,” – मतलब, मैं अच्छा ही था, सिर्फ तब तक जब तक मैं स्वयं को आईने में देख रहा था, मगर जैसे ही उसे हटाया, जैसे नियंत्रण हट गया और
मेरा चेहरा मेरे विचारों की दया पर था और...और, शैतान मुझे ले जाए!
मुझे इसमें कोई शक
नहीं है कि मेरे ‘नोट्स’, अगर संयोगवश किसी के हाथों में पड़ गए, तो वे पाठक पर अच्छा प्रभाव नहीं डालेंगे. वह सोचेगा, कि उसके सामने एक चालाक, दोहरी मानसिकता वाला व्यक्ति
है, जो अपने किसी स्वार्थ की खातिर इवान वसील्येविच पर अच्छा प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा था.
फैसला करने की
जल्दी न करें. मैं अभी बताऊंगा, कि स्वार्थ क्या था.
इवान वसील्येविच जिद्दीपन
से और निरंतर नाटक से वही दृश्य हटाने की कोशिश कर रहा था, जहां बख्तीन (बिख्तेएव)
स्वयँ को गोली मार लेता है, जहाँ हार्मोनियम बजाया जाता है. मगर, मैं जानता था, मैंने देखा था, कि, तब नाटक का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा. मगर उसका अस्तित्व ज़रूरी था,
क्योंकि मैं जानता था, कि उसमें सच्चाई थी. इवान वसील्येविच को दी गयी विशेषताएँ काफी स्पष्ट थीं.
हाँ, मानता हूँ, कि वे अनावश्यक थीं. मैंने उससे परिचय के आरंभिक दिनों में उसे पहचान लिया
था, और समझ लिया था और मैं जानता था कि इवान वसील्येविच के साथ ज़रा सा भी संघर्ष
संभव नहीं है. मेरे सामने बस एक ही विकल्प था: कोशिश करना कि वह मेरी बात सुने.
ज़ाहिर है, इसके लिए ये ज़रूरी था कि वह अपने सामने किसी खुशगवार व्यक्ति को देखे.
इसीलिये मैं आईने के साथ बैठा था. मैं गोली-बारी बचाने की कोशिश कर रहा था, मैं चाहता था, कि लोग सुनें कि जब बर्फ पर, चाँद की रोशनी में खून का
धब्बा फैलता है, तो पुल पर हार्मोनियम कितने डरावने ढंग से बजता है. मैं चाहता था कि काली
बर्फ देखें. इसके अलावा मैं कुछ और नहीं चाहता था.
और फिर से कौआ
चिल्लाया.
“बेवकूफ़! असली बात
समझना चाहिए थी! तुम किसी आदमी को कैसे अच्छे लग सकते हो, जब खुद तुमको ही वह पसंद
नहीं है! तुम क्या सोचते हो? क्या तुम किसी आदमी को अपनी
मर्ज़ी से पटा लोगे? खुद तुम्हारे मन में ही उसके खिलाफ भावनाएं होंगी, और उसके मन में अपने प्रति
सहानुभूति उत्पन्न करने की कोशिश करोगे? ये कभी भी संभव नहीं होगा, चाहे तुम कितना ही आईने के
सामने सिर पटक लो.
मगर इवान वसील्येविच
मुझे अच्छा नहीं लगा. आंटी नस्तास्या इवानव्ना भी पसंद नहीं आई, ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना
तो बेहद ही बुरी लगी. और ये महसूस होता है!
दीर्किन की गाड़ी
का मतलब ये था की इवान वसील्येविच “काली
बर्फ” की रिहर्सलों पर थियेटर जाता था.
हर रोज़ दोपहर को
पाकिन तेज़ी से अँधेरे स्टाल में भागता था, भय से मुस्कुराते और हाथों में गैलोश लिए. उसके पीछे जाती थी अव्गुस्ता
अव्देयेव्ना हाथों में चौखाने वाली शॉल लिए. अव्गुस्ता अव्देयेव्ना के पीछे –
ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना साझी नोटबुक लिए और लेस वाला रूमाल लिए.
स्टाल में इवान वसील्येविच
ने गैलोश पहने, डाइरेक्टर की मेज़ के पीछे बैठ गया, अव्गुस्ता अव्देयेव्ना ने इवान वसील्येविच के कन्धों पर शॉल डाला, और स्टेज पर रिहर्सल
शुरू हो गयी.
इस रिहर्सल के
दौरान ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना, डाइरेक्टर की मेज़ के पास ही बैठी, अपनी नोटबुक में वह कुछ
लिखती जाती, कभी-कभार विस्मयपूर्वक प्रशंसा के उद्गार प्रकट करती – धीमी आवाज़ में.
अब समय आ गया है
कैफियत देने का. मेरी नापसन्दगी का कारण, जिसे मैं बेवकूफ़ी से छुपाने की कोशिश कर
रहा था, शॉल नहीं थी, ना ही गैलोश थे और ना ही ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना, बल्कि ये था कि इवान वसील्येविच
ने, जो पचास वर्षों से डाइरेक्शन का कार्य कर रहा था, अत्यंत प्रसिद्ध और, सामान्य राय में, मौलिक सिद्धांत का आविष्कार
किया था, जो इस बारे में थी कि कलाकार को अपनी भूमिका के लिए किस प्रकार तैयारी करना
चाहिए.
मुझे एक मिनट के
लिए भी संदेह नहीं है, कि सिद्धांत वास्तव में मौलिक था, मगर जिस तरह से इस सिद्धांत का व्यावहारिक रूप में प्रयोग किया जाता है, उससे मैं निराश हो गया.
मैं अपने सिर की
कसम खाता हूँ, कि अगर मैं कहीं से एक नये व्यक्ति को रिहर्सल पर लाता, तो वह अत्यंत विस्मयचकित हो
जाता.
पत्रिकेव मेरे
नाटक में एक छोटे-मोटे अधिकारी की भूमिका कर रहा था, जो एक औरत से प्यार करता है, मगर वह उसकी भावनाओं को कोई प्रतिसाद नहीं देती.
भूमिका हास्यास्पद
थी, और खुद पत्रिकेव असाधारण रूप से हास्यास्पद ढंग से उसे कर रहा था और दिन
प्रतिदिन अधिकाधिक बेहतर ढंग से उसे निभाता. वो इस कदर अच्छा था, कि मुझे ऐसा लगने लगा, जैसे ये पत्रिकेव नहीं, बल्कि खुद वो अधिकारी है, जिसकी मैंने कल्पना की थी.
कि पत्रिकेव इस अधिकारी से पूर्व ही अस्तित्व में था और किसी चमत्कार की बदौलत
मैंने उसे पहचान लिया.
जैसे ही दीर्किन
की गाड़ी थियेटर के पास प्रकट हुई, और इवान वसील्येविच को शॉल उढ़ाया गया, पत्रिकेव का काम शुरू हो गया.
“ठीक है, शुरू करते हैं,” इवान वसील्येविच ने कहा.
स्टाल में सम्मानपूर्ण
शान्ति छा गई, और परेशान पत्रिकेव (और उसकी परेशानी इस बात से प्रकट हो रही थी, कि उसकी
आंखों में आंसू आ गए) नायिका के साथ प्यार के इज़हार का दृश्य प्रदर्शित कर रहा था.
“तो,” इवान वसील्येविच ने लोर्नेट से आंखें चमकाते हुए कहा, “ये किसी काम का नहीं है.”
मेरी आत्मा ने आह
भरी, और मेरे पेट के भीतर जैसे कुछ टूट गया. मैंने सोचा नहीं था, कि इस दृश्य को पत्रिकेव
द्वारा प्रदर्शित दृश्य से ज़रा भी बेहतर खेला जा सकता था. ‘और अगर वह इसमें सफल हो
जाता है,’ – मैंने सम्मानपूर्वक इवान वसील्येविच की ओर देखते हुए सोचा, ‘तो मैं कहूँगा, कि वह वाकई में जीनियस है.’
“किसी काम का नहीं
है,” इवान वसील्येविच ने दुहराया, “ये सब क्या है? ये सिर्फ कुछ टुकड़े हैं, और एक ही बात बार-बार दुहराई
जा रही है. वो इस महिला के बारे में क्या महसूस करता है?”
“वह उससे प्यार
करता है, इवान वसील्येविच ! आह, कितना प्यार करता है!” फोमा स्त्रिझ चीखा, जो इस पूरे दृश्य को गौर से देख रहा था.
“अच्छा,” इवान वसील्येविच ने कहा और फिर से पत्रिकेव से मुखातिब हुआ :
“क्या आपने इस बारे में सोचा है, कि उत्कट प्रेम क्या होता है?”
जवाब में पत्रिकेव
ने स्टेज से घरघराते हुए कुछ कहा, मगर क्या – उसे समझना असंभव था.
“उत्कट प्रेम,”
इवान वसील्येविच ने आगे कहा, “ इस बात से प्रकट होता है, कि आदमी अपनी प्रियतमा के
लिए कुछ भी करने को तैयार है,” और उसने आज्ञा दी, “यहाँ एक साइकिल लाओ!”
इवान वसील्येविच के
हुक्म से स्त्रिझ उत्साहित हो गया, और वह परेशानी से चिल्लाया:
“ऐ, प्रॉप्स! साइकिल!”
प्रॉप स्टेज पर
पुरानी बाइसिकल चलाते हुए लाया, जिसकी फ्रेम का रंग उतर चुका था. पत्रिकेव ने आंसू भरी नज़रों से उसकी ओर
देखा.
“एक प्रेमी अपनी
प्रियतमा के लिए सब कुछ कर सकता है,” – इवान वसील्येविच ने खनखनाती
आवाज़ में कहा , “खाता है, पीता है, चलता है और ड्राईव करता है...”
उत्सुकता और दिलचस्पी से स्तब्ध होते हुए, मैंने ल्युद्मिला
सिल्वेस्त्रव्ना की ऑइलक्लॉथ वाली नोटबुक में झांका और देखा कि वह बच्चों जैसे
अक्षरों में लिख रही है “प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए सब कुछ करता है...”
“...तो, मेहेरबानी
करके अपनी प्रियतमा के लिए साइकिल पर सवार हो जाईये,” इवान वसील्येविच
ने सूचना दी और एक पेपरमिंट खाया.
मैंने स्टेज से नज़र नहीं हटाई. पत्रिकेव
साइकिल पर चढ़ गया, प्रियतमा की भूमिका करने वाली कलाकार एक बड़ा सा
चमकदार पर्स पेट के पास दबाये, कुर्सी पर बैठी थी. पेत्रिकेव ने पैडल्स को छुआ और
बिना आत्मविश्वास के कुर्सी के चारों ओर जाने लगा, एक आंख से
प्रोम्प्टर-बूथ की तरफ देखते हुए, जिसमें गिरने का उसे डर था, और दूसरी आंख से अभिनेत्री को देख लेता.
हॉल में लोग मुस्कुराने लगे .
“बिल्कुल वो बात नहीं
है,” जब पेत्रिकेव रुका, तो इवान वसील्येविच ने टिप्पणी की, - “आप प्रॉप की तरफ आंखें फाड़े क्यों देख रहे थे? क्या आप उसके लिए चला रहे
हैं?”
पेत्रिकेव फिर से
चलाने लगा, इस बार दोनों आँखे अभिनेत्री पर लगाए, वह मुड़ न सका और बैक स्टेज पर चला गया.
जब साइकिल को
हैंडल से पकड़कर उसे वापस लाया गया, तो इवान वसील्येविच ने इस मार्ग को भी सही नहीं माना, और पेत्रिकेव अपने सिर को
अभिनेत्री की ओर मोड़कर तीसरी बार चल पडा.
“भयानक,” इवान वसील्येविच ने कड़वाहट
से कहा. – “ आपकी मांसपेशियाँ तनी हुई हैं, आपको खुद पर विश्वास नहीं है. मांसपेशियों को ढीला छोडिये, उन्हें ढीला कीजिये!
अनैसर्गिक दिमाग़, आपके दिमाग़ पर भरोसा नहीं किया जा सकता.”
पेत्रिकव साइकिल
चला रहा था, सिर झुकाए, कनखियों से देखते हुए.
“बेकार की ड्राईव
है, आप भावनारहित चला रहे हैं, अपनी प्रियतमा के प्रेम से खाली.”
और पेत्रिकव फिर
से चलाने लगा. एक चक्कर लगाया, कूल्हों पर हाथ रखे और गुर्मी से अपनी प्रियतमा को देखते हुए. एक हाथ से
हैंडल घुमाते हुए, वह तेज़ी से मुँडा और अभिनेत्री के ऊपर चढ़ गया, गंदे टायर से उसके स्कर्ट को खराब कर दिया, जिससे वह डर से चिल्लाई. ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना भी स्टाल्स में चीखी.
यह पता करने के बाद कि अभिनेत्री को चोट तो नहीं आई और उसे किसी डाक्टरी सहायता की
ज़रुरत तो नहीं है, और यह इत्मीनान करने के बाद कि कोई भयानक बात नहीं हुई है, इवान वसील्येविच ने फिर से पेत्रिकव को चक्कर लगाने के लिए भेज
दिया, और वह कई बार घूमता रहा, जब तक इवान वसील्येविच ने पूछ न लिया, कि क्या वह थक गया था? पत्रिकेव ने जवाब दिया कि वह थका नहीं था, मगर इवान वसील्येविच ने कहा, कि वह देख रहा है, कि पेत्रिकेव थक गया है, और उसे छोड़ दिया.
पेत्रिकेव के
स्थान पर मेहमानों का एक समूह आ गया. मैं सिगरेट पीने के लिए बुफे में चला गया, और जब वापस लौटा तो देखा कि
अभिनेत्री का पर्स फर्श पर पड़ा है, और वह खुद अपने नीचे हाथ रखे बैठी है, ठीक उसी तरह जैसे उसकी तीन महिला
मेहमान बैठी हैं, और एक और मेहमान, वो ही विश्निकोवा, जिसके बारे में इंडिया से लिखा था. वे सब उन वाक्यों को बोलने की कोशिश कर
रही थीं, जो नाटक के दौरान इस दृश्य में बोले जाने वाले थे, मगर वे किसी भी तरह से आगे
नहीं बढ़ पा रही थीं, क्योंकि इवान वसील्येविच हर बार
बोलने वाले को रोक देता, ये समझाते हुए की कहाँ गलती हो रही है. मेहमानों की, और पेत्रिकेव की
प्रियतमा की, जो नाटक की हीरोइन थी, मुश्किलें इस बात से भी बढ़
रही थीं, क्योंकि हर मिनट वे अपने नीचे से हाथ बाहर निकालकर हाव-भाव प्रदर्शित करना
चाहते थीं.
मेरे अचरज को
देखते हुए, स्त्रिझ ने फुसफुसाते हुए मुझे समझाया, कि इवान वसील्येविच ने कलाकारों को
हाथों से वंचित किया है, जिससे वे शब्दों के द्वारा अभिप्राय स्पष्ट कर सकें, न कि हाथों की सहायता
लें.
नई, अचरजभरी चीज़ों के प्रभाव से
अभिभूत, मैं रिहर्सल से यह सोचते हुए घर लौट रहा था:
“हाँ, ये सब अद्भुत है. मगर अद्भुत
सिर्फ इसलिए, कि मैं इस क्षेत्र में अनुभवहीन हूँ. हर कला के अपने नियम, अपने रहस्य और अपनी तकनीक
होती है. मिसाल के तौर पर, किसी जंगली आदमी को हास्यास्पद और अजीब लगेगा, कि आदमी मुंह में चॉक भरके ब्रश से दांत साफ करता है. अनुभवहीन व्यक्ति को
अजीब लगता है, कि कोई डॉक्टर फ़ौरन ऑपरेशन करने के बदले मरीज़ के साथ कई सारी अजीब चीज़ें
करता है, जैसे, परीक्षण के लिए खून लेता है और इसी तरह का बहुत कुछ...
सबसे ज़्यादा, अगली रिहर्सल पर मैं साइकिल
के किस्से का अंत देखने के लिए लालायित था, मतलब, यह देखने के लिए, कि क्या पेत्रिकव ‘उसके लिए’ जाने में कामयाब होता है.
मगर, अगले दिन साइकिल के बारे में
किसी ने भी एक भी शब्द नहीं कहा, और मैंने अन्य चीज़ें देखीं, जो कम आश्चर्यजनक नहीं थीं. उसी
पेत्रिकव को अपनी प्रियतमा को गुलदस्ता पेश करना था. इसीसे दोपहर बारह बजे आरंभ
हुआ और ये चार बजे तक चलता रहा.
गुलदस्ता न केवल
पेत्रिकेव ने पेश किया, बल्कि बारी-बारी से सबने पेश किया: एलागिन ने, जो जनरल की भूमिका कर रहा था, और अदेल्बेर्त ने भी, जो डाकुओं के गिरोह की भूमिका में था. इससे मुझे बेहद आश्चर्य हुआ. मगर
फोमा ने यहाँ भी मुझे आश्वस्त किया, ये समझाते हुए, कि इवान वसील्येविच, हमेशा की तरह अत्यंत बुद्धिमानी से काम कर रहे थे, बहुत सारे लोगों को स्टेज की
कोई तकनीक सिखा रहे थे. और वाकई में, इवान वसील्येविच अपने पाठ के
साथ दिलचस्प और शिक्षाप्रद कहानियां भी सुना रहे थे, कि महिलाओं को गुलदस्ते कैसे पेश करना चाहिए, और कौन उन्हें कैसे ले गया.
वहीं मुझे यह भी
पता चला, कि कमारोव्स्की-बिओन्कूर ने इसे सबसे बढ़िया किया था (रिहर्सल के क्रम को
भंग करते हुए ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना चीखी: ‘आह, हाँ, हाँ, इवान वसील्येविच , मैं भूल नहीं सकती!’) और इटालियन बैरिटोन, जो इवान वसील्येविच ने सन् 1889
में मिलान में सीखा था.
मैं, सच में, इस बैरीटोन से परिचित न होने
के कारण, ये कह सकता हूँ, कि सबसे अच्छी तरह गुलदस्ता खुद इवान वसील्येविच ने पेश
किया. वे मगन हो गए, स्टेज पर गए और क़रीब तेरह बार दिखाया कि ये प्यारा तोहफ़ा कैसे पेश करना
चाहिए. दरअसल, मैं विश्वास करने लगा, कि इवान वसील्येविच अद्भुत और वाकई
में प्रतिभाशाली अभिनेता है.
अगले दिन मुझे
रिहर्सल पर जाने में देर हो गयी, और जब वहां पहुंचा तो देखा कि स्टेज पर पास-पास रखी कुर्सियों पर ओल्गा
सिर्गेयेव्ना (अभिनेत्री जो हीरोईन की भूमिका कर रही थी), और विश्निकोवा (मेहमान),
और एलागिन, और व्लदीचिन्स्की, और अदाल्बेर्त, और मेरे लिए कुछ अज्ञात व्यक्ति बैठे थे
और इवान वसील्येविच के आदेश “एक, दो, तीन”, पर अपनी जेबों से अदृश्य नोट निकाल रहे हैं, उनमें अदृश्य धन राशि को
गिनते हैं, और उन्हें वापस छुपा लेते हैं.
जब यह स्केच ख़तम
हो गया, (और इसका कारण, जैसा कि मैं समझ पाया, ये हुआ, कि पत्रिकेव इस दृश्य में पैसे गिन रहा था), तो दूसरा प्रसंग शुरू हो गया. एक
झुण्ड को इवान वसील्येविच द्वारा स्टेज पर बुलाया गया और, कुर्सियों पर बैठकर, ये झुण्ड अदृश्य हाथों से
अदृश्य कागज़ पर मेजों पर पत्र लिखने लगा और उन्हें सील करने लगा (फिर से
पत्रिकेव!). चाल ये थी कि वह प्रेम-पत्र होना चाहिए.
इस प्रसंग में
थोड़ी गलती हो गई: लिखने वालों में, गलती से प्रोप भी शामिल हो गया.
स्टेज पर आये
लोगों का उत्साह बढ़ाते हुए और इस साल प्रविष्ट हुए सहायक अभिनेताओं को ठीक से न
जानने के कारण इवान वसील्येविच ने इस
पत्रलेखन की प्रक्रिया में एक घुंघराले बालों वाले प्रोप को भी शामिल कर लिया, जो स्टेज के किनारे से गुज़र
रहा था.
“और आपको, क्या,” इवान वसील्येविच उस पर चिल्लाया, “अलग से निमंत्रण भेजना पडेगा?”
प्रोप कुर्सी पर
बैठ गया और सब के साथ हवा में लिखने लगा और उँगलियों पर थूकने लगा. मेरी राय में, वह औरों के मुकाबले में बुरा
नहीं कर रहा था, मगर संकोच से मुस्कुरा रहा था और लाल पड़ गया था.
इस बात ने इवान वसील्येविच
को चीख़ने पर मजबूर कर दिया:
“और, किनारे पर यह अजीब आदमी कौन है? उसका कुलनाम क्या है? वो, शायद, सर्कस में जाना चाहता है? ये कैसा ओछापन है?”
“वो प्रोप है!
प्रोप, इवान वसील्येविच !” फोमा कराहते हुए बोला, और इवान वसील्येविच खामोश हो गया, और प्रोप को शांतिपूर्वक जाने दिया गया.
और अथक परिश्रम
में दिन बीत गए. मैंने बहुत कुछ देखा. देखा, कि कैसे कलाकारों का झुण्ड, ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना के नेतृत्व में (जो वैसे, नाटक में भाग नहीं ले रही
थी), चीखते हुए स्टेज पर भाग रहा था और अदृश्य खिड़कियों की तरफ लपका.
बात ये है, कि यह सब उसी चित्र में है, जहाँ गुलदस्ता भी है, और ख़त भी, एक दृश्य था, जब मेरी नायिका, खिड़की में
दूर की चमक देखकर उसकी ओर भागी.
इसीने गहन अध्ययन
की नींव रखी. यह अध्ययन अविश्वसनीय रूप से विस्तृत होता गया और, साफ़-साफ़ कहूंगा, वह मुझे मन की अत्यंत
निराशाजनक अवस्था में ले आया.
इवान वसील्येविच ने, जिसके सिद्धांत में, अन्य
बातों के अलावा, यह खोज भी शामिल थी कि पाठ की रिहर्सल में कोई भूमिका नहीं होती, और नाटक में अपने स्वयं के
पाठ का अभिनय करते हुए, पात्रों की रचना करना चाहिए, सबको इस चमक को महसूस करने की
आज्ञा दी.
इसके परिणाम
स्वरूप खिड़की की ओर भागने वाला हर व्यक्ति वही चिल्ला रहा था, जो उसे उचित लग रहा था.
“आह, गॉड, माय गॉड!!” अधिकांश लोग
यह चिल्ला रहे थे.
“कहाँ जल रहा है? ये क्या है?” अदाल्बेर्त विस्मय से चीखा.
मैंने चीखते हुए
आदमियों और औरतों की आवाजें सुनीं:
“अपने आप को बचाओ!
पानी कहाँ है? ये एलिसेव जल रहा है!!
(शैतान जाने क्या
हो रहा है!)
बचाओ! बच्चों को
बचाओ! ये विस्फ़ोट है! अग्निशामक दल को बुलाओ! हम मर रहे हैं!”
इस सब हुड़दंग पर ल्युद्मिला
सिल्वेस्त्रव्ना की तीखी आवाज़ छाई थी, जो न जाने क्या बकवास चिल्ला
रही थी:
“ओह, मेरे खुदा! ओह, सर्वशक्तिमान खुदा! मेरे
संदूकों का क्या होगा?! और हीरे! और मेरे हीरे!!”
बादल की तरह काला
पड़ते हुए, मैं ल्युद्मिला
सिल्वेस्त्रव्ना की तरफ़ देख रहा था, जो अपने हाथ मरोड़ रही थी, और ये सोच
रहा था, कि मेरे नाटक की नायिका सिर्फ एक ही बात कहेगी:
“देखिये...लाली...” और वह भी शानदार तरीके
से, कि मुझे तब तक इंतज़ार करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, जब तक नाटक में भाग न ले रही ल्युदमिला
सिल्वेस्त्रव्ना इस चमक को महसूस नहीं करती. किन्हीं संदूकों के बारे में कुछ
जंगली चीखों ने, जिनका नाटक से कोई संबंध नही है, मुझमें इतनी
चिड़चिड़ाहट भर दी कि मेरा चेहरा ऐंठने लगा.
इवान वसील्येविच के साथ कक्षाओं के तीसरे
सप्ताह के अंत तक निराशा ने मुझे घेर लिया. इसके तीन कारण थे. पहला, मैंने गणितीय हिसाब लगाया और मैं बेहद भयभीत हो गया.
हम तीन सप्ताह से रिहर्सल कर रहे थे, और बस उसी एक चित्र की. नाटक में तो सात चित्र थे.
मतलब, अगर एक ही चित्र के लिए तीन हफ़्ते रखे जाएँ...
“ओह, गॉड!”
- घर के सोफे पर करवटें लेते हुए मैं
अनिद्रा की स्थिति में फुसफुसाया, “सात का तीन गुना...इक्कीस सप्ताह या पांच...हाँ,
पांच...या फिर छः महीने!! आखिर मेरा नाटक कब प्रदर्शित होगा?! एक सप्ताह बाद ‘ऑफ़-सीज़न’ शुरू हो
जाएगा, और सितम्बर तक कोई रिहर्सल नहीं होगी! मेहेरबानों!
सितम्बर, अक्तूबर, नवम्बर...”
रात तेज़ी से सुबह की ओर बढ़ रही थी. खिड़की
खुली थी, मगर ठंडक नहीं थी. मैं माइग्रेन के साथ रिहर्सल में
पहुंचा, पीला पड़ गया और बेहद मरियल लग रहा था.
निराशा का दूसरा
कारण और भी गंभीर था. अपना भेद इस नोटबुक को मैं विश्वासपूर्वक सौंप सकता हूँ:
मुझे इवान वसील्येविच के सिद्धांत पर संदेह था. हां! ये कहना खतरनाक है, मगर बात यही है.
पहले सप्ताह के
अंत तक मेरी आत्मा में डरावने संदेह रेंगने लगे. दूसरे सप्ताह के अंत में मैं जान
गया था, कि मेरे नाटक के लिए, ज़ाहिर है, यह सिद्धांत लागू नहीं हो सकता. पत्रिकेव ने न सिर्फ गुलदस्ता अच्छी तरह
पेश करना नहीं सीखा, पत्र लिखना या प्रेम प्रकट करना भी नहीं सीखा. नहीं! ऐसा लग रहा था, कि वह मजबूरी में अभिनय कर
रहा है और बिल्कुल भी मज़ाकिया नहीं लग रहा था. और सबसे महत्वपूर्ण बात, उसे अचानक ज़ुकाम हो गया.
जब इस अंतिम
स्थिति के बारे में मैंने अफसोस के साथ बम्बार्दव को बताया, तो वह हंस पड़ा और बोला:
“खैर, उसका ज़ुकाम जल्दी ही ठीक हो
जाएगा, अब वह पहले से बेहतर महसूस कर रहा है, और कल और आज क्लब में बिलियार्ड खेल रहा था. जब आप इस चित्र की रिहर्सल
पूरी कर लेंगे, तो उसका ज़ुकाम भी ख़त्म हो जाएगा. आप इंतज़ार कीजिये : अभी तो औरों को भी
ज़ुकाम होगा. और सबसे पहले, मेरा ख़याल है, एलागिन को.”
“आह, शैतान ले जाए!” बात को समझते
हुए मैं चीखा.
बम्बार्दव की
भविष्यवाणी यहाँ भी सही साबित हुई. एक दिन बाद एलागिन भी रिहर्सल से गायब हो गया, और अन्द्रेई अन्द्रेयेविच ने
प्रोटोकोल में उसके बारे में दर्ज किया:
“रिहर्सल से मुक्त
किया गया. ज़ुकाम”. वही आपदा अदाल्बेर्त पर भी आई. प्रोटोकोल में वैसा ही कारण दर्ज
हुआ. अदाल्बेर्त के बाद – विश्निकोव पर भी. मैं दांत पीसता रहा, अपनी गणना में एक और महीना
ज़ुकाम के लिए जोड़ दिया. मगर मैंने अदाल्बेर्त को दोष नहीं दिया, ना ही पत्रिकेव को. असल में,
चौथे चित्र में, डाकुओं का सरदार अस्तित्वहीन अग्निकांड के लिए समय व्यर्थ गंवाए, जबकि उसके
डाके और अन्य संबंधित काम, उसे तीसरे चित्र में काम की ओर आकर्षित करते हैं, और पांचवे चित्र में भी.
और फिलहाल, पत्रिकेव बीयर पीते हुए, अमेरिकन लड़की के साथ मार्कर
खेल रहा था, अदाल्बेर्त ‘क्रास्नाया प्रेस्न्या’ पर क्लब में, जहां वह एक थियेटर ग्रुप
का नेतृत्व करता है, शिलेर के “डाकू” की रिहर्सल कर रहा था.
हाँ, ये योजना, ज़ाहिर है, मेरे नाटक के लिए लागू नहीं
हो सकती थी, और स्पष्टत: उसके लिए हानिकारक थी. चौथे चित्र में दो अभिनेताओं के बीच
झगड़े से यह वाक्य उत्पन्न हुआ:
“मैं तुम्हें
द्वंद्वयुद्ध के लिए ललकारता हूँ !”
और रात में कई बार
मैंने अपने आप को हाथ काटने की धमकी दी, कि क्यों मैंने उस त्रिवार-अभिशप्त वाक्य
को लिखा.
जैसे ही उसे बोला
गया, इवान वसील्येविच बेहद उत्तेजित हो गया और उसने पतली तलवारें लाने का हुक्म
दिया. मैं पीला पड़ गया. मैं बड़ी देर तक देखता रहा, कि कैसे व्लादीचिन्स्की और ब्लगास्वेत्लव तलवारें खनखना रहे हैं, और इस
ख़याल से कांप रहा था कि व्लादीचिन्स्की ब्लगास्वेत्लव की आंख बाहर निकाल देगा.
इवान वसील्येविच इस समय यह बता रहा था, की कैसे कमारोव्स्की–बिआन्कूर
मॉस्को के मेयर के बेटे के साथ तलवार से लड़ रहा था.
मगर बात शहर के
प्रमुख के नासपीटे बेटे की नहीं थी, बल्कि यह थी, कि इवान वसील्येविच इस बात पर लगातार ज़ोर दे रहा था, कि मैं अपने नाटक में
तलवारों के द्वंद्व युद्ध का दृश्य लिखूं.
मैंने इसे खतरनाक
मज़ाक समझा, और मेरी भावनाएं कैसी थीं, जब चालाक और धोखेबाज़ स्त्रिझ ने कहा, कि एक सप्ताह के भीतर द्वंद्व
युद्ध के दृश्य की रूपरेखा तैयार हो जाना चाहिए.
अब मैं बहस करने
लगा, मगर स्त्रिझ अपनी ही बात पर अड़ा रहा. उसकी ‘निर्देशक की पुस्तिका’ में लिखी गयी टिप्पणी ने –
‘यहाँ द्वंद्व युद्ध होगा.” मुझे पूरी तरह उन्माद की स्थिति में भेज दिया.
और स्त्रिझ के साथ
रिश्ते खराब हो गए.
उदासी और आक्रोश
में मैं रातों को करवटें बदलता रहता, मैं स्वयँ को अपमानित महसूस कर रहा था.
‘काश, अस्त्रोव्स्की से द्वंद्व-युद्ध
न लिखा होता,’ मैं गुर्राया, ‘ल्युद्मिला सिल्वेस्त्रव्ना को
संदूकों के बारे में चिल्लाने का मौक़ा न दिया होता!’
और अस्त्रोव्स्की
के प्रति सूक्ष्म ईर्ष्या की भावना नाटककार को पीड़ित करती रही. मगर यह सब, ख़ास तौर से, एक विशेष घटना से, मेरे नाटक से संबंधित था.
मगर उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण एक चीज़ थी.
‘स्वतन्त्र थियेटर’ के प्रति प्रेम से पूरी तरह अवशोषित, अब उससे चिपका हुआ, जैसे खटमल किसी कॉर्क से
चिपका रहता है, मैं हर शाम प्रदर्शन के लिए जाता था. और अब मेरे संदेह, आखिरकार, दृढ़ विश्वास में बदल गए. मैं
सरलता से तर्क करने लगा: अगर इवान वसील्येविच का सिद्धांत अचूक है, और उसके अभ्यास से अभिनेता
को पुनर्जन्म का उपहार मिल सकता है, तो स्वाभाविक है, कि हर प्रदर्शन में, हर अभिनेता को दर्शक के मन में सम्पूर्ण भ्रम पैदा
करना चाहिए. और इस तरह अभिनय करना चाहिए, कि दर्शक भूल जाए कि उसके सामने स्टेज है....’
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