अध्याय 10
ड्रेसिंग रूम के दृश्य
समझ में
आ गया! समझ में आ गया! मेरे नाटक में
तेरह दृश्य थे. अपने छोटे-से कमरे में बैठकर, मैंने अपने सामने पुरानी चांदी की
घड़ी रखी और ज़ाहिर है, दीवार के पीछे वाले पड़ोसी को आश्चर्यचकित करते हुए ज़ोर-ज़ोर
से अपने ही लिए नाटक पढ़ा. हर दृश्य पढ़ने के बाद मैं कागज़ पर अंकित करता जाता. जब
पूरा पढ़ चुका, तो पता चला कि पढ़ने में तीन घंटे लग गए हैं. अब मैंने यह कल्पना की, कि प्रदर्शन के समय ‘इंटरवल’ भी होते हैं, जिनमें दर्शक
‘बुफे’ में जाते हैं. ‘इन्टरवल्स’ का समय जोड़ने पर मैंने देखा कि
मेरा नाटक एक ही शाम को नहीं खेला जा सकता.
इस प्रश्न से जुड़ी रात की यातनाओं ने मुझे इस निष्कर्ष पर पहुंचाया कि मैंने
एक दृश्य काट दिया. इससे प्रदर्शन का समय बीस मिनट कम हो गया, मगर इससे समस्या हल
नहीं हुई. मुझे याद आया, की इंटरवल्स के अलावा कुछ विराम भी होते हैं. जैसे, उदाहरण के लिए, ऐक्ट्रेस खड़ी है, और रोते हुए फ्लॉवरपॉट में
गुलदस्ता ठीक कर रही है. बोलने को तो वह कुछ नहीं बोलती, मगर समय तो गुज़रता है. हो सकता
है, घर पर बुदबुदाते हुए नाटक की इबारत पढ़ना – एक बात है, और स्टेज पर उसका उच्चारण करना –
एकदम अलग ही बात है.
नाटक में
से कुछ न कुछ और हटाना पडेगा, मगर क्या – यह पता नहीं. मुझे हर चीज़ महत्वपूर्ण लग रही थी, और इसके अलावा, हटाने के लिए कुछ योजना तो
बनानी थी, जैसे परिश्रम से बनाई हुई इमारत
ढहने लगी हो, और मुझे सपना आया, कॉर्निस गिर रही हैं, और बाल्कनियाँ ढह रही हैं, और ये सपने भविष्यसूचक थे.
तब मैंने
एक पात्र को निकाल दिया, जिससे एक दृश्य कुछ तिरछा हो गया, बाद में पूरी तरह उड़ गया, और ग्यारह दृश्य बचे.
आगे, मैंने अपने दिमाग़ पर कितना ही
जोर क्यों न दिया, कितनी ही सिगरेटें क्यों न फूंकी, कुछ भी कम नहीं कर सका. मेरी बाईं कनपटी
में प्रतिदिन दर्द होता. यह समझ कर कि अब आगे कुछ और नहीं हो सकता, मैंने मामले को उसके स्वाभाविक
प्रवाह पर छोड़ने का निर्णय लिया.
और इसके
बाद मैं पलिक्सेना तरपेत्स्काया के पास गया.
‘नहीं, बम्बार्दव के बिना मेरा काम
नहीं चलेगा...’ मैंने सोचा.
और
बम्बार्दव ने मेरी बहुत मदद की. उसने समझाया कि ‘इंडिया’ दो बार आया है, और ड्रेसिंग रूम – ज़रा भी बकवास
नहीं है और मैंने इसे नहीं सुना.
अब यह
पूरी तरह स्पष्ट हो गया, की स्वतन्त्र थियेटर के प्रमुख दो डाइरेक्टर थे: इवान वसील्येविच, जैसा कि मैं पहले ही जानता था, और अरिस्तार्ख प्लतोनविच...
“वैसे, ये बताइये, कि कार्यालय में, जहां मैंने कॉन्ट्रेक्ट पर
हस्ताक्षर किए थे, केवल एक ही पोर्ट्रेट क्यों है – इवान वसील्येविच का?”
यहाँ
बम्बार्दव, जो आम तौर पर बहुत जोश में रहता
है, झिझक गया.
“क्यों?...नीचे? हुम्...हुम्...
नहीं...अरिस्तार्ख प्लतोनविच...वह...वहां है...उसका पोर्ट्रेट ऊपर है...”
मैं समझ
गया कि बम्बार्दव को अभी मेरी आदत नहीं हुई है, वह मुझसे शर्मा रहा है. ये इस अस्पष्ट उत्तर से स्पष्ट था. मैंने भी शिष्टाचारवश
आगे कुछ नहीं पूछा... ‘ये दुनिया लुभाती है, मगर वह
रहस्यों से भरपूर है...’ – मैं सोच रहा था.
इंडिया? बहुत आसान है. अरिस्तार्ख प्लतोनविच इस समय इंडिया में है, फ़मा उसे रजिस्टर्ड ख़त लिखने वाला था. जहां तक ड्रेसिंग रूम का सवाल है, तो ये कलाकारों का मज़ाक है. वे ऊपरी डाइरेक्टर के सामने वाले कार्यालय को
इस नाम से पुकारते थे (और ये ही चिपक गया), जिसमें पलिक्सेना वसील्येव्ना तरपेत्स्काया
काम करती थी. वह – अरिस्तार्ख प्लतोनविच की सेक्रेटरी थी...
“और अव्गुस्ता अव्देयेव्ना?”
“हाँ, ज़ाहिर
है, इवान
वसील्येविच की.”
“आहा, आहा.”
“आहा-तो,
आहा...” मेरी तरफ़ विचारपूर्वक देखते हुए बम्बार्दव ने कहा,- “मगर आप, मैं
आपको पूरी संजीदगी से सलाह देता हूँ, तरपेत्स्काया
पर अच्छा प्रभाव डालने की कोशिश करें.”
“मुझे ये नहीं आता.”
“नहीं, आप
कोशिश कीजिये.”
ट्यूब की तरह मुड़ी हुई पांडुलिपि को पकड़े हुए मैं थियेटर के ऊपरी भाग में
गया और उस जगह तक पहुंचा, जहां,
निर्देशों के अनुसार ड्रेसिंग रूम था.
ड्रेसिंग रूम के सामने दालान था, जिसमें
सोफा था; मैं यहाँ रुक गया, परेशान
हो गया. अपनी टाई ठीक की, यह सोचते
हुए की मैं पलिक्सेना तरपेत्स्काया पर अच्छा प्रभाव कैसे डाल सकता हूँ. और तभी
मुझे ऐसा लगा, कि
ड्रेसिंग रूम से सिसकियाँ सुनाई दे रही हैं. “ये मुझे आभास हुआ है...” – मैंने
सोचा और मैं ड्रेसिंग रूम में गया, मगर
फ़ौरन पता चल गया कि मुझे ज़रा भी आभास नहीं हुआ था. मैंने अंदाज़ लगाया, कि शानदार रंग के चेहरे और लाल ब्लाऊज़ पहनी,
पीले डेस्क के पीछे बैठी महिला ही पलिक्सेना तरपेत्स्काया है, और वही सिसकियाँ ले रही थी. स्तब्ध और बिना दिखे, मैं दरवाज़े में ही ठहर गया. तरपेत्स्काया के गालों पर आंसू बह रहे थे, एक हाथ में वह रूमाल दबा रही थी, दूसरे
हाथ से डेस्क पर टकटक कर रही थी. भय और दुःख से घूमती आंखों वाला, एक चेचकरू, हट्टा कट्टा, हरे बटनहोल वाला आदमी, हाथों को हवा में नचाते हुए डेस्क के सामने खड़ा था.
“पलिक्सेना
वसील्येव्ना!” – बदहवासी से भर्राई हुई आवाज़ में वह आदमी चीखा.
“पलिक्सेना
वसील्येव्ना! अभी तक दस्तखत नहीं किये हैं! कल करेंगे!”
“ये
कमीनापन है!” पलिक्सेव्ना तरपेत्स्काया चीखी.
“आपने
ओछा काम किया है, दिम्यान कुज़्मिच! कमीना!”
“पलिक्सेना
वसील्येव्ना!”
“ये नीचे
वाले लोगों ने अरिस्तार्ख प्लतोनविच के खिलाफ साज़िश रची, इस बात का फ़ायदा उठाकर कि वह
इंडिया में है, और आपने उनकी मदद की!”
“पलिक्सेना
वसील्येव्ना! माँ!” – भयानक आवाज़ में वह आदमी चिल्लाया. “आप क्या कह रही हैं! क्या
मैं अपने उपकारकर्ता के खिलाफ...”
“मैं कुछ
भी सुनना नहीं चाहती,” तरपेत्स्काया चिल्लाई, “ सब झूठ है, घिनौना झूठ! आपको रिश्वत दी गई है!”
यह सुनकर
दिम्यान कुज़्मिच चीखा:
“पली...पलिक्सेना,” और अचानक खुद ही भयानक, खोखली, भौंकने जैसी आवाज़ में बिसूरने
लगा.
और
पलिक्सेना ने डेस्क को तोड़ने के लिए हाथ उठाया, उसे तोड़ दिया और अपनी हथेली में फूलदान से निकलती कलम की नोक घुसा ली. अब
पलिक्सेना धीरे से चिल्लाई, डेस्क के पीछे से उछली, कुर्सी पर गिर गयी, और बकल्स पर कांच के हीरे जड़े विदेशी जूते पहने अपने पैर पटकने लगी.
दिम्यान
कुज़्मिच चिल्लाया भी नहीं, बल्कि घुटी-घुटी आवाज़ में
चिंघाड़ा:
“हे
भगवान! डॉक्टर को बुलाओ!” और बाहर भागा, और उसके पीछे मैं भी दालान में लपका.
एक मिनट
बाद मेरे सामने से भूरा सूट पहने, हाथ में बैंडेज और एक बोतल लिए डॉक्टर भागते हुए गया और ड्रेसिंग रूम में
छुप गया.
मैंने
उसकी चीख सुनी:
“डियर!
शांत रहिये!”
“क्या
हुआ है?” मैंने दालान में दिम्यान
कुज़्मिच से फुसफुसाकर पूछा.
“ गौर
फरमाइए,” दिम्यान कुज़्मिच ने अपनी
बदहवास, छलकती आंखों से मेरी तरफ़ देखते
हुए, गूंजती हुई आवाज़ में कहा, “उन्होंने मुझे कमिटी में भेजा, अक्टूबर में हमारी सोची यात्रा
के लिए ट्रेवल वाउचर लाने के लिए...तो, उन्होंने मुझे चार वाउचर दिए और अरिस्तार्ख प्लतोनविच के भतीजे को न जाने
कैसे कमिटी में शामिल करना भूल गए... बोले, कल बारह बजे आओ...और, गौर फरमाइए – मैंने साज़िश रची है!” और दिम्यान कुज़्मिच की दर्द भरी आंखों
से यह स्पष्ट था कि वह बेक़सूर है, उसने कोइ साज़िश नहीं रची और आम तौर से वह साजिशों में शामिल नहीं होता.
ड्रेसिंग रूम से एक कमजोर चीख “आय!” बाहर आई, दिम्यान कुज़्मिच फ़ौरन लपक कर दालान से बाहर उछला और बिना कोई निशान छोड़े
गायब हो गया. दस मिनट बाद डॉक्टर भी चला
गया. मैं कुछ देर दालान में सोफ़े पर बैठा रहा, जब तक कि ड्रेसिंग रूम से टाइपराइटर की टकटक सुनाई न देने लगी, तब हिम्मत
करके मैं अन्दर गया.
पलिक्सेना
तरपेत्स्काया पावडर लगाकर, शांत होकर डेस्क के पीछे बैठी टाइप कर रही थी. मैंने झुककर अभिवादन किया, ये कोशिश करते हुए कि वह सुखद
और शालीन प्रतीत हो, और शालीन तथा प्रिय आवाज़ में बोलना शुरू किया, जिससे वह आश्चर्यजनक रूप से घुटी-घुटी प्रतीत हुई.
यह
स्पष्ट करने के बाद कि मैं फलां-फलां हूँ, और मुझे फ़मा ने भेजा है नाटक लिखवाने के लिए, पलिक्सेना ने मुझे बैठकर और इंतज़ार करने के लिए कहा, मैंने ऐसा ही किया.
ड्रेसिंग
रूम की दीवारों पर काफी सारी तस्वीरें, दगुएरियोटाइप, और चित्र लगे हुए थे, जिनके बीच प्रमुझ रूप से एक बड़ी, ऑइलपेंटिंग थी, कोट पहने और सत्तर के दशक की फैशन के अनुसार गलमुच्छों वाले एक सम्मानित
व्यक्ति का पोर्ट्रेट. मैंने अनुमान लगाया की यह अरिस्तार्ख प्लतोनविच है, मगर ये नहीं समझा कि यह हवा
जैसी सफ़ेद लड़की या महिला कौन थी, जो अरिस्तार्ख प्लतोनविच के सिर के पीछे से झाँक रही थी और जिसने हाथ में
पारदर्शी घूंघट पकड़ा हुआ था. इस पहेली ने मुझे इतना परेशान कर दिया, कि, मैं उचित पल में मैंने खांसकर इस बारे में पूछ लिया.
कुछ देर
खामोशी रही, जिसके दौरान पलिक्सेना ने अपनी
नज़र मुझ पर गड़ा दी, जैसे मेरा अध्ययन कर रही हो, और आखिरकार उसने जवाब दिया, मगर जैसे मजबूरी से:
“ये –
कवित्व प्रेरणा है.”
“आ-आ,” मैंने कहा.
टाइप
राइटर फिर खटखटाने लगा, और मैं दीवारों का निरीक्षण करने लगा और मुझे यकीन हो गया,
कि हर फ़ोटो या तस्वीर में अरिस्तार्ख प्लतोनविच ही है, अन्य लोगों के साथ.
जैसे, पीला पड़ चुका पुराना फ़ोटो
अरिस्तार्ख प्लतोनविच को जंगल के किनारे पर दिखा रहा था. अरिस्तार्ख प्लतोनविच शरद
ऋतु की, शहरी स्टाइल की वेशभूषा में था, जूतों में, ओवरकोट और ऊंची टोपी में. और
उसका साथी किसी जैकेट में था, एक बैग के साथ, दुनाली बन्दूक लिए. उसके साथी का चेहरा, नाक पकड़ चष्मा, सफ़ेद दाढ़ी मुझे जानी पहचानी लग रही थी.
पलिक्सेना
तरपेत्स्काया में अब एक शानदार गुण प्रदर्शित हुआ – एक ही समय में लिखना और किसी
जादुई तरीके से देखना कि कमरे में क्या हो रहा है. मैं तो थरथरा भी गया, जब उसने सवाल का इंतज़ार किये
बिना, कहा:
“हाँ, हाँ, अरिस्तार्ख प्लतोनविच तुर्गेनेव के साथ शिकार पर.”
इसी तरह
मैंने जाना कि स्लव्यान्स्की बाज़ार के प्रवेश के पास, ओवरकोट पहने, दो घोड़ों वाली
गाड़ी के पास खड़े दो व्यक्ति - अरिस्तार्ख
प्लतोनविच और अस्त्रोव्स्की हैं.
मेज़ पर
बैठे चार व्यक्ति, और पीछे रबर का पेड़: अरिस्तार्ख प्लतोनविच, पीसेम्स्की, ग्रिगारविच, और लिस्कोव.
अगले
फोटो के बारे में तो पूछने की ज़रुरत ही नहीं थी : बूढ़ा, नंगे पाँव, लम्बी कमीज़ में, हाथ बेल्ट में घुसाए, झाड़ियों जैसी भंवें, बेतरतीब दाढी वाला और गंजा, ल्येव टॉलस्टॉय के अलावा कोई और
हो ही नहीं सकता था. अरिस्तार्ख प्लतोनविच उसके सामने फूस की सपाट टोपी, और टसर की
गर्मियों वाली जैकेट में खड़ा था.
मगर अगली
वाटरकलर की तस्वीर ने मुझे बेइंतहा चौंका दिया.
‘ये नहीं
हो सकता,’ – मैंने सोचा. अत्यंत साधारण
कमरे में, कुर्सी पर, बेहद लम्बी पंछियों जैसी नाक
वाला एक आदमी बैठा था, बीमार और उत्तेजित आंखें, बालों की सीधी लटें लटकते हुए गालों पर झूल रही थीं, हल्के रंग की तंग पतलून, चौकोर पंजे के जूते, नीले टेलकोट में. घुटनों पर
पांडुलिपि, मेज़ पर शमादान में मोमबत्ती.
करीब
सोलह साल का जवान आदमी, जिसके अभी कल्ले भी नहीं फूटे थे, मगर वैसी ही धृष्ट नाक वाला, एक लब्ज़ में, बेशक अरिस्तार्ख प्लतोनविच, मेज़ पर हाथ टिकाये खड़ा था.
मैंने
आंखें फाड़कर पलिक्सेना की ओर देखा, और उसने रूखेपन से जवाब दिया:
“हाँ, हाँ. गोगल अरिस्तार्ख
प्लतोनाविच को ‘मृत आत्माएं’ का दूसरा भाग पढ़ कर सुना रहा है.
मेरे सिर के बाल खड़े हो गए, जैसे पीछे से कोई फूंक पर मार
रहा था, और मेरे मुँह से अनचाहे ही निकल
गया:
“आखिर
अरिस्तार्ख प्लतोनविच कितने साल के हैं?”
असभ्य
प्रश्न का उत्तर मुझे उसी तरह से मिला, पलिक्सेना की थरथराहट सुनाई दी:
“अरिस्तार्ख
प्लतोनविच जैसे लोगों की उम्र सालों में नहीं गिनी जाती. आपको, शायद, इस बात से आश्चर्य हो रहा
है, कि अरिस्तार्ख प्लतोनविच के
कार्यकाल में कई लोगों को उनकी संगत का लाभ उठाने का मौक़ा मिला.
“माफ़
कीजिये,” मैं घबराकर चिल्लाया. “इसके
बिलकुल विपरीत!...मैं...” – मगर मैंने आगे कोई फ़िज़ूल की बात नहीं कही, क्योंकि
मैंने सोचा, “बल्कि इसके विपरीत?! मैं क्या बकवास कर रहा हूँ?”
पलिक्सेना
चुप हो गयी, और मैंने सोचा : ‘नहीं, मैं उस पर अच्छा प्रभाव नहीं
डाल सका. ओफ़! ये स्पष्ट है!’
तभी
दरवाज़ा खुला, और ड्रेसिंग रूम में फुर्तीली चाल से एक महिला ने प्रवेश किया, और उसे देखते ही मैं पहचान गया
कि यह पोर्टेट-गैलरी से ल्युद्मीला सिल्वेस्त्रव्ना प्र्याखिना है. महिला पर सब
कुछ वैसा ही था, जैसा पोर्ट्रेट में था : स्कार्फ, और हाथ में वही रूमाल, और उसने उसी तरह उसे पकड़ा था, छोटी ऊंगली बाहर को निकली हुई.
मैं सोच
रहा था की उस पर भी अच्छा प्रभाव डालने की कोशिश करना बुरा नहीं होगा, अच्छा था कि यह साथ ही करूं, और मैंने विनम्रता से झुक कर
उसका अभिवादन किया, मगर उस पर किसी का ध्यान नहीं गया.
भागते
हुए भीतर आकर महिला ठहाके लगाने लगी और चहकी:
“नहीं, नहीं! क्या आप देख नहीं रही हैं? क्या वाकई में आप नहीं देख रही
हैं?”
“क्या
बात है?” तरपेत्स्काया ने पूछा.
“अरे, सूरज, सूरज!” रूमाल से खेलते हुए, और कुछ डान्स करते हुए
ल्युद्मीला सिल्वेस्त्रव्ना चहकी. “इन्डियन समर! इन्डियन समर!”
पलिक्सेना
ने ल्युद्मीला सिल्वेस्त्रव्ना पर रहस्यमय नज़र डाली और बोली:
“यहाँ ये
प्रश्नावली भरना होगी.”
ल्युद्मीला
सिल्वेस्त्रव्ना की खुशी फ़ौरन काफ़ूर हो गयी और उसका चेहरा इस कदर बदल गया कि अब
किसी भी हालत में मैं उसे पोर्ट्रेट में भी नहीं पहचान सकता.
“और कैसी
प्रश्नावली? आह, माय गॉड! माय गॉड!” और अब तो मैं उसकी आवाज़ भी नहीं पहचान सका. “अभी-अभी
मैं सूरज को देखकर खुश हो रही थी, अपने आप में मगन थी, अभी-अभी मैंने कुछ पाया था, बीज उगाया था, मन के तार गाने लगे थे, मैं चल रही थी, जैसे मंदिर में जा रही हूँ...और ये...खैर, लाईये, लाईये, इधर दीजिये!”
“चिल्लाने
की ज़रुरत नहीं है, ल्युद्मीला सिल्वेस्त्रव्ना,” तरपेत्स्काया ने हौले से कहा.
“मैं
चिल्ला नहीं रही हूँ! मैं चिल्ला नहीं रही हूँ! और मैं कुछ देख भी नहीं रही हूँ, भयानक तरीके से छापा है.”
प्र्याखिना
ने प्रश्नावली के भूरे कागज़ पर नज़र दौड़ाई और अचानक उसे दूर धकेल दिया:
“आह, आप खुद ही लिखिए, लिखिए, इन बातों में मैं कुछ भी नहीं
समझती!”
तरपेत्स्काया
ने कंधे उचकाए, कलम उठाई.
“चलो, प्र्याखिना, प्र्याखिना,” ल्युदमीला सिल्वेस्त्रव्ना
मायूसी से चीखी, - “ ओह, ल्युद्मीला सिल्वेस्त्रव्ना! सब ये जानते हैं, और मैं कुछ भी नहीं छुपाती!”
तरपेत्स्काया
ने प्रश्नावली में तीन शब्द लिखे और पूछा:
“आपका
जन्म कब हुआ था?”
इस सवाल
ने प्र्याखिना पर गज़ब का प्रभाव डाला: उसके गालों की हड्डियों पर लाल धब्बे उभर
आये, और वह अचानक फुसफुसाहट से बोली:
“अत्यंत
पवित्र ईश्वर की माँ! ये क्या है? मैं समझ नहीं पा रही हूँ, कि किसे यह जानने की ज़रुरत है, किसलिए? अच्छा, ठीक है, ठीक है. मैं मई में पैदा हुई थी, मई में! और क्या चाहिए मुझसे? क्या?”
“कौनसे
साल में, यह ज़रूरी है,” तरपेत्स्काया ने
हौले से कहा.
प्र्याखिना
की आंखें नाक की तरफ झुक गईं, और उसके कंधे थरथराने लगे.
“ओह, काश,” वह फुसफुसाई, “इवान वसील्येविच देखते की कैसे कलाकार को रिहर्सल से पहले सताया जाता
है!...”
“नहीं, ल्युद्मीला सिल्वेस्त्रव्ना, ऐसे नहीं चलेगा,” तरपेत्स्काया ने जवाब दिया, “आप प्रश्नावली घर ले जाइए और
खुद ही जैसा चाहें, भर लीजिये.”
प्र्याखिना
ने झपट कर कागज़ ले लिया और मुंह बनाते हुए, घृणा से उसे अपने पर्स में ठूंसने लगी.
तभी
टेलीफोन बज उठा, और तरपेत्स्काया तीखी आवाज़ में चिल्लाई,
“ओह!
नहीं, कॉम्रेड! कैसे टिकट! मेरे पास
कोई टिकट-विकट नहीं है!...क्या?
नागरिक!
आप मेरा वक्त बर्बाद कर रहे हैं! मेरे पास कोई...क्या? आह!”
तरपेत्स्काया
का चेहरा लाल हो गया. “आह! माफ़ कीजिये! मैं आवाज़ नहीं पहचान पाई! हाँ, बेशक! बेशक! सीधे कंट्रोल रूम
में रख दिए जायेंगे. और मैं प्रोग्राम भी रखने के लिए कह दूंगी! और, क्या फिओफिल व्लदिमीरविच खुद
नहीं आयेगे? हमें बहुत अफसोस होगा! बहुत!
शुभकामनाएँ, ढेर सारी शुभकामनाएँ!”
परेशान तरपेत्स्काया ने रिसीवर लटका दिया और कहा:
“आपकी वजह से मैंने ग़लत इंसान से बदतमीज़ी की!”
“आह, छोडिये, ये सब छोडिये!’ प्र्याखिना मायूसी से चिल्लाई. – “बीज मर गया, दिन बर्बाद हो गया!”
“हाँ,”
तरपेत्स्काया ने कहा, “ग्रुप
लीडर ने आपसे उसके पास जाने के लिए कहा है.”
प्र्याखिना के गालों पर हल्की लाली छा गयी, उसने
घमंड से अपनी भौंहें ऊपर उठाईं.
“उसे मेरी ज़रुरत क्यों पड गयी? ये
बेहद दिलचस्प है!”
“कॉस्ट्यूम डिज़ाईनर करल्कोवा ने आपकी शिकायत की.”
“कौन करल्कोवा?” – प्र्याखिना चहकी. “कौन है वो? आह, हाँ याद आया! और याद कैसे ना आये,” अब
ल्युद्मीला सिलेस्त्रव्ना ने इतनी ज़ोर से ठहाका लगाया, कि
मेरी पीठ में ठण्डी लहर दौड़ गयी, “ऊ”
करते हुए और अपने होंठ खोले बिना, “इस करल्कोवा
को कैसे याद न करूँ, जिसने मेरी
झालर को
बर्बाद कर दिया था? उसने मेरे बारे में क्या ज़हर उगला है?”
“वह
शिकायत कर रही है, की आपने हेयर ड्रेसर्स के ड्रेसिंग रूम में गुस्से से उसे चुटकी काट ली,” तरपेत्स्काया ने प्यार से कहा, और उसकी हीरे जैसी आंखों में पल
भर के लिए चमक प्रकट हुई.
तरपेत्स्काया
के शब्दों ने जो प्रभाव डाला था, उससे मैं हैरान हो गया. प्र्याखिना ने अचानक, अपना मुंह आडा-तिरछा खोला, जैसा दांतों के डॉक्टर के सामने खोलते हैं, और उसकी आंखों से आंसुओं की दो धाराएं छलछला गईं. मैं अपनी कुर्सी में
सिकुड़ गया और न जाने क्यों पाँव ऊपर कर लिए.
तरपेत्स्काया
ने घंटी का बटन दबाया, और फ़ौरन दरवाज़े में दिम्यान कुज़्मिच का सिर घुसा और फ़ौरन
गायब हो गया.
इधर
प्र्याखिना ने माथे पर मुट्ठी रखी और ऊंची, कर्कश आवाज़ में चीखने लगी:
“मुझे
दुनिया से उठा देना चाहते हैं. माय गॉड! माय गॉड! माय गॉड! कम से कम तुम तो देखो, पवित्र माँ, मेरे साथ थियेटर में क्या कर
रहे हैं! कमीना पेलिकान! और गेरासिम निकालायेविच गद्दार है! मैं कल्पना कर सकती
हूँ, कि उसने सिव्त्सेव व्राझेक में
मेरी शिकायत की है! मगर मैं इवान वसील्येविच के पैरों पर गिर पडूँगी! उससे
प्रार्थना करूंगी की मेरी बात सुने!...” उसकी आवाज़ बैठ गयी और थरथरा गयी.
तभी दरवाज़ा खुल गया, वही डॉक्टर भागते हुए भीतर आया. उसके हाथों में एक बोतल और गिलास था. किसी
से भी कुछ न पूछते हुए, उसने अभ्यस्त हाथों से बोतल से गिलास में धुंधला द्रव डाला, मगर प्र्याखिना भर्राई हुई आवाज़
में चीखी:
“छोड़ दो
मुझे! छोड़ दो मुझे! कमीने लोग!” और बाहर भाग गई.
उसके
पीछे चिल्लाते हुए डॉक्टर भागा: “प्यारी!” और डॉक्टर के पीछे, अपने गठिया वाले
पैरों से विभिन्न दिशाओं में धम् धम् करते हुए, न जाने कहाँ से भागकर प्रकट हुआ दिम्यान कुज़्मिच.
खुले हुए
दरवाजों से पियानो की पट्टियों की फ़ुहार और दूर से आती हुई दमदार आवाज़ जोश से गा
रही थी:
“...और
बनेगी तू रानी दू...उ...उ...” वह और आगे भी गा रहा था, “निया...या की ...”, मगर दरवाज़े
धड़ाम् से बंद हो गए, और आवाज़ ग़ायब हो गई.
“तो, अब मैं खाली हूँ, चलो, शुरू करें,” हौले से मुस्कुराते हुए तरपेत्स्काया ने कहा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.