अध्याय 3
पेर्सिकोव ने पकड़
लिया
मामला कुछ यूँ था. जब प्रोफेसर ने अपनी
पैनी आँख आई-पीस से लगाई तो उसने अपने जीवन में पहली बार इस बात पर ग़ौर किया कि उस
रंगबिरंगी लहर में ख़ास तौर से स्पष्ट रूप से एक विशेष रंग की काफ़ी मोटी किरण अलग
से दिखाई दे रही है. ये किरण लाल-चटख़ रंग की थी और लहर में से एक छोटी सी नुकीली
चीज़ की तरह बाहर निकल रही थी, जैसे कोई सुई होती है.
बस, दुर्भाग्यवश, कुछ पलों तक इस किरण ने
महान वैज्ञानिक की आँख को उलझाए रखा.
इसमें, इस किरण में, प्रोफेसर ने वो देखा
जो ख़ुद किरण से हज़ार गुना महत्वपूर्ण था - एक अस्पष्ट, अस्थिर जीव, जो
माइक्रोस्कोप के लैन्सों और शीशों की एक असावधान हरकत के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ था.
असिस्टेंट द्वारा प्रोफेसर को बुलाकर ले जाने की बदौलत, अमीबा इस किरण के प्रभाव
तले डेढ़ घंटे पड़े रहे, और इस कारण ये हुआ : उस
समय, जब डिश पर किरण से बाहर के क्षेत्र में दानेदार अमीबा सुस्त और असहाय अवस्था
में पड़े रहे; उस जगह, जहाँ ये लाल, नुकीली तलवार पड़ रही थी, विचित्र घटनाएँ होने
लगीं. लाल गोलाकार हिस्से में जीवन खदखदा रहा था. भूरे अमीबा अपने नकली पैरों को
बाहर निकाले पूरी ताकत से लाल गोले की तरफ़ बढ़ रहे थे और उसमें घुसकर (जैसे कोई
जादू हो गया हो) जीवित हो रहे थे. कोई ताकत उनमें ज़िन्दगी भर रही थी. वे झुण्डों
में रेंग रेंग कर जा रहे थे और लाल गोले में जगह पाने के लिए एक दूसरे से लड़ रहे
थे. उसमें जारी था एक बदहवास, कोई दूसरा शब्द नहीं मिल सकता, जनन चक्र. सभी नियमों
को, जो पेर्सिकोव को अपनी पांच उँगलियों की भाँति ज्ञात थे, तोड़ कर और उनका
उल्लंघन करते हुए वे उसकी आँखों के सामने विद्युत की गति से दुगुने होते जा रहे
थे. किरण में उनका विघटन हो रहा था, और हर भाग सिर्फ 2 सेकंड के भीतर नए और ताज़े
जीव में परिवर्तित हो रहा था. ये जीव कुछ ही पलों में अपने आकार-प्रकार और
परिपक्वता को प्राप्त करके तुरंत ही नई पीढ़ी को उत्पन्न कर देते. लाल गोले में, और
इसके बाद समूची डिस्क में जगह की काफ़ी तंगी होने लगी, और एक अवश्यंभावी संघर्ष
आरंभ हो गया. नवजात अमीबा तैश में एक दूसरे पर झपटते, टुकड़े टुकड़े कर देते और निगल
लेते. नवजात अमीबा के बीच में ही अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हुए शहीद हो गए
अमीबा के शव पड़े थे. सर्वोत्तम और शक्तिशाली ही जीत रहे थे. और ये ‘सर्वोत्तम’ –
भयानक थे. पहली बात: अपने आकार-प्रकार में वे साधारण अमीबा से दुगुने थे; और दूसरी
बात : उनमें एक ख़ास तरह का जुनून और फुर्ती थी. उनकी गतिविधियाँ केन्द्रित थीं,
उनके नकली पैर आम अमीबा के पैरों से काफ़ी लंबे थे और वे उनका, बिना अतिशयोक्ति के,
ऑक्टोपस के तंतुओं की तरह उपयोग कर रहे थे.
अगली शाम को प्रोफेसर ने , जिसका खाना न
खाने के कारण रंग पीला पड़ गया था और गाल पिचक गए थे, सिर्फ ख़ुद बनाई हुई मोटी मोटी
सिगरेट्स के सहारे, अमीबा की नई पीढ़ी का अध्ययन किया, और तीसरे दिन वह उद्गम
स्त्रोत, अर्थात् लाल किरण की ओर बढ़ा.
लैम्प में गैस हौले हौले फुसफुसा रही थी,
रास्ते पर फिर से यातायात बढ़ गया था, और प्रोफेसर, सौंवी सिगरेट के ज़हर से बाधित,
आँखें आधी मूंदे रिवॉल्विंग चेयर की पीठ से टिक गया.
“हाँ, अब सब स्पष्ट है. उनमें जान फूंकी किरण
ने. ये नई, अब तक किसी के भी द्वारा न खोजी गई, किरण है जिसका अब तक किसी के भी
द्वारा अध्ययन नहीं किया गया है. पहली बात, जो स्पष्ट करनी होगी वो ये है - क्या यह सिर्फ बिजली से प्राप्त की जाती है
या फिर इसे सूरज से भी प्राप्त किया जा
सकता है,” पेर्सिकोव अपने आप से बड़बड़ा रहा था.
और एक और रात में यह भी स्पष्ट हो गया.
तीन माइक्रोस्कोपों में पेर्सिकोव ने तीन किरणों को कैद किया, सूरज से उसे कुछ भी
हासिल न हुआ और उसने इस तरह से स्पष्टीकरण दिया:
“ये अनुमान लगाना होगा कि सूरज के स्पेक्ट्रम
में वो नहीं है....हुम्...तो, एक लब्ज़ में, ये अनुमान लगाना होगा कि उसे केवल
कृत्रिम प्रकाश से प्राप्त किया जा सकता है.” उसने ऊपर लगे मटमैले गोले की ओर
प्यार से देखा, उत्साहपूर्वक कुछ सोचा और इवानोव को अपनी कैबिनेट में बुलाया. उसने
उसे सब कुछ बताया और अमीबा भी दिखाए.
प्राइवेट- सहायक प्रोफेसर इवानोव भौंचक्का
रह गया, पूरी तरह किंकर्तव्यविमूढ़ रह गया: इतनी मामूली सी चीज़, इस महीन तीर को अब
तक किसीने कभी देखा क्यों नहीं, शैतान ले जाए! हाँ, किसी ने भी, और कम से कम उसने,
इवानोव ने भी... और है तो यह बड़ी आश्चर्यजनक बात! आप ग़ौर तो कीजिए...
“आप देखिए तो सही, व्लादीमिर इपातिच!” आँख
आई-पीस से सटाए इवानोव ने ख़ौफ़ से कहा, - ये क्या हो रहा है?! वे बढ़ रहे हैं, मेरी
आँखों के सामने बढ़ रहे हैं...देखिए, देखिए...”
“मैं तीन दिनों से उन्हें देख रहा हूँ,”
पेर्सिकोव ने जोश से कहा.
इसके बाद दोनों वैज्ञानिकों के बीच बातचीत
हुई, जिसका सार इस प्रकार था: प्राइवेट-सहायक प्रोफेसर लैंसों और शीशों की सहायता
से चैम्बर बनाएगा जिसमें इस किरण को मैग्निफाइड रूप में और माइक्रोस्कोप से बाहर
प्राप्त किया जा सकेगा. इवानोव को उम्मीद है, बल्कि पूरा पूरा यक़ीन है, कि ये काफ़ी
आसान काम है. व्लादीमिर इपातिच फ़िक्र न करें, किरण वह प्राप्त कर ही लेगा. यहाँ
थोड़ी सी रुकावट महसूस हुई.
“मैं, प्योत्र स्तेपानोविच, जब इस शोध को
प्रकाशित करूंगा , तो इस बात का ज़रूर उल्लेख करूंगा कि चैम्बर्स को आपने सुसज्जित
किया था,” पेर्सिकोव ने पुश्ती जोड़ी, ये महसूस करते हुए कि रुकावट को दूर करना
चाहिए.
“ओह, ये ज़रूरी नहीं है. ..मगर, बेशक...”
और रुकावट फ़ौरन दूर हो गई. इस पल से किरण
ने इवानोव को भी पूरी तरह अपनी गिरफ़्त में ले लिया. जब क्षीण और थकावट से चूर
पेर्सिकोव पूरा दिन और आधी रात माइक्रोस्कोप के पास बैठा रहता, इवानोव रोशनी से
जगमगाती फिज़िक्स-लेबोरेटरी में व्यस्त रहता – लैंसों और शीशों के संयोजन में. मैकेनिक
उसकी सहायता करता.
शिक्षा कमिश्नर के माध्यम से भेजे गए
अनुरोध के बाद पेर्सिकोव को जर्मनी से तीन पार्सल प्राप्त हुए जिनमें विभिन्न
प्रकार के लैंस थे – डबल कॉन्वेक्स, डबल
कॉन्केव, और कुछ पॉलिश किए हुए कॉन्वेक्सो-कॉन्केव मिरर्स. इस सबका परिणाम ये हुआ
कि इवानोव ने चैम्बर पूरी तरह सुसज्जित कर लिया और उसमें वाक़ई में लाल किरण को कैद
कर लिया. उसकी तारीफ़ करनी होगी कि उसने ये काम बड़ी ही क़ाबिलियत से किया : किरण
काफ़ी मोटी थी, चार सेंटीमीटर मोटी, नुकीली और सशक्त.
पहली जून को इस चैम्बर को पेर्सिकोव की
कैबिनेट में फिट कर दिया गया और उसने बड़ी उत्सुकता से किरण द्वारा प्रकाशित मेंढकों
के अण्डसमूहों पर प्रयोग करना आरंभ कर दिया. इन प्रयोगों के परिणाम चौंकाने वाले
थे. दो दिनों में इन अंडसमूहों से मेंढकों के हज़ारों डिम्ब बाहर निकले. मगर यह तो
कम ही था, और चौबीस घंटों में डिम्ब असाधारण मेंढकों में परिवर्तित हो गए, जो इतने
दुष्ट और लालची थे कि उनमें से आधों को तो फ़ौरन बाकी के आधे खा गए. इसके बाद,
जीवित मेंढक तुरंत अंडसमूह उत्पन्न करने लगे, और दो ही दिनों में बिना किसी
किरण-विरण के उन्होंने नई पीढ़ी उत्पन्न कर दी, और वह भी अपार, अनगिनत मेंढकों की. वैज्ञानिक
की कैबिनेट में शैतान ही जाने क्या हो रहा था : डिम्ब कैबिनेट से निकल निकल कर
पूरे इंस्टिट्यूट में, पिंजरों में, और फर्श पर भी रेंग रहे थे, सभी ओनों-कोनों
में टर्राहट सुनाई दे रही थी जैसी दलदल में सुनाई देती है. पन्क्रात, जो पेर्सिकोव
से ऐसे ख़ौफ़ खाता था मानो वह आग हो, अब उससे यूँ डरने लगा जैसे कोई मौत से डरता है.
एक हफ़्ते बाद वैज्ञानिक ने ख़ुद भी महसूस किया कि वह पगला रहा है. इंस्टीट्यूट ईथर
और पोटेशियम सायनाइड की गंध से भर गई थी, जिसका ज़हर पन्क्रात को ख़तम ही कर देता
जिसने समय से पूर्व अपना मास्क निकाल दिया था. इस भयानक रूप से बढ़ती हुई दलदली
आबादी को अनेक प्रकार के ज़हर से ख़तम कर दिया गया, सारी कैबिनेट्स में शुद्ध हवा प्रवाहित
की गई.
पेर्सिकोव इवानोव से कह रहा था,
“ जानते हो, प्योत्र स्तेपानोविच, इस किरण
की ड्यूटेरोप्लाज़्म और अण्डकोश पर प्रतिक्रिया चौंकाने वाली है.”
इवानोव ने, जो काफ़ी शांत और संयत स्वभाव
का व्यक्ति था, असाधारण स्वर में प्रोफेसर की बात काटी:
“
व्लादीमिर इपातिच, आप ड्यूटेरोप्लाज़्म जैसे इन छोटे छोटे विवरणों के बारे में क्या
सोच रहे हैं. साफ़ साफ़ कहेंगे : आपने ऐसी चीज़ का आविष्कार किया है जिसके बारे में
आज तक किसी ने सुना नहीं है.” ज़ाहिर है, काफ़ी प्रयत्नपूर्वक उसने ये शब्द कहे: - “प्रोफेसर
पेर्सिकोव, आपने जीवन की किरण की खोज की है!”
पेर्सिकोव के बदरंग, बिना दाढ़ी किए गालों पर हल्की सी रंगत
तैर गई.
“ओह, ओह, ओह,” वह बुदबुदाया.
“आप,” इवानोव कहता रहा, “इतना नाम
कमाएँगे...मेरा तो सिर घूम रहा है. आप, समझ रहे हैं,” वह जोश में कहता रहा,
“व्लादीमिर इपातिच, वेल्स के नायक तो आपके मुक़ाबले में बिल्कुल कचरा हैं...और मैं
तो सोचता था कि ये सिर्फ कहानियाँ हैं...आपको उसका ‘ देवों का भोजन’ याद है?”
“आह, ये उपन्यास है,” पेर्सिकोव ने जवाब दिया.
“हाँ, ख़ैर, थैन्क्स गॉड, बहुत मशहूर है!...”
“मैं भूल गया,” पेर्सिकोव ने कहा, “याद तो है कि
पढ़ा था, मगर भूल गया.”
“ऐसे कैसे याद नहीं है, हाँ, इसे देखिए,” इवानोव
ने काँच की मेज़ से टांग पकड़ कर मरे हुए अकराल-विकराल मेंढक को उठाया जिसका पेट
फूला हुआ था. उसके थोबड़े पर मरने के बाद भी दुष्ट भाव थे – “वाक़ई में, ये अजूबा
है!”
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