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सोमवार, 21 जनवरी 2013

Discussion on Master & Margarita(Hindi)- Chapter24


अध्याय 24
 वोलान्द के शयनकक्ष में सब कुछ वैसा ही था जैसा कि नृत्योत्सव से पहले था. अब वे सब भोजन करने वाले थे.
मार्गारीटा बेहद थक गई थी. वोलान्द अपने पास बिठाता है और पूछता है कि क्या वह बहुत थक गई है. उसे पीने के लिए स्प्रिट दिया जता है जिसे पीकर उसका चैतन्य वापस लौट आता है.
मार्गारीटा द्वारा किए गए बेहतरीन काम की सब प्रशंसा करते हैं.
हँसी मज़ाक और बातचीत के बीच भोजन बड़ी देर तक चलता है.
मार्गारीटा कहती है कि उसके वापस जाने का समय हो गया है...
 आपको कहाँ की जल्दी है? वोलान्द ने प्यार से मगर कुछ रुखाई से पूछा. बाकी सब चुप रहे, यह दिखाते हुए कि वे सिगार के धुएँ के छल्लों वाले खेल में मगन हैं.
 हाँ, समय हो गया है, इस सबसे झेंपकर मार्गारीटा बोली और वह मुड़ी, मानो अपना लबादा या रेनकोट ढूँढ़ रही हो. अचानक अपनी नग्नता से वह सकुचा गई. वह मेज़ से उठी. वोलान्द ने चुपचाप अपना गन्दा, धब्बेदार हाउस कोट उठाया और कोरोव्येव ने उसे मार्गारीटा के कन्धों पर डाल दिया.
 धन्यवाद, महोदय, हौले से मार्गारीटा ने कहा और प्रश्नार्थक नज़रों से वोलान्द की ओर देखने लगी. वह जवाब में बड़ी शिष्टता और उदासीनता से मुस्कुराया. मार्गारीटा के दिल को गम की काली घटा ने ढाँक लिया. उसे लगा कि उसे धोखा दिया गया है. नृत्योत्सव के दौरान अर्पित की गई सेवाओं का उसे न तो कोई इनाम मिलने वाला था और न ही कोई उसे रोकना चाह रहा था. साथ ही उसे यह भी साफ तौर से पता था कि वह यहाँ से कहीं भी नहीं जा सकती. एक ख़याल उसके दिमाग को छू गया, कि कहीं वापस अपने आलीशान घर में न जाना पड़े. और, वह उदास हो गई. क्या खुद ही निर्लज्ज होकर उस बात के बारे में पूछ ले, जिसका वादा अज़ाज़ेलो ने अलेक्सान्द्रोव्स्की पार्क में किया था? नहीं, किसी कीमत पर नहीं उसने अपने आप से कहा.
 आपको शुभ कामनाएँ, महोदय, वह प्रकट में बोली, और स्वयँ अपने आप में सोचने लगी, बस, यहाँ से निकल जाऊँ, फिर तो नदी में जाकर डूब मरूँगी.
  बैठिए तो, अचानक आज्ञा देते हुए वोलान्द ने कहा. मार्गारीटा के चेहरे का रंग बदल गया, और वह बैठ गई.
 शायद जाते-जाते मुझसे कुछ कहना चाहती हैं? वोलान्द ने पूछा.
 नहीं, कुछ नहीं, महाशय, मार्गारीटा ने स्वाभिमानपूर्वक कहा, बस यही कि यदि आपको अब भी मेरी ज़रूरत हो तो मैं खुशी-ख्उशी आपकी इच्छा का पालन करूँगी. मैं नृत्योत्सव में ज़रा भी नहीं थकी और मुझे बहुत मज़ा आया. मतलब, यदि वह और भी चलता रहता तो मैं खुशी-खुशी अपना घुटना आगे करती, ताकि हज़ारों जल्लाद और खूनी उसे चूम सकें, मार्गारीटा ने वोलान्द की ओर मानो झरोखे से देखा, उसकी आँखों में आँसू भर आए.
 सही है! आप एकदम ठीक कह रही हैं! भयानकता से वोलान्द चिल्लाया, ऐसा ही होना चाहिए!
 ऐसा ही होना चाहिए! उसने साथियों ने इस गूँज को दुहराया. हम आपको परख रहे थे, वोलान्द कहता रहा, कभी भी, कुछ भी मत माँगिए! कभी भी नहीं, कुछ भी नहीं, खासतौर से उनसे जो आपसे शक्तिशाली हैं. वे खुद ही प्रस्ताव रखेंगे और खुद ही सब कुछ दे देंगे! बैठ जाओ, स्वाभिमानी महिला! वोलान्द ने मार्गारीटा के कन्धों से भारी-भरकम हाउसकोट खींच लिया. वह फिर से उसके निकट पलंग पर बैठी नज़र आई, तो, मार्गो, वोलान्द ने अपनी आवाज़ को नर्म बनाते हुए कहा, आज आपने मेरे लिए मेज़बान का काम किया, उसके लिए आपको क्या चाहिए? नग्नावस्था में नृत्योत्सव का संचालन करने के बदले में क्या चाहती हैं? अपने घुटने की क्या कीमत लगाती हैं? मेरे मेहमानों के कारण जिन्हें अभी-अभी आपने जल्लाद और खूनी कहा, आपको क्या हानि हुई? कहिए! अब बिल्कुल निःसंकोच होकर कहिए, क्योंकि प्रस्ताव मैंने रखा है.
मार्गारीटा का दिल ज़ोर से धड़का, एक गहरी साँस लेकर वह कुछ सोचने लगी.
 बोलिए, बेधड़क कहिए! वोलान्द ने उसकी हिम्मत बढ़ाई, अपनी विचारशक्ति पर, कल्पनाशक्ति पर ज़ोर डालिए, उसे पैना कीजिए! सिर्फ उस बेहूदे, इतिहास में जमा सामंत की हत्या के वक़्त उपस्थित रहने पर ही किसी भी आदमी को पुरस्कार मिलना चाहिए, यदि वह व्यक्ति औरत हो, तो फिर बात ही क्या है. तो?
मार्गारीटा की ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे रह गई. वह मन में सोचे गए अच्छे, बढ़िया शब्दों से अपनी बात कहने जा रही थी कि अचानक वह पीली पड़ गई. उसका मुँह खुला रह गया. आँखें बाहर निकल आईं. फ्रीड़ा! फ्रीड़ा! फ्रीड़ा! किसी की चिरौरी करती-सी आवाज़ उसके कानों में गूँजने लगी, मेरा नाम फ्रीड़ा है! और मार्गरीटा अटकते हुए बोली, हाँ, क्या मैं एक चीज़ के लिए प्रार्थना कर सकती हूँ?
 माँगिए, माँगिए, मेरी जान, वोलान्द ने जवाब दिया, वह मानो कुछ समझते हुए मुस्कुराया, एक चीज़ की माँग कीजिए!
ओह, कितनी सफ़ाई और स्पष्टता से वोलान्द ने ज़ोर देकर मार्गारीटा के ही शब्द दुहरा थे, एक चीज़! मार्गारीटा ने फिर साँस ली और कहा, मैं चाहती हूँ कि फ्रीड़ा को वह रूमाल देना बन्द कर दिया जाए, जिससे उसने अपने बच्चे का दम घोंट दिया था.
 बिल्ले ने आकाश की ओर आँखें उठाईं और ज़ोर से साँस ली, मगर कहा कुछ नहीं; कोरोव्येव और अज़ाज़ेलो भी चौंक गए.
वोलान्द कहता है कि फ्रीडा को माफ़ करना मार्गारीटा के अपने ही वश में है और मार्गारीटा फ्रीडा को क्षमा कर देती है.
 धन्यवाद, अलबिदा, मार्गारीटा ने कहा और वह उठने लगी.
 तो, बेगेमोत, वोलान्द ने बोलना शुरू किया, उत्सव की रात को एक नासमझ व्यक्ति के बर्ताव पर ध्यान नहीं देंगे, वह मार्गारीटा की ओर मुड़ा, तो इसकी गिनती नहीं होगी, क्योंकि मैंने कुछ भी नहीं किया है. आप अपने लिए क्या चाहती हैं?
खामोशी छा गई जिसे मार्गारीटा के कान में फुसफुसाते हुए कोरोव्येव ने तोड़ा, बहुमूल्य सम्राज्ञी, इस बार मैं सलाह दूँगा, कि आप अकल से काम लें! कहीं ऐसा न हो कि सुअवसर हाथ से निकल जाए!
 मैं चाहती हूँ कि इसी समय, इसी क्षण मेरा प्रियतम, मास्टर मुझे लौटा दिया जाए, मर्गारीटा ने कहा और उसके चेहरे की रेखाएँ थरथराने लगीं.
 तभी कमरे में हवा घुस आई, जिससे मोमबत्तियों की लौ लेट गई, खिड़की का भारी परदा हट गया, खिड़की फट् से खुल गई और दूर ऊँचाई पर पूरा; प्रातःकालीन नहीं, बल्कि अर्धरात्रीय चन्द्रमा दिखाई दिया. खिड़की की सिल से होकर फर्श पर रात के प्रकाश का हरा-सा रूमाल अन्दर आया, उस प्रकाश में प्रकट हुआ इवानूश्का का रात का मेहमान, जो अपने आपको मास्टर कहता था. वह अस्पताल के मरीज़ों के कपड़े पहने था गाउन, जूते और काली टोपी, जिसे वह अपने से दूर नहीं करता था. उसका दाढ़ी बढ़ा चेहरा विकृत हावभावों से काँप रहा था. उसने पागलों जैसी घबराहट से मोमबत्तियों की रोशनी को देखा. चाँद का प्रकाश उसके चारों ओर उबल रहा था.     
मास्टर की वापसी के बाद अब घटनाएँ सकारात्मक दिशा में चलने लगती हैं. वोलान्द समझ जाता है कि मास्टर के साथ क्या-क्या हुआ था, उसे किस-किस ने सताया था और वह उन सबको एक एक करके सज़ा देना शुरू करता है.
 चलिए, देखते हैं कि वोलान्द यह सब कैसे करता है.
मास्टर मार्गारीटा को पहचान जाता है, मगर जब वह स्वयँ को अनजान लोगों से घिरे पाता है तो घबरा जाता है. वह मार्गारीटा को दूर धकेलता है जो रोते हुए उससे लिपट गई थी. मार्गारीटा उससे कहती है कि वह किसी भी चीज़ से न डरे.
वोलान्द मास्टर की ओर देखकर कहता है कि उसे खूब सताया गया है. यह उस समय की वास्तविकता थी. एक तरह से वह पाठकों को बतलाता है कि उस रात  जब वह ग़ायब हो गया था तो उसे यातनागृह ले जाया गया थी जहाँ उसे असीम यातनाएँ दी गई थीं.
 मास्टर को पीने के लिए एक द्रव दिया जाता है, जिसके तीन ग्लास पीकर वह अपनी सामान्य स्थिति में लौट आता है.
वोलान्द उससे पूछता है, “अभी आप कहाँ से आए हैं?” और जब मास्टर कहता है कि वह मानसिक रुग्णालय से आया है तो मार्गारीटा रो पड़ती है. वह वोलान्द से कहती है कि वह ‘मास्टर’ है और वोलान्द द्वारा ठीक किए जाने की योग्यता रखत है.
मास्टर समझ जाता है कि वह किससे बात कर रहा है.
जब वोलान्द मास्टर से पूछता है कि मार्गारीटा उसे ‘मास्टर’ क्यों कहती है, तो वह येशू और पोन्ती पिलात वाले उपन्यास के बारे में बताता है...वोलान्द उपन्यास देखना चाहता है और जब मास्टर उसे बताता है कि वह उपन्यास को जला चुका है तो वोलान्द कहता है, माफ़ कीजिए, मैं इस पर विश्वास नहीं करता, वोलान्द बोला, ऐसा हो ही नहीं सकता. पांडुलिपियाँ कभी जलती नहीं. वह बेगेमोत की ओर मुड़ा और बोला, अरे, बेगेमोत, उपन्यास इधर दो.
बिल्ला फौरन कुर्सी से उछला, और सबने देखा कि वह पांडुलिपियों के एक ऊँचे ढेर पर बैठा है. सबसे ऊपर की पांडुलिपि उसने झुककर अभिवादन करते हुए वोलान्द की ओर बढ़ा दी. मार्गारीटा काँप गई और चीख पड़ी, घबराहट से उसकी आँखों में फिर से आँसू भर आए.
 यही है, पांडुलिपि! यही है!
वह वोलान्द के सामने झुकी और प्रसन्नता से बोली, सर्व शक्तिमान! सर्व शक्तिमान!
अब वोलान्द मार्गारीटा से पूछता है कि वह उससे क्या चाहती है.
 मार्गारीटा की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं. वह विनती करते हुए वोलान्द से बोली, मुझे उसके साथ बात करने देंगे?
वोलान्द ने सिर हिलाकर हाँ कहा, तो मार्गारीटा ने मास्टर के कान से लगकर फुसफुसाते हुए कुछ कहा. साफ सुनाई दिया कि मास्टर ने कहा, नहीं, बहुत देर हो चुकी है. मुझे ज़िन्दगी में अब कुछ नहीं चाहिए. सिवाय इसके कि तुम मेरे सामने रहो. मगर तुम्हें मैं फिर सलाह दूँगा मुझे छोड़ दो. मेरे साथ तुम्हारा भी नुकसान होगा.
 नहीं, नहीं छोडूँगी, मार्गारीटा ने जवाब दिया और वह वोलान्द की तरफ मुड़ी, मैं प्रार्थना करती हूँ कि हमें दुबारा अर्बात वाले उसी घर में भेज दिया जाए; टेबुल पर लैम्प जलता रहे और सब कुछ वैसा ही हो जाए जैसा पहले था.
अब मास्टर हँस पड़ा और मार्गारीटा की घुँघराले बालों वाला मुख अपने हाथों में लेकर बोला, ओह, इस गरीब औरत की बात न सुनिए, महोदय! उस घर में कब से कोई दूसरा आदमी रहता है, और ऐसा कभी होता नहीं है कि सब कुछ वैसा ही हो जाए, जैसा पहले था. उसने अपना गाल मार्गारीटा के सिर से सटाकर मार्गारीटा को अपनी बाँहों में भर लिया, और बड़बड़ाने लगा, बेचारी, बेचारी...
 आप कहते हैं कि नहीं हो सकता? वोलान्द ने कहा, यह सही है. मगर हम कोशिश करेंगे... और उसने कहा, अज़ाज़ेलो!
उसी समय छत से अवतीर्ण हुआ घबराया हुआ और लगभग पगला गया एक नागरिक, जिसने सिर्फ कच्छा पहन रखा था, मगर न जाने क्यों उसके हाथ में एक सूटकेस था और सिर पर थी टोपी. डर के मारे वह आदमी काँप रहा था और वह धम् से नीचे बैठ गया.
 मोगारिच? अज़ाज़ेलो ने उस आसमान से टपके प्राणी से पूछा.
 अलोइज़ी मोगारिच, उसने काँपते हुए जवाब दिया.
 आप वही हैं, जिसने इस आदमी के उपन्यास के बारे में लिखा लातून्स्की का लेख पढ़कर उसकी यह कहते हुए शिकायत की थी कि उसने गैरकानूनी साहित्य अपने घर में छिपा रखा है? अज़ाज़ेलो ने पूछा.
 नए आए नागरिक का बदन नीला पड़ गया और उसकी आँखों से पश्चात्ताप के आँसू बहने लगे.
 आप इसके कमरों को हथियाना चाहते थे? अज़ाज़ेलो ने यथासम्भव सहृदयता दिखाते हुए पूछा.
  मोगारिच को खिड़की से बाहर फेंक दिया जाता है, मास्टर के फ्लैट की किराए की पुस्तिका में मास्टर का नाम लिख दिया जाता है और उसे मकान मालिक की मेज़ की दराज़ में रख दिया जाता है. मास्टर की बीमारी के केस-पेपर्स नष्ट कर दिए जाते हैं, जिससे स्त्राविन्स्की के क्लिनिक के कमरा नं. 118 के मरीज़ का कोई नामो निशान बाक़ी नहीं बचता.
वोलान्द का काम एकदम साफ़-सुथरा है.
अब नताशा प्रविष्ट होती है निकोलाय इवानोविच के साथ. वह प्रार्थना करती है कि उसे चुडैल ही रहने दिया जाए. नृत्योत्सव में मि. जैक ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया था. उसकी प्रार्थना मान ली जाती है.
निकोलाय इवानोविच घर वापस जाना चाहता है. वह एक सर्टिफिकेट की मांग करता है जो यह सिद्ध कर सके कि पिछली रात उसने कहाँ गुज़ारी. उसे सर्टिफिकेट दे दिया जाता है.
फिर आता है वारेनूखा. वह स्वीकार करता है कि वह पिशाच नहीं बन पाया. उस समय हैला के साथ उसने रीम्स्की को लगभग समाप्त ही कर दिया था, मगर व्ह खून का प्यासा नहीं है.
अज़ाज़ेलो उसे चेतावनी देता है कि वह टेलिफोन पर झूठ न बोले. वारेनूखा भी अदृश्य हो जाता है.
एक बड़े सूटकेस में मास्टर के उपन्यास की पांडुलिपियाँ भर दी जाती हैं. फिर आती है बिदाई की बेला. बुल्गाकोव बड़ी सुन्दरता से वोलान्द की मास्टर के भविष्य की कल्पना को चित्रित करते हैं.
वोलान्द के ये वाक्य पत्थर की लकीर बन गए. देखिए, अपने कथन ‘पांडुलिपियाँ कभी नहीं जलतीं,’ के अलावा वोलान्द ने और क्या कहा था:
 कुछ देर की खामोशी के बाद वोलान्द मास्टर से मुख़ातिब हुआ.
 तो, अर्बात के तहखाने वाले कमरे में? और लिखेगा कौन? और सपने? प्रेरणा?
 मेरे पास अब कोई सपना नहीं है, प्रेरणा भी नहीं है. मास्टर ने जवाब दियामुझे अब किसी चीज़ में कोई दिलचस्पी नहीं है, सिर्फ इसे छोड़कर, उसने फिर मार्गारीटा के सिर पर हाथ रखामुझे उन्होंने तोड़ दिया है, मैं उकता गया हूँ और मैं वापस तहख़ाने में जाना चाहता हूँ.
 और आपका उपन्यास, पिलात?
 मुझे नफरत है उस उपन्यास से, मास्टर ने जवाब दियाउसके कारण मुझे बहुत दुख झेलना पड़ा है.
 मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ, मार्गारीटा ने दुखी होकर कहाऐसा मत कहो. तुम मुझे क्यों सता रहे हो? तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि तुम्हारे इस काम में मैंने अपनी सारी ज़िन्दगी दाँव पर लगा दी है. मार्गारीटा ने अब वोलान्द की ओर मुड़कर कहाआप इसकी बात न सुनिए, महाशय! यह बहुत दुखी है.
 मगर कुछ तो लिखना ही होगा न? वोलान्द ने कहाअगर आप न्यायाधीश के बारे में लिख चुके हैं, तो कम से कम इस अलोइज़ी के बारे में ही लिख डालिए...
मास्टर मुस्कुराया.
 उसे तो लाप्शोन्निकोवा छापेगी नहीं और फिर वह दिलचस्प भी नहीं है.
 मगर आप ज़िन्दा कैसे रहेंगे? भीख माँगनी पड़ सकती है.
 खुशी से, खुशी से, मास्टर ने कहा और मार्गारीटा को खींचकर अपने आलिंगन में ले लितावह समझ जाएगी, मुझसे दूर चली जाएगी...
 मैं ऐसा नहीं सोचता, वोलान्द मुँह ही मुँह में बुदबुदाया और आगे बोलापोंती पिलात का इतिहास लिखने वाला आदमी तहखाने में जाएगा, इस उद्देश्य से कि वह लैम्प के पास बैठा रहे और भूखा मरे.
मास्टर से दूर हटकर मार्गारीटा गुस्से से बोलीमैंने वह सब किया, जो कर सकती थी. और मैंने उसके कानों में सबसे अधिक आकर्षक चीज़ के बारे में भी कहा. मगर इसने इनकार कर दिया.
 जो आपने उसके कान में फुसफुसाकर कहा, वह मैं जानता हूँ, वोलान्द ने प्रतिवाद करते हुए कहामगर वह आपसे ज़्यादा आकर्षक तो नहीं है. मैं आपसे कहता हूँ... मुस्कुराते हुए उसने मास्टर से कहाकि आपका यह उपन्यास आपके लिए अनेक आश्चर्य लायेगा.
 यह तो बहुत दुःख की बात है, मास्टर ने जवाब दिया.
 नहीं, नहीं यह दुःख की बात नहीं है, वोलान्द बोलाअब कोई भी दुःखद घटना नहीं घटॆगी. तो...मार्गारीटा निकोलायेव्ना, सब कुछ किया जा चुका है. आपको मुझसे कोई शिकायत है?
 आप कैसी बात कर रहे हैं, महाशय!
 तो, यह लीजिए, मेरी ओर से यादगार के तौर पर... वोलान्द ने कहा और तकिए के नीचे से एक छोटी-सी हीरे जड़ी सोने की नाल निकाली.
 नहीं, नहीं, नहीं, यह किसलिए!
 आप मुझसे बहस करना चाहती हैं? मुस्कुराते हुए वोलान्द ने पूछा.
मार्गारीटा ने इस भेंट को रूमाल में रखकर उसकी गाँठ बाँध ली, क्योंकि उसके कोट में कोई जेब नहीं थी.  
क्या आपको अन्नूश्का की याद है? वही जिसने रेल की पटरियों पर सूरजमुखी का तेल बिखेर दिया था और उस पर फिसल कर बेर्लिओज़ ट्राम की पटरियों पर गिर गया था?
अब बुल्गाकोव बताते हैं कि यह अन्नूश्का कौन थी और वह क्या करती थी.
जब मार्गारीटा सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी तो हीरे जड़ी घोड़े की नाल सीढ़ियों पर गिर पड़ी. अन्नूश्का ने लपककर उसे उठा लिया. देखिए, कैसी धृष्ठ और चालाक है:
”...माजरा यह था कि मास्टर और मार्गारीटा के अपने साथियों समेत निकलने के कुछ देर पहले फ्लैट नं. 48 से, जो कि जवाहिरे की बीवी के फ्लैट के ठीक नीचे था, एक सूखी-सी औरत हाथ में एक बर्तन और पर्स लिए बाहर सीढ़ियों पर आई. यह वही अन्नूश्का थी, जिसने बुधवार को, बेर्लिओज़ के दुर्भाग्य से, सूरजमुखी का तेल घुमौने दरवाज़े के पास बिखेर दिया था.
कोई नहीं जानता था, और न ही शायद कभी जान पाएगा कि मॉस्को में यह औरत करती क्या थी, और कैसे ज़िन्दा रहती थी. उसके बारे में सिर्फ इतना पता था कि उसे प्रतिदिन या तो बर्तन लिये, या पर्स लिये, या फिर दोनों साथ में लिये या तो तेल की दुकान पर, या बाज़ार में, या उस घर के प्रवेश द्वार के पास, जिसमें वह रहती थी, या सीढ़ियों पर देखा जा सकता था; मगर अक्सर वह दिखाई देती थी फ्लैट नं. 48 के रसोईघर में, जहाँ वह रहती थी. इसके अलावा यह भी सर्वविदित था, कि जहाँ भी वह मौजूद रहती या प्रकट होती थी  वहाँ फौरन हंगामा खड़ा हो जाता था और यह भी कि लोगों ने उसका नाम प्लेग रख दिया था.
 प्लेग  अन्नूश्का न जाने क्यों सुबह बड़ी जल्दी उठ जाया करती, और आज न जाने क्यों, मानो किसी अज्ञात शक्ति ने उसे अँधेरे-उजाले के झुरमुटे के पहले ही बारह बजे के कुछ बाद जगा दिया था. दरवाज़े में चाबी घूमी, अन्नूश्का की पहले नाक और बाद में वह समूची बाहर निकली और अपने पीछे दरवाज़ा खींचकर कहीं बाहर जाने की तैयारी करने ही लगी थी, कि ऊपरी मंज़िल का दरवाज़ा बजा, कोई लुढ़कता हुआ नीचे आया और अन्नूश्का से टकराते हुए उसे इतनी ज़ोर से एक किनारे पर धकेला कि उसका सिर दीवार से जा टकराया.
 यह सिर्फ एक कच्छे में तुम्हें शैतान कहाँ लिये जा रहा है? अपना सिर पकड़ते हुए अन्नूश्का गरजी. कच्छा पहना आदमी हाथ में सूटकेस लिए और टोपी सिर पर डाले, बन्द आँखों से खराश भरी उनींदी आवाज़ में बोला:
 बॉयलर! गंधक का तेज़ाब! सिर्फ पुताई ही कितनी महँगी पड़ी! और रोते हुए भिनभिनायाचली जाओ! अब वह फिर ज़ोर से फेंका गया, मगर आगे नहीं, सीढ़ियों पर नीचे नहीं, अपितु पीछे  ऊपर, वहाँ जहाँ अर्थशास्त्री के पैर से टूटा खिड़की वाला शीशा था, और इस खिड़की से उल्टा लटकते हुए वह तीर की तरह बाहर फेंक दिया गया. अन्नूश्का अपने सिर की चोट के बारे में बिल्कुल भूल गईआह करते हुए वह खिड़की की तरफ लपकी. वह पेट के बल लेट गई और खिड़की से बाहर सिर निकालकर आँगन में देखने लगी, इसी अपेक्षा से कि उसे रोशनी में सड़क पर सूटकेस वाले आदमी का क्षत-विक्षत शरीर देखने को मिलेगा. मगर आँगन में और सड़क पर कुछ भी नहीं था.
बस यही मानकर सन्तोष कर लेना पड़ा कि वह विचित्र, उनींदा प्राणी पंछी की तरह, बिना कोई निशान छोड़े घर से उड़ गया. अन्नूश्का ने सलीब का चिह्न बनाते हुए सोचाहाँ, सचमुच ही फ्लैट का नंबर पचास है! लोग फालतू में ही नहीं कहते! अजीब है यह फ्लैट! फ्लैट है या बला!
वह इतना सोच ही पाई थी कि ऊपरी मंज़िल का दरवाज़ा फिर से खुला और दूसरी बार कोई दौड़ता हुआ नीचे आया. अन्नूश्का दीवार से चिपक गई. उसने देखा कि कोई काफी इज़्ज़तदार, दाढ़ीवाला मगर कुछ-कुछ सुअर जैसे चेहरे वाला आदमी अन्नूश्का की बगल से तीर की तरह गुज़रा, और पहले वाले ही की तरह वह खिड़की के रास्ते घर से बाहर गया, वैसे ही फर्श पर चूर-चूर हुअ बिना. अन्नूश्का भूल गई कि वह किसलिए बाहर निकली थी, और वह वैसे ही सलीब का निशान बनाते सीढ़ियों पर खड़ी ओह...ओह करती अपने आप से बातें करती रही.
 तीसरी बार निकला, बिना दाढ़ी के गोल, चिकने चेहरे वाला, कोट पहने आदमी; वह भागता हुआ आया और ठीक वैसे ही खिड़की फाँद गया.
अन्नूश्का की तारीफ़ में इतना कहना होगा, कि वह काफी जिज्ञासु थी. यह देखने के लिए कि आगे कौन से नये चमत्कार होने वाले हैं, उसने कुछ देर वहीं ठहरने का फैसला कर लिया. ऊपर का दरवाज़ा फिर खुला और इस बार एक पूरा झुण्ड सीढ़ियाँ उतरने लगा, भागकर नहीं, अपितु आम आदमियों की तरह. अन्नूश्का दौड़कर खिड़की से दूर हट गई, वह नीचे अपने फ्लैट तक उतरी, दरवाज़ा फट् से खोलकर उसके पीछे छिप गई, और दरवाज़े की दरार से उसकी उत्सुकता भरी आँख सट गई.
कोई एक बीमार-सा, अनबीमार-सा मगर अजीब, पीतवर्ण, बढ़ी हुई दाढ़ी वाला, काली टोपी और कोई गाऊन-सा पहने डगमगाते कदमों से नीचे उतर रहा था. आधे अँधेरे में अन्नूश्का ने देखा कि उसे सँभालती हुई ले जा रही थी कोई महिला, जिसने काला-सा चोगा पहना था, शायद उस महिला के पैर या तो नंगे थे, या फिर उसने पारदर्शी, विदेशी, फटे हुए जूते पहन रखे थे. छिः छिः! जूतों में क्या है! मगर औरत तो नंगी है! हाँ उस चोगे से उसने अपने तन को केवल ढाँककर ही रखा था! फ्लैट है या बला! अन्नूश्का का दिल इस खयाल से हिलोरें ले रहा था कि कल पड़ोसियों को सुनाने के लिए उसके पास काफी मसाला है.
इस विचित्र लिबास वाली औरत के पीछे थी एक पूरी निर्वस्त्र महिला, उसने हाथ में सूटकेस पकड़ रखा था, उस सूटकेस के साथ-साथ चल रहा था एक विशालकाय काला बिल्ला. अन्नूश्का आँखें फाड़े देख रही थी, उसके मुँह से सिसकारी निकलते-निकलते बची.
इस जुलूस के पीछे-पीछे था नाटे कद का विदेशी, वह लँगड़ाकर चल रहा था, उसकी एक आँख टेढ़ी थी, वह सफेद जैकेट पहने, टाई लगाए था, मगर कोट नहीं पहने था. यह पूरा झुण्ड अन्नूश्का के करीब से होकर नीचे जाने लगा. तभी खट् से कोई चीज़ फर्श पर गिर पड़ी. यह अन्दाज़ करके कि कदमों की आहट दूर होती जा रही है, अन्नूश्का साँप की तरह रेंगकर बाहर आई. बर्तन दीवार के निकट रखकर वह पेट के बल फर्श पर लेट गई और हाथों से चारों ओर टटोलने लगी. उसके हाथों में आया एक रूमाल, जिसमें कोई भारी चीज़ बँधी हुई थी. अन्नूश्का की आँखें विस्फारित होकर माथे पर चढ़ गईं, जब उसने रूमाल में बँधी हुए चीज़ को देखा! अन्नूश्का अपनी आँखों तक उस बहुमूल्य वस्तु को ले आई; अब उसकी आँखें भेड़िए की आँखों जैसी दहकने लगीं. उसके मस्तिष्क में एक तूफान साँय-साँय करने लगामैं कुछ नहीं जानती! मैंने कुछ नहीं देखा!... भतीजे के पास? या इसके टुकड़े कर दिए जाएँ...हीरों को तो उखाड़ कर निकाला जा सकता है...और एक-एक करके...एक पेत्रोव्का को, दूसरा स्मोलेन्स्क को...और  मैं कुछ नहीं जानती, मैंने कुछ नहीं देखा!
अन्नूश्का ने उस चीज़ को शमीज़ के अन्दर सीने के पास छिपा लिया. बर्तन उठाकर रेंगते हुए वह वापस अपने फ्लैट में जाने ही वाली थी कि उसके सामने प्रकट हुआ, शैतान ही जाने वह कहाँ से आया था, वही सफेद जैकेट , बगैर कोट वाला और हौले से फुसफुसाकर बोलारूमाल और नाल निकालो.
 कैसा रूमाल, कैसी नाल? अन्नूश्का ने बड़े बनावटी ढंग से पूछामैं कोई रूमाल-वुमाल नहीं जानती. नागरिक, क्या तुमने पी रखी है?
सफेद जैकेट वाले ने अपनी बस के ब्रेक जैसी मज़बूत और वैसी ही सर्द उँगलियों से बिना कुछ बोले अन्नूश्का का गला इस तरह दबाया, कि उसके सीने में हवा का जाना एकदम रुक गया. अन्नूश्का के हाथों से बर्तन छिटककर फर्श पर जा गिरा. कुछ देर तक अन्नूश्का को बिना हवा दिए जकड़कर, सफेद जैकेट वाले विदेशी ने उसकी गर्दन से उँगलियाँ हटा लीं. हवा में साँस लेकर अन्नूश्का मुस्कुराई.
 ओह, नाल, वह बोलीअभी लो! तो यह आपकी नाल है? मैंने देखा, कि रूमाल में कुछ बँधा पड़ा है...मैंने जान-बूझकर उठाया, जिससे कोई दूसरा न उठा ले, और फिर ढूँढ़ते फिरो!
रूमाल और नाल लेकर विदेशी उसका झुक-झुककर अभिवादन करने लगा. वह उसका हाथ अपने हाथों में लेकर विदेशी लहजे में बार-बार उसे धन्यवाद देने लगा.
 मैं आपका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ! मुझे यह नाल किसी की यादगार होने के कारण बहुत प्रिय है. इसे सँभालकर रखने के लिए मुझे आपको दो सौ रूबल देने की आज्ञा दें. और उसने फौरन अपनी जेब से पैसे निकालकर अन्नूश्का को थमा दिए.
वह बेसुध होकर मुस्कुराने लगी और चिल्लाकर कहने लगीओह, मैं दिल से आपका शुक्रिया अदा करती हूँ! धन्यवाद! धन्यवाद!
वह निडर विदेशी एक ही छलाँग में पूरी सीढ़ी फाँद गया, मगर ओझल होने से पहले वह नीचे से साफ-साफ चिल्लायातुम, बूढ़ी चुडैल, अगर आइन्दा पराई चीज़ को हाथ भी लगाओ तो उसे पुलिस में दे देना! अपने सीने से छिपाकर मत रखना!

आँगन में अब कार तैयार थी. मार्गारीटा को वोलान्द की भेंट वापस देकर अज़ाज़ेलो उससे बिदा लेने लगा. उसने पूछा कि उसे बैठने में कोई तकलीफ तो नहीं हो रही. हैला ने मार्गारीटा का प्रदीर्घ चुम्बन लिया. बिल्ला उसके हाथ के निकट लोट गया. बिदा देने वालों ने हाथ हिलाकर कोने में बेजान-से, निश्चल-से लुढ़के मास्टर से विदा ली, चालक कौए की ओर देखकर हाथ हिलाया और फौरन हवा में पिघल गए. उन्होंने सीढ़ियों पर चढ़कर जाने का कष्ट उठाना मुनासिब नहीं समझा. कौए ने बत्तियाँ जलाईं और मुर्दे की तरह सोए पड़े आदमी की बगल से होकर गाड़ी प्रवेश द्वार से बाहर निकाली. और बड़ी काली कार की बत्तियाँ चहल-पहल और शोरगुल वाले सादोवाया की बत्तियों में मिल गईं.
एक घण्टे बाद अर्बात की एक गली के तहखाने में स्थित उस छोटे-से मकान के अगले कमरे में, जहाँ सब कुछ ठीक वैसा ही था, जैसा पिछले साल की जाड़े की उस भयानक रात के पहले हुआ करता था, मखमली टेबुल क्लॉथ से ढँकी मेज़ पर शेड वाला लैम्प जल रहा था, पास में ही फूलदानी लिली के फूलों से सजी हुई थी, मार्गारीटा खामोशी से बैठी खुशी और झेली गई तकलीफों के दुःख के मारे रो रही थी. आग में झुलसी पाँडुलिपि उसके सामने पड़ी थी, साथ ही साबुत पांडुलिपियों एक ऊँचा गट्ठा भी पास में पड़ा था. बाजू वाले सोफे पर अस्पताल के गाउन में ही लिपटा मास्टर गहरी नींद में सो रहा था. उसकी साँसें भी बेआवाज़ थीं.
जी भरकर रो लेने के बाद मार्गारीटा ने साबुत पांडुलिपि उठाई. उसने वह जगह ढूँढ़ ली जिसे वह क्रेमलिन की दीवार के पास, अज़ाज़ेलो से मुलाक़ात होने के पहले पढ़ रही थी. मार्गारीटा को नींद नहीं आ रही थी. उसने पांडुलिपि को इतने प्यार से सहलाया मानो अपनी प्रिय बिल्ली को सहला रही हो. उसे हाथों में लेकर उलट-पुलटकर देखने लगी, कभी वह प्रथम पृष्ट को देखती, तो कभी अंतिम पृष्ट को. अचानक उसे एक ख़ौफ़नाक खयाल ने दबोच लिया, कि यह सब केवल जादू है, कि अभी पांडुलिपियाँ गायब हो जाएँगी, कि वह आँख खुलते ही अपने आपको अपने शयनकक्ष में पाएगी और उसे अँगीठी सुलगाने के लिए उठना पड़ेगा. मगर यह उसके कष्टों की, लम्बी यातनामय परेशानियों की प्रतिध्वनि मात्र थी. कुछ भी गायब नहीं हुआ, महाशक्तिमान वोलान्द सचमुच सर्वशक्तिमान था, और मार्गारीटा कितनी ही देर, शायद सुबह होने तक, पांडुलिपि के पन्नों को सहलाती रही, जी भरकर देखती रही, चूमती रही, और बार-बार पढ़ती रही:
 “भूमध्य सागर से मँडराते अँधेरे ने न्यायाधीश की घृणा के पात्र उस शहर को दबोच लिया...हाँ, अँधेरा...
  
अब समय हो गया है पोंती पिलात के पास येरूशलम लौटने का!

बुधवार, 16 जनवरी 2013

Discussion on Master & Margarita(Hindi) -Chapter23


अध्याय 23
शैतान का  नृत्योत्सव                
 इससे पहले कि नृत्योत्सव की तैयारियाँ आरम्भ होतीं, अज़ाज़ेलो वोलान्द को सूचित करता है कि फ्लैट में दो अजनबी आए हैं: एक सुन्दरी है जो यह विनती कर रही है कि उसे उसकी मालकिन के पास रहने दिया जाए और उसके साथ है एक मोटा सूअर. यह नताशा थी जो निकोलाय इवानोविच पर सवार होकर आई थी. नताशा को मार्गारीटा के पास रहने की इजाज़त दे दी जाती है और निकोलाय इवानोविच को रसोईघर में भेज दिया जाता है, क्योंकि उसे तो नृत्योत्सव में प्रवेश नहीं मिल सकता.
वोलान्द मार्गारीटा को सलाह देता है कि वह ज़रा भी झिझके नहीं और किसी भी चीज़ से डरे नहीं; पानी के सिवा और कुछ न पिए; नृत्योत्सव की मेज़बान बनने के लिए वह पहले ही मार्गारीटा को धन्यवाद देता है.
और जब वोलान्द कहता है कि ‘समय हो गया’, तो कोरोव्येव प्रकट होता है और मार्गारीटा उसके साथ चल पड़ती है.
यह अध्याय पाठकों को जैसे परी-लोक में ले चलता है. बुल्गाकोव द्वारा किया गया नृत्योत्सव का वर्णन अप्रतिम है. बुल्गाकोव के इस जादुई वर्णन को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, बेहतर होगा कि बुल्गाकोव के ही शब्दों का सहारा लिया जाए!
मोटे तौर से इस अध्याय को चार हिस्सों में बाँटा जा सकता है:
नृत्योत्सव के लिए मार्गारीटा की तैयारी;
विभिन्न हॉलों का वर्णन;
मेहमानों का वर्णन;
शैतान की दुनिया से वास्तविकता का मिलन.
आइए, पहले देखें कि मार्गारीटा को नृत्योत्सव के लिए किस प्रकार तैयार किया गया: मार्गारीटा को कुछ भी याद नहीं रहता. उसे तो नताशा, हैला और बेगेमोत इस समारोह के लिए तैयार कर रहे थे.
      
“मार्गारीटा ने कुछ धुँधला-धुँधला महसूस किया. उसे मोमबत्तियों और हीरे-जवाहिरातों का टब याद रहे. जब मार्गारीटा टब में उतरी तो हैला और उसकी मदद करती नताशा ने किसी गर्म, गाढ़े और लाल द्रव से उसे नहलाया. मार्गारीटा ने नमकीन स्वाद होठों पर महसूस किया और वह समझ गई कि उसे खून से नहलाया जा रहा है. इस रक्तिम स्नान के बाद जो द्रव उस पर डाला गया था, वह था गाढ़ा, पारदर्शी, गुलाबी. इस गुलाब के तेल से मार्गारीटा की सिर घूमने लगा. फिर उसे एक क्रिस्टल के कोच पर लिटाकर उसका बदन किन्हीं बड़ी-बड़ी, हरी-हरी पत्तियों से तब तक घिसा गया, जब तक वह चमक न उठा. अब बिल्ला भी घुस आया और मदद करने लगा. वह मार्गारीटा के पैरों के निकट बैठ गया और उसके पंजे इस तरह मलने लगा जैसे सड़क पर बैठकर जूते साफ कर रहा हो. मार्गारीटा को याद नहीं कि उसके पैरों को गुलाब की पंखुड़ियों के जूते किसने पहनाएँ और इन जूतों में खुद-ब-खुद सुनहरी लेस कहाँ से लग गई. किसी शक्ति ने मार्गारीटा को खींचा और आईने के सामने खड़ा कर दिया. उसके बालों में हीरे जड़ित शाही मुकुट चमक उठा. न जाने कहाँ से कोरोव्येव भी आ गया और उसने मार्गारीटा के सीने पर एक अण्डाकार फ्रेम में जड़ी, भारी चेन से लटकी, काले घुँघराले बालों वाले कुत्ते की आकृति पहना दी. इस आभूषण ने महारानी पर काफी बोझ डाला. चेन उसकी गर्दन में गड़ने लगी और कुत्ते की आकृति ने उसे आगे झुकने पर मजबूर कर दिया. मगर इस चेन के कारण जो असुविधा उसे हो रही थी, उसका पुरस्कार भी मार्गारीटा को शीघ्र ही मिल गया. यह पुरस्कार था वह सम्मान जो अब उसे कोरोव्येव और बेगेमोत दे रहे थे.”
 इसके बाद मार्गारीटा को नृत्योत्सव के लिए कुछ टिप्स दिए जाते हैं:
 महारानी, आपको अंतिम सलाह देने की इजाज़त दें.
 हमारे मेहमानों में अनेक प्रकार के लोग होंगे, और, एक-दूसरे से बिल्कुल अलग, मगर किसी के भी बारे में महारानी मार्गो, कोई पूर्वाग्रह न रखें! यदि आपको कोई पसन्द न आए...मैं समझ सकता हूँ, तो भी, ज़ाहिर है, आप इसे अपने चेहरे पर प्रकट नहीं होने देंगी...नहीं, नहीं, इस बारे में सोचना भी मना है! वह फौरन, उसी क्षण, ताड़ जाएगा. उसे प्यार करना होगा, प्यार करना होगा, महारानी. नृत्योत्सव की मेज़बान को इसका सौ गुना पुरस्कार मिलेगा! और हाँ किसी को भी छोड़िए मत. कम से कम एक मुस्कान, अगर बात करने का समय न हो तो, कम से कम सिर का एक हल्का-सा इशारा. जो भी सम्भव है, मगर किसी की भी उपेक्षा न करें. वर्ना वह संतप्त हो जाएँगे...
फिर मार्गारीटा नृत्योत्सव वाले हॉल की ओर चल पड़ी. ज़रा देखिए, कैसा अद्भुत वर्णन है!
“... मार्गारीटा स्नानगृह से निकलकर पूरे अँधेरे में कोरोव्येव और बेगेमोत के साथ आई.

मैं, मैं, बिल्ला फुसफुसाया, मैं इशारा करूँगा!
 करो! अँधेरे में कोरोव्येव ने जवाब दिया.
 नृत्योत्सव! बिल्ले की तीखी चीख सुनाई दी, और मार्गारीटा ने फौरन चीखकर कुछ क्षणों के लिए अपनी आँखें बन्द कर लीं. नृत्योत्सव उस पर मानो प्रकाश-पुंज लेकर बरसा, और साथ में लाया शोर और खुशबू. कोरोव्येव का हाथ पकड़कर चलती हुई मार्गारीटा ने अपने आपको एक उष्णकटिबन्धीय जंगल में पाया. लाल गर्दन वाले, हरी पूँछ वाले तोते वृक्षलताओं से चिपके थे, उन पर कूद रहे थे और चीख-चीखकर कह रहे थे: मैं ख़ुश हूँ! मगर जंगल जल्दी ही समाप्त हो गया. उसकी नम दमघोंटू हवा का स्थान ले लिया शीतल नृत्योत्सव के हॉल ने, जिसमें पीले, चमकीले स्तम्भों की कतार थी. यह हॉल भी, जंगल की ही भाँति खाली था, बस सिर्फ स्तम्भों के पास बुत बने, निर्वस्त्र नीग्रो, सिर पर चाँदी की पट्टियाँ बाँधे खड़े थे. जैसे ही वहाँ मार्गारीटा ने अपनी मण्डली के साथ प्रवेश किया जिसमें न जाने कहाँ से अज़ाज़ेलो भी आकर मिल गया था, उनके चेहरे उत्तेजना से मटमैले भूरे हो गए. अब कोरोव्येव ने मार्गारीटा का हाथ छोड़ दिया और बुदबुदाया: सीधे त्युल्पान की ओर.
सफ़ेद त्युल्पानों की एक नीची दीवार मार्गारीटा के सामने प्रकट हो गई, उसके पीछे थीं छोटे-छोटे शेड्स में अनेक बत्तियाँ और इनके पीछे से फ्रॉक पहने मेहमानों के सफ़ेद सीने और काले कन्धे. तब मार्गारीटा समझ गई कि नृत्योत्सव में आवाज़ें कहाँ से आ रही थीं. उस पर बरसात हुई तुरही के स्वर की, और उससे हटकर अलग से प्रकट हुआ वायलिन का स्वर उसके बदन पर ऐसे लहराने लगा जैसे धमनियों में दौड़ता हुआ खून. क़रीब डेढ़ सौ लोगों का ऑर्केस्ट्रा पोलोनेझ धुन बजा रहा था.”
अगले हॉल में स्तम्भों की कतार नहीं था. उसके बदले में थीं, एक तरफ लाल, गुलाबी, दूधिया-सफ़ेद रंगों के गुलाबों की दीवारें और दूसरी ओर थी दुहरी पत्तियों वाले कामेलिया की जापानी दीवार. इन दीवारों के मध्य की जगह पर थे छनछनाहट करते हल्के फ़व्वारे; और शैम्पेन के बुलबुले तीन तालाबों में उड़ रहे थे; जिनमें एक थी पारदर्शी बैंगनी, दूसरी माणिक (लाल) और तीसरी बिलौरी. इनके पास आ-जा रहे थे सिर पर लाल पट्टी कसे नीग्रो जो चाँदी के मग्स से इन तालाबों से शैम्पेन निकाल-निकालकर चपटे प्यालों में भर रहे थे. गुलाब की दीवार में एक खाली जगह थी, जहाँ से लाल, पंछी की पूँछ जैसा फ्रॉक पहने एक आदमी दिखाई दे रहा था. उसके सामने अविरत शोर था जॉज़ संगीत का. जैसे ही इस संचालक ने मार्गारीटा को देखा, वह उसके सम्मुख इतना झुका, कि उसके हाथ फर्श को छूने लगे. फिर वह सीधा खड़ा हो गया और तेज़ आवाज़ में चीखा, अल्लीलुइया!

“... अंत में वे उस चौक तक आए, जहाँ मार्गारीटा के अन्दाज़ के मुताबिक वह अँधेरे में लैम्प उठाए कोरोव्येव से मिली थी. अब इस चौक में रोशनी के कारण आँखें चकाचौंध हो रही थीं, जो अँगूर के आकार के झुम्बरों से छन-छनकर आ रही थी. मार्गारीटा को वहीं ठहराया गया और उसके दाहिने हाथ के नीचे एक नीचा जम्बुमणि का स्तम्भ प्रकट हो गया.
 यदि बहुत परेशानी हो जाए, तो इस पर हाथ रख सकती हैं, कोरोव्येव फुसफुसाया.
किसी एक काले आदमी ने मार्गारीटा के पैरों के निकट एक तकिया सरकाया, जिस पर सोने के तारों से घुँघराले बालों वाले कुत्ते की तस्वीर कढ़ी थी. इस पर उसने किन्हीं हाथों की सहायता से घुटना मोड़कर अपना दाहिना पैर रख दिया.”
फिर मेहमानों का आगमन होता है. देखिए वे कैसे और कहाँ से आते हैं:
 “... तभी नीचे विशाल भट्ठी से किसी चीज़ की आवाज़ आई. उसमें से एक वध-स्तम्भ उछलकर निकला, जिस पर आधा सड़ा एक कंकाल बेतहाशा झूल रहा था. वह कंकाल रस्सी से छूटकर नीचे गिर गया, ज़मीन से टकराया और उसमें से फ्रॉक-कोट पहने, काले बालों वाला सुन्दर युवक चमकीले जूते पहने उछलकर बाहर आया. भट्ठी में से आधा सड़ा ताबूत बाहर आया. उसका ढक्कन खुल गया और उसमें से एक और मानव अवशेष निकला. सुन्दर नौजवान बड़ी मर्दानगी से उसकी ओर उछला और उसकी ओर अपनी बाँह मोड़कर बढ़ा दी. दूसरा अवशेष एक निर्वस्त्र चुलबुली महिला में बदल गया. उसने काले जूते पहन रखे थे. उसके सिर पर काले पर खोंसे हुए थे. तब दोनों, पुरुष और स्त्री, ऊपर सीढ़ी की ओर लपके.”
मार्गारीटा अज़ाज़ेलो और कोरोव्येव के साथ खड़ी मुस्कुरा रही थी और कह रही थी कि वह उनके आगमन से प्रसन्न है.
ये मेहमान कौन थे? ये सब अपने ज़माने की विख्यात/कुख्यात हस्तियाँ थीं. इनमें प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे, खूनी थे, कीमियाई थे, वेश्यालयों के मालिक थे...
मेहमानों में बुल्गाकोव ने अपने समय के कुछ लोगों को भी शामिल कर लिया: पार्टी के दो सदस्य जिन्होंने एक दूसरे को रास्ते से हटा दिया था; उनके नाटक ‘ज़ोया का फ्लैट’ से भी एक पात्र इनमें था.
मेहमानों में से एक चेहरा मार्गारीटा के दिमाग में रह गया.
यह फ्रीडा थी.    
 ...वह नृत्योत्सवों की दीवानी है, मगर हमेशा अपने रूमाल के बारे में शिकायत करने की बात सोचती रहती है.
मार्गारीटा ने नज़र से उस औरत को ढूँढ़ लिया, जिसकी ओर कोरोव्येव ने इशारा किया था. यह एक बीस वर्षीय अद्वितीय सुन्दरी थी. उसकी आँखें काफी बेचैन और परेशान लग रही थीं
 कैसा रूमाल? मार्गारीटा ने पूछा.
 उसके लिए एक नौकरानी रखी गई है, कोरोव्येव ने स्पष्ट किया, और वह पिछले तीस साल से उसकी नन्ही-सी मेज़ पर रात को छोटा-सा रूमाल रख देती है. जैसे ही सुबह वह उठती है, रूमाल वहाँ देखती है. उसने उसे चूल्हे में डाला, नदी में फेंक दिया, मगर उससे कुछ भी फायदा नहीं हुआ.
 कैसा रूमाल? मार्गारीटा ने फुसफुसाकर हाथ ऊपर उठाते और नीचे गिराते हुए कहा.
 नीली किनारी वाला रूमाल. बात यह है कि जब वह रेस्त्राँ में काम करती थी, मालिक ने उसे नीचे गोदाम में बुलाया, और नौ महीने बाद उसने एक बालक को जन्म दिया. उसे जंगल में ले गई और उसके मुँह में रूमाल ठूँस दिया. फिर बालक को ज़मीन में गाड़ दिया. अदालत में उसने बताया कि उसके पास बच्चे को पिलाने के लिए कुछ भी नहीं था.
नीली किनारी वाला रूमाल रूसी किसान को प्रदर्शित करता है और फ्रीडा वाली घटना उस शोषण की ओर इंगित करती है जिसकी शिकार क्रांतिपूर्व रूस में महिलाएँ हुआ करती थीं.
नृत्योत्सव के अंत में वोलान्द का आगमन होता है. उसका प्रवेश भी काफ़ी नाट्यपूर्ण है. यहीं वास्तविकता का शैतान की दुनिया से मिलन होता है, सामंत माइकेल के भाग्य का निर्णय होता है और बेर्लिओज़ पूरी तरह से लुप्त हो जाता है. चलिए, देखते हैं:
“...कोरोव्येव के साथ वह फिर नृत्य वाले हॉल में आई, जहाँ मेहमान अब नृत्य नहीं कर रहे थे, बल्कि स्तम्भों के बीच-बीच में खड़े थे. हॉल का मध्य भाग खाली छोड़ा गया था.
 मार्गारीटा को याद नहीं कि उसे इस खाली भाग में प्रकट हुए मंच पर चढ़ने में किसने मदद की. जब वह ऊपर चढ़ी तो दूर कहीं आधी रात के घण्टे बजे, जो उसके हिसाब से कब की ख़त्म हो चुकी थी. आख़िरी घण्टे की गूँज के साथ मेहमानों की भीड़ पर सन्नाटा छा गया.
तब मार्गारीटा ने फिर से वोलान्द को देखा. वह अबादोना, अज़ाज़ेलो और अबादोना जैसे दिखने वाले कुछ काले नौजवानों के साथ चला आ रहा था.
अब मार्गारीटा ने देखा कि उसके लिए बनाए गए स्टेज के सामने ही एक और स्टेज था वोलान्द के लिए. मगर वह उस पर नहीं चढ़ा. मार्गारीटा को इस बात से भी आश्चर्य हुआ कि वोलान्द नृत्योत्सव के इस अंतिम महान चरण में वैसे ही आया था, जैसे वह अपने शयन-कक्ष में था. उसके कन्धों से वही गन्दा धब्बेदार कुर्ता झूल रहा था, पैरों में वही मुड़े-तुड़े जूते थे. वोलान्द के हाथ में थी खुली हुई तलवार, मगर इस तलवार का उपयोग वह चलते समय सहारा देने वाली छड़ी के रूप में कर रहा था. लँगड़ाते हुए वोलान्द अपने लिए बनाए गए स्टेज के निकट रुका और फ़ौरन अज़ाज़ेलो उसके सामने हाथों में प्लेट लिए आ खड़ा हुआ. इस प्लेट पर मार्गारीटा ने एक आदमी का कटा हुआ सिर देखा, जिसके सामने के दाँत टूटे हुए थे. पूरी ख़ामोशी छाई रही और उसे केवल एक बार एक अजीब-सी घण्टी की आवाज़ ने तोड़ा, जो प्रवेश-द्वार पर लगी होती है. 
 मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच, वोलान्द हौले से सिर की तरफ मुख़ातिब हुआ, और तब मरे हुए आदमी की पलकें ऊपर उठीं. काँपते हुए मार्गारीटा ने देखीं बेजान चेहरे पर जीवित, सोच में डूबी, पीड़ा झेलती आँखें.
सब वैसे ही हो गया, सच है न? वोलान्द ने सिर की आँखों में झाँकते हुए आगे कहा, सिर काटा औरत ने, मीटिंग हुई नहीं, और मैं आपके फ्लैट में रह रहा हूँ. यह प्रमाण है और प्रमाण दुनिया की सबसे ज़िद्दी चीज़ है. मगर अब हमें भविष्य में दिलचस्पी है, न कि उस हादसे में जो घट चुका है. आप हमेशा ज़ोर-शोर से इस सिद्धांत का प्रतिपादन करते रहे हैं, कि सिर कटने के बाद जीवन समाप्त हो जाता है, वह राख बनकर अस्तित्वहीन हो जाता है. मुझे अपने सभी मेहमानों की उपस्थिति में आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है, हालाँकि मेरे मेहमान किसी और ही सिद्धांत के प्रमाण हैं, कि आपका सिद्धांत ठोस और बुद्धिमत्तापूर्ण है. मगर, जैसा कि सर्वविदित है, सभी सिद्धांतों का एक-दूसरे की बदौलत ही अस्तित्व है. इनमें एक यह है, कि हरेक को उसके विश्वास के अनुरूप ही फल मिलता है. हाँ, ऐसा ही होगा! आप अस्तित्वहीन हो जाएँगे, और मुझे उस प्याले से जिसमें आप परिवर्तित होने वाले हैं अस्तित्व के लिए जाम पीकर खुशी होगी.
वोलान्द ने तलवार उठाई. तभी सिर की पलकें बुझकर काली हो गईं और सिकुड़ गईं, फिर टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गईं; आँखें गायब हो गईं और जल्दी ही मार्गारीटा ने प्लेट में देखी पीली, पन्ने की आँखों और मोती के दाँतों वाली, सोने के आधार पर रखी खोपड़ी. खोपड़ी का ढक्कन झटके से खुल गया.
 इसी क्षण, मालिक, कोरोव्येव ने वोलान्द की प्रश्नार्थक नज़र को ताड़ते हुए कहा, वह आपके सामने आएगा. मैं इस कब्र-सी ख़ामोशी में सुन रहा हूँ उसके चमकते जूतों की चरमराहट और उस जाम की खनखनाहट, जो उसने आख़िरी बार मेज़ पर रखा था, अपने जीवन की अंतिम शैम्पेन पीकर. लीजिए, वह आ गया.
वोलान्द की तरफ बढ़ते हुए, उस हॉल में एक नया, अकेला मेहमान आया. बाह्य रूप से वह अन्य पुरुष मेहमानों से भिन्न नहीं था, सिर्फ एक बात को छोड़कर: मेहमान घबराहट के मारे लड़खड़ा रहा था, जो दूर से ही दिखाई दे रही थी. उसके गाल जल रहे थे, आँखें घबराहट भरी चँचलता से इधर-उधर भाग रही थीं. मेहमान स्तम्भित था, और यह स्वाभाविक ही था: उसे यहाँ की हर चीज़ आश्चर्यचकित किए दे रही थी, ख़ासतौर से वोलान्द की वेशभूषा.
मगर मेहमान का स्वागत बड़ी ज़िन्दादिली से किया गया.
 ओह, प्रिय सामंत मायकेल, स्वागतपूर्ण मुस्कुराहट से वोलान्द मेहमान से मुख़ातिब हुआ, जिसकी आँखें अब माथे तक चढ़ चुकी थीं, आपका परिचय कराते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है, वोलान्द ने अब मेहमानों की ओर मुड़कर कहा, आदरणीय सामंत मायकेल, जो मनोरंजन समिति में विदेशियों को राजधानी के दर्शनीय स्थलों से अवगत कराने का काम करते हैं.
अब मार्गारीटा चौंक गई, क्योंकि उसने इस मायकेल को पहचान लिया था. उसने उसे मॉस्को के थियेटरों और होटलों में कई बार देखा था. शायद... मार्गारीटा ने सोचा, यह भी मर चुका है? मगर तभी सारी बात स्पष्ट हो गई. प्रिय सामंत, वोलान्द ने खुशी से मुस्कुराते हुए अपनी बात जारी रखी, इतने मुग्ध हो गए कि मॉस्को में मेरे आगमन के बारे में जानकर उन्होंने मुझे फौरन टेलिफोन किया और अपनी सेवाओं के बारे में मुझे बताया, यानी मॉस्को के दर्शनीय स्थलों की सैर कराने के बारे में. ज़ाहिर है कि मुझे उन्हें अपने यहाँ आमंत्रित करके खुशी हुई है.
इसी समय मार्गारीटा ने अज़ाज़ेलो को खोपड़ी वाली प्लेट कोरोव्येव को देते हुए देखा.
 हाँ, तो सामंत महोदय, अचानक निकटता दर्शाते हुए वोलान्द ने अपनी आवाज़ नीची कर की और बोला, आपकी असीम उत्सुकता के बारे में अफ़वाहें फैल रही हैं. सुना है कि उत्सुकता और बातूनीपन लोगों का ध्यान आकर्षित करने लगे हैं. इसके अलावा दुष्ट ज़बानें यह भी कहती सुनी गई हैं कि आप एजेण्ट और जासूस हैं. इसके साथ ही यह अन्दाज़ भी लगाया जा रहा है कि इस सबके कारण महीने भर के अन्दर आपका दर्दनाक अंत हो जाएगा. तो, आपको इस थकाने वाले इंतज़ार से बचाने के लिए हमने सोचा कि आपकी मदद की जाए. आपने मेरे पास आकर मुझसे बातें करके कुछ देखने-सुनने की इच्छा प्रकट की थी, उसी बात का हमने फायदा उठाया है.
सामंत का चेहरा अबादोना से भी ज़्यादा पीला पड़ गया. फिर एक चौंकाने वाली बात हुई. अबादोना ने सामंत के सामने खड़े होकर एक क्षण के लिए अपना चश्मा उतारा. इसी समय अज़ाज़ेलो के हाथ में कोई चीज़ चमकी, कुछ ताली-सी बजने की आवाज़ आई और सामंत नीचे धरती पर गिरने लगा. उसके सीने से लाल खून का फव्वारा निकलकर उसकी कलफ लगी कमीज़ और जैकेट को सराबोर करने लगा. कोरोव्येव ने इस उछलती हुए धार के नीचे खोपड़ी वाला प्याला रखा और भर जाने के बाद उसे वोलान्द को पेश कर दिया. अब तक सामंत का निर्जीव शरीर फर्श पर गिर पड़ा था.
आपकी सेहत के लिए, दोस्तों, धीरे से वोलान्द ने कहा और प्याला उठाकर उसे होठों तक ले गया.
तभी एक अद्भुत परिवर्तन हुआ. धब्बों वाली कमीज़ और मुड़े-तुड़े जूते गायब हो गए. वोलान्द एक काली पोशाक में दिखा, कमर में स्टील की तलवार लटकाए. वह फौरन मार्गारीटा के पास आया और उसके पास प्याला लाते हुए अधिकारपूर्ण स्वर में बोला, पियो!
मार्गारीटा का सिर घूम गया, वह लड़खड़ाने लगी, मगर प्याला अब तक उसके होठों तक पहुँच चुका था, और कुछ आवाज़ें, किसकी वह पहचान नहीं पाई, उसके दोनों कानों में कह रही थीं: डरिए मत, महारानी...डरिए मत, महारानी, खून कब का ज़मीन में चला गया है. और वहाँ, जहाँ वह गिरा था, अंगूर की बेलें उग आई हैं.
मार्गारीटा ने आँखें खोले बिना एक घूँट पिया और उसकी नस-नस में एक मीठी-सी लहर दौड़ गई, कानों में घण्टियाँ बजने लगीं. उसे लगा कि कानों को बहरा कर देने वाले मुर्गे चिल्ला रहे हैं. कहीं दूर मार्च का संगीत बज रहा है. मेहमानों के झुण्ड अपना आकार खोने लगे: फ्रॉक पहने मर्द और औरतें कंकालों में परिवर्तित होकर बिखर गए, मार्गारीटा की आँखों के सामने उस कक्ष पर सड़न छाने लगी जिस पर कब्र की-सी गन्ध फैल गई. स्तम्भ बिखर गए, रोशनियाँ बुझ गईं, सब कुछ सिमटने लगा; न बचे झरने, न ही त्युल्पान और अन्य फूल. बचा सिर्फ उतना ही जितना पहले था जवाहिरे की बीवी का सीधा-सादा ड्राइंगरूम, और उसके अधमुँदे दरवाज़े से बाहर झाँकती प्रकाश की एक पट्टी.
 इसी अधखुले दरवाज़े में प्रविष्ट हुई मार्गारीटा, वापस आ गई वास्तविकता में.

बुधवार, 9 जनवरी 2013

Discussion on Master & Margarita - Chapter 22


अध्याय 22 
             
इस अध्याय का शीर्षक है ‘शमा की रोशनी में’, क्योंकि अजूबों की दुनिया में मार्गारीटा का पदार्पण होता है मोमबत्ती की रोशनी में.

जिस कार में मार्गारीटा को वापस मॉस्को लाया जा रहा था, उसे एक पंछी ड्राइवर चला रहा था. उसे दोरोगोमीलोवो भाग में एक सुनसान कब्रिस्तान के निकट उतारकर पंछी ड्राइवर ने कार का एक पहिया निकाला, उस पर सवार हुआ और गायब हो गया. जाने से पहले उसने कार को एक गहरी खाई में धकेल दिया, जहाँ वह एक विस्फोट के साथ जल गई.

एक कब्र के पीछे से एक काला रेनकोट प्रकट होता है, जिसमें अज़ाज़ेलो है. उसने इशारे से मार्गारीटा को उसके ब्रश पर बैठने को कहा, स्वयँ भी कूदकर उस पर बैठ गया और वे दोनों बिना किसी को दिखे ज़ूs s s म से उड़ चले. कुछ ही पल बाद वे सादोवाया रास्ते पर बिल्डिंग नंबर 302 के पास उतरे और चल पड़े फ्लैट नं. 50 की ओर. तो, फ्लैट नं. 50 अब एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है.

चलते चलते वे तीन आदमियों को देखते हैं जो देखने में बिल्कुल एक जैसे लग रहे थे, मानो एक दूसरे की प्रतिकृतियाँ हों. ये तीनों आदमी उस बिल्डिंग पर और फ्लैट नं. 50 पर नज़र रख रहे थे. कृपया ध्यान दें कि इन तीनों आदमियों की अपनी कोई पहचान नहीं थी, वे बड़े यांत्रिक तरीके से अपना काम कर रहे थे...उन्हें एक दूसरे की प्रतिकृतियाँ तो होना ही था!

अज़ाज़ेलो ने अपनी चाभी से दरवाज़ा खोला.

कमरे में प्रवेश करते ही मार्गारीटा को जिस बात ने चौंकाया वह था उस जगह का आकार-प्रकार और वहाँ छाया हुआ अँधेरा. उसे ऐसा महसूस हुआ मानो वह एक सीढ़ियों वाले अंतहीन हॉल में है, जहाँ बड़े बड़े स्तम्भों की कतार है और घुप अन्धेरा छाया हुआ है. वह इस बात पर अचरज कर ही रही थी कि मॉस्को के साधारण फ्लैट में इतना सब कैसे समा सकता है, तभी उसने देखा कि एक आदमी हाथ में मोमबत्ती पकड़े हॉल की सीढ़ियाँ उतरते हुए उनके पास आ रहा है. यह कोरोव्येव था.

कोरोव्येव मार्गारीटा को समझाता है कि जिन्हें पाँचवे आयाम का ज्ञान है उनके लिए किसी भी छोटी जगह को मनचाहा आकार देना बहुत आसान है. उसने उसे मॉस्को के एक दुःसाहसी व्यक्ति का उदाहरण दिया जिसने बगैर किसी आयाम-वायाम के ज्ञान के अपने फ्लैट्स में पार्टीशन्स खड़े कर करके कमरों की संख्या को बढ़ा लिया और फिर उन्हें निरंतर बड़े फ्लैट्स से बदलता रहा. मगर अधिकारियों को उसके कारनामों का पता चल गया और उसकी गतिविधियों का अंत हो गया.

कोरोव्येव मार्गारीटा को समझाता है कि उसे यहाँ क्यों बुलाया गया है:          

चलिए, काम की बातें करें, काम की बातें, मार्गारीटा निकोलायेव्ना! आप बहुत बुद्धिमान महिला हैं, और, बेशक, समझ गई हैं, कि हमारा मालिक कौन है.

मार्गारीटा का दिल धक् हो गया. उसने अपना सिर हिला दिया.

 वही, वही तो... कोरोव्येव बोला, हम सभी छिपाने के और रहस्यों के दुश्मन हैं. हर साल हमारे मालिक एक बॉल (नृत्योत्सव) का आयोजन करते हैं. इसे बसंत पूर्णिमा का या शतनृप नृत्योत्सव कहते हैं. ऐसी भीड़! अब कोरोव्येव ने गाल पर हाथ रख लिया, मानो उसका दाँत दर्द कर रहा हो, 

ख़ैर, मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको खुद भी विश्वास हो जाएगा. तो, बात यह है कि मालिक कुँआरे हैं जैसा कि आप ख़ुद ही समझ रही हैं, मगर महिला मेज़बान तो होना ही चाहिए, कोरोव्येव ने हाथ हिलाते हुए कहा, आप ख़ुद ही जानती हैं कि मालकिन के बिना...

मार्गारीटा एक-एक शब्द ध्यान से सुन रही थी: उसके दिल को बड़ी ठण्डक मिल रही थी; सुख की कल्पना से उसका सिर घूम रहा था.

 यह प्रथा पड़ गई है, कोरोव्येव आगे बोला, कि नृत्योत्सव की मेज़बान का नाम मार्गारीटा ही होना चाहिए, यह तो हुई पहली बात; और दूसरी यह कि वह स्थानीय निवासी होना चाहिए; और जैसा कि आप देख रही हैं, हम हमेशा सफर करते रहते हैं और इस समय मॉस्को में हैं. हमें मॉस्को में एक सौ इक्कीस मार्गारीटा मिलीं, मगर विश्वास कीजिए, कोरोव्येव ने अपनी जाँघ पर हाथ मारते हुए कहा, एक भी इस लायक नहीं निकली. अब, आख़िर में, सौभाग्य से...

कोरोव्येव अर्थपूर्ण ढंग से हँसा, बिल्कुल संक्षेप में...आप इस ज़िम्मेदारी से इनकार तो नहीं करेंगी?

 नहीं करूँगी, मार्गारीटा ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया.

 बेशक! कोरोव्येव ने कहा, और लैम्प उठाकर बोला, कृपया मेरे पीछे-पीछे आइए.

मार्गारीटा को वोलान्द के पास ले जाया जाता है. वोलान्द को विश्वास हो जाता है कि मार्गारीटा एक बुद्धिमान और सलीकापसन्द महिला है.

वोलान्द का वर्णन करने के बाद बुल्गाकोव उसके घुटने के दर्द का वर्णन करता हि, जो उसे तब से था जब उसे स्वर्ग से बाहर फेंक दिया गया था.

बुल्गाकोव रेडियो पर समाचार पढ़ने वाली लड़कियों का मखौल उड़ाता है जिनके उच्चारण सही नहीं होते.

मार्गारीटा का ध्यान वोलान्द के पलंग के पास रखे एक ग्लोब की ओर आकर्षित होता हि, जो बिल्कुल वास्तविक नज़र आ रहा था. ग्लोब में दुनिया में घटित हो रही घटनाएँ स्पष्ट नज़र आ रही थीं. उसे अबादोना भी दिखाया जाता है, जो मौत का फ़रिश्ता है.

मार्गारीटा को वोलान्द की टीम पसन्द आ गई जिसमें शामिल थे अज़ाज़ेलो, कोरोव्येव, सुन्दरी हैला और बेगेमोत.

अब वे सभी नृत्योत्सव के लिए तैयार हो रहे थे जो अर्ध रात्रि में आरम्भ होने वाला था.

हम मार्गारीटा के साथ ही रहेंगे!